मिस्र को नील नदी की देन क्यों कहा जाता है? - misr ko neel nadee kee den kyon kaha jaata hai?

Solution :  मिस्र विश्व की आदि सभ्यता वाला अफ्रीका महाद्वीप के उत्तर-पूर्वी भाग में स्थित एक प्रमुख विकासशील देश है। मिस्र देश की अर्थव्यवस्था में नील नदी का महत्त्वपूर्ण स्थान है, इसी कारण मिस्र को ‘नील नदी का वरदान’ कहा जाता है। मिस्र को ‘नील नदी का वरदान’ कहे जाने के अन्य कारण निम्नलिखित हैं • मिस्र का अधिकतर भाग मरुस्थलीय एवं पठारी है, जो कृषि एवं मानव निवास के प्रतिकूल है, परन्तु नील नदी ने कृषि-सिंचाई में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। यहाँ नील नदी ही कृषि-सिंचाई का एकमात्र साधन है। • नील नदी मिस्र के लगभग मध्य से होकर बहती है। अत: नील नदी पर अनेक बाँध बनाकर जलविद्युत का उत्पादन किया जाता है। इस प्रकार नील नदी मिस्र को जलविद्युत की सुविधा भी प्रदान करती है। • नील नदी सदानीरा है, अत: यह परिवहन में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।। इस प्रकार नील नदी मिस्र की सम्पूर्ण आर्थिक, सामाजिक व सांस्कृतिक क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। अत: मिस्र को नील नदी का वरदान उचित ही कहा गया है।

मिस्र को नील नदी की देन क्यों कहा जाता है? - misr ko neel nadee kee den kyon kaha jaata hai?
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मिस्र को नील नदी की देन क्यों कहा जाता है? - misr ko neel nadee kee den kyon kaha jaata hai?

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मिस्र: नील का वरदान

मिस्र: नील का वरदान- प्राचीन मिस्री सभ्यता के सृजन एवं समुन्नयन में मिस्त्र की भौगोलिक स्थिति के साथ-साथ नील नदी की भी अहम भूमिका रही है। आज से लगभग पच्चीस सौ वर्ष पूर्व (452 ई.पू. के आस-पास) मिस्र की यात्रा करने वाले यूनानी इतिहासकार हेरोडोटस ने मिस्र को नील की देन कहा है। हेरोडोटस का यह कथन आज भी उतना ही सही है। हापी नाम से प्रसिद्ध नील नदी मध्य अफ्रीका के पठार से निकल कर बुरुण्डी में कगेरा नाम से बह कर विक्टोरिया झील में गिरती है। विक्टोरिया झील से उत्तर की ओर प्रवहमान यह नदी कयोगा झील में प्रवेश करती है। यहां से निकल कर यह अलबर्ट झील में गिरती है। अलबर्ट झील से निकलने के बाद यह सूडान में प्रवेश करती है। यहां इसे बहर-एल-जबल नाम से जाना जाता है। चूंकि सूडान तीन ओर से उच्च भूमि से परिवृत्त है, लिहाजा उत्तर की ओर समतल होने के कारण नदी का प्रवाह इसी ओर है। नो झील के समीप इसमें पश्चिम की ओर से आने वाली बहर-एल-गजल नदी मिल जाती है। इस भाग में इसे श्वेत नील के नाम से जाना जाता है। मालाकाल नगर से पूर्व इसमें सोबात नामक एक अन्य नदी दाहिने तट पर मिलती है। यहां से इसका प्रवाह सीधे उत्तर की ओर हो जाता है। खारतुम के निकट यह नीली नील का आलिंगन करती है, जो इथोपिया के पठार से ताना झील से निकलती है। लगभग दो सौ पच्चीस किमी यात्रा करने के बाद इसमें इथोपिया के पठारी भाग से निकलने वाली एक अन्य नदी अतबरा मिलती है। इसके आगे एक समतल मेदान में उत्तर की ओर प्रवाहित यह अन्ततः भूमध्यसागर में विश्राम लेती है। मार्ग में इसे अनेक स्थलों पर चट्टानी अवरोधी का सामना करना पड़ता है। इनमें कम से कम छः अवरोध ऐसे हैं जिन्हें नील अपनी पूरी शक्ति लगा कर भी नहीं काट सकी है। इससे महाप्रपात बन गये हैं। इनमें पहले, दूसरे तथा चौथे को छोड़कर शेष को पार करना कठिन नहीं है। उद्गम स्थल की ओर से अन्तिम महाप्रपात एलेफेण्टाइन के समीप है। इसके आगे नील की उत्तरी घाटी है, जो वास्तविक मिस्र का निर्माण करती है। नील नदी हाफा के निकट मिस्र में प्रवेश करती है तथा लगभग 1100 किमी रास्ता तय करने के बाद भूमध्यसागर में गिरती है। काहिरा से उत्तर नदी जब डेल्टाई भाग में प्रवेश करती है तो इसकी गति मन्द पड़ जाती है जिससे मिट्टी का जमाव अधिक हो जाता है। इस भाग में नदी कई शाखाओं में बंट जाती है। उद्गम स्थल से लेकर भूमध्यसागर तक नील की कुल लम्बाई लगभग 6,660 किमी है।

