गद्यांशों पर आधारित अतिलघु/लघु-उत्तरीय प्रश्न Show
निम्नलिखित गद्यांशों को पढ़िए और दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए. 1. गाड़ी छूट रही थी। सेकण्ड क्लास के एक छोटे डिब्बे को खाली समझकर जरा दौड़कर उसमें चढ़ गए। अनुमान के प्रतिकूल डिब्बा निर्जन नहीं था। एक बर्थ पर लखनऊ की नवाबी नस्ल के एक सफेदपोश सज्जन बहुत सुविधा से पालथी मारे बैठे थे। सामने दो ताजे-चिकने खीरे तौलिए पर रखे थे। डिब्बे में हमारे सहसा कूद जाने से सज्जन की आँखों में एकांत चिन्तन में विघ्न का असंतोष दिखाई दिया। सोचा, हो सकता है, यह भी कहानी के लिए सूझ की चिन्ता में हों या खीरे-जैसी अपदार्थ वस्तु का शौक करते देखे जाने के संकोच में हों। नवाब साहब ने संगति के लिए उत्साह नहीं दिखाया। हमने भी उनके सामने की बर्थ पर बैठकर आत्म-सम्मान में आँखें चुरा लीं। खाली बैठे, कल्पना करते रहने की पुरानी आदत है। नवाब साहब की असुविधा और संकोच के कारण का अनुमान करने लगे। सम्भव है, नवाब साहब ने बिलकुल अकेले यात्रा कर सकने के अनुमान में किफ़ायत के विचार से सेकण्ड क्लास का टिकट खरीद लिया हो और अब गवारा न हो कि शहर का कोई सफ़ेदपोश उन्हें मँझले दर्जे में सफ़र करता देखे। प्रश्न (क).लेखक सेकंड क्लास के डिब्बे में क्यों जा रहे थे? प्रश्न (ख).लेखक ने नवाब साहब के असुविधा और संकोच के कारणों का क्या अनुमान लगाया? प्रश्न (ग).डिब्बे में चढ़ने पर लेखक ने नवाब साहब के मूड को देखकर क्या किया? 2. ठाली बैठे, कल्पना करते रहने की पुरानी आदत है। नवाब साहब की असुविधा और संकोच के कारण का अनुमान करने लगे। संभव है, नवाब साहब ने बिल्कुल अकेले यात्रा कर सकने के
अनुमान में किफ़ायत के विचार से सेकंड क्लास का टिकट खरीद लिया हो और अब गवारा न हो कि शहर का कोई सफेदपोश उन्हें मँझले दर्जे में सफर करता देखे। .... अकेले सफर का वक्त काटने के लिये ही खीरे खरीदे होंगे और अब किसी सफेदपोश के सामने खीरा कैसे खाएँ? हम कनखियों से नवाब साहब की ओर देख रहे थे। नवाब साहब कुछ देर गाड़ी की खिड़की से बाहर देखकर स्थिति पर गौर करते रहे। प्रश्न (क). सहसा नवाब साहब ने लेखक से
क्या कहा और उनके इस कथन में आप उनके किस भाव का अनुभव करते हैं? प्रश्न (ख).गद्यांश में वर्णित लेखक के स्वभाव की विशेषता का उल्लेख कीजिये। उसके अनुसार नवाब साहब ने खीरे क्यों खरीदे होंगे
? प्रश्न (ग). लेखक-अपनी आदत के अनुसार नवाब साहब के विषय में क्या सोचने लगा ? 3. नवाब साहब ने फिर एक पल खिड़की से बाहर देखकर गौर किया और दृढ़ निश्चय से खीरों के नीचे रखा, तौलिया झाड़कर सामने बिछा लिया। सीट के नीचे से लोटा उठाकर दोनों खीरों को खिड़की से बाहर धोया और तौलिये से पोंछ लिया। जेब से चाकू निकाला। दोनों खीरों के सिर काटे और उन्हें गोदकर झाग निकाला। फिर खीरों को बहुत एहतियात से छीलकर फाँकों को करीने से तौलिये पर सजाते गये। लखनऊ स्टेशन पर खीरा बेचने वाले खीरे के इस्तेमाल का तरीका जानते हैं। ग्राहक के लिये जीरा-मिला नमक और पिसी हुई लाल मिर्च की पुड़िया भी हाजिर कर देते हैं। प्रश्न (क).‘एहतियात’ शब्द का क्या अभिप्राय है ? प्रश्न (ख).लेखक ने ऐसा क्यों कहा है कि लखनऊ स्टेशन
पर खीरा बेचने वाले खीरे के इस्तेमाल का तरीका जानते हैं? प्रश्न (ग).खीरों को काटने से पहले नवाब साहब ने क्या किया ? 4. लखनऊ स्टेशन पर खीरा बेचने वाले खीरे के इस्तेमाल का तरीका
