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रामानंद जी कबीर को शिष्य क्यों नहीं बनाना चाहते थे Why
Ramananda had clearly refused to accept 'Kabir' as his disciple : कबीर साहेब के गुरु कौन थे इस सबंध में भी कोई एक मान्य राय नहीं है लेकिन तमाम विवादों के बावजूद है माना जाता है की कबीर साहेब के गुरु रामानंद जी थे जिन्होंने कबीर साहेब के विचारों में क्रांतिकारी परिवर्तन किये। डाक्टर श्याम सुन्दर दास जी के अनुसार कबीर के गुरु रामानंद जी थे। मान्यता के आधार पर लोग कबीर साहेब का मजाक उड़ाते थे की जिस व्यक्ति का कोई गुरु ही नहीं है वह दूसरों को क्या उपदेश देगा और इसी कारण के चलते कबीर साहेब को
गुरु बनाने की चिंता सताने लगी। योग गुरु की तलाश में कबीर साहेब पहुँच गए रामानंद जी के आश्रम में उन्हें गुरु बनाने के लिए। कबीर साहेब ने आश्रम में रामानंद जी के शिष्यों से कहा की उन्हें रामानंद जी से मिलने दिया जाय क्योंकि वे शिष्य बनना चाहते हैं। जब रामानंद के अन्य शिष्यों को ज्ञात हुआ की कबीर साहेब जुलाहे जाति के हैं तो उन्होंने कबीर साहेब को रामानंद जी से मिलवाने को मना कर दिया और शोर शराबा सुन कर स्वंय रामानंद जी ने भी कबीर साहेब को दुत्कार कर आश्रम से बाहर का रास्ता दिखाया। शायद ऐसा उस समय
के जातिगत व्यवस्था के प्रबावों के चलता रहा हो। कबीर साहेब ने इस हेतु एक युक्ति निकाली, रामानंद जी नित्य पंचगंगाघाट पर स्नान के लिए जाय करते थे। कबीर साहेब ने फैसला किया की रामानंद जी से मिलने का यही स्थान सबसे उत्तम होगा और वे सुबह सवेरे घाट की सीढ़ियों में लेट गए। रामानंद जी जब स्नान करके लौट रहे थे तो अँधेरे के कारन वे कबीर साहेब को देख नहीं पाए और उनका पाँव कबीर साहेब को लग गया। अचानक से हुयी इस घटना के कारण रामानंद जी के मुंह से यकायक ही 'राम' निकला तो कबीर साहेब ने खड़े होकर कहा की मुझे
मेरा गुरु मन्त्र मिल गया है -'राम' . आज से आप मेरे गुरु हुए। रामानंद जी को गुरु बनाने की बावजूद भी कबीर साहेब की दृढ मान्यता रही की 'गति' का आधार कर्म हैं ना की कर्मकांड। रामानंद को कुछ उत्तर देते नहीं बना और इसी घटना से रामानंद जी उनके गुरु के रूप में प्रसिद्ध हुए। मुस्लिम समाज के लोग कबीर साहेब का गुरु सूफी संत 'शेख तकी' को मानते हैं। डॉक्टर सरदार जाफरी भी कबीर साहेब के पदों पर सूफी प्रभावों के चलते शेख तकी को कबीर साहब का गुरु मानते हैं। डाक्टर हजारी परसाद द्विवेदी, डाक्टर श्याम सुन्दर दास और डाक्टर राम कुमार वर्मा आदि विद्वानों की राय के अनुसार रामानंद जी ही कबीर साहेब के गुरु थे। इस सबंध में कबीर साहेब का एक कथन प्राप्त होता है - "काशी में परगट भये ,रामानंद चेताये " कांकर पाथर जोरि के मस्जिद लई चुनाय हिंदी मीनिंग Kankar Pathar Jori Ke Masjid Leyi Chunay Hindi Meaning Kabir Ke Dohe Hindi Meaningकबीर पंथ क्या है What is kabir Panth: कबीर पंथ की स्थापना कबीर साहेब के परम शिष्य धर्मदास जी के द्वारा कबीर साहेब की मृत्यु के उपरांत की गयी थी। कबीर साहेब की शिक्षाओं के दार्शनिक और नैतिक मूल्यों पर आधारित इस पंथ के अनुयायिओं में हिन्दू, मुस्लिम,
