Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 12 Hindi Aroh Chapter 8 कवितावली (उत्तर कांड से), लक्ष्मण-मूच्छ और राम का विलाप Textbook Exercise Questions and Answers. Show
RBSE Class 12 Hindi Solutions Aroh Chapter 8 कवितावली (उत्तर कांड से), लक्ष्मण-मूच्छ और राम का विलापRBSE Class 12 Hindi कवितावली (उत्तर कांड से), लक्ष्मण-मूच्छ और राम का विलाप Textbook Questions and Answersपाठ के साथ - प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. (ब) मूछित लक्ष्मण को देख कर श्रीराम अपना मोह और भ्रातृ-प्रेम प्रकट करते हुए कहने लगे कि हे भाई ! तुम ही मेरी शक्ति थे। तम्हारे बिना मेरी स्थिति उसी प्रकार दयनीय हो गई है. जिस प्रकार पंखों के बिना प सूंड के बिना हाथी की दशा अत्यन्त दीन-हीन हो जाती है। यदि निर्दयी भाग्य ने मुझे तुम्हारे बिना जीवित रखा, तो मेरी दशा भी ऐसी ही दीन-हीन हो जायेगी। (स) तुलसीदास अपने युग की बेरोजगारी एवं भुखमरी आदि स्थितियों को लक्ष्य कर कहते हैं कि मुझे किसी के घर-परिवार तथा धन-दौलत का आश्रय नहीं चाहिए। मैं तो लोगों से भिक्षा माँगकर और मस्जिद में सोकर सन्तुष्ट हूँ। मुझे किसी से कुछ लेना-देना नहीं है। (द) तुलसी बताते हैं कि संसार में पेट की आग शान्त करने के लिए ही लोग ऊँचे-नीचे और धर्म-अधर्म आदि के कार्य करने को विवश हो जाते हैं। पेट-पूर्ति के लिए ही लोग बेटा-बेटी तक को बेचने को तैयार हो जाते हैं। संसार के सारे काम-धन्धे पेट की भूख के कारण ही किये जाते हैं। प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. सांसारिक व्यवहार में पत्नी का विकल्प हो सकता है, दूसरी पत्नी भी हो सकती है। लेकिन वही भाई चाहकर भी दूसरा नहीं हो सकता। लक्ष्मण तो ऐसा भाई था जिसने भाभी की खातिर प्राणों की परवाह नहीं की थी। अतः ऐसे भाई को लेकर सामाजिक दृष्टिकोण तात्कालिक शोक को ही कारण मानता है। आखिर प्रलाप-वचन तो प्रलाप ही है। उस समय अधिक दुःखी अवस्था में ध्यान नहीं रहता कि वह क्या कह रहा है। पाठ के आसपास - प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. RBSE Class 12 कवितावली (उत्तर कांड से), लक्ष्मण-मूच्छ और राम का विलाप Important Questions and Answersलघूत्तरात्मक प्रश्न - प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. निबन्धात्मक प्रश्न - प्रश्न 1. ऐसे में परिवार पालन के लिए या अपने पेट को भरने हेतु लोग अपनी संतानों को भी बेचने को विवश हो रहे थे। समय की दारुण स्थिति एवं मनुष्यों का कठिन जीवन-यापन देख तुलसीदास ने निम्न पंक्ति कही कि पेट की आग बुझाने हेतु अपनी जान से प्यारी संतान (बेटा-बेटी) को भी लोग बेचने में हिचकिचा नहीं रहे थे, जो कि बहुत ही बुरी परिस्थिति पर प्रकाश डालती है। प्रश्न 2. प्रश्न 3. इनमें से सभी समस्याएँ आज भी ज्यों की त्यों हैं। आज भी लोग अपने जीवन-यापन हेतु, उच्च स्तरीय जीवन हेतु गलत-सही सभी कार्य करते