मानव शरीर में दो हड्डियां आपस में कैसे जुड़ी रहती है? - maanav shareer mein do haddiyaan aapas mein kaise judee rahatee hai?

मानव शरीर में दो हड्डियां आपस में कैसे जुड़ी रहती है? - maanav shareer mein do haddiyaan aapas mein kaise judee rahatee hai?

अस्थियाँ या हड्डियाँ [1] रीढ़धारी जीवों का वह कठोर अंग है जो अन्तःकंकाल का निर्माण करती हैं। यह शरीर को चलाने (स्थानांतरित करने), सहारा देने और शरीर के विभिन्न अंगों की रक्षा करने मे सहायता करती हैं साथ ही यह लाल और सफेद रक्त कोशिकाओं का निर्माण करने और खनिज लवणों का भंडारण का कार्य भी करती हैं। अस्थियाँ विभिन्न आकार और आकृति की होने के साथ वजन मे हल्की पर मजबूत होती हैं। इनकी आंतरिक और बाहरी संरचना जटिल होती है। अस्थि निर्माण का कार्य करने वाले प्रमुख ऊतकों मे से एक उतक को खनिजीय अस्थि ऊतक, या सिर्फ अस्थि ऊतक भी कहते हैं और यह अस्थि को कठोरता और मधुकोशीय त्रिआयामी आंतरिक संरचना प्रदान करते हैं। अन्य प्रकार के अस्थि ऊतकों मे मज्जा, अन्तर्स्थिकला और पेरिओस्टियम, तंत्रिकायें, रक्त वाहिकायें और उपास्थि शामिल हैं। वयस्क मानव के शरीर में 206 हड्डियां होती हैं वहीं शिशुओं में 270 से 300 तक हड्डियाँ पायी जातीं हैं।[2]

आयतन[संपादित करें]

हड्डी की मात्रा हड्डी के गठन और हड्डी के पुनर्जीवन की दर से निर्धारित होती है। हाल के शोध ने सुझाव दिया है कि कुछ वृद्धि कारक ऑस्टियोब्लास्ट गतिविधि को बढ़ाकर हड्डी के गठन को स्थानीय रूप से बदलने के लिए काम कर सकते हैं। कई हड्डी-व्युत्पन्न वृद्धि कारकों को हड्डी संस्कृतियों के माध्यम से अलग और वर्गीकृत किया गया है। इन कारकों में इन्सुलिन जैसे वृद्धि कारक I और II, परिवर्तन कारक-बीटा, फाइब्रोब्लास्ट वृद्धि कारक, प्लेटलेट-व्युत्पन्न वृद्धि कारक, और अस्थि मोर्फोजेनेटिक प्रोटीन शामिल हैं। साक्ष्य बताते हैं कि अस्थि कोशिकाएं अस्थि मैट्रिक्स में बाह्य भंडारण के लिए वृद्धि कारक उत्पन्न करती हैं। अस्थि मैट्रिक्स से इन वृद्धि कारकों की रिहाई से ऑस्टियोब्लास्ट अग्रदूतों का प्रसार हो सकता है। अनिवार्य रूप से, अस्थि वृद्धि कारक स्थानीय अस्थि निर्माण के संभावित निर्धारकों के रूप में कार्य कर सकते हैं।[3] शोध ने सुझाव दिया है कि पोस्टमेनोपॉज़ल ऑस्टियोपोरोसिस में रद्द हड्डी की मात्रा कुल हड्डी बनाने वाली सतह और सतह के प्रतिशत के बीच संबंध से निर्धारित की जा सकती है।

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. Lee, Cassandra. "The Bone Organ System: Form and Function". Science Direct. अभिगमन तिथि 30 January 2022.
  2. de Buffrénil, Vivian; de Ricqlès, Armand J; Zylberberg, Louise; Padian, Kevin; Laurin, Michel; Quilhac, Alexandra (2021). Vertebrate skeletal histology and paleohistology (Firstiton संस्करण). Boca Raton, FL: CRC Press. पपृ॰ xii + 825. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-1351189576.
  3. Baylink, D. J. (1991). "Bone growth factors". Clinical Orthopaedics and Related Research. 263 (263): 30–48. PMID 1993386. डीओआइ:10.1097/00003086-199102000-00004.

