मुझे रात में सांस की तकलीफ क्यों महसूस होती है? - mujhe raat mein saans kee takaleeph kyon mahasoos hotee hai?

Published on: 15 February 2022, 22:00 pm IST

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क्या आप आधी रात को अचानक जग जाती हैं और फिर आपको सांस लेने में दिक्कत होती है? यदि आपको लेटते समय सांस लेने में कठिनाई होती है, तो आपको अपने डॉक्टर को दिखाना चाहिए। सांस की तकलीफ के अलग-अलग कारण से भी होते हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि आपका वातावरण इसमें भूमिका निभा सकता है।

क्यों हो जाती है सोते समय सांस लेने में परेशानी

अगर आपको भी रात में सांस लेने में तकलीफ हो रही है, तो यह सामान्य नहीं है। एनएलएम के अनुसार, एक संभावित कारण पैरॉक्सिस्मल नोक्टर्नल डिस्पेनिया (पीएनडी) नामक स्थिति है। यह स्थिति आपको रात में अचानक जागने और सांस लेने में तकलीफ का कारण बनती है। आप जाग सकते हैं और खुद को खांसते हुए पा सकते हैं। पीएनडी कंजेस्टिव हार्ट फेल्योर या सीओपीडी के कारण हो सकता है।

लेटते समय सामान्य सांस लेने में कठिनाई (जिसे ऑर्थोपनिया कहा जाता है) तब होता है, जब आपको सपाट लेटते समय सामान्य रूप से सांस लेने में परेशानी होती है। आराम से सांस लेने के लिए, आपको अपना सिर ऊपर उठाना चाहिए। कुछ प्रकार के हृदय या फेफड़ों की समस्या वाले लोगों के लिए यह समस्या आम है।

मगर, यदि आपको अचानक रात में सांस लेने में तलकीफ होती है, तो आपको सतर्क हो जाना चाहिए, क्योंकि यह कई बीमारियों का संकेत हो सकता है। जैसे –

1) फेफड़ों की समस्या

खून का थक्का जमना
सूजन और बलगम का निर्माण
क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (COPD)
न्यूमोनिया
उच्च रक्त चाप
फेंफड़ों की अन्य बीमारी

रात में हो सकती है सांस लेने में तकलीफ. चित्र : शटरस्टॉक

2) हृदय संबंधी समस्या

सीने में दर्द
दिल का दौरा
जन्म से हृदय दोष
दिल की धड़कन रुकना
हार्ट रिदम में गड़बड़ी

3) पर्यावरणीय कारण

एलर्जी
उच्च ऊंचाई जहां हवा में कम ऑक्सीजन है
वातावरण में धूल
एंग्जाइटी
पैनिक अटैक

रात में सांस लेने में तकलीफ के अन्य कारणों में शामिल हैं:

सीओपीडी (COPD)
कोर पल्मोनेल (जब हृदय का दाहिना भाग विफल हो जाता है)
दिल की धड़कन रुकना (Heart failure)
घबराहट की समस्या
स्लीप एप्निया (Sleep apnea)
खर्राटे

रात में सांस की तकलीफ का अनुभव कई कारणों से हो सकता है। अंतर्निहित कारण का निदान करने के लिए आपको अपने डॉक्टर से बात करनी चाहिए।

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सोते-सोते बेचैन हो जाते हैं, सांस नहीं ले पाते, तो ये ख़बर है आपके लिए

  • नील स्टीनबर्ग
  • बीबीसी फ़्यूचर

19 मार्च 2020

मुझे रात में सांस की तकलीफ क्यों महसूस होती है? - mujhe raat mein saans kee takaleeph kyon mahasoos hotee hai?

इमेज स्रोत, BBC Future

दुनिया में ऐसे बहुत से लोग हैं, जो सोते समय सांस नहीं ले पाते हैं और रात भर बेचैन रहते हैं.आप ये जानकर हैरान रह जाएंगे कि दुनिया भर में क़रीब एक अरब लोग इस बीमारी से पीड़ित हैं.

ये इतनी गंभीर बीमारी है कि इसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि सांस न ले पाने से जान जाने का भी डर रहता है. अगर ऐसा नहीं होता है तो भी इस बीमारी के शिकार लोग दिल की और सांस लेने की कई बीमारियों के शिकार हो सकते हैं. उन्हें टाइप-2 डायबिटीज़ हो सकता है.