जैन और बौद्ध धर्म के मानने वाले लोग हैं जिनमे बहुतयात से हिन्दू धर्म के लोग की मान्यता है। कबीर की उपदेशों का संग्रह अनुराग सागर इस पंथ के दार्शनिक और आध्यात्मिक चिंतन का आधार ग्रंथ है। कबीर और गुरु गोरख नाथ जी : Kabir and Guru Gorakhnath Ji : ऐसी मान्यता है की एक बार एक सभा में गुरु गोरखनाथ जी की मुलाक़ात कबीर साहेब से हो गयी। नाथ जी महाराज अपनी विद्याओं के काऱण जग प्रसिद्द थे। जब गुरु गोरक्ष नाथ जी ने अपनी विद्याओं को कबीर साहेब को दिखाई तो उन्होंने उन्हें सन्देश दिया की उन्हें इन विद्याओं के स्थान पर चित्त लगाकर अधिक ईश्वर की भक्ति करनी चाहिए। इस पर गुरु गोरखनाथ जी ने कबीर साहेब को सिद्ध पुरुष स्वीकार किया। कबीर ने उन्हें ऊँ तथा सोहं मन्त्र दिया कबीर साहेब इन इस दोहे में स्वंय / आत्मा का परिचय देते हुए स्पष्ट किया है की मैं कौन हूँ, जाती हमारी आत्मा, प्राण हमारा नाम। अलख हमारा इष्ट, गगन हमारा ग्राम।। जब आत्मा चरम रूप से शुद्ध हो जाती है तब वह कबीर कहलाती है जो सभी बन्धनों से मुक्त होकर कोरा सत्य हो जाती है। कबीर को समझना हो तो कबीर को एक व्यक्ति की तरह से समझना चाहिए जो रहता तो समाज में है लेकिन समाज का कोई भी रंग उनकी कोरी आत्मा पर नहीं चढ़ पाता है। कबीर स्वंय में जीवन जीने और जीवन के उद्देश्य को पहचानने का प्रतिरूप है। कबीर का उद्देश्य किसी का विरोध करना मात्र नहीं था अपितु वे तो स्वंय में एक दर्शन थे, उन्होंने हर कुरीति, बाह्याचार, मानव के पतन के कारणों का विरोध किया और सद्ऱाह की और ईशारा किया। कबीर के विषय में आपको एक बात हैरान कर देगी। कबीर के समय सामंतवाद अपने प्रचंड रूप में था और सामंतवाद की आड़ में उनके रहनुमा मजहब के ठेकेदार अपनी दुकाने चला रहे थे। जब कोई विरोध का स्वर उत्पन्न होता तो उसे तलवार की धार और देवताओं के डर से चुप करवा दिया जाता। तब भला कबीर में इतना साहस कहाँ से आया की उन्होंने मुस्लिम शासकों के धर्म में व्याप्त आडंबरों का विरोध किया और सार्वजनिक रूप से इसकी घोषणा भी की। कबीर का यही साहस हमें आश्चर्य में डाल देता है। जहाँ एक और कबीर ने हर आडंबर और बाह्याचार का विरोध किया वहीँ तमाम तरह के अत्याचार सहने के बावजूद कबीर की वाणी में प्रतिशोध और बदले की भावना कहीं नहीं दिखती है। कबीर साहेब ने आम आदमी को धर्म को समझने की राह दिखलाई। जहाँ धर्म वेदों के छंदों, क्लिष्ट श्लोकों, वृहद धार्मिक अनुष्ठान थे जिनसे आम जन त्रस्त था, वही कबीर ने एक सीधा सा समीकरण लोगों को समझाया की ईश्वर ना तो किसी मंदिर विशेष में है और ना ही ईश्वर किसी मस्जिद में, ना तो वो काबे तक ही सीमित है और ना ही कैलाश तक ही, वह तो हर जगह व्याप्त है। आचरण की शुद्धता और सत्य मार्ग का अनुसरण करके कोई भी जीवन के उद्देश्य को पूर्ण कर सकता है। यही कारण है की कबीर साहेब ने किसी भी पंथ की स्थापना नहीं की, यह एक दीगर विषय है की आज कुछ लोग अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए कबीर साहेब के बताये मार्ग का अनुसरण नहीं कर रहे हैं और वास्तव में उसके विपरीत कार्य कर रहे हैं जो की एक गंभीर विषय है। कबीर साहेब के विषय में एक बात और है जो गौरतलब है उनका ख़ालिश सत्य के साथ होना, उसमे हिन्दू मुस्लिम, बड़े छोटे