नस के डॉक्टर को क्या कहते हैं - nas ke doktar ko kya kahate hain

बड़ी और टेढ़ी-मेढ़ी नसों के दर्द को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए, यह बड़ी परेशानी पैदा कर सकती हैं। इन नसों को वेरिकोज वेंस कहते हैं। इससे बचने केलिए इनका इलाज शीघ्र किया जाना चाहिए। यह बीमारी लगातार खड़े रहने, लंबे व्यक्तियों अथवा प्रसव के दस साल बाद महिलाओं को हो जाती है। किसी भी दबाव में नस का दबना बीमारी का मुख्य कारण होता है। नसों में क्लाट जम जाते हैं, जिससे परेशानी बढ़ जाती है।

फोर्टिस अस्पताल मोहाली में वास्कुलर सर्जन डॉ. रावुल जिंदल ने पत्रकारों से बात करते हुए बताया कि वेरिकोज वेंस शरीर के किसी भी हिस्से में हो सकती हैं परंतु ज्यादातर जाघों या घुटने के नीचे टागों पर खतरनाक सिद्ध हो सकती हैं। इसका मुख्य कारण ज्यादा देर तक शारीरिक श्रम या लगातार खडे़ रहना है। एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक इस बीमारी की संभावना बहुत ज्यादा होती है। उनके अनुसार वेरिकोज वेंस ज्यादातर दर्दनाक व खुजली वाली होती हैं और उनको रगड़ना अल्सर का कारण बन जाता है।

बीमारी की पहचान आमतौर पर दर्द, भारी पेट, टखने की सुजन, रूखी त्वचा, लालिमा, सूखापन, और नीली उभरी हुई नसें और त्वचा की खुजली है। कुछ लोगों में टखने के ऊपर त्वचा सिकुड़ भी सकती है क्योंकि त्वचा के नीचे चर्बी सख्त हो जाती है इसमें टखनें के ऊपर सफेद फफुंदी जैसे दाग होना भी इसका कारण हो सकता है। बीमारी के संकेत मिलने पर विशेषज्ञ डॉक्टर से उसका उपचार करवाना चाहिए। रोगियों के लिए नई लेजर प्रणाली एक वरदान के रूप में आई है। इसमें केवल एक घटा लगता है और दर्द भी नहीं होता और रिकवरी भी जल्दी हो जाती है और रोगी को दोबारा दवाइया भी नहीं खानी पड़ती। रोगी सर्जरी के तुरंत बाद घर लौट सकता है। अस्पताल में दाखिल होने की जरूरत नहीं होती। उन्होंने बताया कि यह प्रणाली उन लोगों में ज्यादा फायदेमंद है जो बूढ़े हों, खून पतला करने की दवाई लेते हो , मोटे हो, या जिनके इंफेक्शन का ज्यादा खतरा रहता हो। बीमारी के डॉक्टर पूरे भारत में गिने चुने हैं। इस मौके पर शहर के हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. अजय अग्रवाल, हड्डी रोग विशेषज्ञ डॉ. आरके मेहंदीरत्ता, सीमा मेहंदीरत्ता, डॉ. हिमाशु आनंद आदि उपस्थित रहे।