हैं। देखा-देखी व होड़-प्रतिस्पर्धा ने मनुष्य के सात्विक जीवन को बहुत नीचे गिरा दिया है। नारी के प्रति नकारात्मक सोच व दुर्भावनाएँ आज भी विद्यमान हैं। जाति और धर्म के नाम पर घृणित खेल खेले जाते हैं। भेदभाव व छुआछूत की संकीर्ण सोच आज भी विकास का मार्ग अवरुद्ध करती है। मनुष्यों में 'पर' की अपेक्षा 'स्व' की प्रवृत्ति अधिक जोर पकड़ती जा रही है। कल्याण की भावना से आज का व्यक्ति कोसों दूर है। इस प्रकार युगीन समस्याएँ आज भी वैसी ही हैं जैसी कल थीं। रचनाकार का परिचय सम्बन्धी प्रश्न - प्रश्न 1. 'रामचरित मानस', 'कवितावली', 'रामललानहछू', 'गीतावली', 'दोहावली', 'विनय-पत्रिका', 'रामाज्ञा-प्रश्न', 'कृष्ण-गीतावली', 'पार्वती मंगल,', 'जानकी मंगल', 'हनुमान बाहक और वैराग्य संदीपनी' इनकी काव्य-कृतियाँ हैं। 'रामचरित मानस' कालजयी कृति तथा भारतीय संस्कृति का आधार-स्तम्भ ग्रंथ है। कवितावली (उत्तर कांड से), लक्ष्मण-मूच्छ और राम का विलाप Summary in Hindiगोस्वामी तुलसीदास : कवि-परिचय - हिन्दी साहित्य की सगुण काव्यधारा में रामभक्ति शाखा के सर्वोपरि कवि गोस्वामी तुलसीदास का जन्म बाँदा (उत्तरप्रदेश) जिले के राजापुर गाँव में सन् 1532 ई. के लगभग हुआ था। इनके पिता का नाम आत्माराम और माता का नाम हुलसी था। बचपन में ही माता का निधन होने तथा पिता ने अशुभ मूल नक्षत्र में जन्म लेने के कारण इन्हें त्याग दिया था। इस कारण इनका बचपन अतीव कष्टमय रहा। कुछ वर्षों बाद बाबा नरहरिदास ने इनका पालन-पोषण और शिक्षा-दीक्षा प्रदान की। वयस्क होने पर इन्होंने काशी में शेष सनातन की पाठशाला में अध्ययन कर गृहस्थ-जीवन में प्रवेश किया। पत्नी के प्रति अत्यधिक आसक्त रहने से एक बार ये उसके मायके जाने पर उसके पीछे वहीं चले गये। तब पत्नी ने ऐसी मार्मिक फटकार लगाई, जिससे इनका पत्नी-प्रेम ईश्वरीय-प्रेम में बदल गया और ये महान भक्त एवं महाकवि बनकर उभरे। तत्पश्चात् उन्होंने चित्रकूट, अयोध्या एवं काशी में रहकर भक्ति-साधना कर अनेक काव्यों की रचना की। इनका निधन काशी में सन् 1623 (वि.सं. 1680) में श्रावण शुक्ला सप्तमी के दिन हुआ। गोस्वामी तुलसीदास ने अनेक ग्रन्थ रचे। इनमें 'रामचरितमानस', 'कवितावली', 'गीतावली', 'दोहावली', 'विनयपत्रिका', 'श्रीकृष्ण गीतावली', 'पार्वती मंगल', 'जानकी मंगल' और 'रामलला नहछू' प्रमुख हैं। इनका 'रामचरितमानस' हिन्दी साहित्य का सर्वोत्कृष्ट महाकाव्य माना जाता है। आदर्शों की स्थापना, समन्वय की विराट चेष्टा, लोकमंगल की भावना तथा मर्यादा-पालन आदि विशेषताओं के कारण इनका काव्य-सौष्ठव अनुपम माना जाता है। कविता-परिचय - पाठ्य-पुस्तक में 'कवितावली' से दो कवित्त और एक सवैया संकलित है। इस अंश में किसी किसान को लक्ष्यकर पेट की आग बुझाने के लिए और सब संकटों के समाधान के लिए रामभक्ति का सन्देश दिया गया है। खेती न किसान की' कवित्त में तत्कालीन सामाजिक समस्या की व्यंजना कर गरीबी एवं बेरोजगारी का यथार्थपरक चित्रण किया