पाकिस्तान ने परमाणु परीक्षण कब किया था? - paakistaan ne paramaanu pareekshan kab kiya tha?

पाकिस्तान का परमाणु कार्यक्रम बंद कराने के लिए जब अमेरिका ने डाला था दबाव

  • वक़ार मुस्तफ़ा
  • पत्रकार और रिसर्चर

5 फ़रवरी 2022

पाकिस्तान ने परमाणु परीक्षण कब किया था? - paakistaan ne paramaanu pareekshan kab kiya tha?

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"अगर मैं पाकिस्तान का प्रधानमंत्री होता, तो मैं वही करता जो (ज़ुल्फ़िकार अली) भुट्टो कर रहे हैं."

अमेरिकी विदेश मंत्री हेनरी किसिंजर ने एक बैठक में ये बात भारतीय विदेश मंत्री यशवंत राव चव्हाण से उसी दबाव के मद्देनज़र कही थी, जो अमेरिका भारत के परमाणु परीक्षण के बाद पाकिस्तान पर परमाणु हथियार न बनाने के लिए बना रहा था.

इस बातचीत का पता उस ख़ुफ़िया दस्तावेज़ से चलता है जो अमेरिकी विदेश नीति से संबंधित जारी किए जाने वाले हज़ारों दस्तावेज़ों में से एक है.

न्यूयॉर्क में 8 अक्टूबर 1976 की सुबह को होने वाली इस बैठक में, किसिंजर ने आगे कहा, कि "अजीब बात यह है कि पाकिस्तान पारंपरिक हथियारों का संतुलन नहीं बना सकता.... अगर उन्हें 10-15 परमाणु हथियार मिल जाएं, तो इससे भारत और पाकिस्तान में बराबरी हो जाएगी."

"आपके परमाणु शक्ति संपन्न होने ने एक ऐसी स्थिति पैदा कर दी है, जिसमें एक बार फिर, ऐसी समानता संभव है, जो पारंपरिक हथियारों से संभव नहीं थी."

लेकिन ये सब मानने के बावजूद परमाणु हथियार हासिल करने के मामले में पाकिस्तान के प्रति अमेरिका का रवैया सख़्त रहा है.

किसिंजर ने भारतीय विदेश मंत्री से कहा, "हम कोशिश कर रहे हैं कि वो (पाकिस्तान) इस विचार को छोड़ दे. मैंने पाकिस्तान से कहा है कि अगर वे अपना परमाणु कार्यक्रम छोड़ने को तैयार हैं, तो हम उनके पारंपरिक हथियारों की आपूर्ति बढ़ा देंगे."

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परमाणु हथियारों क रेस

आधी सदी तक चलने वाली परमाणु हथियारों की दौड़

भारत और पाकिस्तान की परमाणु दौड़ लगभग 50 सालों तक चली. इस आधी सदी से संबंधित जारी किए गए हज़ारों अमेरिकी दस्तावेज़ों से पता चलता है कि परमाणु हथियार हासिल करने की यात्रा में, वॉशिंगटन का भारत के लिए हमेशा एक नरम रुख़ रहा है, लेकिन पाकिस्तान के लिए, दबाव, सहायता पर रोक लगाना और कई तरह के प्रतिबंध लगाने वाले क़दम उठाए गए.

सरकार भुट्टो की हो या उनका तख़्ता पलट कर सत्ता में आने वाले जनरल ज़िया-उल-हक़ की, इन समस्याओं से तभी छुटकारा मिला जब अमेरिका को पाकिस्तान की ज़रूरत पड़ी.

भारत ने साल 1956 में कनाडा की मदद से अपना पहला रिसर्च रिएक्टर बनाया और साल 1964 में पहला प्लूटोनियम रिप्रोसेसिंग प्लांट बनाया. जबकि पाकिस्तान ने साल 1956 में एटॉमिक एनर्जी कमीशन इसलिए बनाया ताकि वो आइज़नहावर प्रशासन की तरफ़ से घोषित किए गए 'एटम फ़ॉर पीस' कार्यक्रम में भाग ले सके.

साल 1960 में, जब अयूब ख़ान की कैबिनेट में ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो खनिज और प्राकृतिक संसाधन मंत्री बने, तो डॉक्टर इशरत एच उस्मानी को एटॉमिक एनर्जी कमीशन का अध्यक्ष नियुक्त किया गया.

