Show 28 जनवरी 2018 अपडेटेड 30 जनवरी 2019 जैसी कोशिश आज होती लगती है, वैसी ही कोशिश पहले भी होती रही है कि गांधी को किसी एक दायरे में, किसी एक पहचान में बांध कर, उनके उस जादुई असर की काट निकाली जाए जो तब समाज के सर चढ़ कर बोलता था और आज कहीं गहरे में समाज के मन में बसता है. इस कोशिश में वे सब साथ आ जुटे थे जो वैसे किसी भी बात में एक-दूसरे के साथ नहीं थे. सनातनी हिंदू और पक्के मुसलमान दोनों एकमत थे कि गांधी को उनके धार्मिक मामलों में कुछ भी कहने का अधिकार नहीं है. इमेज स्रोत, Keystone/Getty Images गांधी 'खरे अछूत' थेदलित मानते थे कि गैर-दलित गांधी को हमारे बारे में कुछ कहने-करने का अधिकार ही कैसे है? ईसाई भी धर्मांतरण के सवाल पर खुल कर गांधी के खिलाफ थे. बाबा साहब आंबेडकर ने तो आख़िरी तीर ही चलाया था और गांधी को इसलिए कठघरे में खड़ा किया था कि आप भंगी हैं नहीं तो हमारी बात कैसे कर सकते हैं! जवाब में गांधी ने इतना ही कहा कि इस पर तो मेरा कोई बस है नहीं लेकिन अगर भंगियों के लिए काम करने का एकमात्र आधार यही है कि कोई जन्म से भंगी है या नहीं तो मैं चाहूंगा कि मेरा अगला जन्म भंगी के घर में हो. आंबेडकर कट कर रह गए. इससे पहले भी आंबेडकर तब निरुत्तर रह गये थे जब अपने अछूत होने का बेजा दावा कर, उसकी राजनीतिक फसल काटने की कोशिश तेज चल रही थी. तब गांधी ने कहा था, "मैं आप सबसे ज्यादा पक्का और खरा अछूत हूं, क्योंकि आप जन्मत: अछूत हैं, मैंने अपने लिए अछूत होना चुना है." इमेज स्रोत, Central Press/Getty Images गांधी और हिंदुत्व का समर्थन?गांधी ने जब कहा कि वे 'रामराज' लाना चाहते हैं, तो हिंदुत्व वालों की बांछें खिल गईं - अब आयाा ऊंट पहाड़ के नीचे! लेकिन उसी सांस में गांधी ने यह भी साफ कर दिया कि उनका राम वह नहीं है जो राजा दशरथ का बेटा है! उन्होंने कहा कि जनमानस में एक आदर्श राज की कल्पना रामराज के नाम से बैठी है और वे उस सर्वमान्य कल्पना को छूना चाहते हैं. हर क्रांतिकारी जनमानस में मान्य प्रतीकों में नया अर्थ भरता है और उस पुराने माध्यम से उस नये अर्थ समाज में मान्य कराने की कोशिश करता है. इसलिए गांधी ने कहा कि वे सनातनी हिंदू हैं लेकिन हिंदू होने की जो कसौटी बनाई उन्होंने, वह ऐसी थी कि कोई कठमुल्ला हिंदू उस तक फटकने की हिम्मत नहीं जुटा सका. वीडियो कैप्शन, महात्मा गांधी की याद में दास्तानगोई जाति प्रथा का मसलासच्चा हिंदू कौन है - गांधी ने संत कवि नरसिंह मेहता का भजन सामने कर दिया, "वैष्णव जन तो तेणे रे कहिए जे / जे पीड पराई जाणे रे!" और फिर यह शर्त भी बांध दी- "पर दुखे उपकार करे तोय / मन अभिमान ना आणी रे!" फिर कौन हिंदुत्व वाला आतत गांधी के पास! वेदांतियों ने फिर गांधी को गांधी से ही मात देने की कोशिश की, "आपका दावा सनातनी हिंदू होने का है तो आप वेदों को मानते ही होंगे, और वेदों ने जाति-प्रथा का समर्थन किया है." गांधी ने दो टूक जवाब दिया, "वेदों के अपने अध्ययन के आधार पर मैं मानता नहीं हूं कि उनमें जाति-प्रथा का समर्थन किया गया है लेकिन यदि कोई मुझे यह दिखला दे कि जाति-प्रथा को वेदों का समर्थन है तो मैं उन वेदों को मानने से इंकार करता हूं." इमेज स्रोत, STR/AFP/Getty Images 'मैं किसी धर्मविशेष का प्रतिनिधि नहीं'हिंदुओं-मुसलमानों के बीच बढ़ती राजनीतिक खाई को भरने की कोशिश वाली जिन्ना-गांधी मुंबई वार्ता टूटी ही इस बिंदु कि जिन्ना ने कहा कि "जैसे मैं मुसलमानों का प्रतिनिधि बन कर आपसे बात करता हूं, वैसे ही आप हिंदुओं के प्रतिनिधि बन कर मुझसे बात करेंगे, तो हम सारा मसला हल कर लेंगे लेकिन दिक्कत यह है मिस्टर गांधी कि आप हिंदू-मुसलमान दोनों के प्रतिनिधि बन कर मुझसे बात करते हैं जो मुझे कबूल नहीं है." गांधी