का कोई भेद नहीं था। जहाँ एक और विदेशी शासकों के मुस्लिम धर्म में व्याप्त अंधविश्वास और स्वार्थ जनित रीती रिवाजों का विरोध कबीर साहेब ने किया वहीँ उन्होंने हिन्दू धर्म में व्याप्त पोंगा पंडितवाद, धार्मिक भाह्याचार, कर्मकांड, अंधविश्वास, चमत्कार, जाति प्रथा का भी मुखर विरोध किया। वस्तुतः कबीर आम जन, पीड़ित, शोषित, लोगों की जबान थे और इन लोगों ने कबीर के पथ का अनुसरण भी किया। कांकर पाथर जोरि के मस्जिद लई चुनाय हिंदी मीनिंग Kankar Pathar Jori Ke Masjid Leyi Chunay Hindi Meaning Kabir Ke Dohe Hindi Meaning उल्लेखनीय है की कबीर साहेब ने ईश्वर को लोगों तक पहुंचाया। वेदों की भारी भरकम ऋचाएं, संस्कृत की क्लिष्टता को दूर करते हुए कबीर साहेब ने लोगो को एक ही सूत्र दिया
की ईश्वर किसी ग्रन्थ विशेष, स्थान विशेष तक ही सिमित नहीं है, वह हर जगह व्याप्त है। कोई भी व्यक्ति सत्य को अपनाकर ईश्वर की प्राप्ति बड़ी ही आसानी से कर सकता है। मोको कहाँ ढूंढे रे बन्दे कबीर साहेब किसी वर्ग विशेष से ना तो स्नेह रखते थे और नाहीं किसी वर्ग विशेष से उनको द्वेष ही था। उन्होंने मानव जीवन में जहाँ भी कोई कमी देखी उसे लोगों के समक्ष सामान्य भाषा में रखा। उल्लेखनीय है की संस्कृत भाषा तक आम जन की कोई पकड़ नहीं थी, एक तो उन्हें धार्मिक ग्रंथों से दूर रखा जाता था और दूसरा संस्कृत भाषा की क्लिष्टता। धार्मिक ग्रन्थ संस्कृत भाषा में थे और वे एक जाति और वर्ग विशेष तक सीमित रह गए थे। कबीर साहेब ने गूढ़ रहस्यों को घरेलू आम जन की भाषा में लोगो को समझाया और लोगों को उनकी सुनते ही समझ में आ जाती थी, यही कारण है कबीर साहेब के लोकप्रिय होने का। भले ही जिन लोगों की दुकाने कबीर साहेब ने चौपट कर दी थी वे कबीर साहेब के आलोचक थे लेकिन कई मौकों पर उन्होंने भी कबीर साहेब की बातों को सुनकर उसे समझा और उनकी सराहना की। यह भी देखें You May Also Like
कबीर साहेब ने अपने अंतिम समय के लिए 'मगहर' को क्यों चुना ? Why Kabir went to 'Magahar' in his Last Time : कबीर साहेब ताउम्र लोगों के अंधविश्वास के खंडन करते रहे और अपने अंतिम समय में भी उन्होंने 'मगहर को चुना जिसके माध्यम से वे लोगों में व्याप्त एक और अंध प्रथा का खंडन करना चाहते थे। काशी या वाराणशी को लोग बहुत ही पवित्र और मोक्षदायिनी मानते थे जबकि इसके विपरीत मगहर के विषय में प्रचलित मान्यता यह थी की यदि कोई मगहर में अपने प्राणों का त्याग करता है तो वह अगले जन्म में गधा बनेगा या फिर नरक का भागी होगा। कबीर ने इस विषय पर लोगो को समझाया की स्थान विशेष का पुनर्जन्म से कोई सीधा सबंध नहीं है। यदि व्यक्ति सद्कर्म करता है और ईश्वर की प्राप्ति हेतु सत्य अपनाता है तो भले ही वह मगहर में अपने प्राण त्यागे उसका जीवन सफल होता है। कबीर साहेब ने अपना जीवन जहाँ वाराणसी में बिताया वही उन्होंने इसी मिथक को तोड़ने के लिए अपने अंतिम समय के लिए मगहर को चुना जहां १५१८ में उन्होंने दैहिक जीवन को छोड़ दिया। मगहर में जहाँ कबीर साहेब ने दैहिक जीवन छोड़ा वहां पर मजार और मस्जिद दोनों स्थापित है जहाँ पर प्रति दिन कबीर विचारधारा को मानने वाले व्यक्ति आते रहते हैं। ‘क्या काशी क्या ऊसर मगहर, राम