पृथ्वी पर स्थलमंडल के विकास को समझाइए - prthvee par sthalamandal ke vikaas ko samajhaie

स्थलमण्डल भूपृष्ठ पर पाए जाने वाले ठोस शैल पदार्थों की परतें हैं। यह जीवमण्डल का महत्त्वपूर्ण भाग है। इसका निर्माण तत्वों, खनिजों, शैलों तथा मिट्टी से हुआ है। तत्व शुद्ध पदार्थ है जिसके अन्तर्गत लोहा, तांबा, निकिल, सोना, चांदी, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, कार्बन आदि आते हैं। खनिजों में बॉक्साइट, डोलोमाइट, हेमेटाइट, फेलस्पार आदि आते हैं। शैलों के रूप में आग्नेय शैल, अवसादी शैल, रूपांतरित शैल तथा मिट्टी के रूप में जलोढ़ , दोमट, लैटेराइट मिट्टी आदि शामिल हैं।

स्थलमण्डल का क्षेत्रफल

स्थलमण्डल सम्पूर्ण पृथ्वी के क्षेत्रफल का 29% है। पृथ्वी के अन्दर तीन मण्डल पाए जाते हैं। ऊपरी मण्डल को भूपर्पटी अथवा क्रस्ट कहा जाता है। इसकी मोटाई 30 से 100 कि.मी. तक होती है। महाद्वीपों में इसकी मोटाई अधिक है जबकि महासागरों में या तो क्रस्ट होती ही नहीं, अगर होती है तो बहुत पतली होती है। क्रस्ट का ऊपरी भाग स्थलमण्डल का प्रतिनिधित्व करता है। जिन पदार्थों से क्रस्ट का निर्माण होता है वे जैव समुदाय के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण हैं। क्रस्ट का निर्माण मुख्यतः लोहा, ऑक्सीजन, सिलिकॉन, मैग्नीशियम, निकिल, गंधक, कैल्शियम तथा ऐलुमिनियम से होता है। क्रस्ट में एल्युमिनियम तथा सिलिका की मात्रा अधिक होती है। क्रस्ट के नीचे के दूसरे मण्डल को मैण्टिल कहा जाता है जिसकी निचली सीमा 2900 किमी से पृथ्वी के केन्द्र तक है।

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      स्थलमंडल का विकास 

पृथ्वी पर स्थलमंडल के विकास को समझाइए - prthvee par sthalamandal ke vikaas ko samajhaie

     पृथ्वी की उत्पत्ति के बाद स्थलमंडल का विकास भी  एक श्रमिक प्रक्रिया के दौरान हुआ  | पृथ्वी के रचना के क्रम में जब पदार्थ   गुरुत्व बल के कारण सघन हो रहे थे | तो इससे  अत्यधिक ऊष्मा  उत्पन्न हुई जिसके कारण पदार्थ पिघलने लगे ऐसा पृथ्वी की उत्पत्ति के दौरान एवं उत्पत्ति के तुरंत  बाद हुई |

 अत्यधिक ताप के कारण पृथ्वी आंशिक रूप से द्रव अवस्था में रह गई | तथा भारी एवं हल्के घनत्व वाले पदार्थ घनत्व में अंतर के कारण अलग होना शुरू हो गया | जिसमें भारी पदार्थ जैसे लोहा  पृथ्वी के केंद्र में एवं हल्के पदार्थ  सतह  के ऊपर आ गए समय के  साथ  पृथ्वी के ठंडी होने की प्रक्रिया में ये  पदार्थ ठोस रूप में परिवर्तित होकर छोटे आकार के हो गए | जिससे  भू - पर्पटी   का विकास हुआ |  कुछ समय बाद पृथ्वी का तापमान पुनः बढ़ा  और फिर कम हुआ जिससे पृथ्वी के पदार्थों का अनेक  परतो में विभेदन हुआ हुआ |  जिसके फलस्वरूप पृथ्वी की सतह से कई परतो जैसे भू -पर्पटी , प्रवार  एवं क्रोड का विकास हुआ |

     वायुमंडल  व जलमंडल का विकास

       वर्तमान वायुमंडल के विकास की अवस्थाएं

(1 )  पहली अवस्था में वायुमंडलीय  गैसों का ह्रास हुआ  इस समय वायुमंडल में हाइड्रोजन एवं हीलियम की अधिकता थी |

( 2 )  दूसरी अवस्था में पृथ्वी के अंदर से निकली भाप  एवं जलवाष्प ने  वायुमंडल के विकास में सहयोग किया |

( 3)  तीसरी एवं अंतिम अवस्था में वायुमंडलीय संरचना को  जैव  मंडल की प्रकाश संश्लेषण  की प्रक्रिया में  संशोधित किया |

        पृथ्वी के ठंडा होने और विभेदन  के दौरान  पृथ्वी के अंदरूनी भाग से बहुत से गैस और जल वाष्प  बाहर निकली  जिससे  वर्तमान वायुमंडल का उद्भव  हुआ | आरंभ में वायुमंडल में जलवाष्प नाइट्रोजन कार्बन डाइऑक्साइड मीथेन अमोनिया  अधिक मात्रा में थी जबकि स्वतंत्र ऑक्सीजन की मात्रा बहुत कम थी |

