ता चढ़ि मुल्ला बाँग दे क्या बहरा हुआ खुदाय? - ta chadhi mulla baang de kya bahara hua khudaay?

  • पाहन पूजे हरि मिले तो मैं पूजूँ पहार-कबीर के दोहे हिंदी में
  • गुरु कुम्भार शिष्य कुम्भ है कबीर के दोहे में 
  • पोथी पढ़ी पढ़ी जग मुआ, पंडित भया ना कोय कबीर के दोहे
  • जब मैं था हरी नाहीं, अब हरी है मैं नाही कबीर के दोहे हिंदी 
  • कबीर संगत साधु की ज्यों गंधी की बांस कबीर दोहे हिंदी में 
  • ऊँचे कुल में जनमियाँ करनी ऊंच ना होय कबिर के दोहे
  • करे बुराई सुख चहे कबीर दोहा हिंदी में
  • मेरे मन में पड़ी गई एक ऐसी दरार कबीर दोहे हिंदी मीनिंग
  • जाके मुंह माथा नहीं कबीर दोहे हिंदी में-कबीर के दोहे हिंदी मीनिंग
  • काबा फिर काशी भया कबीर के दोहे हिंदी मीनिंग
  • कबीर हरि का भावता झीणा पंजर तास कबीर दोहे हिंदी मीनिंग भावार्थ
  • कबीर तन पंषी (पंछी) भया जहाँ मन तहाँ उड़ि जाइ हिंदी मीनिंग
  • केसौं कहां बिगाड़िया जे मूड़े सौ बार-हिंदी भावार्थ मीनिंग
  • सहज सहज सबकौ कहै सहज न चीन्है कोइ हिंदी मीनिंग
  • तीरथ करि करि जग मुवा डूँधै पाँणी न्हाइ-हिंदी मीनिंग कबीर दोहे हिंदी
  • धीरे धीरे रे मना धीरे सब कुछ होय-हिंदी मीनिंग कबीर के दोहे
  • अहिरन (एरण) की चोरी करै करे सुई का दान-हिंदी मीनिंग
  • मोको कहाँ ढूँढ़े बंदे मैं तो तेरे पास में हिंदी मीनिंग लिरिक्स
  • दुर्बल को न सताइये जाकि मोटी हाय-हिंदी मीनिंग
  • तेरा साँई तुझमें ज्यों पहुपन में बास-हिंदी मीनिंग
  • रात गंवाई सोय के दिवस गंवाया खाय हिंदी मीनिंग
  • आछे दिन पाछे गये हरि सो किया ना हेत-हिंदी मीनिंग/भावार्थ
  • कबीर के लोकप्रिय दोहे हिंदी में
  • कबीर के दोहे हिंदी में (प्रचलित कबीर दोहे)
  • यह तो घर है प्रेम का, खाला का घर नाहिं-हिंदी मीनिंग
  • कबीर के दोहे हिंदी में Kabir Ke Dohe Hindi Me Kabir Dohe Hindi Meaning
  • कबीर के दोहे हिंदी में Kabir Ke Dohe Hindi Me कबीर दोहे हिंदी मीनिंग
  • कबीर के दोहे हिंदी में Kabir Ke Dohe Hindi Me कबीर के दोहे हिंदी मीनिंग व्याख्या
  • कुमति कीच चेला भरा-कबीर दोहे हिंदी मीनिंग
  • संतो देखत जग बौराना कबीर के पद हिंदी में
  • बालम आवो हमारे गेह रे- कबीर पद हिंदी मीनिंग
  • अरे इन दोहुन राह ना पाई हिंदी मीनिंग
  • चलती चक्की देख के दिया कबीरा रोए-कबीर के दोहे हिंदी मीनिंग
  • प्रेम प्रेम कोई सब कहे प्रेम ना बुझे कोय हिंदी मीनिंग
  • वृक्ष कबहुँ नहिं फल भखै नदी न संचै नी' हिंदी मीनिंग
  • पढ़े गुनै सीखै सुनै मिटी न संसै सूल-हिंदी मीनिंग
  • पीछे लागा जाई था, लोक वेद के साथि-हिंदी मीनिंग
  • पाहन पूजे हरि मिले तो मैं पूजूं पहार-दोहे का हिंदी अर्थ
  • काबा फिरि कासी भया रामहि भया रहीम हिंदी में अर्थ
  • मानसरोवर सुभर जल, हंसा केलि कराहिं हिंदी भावार्थ
  • जिनि पाया तिनि सूगह गह्या रसना लागी स्वादि हिंदी भावार्थ
  • कबीर हरि रस यौं पिया, बाकी रही न थाकि लिरिक्स व्याख्या
  • कबीर सतगुर ना मिल्या रही अधूरी सीष-भावार्थ हिंदी
  • गुरु गोविंद तो एक है दूजा यहु आकार-हिंदी भावार्थ
  • बूड़े थे परि ऊबरे गुर की लहरि चमंकि-हिंदी भावार्थ
  • सतगुरु बपुरा क्या करे, जे शिषही माँहि चूक-हिंदी भावार्थ
  • ना गुर मिल्या न सिष भया लालच खेल्या डाव-हिंदी मीनिंग
  • कबीर गुर गरवा मिल्या रलि गया आटे लूंण-हिंदी व्याख्या

