पूर्ण प्रतियोगिता में फर्म का साम्य - poorn pratiyogita mein pharm ka saamy

प्रश्न 48 : पूर्ण प्रतियोगिता में फर्म के साम्य या मूल्य निर्धारण का वर्णन कीजिये।

उत्तर - पूर्ण प्रतियोगिता में फर्म का साम्य

फर्म के साम्य का अर्थ- एक फर्म उस समय साम्य की स्थिति में होती है, जब

(1) उसे उत्पादन में परिवर्तन करने के लिए कोई प्रेरणा नहीं होती है, तथा

2) फर्म को उत्पादन की उस मात्रा पर अधिकतम लाभ प्राप्त हो रहा हो । किसी फर्म के साम्य को ज्ञात करने की दो विधियाँ हैं- (i) कुल आगम तथा कुल लागत विधि, एवं (ii) सीमांत आंगत तथा सीमाँत लागत विधि । अब हम दोनों विधियों का अध्ययन कर सकते हैं।

I. कुल आगम तथा कुल लागत विधि -

कुल आगम तथा कुल लागत विधि के अनुसार एक फर्म उस समय साम्य की स्थिति में होती है जब निम्नलिखित दो शर्ते पूरी हों

(अ) साम्य उत्पादन स्तर पर कुल आगम तथा कुल लागत के मध्य दूरी अधिकतम हो। ऐसा तब होता है जब कुल आगम तथा कुल लागत में परिवर्तन की दर । समान हो; तथा

(ब) साम्य उत्पादन स्तर पर कुल आगम कुल लागत से अधिक हो अथवा बराबर हो ।

कुल आगम कुल लागत विधि से फर्म को रेखाचित्र से स्पष्ट किया जा सकता है। रेखाचित्र में TR फर्म का कुल आगम वक्र है जो उत्पादन के साथ-साथ समान दर से बढ़ता जा रहा है। TC कुल लागत वक्र है। यह शून्य उत्पादन पर भी OG है, क्योंकि शून्य उत्पादन पर भी फर्म को कुल स्थायी लागत (TFC) का भुगतान करना पड़ता है । जैसे-जैसे उत्पादन बढ़ता जाता है, वैसे-वैसे कुल लागत (TC) बढ़ती गयी है । कुल लागत में वृद्धि उत्पादन नियमों के अनुसार होती है। यह प्रारंभ में उत्पादन वृद्धि नियम की क्रियाशीलता के कारण धीमी गति से बढ़ती है तथा उत्पादन के अनुकूलतम आकार के बाद उत्पत्ति ह्रास नियम की क्रियाशीलता के कारण तेजी से बढ़ने लगती है।

पूर्ण प्रतियोगिता में फर्म का साम्य - poorn pratiyogita mein pharm ka saamy

रेखाचित्र को देखने से ज्ञात होता है कि फर्म को OM2 से कम तथा OM3 से अधिक उत्पादन करने पर हानि होती है, क्योंकि OM2 उत्पादन से पूर्व तथा OM3 उत्पादन के बाद में फर्म का कुल आगम फर्म की कुल लागत से कम है। उत्पादन की OM2 मात्रा तथा उत्पादन की OM3 मात्रा पर फर्म समविच्छेद बिन्दुओं की स्थिति में है, अर्थात् इन A तथा B समविच्छेद बिन्दुओं पर फर्म को न तो लाभ होता है, न ही हानि । फर्म के कुल आगम तथा कुल लागत में अधिकतम दूरी OM उत्पादन स्तर तथा OM1 उत्पादन स्तर पर है; इन्हीं बिन्दुओं पर कुल आगम तथा कुल लागत का ढाल समान है। परंतु फर्म का साम्य OM1 उत्पादन पर न होकर OM उत्पादन पर होगा, क्योंकि OM1 उत्पादन पर कुल आगम कुल लागत से अधिक अथवा बराबर नहीं है बल्कि कम है, जबकि OM उत्पादन स्तर पर कुल आगम कुल लागत से EF के बराबर अधिक है। अतः फर्म OM उत्पादन पर साम्य की स्थिति में होगी तथा अधिकतम लाभ कमायेगी । OM1 उत्पादन स्तर पर फर्म को अधिकतम हानि होती है, अतः OM1 उत्पादन स्तर पर फर्म का साम्य नहीं हो सकता है।

II. सीमाँत आगम तथा सीमाँत लागत विधि -

सीमाँत आगम तथा लागत विधि के अनुसार भी फर्म के साम्य की व्याख्या की जा सकती है। इस विधि के अनुसार फर्म उस समय साम्य की अवस्था में होगी जब निम्न दो शर्ते पूरी हों -

(i) फर्म उस बिन्दु पर साम्य की स्थिति में होगी जहाँ फर्म की सीमाँत आगम तथा सीमाँत लागत दोनों एक-दूसरे के बराबर हों; तथा

(ii) साम्य बिन्दु पर फर्म का सीमांत लागत वक्र सीमांत आगम वक्र को नीचे की ओर से काटता हुआ हो।

फर्म के साम्य को सीमाँत आगम तथा सीमाँत लागत वक्रों की विधि से रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है । इस रेखाचित्र में PL वक्र फर्म का औसत आगम (AR) एवं सीमाँत आगम (MR) वक्र है । MC वक्र फर्म का सीमाँत लागत वक्र है । रेखाचित्र में फर्म का सीमाँत लागत वक्र (MC) फर्म के सीमॉत आगम वक्र PL को F तथा E बिन्दुओं पर काटता हुआ है, अर्थात् फर्म का सीमॉत आगम (MR) तथा फर्म की सीमांत लागत (MC) F तथा E बिन्दुओं पर एक-दूसरे के बराबर हैं। फर्म का साम्य F बिन्दु पर न होकर E बिन्दु पर होगा, क्योंकि F बिन्दु पर सीमाँत लागत एवं सीमाँत आगम एक-दूसरे के बराबर तो हैं, परंतु यहाँ सीमाँत लागत वक्र (MC) फर्म के सीमाँत आगम वक्र (MR) को ऊपर से काटता है।