                           गैस उत्सर्जन  

  वैसी प्रक्रिया जिससे पृथ्वी के भीतरी भाग  से गैस धरातल पर आई उस प्रक्रिया को गैस उत्सर्जन कहा जाता है |  इसमें ज्वालामुखी प्रक्रिया सबसे महत्वपूर्ण है |

 पृथ्वी के ठंडा होने के साथ-साथ जलवाष्प  का संघनन भी शुरू हो गया | वायुमंडल में उपस्थित कार्बन डाइऑक्साइड गैस के वर्षा के पानी में घुलने से तापमान में और अधिक गिरावट आई जिसके परिणाम स्वरूप अधिक संघनन के कारण अत्यधिक वर्षा हुई |

 पृथ्वी के धरातल पर वर्षा का जल गर्तो  में इकट्ठा होने लगा   जिससे महासागर का निर्माण हुआ  | यह प्रक्रिया पृथ्वी की उत्पत्ति से लगभग 50 करोड़ सालों के अंतर्गत हुई | इससे पता चलता है कि महासागर 400 करोड़  वर्ष पुराने हैं | एवं 380 करोड़  वर्ष पहले जीवन का  प्रारंभ हुआ | पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति के लिए मूलतः कार्बन हाइड्रोजन तथा नाइट्रोजन जैसे तत्व प्रमुख रूप से उत्तरदायी थे |

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पृथ्वी पर स्थलमंडल के विकास को समझाइए - prthvee par sthalamandal ke vikaas ko samajhaie


                       जीवन की उत्पत्ति

 पृथ्वी की उत्पत्ति का अंतिम चरण जीवन की उत्पत्ति व विकास से संबंधित है | नि:संदेह प्रारंभिक वायुमंडल जीवन के विकास के लिए अनुकूल नहीं था | आधुनिक वैज्ञानिक जीवन की उत्पत्ति को एक तरफ से रासायनिक प्रतिक्रिया बताते हैं | जिसमें सर्वप्रथम जटिल जैव अणु बने और उनका समुहन हुआ |और यह समूहन  ऐसा था जो पुनः   बनने में सक्षम था | और निर्जीव पदार्थों को जीवित तत्व में परिवर्तित   कर सकता था | हमारे ग्रह पर जीवन के चिन्ह हम  भिन्न भिन्न काल   की चट्टानों में जीवाश्म के रूप में देख सकते हैं | 300 करोड़ वर्ष पुरानी भूगर्भिक  शैलो में पाई जाने वाली सूक्ष्मदर्शी संरचना आज की   शैवाल की संरचना में देखी जा सकती है | 

           भूवैज्ञानिक काल मापक्रम  

 महाकल्प          कल्प           युग            जीवन / मूख्य घटनाएँ

नुतन कल्प    चतुर्थ कल्प    अभिनव        आधुनिक मानव  ,                                                  अत्यंत नुुतन      आदिमानव का विकास                                

सेनोजोइक    तृतीये कल्प 

पृथ्वी पर स्थलमंडल का विकास कैसे हुआ?

स्थलमंडल का विकास हल्के पदार्थों और सघन पदार्थों के पृथक्करण को विभेदन की प्रक्रिया कहा जाता है। पृथ्वी की परत के निर्माण और विभेदीकरण की प्रक्रिया दो चरणों में हुई: प्रारंभिक अवस्था में, पृथ्वी के अंदर घनत्व में क्रमिक वृद्धि से तापमान में वृद्धि होती है।

स्थलमंडल क्या है समझाइए?

स्थलमंडल या स्थलमण्डल (अंग्रेज़ी: lithosphere) भूगोल और भूविज्ञान में किसी पथरीले ग्रह या प्राकृतिक उपग्रह की सबसे ऊपरी पथरीली या चट्टान निर्मित परत को कहते हैं। पृथ्वी पर इसमें भूपटल (क्रस्ट) और भूप्रावार (मैन्टल) की सबसे ऊपर की परत शामिल हैं जो कई टुकड़ों में विभक्त है और इन टुकड़ों को प्लेट कहा जाता है।

स्थलमंडल को कितने भागों में बांटा गया है?

(1) पृथ्वी के अन्दर के हिस्से को तीन भागों में बांटा गया है. (2) पृथ्वी के अन्दर के तीन हिस्से हैं ऊपरी सतह या भू पर्पटी( Crust), आवरण(Mantle) और केंद्रीय भाग(Core). (3) भू पर्पटी- पृथ्वी के ऊपरी भाग को भू-पर्पटी कहते है. (4) यह अन्दर की तरफ 34 किमी तक का क्षेत्र है.

स्थलमंडल पृथ्वी की कौन सी परत है?

क्रस्ट और मेंटल के ऊपर वाले भाग को स्थलमंडल कहा जाता है। इसकी मोटाई 10-200 किमी तक है। स्थलमंडल पृथ्वी का ठोस, बाहरी भाग है। स्थलमंडल में मेंटल का भंगुर ऊपरी भाग और पृथ्वी की संरचना की सबसे बाहरी परत क्रस्ट शामिल हैं।