मोको कहाँ ढूंढे रे बन्दे की व्याख्या Class 9 - moko kahaan dhoondhe re bande kee vyaakhya chlass 9

प्रेमी को ढ़ूँढ़ने से भी पाना मुश्किल होता है। यहाँ पर प्रेमी का मतलब ईश्वर से है जिसे प्रेमी रूपी भक्त सच्चे मन से ढ़ूँढ़ने की कोशिश करता है। एक बार जब एक प्रेमी दूसरे प्रेमी से मिल जाता है तो संसार की सारी कड़वाहट अमृत में बदल जाती है।

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हस्ती चढ़िये ज्ञान कौं सहज दुलीचा डारी
स्वान रूप संसार है भूंकन दे झख मारि।

ज्ञान या ज्ञानी अगर हाथी चढ़कर भी आपके पास आता है तो उसके लिए गलीचा बिछाना चाहिए। हाथी चढ़कर आने का मतलब है आपकी पहुँच से दूर होना। हालाँकि ऐसे समय दुनिया के ज्यादातर लोग ऐसे ही बर्ताव करते हैं जैसे हाथी के बाजार में चलने से कुत्ते भूंकने लगते हैं। कुत्ते उसका कुछ बिगाड़ नहीं सकते हैं और सिर्फ अपना समय बरबाद करते हैं। आप अपना समय बरबाद मत कीजिए बल्कि उससे जितना हो सके ज्ञान लेने की कोशिश कीजिए।

पखापखी के कारने सब जग रहा भुलान
निरपख होई के हरी भजै, सोई संत सुजान।

एक विचार या दूसरे विचार या धर्म का पक्ष लेने के चक्कर में दुनिया भूल भुलैया में पड़ी रहती है। जो निष्पक्ष होकर ईश्वर की पूजा करता है वही सही ज्ञान पाता है।

हिंदू मूया राम कही मुसलमान खुदाई
कहे कबीर सो जीवता जे दुहूँ के निकटि जाई।

हिंदू मुझे राम कहते हैं और मुसलमान खुदा कहते हैं। सही मायने में वही जीता जो इन दोनों से परे मुझे ईश्वर समझता है। क्योंकि ईश्वर एक हैं और विभिन्न धर्मों की परिभाषा व्यर्थ है।

मोको कहाँ ढूंढे बन्दे, मैं तो तेरे पास में ll ll
ना तीरथ में ना मूरत में, ना एकान्त निवास में l
ना मंदिर में ना मस्जिद में, ना काशी कैलाश में ll१ll
ना मैं जप में ना मैं तप में, ना मैं बरत उपास में l
ना मैं क्रिया कर्म में रहता, नहीं योग संन्यास में ll२ll
नहीं प्राण में नहीं पिंड में, न ब्रह्माण्ड आकाश में l
ना मैं भृकुटी भँवर गुफा में, नहीं नाभि के पास में ll३ll
खोजी होय तुरत मिल जाऊँ, एक पल की हि तलाश में l
कहहिं कबीर सुनो भाई साधो, सब स्वांसों की स्वांस में ll४ll


मोको कहाँ ढूंढे रे बन्दे की व्याख्या Class 9 - moko kahaan dhoondhe re bande kee vyaakhya chlass 9




भावार्थ – आत्मा ही परमात्मा है, यह बोध हो जाने पर, मानो वह अपने आपसे पूछ रहा है कि हे बंदे ! तू मुझे बाहर कहां खोजता है ! मैं तो तेरे पास में हूँ l पास में कहना भी कहने का एक तरीका है l मैं स्वयं वह हूँ जिसे खोज रहा हूँ l

ना मैं तीर्थ में हूं न मूर्ति में हूं, न एकांत निवास में हूं l न मैं मंदिर में हूं न मस्जिद में हूं, और न काशी तथा कैलाश में हूं l न मैं जप में हूं न तप में हूं और न व्रत तथा उपवास में हूं l न मैं क्रिया-कर्म में रहता हूं और न योग तथा सन्यास में रहता हूं l न मैं प्राण में हूँ न पिंड में हूं और न ब्रह्माण्ड तथा आकाश में हूं l न मैं भृकुटी में रहता हूं न भंवर गुफा में रहता हूं और न नाभि के पास कुंडलिनी आदि में रहता हूं l

