विषयसूची प्रकृति में आए असंतुलन का क्या दुष्परिणाम हुआ अब कहाँ दूसरों के दुख से दुखी होने वाले पाठ के आधार पर उत्तर लिखिए?इसे सुनेंरोकेंप्रकृति में आए असंतुलन का क्या परिणाम हुआ? प्रकृति में आए असंतुलन का दुष्परिणाम यह हुआ कि मौसम अनिश्चित हो गया। अब गरमी में ज्यादा गरमी पड़ने लगी है, बेवक्त की बरसातें होने लगी हैं, तूफ़ान, भूकंप, बाढ़, नए-नए रोगों का प्रकोप बढ़ चला है। बाढ़ का रूप देखने के लिए लेखक उत्सुक क्यों था?इसे सुनेंरोकेंबाढ़ की सही जानकारी लेने और बाढ़ का रूप देखने के लिए लेखक क्यों उत्सुक था? उत्तर:- मनुष्य होने के नाते लेखक भी जिज्ञासु थे। उन्होंने बाढ़ के कहर को कभी भोगा नहीं था हाँ, वे बाढ़ पर लेख, कहानी, रिपोर्ताज आदि अवश्य लिख चूके थे परन्तु किसी नगर में,विशेषकर अपने नगर में पानी किस प्रकार घुसेगा यह जानना बिल्कुल नया अनुभव था । बड़े भाई साहब छोटे भाई से हर समय पहला सवाल क्या पूछते थे? इसे सुनेंरोकेंबड़े भाई छोटे भाई से हर समय यह सवाल पूछते है की, “तुम कहाँ पर थे”। पानी बरसने से पहले क्या थी?इसे सुनेंरोकें(ख) बादल है किसके काका। (ग) बरसने लगा क्यों यह पानी। (घ) किसने फोड़ घड़े बादल के की है इतनी शैतानी। (ङ) किसको डाँट रहे हैं किसने कहना नहीं सुना माँ का। प्रकृति में आये असंतुलन के क्या परिणाम हैं?इसे सुनेंरोकेंप्रकृति में आए असंतुलन का परिणाम भूकंप, अधिक गर्मी, वक्त बेवक्त की बारिश, अतिवृष्टि, साइकलोन आदि और अनेक बिमारियाँ हैं। प्रकृति से भयभीत होकर बंबई निवासी क्या करने लगे? इसे सुनेंरोकेंनेचर के गुस्से का एक नमूना कुछ साल पहले बंबई में देखने को मिला था। उपर्युक्त पंक्तियों का आशय यह है कि हर एक की अपनी सहनशक्ति की सीमा होती है फिर चाहे वह प्रकृति हो या इंसान। प्रकृति के साथ मनुष्य खिलवाड़ करता रहा है परन्तु प्रकृति की भी एक हद तक सहन करने की शक्ति होती है। मृत्यु का तरल इत किसे कहा गया है और क्यों?इसे सुनेंरोकेंबाढ़ के निरंतर बढ़ते हुए जल-स्तर को ‘मृत्यु का तरल दूत’ कहा गया है। बाढ़ के इस आगे बढ़ते हुए जल ने न जाने कितने प्राणियों को उजाड़ दिया था, बहा दिया था और बेघर करके मौत की नींद सुला दिया था। इस तरल जल के कारण लोगों को मरना पड़ा, इसलिए इसे मृत्यु का तरल दूत कहना बिल्कुल सही है। बाढ़ पीड़ित क्षेत्र में कौन कौन सी बीमारियों के फैलने की आशंका रहती?इसे सुनेंरोकेंबाढ़ के बाद हैजा, मलेरिया, टाइफाइड आदि बीमारियों के फैलने की संभावना रहती है क्योंकि बाढ़ के उतरे पानी में मच्छर अत्यधिक मात्रा में पनपते हैं जिसके कारण मलेरिया जैसी बीमारी हो जाती है। पानी की कमी से लोगो को गंदा पानी पीना पड़ता है जो हैजा और टाइफाइड जैसी बीमारियों को न्यौता देता है। भाई साहब लेखक से पहला सवाल क्या पूछते थे? इसे सुनेंरोकें2. फिर भी जैसे मौत और विपत्ति के बीच भी आदमी मोह और माया के बंधन में जकड़ा रहता है, मैं फटकार और घुडकियाँ खाकर भी खेल-कूद का तिरस्कार न कर सकता था। बड़े भाई साहब का विचार था कि यदि मकान की नीव ही कमज़ोर हो तो उसपर मंजिले खड़ी नहीं हो सकती हैं यानी अगर पढाई का शरुआती आधार ठोस नही हो तो आदमी आगे चलकर कुछ नही कर पाता। भाई साहब का पहला सवाल क्या होता था *?इसे सुनेंरोकेंबड़े भाई साहब छोटे भाई को खेलकूद से मना करते थे और पढ़ने के लिए डरते थे इसी कारण छोटा भाई कक्षा में अव्वल आता था । काका किसी को ज़ोर ज़ोर से डांट रहे है इन पंक्तियों से बारिश के बारे मे क्या पता चलता है?