पिंडदान करने से क्या लाभ होता है? - pindadaan karane se kya laabh hota hai?

विषयसूची

  • 1 पिंड दान करने से क्या लाभ होता है?
  • 2 कितने पिंड दान करना चाहिए?
  • 3 पिंडदान करने में कितना खर्चा आता है?
  • 4 पिंड कितने प्रकार के होते हैं?

पिंड दान करने से क्या लाभ होता है?

इसे सुनेंरोकेंगया जी में पिंडदान का विशेष महत्व है, हर साल यहां लाखों की संख्या में लोग अपने पूर्वजों का पिंडदान करने आते हैं। मान्यता है कि यहां पिंडदान करने से मृत आत्मा को स्वर्ग की प्राप्ति होती है। साथ ही उसकी आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति होती है। स्वयं भगवान विष्णु यहां पर जल के रूप में विराजमान हैं।

कितने पिंड दान करना चाहिए?

इसे सुनेंरोकें- गरुड़ पुराण (Garuda Purana) के अनुसार, मनुष्य की मृत्यु के बाद 10 दिन तक पिंडदान अवश्य करना चाहिए। पिंडदान से ही आत्मा को चलने की शक्ति प्राप्त होती है। शव को जलाने के बाद मृत देह से अंगूठे के बराबर का शरीर उत्पन्न होता है।

गया कब जाना चाहिए?

इसे सुनेंरोकेंगया को ‘मोक्षस्थली’ भी कहा जाता है. यहां साल में एक बार 17 दिन के लिए मेला लगता है जिसे पितृपक्ष मेला कहा जाता है. पितृपक्ष में फल्गु नदी के तट पर विष्णुपद मंदिर के करीब और अक्षयवट के पास पिंडदान करने से पूर्वजों को मुक्ति मिलती है.

पिंडदान का क्या मतलब है?

इसे सुनेंरोकेंपिंडदान का क्या अर्थ है? मृतक के निमित्त अर्पित किए जाने वाले पदार्थ जैसे पके हुए चावल, दूध और तिल को मिश्रित करके जो पिण्ड बनाते हैं, उसे ‘सपिण्डीकरण’ कहते हैं. पिण्ड का अर्थ है शरीर. इस प्रकार श्राद्ध करने वाला पिण्डदान से पहले अपने पितरों की उपस्थिति को ख़ुद अपने भीतर भी ग्रहण करता है.

पिंडदान करने में कितना खर्चा आता है?

इसे सुनेंरोकेंइसके साथ ही यात्री को गया में पिंडदान के लिए एक आदमी के लिए 7697 रुपए, दो के लिए 9075 रुपए और चार के लिए 13592 रुपए के पैकेज दिए जा रहे हैं। बहुत से लोग ट्रेन या बस से पिंडदान करने गया पहुंच रहे हैं। यहां पुरोहित से पिंडदान कराने का खर्च पूरी तरह मोलभाव पर टिका है।

पिंड कितने प्रकार के होते हैं?

इसे सुनेंरोकेंपिण्ड चावल और जौ के आटे, काले तिल तथा घी से निर्मित गोल आकार के होते हैं जो अन्त्येष्टि में तथा श्राद्ध में पितरों को अर्पित किये जाते हैं। पूर्वज पूजा की प्रथा विश्व के अन्य देशों की भाँति बहुत प्राचीन है। यह प्रथा यहाँ वैदिक काल से प्रचलित रही है।

गया जाने से क्या होता है?

इसे सुनेंरोकेंभगवान विष्णु की नगरी मोक्ष की भूमि है गया यह मोक्ष की भूमि कहलाती है। गरुड़ पुराण के अनुसार गया जाने के लिए घर से निकले एक-एक कदम पितरों को स्वर्ग की ओर ले जाने के लिए सीढ़ी बनाते हैं। विष्णु पुराण के अनुसार गया में पूर्ण श्रद्धा से पितरों का श्राद्ध करने से उन्हें मोक्ष मिलता है।

पितर अपने पुत्रों, परिजनों आदि से अन्न-जल की आशा में गया में फल्गु के तट पर आते और अपने लोगों को आशीर्वाद देते हैं। बिहार की राजधानी पटना से करीब 100 किलोमीटर दूर पावन फल्गु नदी के किनारे स्थित है गया धाम। भगवान राम के समय से ही गया को श्राद्ध-पिंडदान का उत्तम क्षेत्र माना गया है। मान्यता है कि गया में किसी भी समय पिंडदान किया जा सकता है। यहां कोई भी काल निषिद्ध नहीं है। और तो और, अधिकमास में, जन्मदिन पर, गुरु-शुक्र के अस्त होने पर, देवगुरु वृहस्पति के सिंह राशि में होने पर भी गया में पिंडदान मना नहीं है।

वैसे गया में पिंडदान करने के लिए छह मासों का विशेष माहात्म्य है, जब सूर्यदेव इन छह राशियों- मीन, मेष, कन्या, धनु, कुंभ और मकर में होते हैं। उस समय तीनों लोक के निवासियों के लिए गया में पिंडदान का अत्यधिक महत्व होता है। हरेक वर्ष भाद्रपद पूर्णिमा से लेकर आश्विन अमावस्या तक 16 दिनों को पितृपक्ष कहा जाता है और पितृपक्ष के सम्पूर्ण अनुष्ठानों के लिए गया विश्वविख्यात है।