यदि कोई खोजी हो तो उसे एक क्षण की तलाश में तुरंत मिल जाऊं l #कबीर_साहेब कहते हैं कि हे संतो ! सुनो, आत्म अस्तित्व तो सब श्वासों के श्वास में है l
लोग परमात्मा, ईश्वर, ब्रह्म, खुदा, गॉड, मोक्ष, परमपद बाहर खोजते हैं l यह उनका भ्रम है l जो खोज रहा है वह स्वयं परम सत है l दृष्टि बाहर से लौटाये और अपने आप पर ध्यान दे तो बाहर से कुछ पाना नहीं रहेगा l सारी इच्छाएं छोड़ देने पर छोड़ने वाला द्रष्टा जीव स्वयं शिव है l अपने आपको ठीक से समझना चाहिए और सांसारिक इच्छाएं छोड़ना चाहिए l

#कहत_कबीर


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मोको कहाँ ढूंढे रे बन्दे की व्याख्या Class 9 - moko kahaan dhoondhe re bande kee vyaakhya chlass 9


          इस पोस्ट के माध्यम से हम क्षितिज भाग 1 कक्षा-9 पाठ-9 (NCERT Solution for class-9 kshitij bhag-1 chapter – 9) कबीर दास की साखियाँ एवं सबद (पद) काव्य खंड (Kabir Das ki Sakhi and Sabad) के भावार्थ के बारे में जाने । उम्मीद करती हूँ कि आपको हमारा यह पोस्ट पसंद आया होगा। पोस्ट अच्छा लगा तो इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर करना न भूले। किसी भी तरह का प्रश्न हो तो आप हमसे कमेन्ट बॉक्स में पूछ सकतें हैं। साथ ही हमारे Blogs को Follow करे जिससे आपको हमारे हर नए पोस्ट कि Notification मिलते रहे।
कबीर दास जी के अनुसार ईश्वर किसी नियत स्थान पर ही नहीं रहता,वह तो सृष्टि के कण-कण मे व्याप्त है।कबीर दास जी के भगवान कहते हैं-- ऎ मेरे भक्तों ! तुम मुझे ढूँढ़ने के लिए कहाँ - कहाँ भटक रहे हो । मैं तुम्हें किसी देवालय या मस्ज़िद में नहीं मिलूँगा । ना ही तथाकथित क़ाबा या कैलास जैसे तीर्थ-स्थलों में ही मुझे ढूँढ़ पाओगे । तुम मुझे पूजा,जप,तप या किसी भी कर्म - काण्ड के द्वारा नहीं पा सकते । यदि सोचते हो योगी बन जाने या बैराग धारण कर लेने से तुम मुझे पा जाओगे तो ये तुम्हारा भ्रम है। मैं तुम्हें इन सांसारिक आडंबरों या दिखाओं से कभी प्राप्त नहीं होऊँगा । यदि मुझे खोजने वाला हो और सच्चे मन एवम् पवित्र भाव से खोजे तो मैं उसे पल भर में मिल जाऊँगा क्योंकि मैं कहीं बाहर नहीं बल्कि तुम्हरे अन्दर ही मौज़ूद हूँ । कबीर दास जी कहते हैं-- हे साधुजनों ! ऎ अल्लाह के बन्दों ! ईश्वर हमारी साँसों में समाया हुआ है। अत: अपनी आत्मा में ढूँढ़ो ।अपनी आत्मा को जान लिए तो ईश्वर को जान जाओगे ।


सबद (पद) - 2

संतौं भाई आई ग्याँन की आँधी रे ।
भ्रम की  टाटी  सबै  उड़ानी , माया  रहै   न  बाँधी ॥
हिति चित्त की द्वै थूँनी गिराँनी, मोह  बलिण्डा  तूटा ।
त्रिस्नाँ छाँनि परि घर ऊपरि , कुबुधि  का  भाण्डा फूटा॥
जोग जुगति करि संतौं बाँधी , निरचू   चुवै  न  पाँणी ।
कूड़ कपट काया का निकस्या , हरि की गति जब जाँणी॥
आँधी  पीछै  जो  जल  बूठा , प्रेम  हरि  जन  भींनाँ ।
कहै  कबीर  भाँन  के  प्रगटै , उदित भया तम खीनाँ ॥


शब्द और उनके प्रतीक
ज्ञान  - आँधी
भ्रम   - टाटी
माया  - बंधन
स्वार्थ  - खम्भे
मोह   - बलिण्डा
लालसा - छत
भाण्डा  - कुबुद्धि
कपट   - विकार
काया   - झोपड़ी