धनबाद: नस, हड्डी और जोड़ों संबंधी बीमारियों की चिकित्सा में फिजियोथेरेपी की भूमिका अब काफी बढ़ गई है। फिजियोथेरेपी की सहायता से अब बिना किसी साइड इफेक्ट के जोड़ों के जानलेवा दर्द से छुटकारा पाया जा सकता है। हड्डी और नस संबंधी दर्द से परेशान लोगों को दवा खाने के बजाय एक बार फिजियोथेरेपिस्ट का सहारा जरूर लेना चाहिए। धनबाद के प्रसिद्ध फिजियोथेरेपिस्ट डॉ. अरविंद कुमार सिंह ने जागरण के हैलो डॉक्टर कार्यक्रम में पाठकों को यह जानकारी दी। उन्होंने इस दौरान नस, हड्डी और जोड़ संबंधी बीमारियों से पीड़ित कई लोगों को फिजियोथेरेपी से उपचार की भी जानकारी दी। उन्होंने कहा कि फिजियोथेरेपी की सहायता से अब कई तरह के असहनीय दर्द को महज पांच मिनट में दूर किया सकता है। लोगों को जोड़ों और नस संबंधी दर्द की चिकित्सा में फिजियोथेरेपी का शुरुआत में ही सहारा लेना चाहिए। प्रारंभिक अवस्था में इलाज से बेहतर परिणाम मिलते हैं पर देरी से दिक्कत बढ़ जाती है। यहां प्रस्तुत है कुछ प्रमुख लोगों के सवाल और डॉ. अरविंद कुमार सिंह के जवाब। प्रश्न : गठिया की बीमारी से परेशान हूं। कैसे ठीक होगा? उत्तर : गठिया की चिकित्सा के लिए फिजियोथेरेपी ही सही है। बीमारी यदि प्रारंभिक अवस्था में है तो आइस और लेजर थेरेपी की सहायता से इसे काफी हद तक और बेहतर तरीके से नियंत्रित रखा जा सकता है। बीमारी यदि पुरानी भी हो गई है तो भी फिजियोथेरेपी की सहायता से इसे ठीक रखा जा सकता है। मरीज को परेशानी नहीं होगी। इसकी चिकित्सा के लिए मरीज को बिना देरी फिजियोथेरेपिस्ट की सहायता लेनी चाहिए। प्रश्न: मोटापा के कारण चलने-फिरने में परेशानी होती है। दर्द की समस्या भी अक्सर रहती है। यह कैसे ठीक होगा? उत्तर : फिजियोथेरेपी की सहायता से मोटापे पर काबू पाया जा सकता है। फिजियोथेरेपी की सहायता से किसी भी अंग की चर्बी को कम किया जा सकता है। इसकी सहायता से एक दिन में दो सौ ग्राम तक वजन कम किया जा सकता है। आप अपने नजदीकी फिजियोथेरेपिस्ट की सहायता लें। अवश्य लाभ होगा। ज्यादा तेल मसाले की चीजें खाने से परहेज करना चाहिए। इन चीजों के अत्याधिक प्रयोग से भी मोटापा बढ़ जाता है। प्रश्न : साइटिका से पीड़ित हूं। दवा से लेकर जड़ी-बूटी तक से इलाज कराया पर कोई लाभ नहीं हुआ। कैसे ठीक होगा? उत्तर : साइटिका को स्थायी रूप से ठीक करने के लिए फिजियोथेरेपी का सहारा लेना ही उचित होगा। यह जड़ी बूटी से ठीक नहीं होनेवाली बीमारी है। तत्काल भले कुछ आराम मिल जाए पर इसका असर लंबे समय तक नहीं रहता इसलिए फिजियोथेरेपी में ही इसका कारगर उपचार उपलब्ध है। बिना देर मरीज को इसकी चिकित्सा फिजियोथेरेपी से शुरू करा देनी चाहिए। प्रश्न : फिजियोथेरेपी की सहायता से किन-किन रोगों को ठीक किया जा सकता है? उत्तर : फिजियोथेरेपी की सहायता से हड्डी, नस और जोड़ों संबंधी दर्द की समस्या को दूर किया जा सकता है। इनमें कंधा, कमर और गर्दन का दर्द, गठिया, साइटिका, घुटने बदलने पर, पैरालाइसिस आदि की चिकित्सा में फिजियोथेरेपी प्रभावी है। प्रश्न : फिजियोथेरेपी से क्या फेसियल पाल्सी का भी उपचार संभव है? उत्तर : फिजियोथेरेपी की सहायता से फेसियल पाल्सी का शत-प्रतिशत इलाज किया जा सकता है। फिजियोथेरपी से इलाज से पीड़ित व्यक्ति पहले की स्वस्थ स्थिति में आ सकता है।

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नसों से संबंधित बीमारी के इलाज के लिए पहले सही कारण का पता लगाना जरूरी है। शरीर के किसी भी हिस्से में इस तरह की परेशानी हो तो खुद से या किसी के कहने से दवा का सेवन न करें। न्यूरो विशेषज्ञों से...

