नात्सी समाज में औरतों की क्या भूमिका थी फ्रांसीसी क्रांति के बारे में जानने के लिए अध्याय 1 देखें? - naatsee samaaj mein auraton kee kya bhoomika thee phraanseesee kraanti ke baare mein jaanane ke lie adhyaay 1 dekhen?

नात्सी समाज में औरतों की क्या भूमिका थी? फ्रांसीसी क्रांति के बारे में जानने के लिए अध्याय-1 देखें। फ्रांसीसी क्रांति और नात्सी शासन में औरतों की भूमिका के बीच में क्या फर्क था? एक पैराग्राफ़ में बताएँl


नात्सी समाज में महिलाओं ने द्वितीयक स्तर भूमिका अदा की। उन्हें आर्य संस्कृति का संवाहक माना जाता था।इस संहिता का पालन करने वाली महिलाओं को सम्मानित किया जाता था तथा इनका उल्लंघन करने वाली महिलाओं को दण्डित किया जाता था और अपमानित कर जेलों में डाल दिया जाता था। गैर-जर्मन महिलाओं के आत्मसम्मान को ठेस पहुँचाई जाती थी।

इसके विपरीत फ्रांसीसी क्रांति ने महिलाओं के जीवन में नई गतिविधियों का संचार किया। महिलाओं ने क्रांति में बराबर की भूमिका निभाई। वे प्रगतिशील गतिविधियों में खुलकर भाग ले सकती थी। जैसे राजनीतिक क्लबों की सदस्यता, पेंटिंग, अखबार, नौकरी आदि। महिलाओं ने अपनी एक संस्था 'क्रांतिकारी एवं गणतांत्रिक महिला समाज, की स्थापना की उन्होंने अपने लिए समान राजनीतिक अधिकारों की मांग की जो उन्हें लम्बे संघर्ष की बाद प्राप्त भी हुए। 1946 में उन्हें मत देने का अधिकार प्राप्त हुआ।

1417 Views


नात्सियों का प्रोपेगैंडा यहूदियों के खिलाफ नफ़रत पैदा करने में इतना असरदार क्यों रहा?


नात्सियों का प्रोपेगैंडा यहूदियों के खिलाफ नफरत पैदा करने में इतना असरदार निम्नलिखित कारणों से रहा-
(i) नात्सी विश्व दृष्टिकोण को फैलाने के लिए हिटलर ने मीडिया का बहुत सोच-समझकर इस्तेमाल किया। इस प्रचार में नात्सियों की यहूदियों के प्रति घृणा का समावेश था। ग्योबल्स, हिटलर के प्रचार मंत्री थे। 
(ii) नात्सी विचारो को फैलाने के लिए तस्वीरों, रेडिओ, पोस्टर, आकर्षक नारों और इश्‍तहारी चर्चा का खूब सहरा लिया जाता था।
(iii) नात्सी प्रचार के अनुसार यहूदी एक अवांछित नस्ल था जिसे ख़त्म कर दिया जाना चाहिए और वे इसमें सफल भी रहे। यहूदियों को शेष समाज से अलग-थलक कर दिया गया।
(iv) नात्सी प्रचार में यहूदियों के प्रति ईसाई धर्म में मौजूद परंपरागत घृणा को भी एक आधार बनाया गया। ईसाइयों का आरोप था कि यहूदियों ने ही ईसा मसीह को मारा था।
(v)  यहूदियों को सूदखोर कहकर गाली दी जाती थी।
(vi) प्रचार फिल्मों में भी यहूदियों के प्रति नफरत करवाने पर जोर दिया गया। उन्हें चूहा और कीड़ा आदि नामों से संबोधित किया गया।
(vii) हिटलर की दृष्टि में यहूदियों को पूरी तरह से खत्म कर देना ही इस समस्या का एकमात्र हल था।

895 Views


नात्सियों ने जनता पर पूरा नियंत्रण हासिल करने के लिए कौन-कौन से तरीके अपनाए?