पूर्ण प्रतियोगिता में फर्म का साम्य - poorn pratiyogita mein pharm ka saamy

अत: उत्पादन बढ़ाने पर सीमाँत लागत घटेगी जिससे उत्पादन बढ़ाने पर फर्म को लाभ होगा । फर्म उत्पादन बढ़ाती जायेगी तथा E बिन्दु पर साम्य की स्थिति में होगी। इस बिन्दु पर फर्म का सीमाँत लागत वक्र (MC) फर्म के सीमाँत आगम वक्र (MR) को नीचे से काटता है। इस बिन्दु पर फर्म को अधिकतम लाभ होता है। इसके बाद भी यदि फर्म उत्पादन बढ़ाती हैं तो फर्म की सीमाँत लागत फर्म की सीमाँत आगम से अधिक होगी, अतः फर्म को हानि होगी । अतः E फर्म का साम्य बिन्दु है, जिस पर फर्म OM1 मात्रा में वस्तु का उत्पादन करेगी।

Solution :  पूर्ण प्रतियोगिता-पूर्ण प्रतियोगिता बाजार की वह स्थिति है जिसमें किसी वस्तु के बहुत से क्रेता तथा विक्रेता होते हैं। विक्रेता समरूप वस्तु को एक समान कीमत पर बेचते हैं, कीमत फर्म पर निर्धारित नहीं की जाती बल्कि उद्योग द्वारा निर्धारित होती है। <br> पूर्ण प्रतियोगिता में फर्म के संतुलन की शर्त- अल्पकाल समय की वह अवधि है जिसमें केवल परिवर्तनशील संसाधनों का अधिक उपयोग करके उत्पादन में वृद्धि की जा सकती है तथा स्थिर साधन स्थिर ही बने रहते हैं, स्थिर साधनों में इसलिए परिवर्तन नहीं हो पाता क्योंकि समय की अवधि इतनी कम होती है कि उनमें परिवर्तन करना संभव नहीं है। एक पूर्ण प्रतियोगी फर्म संतुलन की अवस्था में उस बिन्दु पर पहुँचती है जहाँ सीमांत लागत बढ़ती हुई स्थिति में कीमत रेखा को काटती है। पूर्ण प्रतियोगी फर्म की साम्य अवस्था को नीचे चित्र की सहायता से समझाया जा सकता है - <br> कुल आगम = कीमत रेखा के अंतर्गत क्षेत्रफल = क्षेत्रफल OPEQ <br> कुल लागत = सीमांत लागत वक्र के अंतर्गत क्षेत्रफल <br> = OSREQ का क्षेत्रफल <br> कुल लाभ = कुल आगम-कुल लागत <br> =OPEQ का क्षेत्रफल - OSREQ का क्षेत्रफल <br> = SPER का क्षेत्रफल <br> <img src="https://d10lpgp6xz60nq.cloudfront.net/physics_images/UNQ_HIN_10Y_QB_ECO_XII_QP_E02_016_S01.png" width="80%"> <br> उत्पादन स्तर OQ पर फर्म को अधिकतम लाभ मिलेगा। इसके अतिरिक्त अन्य किसी भी उत्पादन स्तर पर कुल लाभ बिन्दु E पर लाभ की तुलना में कम होगा। अतः फर्म का संतुलन बिन्दु वहाँ स्थापित होता है जहाँ सीमांत लागत वक्र का ऊपर उठता हुआ भाग कीमत रेखा को काटता है

फर्म के साम्य क्या है?

इस प्रकार फर्म के साम्य से आशय उस स्थिति से है जिसमें फर्म का उत्पादन स्थिर रहता है अर्थात साम्यावस्था में फर्म उत्पादन की उस मात्रा पर पाई जाएगी जिस पर उसे अधिकतम लाभ या अधिकतम शुद्ध आय होती है।

फर्म के साम्य की प्रथम शर्त क्या है?

(1) फर्म के साम्य के लिए पहली शर्त यह है कि सीमान्त आगम (MR) सीमान्त लागत (MC) के बराबर होना चाहिए। फर्म उसी स्थिति में अधिकतम लाभ प्राप्त करेंगी जब MR तथा MC बराबर होते हैं।

पूर्ण प्रतियोगिता में फर्म का संतुलन कब होता है?

पूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत फर्म का दीर्घकालीन साम्य दीर्घकालीन समय की वह अवधि होती है, जिसमें उत्पादक के पास इतना समय होता है कि वह माँग के अनुसार पूर्ति का समायोजन कर सके अर्थात माँग बढ़ने पर वह वस्तु की पूर्ति बढ़ा सकता है तथा माँग कम होने पर वह वस्तु की पूर्ति घटा सकता है।

पूर्ण प्रतियोगिता में फर्म की संख्या कितनी होती है?

पूर्ण प्रतियोगिता में फर्म कीमत - स्वीकारक होती है, कीमत-निर्धारक नहीं, क्यों? एकाधिकार बाजार की एक ऐसी संरचना है, जिसमें एक अकेला विक्रेता होता है, फर्मों द्वारा उत्पादित वस्तु का कोई स्थानापन्न नहीं होता तथा प्रवेश पर प्रतिबंध होते हैं। . अकेला विक्रेता : एकाधिकार में वस्तु का उत्पादन करने वाली केवल एक फर्म होती है।