हृदय बस मोरा जिस हृदय में राम का वास है उसके लिए काशी और मगहर दोनों एक ही समान हैं। यदि काशी में रहकर कोई प्राण का त्याग करें तो इसमें राम का कौनसा उपकार होगा ? भाव है की भले ही काशी हो या फिर मगहर यदि हृदय में राम का वास है तो कहीं भी प्राणों का त्याग किया जाय, राम सदा उसके साथ हैं। यहाँ राम से अभिप्राय निर्गुण ईश्वर से है। कबीर साहेब और 'माया ': कबीर साहेब का हृदय उस समय बहुत ही दुःखता था जब वे मानव मात्र को माया के जाल में घिरा हुआ पाते थे। इसी कारण से उन्होंने माया के रूपों का वृहद चित्रण करने इससे बचने की सलाह दी। दलित चेतना का कार्य भी कबीर साहेब ने किया और लोगों को समझाया की उनका जीवन कितना अनमोल है। कबीर साहब ने माया को पापिनी, मीठी खांड, जाल में फांसने वाली, आदि घोषित किया है। `कबीर' माया पापणी, फंध ले बैठी हाटि । माया के चक्कर में सारा जंग पड़ा है, कबीर वही है जो इसके जाल को काट दे। `कबीर' माया मोहनी, जैसी मीठी खांड । यदि सदगुरु माया का भेद नहीं बताते तो यह माया ना जाने मानव से क्या क्या करवाती क्यों की इसकी प्रवृति मीठी है और मानव इसके भेद में पड जाते हैं। माया मुई न
मन मुवा, मरि-मरि गया सरीर । तृष्णा और माया कभी मरती नहीं हैं। मानव का जीवन सीमित है, एक रोज यह समाप्त हो जाना है परन्तु माया कभी मरती नहीं है वह पुनः किसी जीवन को अपने जाल में फसाने को आतुर रहती है। त्रिसणा सींची ना बुझै, दिन दिन बधती जाइ । `कबीर' माया जिनि मिले, सौ बरियाँ दे बाँह । बुगली नीर बिटालिया, सायर चढ्या कलंक । `कबीर' इस संसार का, झूठा माया मोह । माया तजी तौ क्या भया, मानि तजी नहीं जाइ । माया से यदि कोई बच भी जाता है जो अभिमान और घमण्ड उसे खा जाता है। कबीर जग की को कहै, भौजलि, बुड़ै दास । क्या कबीर साहेब विवाहित थे : जिस प्रकार से कबीर साहेब के माता पिता के सबंध में अनेकों विचार प्रसिद्द हैं तो एक दुसरे से मुख्तलिफ हैं, वैसे ही उनके परिवार के विषय में कोई भी एक मान्य राय की सुचना उपलब्ध नहीं है। कबीर को जहाँ कुछ लोग अविवाहित मानते हैं वही कुछ लोग कबीर का भरा पूरा परिवार बताते हैं। इन्ही मान्यताओं के आधार पर ऐसा माना जाता है की कबीर साहेब की पत्नि का नाम लोई था। कबीर पंथ के विद्वान व्यक्ति कहते हैं की कबीर ब्रह्मचारी थे और वे नारी को साधना में बाधक मानते थे। नारी कुण्ड नरक का, बिरला थंभै बाग। पहलो कुरूप, कुजाति, कबीर साहेब के पुत्र का नाम कमाल माना जाता है। कबीर ने अपने पुत्र को वंश को डुबाने वाला कहा है क्यों की उनका पुत्र उनकी शिक्षाओं पर खरा नहीं उतरा था। पिता के आचरण की विरुद्ध व्यवहार करने पर ही उसे वंस को डुबाने वाला कहा है। बूडा़ वंश कबीर का, उपजा पूत कमाल। कबीर के विचार जो बदल सकते हैं आपका जीवन / Kabir Thoughts Can Change Your Life :