(i) हिटलर ने लोकतांत्रिक शासन की संरचना एवं संस्थानों को समाप्त करना शुरू कर दिया।
(ii) जर्मन संसद में हुए रहस्मय अग्निकांड से उनका रास्ता आसान हो गया। 28 फरवरी 1933 को जारी अध्यादेश के माध्यम से अभिव्यक्ति, प्रेस एवं सभा करने की आजादी को छीन लिया गया।

(iii) कम्युनिस्ट हिटलर का कट्टर शत्रु था। 3 मार्च 1933 को जर्मनी में प्रसिद्ध विशेषाधिकार अधिनियम के माधयम से तानाशाही स्थापित कर दी गई।

(iv) ट्रेड यूनियन पर पाबंदी लगा दी गई।

(v) अर्थव्यवस्था, मीडिया, न्यायपालिका और सेना पर राज्य ने पूरी तरह से  नियंत्रण स्थापित कर लिया।

(vi) पूरे समाज को नात्सियों के हिसाब  से नियंत्रित व्यवस्थित करने के लिए सुरक्षा दस्ते गठित किए गए। इसमें गेस्तापो, एस.एस. और सुरक्षा सेवा शामिल थे।

1185 Views


वाइमर गणराज्य के सामने  क्या समस्याएँ थी ?


राजनीति स्तर पर जर्मनी का वाइमर गणराज्य कमज़ोर और अस्थिर था। वाइमर गणराज्य में कुछ ऐसी कमियाँ थी जिनके कारण गणराज्य कभी भी अस्थिर और तानाशाही का शिकार बन सकता था, जो इस प्रकार है-
(i) पहली कमी अनुपातिक प्रतिनिधित्व से संबंधित थीl इस प्रवधान की वजह से किसी एक पार्टी को बहुमत मिलना बहुत मुश्किल होता जा रहा था। यहाँ हर बार गठबंधन सरकार सत्ता में आ रही थी।
(ii) दूसरी समस्या अनुच्छेद 48 की वजह से थी जिसमें राष्ट्रपति को आपातकाल लागू करने, नागरिक अधिकार रद्द करके और अध्यादेशों के ज़रिए शासन चलाने का अधिकार दिया गया था।
(iii) अनुच्छेद 48 के फलस्वरुप ही अपने छोटे से जीवन काल में वाइमर गणराज्य का शासन 20 मंत्रिमंडलों के हाथों में रहा और उनकी औसत 239 मैं दिन से ज्यादा नहीं रही।
(iv) अनुच्छेद 48 के उदारपूर्वक इस्तेमाल के बाद भी गणराज्य के संकट दूर नहीं हो पाए थे।
(v) समस्या का कोई समाधान नहीं खोज पाने के कारण लोकतांत्रिक संसदीय व्यवस्था पर से लोगों का विश्वास खत्म होने लगा।

5211 Views


नात्सी सोच के खास पहलू कौन-से थे?


(i) हिटलर के अनुसार प्रत्येक जीवित वस्तु को फलने फूलने के लिए अधिक क्षेत्र की आवश्यकता होती है। इसलिए एक राज्य को भी आगे बढ़ने के लिए अधिक क्षेत्रफल और नई सीमाओं  की आवश्यकता होती है।(ii) इससे मातृ देश का क्षेत्रफल भी बढ़ेगा। क्षेत्र के आकार में वृद्धि होने से शक्ति एवं सम्मान में भी बढ़ोतरी होगी।
(iii) नए इलाकों में जाकर बसने वाले जर्मन लोगों को अपने जन्मस्थान के साथ गहरे संबंध बनाए रखने में मुश्किल भी नहीं आएगी।
(iv) इस तरीके से जर्मन राष्ट्र के लिए संसाधन और बेहिसाब शक्ति इकट्ठा किए जा सकते हैं तथा मातृदेश के लिए अतिरिक्त संसाधनों को एक जगह इकट्ठा किया जा सकता है।
(v) हिटलर जर्मन सीमाओं को पूरब की ओर फैलाना चाहता था ताकि सारे जर्मनों को भौगोलिक दृष्टि से एक ही जगह पर इकट्ठा किया जा सके।
 

1829 Views


इस बारे में चर्चा कीजिए कि 1930 तक आते-आते जर्मनी में नात्सीवाद को लोकप्रियता क्यों मिलने लगी?