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ज़ु्ल्फिकार अली भुट्टो

उस्मानी ने कई महत्वपूर्ण कार्यक्रमों की शुरुआत की और संस्थानों की स्थापना की. उनका एक मुख्य कार्य ट्रेनिंग प्रोग्राम था जिसके तहत प्रतिभाशाली युवाओं को चुन कर ट्रेनिंग के लिए विदेश भेजा गया.

साल 1965 के मध्य में, भुट्टो ने भारत की परमाणु क्षमता की बराबरी करने का संकल्प कुछ इस तरह लिया, कि "अगर भारत बम बनाता है, तो हम घास या पत्ते खा लेंगे, भूखे भी सो जाएंगे, लेकिन हमें अपना बम बनाना होगा. हमारे पास कोई दूसरा रास्ता नहीं है."

लेकिन फिर उसी साल पाकिस्तान को हथियारों की आपूर्ति पर प्रतिबंध लगाने के बाद, राष्ट्रपति लिंडन जॉनसन ने भारत-पाकिस्तान युद्ध के मद्देनजर पाकिस्तान को दी जाने वाली अमेरिकी सैन्य सहायता भी बंद कर दी.

अगले 16 सालों में, यानी 1982 तक, पाकिस्तान को अमेरिका की तरफ़ से बहुत कम मदद मिली.

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पाकिस्तान में गैस की किल्लत से आम लोग बेहाल

भारत की स्थिति

9 सितंबर, 1965 को, अमेरिकी विदेश सचिव डैन रस्क ने राष्ट्रपति जॉनसन को एक ज्ञापन भेजा जिसमें कहा गया था कि "पाकिस्तान और भारत के संबंधों में कड़वाहट है, इस लिए दोनों देशों के साथ अच्छे संबंध बनाए रखना बेहद मुश्किल है."

"अगर हमें इनमें से किसी एक का चुनाव करना हो, तो भारत अपनी बड़ी आबादी, औद्योगिक आधार, लोकतंत्र और अन्य क्षमताओं के कारण बेहतर रहेगा. हालांकि, हम कभी भी भारत या पाकिस्तान के नीतिगत लक्ष्यों का पूरा समर्थन नहीं कर सकते."

भुट्टो ने साल 1969 में प्रकाशित अपनी किताब 'द मिथ ऑफ़ इंडिपेंडेंस' में लिखा है कि पाकिस्तान के लिए परमाणु हथियार हासिल करना ज़रूरी है.

भुट्टो पूर्वी पाकिस्तान के बांग्लादेश बनने के तीन दिन बाद, यानी 20 दिसंबर 1971 को राष्ट्रपति बने.

परमाणु विषयो पर लिखने वाले केरी सुब्लेट के अनुसार, 24 जनवरी, 1972 को, राष्ट्रपति ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो ने मुल्तान में प्रमुख वैज्ञानिकों की एक ख़ुफ़िया बैठक में पाकिस्तान के परमाणु हथियार हासिल करने की बात को बार बार दोहराया.

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हेनरी किसिंजर

भारत का परमाणु परीक्षण

भुट्टो ने वैज्ञानिकों को संबोधित करते हुए, परमाणु हथियारों के बारे में अपने विचारों की एक झलक पेश की.

इसी बीच, अमेरिकी दस्तावेज़ों के अनुसार, भारत में अमेरिकी दूतावास ने 21 जनवरी, 1972 को अमेरिकी विदेश विभाग को सूचित किया कि अमेरिकी सरकार या अंतर्राष्ट्रीय समुदाय इस समय परमाणु क्षेत्र में भारत की नीति की दिशा को प्रभावित नहीं कर सकते.

3 अगस्त 1972 को अमेरिकी इंटेलिजेंस के एक दस्तावेज़ के अनुसार, "इस बात की संभावना है कि भारत एक परीक्षण करेगा और इसे शांतिपूर्ण विस्फ़ोट कहेगा."

4 अक्टूबर 1973 के एक विश्लेषण में लिखा गया है, कि "अगर भारत चाहे तो मौजूदा प्लूटोनियम भंडार का उपयोग करके एक दर्जन या उससे अधिक अतिरिक्त परमाणु हथियार बना सकता है... भारत परमाणु क्लब में दाख़िल होने को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अधिक प्रभावशाली क़दम जमाने के साधन के रूप में देखेगा."

और आख़िरकार 18 मई 1974 को भारत ने परमाणु परीक्षण कर दिया.