बाहरी कड़ी[संपादित करें]

  • अमेरिकन सोसाइटी फॉर बोन एंड मिनरल रिसर्च द्वारा शैक्षिक संसाधन सामग्री (एनिमेशन सहित)

पीजोइलेक्ट्रिसिटी और बोन रीमॉडेलिंग की समीक्षा (संदर्भ सहित)

  • साइंस क्रिएटिव क्वार्टरली से बोन बायोलॉजी का एक अच्छा बुनियादी अवलोकन
  • Usha Kini; B. N. Nandeesh (2013-01-03). "Ch 2: Physiology of Bone Formation, Remodeling, and Metabolism" (PDF). प्रकाशित Ignac Fogelman; Gopinath Gnanasegaran; Hans van der Wall (संपा॰). Radionuclide and hybrid bone imaging. Berlin: Springer. पपृ॰ 29–57. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-3-642-02399-6. मूल (PDF) से 6 नवंबर 2020 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 25 मार्च 2022.
  • अस्थि ऊतक विज्ञान फोटोमाइक्रोग्राफ

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कन्धों को जोड़ का चलित चित्रण

संधि या जोड़ (अंग्रेज़ी: Joints) शरीर के उन स्थानों को कहते हैं, जहाँ दो अस्थियाँ एक दूसरे से मिलती है, जैसे कंधे, कुहनी या कूल्हे की संधि।[1] इनका निर्माण शरीर में गति सुलभ करने और यांत्रिक आधार हेतु होता है। इनका वर्गीकरण संरचना और इनके प्रकार्यों के आधार पर होता है।[2]

संधियों के प्रकार[संपादित करें]

शरीर में विशेषकर तीन प्रकार की संधियाँ पाई जाती हैं: अचल संधि, अर्धचल संधि तथा चल संधि।

अचल संधि[संपादित करें]

इन संधियों में अस्थियों के संधिपृष्ठों का संयोग हो जाता है। दोनों अस्थियों के बीच कुछ भी अंतर नहीं होता। इस कारण अस्थियों के संगम स्थान पर किसी प्रकार की गति नहीं हो पाती। दोनों अस्थियाँ तंतु ऊतक द्वारा आपस में जुड़ी रहती हैं। इन संधियों में तीन श्रेणियाँ पाई जाती हैं :

  • (क) सीवनी (Sutures) में अस्थियाँ अपने कोरों द्वारा आपस में मिली रहती हैं। यह केवल कपालास्थियों में पाया जाता है।
  • (ख) दंतमूलसंधि (Gomphosis) में एक अस्थि का नुकीला भाग दूसरी अस्थि के भीतर प्रविष्ट रहता है जैसे हनु में लगे दाँत,
  • (ग) तांतव सांध (Syndesmosis) में अस्थियों के पृष्ठ अस्थ्यांतरिक स्नायु के द्वारा आपस में जुड़े रहते हैं।

अर्धचल संधि[संपादित करें]

इन संधियों में अस्थियों के बीच में उपास्थि (cartilage) रहती है तथा गति कम होती है। इस श्रेणी में दो भेद पाए जाते हैं।

  • (क) उपास्थि संधि (Synchodrosis) में उपास्थि कुछ समय के बाद अस्थि में परिणत हो जाती है और अस्थियों के सिरे एक दूसरे के साथ पूर्णतया जुड़ जाते हैं। पश्चात्कपाल के तलभाग के बीच में इसी प्रकार की संधि होती है। इन संधियों में कुछ भी गति नहीं होती।
  • (ख) तंतूपास्थि संधि (symphysis) में अस्थियों के सिरों के बीच में रहनेवाली उपास्थि का शोषण नहीं होता। यह उपास्थि दोनों अस्थियों को एक दूसरे से मिलाए रहती है। उपास्थि के अतिरिक्त कुछ स्नायुएँ भी अस्थियों को जोड़े रहती हैं। इसी कारण इन संधियों में कुछ गति होती है। कशेरुकों के बीच की संधि इसी प्रकार की है।

चल संधियाँ[संपादित करें]

इन संधियों की गति अबाध होती है। इनमें निम्नलिखित विशेषताएँ पाई जाती हैं :

