संप्रेषण से क्या आशय है इसकी प्रकृति महत्व एवं उद्देश्यों का वर्णन कीजिए? - sampreshan se kya aashay hai isakee prakrti mahatv evan uddeshyon ka varnan keejie?

संप्रेषण के लिए अंग्रेजी भाषा में 'Communication' शब्द का प्रयोग किया जाता है जिसकी उत्पत्ति लेटिन भाषा के 'Communis' शब्द से हुई है। 'Communis' शब्द का अर्थ है ‘जानना या समझना। 'Communis' शब्द को 'Common' शब्द से लिया गया है संप्रेषण का अर्थ है किसी विचार या तथ्य को कुछ व्यक्तियों में सामान्तया 'Common' बना देना इस प्रकार संप्रेषण या संचार शब्द से आशय है तथ्यों, सूचनाओं, विचारों आदि को भेजना या समझना। 

इस प्रकार संप्रेषण एक द्विमार्गी प्रक्रिया है जिसके लिये आवश्यक है कि यह सम्बन्धित व्यक्तियों तक उसी अर्थ में पहुँचे जिस अर्थ में संप्रेषणकर्त्ता ने अपने विचारों को भेजा है। 

यदि सन्देश प्राप्तकर्त्ता, सन्देश वाहक द्वारा भेजे गये सन्देश को उस रूप में ग्रहण नहीं करता है, तो संप्रेषण पूरा नहीं माना जायेगा।  अत: संप्रेषण का अर्थ विचारों तथा सूचनाओं को एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक इस प्रकार पहुँचाना है कि वह उसे जान सके तथा समझ सके।

संप्रेषण की परिभाषा

एडविन बी0 फिलप्पों के शब्दों में संदेश संप्रेषण या संचार अन्य व्यक्तियों को इस तरह प्रोत्साहित करने का कार्य है, जिससे वह किसी विचार का उसी रूप में अनुवाद करे जैसा कि लिखने या बोलने वाले ने चाहा है।” अत: संप्रेषण एक ऐसी कला है जिसके अन्र्तगत विचारों, सूचनाओं, सन्देशों एवं सुझावों का आदान प्रदान चलता है।

संप्रेषण की विशेषताएँ

  1. संप्रेषण द्विमार्गी प्रक्रिया है जिसमें विचारों का आदान प्रदान होता है।
  2. संप्रेषण का लक्ष्य सम्बन्धित पक्षकारों तक सूचनाओं को सही अर्थ में सम्प्रेषित करना होता है।
  3. संप्रेषण द्वारा विभिन्न सूचनाएँ प्रदान कर पक्षकारों के ज्ञान में अभिवृद्धि की जाती है।
  4. संप्रेषण का आधार व्यक्तिगत समझ और मनोदशा होती है।
  5. संप्रेषण में दो या अधिक अपने विचारों का आदान प्रदान करते हैं।
  6. संप्रेषण वैयक्तिक और अवैयक्तिक दोनों प्रकार से किया जा सकता है।
  7. संप्रेषण निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है।
  8. संप्रेषण एक चक्रिय-प्रक्रिया है जो प्रेषक से प्रारम्भ होकर प्रतिपुष्टि प्राप्ति के बाद प्रेषक पर ही समाप्त होती है।
  9. संप्रेषण में संकेत, शब्द व चिन्हों का प्रयोग होता है।

संप्रेषण क्रियाओं का वह व्यवस्थित क्रम व स्वरूप जिसके द्वारा एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को, एक समूह दूसरे समूह को एक विभाग दूसरे विभाग को एक संगठन बाहरी पक्षकारों को विचारों सूचनाओं, भावनाओं व दृष्टिकोणों का आदान प्रदान करता है संप्रेषण प्रक्रिया कहलाती है।

संप्रेषण एक निरन्तर चलने वाली तथा नैत्यिक प्रक्रिया है तथा कभी न समाप्त होने वाला संप्रेषण चक्र संस्था में निरन्तर विद्यमान रहता है। इस प्रक्रिया को निम्न चित्र द्वारा समझाया जा सकता है :