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रफ़ाल लड़ाकू विमान में फिट के लिए हैमर मिसाइल का सौदा

23 मई, 1974 के एक ज्ञापन के अनुसार, पाकिस्तान के रक्षा और विदेश मंत्री अज़ीज़ अहमद ने राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन से मुलाक़ात की जिसमें भारतीय परमाणु परीक्षण पर चर्चा की गई.

इस ज्ञापन के कुछ बिंदुओं से ज़ाहिर होता है कि ये बैठक नाकाम रही.

"अज़ीज़ अहमद: (भारतीय प्रधानमंत्री) श्रीमती (इंदिरा) गांधी कहती हैं कि यह 'शांतिपूर्ण' है. हमें लगता है कि सोवियत संघ उन्हें परमाणु हथियार बनाने में सक्षम बनाएगा. हम चिंतित हैं. हम शांति के लिए काम करने की कोशिश कर रहे हैं. आप बहुत दयालु रहे हैं."

"राष्ट्रपति: हमें भारतीय परमाणु हथियारों के निहितार्थों की एक समीक्षा के साथ शुरुआत करनी चाहिए... आपको भी एक समीक्षा करनी चाहिए. हम आपको अपनी समीक्षा की जानकारी देते रहेंगे. मैं चिंतित हूं. हम ऐसे वादे नहीं करना चाहते जो हम निभा न सकें."

शिमला समझौता

विस्फ़ोट के निहितार्थों पर, 18 मई को किसिंजर ने एक इंटर-एजेंसी वर्किंग ग्रुप पेपर तैयार करने को कहा, जिसका सार ये था कि "यह हमारे (परमाणु हथियारों के) प्रसार को रोकने वाली कोशिशों के लिए एक झटका है. इस विस्फ़ोट ने शिमला (शांति) प्रक्रिया को भी प्रभावित किया."

जून 1974 में, वाशिंगटन में, अज़ीज़ अहमद ने अमेरिकी विदेश सचिव से मुलाक़ात की जिसमे ये बाते हुई. "अज़ीज़ अहमद: भारत कहता है कि यह एक शांतिपूर्ण विस्फ़ोट है. तो उनसे अंतरराष्ट्रीय आरक्षण को स्वीकार करने के लिए कहा जाए,ताकि ये सुनिश्चित हो कि उनकी कार्रवाई शांतिपूर्ण रहेगी."

"सचिव: यह शांतिपूर्ण विस्फ़ोट नहीं है. किसी को भी परमाणु बम को शांतिपूर्ण तरीक़े से इस्तेमाल करने का तरीका नहीं मिला है. हमने विस्फ़ोट के बारे में ज़्यादा कुछ नहीं कहा. मुझे अमेरिकी प्रतिष्ठा का पूरा वज़न एक कामयाब सच्चाई के ख़िलाफ़ डालने से सख़्त एलर्जी है."

"अहमद: लेकिन ख़तरा हमें है. सचिव: हम पाकिस्तान की स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखंडता के पक्ष में बयान देंगे. पाकिस्तान के ख़िलाफ़ परमाणु हथियारों का इस्तेमाल बेहद गंभीर मामला होगा."

12 जून, 1974 को एक टेलीग्राम में पाकिस्तान में अमेरिकी राजदूत बायरोड ने ये सुझाव दिया, कि अमेरिकी विदेश सचिव पाकिस्तान और भारत के अपने आगामी दौरे में भुट्टो को उचित "आश्वासन" दें.

भारतीय इरादों के बारे में भुट्टो की अपनी आपत्तियों के अलावा, उनके सामने सामान्य रूप से लोगों और विशेष रूप से सशस्त्र बलों के मनोबल की समस्या है.

5 फरवरी, 1975 को वाशिंगटन में प्रधानमंत्री भुट्टो और अंडर सेक्रेटरी जोसेफ़ जे. सिस्को की मुलाक़ात हुई, जिसमे कुछ ये बाते हुई, "भुट्टो: प्रसार को रोकने के समझौते पर हमारी आपत्ति नैतिक आधार पर है. भारत ने हस्ताक्षर नहीं किए. बेशक, अगर भारत हस्ताक्षर करता है, तो हम हस्ताक्षर करेंगे."

"सिस्को: हम जानते हैं कि शांतिपूर्ण विस्फ़ोट और हथियारों की टेक्नोलॉजी के बीच अंतर करने का कोई तरीक़ा नहीं है. मैं हमेशा भारत से कहता हूं, जब वे अपने शांतिपूर्ण विस्फ़ोट की बात करते हैं, तो यह बकवास है."