प्राचीन मिस्र की सभ्यता के सृजन एवं समुन्नयन में नील नदी का वही योगदान था जो पश्चिम एशिया में मेसोपोटामिया सभ्यता के सृजन में दजला-फरात नदियों का था। नील में प्रति वर्ष भयंकर बाढ़ आती है। यह मई से प्रारम्भ होकर अक्टूबर तक रहती है। वास्तव में गर्मियों के आरम्भ में मध्य अफ्रीका में मूसलाधार वर्षा के कारण विक्टोरिया, कयोगा तथा अलबर्ट झीलों में अपरिमित जल संचित होने तथा नील की सहायक नदियों के उद्गम स्थल वाले पार्वत्य प्रदेशों में बर्फ पिघलने के कारण नदी का जल-स्तर बढ़ने लगता है तथा तटवन्धों को तोड़ कर दूर-दूर तक प्रसरित हो जाता है। तूफानी वेग में बहती हुई नदी अपने साथ प्रचुर मात्रा में शैवाल, काई तथा मिट्टी लेकर चलती है तथा इसे बाढ़ प्रभावित इलाकों में छोड़ देती है। नवम्बर के पहले सप्ताह से जल-स्तर घटने लगता है तथा दोनों किनारे मैदान छुटने लगते हैं। बाढ़ के कारण ये मैदान पर्याप्त मात्रा में नमी संचित कर लेते हैं तथा इन पर काली उपजाऊ मिट्टी की एक परत जमा हो जाती है। पिछले लगभग पांच-छः हजार वर्ष से मिस्रवासी इस बाढ़ की अत्यन्त उत्सुकता से प्रतीक्षा करते हुए इसके द्वारा निर्मित उर्वर मैदान का उपयोग करते चले आ रहे हैं। मैदान के सृजन के साथ साथ प्राचीन काल से ही सिंचाई के लिए उपयुक्त साधन प्रदान करने में नील नदी का सक्रिय योगदान रहा है। प्राचीन काल में यहां सिंचाई के कृत्रिम साधनों का अधिक विकास नहीं हुआ था। अतः मिस्रवासी नील के दोनों किनारों पर बड़े-बड़े तालाब बना लेते थे। बाढ़ आने पर इनमें पानी भर जाता था। इन्हीं में एकत्रित जल की सहायता से ये अपने खेतों की सिंचाई करते थे। आज भी नील के किनारे इस प्रकार के गड्ढे बने हैं जिनसे जल निकाल कर, एक लट्ठे में बंधी बाल्टी में भर मिस्रवासी गीत गाते हुए उसे अपने खेतों तक पहुंचाते हैं। इस प्रकार उर्वर मैदान निर्मित कर तथा सिंचाई की सुविधाएं देकर नील नदी मिस्रवासियों के कृषि-जीवन की प्रेरणास्त्रोत बनी।