जानते हैं। ग्राहक के लिए जीरा-मिला नमक और पिसी हुई लाल मिर्च की पुड़िया भी हाज़िर कर देते हैं। नवाब साहब ने बहुत करीने से खीरे की फाँकों पर जीरा-मिला नमक और लाल मिर्च की सुर्खी बुरक दी। उनकी प्रत्येक भाव-भंगिमा और जबड़ों के स्फुरण से स्पष्ट था कि उस प्रक्रिया में उनका मुख खीरे के रसास्वादन की कल्पना से प्लावित हो रहा था। प्रश्न (क). कैसे कहा जा सकता है कि लखनऊ स्टेशन पर खीरा बेचने वाले खीरे के इस्तेमाल का तरीका भी जानते हैं? प्रश्न (ख). नवाब साहब की भाव-भंगिमा देखकर लेखक के मन में क्या विचार आया? प्रश्न (ग).लेखक ने खीरा खाने से इनकार क्यों कर दिया? 5. नमक-मिर्च छिड़क दिये जाने से खीरे की पनियाती फाँकें देखकर मुँह में पानी जरूर आ रहा था, लेकिन इंकार कर चुके थे। आत्म-सम्मान निबाहना ही उचित समझा। उत्तर दिया, "शुक्रिया, इस वक्त तलब महसूस नहीं हो रही है, मेदा भी जरा कमजोर है, किबला शौक फरमाएँ।" नवाब साहब ने सतृष्ण आँखों से नमक-मिर्च के संयोग से चमकती खीरे की फाँकों की ओर देखा। खिड़की के बाहर देखकर दीर्घ निःश्वास लिया। खीरे की एक फाँक उठाकर होठों तक ले गये। फाँक को सूँघा। स्वाद के आनन्द में पलकें मुंँद गई। मुँह में भर आए पानी का घूँट गले से उतर गया। तब नवाब साहब ने फाँक को खिड़की से बाहर छोड़ दिया। नवाब साहब खीरे की फाँकों को नाक के पास ले जाकर, वासना से रसास्वादन कर खिड़की के बाहर फेंकते गये। प्रश्न (क).लेखक के मुँह में पानी क्यों आ रहा था ? प्रश्न (ख).नवाब साहब ने
खीरे का रसास्वादन करने से पूर्व क्या किया तथा रसास्वादन कैसे किया ? प्रश्न (ग). लेखक ने नवाब साहब को क्या जवाब दिया ? इसका क्या कारण था ? 6. नवाब साहब खीरे की
तैयारी और इस्तेमाल से थककर लेट गए। हमें तसलीम में सिर खम कर लेना पड़ा-यह है खानदानी तहज़ीब, नफ़ासत और नज़ाकत! हम गौर कर रहे थे, खीरा इस्तेमाल करने के इस तरीके को खीरे की सुगंध और स्वाद की कल्पना से संतुष्ट होने का सूक्ष्म, नफीस या एब्स्ट्रैक्ट तरीका ज़रूर कहा जा सकता है, परन्तु क्या ऐसे तरीके से उदर की तृप्ति भी हो सकती है? प्रश्न (क). ‘लज़ीज’ शब्द का क्या अर्थ है? उत्तरः ‘लज़ीज’ का अर्थ है-स्वादिष्ट। प्रश्न (ख). नवाब साहब के खीरे के इस्तेमाल के तरीके को क्या कहा जा सकता है और इसमें क्या कमी थी? प्रश्न (ग).
खीरे की तैयारी और इस्तेमाल से नवाब साहब थककर क्यों लेट गए? लखनऊ स्टेशन पर कौन खीरे के इस्तेमाल का सही तरीका जानते हैं?लखनऊ स्टेशन पर खीरा बेचने वाले खीरे के इस्तेमाल का तरीका जानते हैं। ग्राहक के लिए जीरा-मिला नमक और पिसी हुई लाल मिर्च की पुड़िया भी हाज़िर कर देते हैं। नवाब साहब ने बहुत करीने से खीरे की फाँकों पर जीरा - मिला नमक और लाल मिर्च की सुर्खी बुरक दी।
लखनऊ स्टेशन पर कौन खीरे के इस्तेमाल का तरीका जानते हैं ?( A नवाब साहब B लेखक C खीरा बेचने वाले D इनमें से कोई नहीं *?नवाब साहब ने खीरों को खिड़की से बाहर क्यों फेंक दिया?
लेखक ने ऐसा क्यों कहा है कि लखनऊ स्टेशन पर खीरा बेचने वाले खीरे के इस्तेमाल का तरीका जानते हैं?लेखक ने ऐसा क्यों कहा है कि लखनऊ स्टेशन पर खीरा बेचने वाले खीरे के इस्तेमाल का तरीका जानते हैं? उत्तरः लेखक ने ऐसा इसलिये कहा है, क्योंकि लखनऊ स्टेशन पर खीरा बेचने वाले ग्राहक के लिए जीरा-मिला नमक और पिसी हुई लाल मिर्च की पुड़िया भी हाजिर कर देते हैं। प्रश्न (ग). खीरों को काटने से पहले नवाब साहब ने क्या किया ?
नवाब साहब ने खीरे के इस्तेमाल के तरीके को क्या कहा जा सकता है?(क) लखनऊ स्टेशन पर खीरा बेचने वाले खीरे के इस्तेमाल का तरीका जानते हैं, क्योंकि वे ग्राहकों को जीरा मिला नमक और पिसी हुई लाल मिर्च की पुड़िया खीरों के साथ देते हैं। (ख) नवाब साहब की भाव-भंगिमा देखकर लेखक के मन में यह विचार आया कि नवाब साहब का मुँह खीरे के स्वाद की कल्पना से ही भर गया है।
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