रामानंद जी कबीर को शिष्य क्यों नहीं बनाना चाहते थे Why Ramananda had clearly refused to accept 'Kabir' as his disciple : कबीर साहेब के गुरु कौन थे इस सबंध में भी कोई एक मान्य राय नहीं है लेकिन तमाम विवादों के बावजूद है माना जाता है की कबीर साहेब के गुरु रामानंद जी थे जिन्होंने कबीर साहेब के विचारों में क्रांतिकारी परिवर्तन किये। डाक्टर श्याम सुन्दर दास जी के अनुसार कबीर के गुरु रामानंद जी थे। मान्यता के आधार पर लोग कबीर साहेब का मजाक उड़ाते थे की जिस व्यक्ति का कोई गुरु ही नहीं है वह दूसरों को क्या उपदेश देगा और इसी कारण के चलते कबीर साहेब को गुरु बनाने की चिंता सताने लगी। योग गुरु की तलाश में कबीर साहेब पहुँच गए रामानंद जी के आश्रम में उन्हें गुरु बनाने के लिए। कबीर साहेब ने आश्रम में रामानंद जी के शिष्यों से कहा की उन्हें रामानंद जी से मिलने दिया जाय क्योंकि वे शिष्य बनना चाहते हैं। जब रामानंद के अन्य शिष्यों को ज्ञात हुआ की कबीर साहेब जुलाहे जाति के हैं तो उन्होंने कबीर साहेब को रामानंद जी से मिलवाने को मना कर दिया और शोर शराबा सुन कर स्वंय रामानंद जी ने भी कबीर साहेब को दुत्कार कर आश्रम से बाहर का रास्ता दिखाया। शायद ऐसा उस समय के जातिगत व्यवस्था के प्रबावों के चलता रहा हो।  कबीर साहेब ने इस हेतु एक युक्ति निकाली, रामानंद जी नित्य पंचगंगाघाट पर स्नान के लिए जाय करते थे। कबीर साहेब ने फैसला किया की रामानंद जी से मिलने का यही स्थान सबसे उत्तम होगा और वे सुबह सवेरे घाट की सीढ़ियों में लेट गए। रामानंद जी जब स्नान करके लौट रहे थे तो अँधेरे के कारन वे कबीर साहेब को देख नहीं पाए और उनका पाँव कबीर साहेब को लग गया। अचानक से हुयी इस घटना के कारण रामानंद जी के मुंह से यकायक ही 'राम' निकला तो कबीर साहेब ने खड़े होकर कहा की मुझे मेरा गुरु मन्त्र मिल गया है -'राम' . आज से आप मेरे गुरु हुए।  रामानंद जी को गुरु बनाने की बावजूद भी कबीर साहेब की दृढ मान्यता रही की 'गति' का आधार कर्म हैं ना की कर्मकांड।

रामानंद को कुछ उत्तर देते नहीं बना और इसी घटना से रामानंद जी उनके गुरु के रूप में प्रसिद्ध हुए। मुस्लिम समाज के लोग कबीर साहेब का गुरु सूफी संत 'शेख तकी' को मानते हैं। डॉक्टर सरदार जाफरी भी कबीर साहेब के पदों पर सूफी प्रभावों के चलते शेख तकी को कबीर साहब का गुरु मानते हैं। डाक्टर हजारी परसाद द्विवेदी, डाक्टर श्याम सुन्दर दास और डाक्टर राम कुमार वर्मा आदि विद्वानों की राय के अनुसार रामानंद जी ही कबीर साहेब के गुरु थे। इस सबंध में कबीर साहेब का एक कथन प्राप्त होता है - 

"काशी में परगट भये ,रामानंद चेताये "

कांकर पाथर जोरि के मस्जिद लई चुनाय हिंदी मीनिंग Kankar Pathar Jori Ke Masjid Leyi Chunay Hindi Meaning Kabir Ke Dohe Hindi Meaning

कबीर पंथ क्या है What is kabir Panth: कबीर पंथ की स्थापना कबीर साहेब के परम शिष्य धर्मदास जी के द्वारा कबीर साहेब की मृत्यु के उपरांत की गयी थी। कबीर साहेब की शिक्षाओं के दार्शनिक और नैतिक मूल्यों पर आधारित इस पंथ के अनुयायिओं में हिन्दू, मुस्लिम, जैन और बौद्ध धर्म के मानने वाले लोग हैं जिनमे बहुतयात से हिन्दू धर्म के लोग की मान्यता है। कबीर की उपदेशों का संग्रह अनुराग सागर इस पंथ के दार्शनिक और आध्यात्मिक चिंतन का आधार ग्रंथ है।

कबीर और गुरु गोरख नाथ जी : Kabir and Guru Gorakhnath Ji : ऐसी मान्यता है की एक बार एक सभा में गुरु गोरखनाथ जी की मुलाक़ात कबीर साहेब से हो गयी। नाथ जी महाराज अपनी विद्याओं के काऱण जग प्रसिद्द थे। जब गुरु गोरक्ष नाथ जी ने अपनी विद्याओं को कबीर साहेब को दिखाई तो उन्होंने उन्हें सन्देश दिया की उन्हें इन विद्याओं के स्थान पर चित्त लगाकर अधिक ईश्वर की भक्ति करनी चाहिए। इस पर गुरु गोरखनाथ जी ने कबीर साहेब को सिद्ध पुरुष स्वीकार किया। कबीर ने उन्हें ऊँ तथा सोहं मन्त्र दिया

कबीर साहेब इन इस दोहे में स्वंय / आत्मा का परिचय देते हुए स्पष्ट किया है की मैं कौन हूँ,