मृत्यु के बाद और जन्म के पहले मानव मात्र का तरण-तारण जिन तीन कृत्यों से होता है, वह हैं- श्राद्ध, पिंडदान और तर्पण। ऐसे तो पूरे भारत में कितने ही तीर्थ स्थानों पर श्राद्ध-पिंडदान के विधान हैं, लेकिन पुराणों में वर्णित तथ्यों के आधार पर यह कहना एकदम सटीक है कि श्राद्ध-पिंडदान के लिए सर्वाधिक पवित्र स्थान है गया।

गरुड़ पुराण में कहा गया है कि पृथ्वी के सभी तीर्थों में गया सर्वोत्तम है, तो वायु पुराण में वर्णित है कि गया में ऐसा कोई स्थान नहीं, जो तीर्थ न हो। मत्स्य पुराण में गया को ‘पितृतीर्थ’ कहा गया है। गया में जहां-जहां पितरों की स्मृति में पिंड अर्पित किया जाता है, उसे पिंडवेदी कहा जाता है। कहते हैं कि पहले गया श्राद्ध में कुल पिंड वेदियों की संख्या 365 थी, पर वर्तमान में इनकी संख्या 50 के आसपास ही रह गई है। इनमें श्री विष्णुपद, फल्गु नदी और अक्षयवट का विशेष मान है। गया तीर्थ का कुल परिमाप पांच कोस (करीब 16 किलोमीटर) है और इसी सीमा में गया की पिंड वेदियां विराजमान हैं। गया में श्राद्ध करने से सभी महापातक नष्ट हो जाते हैं। गया में श्राद्ध 101 कुल और सात पीढ़ियों को तृप्त कर देता है।

कई पुराणों में चर्चा है कि गया आने मात्र से ही व्यक्ति पितृऋण से मुक्त हो जाता है। गरुड़ पुराण की पंक्ति है कि पितृपक्ष के दिनों में समस्त ज्ञात-अज्ञात पितर अपने-अपने परिजनों, खासकर पुत्र आदि से अन्न-जल की आशा में गया में फल्गु के तट पर आ विराजते हैं और अपने लोगों को परम आशीर्वाद देते हैं। गया में देवताओं ने भी पिंडदान किया है। भगवान राम ने अपने अपने पिता का पिंडदान यहीं किया था।

श्रीमद्देवीभागवत में उल्लेख है कि पुत्र की पुत्रता तीन प्रकार से ही सिद्ध होती है- जीते जी पिता के वचन का पालन करना, मृत्यु हो जाने पर उनके श्राद्ध में प्रचुर भोजन कराना और गया में पिंडदान करना। लोग कहीं भी श्राद्ध करते हैं, तो उनका यही संकल्प होता है- ‘गयायां दत्तमक्षय्यमस्तु’ अर्थात् इसे गया में दिया गया समझिए। कई अर्थों में गया को मध्य क्षेत्र का महाधाम कहा जाता है, जो चारों दिशाओं के धाम के केंद्र में शोभायमान है।

गया में पितृ कर्म से पितरों को अक्षय तृप्ति की प्राप्ति होती है। यही कारण है कि यहां पूरे वर्ष देश-दुनिया के लोग श्राद्ध पिंडदान के लिए आते रहते हैं।

पिंड दान कितनी बार करना चाहिए?

श्राद्ध में चार बातें तर्पण, भोजन व पिण्ड दान, वस्त्रदान व दक्षिणादान प्रमुख हैं। शास्त्रों में श्राद्ध कर्म में कुतप काल को विशेष महत्व दिया गया है। ये समय दिन का आठवां व नवां मुहूर्त होता है।

गया में पिंडदान के बाद क्या करना चाहिए?

मत्स्य पुराण में गया को 'पितृतीर्थ' कहा गया है. Pitru Paksha 2022 Start Tithi: पितृपक्ष में गयाजी पिंडदान करने से पितर को मोक्ष की प्राप्ति मिलती है. 16 दिन तक चलने वाला यह श्राद्ध पक्ष विशेष कर पितर के तर्पण के लिए पवन भूमि है. गरुड़ पुराण में कहा गया है कि पृथ्वी के सभी तीर्थों में गया सर्वोत्तम है.

पिंड दान करने से क्या फायदा होता है?

पिंडदान पूर्वजों की वंदना करने और उनकी आत्मा को मोक्ष की ओर ले जाने की एक रस्म है। ऐसा माना जाता है कि भगवान ब्रह्मा ने इस प्रथा की शुरुआत की थी। पिंड दान काफी जरूरी है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि मृतक की आत्मा दुख से मुक्त हो जाती है।

गया पिंड दान कब करना चाहिए?

पितृपक्ष में श्राद्ध करने का विशेष महत्व हालांकि हर महीने की अमावस्या तिथि पर पितरों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण किया जा सकता है। लेकिन, पितृपक्ष के 15 या 16 दिनों में श्राद्धकर्म, पिंडदान और तर्पण करने का अधिक महत्व माना जाता है।