ने कहा, "यह तो मेरी आत्मा के विरुद्ध होगा कि मैं किसी धर्मविशेष या संप्रदायविशेष का प्रतिनिधि बन कर सौदा करूं! इस भूमिका में मैं किसी बातचीत के लिए तैयार नहीं हूं." और जो वहां से लौटे गांधी तो फिर उन्होंने कभी जिन्ना से बात नहीं की. पुणे करार के बाद अपनी-अपनी राजनीतिक गोटियां लाल करने का हिसाब लगा कर जब करार करने वाले सभी करार तोड़ कर अलग हट गए तब अकेले गांधी ही थे जो उपवास और उम्र से कमज़ोर अपनी काया समेटे देशव्यापी 'हरिजन यात्रा' पर निकल पड़े- "मैं तो उस करार से अपने को बंधा मानता हूं, और इसलिए मैं शांत कैसे बैठ सकता हूं!" इमेज स्रोत, Keystone/Getty Images इमेज कैप्शन, लॉर्ड माउंटबेटन और उनकी पत्नी के साथ मोहनदस करमचंद गांधी 'वन मैन आर्मी'- गांधी'हरिजन यात्रा' क्या थी, सारे देश में जाति-प्रथा, छुआछूत आदि के ख़िलाफ़ एक तूफान ही था! लॉर्ड माउंटबेटन ने तो बहुत बाद में पहचाना कि यह 'वन मैन आर्मी' है लेकिन 'एक आदमी की इस फौज' ने सारी जिंदगी ऐसी कितनी ही अकेली लड़ाइयां लड़ी थीं. उनकी इस 'हरिजन यात्रा' की तूफ़ानी गति और उसके दिनानुदिन बढ़ते प्रभाव के सामने हिंदुत्व की सारी कठमुल्ली जमातें निरुत्तर व असहाय हुई जा रही थीं. तो सबने मिल कर दक्षिण भारत की यात्रा में गांधी को घेरा और सीधा ही हरिजनों के मंदिर प्रवेश का सवाल उठा कर कहा कि आपकी ऐसी हरकतों से हिंदू घर्म का तो नाश ही हो जाएगा! गांधी ने वहीं, लाखों की सभा में इसका जवाब दिया, "मैं जो कर रहा हूं, उससे आपके हिंदू धर्म का नाश होता हो तो हो, मुझे उसकी फिक्र नहीं है. मैं हिंदू धर्म को बचाने नहीं आया हूं. मैं तो इस धर्म का चेहरा बदल देना चाहता हूं!" … और फिर कितने मंदिर खुले, कितने धार्मिक आचार-व्यवहार मानवीय बने और कितनी संकीर्णताओं की कब्र खुद गई, इसका हिसाब लगाया जाना चाहिए. सामाजिक-धार्मिक कुरीतियों पर भगवान बुद्ध के बाद यदि किसी ने सबसे गहरा, घातक लेकिन रचनात्मक प्रहार किया तो वह गांधी ही हैं और ध्यान देने की बात है कि यह सब करते हुए उन्होंने न तो कोई धार्मिक जमात खड़ी की, न कोई मतवाद खड़ा किया और भारतीय स्वतंत्रता का संघर्ष कमजोर पड़ने दिया! इमेज स्रोत, Central Press/Getty Images सत्य ही था गांधी का धर्मसत्य की अपनी साधना के इसी क्रम में फिर गांधी ने एक ऐसी स्थापना दुनिया के सामने रखी कि जैसी इससे पहले किसी राजनीतिक चिंतक, आध्यात्मिक गुरु या धार्मिक नेता ने कही नहीं थी. उनकी इस एक स्थापना ने सारी दुनिया के संगठित धर्मों की दीवारें गिरा दीं, सारी धार्मिक आध्यात्मिक मान्यताओं की जड़ें हिला दीं. पहले उन्होंने ही कहा था, "ईश्वर ही सत्य है!" फिर वे इस नतीजे पर पहुंचे "अपने-अपने ईश्वर को सर्वोच्च प्रतिष्ठित करने के द्वंद ने ही तो सारा कुहराम मचा रखा है! इंसान को मार कर, अपमानित कर, उसे हीनता के अंतिम छोर तक पहुंचा कर जो प्रतिष्ठित होता है, वह सारा कुछ ईश्वर के नाम से ही तो होता है." इमेज स्रोत, Getty Images Archival दुनिया को गांधी की ज़रूरतइसलिए गांधी ने अब एक अलग ही सत्य-सार हमारे सामने उपस्थित किया कि 'ईश्वर ही सत्य है' नहीं बल्कि 'सत्य ही ईश्वर' है! "धर्म नहीं, ग्रंथ नहीं, मान्यताएं-परंपराएं नहीं, स्वामी-गुरु-महंत-महात्मा नहीं, सत्य और केवल सत्य! सत्य को खोजना, सत्य को पहचानना, सत्य को लोक-संभव बनाने की साधना करना और फिर सत्य को लोकमानस में प्रतिष्ठित करना - यह हुआ गांधी का धर्म! यह हुआा दुनिया का धर्म, इंसानियत का धर्म! ऐसे गांधी की आज दुनिया को जितनी जरूरत है, उतनी कभी नहीं थी शायद! (ये लेखक के निजी विचार हैं) (बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक और ट्विटर पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.) |