जाती हमारी आत्मा, प्राण हमारा नाम। 

अलख हमारा इष्ट, गगन हमारा ग्राम।।

जब आत्मा चरम रूप से शुद्ध हो जाती है तब वह कबीर कहलाती है जो सभी बन्धनों से मुक्त होकर कोरा सत्य हो जाती है। कबीर को समझना हो तो कबीर को एक व्यक्ति की तरह से समझना चाहिए जो रहता तो समाज में है लेकिन समाज का कोई भी रंग उनकी कोरी आत्मा पर नहीं चढ़ पाता है। कबीर स्वंय में जीवन जीने और जीवन के उद्देश्य को पहचानने का प्रतिरूप है। कबीर का उद्देश्य किसी का विरोध करना मात्र नहीं था अपितु वे तो स्वंय में एक दर्शन थे, उन्होंने हर कुरीति, बाह्याचार, मानव के पतन के कारणों का विरोध किया और सद्ऱाह की और ईशारा किया। कबीर के विषय में आपको एक बात हैरान कर देगी। कबीर के समय सामंतवाद अपने प्रचंड रूप में था और सामंतवाद की आड़ में उनके रहनुमा मजहब के ठेकेदार अपनी दुकाने चला रहे थे। जब कोई विरोध का स्वर उत्पन्न होता तो उसे तलवार की धार और देवताओं के डर से चुप करवा दिया जाता। तब भला कबीर में इतना साहस कहाँ से आया की उन्होंने मुस्लिम शासकों के धर्म में व्याप्त आडंबरों का विरोध किया और सार्वजनिक रूप से इसकी घोषणा भी की। कबीर का यही साहस हमें आश्चर्य में डाल देता है।

जहाँ एक और कबीर ने हर आडंबर और बाह्याचार का विरोध किया वहीँ तमाम तरह के अत्याचार सहने के बावजूद कबीर की वाणी में प्रतिशोध और बदले की भावना कहीं नहीं दिखती है। कबीर साहेब ने आम आदमी को धर्म को समझने की राह दिखलाई। जहाँ धर्म वेदों के छंदों, क्लिष्ट श्लोकों, वृहद धार्मिक अनुष्ठान थे जिनसे आम जन त्रस्त था, वही कबीर ने एक सीधा सा समीकरण लोगों को समझाया की ईश्वर ना तो किसी मंदिर विशेष में है और ना ही ईश्वर किसी मस्जिद में, ना तो वो काबे तक ही सीमित है और ना ही कैलाश तक ही, वह तो हर जगह व्याप्त है। आचरण की शुद्धता और सत्य मार्ग का अनुसरण करके कोई भी जीवन के उद्देश्य को पूर्ण कर सकता है। यही कारण है की कबीर साहेब ने किसी भी पंथ की स्थापना नहीं की, यह एक दीगर विषय है की आज कुछ लोग अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए कबीर साहेब के बताये मार्ग का अनुसरण नहीं कर रहे हैं और वास्तव में उसके विपरीत कार्य कर रहे हैं जो की एक गंभीर विषय है। 

कबीर साहेब के विषय में एक बात और है जो गौरतलब है उनका ख़ालिश सत्य के साथ होना, उसमे हिन्दू मुस्लिम, बड़े छोटे का कोई भेद नहीं था। जहाँ  एक और विदेशी शासकों के मुस्लिम धर्म में व्याप्त अंधविश्वास और स्वार्थ जनित रीती रिवाजों का विरोध कबीर साहेब ने किया वहीँ उन्होंने हिन्दू धर्म में व्याप्त पोंगा पंडितवाद, धार्मिक भाह्याचार, कर्मकांड, अंधविश्वास, चमत्कार, जाति प्रथा का भी मुखर विरोध किया। वस्तुतः कबीर आम जन, पीड़ित, शोषित, लोगों की जबान थे और इन लोगों ने कबीर के पथ का अनुसरण भी किया। 

कांकर पाथर जोरि के मस्जिद लई चुनाय हिंदी मीनिंग Kankar Pathar Jori Ke Masjid Leyi Chunay Hindi Meaning Kabir Ke Dohe Hindi Meaning

उल्लेखनीय है की कबीर साहेब ने ईश्वर को लोगों तक पहुंचाया। वेदों की भारी भरकम ऋचाएं, संस्कृत की क्लिष्टता को दूर करते हुए कबीर साहेब ने लोगो को एक ही सूत्र दिया की ईश्वर किसी ग्रन्थ विशेष, स्थान विशेष तक ही सिमित नहीं है, वह हर जगह व्याप्त है। कोई भी व्यक्ति सत्य को अपनाकर ईश्वर की प्राप्ति बड़ी ही आसानी से कर सकता है।

मोको कहाँ ढूंढे रे बन्दे
मै तो तेरे पास में

ना तीरथ में ना मूरत में
ना एकांत निवास में
ना मंदिर में ना मस्जिद में
ना काबे कैलास में

ना में जप में ना में तप में
ना में बरत उपास में
ना में क्रिया करम में रहता
नहिं जोग संन्यास में

ना ब्रह्माण्ड आकाश में
ना में प्रकृति प्रवार गुफा में
नहिं स्वांसो की स्वांस में

खोजि होए तुरत मिल जाऊं
इक पल की तालास में
कहत कबीर सुनो भई साधो
मै तो हूँ विश्वास में

कबीर साहेब किसी वर्ग विशेष से ना तो स्नेह रखते थे और नाहीं किसी वर्ग विशेष से उनको द्वेष ही था। उन्होंने मानव जीवन में जहाँ भी कोई कमी देखी उसे लोगों के समक्ष सामान्य भाषा में रखा। उल्लेखनीय है की संस्कृत भाषा तक आम जन की कोई पकड़ नहीं थी, एक तो उन्हें धार्मिक ग्रंथों से दूर रखा जाता था और दूसरा संस्कृत भाषा की क्लिष्टता। धार्मिक ग्रन्थ संस्कृत भाषा में थे और वे एक जाति और वर्ग विशेष तक सीमित रह गए थे। कबीर साहेब ने गूढ़ रहस्यों को घरेलू आम जन की भाषा में लोगो को समझाया और लोगों को उनकी सुनते ही समझ में आ जाती थी, यही कारण है कबीर साहेब के लोकप्रिय होने का। भले ही जिन लोगों की दुकाने कबीर साहेब ने चौपट कर दी थी वे कबीर साहेब के आलोचक थे लेकिन कई मौकों पर उन्होंने भी कबीर साहेब की बातों को सुनकर उसे समझा और उनकी सराहना की। 