1930 तक आते-आते जर्मनी में नात्सीवाद को लोकप्रियता निम्नलिखित कारणों से मिलने लगी-

(i) 1929 के बाद बैंक दिवालिया हो चुके थे। काम धंधे बंद होते जा रहे थे। मजदूर बेरोजगार हो रहे थे और मध्यवर्ग को लाचारी और भूखमरी का डर सता रहा था। नात्सी प्रोपोगैंडा ने लोगों को एक बेहतर भविष्य की उम्मीद दिखाई देती थी। 1929 में नात्सी पार्टी को जर्मन संसद-राइटख़स्टाग-के लिए हुए चुनावो में महज़ 2.6 फीसदी वोट मिले 1932 तक आते-आते यह देश की सबसे बड़ी पार्टी बन चुकी थी और उसे 37 फ़ीसदी वोट मिले।

(ii) हिटलर जबरदस्त वक्ता था। उसका जोश और उसके शब्द लोगों को हिलाकर रख देते थे। वह अपने भाषाणों में एक शक्तिशाली राष्ट्र की स्थापना वर्साय संधि में हुई नाइंसाफ़ी के प्रतिरोध और जर्मन समाज को खोई हुई प्रतिष्ठा वापस दिलाने का आश्वासन देता था। उसका वादा था कि वह बेरोजगारों को रोजगार और नौजवानों को एक सुरक्षित भविष्य देगा। उसने आश्वासन दिया कि वह देश की विदेशी प्रभाव से मुक्त कराएगा तमाम विदेशी 'साज़िशों' का मुंहतोड़ जवाब देगा।

(iii) हिटलर ने राजनीति की एक नई शैली रची थी। वह लोगों को गोलबंद करने के लिए आडंबर और प्रदर्शन की अहमियत समझता था। हिटलर के प्रति भारी समर्थन दर्शाने और लोगों में परस्पर एकता का भाव पैदा करने के लिए नात्सियों में बड़ी-बड़ी रैलियों और जनसभाएँ आयोजित की। स्वास्तिक छपे लाल झंडे, नात्सी सैल्युट और भाषणों के बाद खास अंदाज में तालियों की गड़गड़ाहट की सारी चीजें शक्ति प्रदर्शन का हिस्सा थी।

(iv) नात्सियों ने अपने धुआंधार प्रचार केसरी हिटलर को एक मसीहा, एक रक्षक ,एक ऐसे व्यक्ति के रूप में पेश किया। जिसने मानो जनता को तबाही से उभारने के लिए ही अवतार लिया था। एक ऐसी समाज को यह छवि बेहद आकर्षक दिखाई देती थी जिसकी प्रतिष्ठा और गर्व का अहसास चकनाचूर हो चुका था और जो एक भीषण आर्थिक और राजनीतिक संकट से गुज़र रहा था।

1095 Views


नात्सी समाज में औरतों की क्या भूमिका थी फ्रांसीसी क्रांति?

इसी पार्टी को बाद में नात्सी पार्टी के नाम से जाना गया।

नात्सी शासन ने महिलाओं के ऊपर क्या जिम्मेदारी डाली?

नात्सी समाज में महिलाओं ने द्वितीयक स्तर भूमिका अदा की। उन्हें आर्य संस्कृति का संवाहक माना जाता था। इस संहिता का पालन करने वाली महिलाओं को सम्मानित किया जाता था तथा इनका उल्लंघन करने वाली महिलाओं को दण्डित किया जाता था और अपमानित कर जेलों में डाल दिया जाता था। गैर-जर्मन महिलाओं के आत्मसम्मान को ठेस पहुँचाई जाती थी।

नाजी समाज में महिलाओं की क्या भूमिका थी?

Solution : 1) नात्सी समाज में औरतों को आर्य संस्कृति और नस्ल का ध्वजवाहक माना जाता था। 2) उनका कर्तव्य अच्छी माँ बनना, शुद्ध आर्य रक्त वाले बच्चों को जन्म देना और उनका पालन-पोषण करना है। 3) ऐसा पालन करने वाली महिलाओं को सम्मानित किया जाता था, उल्लंघन करने वाली महिलाओ को दण्डित किया जाता था।

नाथ शिव ने जनता पर पूरा नियंत्रण हासिल करने के लिए कौन कौन से तरीके अपनाए?

Solution : नात्सियों ने जनता पर पूरा नियंत्रण हासिल करने के लिए निम्नलिखित तरीके अपनाए: मीडिया का बखूबी इस्तेमाल किया गया ताकि नात्सी विचारधारा का प्रचार हो और समाज के अवांछित तत्वों के खिलाफ दुष्प्रचार हो सके।