शाल के वृक्ष धरती में क्यों धंस गए थे? - shaal ke vrksh dharatee mein kyon dhans gae the?

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Asked on      2021-01-16 04:54:12 by Guest | Votes 0 | Views: 93 | Tags: 10th class     | hindi     | chapter 5 parwat pradesh mein pawas     | Add Bounty

Question 6:

निम्नलिखित प्रश्न का उत्तर दीजिए

शाल के वृक्ष भयभीत होकर धरती में क्यों धँस गए?


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Answered by Guest on 2021-01-16 04:59:29 | Votes 0 | #

Answer:

आसमान में अचानक बादलों के छाने से मूसलाधार वर्षा होने लगी। वर्षा की भयानकता और धुंध से शाल के वृक्ष भयभीत होकर धरती में धँस गए प्रतीत होते हैं।

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प्रश्न 5-6. शाल के वृक्ष भयभीत होकर धरती में क्यों धँस गए?

उत्तर 5-6. वर्षा की भयानकता और धुंध से शाल के वृक्ष भयभीत होकर धरती में धँस गए ऐसा प्रतीत होता है।

प्रश्न 5-7. झरने किसके गौरव का गान कर रहे हैं? बहते हुए झरने की तुलना किससे की गई है?

उत्तर 5-7. झरने पर्वतों की गाथा का गान कर रहे हैं। बहते हुए झरने की तुलना मोती की लड़ियों से की गयी है।


प्रश्न 5-8. है टूट पड़ा भू पर अंबर।

उत्तर 5-8. कवि ने इस पंक्ति में वर्षा ऋतू के मूसलाधार बारिश का वर्णन करते हुए कहा है कि बादलों से इतनी तेज वर्षा हुई कि ऐसा लगा जैसे आकाश धरती पर टूट पड़ा हो|

प्रश्न 5-9. −यों जलद-यान में विचर-विचर
था इंद्र खेलता इंद्रजाल।

उत्तर 5-9. इन पंक्तियों में कवि ने वर्षा के देवता इंद्र बादल रूपी वाहन में घूम-घूम कर जादुई करतब दिखा रहे हैं यानी प्रकृति में पल-पल परिवर्तन ला रहे हैं|


प्रश्न 5-10. गिरिवर के उर से उठ-उठ कर
उच्चाकांक्षाओं से तरुवर
हैं झांक रहे नीरव नभ पर
अनिमेष, अटल, कुछ चिंतापर।

उत्तर 5-10. इन पंक्तियों का में कवि ने पर्वतों पर उगे हुए वृक्षों का वर्णन करते हुए कहा है कि वे एकटक, स्थिर चिंता में डूबे मन में उच्च आकांक्षाएँ लिए हुए शांत आकाश की ओर देख रहे हैं|


निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए:

प्रश्न 1: है टूट पड़ा भू पर अंबर।

उत्तर: जब तेज बारिश होती है तो लगता है कि धरती पर आसमान ही टूटकर गिरने लगा हो।

प्रश्न 2: यों जलद-यान में विचर-विचर
था इंद्र खेलता इंद्रजाल।

उत्तर: इन पंक्तियों में कवि ने तेज बारिश का चित्रण किया है। बादलों की तुलना उसने किसी विमान से की है। ऐसा लगता है कि उन विमानों में बैठकर इंद्र भगवान कोई जादू कर रहे हों।

प्रश्न 3: गिरिवर के उर से उठ उठ कर
उच्चाकांक्षाओं से तरुवर
हैं झाँक रहे नीरव नभ पर
अनिमेष, अटल, कुछ चिंतापर।

उत्तर: पहाड़ के ऊपर और आस पास पेड़ भी होते हैं जो उस दृष्टिपटल की सुंदरता को बढ़ाते हैं। पर्वत के हृदय से पेड़ उठकर खड़े हुए हैं और शांत आकाश को अपलक और अचल होकर किसी गहरी चिंता में मग्न होकर बड़ी महात्वाकांक्षा से देख रहे हैं। ये हमें ऊँचा, और ऊँचा उठने की प्रेरणा दे रहे हैं।


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कवि ने शाल के वृक्षों के भयभीत होकर धरती में धंसने की कल्पना की है। कवि के अनुसार वर्षा इतनी तेज और मूसलाधार थी कि ऐसा लगता था मानो आकाश टूटकर धरती पर गिर गया हो। कोहरे के फैलने से ऐसा लगता था मानो सरोवर जल गया हो और उसमें से धुआं उठ रहा हो।