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संप्रेषण प्रक्रिया

संप्रेषण, संगठन के व्यक्तियों एवं समूहों का वाहक एवं विचार अभिव्यक्ति का माध्यम है। संप्रेषण प्रक्रिया में सन्देश का भेजने वाला सन्देश के प्रवाह के माध्यम का प्रयोग करता है। यह माध्यम लिखित, मौखिक, दृश्य अथवा एवं सुनने के लायक होता है। संप्रेषण माध्यम का चयन संप्रेषण के उद्देश्य, गति एवं प्राप्तकर्त्ता की परिस्थितियों के अनुसार किया जाता है। 

संप्रेषण माध्यम का चुनाव करते समय सन्देश संवाहक यह ध्यान रखता है कि उसे कब और क्या सम्पे्रषित करना है? सन्देश को प्राप्त करने वाला व्यक्ति सन्देश को प्राप्त करता है, उसकी विवेचना करता है तथा अपने अनुसार उसे ग्रहण करके उसका अपेक्षित प्रतिउत्तर प्रदान करता है।

अत: संप्रेषण प्रक्रिया को समझने में मुख्य आधारभूत पाँच प्रश्न शामिल होते हैं :

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संप्रेषण की प्रक्रिया

संप्रेषण प्रक्रिया के प्रमुख तत्व

संप्रेषण के प्रमुख तत्व कौन कौन से हैं? डेविड के बार्लो के अनुसार सुविधा तथा समझ की दृष्टि से संप्रेषण प्रक्रिया के प्रमुख तत्त्व हैं :

1. विचार (Idea) : किसी सन्देश को प्रेषित करने से पूर्व उस सन्देशवाहक के मस्तिष्क में उस सन्देश के सम्बन्ध में विचार की उत्पत्ति होती है जिसे वह उसके प्राप्तकर्त्ता को प्रेषित करना चाहता है। प्रत्येक लिखित या मौखिक सन्देश विचार की उत्पत्ति से प्रारम्भ होता है। अत: मस्तिष्क में उठने वाला कोई भी उद्वेग जिसे व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति के साथ बाँटना चाहता है सारांश रूप में उत्पन्न विचार है।

2. प्रेषक (Encoder-Sender-Speaker) : प्रेषक संप्रेषणकर्त्ता या सन्देश देने वाले व्यक्ति को कहते हैं। इसके द्वारा सन्देश का प्रेषण किया जाता है। सम्प्रेषक सन्देश द्वारा प्रापक के व्यवहार को गति प्रदान करने वाली शक्ति (Driving Force) है। 

3. प्राप्तकर्त्ता (Receiver-Decoder-Listner) : संप्रेषण में दूसरा महत्त्वपूर्ण पक्षकार सन्देश प्रापक है। यह पक्षकार सन्देश को प्राप्त करता है। जिसके बिना सन्देश की प्रक्रिया पूर्ण नहीं हो सकती।

4. सन्देश (Message or Introduction) : सन्देश में सूचना, विचार संकेत दृष्टिकोण, निर्देश, आदेश, परिवेदना, सुझाव, आदि शामिल हैं। यह लिखित, मौखिक, शाब्दिक अथवा सांकेतिक होता है। एक अच्छे सन्देश की भाषा सरल स्पष्ट तथा समग्र होनी आवश्यक है।

5. प्रतिपुष्टि या पुनर्निवेश (Feedback) : जब सन्देश प्रापक द्वारा सन्देश को मूल रूप से अथवा उसी दृष्टिकोणानुसार समझ लिया जाता है जैसा कि सन्देश प्रेषक सम्प्रेषित करता है। तब सन्देश प्राप्तकर्त्ता द्वारा सन्देश के सम्बन्ध में की गई अभिव्यक्ति का ही प्रतिपुष्टि (Feedback) कहते हैं।

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    संप्रेषण की प्रक्रिया

    उपर्युक्त आधार पर स्पष्ट है कि संप्रेषण के विभिन्न अंग हैं तथा इन सभी अंगों से मिलकर एक संप्रेषण मॉडल का निर्माण होता है। ये सभी मॉडल मिलकर संप्रेषण के विभिन्न अंगों के आपसी सम्बन्धों की व्याख्या करते हैं, जिसे संप्रेषण प्रक्रिया भी कहा जाता है।