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कबीर साहेब ने अपने अंतिम समय के लिए 'मगहर' को क्यों चुना ? Why Kabir went to 'Magahar' in his Last Time : कबीर साहेब ताउम्र लोगों के अंधविश्वास के खंडन करते रहे और अपने अंतिम समय में भी उन्होंने 'मगहर को चुना जिसके माध्यम से वे लोगों में व्याप्त एक और अंध प्रथा का खंडन करना चाहते थे। काशी या वाराणशी को लोग बहुत ही पवित्र और मोक्षदायिनी मानते थे जबकि इसके विपरीत मगहर के विषय में प्रचलित मान्यता यह थी की यदि कोई मगहर में अपने प्राणों का त्याग करता है तो वह अगले जन्म में गधा बनेगा या फिर नरक का भागी होगा। कबीर ने इस विषय पर लोगो को समझाया की स्थान विशेष का पुनर्जन्म से कोई सीधा सबंध नहीं है। यदि व्यक्ति सद्कर्म करता है और ईश्वर की प्राप्ति हेतु सत्य अपनाता है तो भले ही वह मगहर में अपने प्राण त्यागे उसका जीवन सफल होता है। 

कबीर साहेब ने अपना जीवन जहाँ वाराणसी में बिताया वही उन्होंने इसी मिथक को तोड़ने के लिए अपने अंतिम समय के लिए मगहर को चुना जहां १५१८ में उन्होंने दैहिक जीवन को छोड़ दिया। मगहर में जहाँ कबीर साहेब ने दैहिक जीवन छोड़ा वहां पर मजार और मस्जिद दोनों स्थापित है जहाँ पर प्रति दिन कबीर विचारधारा को मानने वाले व्यक्ति आते रहते हैं। 

‘क्या काशी क्या ऊसर मगहर, राम हृदय बस मोरा
जो कासी तन तजै कबीरा, रामे कौन निहोरा’

जिस हृदय में राम का वास है उसके लिए काशी और मगहर दोनों एक ही समान हैं। यदि काशी में रहकर कोई प्राण का त्याग करें तो इसमें राम का कौनसा उपकार होगा ? भाव है की भले ही काशी हो या फिर मगहर यदि हृदय में राम का वास है तो कहीं भी प्राणों का त्याग किया जाय, राम सदा उसके साथ हैं। यहाँ राम से अभिप्राय निर्गुण ईश्वर से है।


कबीर साहेब का वैज्ञानिक दृष्टिकोण: कबीर साहेब ने मानव जीवन का सूक्ष्मता से अध्ययन किया और सभी अवगुणों को सरल शब्दों में समझाया। उनका दृष्टिकोण भी बहुत ही वैज्ञानिक था। उन्होंने कभी भी प्रकांड पंडित बनने का प्रयत्न नहीं किया और ना ही कठिन शब्दों का चयन करके स्वंय को साहित्य का कोई बड़ा लेखक घोषित करवाने का जतन किया, यही ख़ूबसूरती है कबीर साहेब की वाणी और उनके चरित्र की। हजारी प्रसाद द्विवेदी के अनुसार  “ कबीरदास  ऐसे  ही  मिलन  बिन्दु  पर  खड़े  थे,  जहाँ  एक  ओर  हिन्दुत्व  निकल  जाता  था,  दूसरी  ओर  मुसलमान,  जहाँ  एक  ओर  ज्ञान  निकल  जाता  है,  दूसरी  ओर  अशिवा,  जहाँ  एक  ओर  ज्ञान  भक्ति  मार्ग  निकल  जाता  है,  दूसी  ओर  योगमार्ग,  जहाँ  एक  ओर  निर्गुण  भावना  निकल  जाती  है,  दूसरी  ओर  सगुण  साधना।  उसी  प्रशस्त  चैराहे  पर  वे  खड़े  थे।  वे  दोनों  को  देख  सकते  थे  और  परस्पर  विरूद्ध  दिशा  में  गये  मार्गों  के  गुण  दोष  उन्हें  स्पष्ट  दिखाई  दे  जाते  थे। ” 

कबीर साहेब और 'माया ': कबीर साहेब का हृदय उस समय बहुत ही दुःखता था जब वे मानव मात्र को माया के जाल में घिरा हुआ पाते थे। इसी कारण से उन्होंने माया के रूपों का वृहद चित्रण करने इससे बचने की सलाह दी। दलित चेतना का कार्य भी कबीर साहेब ने किया और लोगों को समझाया की उनका जीवन कितना अनमोल है। कबीर साहब ने माया को पापिनी, मीठी खांड, जाल में फांसने वाली, आदि घोषित किया है। 

`कबीर' माया पापणी, फंध ले बैठी हाटि ।
सब जग तौ फंधै पड्या,गया कबीरा काटि

माया के चक्कर में सारा जंग पड़ा है, कबीर वही है जो इसके जाल को काट दे।

`कबीर' माया मोहनी, जैसी मीठी खांड ।
सतगुरु की कृपा भई, नहीं तौ करती भांड

यदि सदगुरु माया का भेद नहीं बताते तो यह माया ना जाने मानव से क्या क्या करवाती क्यों की इसकी प्रवृति मीठी है और मानव इसके भेद में पड जाते हैं।