अर्थ :- कबीर दास जी कहते हैं कि जिस प्रकार आँधी के आने से जो कमज़ोर झोपड़ी होती है सबसे पहले उसकी टाटी (चारों ओर की दीवार ) उड़ जाती है,उसके बंधन खुल जाते हैं । जिन खम्भों पर वो टिकी होती है वे खम्भे धाराशायी हो जाते हैं। फ़लस्वरूप छत को रोकने के लिए एक खम्भे से दूसरे खम्भे तक लगा बलिण्डा (मोटी लकड़ी) टूट जाता है । बलिण्डा टूटने पर छत गिर जाती है जिससे झोपड़ी के अन्दर के भाण्डे (मिट्टी के बर्तन) टूट-फूट जाते हैं ।जिनकी झोपड़ी अच्छी युक्ति लगाकर छाई रहती है उन पर आँधी का कोई प्रभाव नहीं पड़ता।उनमे एक बूँद भी पानी नहीं चूता।जिनकी झोपड़ी गिर जाती है वे लोग टूटे हुए बर्तनों को कूड़ा-कचरा समझकर फेंक देते हैं।घर की साफ़-सफ़ाई करते हैं।वर्षा के कारण झोपड़ी के अन्दर की सारी चीज़ें धुल जाती हैं जिससे झोपड़ी स्वच्छ हो जाती है।वर्षा के बाद सूरज निकलता है तो मेघों के कारण छाई अँधियारी भी दूर हो जाती है।वातावरण सुन्दर और मनोहारी हो जाता है।

कबीर दास जी ने ज्ञान के आगमन की तुलना ऎसी ही आँधी से करते हुए कहते हैं कि जब ज्ञान का आगमन होता है तो सबसे पहले मन का भ्रम दूर हो जाता है,माया का बन्धन खत्म हो जाता है।फलस्वरूप अपने और केवल अपनों के स्वार्थ के बारे में सोचने की मनोवृत्ति समाप्त हो जाती है एवम् मन का मोह भंग हो जाता है ।मोह भंग होने से और-और पाने की लालसा या लोभ-लालच मिट जाती है जिससे हमारे अन्दर की कुबुद्धि या दुर्बुद्धि और मन के समस्त विकार नष्ट हो जाते हैं। जो सच्चे और संत प्रवृत्ति के होते हैं उन पर ज्ञान के आगमन से कोई विशेष परिवर्तन नहीं होता ।ज्ञान प्राप्ति के बाद जब अन्दर के समस्त विकार मिट जाते हैं तब मन शान्त और निर्मल और प्रेम से परिपूर्ण हो जाता है।अज्ञान का अँधियारा दूर हो जाने से मन में भक्ति भाव जग जाता है और भक्त ईश्वर मे लिन होने लगता है।

कक्षा 9 कबीर की साखियाँ व्याख्या?

अर्थ – संत कबीर कहते हैं पक्ष-विपक्ष के कारण सारा संसार आपस में लड़ रहा है और भूल-भुलैया में पड़कर प्रभु को भूल गया है। जो ब्यक्ति इन सब झंझटों में पड़े बिना निष्पक्ष होकर प्रभु भजन में लगा है वही सही अर्थों में मनुष्य है। हिन्दू मूआ राम कहि, मुसलमान खुदाई। कहै कबीर सो जीवता, दुहुँ के निकटि न जाइ।

कबीर दास जी के सबद?

कबीर के सबद.
साधो, पाँड़े निपुन कसाई.
साधो, देखो जग बौराना.
मोकों कहाँ ढूँढ़े बंदे.
दुई जगदीस कहाँ ते आया.
रहना नहिं देस बिराना है.
सुनता नहीं धुन की ख़बर.
ना जानै साहब कैसा है.
अवधू बेगम देस हमारा.

कबीर दास के पाठ्यपुस्तक के अतिरिक्त 10 दोहे लिखकर याद करें?

दुख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय जो सुख में सुमिरन करे, दुख काहे को होय ... .
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलया कोय ... .
बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर ... .
काल करे सो आज कर, आज करे सो अब ... .
साईं इतनी दीजिए, जा में कुटुंब समाए ... .
जैसे तिल में तेल है, ज्यों चकमक में आग ... .
माया मरी न मन मरा, मर-मर गए शरीर.

कबीर दास का जीवन परिचय क्लास 9?

कबीरदास का जन्म सन् १३९८ ई. में काशी में हुआ। ऐसी मान्यता है कि उन्हें एक विधवा ब्राह्मणी ने जन्म दिया और लोकलाज से बचने के लिए लहरतारा नामक तालाब के किनारे रख दिया। नीरू और नीमा नामक मुस्लिम दमप्ती ने उसका पालन-पोषण किया।