उसी वर्ष 28 अक्टूबर को जनरल असेंबली की एक बैठक में, पाकिस्तान ने भारत को दक्षिण एशिया में एक परमाणु-हथियार मुक्त क्षेत्र की स्थापना का प्रस्ताव पेश किया, जिसके बाद अमेरिका ने फरवरी 1975 में पाकिस्तान के ख़िलाफ़ अपने 10 साल से जारी हथियारों के प्रतिबंध को हटा लिया.

30 सितंबर, 1975 को न्यूयॉर्क में अज़ीज़ अहमद ने हेनरी किसिंजर से मुलाक़ात की. अहमद ने कहा, "हमने आपको उन हथियारों की दो सूचियां दी हैं जिनकी हमें ज़रूरत है. किसिंजर: मुझे उम्मीद है कि परमाणु हथियार दूसरी सूची में हैं."

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हिरोशिमा और नागासाकी में वो क़यामत की सुबह

पाकिस्तान के राजदूत

मार्च 1976 में, फ्रांस और पाकिस्तान ने चश्मा में प्लूटोनियम पर आधारित परमाणु रिप्रोसेसिंग प्लांट की आपूर्ति के लिए एक द्विपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर किए. हालांकि ये समझौता अमेरिका और दूसरी वैश्विक ताक़तों के दबाव में आ गया, इस दबाव की शुरुआत समझौते से पहले ही हो चुकी थी.

19 फरवरी 1976 को एक टेलीग्राम के अनुसार, राजनीतिक मामलों के अंडर सेक्रेटरी सेस्को ने पाकिस्तान के राजदूत याक़ूब ख़ान को फ्रांस से न्यूक्लियर रिप्रोसेसिंग प्लांट और जर्मनी से भारी पानी के प्लांट की प्रस्तावित ख़रीद पर अमेरिकी चिंता व्यक्त करने के लिए तलब किया.

11 मार्च 1976 को किसिंजर ने फ्रांस के विदेश मंत्री जीन सोविगनार्गस को लिखा कि पाकिस्तान की रिप्रोसेसिंग क्षमता को रोका जाए या इसमें देरी की जाए.

16 मार्च के अपने जवाब में, सोविगनार्गस ने तर्क दिया कि प्रस्तावित बिक्री 1975 के लंदन न्यूक्लियर सप्लायर्स मीटिंग में निर्धारित सिद्धांतों के आधार पर थी और फ्रांस ने अमेरिका को पाकिस्तान के साथ अपनी वार्ता के बारे में सूचित किया था, अमेरिका के पास इस मामले पर पकिस्तान से बात करने के लिए लगभग एक साल का समय था.

इस तरह, तय की गई तारीख़ों यानी इस सप्ताह आवश्यक समझौतों पर हस्ताक्षर न करने का कोई कारण दिखाई नहीं देता है.

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भारत ने फ़िलिपींस को ब्रह्मोस मिसाइल बेचने का सौदा क्यों किया?

परमाणु टेक्नोलॉजी

19 मार्च 1976 को, राष्ट्रपति फ़ोर्ड ने प्रधानमंत्री भुट्टो को अमेरिका में परमाणु टेक्नोलॉजी के दुनिया भर में प्रसार पर "गंभीर चिंताओं" की चेतावनी देते हुए एक पत्र लिखा.

अप्रैल में, राजदूत याक़ूब ख़ान ने प्रधानमंत्री भुट्टो की तरफ़ से विदेश सचिव किसिंजर को एक पत्र पहुंचाया, जिसमें प्रस्ताव था कि ईरान के साथ एक बहुपक्षीय न्यूक्लियर प्रोसेसिंग की सुविधा स्थापित की जाए, जो पाकिस्तान के साथ न्यूक्लियर रिप्रोसेसिंग प्लांट ख़रीदने पर समझौता करे.

एक और ज्ञापन के अनुसार, 9 जुलाई 1976 की शाम को हुई इस बैठक में पाकिस्तानी रिप्रोसेसिंग के मुद्दे पर चर्चा हुई,

"एथरटन (सहायक सचिव अल्फ्रेड एल. एथरटन, जूनियर): हमें इस प्रोजेक्ट को ख़त्म करने के लिए जो कुछ हम कर सकते हैं, करना है."

