पंच परमेश्वर के खो जाने को लेकर कभी चिंतित क्यों है - panch parameshvar ke kho jaane ko lekar kabhee chintit kyon hai

1. कवि की स्मृति में “घर का चौखट” इतना जीवित क्यों है ?

उत्तर ⇒कवि की स्मृति में “घर का चौखट” जीवन की ताजगी से लवरेज है। उसे चौखट इतना जीवित इसलिए प्रतीत होता है कि इस चौखट की सीमा पर सदैव चहल-पहल रहती. है। कवि अतीत की अपनी स्मृति के झरोखे से इस हलचल को स्पष्ट रूप से देखता है अर्थात् ऐसा अनुभव करता है, क्योंकि उस चौखट पर बुजुर्गों को घर के अन्दर अपने आने की सूचना के लिए खाँसना पड़ता था तथा उनकी खड़ाऊँ की “खट-पट” की स्वर-लहरी सुनाई पड़ती थी। इसके अतिरिक्त बिना किसी का नाम पुकारे अन्दर आने की सूचना हेतु पुकारना पड़ता था। चौखट के बगल में गेरू से रंगी हुई दीवार थी। ग्वाल दादा (दूध देने वाले) प्रतिदिन आकर दूध की आपूर्ति करते थे। दूध की मात्रा का विवरण दूध से सने अपने अंगूठे की उस दीवार पर छाप द्वारा करते थे, जिनकी गिनती महीने के अंत में दूध का हिसाब करने के लिए की जाती थी। यह गाँवों की पुरानी परिपाटी थी।

उपरोक्त वर्णित उन समस्त औपचारिकताओं के बीच “घर का चौखट” सदैव जाग्रत रहती थी, जीवन्तता का अहसास दिलाती थी।


2. “पंच परमेश्वर” के खो जाने को लेकर कवि चिंतित क्यों है ?

उत्तर ⇒ ‘पंच परमेश्वर’ का अर्थ है-‘पंच’ परमेश्वर का रूप होता है। वस्तुतः पंच के पद पर विराजमान व्यक्ति अपने दायित्व-निर्वाह के प्रति पूर्ण सचेष्ट एवं सतर्क रहता है। वह निष्पक्ष न्याय करता है। उस पर सम्बन्धित व्यक्तियों की पूर्ण आस्था रहती है तथा उसका निर्णय ‘देव वाक्य’ होता है।

कवि यह देखकर खिन्न है कि आधुनिक पंचायती राज व्यवस्था में पंच परमेश्वर की सार्थकता विलुप्त हो गई। एक प्रकार से अन्याय और अनैतिकता ने व्यवस्था को निष्क्रिय कर दिया है, पंगु बना दिया है। पंच परमेश्वर शब्द अपनी सार्थकता खो चुका है। कवि उपरोक्त कारणों से ही चिन्तित है।


3. “कि आवाज भी नहीं आती यहाँ तक, न आवाज की रोशनी न रोशनी की आवाज” यह आवाज क्यों नहीं आती ?

उत्तर ⇒कवि का इशारा रोशनी के तीव्र प्रकाश में आर्केस्ट्रा के बज रहे संगीत से भी रोशनी की चकाचौंध में बंद कमरे में आर्केस्ट्रा की स्वर-लहरी गूंज रही है, किन्तु कमरा बंद होने के कारण यह बाहर में सुनी नहीं जा सकती। अतः कवि रोशनी तथा आर्केस्ट्रा के संगीत दोनों से वंचित. है। आवाज की रोशनी का संभवतः अर्थ आवाज से मिलनेवाला आनंद है उसी प्रकार रोशनी की आवाज का अर्थ प्रकाश से मिलने वाला सुख इसके अतिरिक्त एक विशेष अर्थ यह भी हो सकता है कि आधुनिक समय की बिजली का आना तथा जाना अनिश्चित और अनियमित है। कवि उसके बने रहने से अधिक “गई रहने वाली” मानते हैं। उसमें लालटेन के समान स्निग्धता तथा सौम्यता की भी उन्हें अनभति नहीं होती। उसी प्रकार आर्केस्ट्रा में उन्हें उस नैसर्गिक आनन्द की प्रतीति नहीं होती जो लोकगीतों बिरहा-आल्हा, चैती तथा होरी आदि गीतों से होती है। कवि संभवतः आर्केस्ट्रा को शोकगीत की संज्ञा देता है। इस प्रकार यह कवितांश द्विअर्थक प्रतीत होता है।


4. आवाज की रोशनी या रोशनी की आवाज का क्या अर्थ है ?