माया मुई न मन मुवा, मरि-मरि गया सरीर ।
आसा त्रिष्णां ना मुई, यों कहि गया `कबीर'

तृष्णा और माया कभी मरती नहीं हैं। मानव का जीवन सीमित है, एक रोज यह समाप्त हो जाना है परन्तु माया कभी मरती नहीं है वह पुनः किसी जीवन को अपने जाल में फसाने को आतुर रहती है। 

त्रिसणा सींची ना बुझै, दिन दिन बधती जाइ ।
जवासा के रूष ज्यूं, घण मेहां कुमिलाइ ॥ 

`कबीर' माया जिनि मिले, सौ बरियाँ दे बाँह ।
नारद से मुनियर मिले, किसो भरोसौ त्याँह ॥

बुगली नीर बिटालिया, सायर चढ्‌या कलंक ।
और पखेरू पी गये , हंस न बोवे चंच ॥

`कबीर' इस संसार का, झूठा माया मोह ।
जिहि घरि जिता बधावणा, तिहिं घरि तिता अंदोह ॥

माया तजी तौ क्या भया, मानि तजी नहीं जाइ ।
मानि बड़े मुनियर गिले, मानि सबनि को खाइ ॥

माया से यदि कोई बच भी जाता है जो अभिमान और घमण्ड उसे खा जाता है।

कबीर जग की को कहै, भौजलि, बुड़ै दास ।
पारब्रह्म पति छाँड़ि करि, करैं मानि की आस ॥

क्या कबीर साहेब विवाहित थे : जिस प्रकार से कबीर साहेब के माता पिता के सबंध में अनेकों विचार प्रसिद्द हैं तो एक दुसरे से मुख्तलिफ हैं, वैसे ही उनके परिवार के विषय में कोई भी एक मान्य राय की सुचना उपलब्ध नहीं है। कबीर को जहाँ कुछ लोग अविवाहित मानते हैं वही कुछ लोग कबीर का भरा पूरा परिवार बताते हैं। इन्ही मान्यताओं के आधार पर ऐसा माना जाता है की कबीर साहेब की पत्नि का नाम लोई था। कबीर पंथ के विद्वान व्यक्ति कहते हैं की कबीर ब्रह्मचारी थे और वे नारी को साधना में बाधक मानते थे। 

नारी कुण्ड नरक का, बिरला थंभै बाग।
कोई साधू जन ऊबरै, सब जग मूँवा लाग॥

पहलो कुरूप, कुजाति,
कुलक्खिनी साहुरै येइयै दूरी।
अबकी सरूप, सुजाति, सुलक्खिनी सहजै उदर धरी।
भई सरी मुई मेरी पहिली वरी। जुग-जुग जीवो मेरी उनकी घरी।
मेरी बहुरिया कै धनिया नाऊ।

कबीर साहेब के पुत्र का नाम कमाल माना जाता है। कबीर ने अपने पुत्र को वंश को डुबाने वाला कहा है क्यों की उनका पुत्र उनकी शिक्षाओं पर खरा नहीं उतरा था। पिता के आचरण की विरुद्ध व्यवहार करने पर ही उसे वंस को डुबाने वाला कहा है। 

 बूडा़ वंश कबीर का, उपजा पूत कमाल।
हरि का सुमिरन छाँड़ि कै, भरि लै आया माल।।

कबीर के विचार जो बदल सकते हैं आपका जीवन / Kabir Thoughts Can Change Your Life :