"सचिव: मैं ये ज़रूर कहूंगा कि इसमें भुट्टो के प्रति मेरी कुछ सहानुभूति है. हम पारंपरिक हथियारों के हवाले से उनकी मदद के लिए कुछ नहीं कर रहे हैं, हम विस्फ़ोट के बाद भी भारत को परमाणु ईंधन बेच रहे हैं और फिर इस छोटी सी परियोजना पर हम एक टन ईंटों की तरह उनपर (पाकिस्तान पर) गिर रहे हैं."

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भारतीय नौसेना के बेड़े में शामिल हुई पनडुब्बी आईएनएस वेला

राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के कर्मचारियों की तरफ़ से 12 जुलाई 1976 को राष्ट्रीय सुरक्षा मामलों के लिए राष्ट्रपति के सहायक (स्कोक्राफ़्ट) को भेजे गए एक ज्ञापन में कहा गया, "अब, जबकि भुट्टो ने राष्ट्रपति के इस अनुरोध को मानने से इनकार कर दिया है कि पकिस्तान फ़्रांस से न्यूक्लियर रिप्रोसेसिंग प्लांट हासिल न करे, तो भुट्टो को बताया जाना चाहिए कि जब तक पाकिस्तान रिप्रोसेसिंग प्लांट ख़रीदने के समझौते को रद्द नहीं करता तब तक सैन्य सहायता के किसी भी अनुरोध पर विचार नहीं किया जाएगा."

8 अगस्त 1976 को सेक्रेटरी किसिंजर ने तेहरान में ईरान के शाह से मुलाक़ात की.

किसिंजर ने कहा, "मैंने शाह के साथ उस प्रस्ताव का ज़िक्र किया जो मैं प्रधानमंत्री भुट्टो को पेश करना चाहता हूं, कि हम पाकिस्तान को फ्रांस के रिप्रोसेसिंग प्लांट हासिल करने के विचार को त्यागने के बदले में ए-7 विमान दे सकते हैं. शाह को लगा कि यह एक अच्छा सुझाव है और भुट्टो के लिए इसे स्वीकार करना ही बुद्धिमानी होगी."

इसके बाद अगस्त 1976 में किसिंजर ने लाहौर का दौरा किया.

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भारतीय राज्य राजस्थान में स्थापित भारत का परमाणु ऊर्जा संयंत्र

किसिंजर ने 11 सितंबर 1976 को राजदूत याक़ूब ख़ान से मुलाक़ात में कहा कि वह पारंपरिक हथियारों के बारे में कुछ करना चाहेंगे.

"याक़ूब: मैं इसकी सराहना करता हूं. अगर मैं सीधे शब्दों में कहूं तो आपकी आपत्तियां उस समय सामने आई, जब हमने फ्रांस के साथ समझौते पर हस्ताक्षर कर दिए थे."

"किसिंजर: आप निश्चित रूप से जानते हैं कि यह 'अख़बारी संकट' (सिमिंगटन संशोधन पर विवाद का जिक्र करते हुए) बनाया गया था. मैंने सिमिंगटन संशोधन कभी नहीं पढ़ा था."

किसिंजर ने 17 जनवरी, 1977 को फ्रांस के विदेश मंत्री लुइस डी गेयर्न गाऊड को एक पत्र लिखा, "नए प्रशासन के साथ इस मामले की समीक्षा करने के बाद, उनके रिप्रोसेसिंग प्रोजेक्ट को अनिश्चित काल तक स्थगित करने के लिए हमने प्रधानमंत्री भुट्टो से संपर्क किया है."

"भुट्टो ने इस बात पर ज़ोर दिया है कि किसी भी रूप में, प्रोजेक्ट न तो अनिश्चित काल के लिए स्थगित होगा और न समझौते को रद्द किया जाए गा. दूसरी ओर, हम गुप्त आधार पर पाकिस्तान की तरफ़ से स्थगन को स्वीकार करने के प्रोत्साहन को बढ़ाने के लिए, जो कुछ कर सकते हैं करने की तैयारी कर रहे हैं."

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चीन की मिसाइल से अमेरिका क्यों हुआ परेशान?

जिमी कार्टर के दौर में...

रिचर्ड निक्सन और जेराल्डफ़ोर्ड की सरकार में विदेश सचिव रहने वाले किसिंजर के बाद अगला शासनकाल जिमी कार्टर का था, जिसमें साइरस वेंस ने 20 जनवरी, 1977 से 28 अप्रैल, 1980 तक विदेश विभाग का कार्यभार संभाला.