  • इन संधियों में गतियों की बहुरूपता, जिससे सब दिशाओं, दो दिशाओं, एक दिशा, या केवल अक्षों पर ही गति होती है;
  • संधि के भीतर स्थित अस्थियों का एक दूसरे से प्रत्यक्ष संपर्क नहीं होता;
  • संधि एक कोशिका द्वारा पूर्णतया आच्छादित रहती है, जिसमें दो स्तर होते हैं : (1) तंतु स्तर (fibrous layer) तथा (2) स्नेहक स्तर (Synovial layer);
  • स्नेहक स्तर संधि का भीतर से पूर्णतया ढक रहता है। केवल उपास्थियुक्त अस्थियों के सिरे को स्वतंत्र छोड़ देता है;
  • संधि के भीतर विवर (cavity) होता है, जो तंतु उपास्थि के एक गोल टुकड़े से पूर्णतया, अथवा अपूर्णतया, दो भागों में विभक्त रहता है;
  • कोशिका के बाहर स्नायु उपस्थित रहती हे, जो नीचे को टेढ़ बनाती है। संधियों में स्थित अर्ध एवं पूर्णचंद्राकार तंतूनास्थि से अस्थियों को धक्के से रक्षा होती है और यह दोनों अस्थियों के सिरों को आपस में रगड़ से बचाती है।

चल संधियों के भेद[संपादित करें]

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भिन्न-भिन्न प्रकार की संधियाँ: (१) उलूखल संधि (२) स्थूलकाय संधि (३) पर्याण संधि (४) कोर संधि (कोणीय) (५) कोर संधि (किनारे-किनारे)

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यहाँ प्रमुख ६ श्लेषक संधियाँ चिह्नित की गयीं हैं।

1. कोर संधि (Gingliums) के संधायक पृष्ठ एक दूसरे के अनुकूल ऐसे बन जाते हैं कि अस्थियाँ केवल एक ही अक्ष पर गति कर सकती हैं, जैसे ककुहनी की संधि;

2. विवर्तिका संधि (Pivot joint) में एक अस्थि कुंडल की भाँति बन जाती है और दूसरी किवाड़ की चूल की भाँति उसके भीतर बैठकर घूमती है, जैसे प्रकोष्ठिकांतर संधि (Fadio-ulnar joint);

3. स्थूलकाय संधि (Condyloid joint) में एक लंबा सा गढ़ा बन जाता है और दूसरी अस्थि उन्नतोदर और लंबोतरी सी हो जाती है। यह भाग पहली अस्थि के गढ़े में रहता है और अस्थियाँ स्नायुओं द्वारा आपस में बँधी रहती हैं, जैसे मणिबंध अर्थात् कलाई की संधि। इनमें आकुचन (flexion), विस्तार (extension), अभिवर्तन (adduction), अपवर्तन (abduction), पर्यावर्तन (circumduction) इत्यादि क्रियाएँ होती हैं।

4. पर्याण संधि (saddle joint) में एक अस्थि का आकार जीन के समान होता है। यह एक दिशा में अवतल और दूसरी दिशा में उत्तल हो जाती है, जैसे अँगूठे की मणिबंध करभ (cartometacarpal) संधि;

5. उलूखल संधि (Ball and Socket joint) में एक अस्थि में गढ़ा बन जाता है। दूसरी अस्थि का एक प्रांत कुछ गोल पिंड का रूप धारण करके इस गढ़े में स्थित हो जाता है। संधिविवर तथा स्नायु द्वारा संधि दृढ़ हो जाती है, जिससे संधि की प्रत्येक दिशा में गति हो सकती है और स्वयं अपने अक्ष पर घूम सकती है। स्कंध संधि और नितंब संधि इसके उदाहरण है।

6. सरल संधि (Plain Joint) - इसके पृष्ठ इस प्रकार ढले होते हैं और स्नायु इत्यादि की स्थिति ऐसी होती है कि अस्थियाँ इधर-उधर कुछ ही सरक सकती है, जैसे कशेरुका संधि।

संधियों की रचना[संपादित करें]