  • पुरुषार्थ से धन अर्जन करो। किसी के ऊपर आश्रित ना बनो। माँगना मौत के सामान है।  
  • गुरु का स्थान इस्वर से भी महान है क्यों की गुरु ही साधक को सत्य की राह दिखाता है और सद्मार्ग की और अग्रसर होता है। गुरु किसे बनाना चाहिए इस विषय को गंभीरता से लेते हुए गुरु का चयन करना चाहिए। दस बीस लोगों का झुण्ड बनाकर कोई गुरु नहीं बन सकता है।  
  • समय रहते ईश्वर का सुमिरन करना चाहिए। एक रोज यहाँ संसार छोड़कर सभी को जाना है। व्यक्ति में दया, धर्म जरुरत मंदों की मदद करने जैसे मानवीय गुण होने चाहिए। निर्धन को मदद करनी चाहिए। 
  • सुख रहते हुए अगर प्रभु को याद कर लिया जाय तो दुःख नहीं होगा।तृष्णा और माया के फाँस को समझकर इन्हे त्यागकर सदा जीवन बिताना चाहिए।  
  • जो पैदा हुआ है वो एक रोज मृत्यु को प्राप्त होगा। सिर्फ चार दिन की चांदनी है। पलाश के वृक्ष में जब फूल लगते हैं तो बहुत आकर्षक और मनोरम प्रतीत होता है। कुछ ही समय बाद फूल झड़ जाते हैं और वह ठूंठ की तरह खड़ा रहता है। काया की क्षीण होने से पहले प्रभु को याद करना जीवन का उद्देश्य है। राजा हो या रंक यम किसी को रियायत नहीं देता है।  
  • जैसे घर में छांया के लिए वृक्ष होना चाहिए उसी भांति निंदक को दोस्त बनाना चाहिए। निंदक हमारी कमियों को गिनाता है जिससे सुधार करने में सहायता मिलती है। जो मित्र हां में हां भरे वो मित्र नहीं शत्रु होता है। 
  • अति हर विषय में वर्जित है। ना ज्यादा बोलना चाहिए और ना ज्यादा चुप। संतुलित व्यवहार उत्तम है। 
  • कोशिश करने वालों की कभी पराजय नहीं होती। एक बार कोशिश करके निराश नहीं होना चाहिए सतत प्रयाश करने चाहिए। जो गोताखोर गहरे पानी में गोता लगाता है वह कुछ न कुछ प्राप्त अवश्य करता है। 
  • धैर्य व्यक्ति का आभूषण है। धैर्य से ही सभी कार्य संपन्न होते हैं। जल्दबाजी में लिए गए निर्णय सदा घातक होते हैं। जैसे माली सब्र रखता है और पौधों को सींचता रहता है और ऋतू आने पर स्वतः ही फूल लग जाते हैं। उसकी जल्दबाजी से फूल नहीं आएंगे इसलिए हर कार्य में धैर्य रखना चाहिए। 
  • उपयोगी विचारों का चयन करके जीवन में उतार लेने चाहिए। निरर्थक और सारहीन विचारों का त्याग कर देना चाहिए, जैसे सूप उपयोगी दानों को छांट कर अलग कर देता है और थोथा उड़ा देता है उसी प्रकार से महत्वहीन विचारों को छोड़कर उपयोगी विचारों का चयन कर लेना चाहिए।  
  • समय रहते प्रभु की शरण में चले जाना चाहिए। काया के क्षीण होने पर यम दरवाजे पर दस्तक देने लग जाता है। उस समय उस दास की फरियाद कौन सुनेगा। विडम्बना है की बाल्य काल खेलने में, जवानी दम्भ में और फिर परिवार के फाँस में फसकर व्यक्ति सत्य के मार्ग से विमुख हो जाता है और इस संसार को अपना स्थायी घर समझने लग जाता है। बुढ़ापे में प्रभु जी याद आते है लेकिन उसकी फरियाद नहीं सुनी जाती और वह फिर से जन्म मरण के भंवर में गिर जाता है। 
  • जीवन की महत्ता अमूल्य है, इसे कौड़ियों के भाव से खर्च नहीं करना चाहिए। यह जीवन प्रभु भक्ति के लिए दिया गया है। विषय विकार और तृष्णा इसे कौड़ी में बदल कर रख देते हैं। इसके महत्त्व को समझ कर प्रभु के चरणों में ध्यान लगाना चाहिए।जीवन अमूल्य मोती के समान है इसे कौड़ी में मत बदलो। 
  • व्यक्ति को उसी स्थान पर रहना चाहिए जहाँ पर उसके विचारों को समझ कर उसकी क़द्र हो। मुर्ख व्यक्तियों के बीच समझदार उपहास का पात्र बनता है। जैसे धोभी का उस स्थान पर कोई कार्य नहीं है जहां लोगो के पास कपडे ही ना हों। इसलिए सामान विचारधारा के लोगों के बीच ही व्यक्ति को रहना चाहिए और अपने विचार रखने चाहिए अन्यथा वह मखौल का पात्र बनकर रह जाता है।  
  • जीवन में धीरज का अत्यंत महत्त्व होता है। जल्दबाजी से कोई निर्णय नहीं निकलता है। जीवन का कोई भी क्षेत्र हो धीरज वो आभूषण है जो मनुष्य को सुशोभित करता है। जैसे कबीरदास जी ने कहा है वो हर आयाम में लागू होता है। माली पौधों को ना जाने कितनी बार सींचता है, ऐसा नहीं है की पानी डालते ही उसमे फूल लग जाते हैं। फूल लगने का एक निश्चित समय होता है, निश्चित समय के आने पर ही पौधों में फूल लगते हैं। आशय स्पष्ट है की हमें हर क्षेत्र में धीरज धारण करना चाहिए और अपने प्रयत्न करते रहने चाहिए। अनुकूल समय के आने पर फल स्वतः ही प्राप्त हो जाता है। 
  • जीवन कोई भी आयाम हो या फिर भक्ति ही क्यों ना हो, बगैर कठोर मेहनत के किसी क्षेत्र में सफलता प्राप्त नहीं होती है। जैसे सतही रूप से व्यक्ति कोशिश करता है, किनारे पर डूबने के डर से बैठा रहता है, निराश हो जाता है, वो कुछ भी करने से डरता है। जो इस डर को दूर करके गहरे पानी में गोता लगाता है, वह अवश्य ही मोती प्राप्त कर पाता है। यहाँ कबीर का साफ़ उद्देश्य है की कठोर मेहनत से मनवांछित परिणाम प्राप्त किये जा सकते हैं।

कबीर के गुरु कौन थे Who Was Kabir's Guru : मान्यता है की कबीर साहेब के गुरु का नाम रामानंद जी थे। "काशी में परगट भये , रामानंद चेताये " हालाँकि कबीर साहेब के जानकारों की एक अलाहिदा राय है की कबीर साहेब स्वंय परमब्रह्म थे और उनका कोई गुरु नहीं था। कबीर साहेब का जन्म कहाँ हुआ : When was Kabir Born : महान संत और आध्यात्मिक कबीर दास का जन्म वर्ष 1440 में और मृत्यु वर्ष 1518 में हुई थी। इस्लाम के अनुसार ‘कबीर’ का अर्थ महान होता है। 

क्या कबीर साकार ईश्वर को मानते थे What are the ideas of Kabir on God : कबीर साहेब परम सत्ता को एक ही मानते थे उनके अनुसार लोगों ने उसका अपनी सुविधा के अनुसार नामकरण मात्र किया है जबकि वह एक ही है और सर्वत्र विद्यमान हैं। 