    संप्रेषण प्रक्रिया के मॉडल

    1. शैमन-वीवर मॉडल 

    संप्रेषण के सन्देशबद्ध सिद्धान्त का प्रतिपादन शैमन-वीवर द्वारा किया गया। शैमन-वीवर के अनुसार संप्रेषण प्रक्रिया में पाँच तत्त्व निहित हैं जो सूचना स्रोत से प्रारम्भ होकर प्रेषक द्वारा कोलाहल स्रोत को पार करते हुए सन्देश के रूप में उनके लक्ष्य तक प्राप्तकर्त्ता के पास सम्प्रेपित होते हैं :

    संप्रेषण से क्या आशय है इसकी प्रकृति महत्व एवं उद्देश्यों का वर्णन कीजिए? - sampreshan se kya aashay hai isakee prakrti mahatv evan uddeshyon ka varnan keejie?

    1. सूचना स्रोत : यह सम्प्रेष्ण प्रक्रिया का प्रारम्भ है। आज के वैज्ञानिक युग में सूचना एक साधन बन चुकी है। प्रबन्धन को उचित निर्णय लेने में सूचना अनिवार्य भूमिका निभाती है। अत: सूचना ही एक ऐसा स्रोत है जिसके द्वारा व्यक्तियों को सोच समझ को परिवर्तित किया जा सकता हैं। संप्रेषण प्रक्रिया में सूचना स्रोत से ही मनुष्य के मस्तिष्क में विचारों की उत्पत्ति होती है जो सन्देश के रूप में परिवर्तित होकर अपने गन्तव्य स्थान तक पहुँचता है।

    2. प्रेषक : जिस व्यक्ति द्वारा संदेश को प्रेषित किया जाता है वह संप्रेषण में प्रेषक कहलाता है। शैमन तथा वीवर मॉडल के अनुसार संप्रेषण में प्रेषक की अहम भूमिका होती है जो सूचना स्रोत से विचारों को एकत्रित करके संप्रेषण के माध्यम से संदेश को उनके प्राप्तकर्त्ता तक पहुँचाता है। प्रेषक संदेश को संदेश बद्ध करके भेजता है।

    3. कोलाहल स्रोत : इस मॉडल में कोलाहल या शोर स्रोत को भी महत्त्व दिया गया है। संप्रेषण प्रक्रिया में जिस माध्यम से सन्देश प्रेषित होते हैं उसमें शोरगुल का पाया जाना स्वाभाविक है जिसकी वजह से सन्देश में अशुद्धि भी हो सकती है।

    4. प्रापक : सम्प्रेपण का उद्देश्य सन्देश को किसी अन्य तक पहुँचाना होता है। जिसके पास सन्देश प्रेषित किया जाता है वह सन्देश का प्रापक या प्राप्तकर्त्ता होता है।

    5. लक्ष्य : यह संचार प्रक्रिया की अन्तिम कड़ी है जिसको आधार बनाकर सन्देश देने वाला अपना सन्देश देकर अन्तिम लक्ष्य की प्राप्ति करता है।

    6. सन्देश (Message) : एक ऐसी सूचना जिसे प्रेषक प्राप्तकर्त्ता के पास भेजना चाहता है वह सन्देश कहलाती है।

      2. मर्फी मॉडल 

      इस मॉडल के प्रतिपादक मर्फी, ऐच. डब्ल्यू. हिल्डब्रेन्ड तथा जे. पी. थॉमस हैं। उनके अनुसार संप्रेषण प्रक्रिया के छ: मुख्य तत्त्व होते हैं। इस मॉडल के अनुसार इसमें छ: मुख्य भाग होते हैं :

      1. संदर्भ
      2. सन्देशवाहक
      3. सन्देश
      4. माध्यम
      5. प्राप्तकर्त्ता
      6. प्रतिक्रिया या प्रतिपुष्टि

      संप्रेषण से क्या आशय है इसकी प्रकृति महत्व एवं उद्देश्यों का वर्णन कीजिए? - sampreshan se kya aashay hai isakee prakrti mahatv evan uddeshyon ka varnan keejie?