शरीर में संधियों का प्रयोजन गति होता है। इसलिए इनकी रचना भी इस प्रकार की है कि अस्थियाँ गति कर सकें और साथ ही अपने स्थान से च्युत भी न हों। प्रत्येक संधि पर एक तंतुक या स्नायविक कोशिका चढ़ी रहती है, जो संपूर्ण संधियों को ढकती हुई संधि में भाग लेने वाली अस्थियों के सिरों पर लगी रहती है। इस तंतुस्तर के विशेष भागों का विशेष विकास हो जाता है और वे अधिक दृढ हो जाते हैं। इन भागों को स्नायु कहते हैं, जो भिन्न भिन्न संधियों में भिन्न भिन्न संख्या में होती है। तंतुस्तर के भीतर स्नेहकस्तर होता है, जो अस्थियों के ऊपर तक पहुँचकर उन्हें ढक लेता है। जिन संधियों के भीतर संघायक चक्रिका (articular dise) रहती है, वहाँ स्नेहक स्तर की एक परत सघायंक चक्रिका के ऊपर भी फैली होती है, जिससे स्नेहक स्तर तथा संघायक चक्रिका के बीच में, स्नेहक कला की खाली में, स्नेहक द्रव्य उपस्थित हो जाता है। यह स्नेहक द्रव्य संधिस्थित अस्थि के भागों को चिकना रखता है और उनको रगड़ से बचाता है।

स्नायु[संपादित करें]

स्नायु (Ligaments) तंतुमय ऊतक के समांतर सूत्रों के लबें पट्ट होते हैं। इनसे दो अस्थियों के दोनों सिरे जुड़ते हैं। इनके भी दोनों सिरे दो अस्थियों के अविस्तारी भागों पर लगे रहते हैं। ये स्नायु कोशिका के बाहर स्थित रहती है और कुछ भीतर। भीतरी स्नायु की संख्या कम होती है।

श्लेष्मल आवरण (Mucous sheath)[संपादित करें]

यह पेशियों को स्नायुओं (ligaments) पर चढ़ा रहता है। इन आवरणों की दो परतों के बीच एक द्रव होता है, जो विशेषकर उन स्थानों पर पाया जाता है, जहाँ स्नायु अस्थि के संपर्क में आती है। इससे संधि के कार्य के काल में स्नायुओं में कोई क्षति नहीं होने पाती।

स्नेहपुटी (Bursa)[संपादित करें]

यह भिन्न आकार की झिल्ली होती है, जिसकी स्नेहक कला (synovial membrane) की कोशिका में गाढ़ा स्निग्ध द्रव्य भरा रहता है। यह उन अस्थियों के पृष्ठों के बीच अधिक रहती है, जो एक दूसरे पर रगड़ खाती हैं, या जिन संधियों में केवल सरकने की क्रिया होती है।

संधियों में होनेवाली गतियाँ[संपादित करें]

प्रत्येक चल संधि में मांसपेशियों की सिकुड़न और प्रसार से निम्नलिखित क्रियाएँ होती है :

  • आकुंचन (flexion),
  • विस्तार (extension),
  • अभिवर्तन (adduction),
  • अपवर्तन अपवर्तन (abduction),
  • पर्यावर्तन (circumduction),
  • परिभ्रमण (rotation), एवं
  • विसर्पन (gliding)

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. joint को ई-मेडिसिन शब्दकोष पर देखें
  2. एल्लिस, हैरोल्ड; सूज़न स्टैन्ड्रिंग; ग्रे, हेनरी डैविड (२००५). ग्रे’ज़ ऍनाटॉमी: द ऍनाटॉमिकल बेसिस ऑफ क्लीनिकल प्रैक्टिस. सेंट लुई, मो: एल्सेवियर चर्चिल लिविंगस्टोन. पपृ॰ ३८. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-443-07168-3.सीएस1 रखरखाव: एक से अधिक नाम: authors list (link)

मानव शरीर में दो हड्डियां कैसे जुड़ी होती हैं?

विभिन्न गतिविधियों एवं विभिन्न प्रकार की गतियों के लिए हमारे शरीर में अनेक प्रकार की संधियाँ होती हैं

दो हड्डियों के बीच क्या होता है?

ज्यादातर हड्डियां बीच से खोखली होती हैं। इनके बीच एक जैली होती है, जिसे बोनमैरो कहते हैं। इस जैली में ब्लड सेल्स बनते हैं।

हड्डियों के जोड़ कितने प्रकार के होते हैं?

कुल तीन जोड़ हमारे शरीर में मौजूद हैं: फिक्स्ड या अचल जोड़, थोड़ा कम हिलने वाला या कार्टिलाजीस जोड़ और हर जगह हिलने वाला या सिनोवलियल जोड़.

हड्डी से हड्डी को कौन जोड़ता है?

लिगामेंट एक संयोजी ऊतक है जो हड्डी को हड्डी से जोड़ता है।