नस के डॉक्टर को क्या कहते हैं - nas ke doktar ko kya kahate hain

Newswrapहिन्दुस्तान टीम,पटनाMon, 25 Nov 2019 05:42 PM

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नसों से संबंधित बीमारी के इलाज के लिए पहले सही कारण का पता लगाना जरूरी है। शरीर के किसी भी हिस्से में इस तरह की परेशानी हो तो खुद से या किसी के कहने से दवा का सेवन न करें।

न्यूरो विशेषज्ञों से सलाह लेकर पहले कारण का पता लगाना होगा। यह तभी होगा जब बीमारी का सही डायग्नोसिस हो। न्यूरो सर्जन सह आर्यभट्ट नॉलेज विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. एके अग्रवाल ने रविवार को हिन्दुस्तान कार्यालय में आयोजित डॉक्टर की सलाह कार्यक्रम में मरीजों को सलाह देते हुए ये बातें कहीं। राज्यभर से मरीजों ने नस की बीमारी से संबंधित सवाल पूछे।

उन्होंने बताया कि कारण पता लगने के बाद ही डॉक्टर की सलाह से दवा लें। इस तरह इलाज कराने से मरीज को लाभ भी होगा और बीमारी गंभीर नहीं होगी। कई बार ऐसा देखा गया है कि शरीर में दर्द क्यों हो रहा है? यह जाने बिना दर्द की दवा लेना खतरनाक होता है।

65 वर्ष से अधिक के लोग रहें सतर्क

मौसम जब गर्म से ठंडा की ओर बढ़ता है तब शरीर खुद को अनुकूलित करता है। ऐसे में ब्लड प्रेशर बढ़ने का ट्रेंड रहता है। कोल्ड एक्सपोजर की स्थिति बनती है। खासकर 65 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों में शरीर में तनाव बढ़ने लगता है साथ ही सुगर भी बढ़ता है। ऐसे में ब्रेन स्ट्रोक की संभावना बढ़ जाती है। ऐसे में बुजुर्गों को फिलहाल ठंड से बचाना बेहद जरूरी है। अत्यधिक समय तक मोबाइल देखने से ब्रेन ट्यूमर होने की चर्चाएं हो रही है लेकिन अभी वैज्ञानिक रूप से यह साबित नहीं हो पाया है। हालांकि यह कहना ज्यादा जरूरी है कि मोबाइल नहीं बल्कि देखने की आदत से लोगों की परेशानी बढ़ रही हैं। आदत छूट जाएगी तो परेशानी भी दूर हो जाएगी।

नस संबंधी बीमारी न हो इसलिए इन बातों का रखें ख्याल

किसी भी तरह के तंबाकू का सेवन नहीं करना चाहिए। ब्लड प्रेशर को नियंत्रण में रखें। अधिकतम बीपी से हाइपर टेंशन की स्थिति बनती है और ब्रेन हेम्रेज की संभावना बढ़ जाती है। मधुमेह जो सबसे ज्यादा खतरनाक है। सुगर अधिक मात्रा में रहने से हाथ-पैर के नसों को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाता है। झनझनाहट, सूनापन, तलवे में गद्दापन, हाथ-पैर में जलन, सामान्य तौर पर सुस्त रहना। इन सब के अलावा शरीर के अन्य महत्वपूर्ण हिस्से को डैमेज करता है। नींद की कमी, मानसिक और शरीरिक अत्यधिक तनाव या दबाव से दूर रहें। सिर दर्द का सही कारण का पता लगाएं। मिर्गी और लकवा जैसी स्थिति में सर्तक रहें। किसी न्यूरो विशेषज्ञ से सलाह लें।

सवाल: बायें पैर के ऊपरी हिस्से में 12 साल से झनझनाहट होती है।(बिहार शरीफ से संजीव कुमार)

जवाब: पैरेथिसिया मिराल्जीय नामक बीमारी है। कभी-कभी सूनापन सा होगा और सहलाने पर अच्छा भी लगेगा। इसको लेकर चिंतित नहीं होना है। काफी लंबे समय से आपको यह बीमारी है। दवा है लेकिन ज्यादा कारगर नहीं है।

सवाल: दाहिने पैर में कभी-कभी हल्कापन महसूस होता है।(सीतामढ़ी से बीएन मिश्रा)