उत्तर ⇒उपरोक्त उक्ति (कथन) कवि की काव्यगत जादूगरी का उदाहरण है, उनकी वर्णन शैली का उत्कृष्ट प्रमाण है। आवाज की रोशनी से संभवतः उनका अर्थ संगीत से है। संगीत में अभूतपूर्व शक्ति है, ऊर्जा है। वह व्यक्ति के हृदय को अपने मधुर स्वर से आलोकित कर देता है। इस प्रकार वह प्रकाश के समान धवल है तथा उसे रोशन करता है।

रोशनी की आवाज से उनका तात्पर्य प्रकाश की शक्ति तथा स्थायित्व से है। प्रकाश में तीव्रता चाहे जितनी अधिक हो किन्तु यदि उसमें स्थिरता नहीं हो, अनिश्चितता अधिक हो तो वह असविधा एवं संकट का कारण बन जाती है। संभव है कवि का आशय यही रहा हो।

कविता की पूरी पंक्ति है कि आवाज भी नहीं आती यहाँ तक, न आवाज की रोशनी, न रोशनी की आवाज। कवि के कथन की गहराइयों में जाने पर एक अनुमानित अर्थ यह भी . है-दर पर एक बंद कमरे में प्रकाश की चकाचौंध के बीच आर्केस्ट्रा का संगीत ऊँची आवाज
में अपना रंग बिखेर रहा है. किन्तु कमरा बंद होने के कारण अपने संकुचित परिवेश में सीमित श्रोताओं को ही आनंद बिखेर रहा है। उसके बाहर रहकर कवि स्वयं को उसके रसास्वादन (अनुभूति) से वंचित पाता है।


5. सर्कस का प्रकाश बलौआ किन कारणों से भरा होगा ?

उत्तर ⇒सर्कस में प्रकाश बुलौआ दूर-दराज के क्षेत्रों में रहनेवाले लोगों को अपनी ओर आकृष्ट करता था। उसकी तीव्र-प्रकाश तरंगों से लोगों को सर्कस के आने की सूचना प्राप्त हो जाया करती थी। यह प्रकाश बुलाओ एक प्रकार से दर्शकों को सर्कस में आने का निमंत्रण होता था। इस प्रकार उस क्षेत्र के निवासियों से अच्छी खासी रकम आसानी से सर्कस कम्पनी वाले प्राप्त कर लेते थे। यह सिलसिला एक लम्बे अरसे से चला आ रहा था। अचानक यह बन्द हो गया है। अब सर्कस का प्रकाश बुलौआ लुप्त हो गया है, कहीं गुमनामी में खो गया है। ग्रामीणों की जेब खाली कराने की उसकी रणनीति भी उसके साथ ही बिदा हो गई है। प्रकाश बुलौआ का गायब होना भी रहस्यमय है। संभवतः सरकार को उसकी यह नीति पसंद नहीं आई तथा इसी कारण अपने शासनादेश में प्रकाश बुलौआ पर प्रतिबिंब लगा दिया गया। अब सर्कस इसका (प्रकाश बुलौआ) का सहारा नहीं ले सकता। कवि का कथन “सर्कस का प्रकाश बुलौआ तो कब का मर चुका है” इस परिप्रेक्ष्य में कहा गया लगता है।


6. गाँव के घर की रीढ़ क्यों झुरझुराती है ?

उत्तर ⇒ कवि ने गाँवों की वर्तमान स्थिति का वर्णन करने के क्रम में उपरोक्त बातें कही हैं। हमारे गाँवों की अतीत में गौरवशाली परंपरा रही है।
सौहार्द, बंधुत्व एवं करुणा की अमृतमयी धारा यहाँ प्रवाहित होती थी। दुर्भाग्य से आज वही गाँव जड़ता एवं निष्क्रियता के शिकार हो गए हैं। इनकी वर्तमान स्थिति अत्यन्त दयनीय हो गई है। अशिक्षा एवं अंधविश्वास के कारण परस्पर विवाद में उलझे हए तथा स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से त्रस्त हैं। शहर के अस्पताल एवं अदालतें इसकी साक्षी हैं। इसी संदर्भ में कवि विचलित होते हुए अपने विचार प्रकट करते हैं

“लीलने वाले मुँह खोले शहर में बुलाते हैं बस
अदालतों और अस्पतालों के फैले-फैले भी रुंधते-गंधाते अमित्र परिवार”

कवि के कहने का आशय यह प्रतीत होता है कि शहर के अस्पतालों में गाँव के लोग रोगमुक्त होने के लिए इलाज कराने आते हैं। इसी प्रकार अदालतों में आपसी विवाद में उलझकर अपने मुकदमों के संबंध में आते हैं। ऐसा लगता है कि इन निरीह ग्रामीणों को निगल जाने के लिए नगरों के अस्पतालों तथा अदालतों का शत्रुवत परिसर मुँह खोल कर खड़ा है। इसका परिणाम ग्रामीण जनता की त्रासदी है। गाँव के लोगों की आर्थिक तथा सामाजिक स्थिति चरमरा गई है। अतः उनके घरों की दशा दयनीय हो गई है।