कृषि के साथ-साथ यातायात की दृष्टि से नील का विशिष्ट महत्व रहा है। नील के जलमार्ग द्वारा ही यहां व्यापार एवं वाणिज्य में प्रगति सम्भव हो सकी। नील नदी के राष्ट्रीय जलमार्ग एवं इसमें प्रयुक्त की जाने वाली नावों का इनके आर्थिक जीवन में विशेष महत्व था। इस राष्ट्रीय जलमार्ग का केवल व्यापारिक महत्व नहीं था। राजनीतिक एकता की स्थापना एवं बाह्य आक्रमणकारियों से मिस्र की रक्षा करने में भी इसने उल्लेखनीय योगदान किया। इसी जलमार्ग के माध्यम से मिस्र उत्तर में भूमध्यसागरीय प्रदेश, उत्तर-पश्चिम में सीरिया तथा पूर्व में मेसोपोटामिया के सान्निध्य में जाने का सुयोग प्राप्त कर सका। मिस्त्रवासियों में एकता की भावना का संचार नील नदी द्वारा उत्पन्न परिस्थितियों के कारण हुआ।नदी के दोनों ओर बांध तथा नहर इत्यादि बनाने में पर्याप्त श्रम की आवश्यकता पड़ती थी। इसमे एक-दूसरे को परस्पर संगठित होकर कार्य करने का अवसर मिलता था। धीरे-धीरे इनमें एकता की भावना बढ़ती गई, जिससे संकट के समय संगठित होकर मिस्रवासी किसी भी विपत्ति का सामना कर सकने में समर्थ हो सके। इसका प्रभाव राजनीतिक संगठन पर पड़ा। धीरे-धीरे मिस्र के छोटे-छोटे गांव बड़े-बड़े नगरों में बदलने लगे। मिस्र के धार्मिक, कलात्मक, साहित्यिक एवं वैज्ञानिक विकास में भी नील नदी का अत्यधिक योगदान था। नील में आने वाली वार्षिक बाढ़ को मिस्रवासियों ने जन्म एवं मृत्यु का प्रतीक मान लिया। ओसिरिस आख्यान के मूल में यही भावना निहित थी। पिरामिडों में प्रयुक्त किये जाने वाले शिलाखण्ड सुदूर स्थित स्थलों से नदी द्वारा ही अभीष्ट स्थानों तक पहुंचाये जाते थे। प्रतिवर्ष बाढ़ आने के फलस्वरूप इनकी कृषियोग्य भूमि परस्पर एक हो जाती थी। उसके विभाजन के लिए ज्यामिति एवं गणित की आवश्यकता पड़ती थी। इसी प्रकार बांध, नहरों इत्यादि के निर्माण में गणित एवं ज्यामिति का ज्ञान आवश्यक था। तिथिगणना की लुब्धक चक्र विधि का आविष्कार भी नील की बाढ़ के आधार पर किया गया था। अजस्रवाहिनी नील के रम्य एवं शीतल तट पर खड़े होकर मिस्र के साहित्यकारों ने इसकी कलकल ध्वनि से साहित्य-रचना की प्रेरणा ग्रहण की। इस प्रकार हम देखते हैं कि मिस्रवासियों की आर्थिक, राजनीतिक, धार्मिक, कलात्मक, साहित्यिक एवं वैज्ञानिक प्रगति में नील नदी का कितना अधिक योगदान था।

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मिस्र में नील नदी कौन सा डेल्टा बनाती है?

मिस्र देस के "नील नदी के बरदान" (गिफ्ट ऑफ़ नाइल) कहल जाला आ एह नदी पर बनल अस्वान बंधा एगो बिस्व-परसिद्ध बान्ह हवे। नील नदी के डेल्टा तिकोन डेल्टा हवे आ एही के नाँव पर अइसन थलरूप सभ के डेल्टा नाँव पड़ल काहें कि यूनानी लिखाई में डेल्टा नाँव के अच्छर (Δ) तिकोना होखे ला।

नील नदी का पानी गर्म क्यों होता है?

यह तापमान इतना है कि अंडे और चावल आसानी से उबाल सकता है। कहा जाता है की यदि कोई जीव इस नदी में गिर जाए तो वो जिंदा नहीं बचता। ठंड के मौसम में भी इस नदी का पानी इतना ही गर्म ही रहता है। लोगों का कहना है कि इस नदी में पानी इतना गर्म रहता है की आप उसमें आसानी से चावल तक पका कर खा सकते हैं।

नील नदी का उपहार कौन सा देश कहलाता है?

मिस्र 'लीग ऑफ अरब स्टेट्स' का सदस्य है। यदि इजिप्ट में नील नदी नहीं होती तो यह पूरा देश एक मरुस्थल ही होता, इसलिए मिस्र को नील नदी का उपहार कहा जाता है।