सोते समय हमारी नींद कई चरणों से गुज़रती है. सोते समय ब्लड प्रेशर और सांस लेने में भी उतार-चढ़ाव आता रहता है. सोते समय हमारी ज़्यादातर मांसपेशियां आराम की मुद्रा में रहती हैं. लेकिन अगर आपकी गले की पेशी कुछ अधिक ही तनावमुक्त हो जाती है, तो आपके अंदर हवा जाने वाला रास्ता बंद हो जाता है.

आप सांस लेने के लिए संघर्ष करने लगते हैं. इसे ही नींद में सांस न लेने की बीमारी या Sleep apnoea कहते हैं. ये शब्द यूनानी भाषा के लफ़्ज़ 'apnoia' से आया है, जिसका मतलब है सांस न ले पाना.

अमरीका में हुई रिसर्च बताती है कि वहां हर साल क़रीब 38 हज़ार लोग इस बीमारी से मर जाते हैं. स्वीडन में एक अध्ययन में पता चला कि जिन ट्रक ड्राइवरों को ये बीमारी है, उनके सड़क हादसे के शिकार होने की आशंका ढाई गुना तक बढ़ जाती है.

भयंकर 'स्लीप एपनिया' के शिकार लोगों के 18 साल की समय सीमा के भीतर मर जाने की आशंका ज़्यादा होती है.

असल में जब लोग सांस नहीं ले पाते हैं, तो शरीर में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है. फिर दिल और रक्त प्रवाह बढ़ाने के लिए तेज़ी से ख़ून पंप करना पड़ता है. इससे दिल पर दबाव बढ़ता है. फिर ख़ून की नलियों में थक्के जमने की आशंका बढ़ जाती है. मोटापे, बड़ी गर्दन और लंबी नाक से भी ये समस्या और बढ़ जाती है. इसके अलावा अगर जबड़े छोटे हैं तो भी नींद में सांस न ले पाने की दिक़्क़त बढ़ जाती है.

दिक़्क़त इस बात की है कि इस बीमारी का पता इंसान को ख़ुद से मुश्किल से ही होता है. क्योंकि सोते वक़्त वो बेचैन होता है. नींद पूरी न होने से उठने पर थकान होती है. सिर और शरीर में दर्द होता है. इंसान डिप्रेशन का शिकार होता है. लेकिन, इसका मूल कारण पता नहीं होता.

नींद में सांस न ले पाने की समस्या का पता सिर्फ़ किसी की सोते वक़्त निगरानी करके ही लगाया जा सकता है.

इस बीमारी का पता लगने के बाद क़रीब एक दशक तक सिर्फ़ एक इलाज उपलब्ध था. इसमें गले का ऑपरेशन कर के सांस लेने का रास्ता बड़ा कर दिया जाता था. ताकि वो बंद न हो. लेकिन, ये सर्जरी आसान नहीं थी. और इससे उबरने में भी समय लगता था. फिर सर्जरी के बाद रख-रखाव और रोज़ सफ़ाई जैसी चुनौतियां भी थीं.

1970 के दशक में ऑस्ट्रेलिया के डॉक्टर कॉलिन सुलीवन, कनाडा के टोरंटो में नींद पर रिसर्च कर रहे थे. उस दौरान उन्होंने कुत्तों के सांस लेने के लिए एक मास्क इजाद किया था. आगे चलकर उन्होंने इसे ही इंसानों के पहनने लायक़ बनाया. जिसे कॉन्टिन्यूअस, पॉज़िटिव, एयरवे प्रेशर मशीन (CPAP) का नाम दिया गया.

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कम सोने से मोटापा, डायबिटीज़, हाई ब्लड प्रेशर और दिल की बीमारियां हो सकती हैं.

ये मास्क नींद में सांस न ले पाने वालों के लिए मददगार तो था, मगर लोग इसे नियमित रूप से नहीं पहनते थे. ये देखने में भी अजीब लगता था और रात में सोते वक़्त पहनने से उलझन भी होती थी. नतीजा ये कि मास्क में तमाम तरह के सुधार होने के बावजूद, स्लीप एपनिया के मरीज़ों के इलाज का ये नुस्खा बहुत कारगर नहीं साबित हो सका.