      निष्कर्ष रूप में ऊपर वर्णित मॉडल में एक संदर्भ के अनुसार प्रेषक एक सन्देश चुनता है तथा इसे प्रेषित करता है। प्रेषक सन्देश को भेजने के लिए किसी माध्यम का चुनाव करता है जिसके द्वारा प्राप्त होने वाले सन्देश पर उसका प्राप्त कर्ता अपनी प्रतिपुष्टि देकर संवहन को पूरा करता है।

      3. थिल एवं बोवी मॉडल 

      “व्यावसायिक संप्रेषण घटनाओं की एक कड़ी है जिसकी पाँच अवस्थाएं हैं जो प्रेषक तथा प्राप्तकर्त्ता को जोड़ती हैं। इस मॉडल के अनुसार सन्देश भेजने वाले के पास कोई विचार होता है जो वास्तविक संसार से सम्बन्धित घटनाओं का सरलीकरण होता है अर्थात् उस विचार को पुष्ट करने में उसने कई चीजों को छोड़ा होता है तथा अधिकतम को मान्यता दी होती है, इससे प्रारम्भ होकर यही विचार सन्देश के रूप में परिवर्तित होकर सन्देश बन जाता है जिसे सन्देश के रूप में प्रेषित करके सन्देश प्राप्तकर्त्ता तक पहुँचा कर उसकी (अर्थात् प्राप्तकर्त्ता की) प्रतिक्रिया ली जाती है।”

      संप्रेषण से क्या आशय है इसकी प्रकृति महत्व एवं उद्देश्यों का वर्णन कीजिए? - sampreshan se kya aashay hai isakee prakrti mahatv evan uddeshyon ka varnan keejie?

      थिल एवं बोवी मॉडल में समाहित घटक हैं :

      1. विचार, 
      2. विचार का सन्देश के रूप में परिवर्तन,
      3. सन्देश का संप्रेषण,
      4. प्राप्तकर्त्ता द्वारा सन्देश प्राप्ति एवं 
      5. प्राप्तकर्त्ता द्वारा प्रतिपुष्टि।

      4. बरलों का संप्रेषण मॉडल 

      डी. के. बरलों द्वारा सात अवस्थाओं वाला संचार प्रक्रिया का संचार मॉडल प्रस्तुत किया गया। इसके अनुसार संचार प्रक्रिया संचार स्रोत से प्रारम्भ होकर प्रतिक्रिया या प्रतिपुष्टि रूपी अन्तिम कड़ी के रूप में समाप्त होती है। इस मॉडल में संप्रेषण प्रक्रिया के सात संघटक बताए गए जो हैं :

      1. संचार स्रोत
      2. सन्देशवद्धता
      3. सन्देश
      4. माध्यम
      5. प्रेषित संवाद का अनुवाद
      6. प्रापक एवं
      7. प्रतिपुष्टि,

      संप्रेषण से क्या आशय है इसकी प्रकृति महत्व एवं उद्देश्यों का वर्णन कीजिए? - sampreshan se kya aashay hai isakee prakrti mahatv evan uddeshyon ka varnan keejie?

      5. लेसिकर, पेटाइट एवं फ्लैटले मॉडल 

      इस मॉडल को संवेदनशीलता मॉडल के रूप में प्रतिपादित किया गया। इसमें संप्रेषण प्रक्रिया सन्देश प्रेषण से प्रारम्भ होकर क्रम की पुन:आवृत्ति (The Cycle Repeated) पर समाप्त होता है। इन विद्वानों ने स्पष्ट किया कि संप्रेषण प्रक्रिया में संवेदन तन्त्र का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है क्योंकि सन्देश प्राप्तकर्त्ता द्वारा सन्देश संवेदन तन्त्र द्वारा प्राप्त किया जाता है। संवेदन तन्त्र संवाद को खोजकर संवाद के साथ-साथ पहले से उपलब्ध कुछ अन्य सूचनाएँ भी एकत्रित करता है। इसमें संवाद को सन्देश माध्यम में उपलब्ध शोर से अलग रखा जाता है ताकि सन्देश में अशुद्धता न हो। यहाँ संवाद को दिया गया अर्थ संवेदन तन्त्र से कुछ प्रतिक्रिया भी प्राप्त कर सकता है जो सन्देश प्रेषक को मौखिक अथवा अमौखिक रूप में भेजी जा सकती है।

      संप्रेषण से क्या आशय है इसकी प्रकृति महत्व एवं उद्देश्यों का वर्णन कीजिए? - sampreshan se kya aashay hai isakee prakrti mahatv evan uddeshyon ka varnan keejie?