वेंस ने 3 फ़रवरी 1977 को फ्रांस के विदेश मंत्री को पत्र लिखा, "फ़्रांस और पाकिस्तान के रिप्रोसेसिंग प्लांट को अनिश्चित काल के लिए स्थगित करने के संयुक्त फ़ैसले और फ्रांस के रिएक्टर्स, ईंधन और शायद फ़्यूल फ़ैब्रीकेशन प्लांट के विकल्प के फॉर्मूले से इस समस्या के सफल समाधान में मदद मिलेगी."

17 फ़रवरी 1977 को एक टेलीग्राम में, राजदूत बायरोड ने विदेश विभाग को बताया, "भुट्टो ने निश्चित रूप से भारतीय विस्फ़ोट पर हमारी प्रतिक्रिया को ध्यान से देखा था. न केवल हमने कुछ किया नहीं था (मैं यह नहीं कह रहा हूं कि हम बहुत कुछ कर सकते हैं) बल्कि हमने सवालों के जवाब देने के अलावा कोई सार्वजनिक पोज़िशन भी नहीं ली थी."

"कुछ महीने बाद किसिंजर की नई दिल्ली यात्रा के दौरान, जब उन्होंने उपमहाद्वीप में भारत की वर्चस्व स्थिति को स्वीकार किया, तो लगभग निश्चित रूप से भुट्टो की इस धारणा की पुष्टि हो गई, कि अमेरिका को न केवल भारत की परमाणु क्षमता से कोई समस्या नहीं है, बल्कि संभावित तौर पर वो भारत का बहुत ज़्यादा सम्मान करता है."

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ज़िया उल हक़

3 मार्च 1977 को लिखे एक पत्र में, राष्ट्रपति कार्टर ने प्रधानमंत्री भुट्टो से कहा, "मैं व्यक्तिगत रूप से परमाणु हथियारों के संभावित प्रसार के बारे में चिंतित हूं. स्पष्ट रूप से यह सवाल पाकिस्तान को प्रभावित करता है. प्रसार को रोकने की रणनीति बनाते हुए... दूसरे राष्ट्रों के साथ क़रीबी सहयोग में, मैं पाकिस्तान के हितों को ध्यान में रखना चाहता हूं."

24 मार्च को इस्लामाबाद से एक टेलीग्राम में, बायरोड ने भुट्टो को 24 मार्च को परमाणु मुद्दों पर बातचीत शुरू करने की पेशकश की सूचना दी.

2 अप्रैल, 1977 के एक ज्ञापन में, कार्यवाहक़ विदेश सचिव क्रिस्टोफ़र ने राष्ट्रपति कार्टर से कहा, "हमें जितना जल्दी हो सके इस बात का जवाब देना चाहिए कि हम भुट्टो से बातचीत करने के लिए तैयार हैं."

राष्ट्रपति कार्टर के राष्ट्रीय सुरक्षा मामलों के सहायक (ब्रज़ेंस्की) की तरफ़ से राष्ट्रपति कार्टर को 9 अप्रैल, 1977 को एक ज्ञापन में कहा गया, कि राजदूत बायरोड को निर्देश दिया जाये की सख़्त लहजे में बात करे और रियायतों की बात तभी करे, जब उन्हें यक़ीन हो कि भुट्टो नहीं झुकेंगे, और एक पैकेज के बजाये रियायतें धीरे-धीरे पेश करे.

उदाहरण के लिए, प्रस्ताव का क्रम इस तरह से होगा- "ऊर्जा और भूमि और नौसेना के उपकरण में मदद, एफ-5 और ए-4 विमान, और आर्थिक सहायता. ए-सेवन से भुट्टो को साफ़ इनकार कर देना चाहिए."

फ्रांस-पाकिस्तान समझौता

वेंस ने राष्ट्रपति कार्टर को पेरिस से 31 मई, 1977 को शाम की रिपोर्ट में पाकिस्तान के विदेश मंत्री अज़ीज़ अहमद के साथ अपनी मुलाक़ात के बारे में लिखा, "उन्होंने (कुछ औचित्य के साथ) निशानदेही की, कि अमेरिका ने प्रोजेक्ट का विरोध जताने में (प्रोजेक्ट शुरू होने के तीन साल बाद) 1976 तक इंतज़ार किया."