कवि ने संभवतः इसी संदर्भ में कहा है कि जिन बुलौओं से गाँव के घर की रीढ़ झुरझुराती है अर्थात् शहर के अस्पतालों तथा अदालतों द्वारा वहाँ आने का न्यौता देने से उन गाँवों की रीढ़ झुरझुराती है। कवि की अपने अनुभव के आधार पर ऐसी मान्यता है कि गाँववालों का अदालतों तथा अस्पतालों का अपनी समस्या के समाधान में चक्कर लगाना दु:खद है। इसके कारण गाँव के घर की रीढ़ झुरझुरा गई है। गाँव में रहने वालों की स्थिति जीर्ण-शीर्ण हो गई है।


7. कविता में कवि की कई स्मृतियाँ दर्ज हैं। स्मृतियों का हमारे लिए क्या महत्व होता है, इस विषय पर अपने विचार विस्तार से लिखें।

उत्तर ⇒“गाँव का घर’ शीर्षक कविता में कवि के जीवन की कई स्मृतियाँ दर्ज हैं। अपनी कविता के माध्यम से कवि उन स्मृतियों में खो जाता है। बचपन में गाँव का वह घर, घर की परंपरा, ग्रामीण जीवन-शैली तथा उसके विविध रंग, इन सब तथ्यों को युक्तियुक्त ढंग से इस कविता में दर्शाया गया है।

वस्तुतः स्मृतियों का हमारे जीवन में महत्वपूर्ण स्थान है। स्मृतियों के द्वारा हम आत्मनिरीक्षण करते हैं तथा वे अन्य व्यक्तियों के लिए भी प्रेरणा का स्रोत होती हैं। इसके द्वारा हमें अपने जीवन की कतिपय विसंगतियों से स्वयं को मुक्त करने का अवसर मिलता है। बाल्यावस्था की अनेक भूलें हमारे भविष्य को बुरी तरह प्रभावित करती है। अपने जीवन के उषाकाल में उपजी कुप्रवृत्तियाँ हमारी दिशा तथा दशा दोनों ही बुरी तरह प्रभावित करती हैं।


8. कविता में किस शोकगीत की चर्चा है ?

उत्तर ⇒नवपूँजीवाद आर्थिक उदारीकरण के युग बदलाव का युग आ जाने के कारण कवि के यहाँ जो लोकगीत की धुनें सुनाई पड़ती थी वह अब सुनाई नहीं देती जिसके कारण जन्मभूमि के छूटने का मोह, उसके बदलने का मोह शोकगीत में बदल जाता है। कविता में इसी शोकगीत की चर्चा है जो आज न गाया जानेवाला अनसुना है।


  S.N हिन्दी ( HINDI )  – 100 अंक  [ पद्य  खण्ड ]
 1. कड़बक
 2. सूरदास   
 3. तुलसीदास
 4. छप्पय
 5. कवित्त 
 6. तुमुल कोलाहल कलह में 
 7. पुत्र वियोग 
 8. उषा 
 9. जन -जन का चेहरा एक 
 10. अधिनायक 
 11. प्यारे नन्हें बेटे को 
 12. हार-जीत 
 13. गाँव का घर 

पंच परमेश्वर के खो जाने को लेकर कवि चितित क्यों है?

कवि यह देखकर खिन्न है कि आधुनिक पंचायती राज व्यवस्था में पंच परमेश्वर की सार्थकता विलुप्त हो गई। एक प्रकार से अन्याय और अनैतिकता ने व्यवस्था को निष्क्रिय कर दिया है, पंगु बना दिया हैपंच परमेश्वर शब्द अपनी सार्थकता खो चुका है। कवि उपरोक्त कारणों से ही चिन्तित है

पंच परमेश्वर कहानी में कौन से दो मुख्य पात्र हैं?

जुम्मन शेख़ और अलगू चौधरी में गाढ़ी मित्रता थी. साझे में खेती होती थी. कुछ लेन-देन में भी साझा था.

पंच परमेश्वर रचना कौन से युग की है?

पंच परमेश्वर प्रेमचंद की महत्वपूर्ण कहानियों में से एक है। यह सन् १९१६ में सरस्वती पत्रिका में प्रकाशित हुई थी। आरम्भ में इस कहानी का मूल नाम पंचायत था परन्तु महावीर प्रसाद द्विवेदी ने इसका नाम बदलकर पंच परमेश्वर रखा और इसी नाम से इसे सरस्वती में छापा।