      इस मॉडल में मर्सी तथा केविन के बीच सन्देशवाहन को उपर्युक्त विवेचन के आधार पर समझाया गया है जिसमें मर्सी एक सन्देश भेजता है जो केविन द्वारा संवेदन तन्त्र की सहायता से प्राप्त किया जाता है जिसे निस्पंदन प्रक्रिया द्वारा प्राप्त करके उस पर केविन अपनी प्रक्रिया व्यक्त करता है जिसका क्रम दोनों के बीच उस समय तक चलता है जब तक कि केविन और मर्सी के बीच संवाद पूरा नहीं हो जाता। इस प्रक्रिया में निम्न संघटक शामिल रहते हैं :

      1. सन्देश प्रेषण
      2. संवेदन तन्त्र द्वारा संवाद की खोज
      3. निस्पंदन प्रक्रिया
      4. प्रतिक्रिया की रचना एवं प्रेषण
      5. क्रम की पुन: आवृत्ति

      पूर्व वर्णित विभिन्न विद्वानों द्वारा प्रस्तुत किए गए मॉडलों के विश्लेषण के आधार पर निष्कर्ष रूप में संप्रेषण प्रक्रिया को निम्मांकित चित्र द्वारा भलीभाँति स्पष्ट किया जा सकता है :

      उपर्युक्त चित्र से स्पष्ट होता है कि सम्पे्रषण एक गतिशील प्रक्रिया है जिसमें किसी विशेष उद्देश्य या लक्ष्य प्राप्ति से सम्बन्धित क्रियाओं-प्रतिक्रियाओं की एक शृंखला समाहित होती है। अत: संप्रेषण एक द्विमार्गी प्रक्रिया है। यहाँ पर सम्पे्रषक की संप्रेषणक्षमता व प्राप्तकर्त्ता की ग्राह्यक्षमता दोनों ही महत्त्वपूर्ण हैं। सफल संप्रेषण प्रक्रिया के लिये प्रतिपुष्टि (Feedback) की अत्यन्त महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है क्योंकि इसके बिना संप्रेषण प्रक्रिया अधूरी रहती है।

      संप्रेषण प्रक्रिया में श्रोता की भूमिका

      एक सफल संप्रेषण प्रक्रिया में श्रोता की भूमिका अत्यन्त महत्त्वपूर्ण होती है क्योंकि सन्देश प्रेषक को अपने सन्देशों के उद्देश्यों की पूर्ति के लिये श्रोता से ही सम्पर्क स्थापित करना पड़ता है। किसी भी संगठन में पाँच प्रकार के श्रोता पाये जाते हैं :

      1. प्रारम्भिक श्रोता : प्रेषक से सन्देश को सर्वप्रथम प्राप्त करने वाला श्रोता प्रारम्भिक श्रोता होता है। इसी के द्वारा सन्देश दूसरे श्रोताओं की ओर प्रवाहित किया जाता है।

      2. माध्यमिक श्रोता : एक ऐसा श्रोता जो सन्देश को प्राथमिक श्रोता तक पहुँचने से पहले रोके रखने में सक्षम होता है माध्यमिक श्रोता कहलाता है। जैसे किसी अधिकारी का सचिव यह तय करता है कि उसे किस व्यक्ति को अपने अधिकारी से मिलने देना है किसे नहीं बीच में माध्यमिक श्रोता का कार्य करता है।

      3. प्राथमिक श्रोता : प्राथमिक श्रोता द्वारा यह तय किया जाता है कि सन्देश द्वारा दिये गये परामर्शों को स्वीकार करना चाहिये अथवा नहीं। वह सन्देश के आधार पर भी कार्य कर सकता है। इसी श्रोता के पास ही निर्णय लेने की क्षमता होती है तथा सन्देश पे्रषक को अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिये उसके पास ही जाना पड़ता है। 