राम-रहीम एक है, नाम धराया दोय। 

कहै कबीर दो नाम सुनि, भरम परौ मति कोय।। 

वह किसी स्थान विशेष का मोहताज नहीं है, वह सर्वत्र विद्यमान है और वह घर पर भी है उसे ढूंढने के लिए किसी भी यात्रा की जरूरत हैं है। जो भी सत्य है वह ईश्वर ही है। 

कबीर साहेब ने तात्कालिक मूर्तिपूजा का घोर खंडन करते हुए ईशर को निराकार घोषित किया।

कबीर साहेब ने मानव देह कब छोड़ी Where did Sant Kabir die? :कबीर साहेब ने जीवन भर लोगो को शिक्षाएं दी जो आज भी प्रसंगिक हैं और उन्होंने अपनी मृत्य को भी लोगो के समक्ष एक शिक्षा के रूप में रखा। उस समय मान्यता थी की यदि कोई काशी में मरता है तो स्वर्ग और मगहर में यदि कोई मरता है तो वह गधा बनता है, इसी रूढ़ि को तोड़ने के लिए कबीर साहेब ने मगहर को चुना। क्या कबीर सूफी संत थे Was Kabir a Sufi saint? : कबीर के विचार स्वतंत्र थे, निष्पक्ष थे और आडंबरों से परे थे, यही बात कबीर साहेब को अन्य पंथ और मान्यताओं से अलग करती है। कबीर साहेब सूफी संत नहीं थे लेकिन यह एक दीगर विषय है की बाबा बुल्ले शाह के विचार कबीर साहेब से बहुत मिलते जुलते हैं, मसलन-

मक्का गयां गल मुकदी नाहीं, भावें सो सो जुम्मे पढ़ आएं
गंगा गयां गल मुकदी नाहीं, भावें सो सो गोते खाएं
गया गयां गल मुकदी नाहीं, भावें सो सो पंड पढ़ आएं
बुल्ले शाह गल त्यों मुकदी, जद "मैं" नु दिलों गवाएँ
चल वे बुल्लेया चल ओथे चलिये जिथे सारे अन्ने,
न कोई साड्डी जात पिछाने ते न कोई सान्नु मन्ने
पढ़ पढ़ आलम फाज़ल होयां, कदीं अपने आप नु पढ़याऍ ना
जा जा वडदा मंदर मसीते, कदी मन अपने विच वडयाऍ ना
एवैएन रोज़ शैतान नाल लड़दान हे, कदी नफस अपने नाल लड़याऍ ना
बुल्ले शाह अस्मानी उड़याँ फडदा हे, जेडा घर बैठा ओन्नु फडयाऍ ना
मस्जिद ढा दे मंदिर ढा दे, ढा दे जो कुछ दिसदा
एक बन्दे दा दिल न ढाइन, क्यूंकि रब दिलां विच रेहेंदा
बुल्ले नालों चूल्हा चंगा, जिस ते अन्न पकाई दा
रल फकीरा मजलिस करदे, भोरा भोरा खाई दा
रब रब करदे बुड्ढे हो गए, मुल्ला पंडित सारे
रब दा खोज खरा न लब्बा, सजदे कर कर हारे
रब ते तेरे अन्दर वसदा, विच कुरान इशारे
बुल्ले शाह रब ओनु मिलदा, जेडा अपने नफस नु मारे
सर ते टोपी ते नीयत खोटी, लेना की टोपी सर धर के
चिल्ले कीता पर रब न मिलया, लेना की चिल्लेयाँ विच वड के
 तस्बीह फिरि पर दिल न फिरेया, लेना की तस्बीह हथ फेर के
 बुल्लेया झाग बिना दूध नई जमदा, ते भांवे लाल होवे कढ कढ के
पढ़ पढ़ इल्म किताबां नु, तू नाम रखा लया क़ाज़ी
हथ विच फर के तलवारां, तू नाम रखा लया ग़ाज़ी
मक्के मदीने टी फिर आयां, तू नाम रखा लया हाजी
ओ बुल्लेया! तू कुछ न कित्तां, जे तू रब न किता राज़ी
जे रब मिलदा नहातेयां धोतयां, ते रब मिलदा ददुआन मछलियाँ
 जे रब मिलदा जंगल बेले, ते मिलदा गायां वछियाँ
जे रब मिलदा विच मसीतीं, ते मिलदा चम्चडकियाँ
ओ बुल्ले शाह रब ओन्नु मिलदा, तय नीयत जिंना दीयां सचियां
रातीं जागां ते शेख सदा वें , पर रात नु जागां कुत्ते, ते तो उत्ते
रातीं भोंकों बस न करदे, फेर जा लारा विच सुत्ते, ते तो उत्ते
यार दा बुहा मूल न छडदे, पावें मारो सो सो जूते, ते तो उत्ते
बुल्ले शाह उठ यार मन ले , नईं ते बाज़ी ले गए कुत्ते, ते तो उत्ते

कबीर साहेब ने किस भाषा में लिखा है In which language Kabir Das wrote : गौरतलब है की कबीर साहेब ने स्वंय कुछ भी नहीं लिखा है। जो भी लिखित है वह उनके समर्थक /अनुयायिओं के द्वारा कबीर साहेब की वाणी को सुन कर लिखा गया है। “मसि कागद छूऔं नहीं, कलम गहौं नहि हाथ चारों जुग कै महातम कबिरा मुखहिं जनाई बात” कबीर साहेब ने जो देखा वही कहा और यही कारण है की उनके अनुयायिओं के द्वारा विभिन्न भाषा / अपने क्षेत्र, अंचल की भाषा को काम में लिया गया जिसके कारन से हिंदी पंजाबी, राजस्थानी और गुजराती के शब्द हमें उनकी लेखनी में मिलते हैं। आचार्य रामचंद्र शुक्ल इस इस मिलीजुली भाषा को सधुकड़ि भाषा का नाम दिया है। 

