राज्यसभा और लोकसभा: विधायिका को मिलाकर विधायिका बनती है l राज्यसभा को विधायिका का उच्च सदन और लोकसभा को विधायिका का निम्न सदन कहा जाता है l Show
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द्विसदनात्मक विधायिका
द्विसदनात्मक सदन विधायिका के लाभ
विधायिका का उच्च सदन: राज्य सभाइसे विधायिका का उच्च सदन कहा जाता है l राज्यसभा राज्यों के प्रतिनिधित्व करती है l इसका निर्वाचन अप्रत्यक्ष विधि से होता है l किसी राज्य के लोग राज्य की विधान सभा के सदस्यों को चुनते हैं l राज्य विधानसभा के निर्वाचित सदस्य राज्यसभा के सदस्यों को चुनते हैं l राज्यसभा के सदस्यों का चुनाव समानुपातिक प्रतिनिधित्व चुनाव प्रणाली के द्वारा किया जाता है l विभिन्न क्षेत्रों से उनकी जनसंख्या के अनुपात में सदस्यों को प्रतिनिधित्व दिया जाता है l विधायिका राज्यसभाराज्यसभा की संरचनाराज्यसभा का वर्णन संविधान की अनुसूची 4 में दिया गया है l इसका गठन संविधान के अनुच्छेद 80 के तहत किया गया l राज्यसभा में कुल सदस्यों की संख्या अधिकतम 250 हो सकती है l जिसमें 238 निर्वाचित और 12 मनोनीत सदस्य होंगे l 12 मनोनीत सदस्य विज्ञान साहित्य खेल इत्यादि में ख्याति प्राप्त लोग होंगे l वर्तमान में राज्यसभा के सदस्यों की कुल संख्या 245 है l जिसमें 233 सदस्य निर्वाचित और 12 मनोनीत है l सदस्यता के लिए पात्रता (अनुच्छेद 84)
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उच्च सदन(राज्यसभा) की शक्तियाँ
लोकसभालोकसभा का गठन संविधान के अनुच्छेद 81 और 331 के अनुसार किया गया है l यह संसद का निम्न सदन है l लोकसभा के सदस्यों का चुनाव जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से होता है l लोकसभा में प्रधानमंत्री और उनकी मंत्रिपरिषद का गठन होता है l लोकसभा का कार्यकाल 5 वर्ष के लिए होता है l प्रथम लोकसभा स्पीकर का नाम गणेश वासुदेव मावलंकर था l प्रथम लोकसभा चुनाव सन 1952 में हुए थे l लोकसभा विधायिका का निम्न सदननिम्न सदन की संरचनालोकसभा में एक अध्यक्ष और एक उपाध्यक्ष होता है l अध्यक्ष सभा की कार्यवाही को नियंत्रित करता है l लोकसभा अध्यक्ष का चुनाव चुने हुए प्रतिनिधियों में से ही किया जाता है l लोकसभा के चुनाव में सार्वभौम वयस्क मताधिकार प्रणाली का उपयोग किया जाता है l निम्न सदन में अधिकतम सदस्यों की संख्या 552 हो सकती है l राष्ट्रपति 2 एंग्लो इंडियन सदस्यों को मनोनीत कर सकता है l यदि उसे ऐसा लगता है कि लोकसभा में एंग्लो इंडियन का प्रतिनिधित्व कम है l प्रथम लोकसभा चुनाव के दौरान कुल सीटों की संख्या 418 थी l 1971 तक यह संख्या बढ़कर 518 हो गई l उसके बाद यह संख्या बढ़ते हुए 1989 में 543 हो गई l वर्तमान में इसमें 543 सदस्य हैं l लोकसभा का कार्यकाललोकसभा का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है l कभी कभी लोकसभा 5 वर्ष पूर्व भी भंग हो सकती है l यदि कोई चुनी हुई सरकार अपना बहुमत खो देती है तो सरकार गिर जाती है l निम्न सदन(लोकसभा) की शक्तियाँ
राज्यसभा और लोकसभा की शक्तियों में अन्तरलोकसभा
राज्यसभा