      4. द्वितीयक श्रोता : द्वितीयक श्रोता वह है जिसे सन्देश पर टिप्पणी करने के लिये कहा जाता है। द्वितीयक श्रोता सन्देश को मान्यता मिलने के बाद उसे प्रभाव में लाता है।

      5. निरीक्षक श्रोता : एक ऐसा श्रोता जिसके पास सभी शक्तियाँ उपलब्ध होती हैं निरीक्षक श्रोता कहलाता है। यह राजनीतिक, सामाजिक व आर्थिक रूप से सबल होता है। यद्यपि निरीक्षक श्रोता सन्देश को राकने की शक्ति नहीं रखता किन्तु वह सीधे तौर पर प्राप्त सन्देश पर कोई कार्यवाही नहीं कर सकता फिर भी वह प्रेषक तथा प्राप्तकर्त्ता के बीच हुए आदान-प्रदान पर पूर्ण ध्यान देता है। वह अपनी भविष्य की कार्यवाही का आधार सन्देश के विश्लेषण को बना सकता है।

        श्रोता विश्लेषण : क्योंकि सन्देश के प्रेषक को संप्रेषण प्रक्रिया के जरिए सन्देश उसके प्राप्त कर्त्ता तक पहुँचाना होता है। अत: विचारों से उत्पन्न सन्देश सही रूप में उसके प्राप्तकर्त्ता तक पुहँचाने के लिए यह आवश्यक है कि वह श्रोताओं का सन्देश प्रेषण से पहले विश्लेषित कर ले ताकि प्राप्तकर्त्ता की प्रतिक्रिया जानने की प्रक्रिया सरल बन सके। उसे यह जानना चाहिए कि सन्देश को प्राप्त करने वाले कौन हैं? संवाद के प्रति उनकी संभावित प्रतिक्रिया क्या हो सकती है? संचार की विषयवस्तु के बारे में वे कितना जानते हैं? सन्देश के प्रेषक से उनका क्या सम्बन्ध हैं?

        विश्लेषण की विधि :

        1. श्रोता किस आकार व प्रकार का है?
        2. प्राथमिक श्रोता कौन है?
        3. श्रोता से प्रतिपुष्टि की क्या संभावना है?
        4. श्रोता किस विवेक स्तर का है?
        5. श्रोता के साथ आपका क्या सम्बन्ध है?

        यदि प्रेषक अपने श्रोता के बारे में पूर्ण जानकारी रखता है, तो उसके द्वारा किया गया श्रोता विश्लेषण शीघ्रता में किया गया विश्लेषण होगा। परन्तु यदि वह श्रोता के बारे में अनभिज्ञ है तथा सन्देश अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है, तो प्रेषक के लिये यह आवश्यक है कि वह श्रोता के विश्लेषण को गंभीरता से ले तथा उसके लिए कुछ समय दें। व्यावहारिकता की दृष्टि से लिखित सन्देश इस प्रकार लिखें कि श्रोता उसको कम समय तथा परिश्रम से समझ सके। यदि सन्देश मौखिक होता तो सर्वप्रथम श्रोताओं को सन्देश की रूपरेखा दें तथा उसके बाद अपने विचारों को स्पष्ट एवं विवेकपूर्ण ढंग से प्रस्तुत करें।

        संप्रेषण प्रक्रिया में सम्प्रेषक हेतु सुझाव

        Harris ने अपनी पुस्तक .Managing People at Work Concepts and Cases in Inter-personal Behaviours. में एक संप्रेषण प्रक्रिया में सम्प्रेषक के लिए सुझाव दिये हैं :