कबीर की जाति क्या थी? What is the Cast of Kabir, What is the Religion of Kabir Hindu or Muslim: वैसे तो यह सवाल ही अनुचित है की कबीर के जाति क्या थी क्योंकि कबीर ने सदा ही जातिवाद का विरोध किया। यह सवाल जहन में उठता है क्योंकि हम जानना चाहते हैं ! संत की कोई जाति नहीं होती और ना ही उसका कोई धर्म ! कबीर की जाति और धर्म जानने की उत्सुकता का कारन है की वस्तुतः हम मान लेते हैं की दलित साहित्य चिंतन और लेखन करने वाला दलित ही होना चाहिए। कबीर साहेब ने बरसों से चली आ रही सामजिक और जातिगत मान्यताओं को खारिज करते हुए मानव को मानव होने का गौरव दिलाया और घोषित किया की 

एक बूंद एकै मल मूत्र, एक चम् एक गूदा।
एक जोति थैं सब उत्पन्ना, कौन बाम्हन कौन सूदा।।
 

जातिगत और जन्म के आधार पर कबीर साहेब ने किसी की श्रेष्ठता मानने से इंकार किया। बहरहाल, क्या कबीर दलित थे ? मान्य चिंतकों और साहित्य की जानकारी रखने वाले विद्वानों के अनुसार कबीर साहेब दलित नहीं थे क्यों की समकालिक सामाजिक परिस्थितियों में दलितों को 'अछूत' माना जाता था। कबीर साहेब के विषय में ऐसा कोई प्रमाण नहीं है। मान्यताओं के आधार पर कबीर साहेब जुलाहे (मुस्लिम जुलाहे ) से सबंध रखते थे और मुस्लिम समाज में अश्प्रश्य, छूआछूत जैसे कोई भी अवधारणा नहीं रही है, हाँ, गरीब और अमीर कुल का होना एक दीगर विषय हो सकता है। 

जाँति  न  पूछो  साधा  की  पूछ  लीजिए  ज्ञान।
मोल  करो  तलवार  का  पड़ा  रहने  दो  म्यान।

इसके विपरीत आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी जी कबीर साहेब का जन्म ब्राह्मण जाती में होना बताते हैं और कबीर साहेब को 'नाथपंथी होना' बताते हैं। डॉक्टर धर्मवीर भारती जी के अनुसार कबीर साहेब मुस्लिम जुलाहे तो थे ही और अछूत भी थे जो कुछ समझ से परे की बात लगती है। कबीर साहेब दलित थे या नहीं यह विवाद का विषय हो सकता है लेकिन कबीर साहेब की दलित चेतना सभी को एक स्वर में मान्य है। कबीर के वाणी को साखी, सबद और रमैनी तीनो रूपों में लिखा गया है। जो ‘बीजक’ के नाम से प्रसिद्ध है और कबीर के नाम पर ८४ ग्रन्थ होने की जानकारी मिलती है।

Life and Lessons of Kabir (BBC Hindi)
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ता चढ़ि मुल्ला बांग दे क्या बहरा हुआ खुदाय?

ता चढ़ि मुल्ला बांग दे : उसके उपर चढ़कर मुल्ला द्वारा जोर जोर से घोषणा करना। कबीर दास जी कहते है कि कंकर पत्थर जोड़ कर मस्जिद बना ली और उसके उपर चढ़कर मुल्ला जोर जोर से चीख कर अजान देता है। कबीर दास जी कहते है कि क्या खुदा बहरा हो गया है? यह दोहा प्रतीकात्मक भक्ति पर व्यंग्य है, जिसका मर्म समझना आवश्यक है।

कंकर पाथर जोरि कै मस्जिद लियो बनाय ता चढ़ि मुल्ला बांग दे क्या बहिरा हुआ खुदाय 8?

कांकर पाथर जोरि के : कंकड़ और पत्थर जोड़ कर /इकट्ठा करके। मस्जिद लिनी बनाय : मस्जिद बना ली है। ता ते ऊपर मुल्ला बांग दे : मौलवी के द्वारा जोर जोर से घोषणा करना। दोहे का हिंदी मीनिंग: यह दोहा प्रतीकात्मक भक्ति पर व्यंग्य है, जिसका मर्म समझना आवश्यक है।

कबीर दास जी के 5 दोहे?

कबीर के 10 बेहतरीन दोहे : देते हैं जिंदगी का असली ज्ञान.
मैं जानूँ मन मरि गया, मरि के हुआ भूत | ... .
भक्त मरे क्या रोइये, जो अपने घर जाय | ... .
मैं मेरा घर जालिया, लिया पलीता हाथ | ... .
शब्द विचारी जो चले, गुरुमुख होय निहाल | ... .
जब लग आश शरीर की, मिरतक हुआ न जाय | ... .
मन को मिरतक देखि के, मति माने विश्वास | ... .
कबीर मिरतक देखकर, मति धरो विश्वास |.

कबीर दास के 10 दोहे अर्थ सहित?

कबीरदास जी कहते हैं, पहले गुरु को प्रणाम करूंगा क्‍योंकि उन्‍होंने ही गोविंद तक पहुंचने का मार्ग बताया है। पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय, ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय। बड़ी बड़ी पुस्तकें पढ़ कर संसार में कितने ही लोग मृत्यु के द्वार पहुँच गए, पर सभी विद्वान न हो सके।