गया है। दूसरी कविता 'लक्ष्मण-मूर्छा और राम का विलाप' उनके 'रामचरितमानस' के लंका काण्ड से लिया गया है। लक्ष्मण के शक्ति-बाण लगने का प्रसंग अतीव मार्मिक स्थल है। इसमें भाई के शोक में व्याकुल मर्यादा पुरुषोत्तम राम को विलाप करते हुए दिखाया गया है, जो कि भ्रातृ-प्रेम की मार्मिक अनुभूतियों से समन्वित है। इसमें गोस्वामी तुलसीदास ने शोक के परिवेश में हनुमान का संजीवनी लेकर आ जाने का वर्णन कर करुण रस के बाद वीर रस का प्रयोग रोचकता से दिखाया है। यह प्रसंग अतीव प्रभावपूर्ण है। सप्रसंग व्याख्याएँ : 1. कवितावली (उत्तरकाण्ड से) 1. किसबी, किसान-कुल, बनिक, भिखारी, भाट, कठिन-शब्दार्थ :
प्रसंग - प्रस्तुत काव्यांश भक्त कवि तुलसीदास द्वारा रचित 'कवितावली' 'उत्तर-कांड' से लिया गया है। इसमें ते हैं कि जीवन-यापन हेतु सभी व्यक्ति कोई-न-कोई कार्य अवश्य करता है। पेट की आग को बुझाने का एकमात्र सहारा राम का नाम है। जिससे सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। व्याख्या - गोस्वामी तुलसीदास कहते हैं कि पेट भरने के लिए कोई मजदूरी करता है, कोई खेती, कोई व्यापारी, कोई भिखारी, कोई राजाओं का भाट, कोई नौकर, कोई उछलकूद करने में चालाक नट, कोई चोर, कोई दूत और कोई बाजीगर बनकर पेट भरने का पूर्ण प्रयत्न करता है। कई लोग अपना पेट भरने के लिए विद्याध्ययन करते हैं, कई विभिन्न गुणों एवं कलाओं को सीखते हैं। कोई पेट की खातिर पहाड़ों पर चढ़ते हैं, कोई पेट भरने के लिए गहन वनों में शिकार करने के लिए तष्यों से ऊँच-नीच धर्म-अधर्म के सभी कार्य करवाती है। यहाँ तक कि इस पापी पेट को भरने के लिए लोग अपने बेटा-बेटी को भी बेचने को विवश हो जाते हैं। तुलसीदास जी कहते हैं कि पेट की आग वाडवाग्नि अर्थात् समुद्र की आग से भी तेज और प्रबल है। इसे तो राम-नाम रूपी बादल ही अपनी कृपा (वर्षा) द्वारा बुझा सकते हैं। आशय यह है कि जिस पर श्रीराम की कृपा हो जाती है, वह कभी दु:खी, दरिद्र व भूखा नहीं रहता है। विशेष : 1. समाज में भूख से उत्पन्न दारुण स्थिति का सजीव चित्रण है। 2. खेती न किसान को, भिखारी को न भीख, बलि, कठिन-शब्दार्थ :
प्रसंग - प्रस्तुत काव्यांश भक्त कवि तुलसीदास द्वारा रचित 'कवितावली' के 'उत्तर-कांड' से लिया गया है। इसमें तुलसीदास भगवान राम से निवेदन कर रहे हैं कि संसार से इस गरीबी रूपी रावण का नाश कीजिए। व्याख्या - गोस् वामी तुलसीदास कहते हैं कि वर्तमान में बरी दशा आ जाने से किसानों के पास खेती नहीं हैं, भिखारियों को भीख और भेंट-दक्षिणा नहीं मिलती है, बनियों का व्यापार नहीं चलता है तथा नौकरी चाहने वालों को नौकरी नहीं मिलती है। इस प्रकार जीविका के बिना सब लोग दुःखी और चिन्ता से ग्रस्त होकर एक-दूसरे से यही कहते हैं कि 'कहाँ जावें और अब क्या करें?' तुलसीदास कहते हैं कि वेदों और पुराणों में भी कहा गया है और इस लोक में भी यह देखा जाता है कि ऐसे संकट के समय में प्रभु श्रीराम ने ही सब पर कृपा की