        1. पूर्वाग्रहों व तनावों से मक्ति : एक सम्प्रेषक को अपने मस्तिष्क में उत्पन्न समस्त पूर्वाग्रहों व तनावों से मुक्त होना चाहिए।
        2. वास्तविक आवश्यकता का विश्लेषण : संप्रेषण से पूर्व सम्प्रेषक को संप्रेषण की वास्तविक आवश्यकता का विश्लेषण करना आवश्यक होता है।
        3. प्राप्तकर्त्ता सम्बन्धी जानकारी : एक सम्प्रेषक को सन्देश संचारित करने से पहले सन्देश प्राप्तकर्त्ता सम्बन्धी सभी जानकारियाँ अर्जित कर लेनी चाहिए।
        4. सन्देशग्राही की संवदेनशीलता की जानकारी : एक सम्प्रेषक द्वारा सन्देश को प्रसारित करने के पूर्व, प्राप्तकर्त्ता की एकाग्रता कर लेनी चाहिए अर्थात् इस बात की जानकारी कर लेनी चाहिए कि सन्देश का प्राप्तकर्त्ता सन्देश ग्राह्यता के प्रति कितना संवेदनशील है।
        5. उद्देश्य के अनुरूुरूप संप्रेषण : एक सम्प्रेपक को सन्देश प्राप्तकर्त्ता तक प्रत्यक्षत: व्यावहारिक रूप में अपने उद्देश्य के अनुरूप सम्प्रेषित करना चाहिए।
        6. सन्देश की पुनरावृत्ति : एक सम्प्रेषक द्वारा सन्देश की पुनरावृत्ति करनी चाहिए जिससे सन्देश को वास्तविक अर्थ में समझने में मदद मिलती है।
        7. संकेत सुबोध व सरल हों : सम्पे्रषक द्वारा सन्देश प्रसारित किये जाने में प्रयुक्त किए जाने वाले संकेत सुबोध व सरल हों ताकि उन्हें आसानी से समझा जा सके।
        8. संप्रेषण क्रियाओ एवं विचारों में संगति : सदैव समप्रेषण क्रियाओं एवं सम्प्रेषित विचारों के मध्य संगति हो। 
        9. समय पर सन्देश की पहुँच : एक सम्प्रेषक द्वारा प्रसारित सन्देश समय पर प्राप्तकर्त्ता के पास पहुँच जाना चाहिए। यदि सन्देश प्राप्तकर्त्ता द्वारा अपेक्षित समय पर या आवश्यकता के अनुरूप नहीं पहुँचता तो प्राप्तकर्त्ता के दिमाग में अन्य विचारों के उत्पन्न होने से सन्देश के प्रति विभ्रम पैदा हो जायेगा।

        संचार प्रक्रिया में स्रोत का योगदान

        संचार प्रक्रिया का मूल तत्त्व स्रोत होता है जिसे अन्य शब्दों में प्रेषक (Sender) भी कहा जाता है। व्यक्ति या व्यक्तियों का वह समूह स्रोत कहलाता है, जो श्रोताओं (Audience या Listenners) को कोई सन्देश पहुँचाना चाहता है। स्रोत दो प्रकार होते हैं - प्रत्यक्ष स्रोत (Direct source) (ii) अप्रत्यक्ष स्रोत (Indirect source) एक ऐसा संगठन जो लक्षित श्रोताओं को संदेश देता है प्रत्यक्ष स्रोत कहलाता है जबकि अप्रत्यक्ष स्रोत से आशय उन व्यक्तियों से होता है जिनका चुनाव लक्षित श्रोताओं को संदेश पहुँचाने के लिए किया जाता है जैसे रिलायन्स मोबाइल सम्बन्धी विज्ञापन के लिए विरेन्द्र सुहाग का चुनना अप्रत्यक्ष स्रोत का उदाहरण है। अत: संचार प्रक्रिया में प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष स्रोतों की अहम भूमिका होती है। स्रोत के रूप में सही व्यक्ति का चुनाव किया जाना चाहिए क्योंकि स्रोत या प्रेषक की भेजे जाने वाले संन्देश का मुख्य आधार है। स्रोत या संदेश प्रेषक संचार प्रक्रिया में निम्न कार्य करता है। जिसके आधार पर उसकी भूमिका स्पष्ट होती है :