कबीर के गुरु कौन थे Who Was Kabir's Guru : मान्यता है की कबीर साहेब के गुरु का नाम रामानंद जी थे। "काशी में परगट भये , रामानंद चेताये " हालाँकि कबीर साहेब के जानकारों की एक अलाहिदा राय है की कबीर साहेब स्वंय परमब्रह्म थे और उनका कोई गुरु नहीं था। कबीर साहेब का जन्म कहाँ हुआ : When was Kabir Born : महान संत और आध्यात्मिक कबीर दास का जन्म वर्ष 1440 में और मृत्यु वर्ष 1518 में हुई थी। इस्लाम के अनुसार ‘कबीर’ का अर्थ महान होता है। क्या कबीर साकार ईश्वर को मानते थे What are the ideas of Kabir on God : कबीर साहेब परम सत्ता को एक ही मानते थे उनके अनुसार लोगों ने उसका अपनी सुविधा के अनुसार नामकरण मात्र किया है जबकि वह एक ही है और सर्वत्र विद्यमान हैं। राम-रहीम एक है, नाम धराया दोय। कहै कबीर दो नाम सुनि, भरम परौ मति कोय।। वह किसी स्थान विशेष का मोहताज नहीं है, वह सर्वत्र विद्यमान है और वह घर पर भी है उसे ढूंढने के लिए किसी भी यात्रा की जरूरत हैं है। जो भी सत्य है वह ईश्वर ही है। कबीर साहेब ने तात्कालिक मूर्तिपूजा का घोर खंडन करते हुए ईशर को निराकार घोषित किया। कबीर साहेब ने मानव देह कब छोड़ी Where did Sant Kabir die? :कबीर साहेब ने जीवन भर लोगो को शिक्षाएं दी जो आज भी प्रसंगिक हैं और उन्होंने अपनी मृत्य को भी लोगो के समक्ष एक शिक्षा के रूप में रखा। उस समय मान्यता थी की यदि कोई काशी में मरता है तो स्वर्ग और मगहर में यदि कोई मरता है तो वह गधा बनता है, इसी रूढ़ि को तोड़ने के लिए कबीर साहेब ने मगहर को चुना। क्या कबीर सूफी संत थे Was Kabir a Sufi saint? : कबीर के विचार स्वतंत्र थे, निष्पक्ष थे और आडंबरों से परे थे, यही बात कबीर साहेब को अन्य पंथ और मान्यताओं से अलग करती है। कबीर साहेब सूफी संत नहीं थे लेकिन यह एक दीगर विषय है की बाबा बुल्ले शाह के विचार कबीर साहेब से बहुत मिलते जुलते हैं, मसलन- मक्का गयां गल मुकदी नाहीं, भावें सो सो जुम्मे पढ़ आएं कबीर साहेब ने किस भाषा में लिखा है In which language Kabir Das wrote : गौरतलब है की कबीर साहेब ने स्वंय कुछ भी नहीं लिखा है। जो भी लिखित है वह उनके समर्थक /अनुयायिओं के द्वारा कबीर साहेब की वाणी को सुन कर लिखा गया है। “मसि कागद छूऔं नहीं, कलम गहौं नहि हाथ चारों जुग कै महातम कबिरा मुखहिं जनाई बात” कबीर साहेब ने जो देखा वही कहा और यही कारण है की उनके अनुयायिओं के द्वारा विभिन्न भाषा / अपने क्षेत्र, अंचल की भाषा को काम में लिया गया जिसके कारन से हिंदी पंजाबी, राजस्थानी और गुजराती के शब्द हमें उनकी लेखनी में मिलते हैं। आचार्य रामचंद्र शुक्ल इस इस मिलीजुली भाषा को सधुकड़ि भाषा का नाम दिया है। कबीर की जाति क्या थी? What is the Cast of Kabir, What is the Religion of Kabir Hindu or Muslim: वैसे तो यह सवाल ही अनुचित है की कबीर के जाति क्या थी क्योंकि कबीर ने सदा ही जातिवाद का विरोध किया। यह सवाल जहन में उठता है क्योंकि हम जानना चाहते हैं ! संत की कोई जाति नहीं होती और ना ही उसका कोई धर्म ! कबीर की जाति और धर्म जानने की उत्सुकता का कारन है की वस्तुतः हम मान लेते हैं की दलित साहित्य चिंतन और लेखन करने वाला दलित ही होना चाहिए। कबीर साहेब ने बरसों से चली आ रही सामजिक और जातिगत मान्यताओं को खारिज करते हुए मानव को मानव होने का गौरव दिलाया और घोषित किया की एक बूंद एकै मल मूत्र, एक चम् एक गूदा। जातिगत और जन्म के आधार पर कबीर साहेब ने किसी की श्रेष्ठता मानने से इंकार किया। बहरहाल, क्या कबीर दलित थे ? मान्य चिंतकों और साहित्य की जानकारी रखने वाले विद्वानों के