नींद में सांस न ले पाने वालों की परेशानी तब और बढ़ जाती है, जब वो मोटापे के शिकार हो जाते हैं. इसलिए, इस बीमारी के मरीज़ों के लिए एक नुस्खा तो ये है कि वो अपना वज़न घटा लें. मगर ये स्थायी समाधान है नहीं. क्योंकि कोई भी लगातार डाइटिंग कर नहीं सकता.

1990 के दशक में इस बीमारी का एक और इलाज सामने आया. जो लोग मास्क नहीं लगा सकते थे, उनके मुंह में एक डेंटल उपकरण लगा कर उन्हें सांस लेने में मदद मुहैया कराने की कोशिश की गई.

इस मामले के विशेषज्ञ डेविड टुरोक कहते हैं, 'असल में जो लोग इस परेशानी के शिकार होते हैं, उनकी जीभ मुंह में घूमने की जगह नहीं पाती तो वो सांस लेने के रास्ते को बंद कर देती है. मुंह में लगाया जाने वाला उपकरण आपके निचले जबड़े को आगे की ओर बढ़ा देता है. जीभ भी इसी के साथ आगे की ओर आ जाती है. तो आप सांस ले पाते हैं.'

लेकिन, मुंह में लगाया जाने वाला ये उपकरण भी नींद में सांस न ले पाने की समस्या का अधूरा समाधान ही है. ये जबड़े को ज़बरदस्ती आगे की ओर धकेलता है. इससे, इसे लगाने वाले असहज महसूस करते हैं. और जो दबाव पड़ता है, उससे दांतों की बनावट में भी फ़र्क़ आ जाता है.

डॉक्टरों का कहना है कि भयंकर रूप से स्लीप एपनिया के शिकार लोगों के लिए पहला विकल्प मास्क है और दूसरा तरीक़ा है सर्जरी.

सर्जरी में अब जबड़े को बढ़ाने वाला तरीक़ा भी काम में लाया जा रहा है. जिससे लोगों के जबड़े को दो हिस्सों में तोड़ कर सर्जरी के बाद उसमें एक तार डाल दी जाती है.

हाल के दिनों में स्लीप एपनिया के मरीज़ों के लिए एक और नुस्खा इजाद किया गया है. बिजली के झटके से जीभ को लगातार हिलाते रहने का उपकरण, जिससे जीभ, सांस लेने के द्वार को बंद न करे. इसे हाइपोग्लॉसल नर्व स्टिमुलेशन (HNS) कहते हैं.

हालांकि, अब डॉक्टर और वैज्ञानिक इसके लिए दवाओं पर रिसर्च कर रहे हैं. विशेषज्ञों का मानना है कि ये समस्या न्यूरोकेमिकल है. यानी ये शरीर से निकलने वाले कुछ हॉरमोन की वजह से होने वाली बीमारी है. इसलिए इसका इलाज भी केमिकल नुस्खे हो सकते हैं.

2017 में हुए एक अध्ययन में डॉक्टरों ने बताया कि ड्रोनाबिनोल नाम का एक केमिकल इस बीमारी में असर दिखाता है. ये केमिकल गांजे में पाया जाता है.

हालांकि, अभी इसका इंसानों पर ट्रायल होना बाक़ी है.

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सोते समय सांस लेने में दिक्कत क्यों होती है?

सोते समय हमारी नींद कई चरणों से गुजरती है। जिसमें ब्लड प्रेशर और सांस लेने में उतार-चढ़ाव भी शामिल है। वैसे तो सोते समय हमारी ज़्यादातर मांसपेशियां आराम की मुद्रा में रहती हैं। लेकिन अगर गले की पेशी कुछ अधिक ही तनावमुक्त हो जाए, तो अंदर हवा जाने वाला रास्ता बंद हो जाता है, और सांस लेने में दिक्कत होने लगती है।

सोते समय सांस लेने में दिक्कत हो तो क्या करना चाहिए?

वजन घटाना : पिकविकियनसिंड्रोम के इलाज का सबसे अच्छा तरीका है वेट कम करना। इसके लिए फिजिकल एक्सरसाइज सबसे अच्छा है, पर मेडिसिन भी ली जा सकती है। इसके अलावा वेट लॉस सर्जरी या बेरिएट्रिक सर्जरी भी एक ऑप्शन है।