        1. कुशल स्रोत अपने सन्देश द्वारा उपभोक्ताओं के मस्तिष्क में उत्पाद की आवश्यकता को उत्पन्न करता है।
        2. एक अच्छा स्रोत विज्ञापन की प्रभोत्पादकता उत्पन्न करता है।
        3. एक सुप्रसिद्ध स्रोत अपने लक्षित श्रोता को अपना सन्देश सही अर्थ में समझा सकता है।
        4. कुशल स्रोत संप्रेषण प्रक्रिया को प्रभावकारी बनाता है।
        5. स्रोत ही किसी उत्पाद या ब्राण्ड की छवि बढ़ाता है।
        6. एक अच्छा स्रोत विज्ञापन की विश्वसनीयता बढ़ाता है।
        7. प्रसिद्ध स्रोत संस्था के विक्रय व लाभों में वृद्धि करता है।
        8. एक कुशल स्रोत उपक्रम को प्रतियोगी फर्मों से प्रतियोगिता करने में सक्षम बनाता है।
        9. सुप्रसिद्ध स्रोत श्रोताओं का ध्यानाकर्षण कर संस्था के उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायक बनता है। 

        अत: संप्रेषण प्रक्रिया में सही स्रोत का चुनाव करना चाहिए ताकि संस्था द्वारा प्रसारित सन्देश सही रूप में सही समय पर सही श्रोता तक सही अर्थ में प्रेषित किया जा सके तथा संस्था के उद्देश्यों की प्राप्ति हो सके। सही स्रोत के चुनाव में निम्न बातें ध्यान में रखी जाये :

        1. चुने जाने वाला स्रोत विश्वसनीय हो।
        2. विशेषज्ञों को स्रोत के रूप में चुना जाये।
        3. स्रोत आकर्षक तथा ख्याति प्राप्त हो।
        4. अधिकाधिक प्रचलित स्रोतों का चुनाव न किया जाये।

        संप्रेषण के प्रकार

        1. मौखिक संप्रेषण 
        2. लिखित संप्रेषण 
        3. औपचारिक संप्रेषण 
        4. अनौपचारिक संप्रेषण 
        5. अधोमुखी संप्रेषण
        6. ऊर्ध्वमुखी संप्रेषण
        7. क्षैतिज संप्रेषण

          संप्रेषण क्या है संप्रेषण के उद्देश्य एवं महत्व की व्याख्या कीजिए?

          उचित संदेश प्रदान करना संप्रेषण का प्रमुख उद्देश्य है। संप्रेषण मे उचित सूचना, उचित समय मे उचित व्यक्ति को संप्रेषित करना होता है। इसके लिये सूचना प्रेषणकर्ता को उचित माध्यम का उपयोग करना आवश्यक होता है, जिससे सूचनाग्राही को सूचना प्रेषणकर्ता द्वारा प्रदान की जाने वाली सूचना उचित अर्थ मे प्राप्त हो सके।

          संप्रेषण का क्या महत्व है?

          संप्रेषण में विचारों का आदान-प्रदान होता है। लोग आपस में बातचीत करते हैं और एक-दूसरे की समझ भी विकसित करते हैं। संप्रेषण तब प्रभावी होता है जब प्रेषक और प्रापक विषय की आपसी समझ विकसित करते हैं। संप्रेषण द्वारा विभिन्‍न सूचनाएँ प्रदान कर पक्षकारों के बीच ज्ञान में अभिवद्धवि की जाती है।

          संप्रेषण की प्रकृति क्या है?

          संप्रेषण/संचार की प्रकृति (sampreshan ki prakriti) संप्रेषण के बिना निर्देशन कार्य किया नही किया जा सकता। संप्रेषण के अंतर्गत केवल निर्देश ही नही दिए जाते, वरन् अधीन कर्मचारियों मे विचार-विमर्श भी किया जाता है, उनके सुझाव तथा कठिनाइयों को सूना जाता है। इस तरह यह दोहरी क्रिया है।

          संप्रेषण के उद्देश्य क्या है?

          सम्प्रेषण का उद्देश्य है भावों के आदान-प्रदान द्वारा उत्तेजित भावनाओं को शान्त कर समाज में शान्ति और सन्तुलन बनाये रखना। ऐसे ही समाज में संगठन और ताकत होती है जिसके सदस्य अपने भावों का आपस में आदान प्रदान करते रहते हैं।