इसे सुनेंरोकेंउत्तर:- ऐसा लगता है कि सूरज बादलों के पीछे छिप गया है। 2. काका किसी को ज़ोर-ज़ोर से डांट रहे हैं। उत्तर:- ऐसा लगता है कि जोर-जोर से बादल गरज रहे हैं। प्रकृति में आए असंतुलन का यह परिणाम हुआ है कि प्राकृतिक आपदाओं का प्रकोप बढ़ने लगा है। प्रकृति के असंतुलन के कारण अब गर्मी बहुत अधिक पड़ने लगी है तथा सर्दी भी अधिक पड़ने लगी है। बरसात का समय भी अनिश्चित हो गया है और समय-बेसमय बरसात होने लगी है, जिससे जनधन और फसलों को नुकसान पहुंचता है। प्रकृति में असंतुलन के कारण समुद्री तूफानों की तीव्रता बढ़ने लगी है और जब-तब आँधी तूफान आने लगे हैंं। प्रकृति में आए असंतुलन के कारण सूखा एवं बाढ़ जैसी समस्याओं का भी सामना करना पड़ रहा है और इसके साथ ही तरह-तरह के नए लोग भी पैदा हो रहे हैं, जो मानव के स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहे हैं। पाठ के बारे में : प्रस्तुत पाठ ‘अब कहाँ दूसरों के दुख से दुखी होने वाले’ निदा फ़ाज़ली द्वारा लिखा गया एक विचारोत्तेजक निबंध है। इस पाठ के माध्यम से लेखक ने मनुष्य की स्वार्थी प्रवृत्ति पर कटाक्ष किए हैं। लेखक के अनुसार इस धरती पर प्रकृति ने सभी प्राणियों के लिए जीने का अधिकार और सुविधा दी है, लेकिन मनुष्य नाम के स्वार्थी प्राणी ने पूरी धरती को केवल अपनी ही जागीर समझ लिया है। उसने अन्य प्राणियों जैसे पशु-पक्षी, कीड़े-मकोड़े, जीव-जंतु आदि को दर-दर भटकने के लिए विवश कर दिया है और उनके जीवन जीने के अधिकार छीन लिए। इसी कारण जीवों की नस्ल खत्म हो चुकी है, यह बहुत तेजी खत्म होने के कगार पर है। मनुष्य को दूसरों के दुख की कोई चिंता नहीं है। वह केवल अपनी स्वार्थी प्रवृत्ति में ही मग्न रहता है। निदा फ़ाज़ली उर्दू के प्रसिद्ध साहित्यकार कवि रहे हैं। जिन्होंने आम बोलचाल की भाषा में शेरो शायरी लिखकर और उर्दू कविता लिखकर पाठकों के मन को छुआ है उनसे उनका जन्म 12 अक्टूबर 1938 को दिल्ली में हुआ था। उनकी पहली पुस्तक ‘लफ्जों का पुल’ थी। उन्हें ‘खोया हुआ था कुछ’ नामक रचना के लिए 1999 का साहित्य अकादमी पुरस्कार भी मिला। अपनी गद्य रचनाओं में शेरो शायरी को पिरोकर वे थोड़े में नहीं बहुत बहुत कुछ कह जाते हैं। निदा फ़ाज़ली ने फिल्मों के लिए अनेक गीत-ग़ज़ल और शेरो-शायरी लिखी हैं। वह हिंदी फिल्मों से गहराई जुड़े रहे हैं। निदा फ़ाज़ली का निधन 8 फरवरी 2016 को हुआ। संदर्भ पाठ : “अब कहाँ दूसरों के दुख से दुखी होने वाले”, लेखक – निदा फ़ाज़ली (कक्षा – 10, पाठ – 15, हिंदी, स्पर्श भाग 2) पाठ के अन्य प्रश्न लेखक की माँ किस समय पेड़ों के पत्ते तोड़ने के लिए मना करती थीं और क्यों? अरब में लशकर को नूह के नाम से क्यों याद करते हैं? हमारी सहयोगी वेबसाइटें..
प्रकृति में असंतुलन का क्या परिणाम होता है?प्रकृति में आए असंतुलन का कारण निरंतर पेड़ों का कटना,समुद्र को बाँधना,प्रदूषण और बारूद की विनाश लीला है। जिसके कारण भूकंप,अधिक गर्मी,वक्त-बेवक्त की बारिश,अतिदृष्टी,साइकलोन आदि और अनेक बिमारियाँ प्रकृति में आए असंतुलन का परिणाम है।
मानव और प्रकृति के संतुलन का क्या परिणाम सामने आया?प्रकृति में आए असंतुलन का बहुत ही भयानक परिणाम हुआ। इससे मौसम चक्न अव्यवस्थित हो गया। अब गर्मी में बहुत अधिक गर्मी पड़ने लगी, बेवक्त की बरसातें होने लगी, जलजले, सैलाब तथा तूफान आकर हाहाकार मचाने लगे तथा नित्य नई-नई बीमारियाँ धरती पर बढ़ने लगी। समुद्र के तट पर मानवों ने अपनी बस्ती बसा ली है।
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