"उन्होंने कहा कि अमेरिका और पाकिस्तान के संबंध एक दोराहे पर है. अगर चुनाव टकराव का है, तो उन्होंने सेन्ट्रल ट्रेटी ऑर्गनाइज़ेशन से पाकिस्तान के निकलने, सोवियत विकल्प की तरफ़ रुझान होने और भुट्टो के अमेरिका विरोधी अभियान की निरंतरता की भविष्यवाणी की."

"मैंने स्पष्ट किया कि हमारी प्राथमिकता सहयोग पर आधारित संबंध को आगे बढ़ाना है, लेकिन कोई वादा नहीं किया."

11 जून, 1977 को टेलीग्राम में, पाकिस्तान में दूतावास ने विदेश विभाग को बताया कि 10 जून को नैशनल असेंबली को संबोधित करते हुए, प्रधानमंत्री भुट्टो ने घोषणा की कि पाकिस्तान फ्रांस के साथ अपने परमाणु रिप्रोसेसिंग समझौते को कभी भी रद्द या स्थगित नहीं करेगा.

लेकिन फिर 5 जुलाई 1977 को जनरल मुहम्मद ज़िया-उल-हक़ ने सत्ता पर क़ब्ज़ा कर लिया.

10 जुलाई 1977 के टेलीग्राम में, पाकिस्तान में अमेरिकी राजदूत हिमल ने ज़िया के साथ अपनी मुलाक़ात के बारे में विदेश विभाग को बताया, कि "मुझे इतना विश्वास नहीं है कि ज़िया किसी भी तरह से फ्रांस-पाकिस्तान समझौते को बदलने के लिए तैयार हैं."

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भविष्य की जंग की तस्वीर क्या होगी?

12 अक्टूबर, 1977 को, राष्ट्रपति के राष्ट्रीय सुरक्षा मामलों के सहयोगी (ब्रज़ेंस्की) ने राष्ट्रपति कार्टर को बताया कि पाकिस्तान फ्रांस के साथ अपने समझौते को सुरक्षित करने के लिए एक राजनयिक अभियान में व्यस्त है.

14 अक्टूबर को इस्लामाबाद से टेलीग्राम में, दूतावास ने सूचना दी, कि चूंकि फ्रांस की तरफ़ से पाकिस्तान को परमाणु रिप्रोसेसिंग उपकरणों की आपूर्ति रोक दी गई है, इसलिए पाकिस्तान को ग्लेन संशोधन के तहत रुकी हुई सहयता फिर से शुरू कर देनी चाहिए.

26 अक्टूबर, 1977 के टेलीग्राम में, विदेश विभाग ने पाकिस्तान में अपने दूतावास को बताया कि अभी हमें अपनी सहायता को रोक कर रखना चाहिए.

24 अगस्त 1978 को, वाशिंगटन पोस्ट ने रिपोर्ट प्रकाशित की, कि "पाकिस्तान ने कल घोषणा की है कि फ्रांस परमाणु रिप्रोसेसिंग प्लांट उपलब्ध कराने के समझौते से पीछे हट गया है."

पाकिस्तानी शासक जनरल मोहम्मद ज़िया-उल-हक़ ने रावलपिंडी में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में घोषणा करते हुए कहा कि उन्हें सूचित किया गया है कि फ्रांस राष्ट्रपति वैलेरी गैसकार्ड डी ईस्टांग के एक "बहुत विनम्र" पत्र के ज़रिये समझौते से पीछे हट रहा है.

कार्टर प्रशासन ने 1977 से अनौपचारिक तौर पर पकिस्तान को दी जाने वाली आपूर्ति के अलावा, सभी प्रकार की सहायता बंद की हुई थी.

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पाकिस्तान का परमाणु विस्फ़ोट

अमेरिकी विदेश विभाग ने 1 नवंबर, 1978 को फ्रांस और ब्रिटेन में दूतावासों को एक टेलीग्राम लिखा, जिसमें कहा गया था कि पाकिस्तान संवेदनशील परमाणु सुविधाओं को हासिल करने के लिए आगे बढ़ रहा है, जिसमें रिप्रोसेसिंग और संवर्धन क्षमताएं शामिल हैं.

30 नवंबर, 1978 को वाशिंगटन में नीति समीक्षा समिति की एक बैठक में यह कहा गया, कि यह स्पष्ट है कि पाकिस्तान परमाणु विस्फ़ोट करने के तरीक़ों की तलाश करता रहता है और अगर उनकी गतिविधियों पर नज़र न रखी गई, तो आख़िर में हमें अपनी आर्थिक सहायता और सैन्य बिक्री बंद करने पर मजबूर कर देंगे.