जवाब: उम्र 80 वर्ष है। ऐसे में उम्र को देखते हुए एक बार सिटी स्कैन और खून की जांच करानी होगी। अगर ब्लड प्रेशर और मधुमेह नियंत्रित है तो ज्यादा चिंता की बात नहीं हैं। एक बार अच्छे डॉक्टर से दिखाकर इलाज कराएं।

सवाल: आठ साल पहले दुर्घटना हुआ था इलाज के बाद भी पैर में सूजन है।(बक्सर से नंद केसरी)

जवाब: यह न्यूरो की बीमारी नहीं है। रक्त प्रवाह बाधित होने से भी सूजन हो सकता है। ऐसे में एक बार सामान्य सर्जन से दिखाएं। इधर-उधर भटकने की जरूरत नहीं है।

सवाल: सिर में चोट लगी थी दाहिने हिस्से में कमजोरी महसूस होती है।(दानापुर से हरिहर मेहता)

जवाब: गर्दन में चोट लगने से सर्वाइकल स्पाइन में नस दबी हो सकती है। ऐसे में दवा से ज्यादा जरूरी है शरीरिक अभ्यास, लेकिन बिना फिजियोथेरापिस्ट से ट्रेनिंग लिए शारीरिक अभ्यास करना लाभकारी नहीं होगा। जो अभ्यास करना है उसे सही तरीके से जानना होगा।

सवाल: तीन महीने पहले बायें पैर में लकवा मारा था, अब भी दर्द है।(पूर्वी चंपारण से राजकिशोर)

जवाब: जो दवा चल रही है उसे लेते रहें। ऐसे में शारीरिक अभ्यास सही तरीके से करना होगा, तभी लाभ होगा। हर रोग के लिए अलग-अलग अभ्यास करना होता है। ऐसे में बिना जानकारी से अभ्यास न करें और ठंड से बचकर रहना है।

इन्होंने भी पूछे सवाल :

बेगूसराय से ओम प्रकाश, बरौनी से अंगराज, दानापुर से रानी कुमारी, मसौढ़ी से हर्षराज, पटना से रौशन कुमार, मुंगेर से अभय कुमार सिन्हा, वैशाली से सीताराम जी, केशव कुमार, सहरसा से अनिता राज,औरंगाबाद से सुरेन्द्र कुमार, गया से संगीता कुमारी, विनोद, मधुबनी से शमशाद अहमद, बिहारशरीफ से सत्येन्द्र कुमार, गया से विकास कुमार व समस्तीपुर से सुभाष कुमार।

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नसों के डॉक्टर को हिंदी में क्या कहते हैं?

नसों से संबंधित बीमारी के इलाज के लिए पहले सही कारण का पता लगाना जरूरी है। शरीर के किसी भी हिस्से में इस तरह की परेशानी हो तो खुद से या किसी के कहने से दवा का सेवन न करें। न्यूरो विशेषज्ञों से सलाह लेकर पहले कारण का पता लगाना होगा।

पैर की नसों के डॉक्टर को क्या कहते हैं?

- ऐसे लोग समय-समय पर वेस्कुलर सर्जन/न्यूरो वेस्कुलर सर्जन से पैरों की नसों की जांच करात रहें। - सर्जरी व लेजर थेरेपी दोनों से बीमारी का इलाज किया जाता है।

हड्डियों के डॉक्टर को क्या कहा जाता है?

Cardiologist- कार्डीआलजिस्ट- हृदयरोग विशेषज्ञ आपने कार्डीएक अरेस्ट, कार्डीएक अटैक तो आपने सुना ही होगा.

दिमाग का सबसे अच्छा डॉक्टर कौन है?

भारत में Brain चिकित्सक.
95% डॉ. के सुधाकर ... .
डॉ. अंकित शर्मा न्यूरोसर्जन 6 साल का अनुभव ... .
डॉ. साउंडप्पन वी न्यूरोसर्जन 2 पुरस्कार, 35 साल का अनुभव ... .
डॉ. अशिस पाठक न्यूरोसर्जन 2 पुरस्कार, 35 साल का अनुभव ... .
99% डॉ. राजकुमार डीवी न्यूरोसर्जन ... .
96% डॉ. के श्रीधर न्यूरोसर्जन ... .
99% डॉ. विजय अय्यर न्यूरोसर्जन ... .
95% डॉ. प्रहराज एस न्यूरोसर्जन.