अनुसार कबीर साहेब दलित नहीं थे क्यों की समकालिक सामाजिक परिस्थितियों में दलितों को 'अछूत' माना जाता था। कबीर साहेब के विषय में ऐसा कोई प्रमाण नहीं है। मान्यताओं के आधार पर कबीर साहेब जुलाहे (मुस्लिम जुलाहे ) से सबंध रखते थे और मुस्लिम समाज में अश्प्रश्य, छूआछूत जैसे कोई भी अवधारणा नहीं रही है, हाँ, गरीब और अमीर कुल का होना एक दीगर विषय हो सकता है। जाँति न पूछो साधा की पूछ लीजिए ज्ञान। इसके विपरीत आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी जी कबीर साहेब का जन्म ब्राह्मण जाती में होना बताते हैं और कबीर साहेब को 'नाथपंथी होना' बताते हैं। डॉक्टर धर्मवीर भारती जी के अनुसार कबीर साहेब मुस्लिम जुलाहे तो थे ही और अछूत भी थे जो कुछ समझ से परे की बात लगती है। कबीर साहेब दलित थे या नहीं यह विवाद का विषय हो सकता है लेकिन कबीर साहेब की दलित चेतना सभी को एक स्वर में मान्य है। कबीर के वाणी को साखी, सबद और रमैनी तीनो रूपों में लिखा गया है। जो ‘बीजक’ के नाम से प्रसिद्ध है और कबीर के नाम पर ८४ ग्रन्थ होने की जानकारी मिलती है। Life and Lessons of Kabir (BBC Hindi) विनम्र निवेदन: वेबसाइट को और बेहतर बनाने हेतु अपने कीमती सुझाव नीचे कॉमेंट बॉक्स में लिखें व इस ज्ञानवर्धक ख़जाने को अपनें मित्रों के साथ अवश्य शेयर करें। यदि कोई त्रुटि / सुधार हो तो आप मुझे यहाँ क्लिक करके ई मेल के माध्यम से भी सम्पर्क कर सकते हैं। धन्यवाद। ता चढ़ि मुल्ला बांग दे क्या बहरा हुआ खुदाय?ता चढ़ि मुल्ला बांग दे : उसके उपर चढ़कर मुल्ला द्वारा जोर जोर से घोषणा करना। कबीर दास जी कहते है कि कंकर पत्थर जोड़ कर मस्जिद बना ली और उसके उपर चढ़कर मुल्ला जोर जोर से चीख कर अजान देता है। कबीर दास जी कहते है कि क्या खुदा बहरा हो गया है? यह दोहा प्रतीकात्मक भक्ति पर व्यंग्य है, जिसका मर्म समझना आवश्यक है।
कंकर पाथर जोरि कै मस्जिद लियो बनाय ता चढ़ि मुल्ला बांग दे क्या बहिरा हुआ खुदाय 8?कांकर पाथर जोरि के : कंकड़ और पत्थर जोड़ कर /इकट्ठा करके। मस्जिद लिनी बनाय : मस्जिद बना ली है। ता ते ऊपर मुल्ला बांग दे : मौलवी के द्वारा जोर जोर से घोषणा करना। दोहे का हिंदी मीनिंग: यह दोहा प्रतीकात्मक भक्ति पर व्यंग्य है, जिसका मर्म समझना आवश्यक है।
कबीर दास जी के 5 दोहे?कबीर के 10 बेहतरीन दोहे : देते हैं जिंदगी का असली ज्ञान. मैं जानूँ मन मरि गया, मरि के हुआ भूत | ... . भक्त मरे क्या रोइये, जो अपने घर जाय | ... . मैं मेरा घर जालिया, लिया पलीता हाथ | ... . शब्द विचारी जो चले, गुरुमुख होय निहाल | ... . जब लग आश शरीर की, मिरतक हुआ न जाय | ... . मन को मिरतक देखि के, मति माने विश्वास | ... . कबीर मिरतक देखकर, मति धरो विश्वास |. कबीर दास के 10 दोहे अर्थ सहित?कबीरदास जी कहते हैं, पहले गुरु को प्रणाम करूंगा क्योंकि उन्होंने ही गोविंद तक पहुंचने का मार्ग बताया है। पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय, ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय। बड़ी बड़ी पुस्तकें पढ़ कर संसार में कितने ही लोग मृत्यु के द्वार पहुँच गए, पर सभी विद्वान न हो सके।
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