संसद (राज्यसभा और लोकसभा) कानून कैसे बनाती है?समय की आवश्यकता और जनता की इच्छा को ध्यान में रखते हुए समय-समय पर नए नए कानून और नियमों की आवश्यकता पड़ती है l इसी को ध्यान में रखते हुए संसद की समितियां अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करती हैं l विधेयक सदन में प्रस्तुत किया जाता है l प्रस्तावित कानून के प्रारूप को विधायक कहते हैं l विधेयक कोई भी प्रस्तुत कर सकता है l एक निजी सदस्य या फिर सरकार के द्वारा कोई मंत्री l समान्यत: कानून बनाने के लिए विधेयक सरकार के संबंधित विभाग के मंत्री ही पेश करते हैं l इस दौरान विधेयक को कई चरणों से गुजरना पड़ता है l वह चरण निम्न प्रकार से हैं: विधेयक से कानून बननाविधेयको के प्रकारविधेयक कई प्रकार के होते हैं प्रस्तुतीकरण के आधार पर विधेयक:
धन के आधार पर विधेयक को दो प्रकार में बांटा गया है:
विधेयक की प्रकृति के आधार पर विधेयक को दो प्रकार से बांटा गया है:
राज्यसभा और लोकसभा में मुख्य अंतरउपराष्ट्रपति पर महाभियोग केवल राज्यसभा में ही लगाया जा सकता है l अनुसूची 7 के राज्य सूची के विषय में कोई भी परिवर्तन करने के लिए राज्य सभा की अनुमति जरूरी है l राज्यसभा के सदस्यों का चुनाव जनता द्वारा चुने हुए प्रतिनिधियों के द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से किया जाता है l धन विधेयक केवल लोकसभा में ही लाया जा सकता है l सरकार और उसकी मंत्रिपरिषद केवल लोकसभा की लिए उत्तरदायी है l लोकसभा के सदस्यों का चुनाव प्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली के द्वारा होता है l इसलिए लोकसभा को अधिक शक्तियाँ प्रदान की गयी है l संसदीय विशेषाधिकारविधायिका में कुछ भी कहने के बावजूद किसी सदस्य के विरुद्ध कोई कानूनी कार्यवाही नहीं की जा सकती है l इसे संसदीय विशेषाधिकार कहते हैं l विधायिका के अध्यक्ष को संसदीय विशेषाधिकार के हनन के मामले में अंतिम निर्णय लेने की शक्ति प्राप्त होती है l संसदीय विशेषाधिकार सदस्यों को इसलिए दिया गया है ताकि वह निर्भक और बिना सरकार के दबाव में आये अपनी बात रख सके l कार्यपालिका और संसदीय नियंत्रण के साधन संसदीय लोकतंत्र में विधायिका अनेक स्तरों पर कार्यपालिका की जवाबदेही को सुनिश्चित करने का काम करती है l यह काम नीति निर्माण कानून या नीति को लागू करने तथा कानून या नीति के लागू होने के बाद वाली अवस्था यानी किसी भी स्तर पर किया जा सकता है l विधायक का यह काम कई तरीकों से करती है:
कार्यपालिका पर नियंत्रण रखने के साधनप्रश्नकाल: संसद के अधिवेशन के समय प्रतिदिन प्रश्नकाल आता है l जिसमें मंत्रियों और सदस्यों के तीखे प्रश्नों का जवाब देना पड़ता है l दोनों सदनों में प्रश्नकाल का समय संसद के प्रारंभ होने के साथ ही प्रारंभ हो जाता है l प्रश्नकाल 11:00 से 12:00 बजे तक होता है l शून्यकाल: इसमें सदस्य किसी भी महत्वपूर्ण मुद्दे को उठा तो सकते हैं पर मंत्री या सरकार जरूरी नहीं कि उस पर जवाब दें अन्यथा मंत्री उसका उत्तर देने के लिए बाध्य नहीं है लोकहित के मामले में आधे घंटे की चर्चा और स्थगन प्रस्ताव भी लाने का विधान है प्रश्नकाल सरकार की कार्यपालिका और प्रशासक एजेंसी पर निगरानी रखने का सबसे प्रभावी तरीका है l राज्यसभा और लोकसभा की संसदीय समितियाँभारत में 1983 से संसद के स्थाई समितियों की प्रणाली विकसित की गई है l विभिन्न विभागों से संबंधित 24 समितियां है l संसदीय समितियों का गठन संविधान के अनुच्छेद 118(1) के तहत किया जाता है l जुलाई 2004 के अनुसार कुल मिलाकर 24 स्थाई समितियां अब तक बनाई गई हैं l समितियाँ दो प्रकार की होती हैं:
स्थाई समितियाँ:स्थाई समितियाँ नियमित और स्थाई होती हैं l इनका गठन संसद के नियमानुसार किया जाता है l समितियों का मुख्य कार्य संसद के बढ़ते कार्य को कम करने और उन पर विस्तार से चर्चा करने का होता है l संसद की समय की कमी को किसी विधेयक पर समितियों का समय मिलना बहुत महत्वपूर्ण होता है l उदहारण :
स्थायी समितियों के कार्य
तदर्थ समितियाँतदर्थ समितियों का गठन किसी विशेष प्रयोजन के लिए किया जाता है l इसका गठन किसी विधेयक पर चर्चा करने के लिए अथवा किसी मामले पर वित्तीय और अन्य जांच करने के लिए किया जाता है l संयुक्त संसदीय समितियाँ: संयुक्त संसदीय समितियों का भी अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है l इन समितियों में संसद के दोनों सदनों के सदस्य शामिल होते हैं l समितियों की इस व्यवस्था से ने संसद का कार्यभार हल्का कर दिया है l दलबदल निरोधक कानूनदलबदल निरोधक कानून(दलबदल कानून) संविधान के 52वें संविधान संशोधन के द्वारा सन् 1985 में जोड़ा गया था l दल बदल निरोधक कानून(दलबदल कानून) का वर्णन संविधान की दसवीं अनुसूची में दिया गया है l संविधान की दसवी अनुसूची को अन 1985 में जोड़ा गया था l दलबदल निरोधक कानून 91वें संविधान संशोधन द्वारा द्वारा संशोधित किया गया था l इसके अनुसार यदि यह सिद्ध हो जाए कि किसी सदस्य ने दल बदल किया है तो उसकी सदस्यता समाप्त हो जाती हैं l ऐसे सदस्य को किसी भी राजनीतिक पद के लिए अयोग्य घोषित कर दिया जाता है l निम्नलिखित में से कौन सा द्विसदनात्मक व्यवस्थापिका का गुण है ?)?द्विसदनात्मक व्यवस्थापिका वाले देश
द्वि-सदनात्मक व्यवस्थापिका में पहले सदन को प्रथम सदन, निम्न सदन, लोकप्रिय सदन तथा प्रतिनिधि सदन कहते है। निम्न सदन में सामान्यता जनसाधारण का प्रतिनिधित्व रहता है अर्थात् निम्न सदन के सदस्यों का चुनाव जनता द्वारा वयस्क मताधिकार के आधार पर गुप्त मतदान द्वारा होता है।
व्यवस्थापिका कितने प्रकार के होते हैं?एक सदन वाली व्यवस्थापिका को एक सदनीय व्यवस्थापिका कहा जाता है। दूसरे प्रकार की व्यवस्थापिका में दो सदन होते हैं | आरम्भ में संसार के अधिकांश देशों में एकसदनीय व्यवस्थापिका थी परन्तु आज स्थिति यह है कि कुछ छोटे देशों को छोड़कर अधिकांश देशों में द्विसदनीय व्यवस्थापिकाएँ विद्यमान हैं।
एक सदनीय व्यवस्थापिका से क्या तात्पर्य है?(2) - एकसदनीय विधायिका जिन राष्ट्रों में संसद का एक ही सदन होता है उसे हम एकसदनीय व्यवस्थापिका कहते हैं। एकसदनीय व्यवस्था लोक प्रभुसत्ता का परिचायक भी कहा जाता है क्योंकि केवल निर्वाचित प्रतिनिधियों का सदन ही लोक प्रभुता का स्पष्ट प्रतिपादन कर सकता है।
व्यवस्थापिका के मुख्य कार्य क्या है?(1) कानून निर्माण सम्बन्धी कार्य- व्यवस्थापिका का सबसे प्रमुख एवं महत्त्वपूर्ण कार्य कानूनों का निर्माण करना होता है और सभी प्रकार की शासन व्यवस्थाओं में व्यवस्थापिका के द्वारा यह कार्य किया जाता है। प्रत्येक देश में कानून निर्माण की जो प्रक्रिया होती है, उसके अनुसार ही कानूनों का निर्माण किया जाता है।
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