पाकिस्तान में स्थित दूतावास ने 30 अप्रैल, 1979 को टेलीग्राम के ज़रिये विदेश विभाग को सूचित किया कि पाकिस्तान ने अपनी परमाणु संवर्धन गतिविधियों को रोकने के हमारे प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया है.

ज़िया का मानना है कि उन्हें किसी ऐसे समाधान के बारे में हमसे बात करने की ज़रूरत नहीं है, जो पाकिस्तान की सुरक्षा और परमाणु प्रसार के बारे में हमारी चिंताओं को दूर करे. हम आईएईए, परमाणु सप्लायर्स और सोवियत संघ, चीन और भारत सहित दूसरे संबंधित देशों का समर्थन हासिल करने का प्रस्ताव देते हैं."

9 जून को, उप राजदूत पीटर कॉन्स्टेबल को परमाणु प्रसार को रोकने का आश्वासन देते हुए कहीं कह दिया कि वह लिख कर देने को तैयार हैं. 18 जुलाई को विदेश विभाग ने हिमल को ज़िया के प्रस्ताव का पालन करने का निर्देश दिया. हिमल ने 29 जुलाई को ज़िया से होने वाली बात-चीत की सूचना दी.

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COVER STORY: .ईरान न्यूक्लियर डील पर क्यों जारी है खींचतान

राष्ट्रपति के राष्ट्रीय सुरक्षा मामलों के सहयोगी (ब्रज़ेंस्की) ने 31 जुलाई, 1979 को राष्ट्रपति कार्टर को उस बैठक के बारे में एक ज्ञापन भेजा. झिझकते हुए और कुछ हद तक विरोधाभासी अंदाज़ में, राष्ट्रपति ज़िया ने पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम के शांतिपूर्ण उद्देश्यों का लिखित आश्वासन देने के लिए सहमति ज़ाहिर की.

ज़िया ने कहा कि "बार-बार मौखिक आश्वासन के बाद, लिख कर देने का उनका प्रस्ताव "मुहावरे के तौर पर" था.

हालांकि, भारत 1974 में और पाकिस्तान 1998 में परमाणु शक्ति बन गया.

अमेरिकी इतिहास कार्यालय से जुड़े इतिहासकार सेठ ए. रोटरमेल का कहना है कि दिसंबर 1979 के अंत में अफ़ग़ानिस्तान पर सोवियत हमला दक्षिण एशिया के साथ अमेरिकी संबंधों में एक बड़े बदलाव की वजह बना.

कार्टर ने पाकिस्तान के साथ क़रीबी संबंध बनाने की कोशिश की, क्योंकि उनके प्रशासन को सोवियत विस्तार का डर था और कार्टर को अफ़ग़ानिस्तान पर सोवियत क़ब्ज़े का विरोध करने के लिए ज़िया के रूप में एक सहयोगी (हालांकि विरोधाभासी) मिल गया था. सोवियत संघ के सामने, अमेरिकी प्रशासन का परमाणु प्रसार का डर फीका पड़ गया था.

Pakistan ने परमाणु परीक्षण कब किया?

28 मई, 1998 को पाकिस्तान ने बलूचिस्तान के चागै इलाके में छह परमाणु बमों का परीक्षण किया था।

Pakistan में कितने परमाणु बम है?

लेकिन फेडरेशन ऑफ अमेरिकन साइंटिस्ट (FAS) के मुताबिक पाकिस्तान के पास 165 परमाणु हथियार हैं और भारत के पास 160.

भारत ने अपना पहला परमाणु परीक्षण कब किया था?

18 मई 1974 को राजस्थान के पोखरण में शांतिपूर्ण तरीके से परमाणु विस्फोट किया गया. टेस्ट को नाम दिया गया था स्माइलिंग बुद्धा (Smiling Buddha).

1974 में क्या हुआ था?

1974 में हुआ था पहला परीक्षण, भाभा ने जगाया था अलख इसके बाद शक्ति स्वरूपा तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 18 मई 1974 को पोखरण में पहला परमाणु परीक्षण कराकर विश्व के परमाणु क्षमता संपन्न देशों की सूची में भारत का नाम दर्ज करा दिया था। पोखरण-1 का नाम 'बुद्ध स्माइलिंग' (बुद्ध मुस्करा रहे हैं)। रखा गया था।