भारत की विधायिकाओं में महिलाओं के प्रतिनिधित्व की स्थिति क्या है? वर्तमान युग में महिलाओं की राजनीति में स्थिति ज़्यादा अच्छी नहीं है। राजनीतिक क्षेत्र में महिलओं की उपस्थिति कम ही है। लोकसभा में इनकी संख्या कुल संख्या का 10 प्रतिशत भी नहीं है। इसके साथ ही राज्य विधान सभाओं में इनकी भागीदारी 5 प्रतिशत से भी कम है। इस विषय में भारत का स्थान दुनिया के बहुत से देशों से नीचे है। भारत इस मामले में अफ्रीका-लातिन अमेरिका से भी काफी पीछे है। विशेषतः राजनीति पर पुरुषो का आधिपत्य स्थापित है। 488 Views बताइए कि भारत में किस तरह अभी भी जातिगत असमानताएँ जारी हैं। यद्यपि संविधान में जातिगत भेदभावों का खंडन किया है और जातिगत अन्यायों को समाप्त करने पर बल दिया है। परन्तु फिर भी आज के समय में भारत में जाती-प्रथा समाप्त नहीं हुई है। छुआछूत की प्रथा आज भी जीवित है। 344 Views दो कारण बताएँ की क्यों सिर्फ़ जाति के आधार पर भारत में चुनावी नतीजे तय नहीं हो सकते। चुनावों में
जातिगत भावनाओं का प्रभाव अवश्य पड़ता हैं। परन्तु सिर्फ़ जाति के आधार पर भारत में चुनावी नतीजे तय नहीं हो सकते। इसके दो कारण निम्नलिखित है: 428 Views विभिन्न तरह की सांप्रदायिक राजनीति का ब्यौरा दें और सबके साथ एक-एक उदाहरण भी दें। भारत में संविधान में धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं करता तो भी प्राय सांप्रदायिक राजनीति में अनेक रूप धारण करते हुए दिखाई पड़ती है- 419 Views जीवन के उन विभिन्न पहलुओं का जिक्र करें जिनमें भारत में स्त्रियों के साथ भेदभाव होता है या वे कमज़ोर स्थिति में होती हैं। जीवन के विभिन्न पहलुओं निम्नलिखित है जिसमें भारत में स्त्रियों के साथ भेदभाव होता है या वे कमज़ोर स्थिति में होती हैं- (i) भारतीय समाज में अधिकतर महिलाएँ घर की चारदीवारी में कैद होकर रह गई है। (ii) सार्वजानिक क्षेत्र पुरुषों के कब्जे में है। (iii) महिलाओं को स्वतंत्रता के अवसर नहीं मिलते। (iv) महिलाओं की साक्षरता दर आज भी 54 प्रतिशत है जबकि पुरुषों की 76 प्रतिशत। सिमित संख्या में ही लड़कियाँ स्कूली शिक्षा के बाद उच्च शिक्षा प्राप्त कर पाती है। (v) लड़कियों को बोझ समझा जाता है तथा कई क्षेत्रों में पैदा होने से पूर्व ही मार दिया जाता है। लड़कों के जन्म पर जश्न मनाया जाता है। देश का लिंग अनुपात 850 से 800 तक गिर गया है। (vi) पारिवारिक कानून अधिकार भी स्रियों के पक्ष में नहीं है। (vii) आज भी अधिक पैसे वाली प्रतिष्ठित नौकरियों में महिलाओं का अनुपात कम है। भारत में एक स्री एक पुरुष की तुलना में घंटों काम करती है। उसको ज़्यादातर काम के लिए पैसे भी नहीं मिलते। (viii) महिला सांसदों की लोकसभा में संख्या पर्याप्त नहीं है। राजनितिक जीवन में उनकी संख्या बहुत कम है। (ix) हम प्रतिदिन स्रियों पर होने वाले शोषण और अत्यचारों की ख़बरें सुनते है। 1132 Views |