है। तुलसीदास कहते हैं हे दीनबन्धु ! आज गरीबी रूपी रावण ने सारी दुनिया को दबा लिया है। लोग उसी प्रकार गरीब एवं दु:खी हैं, जिस प्रकार रावण के अत्याचारों से लोग गरीब तथा दुःखी थे। अतः गरीबी द्वारा फैलाई गई पाप रूपी ज्वाला से जनता को दुःखी व पीड़ित देखकर अथवा लोगों को पाप कर्मों में लीन देखकर मैं तुलसीदास दुःख प्रकट करता हूँ तथा आपकी सहायता के लिए प्रार्थना करता हूँ, कि आप आकर इन दुःखियों का उद्धार करें। विशेष : 1. कवि तुलसीदास संसार की अधोगति देखकर दुःखी हैं तथा विनीत भाव से प्रभु राम से प्रार्थना कर रहे हैं। 3. धूत कहौ, अवधूत कहौ, रजपूतु कहौ, जोलहा कहौ कोऊ। कठिन-शब्दार्थ :
प्रसंग - प्रस्तुत काव्यांश भक्त कवि तुलसीदास द्वारा रचित 'कवितावली' के 'उत्तर-कांड' से लिया गया है। इसमें कवि ने वर्तमान की यथार्थ परिस्थितियों का सजीव चित्रण किया है। व्याख्या - कवि तुलसीदास कहते हैं कि मुझे कोई चाहे घर से त्यागा हुआ कहे, चाहे साधु-संन्यासी कहे, राजपूत कहे, चाहे जुलाहा कहे। किसी की बात का कोई असर मुझ पर नहीं पड़ता है क्योंकि किसी की भी बेटी के साथ मुझे अपने बेटे की शादी नहीं करनी है। न ही मुझे किसी की जाति बिगाड़ने का कोई शौक है। तुलसीदास तो सिर्फ राम का सेवक है, उनके सिवा उसे किसी से भी कोई मतलब नहीं रखना है। जिसकी जैसी रुचि या पसन्द, वह उसके अनुसार जो इच्छा वो कहे या करे। तुलसीदास कहते हैं मैं माँग के खा सकता हूँ, मस्जिद में सो सकता हूँ, मुझे न तो किसी से कुछ लेना है और न ही किसी को कुछ देना है। कहने का भाव है कि समाज की किसी भी प्रवृत्ति से तुलसीदास को कोई फर्क नहीं पड़ता है, वे राम भक्त हैं और उनकी भक्ति में ही अपना जीवन लगा देंगे। विशेष : 1. कवि समाज की व्यंग्य प्रवृत्ति से क्षुब्ध है तथा दास्य-भक्ति से पूर्ण अपनी राम-भक्ति को स्पष्ट करते हैं। 2. लक्ष्मण-मूर्छा और राम का विलाप 1. तब प्रताप उर राखि प्रभु जैहउँ नाथ तुरंत। कठिन-शब्दार्थ :
प्रसंग - प्रस्तुत काव्यांश भक्त कवि तुलसीदास द्वारा रचित 'रामचरितमानस' के 'लंका-कांड' से लिया गया है। इस प्रसंग में लक्ष्मण-मूर्छा और राम का विलाप' प्रस्तुत है। हनुमान संजीवनी बूंटी लाते समय भरत से मिलते हैं उसी का वर्णन किया गया है। व्याख्या - तुलसीदासजी बताते हैं कि लक्ष्मण को मूर्छा लगने पर हनुमान संजीवनी बूटी लाने जाते हैं जहाँ उनकी मुलाकात भरत से होती है। वे भरत से कहते हैं कि हे प्रभो! मैं आपका प्रताप, यश हृदय में रखकर तुरंत ही अर्थात् जल्दी ही भगवान राम के पास पहुँच जाऊँगा। इस प्रकार कहते हुए हनुमान भरत की आज्ञा प्राप्त कर उनके चरणों की वंदना करके चल दिए। भरत के बाहुबल, शील व शान्त व्यवहार, गुण तथा प्रभु राम के प्रति अपार (अधिक) स्नेह को देखते हुए व मन-ही-मन बार-बार प्रशंसा करते हुए हनुमान लंका की तरफ चले जा रहे थे। विशेष : 1. तुलसीदास ने हनुमान की भक्ति भावना तथा भरत के गुणों का वर्णन किया है। 2. उहाँ राम लछिमनहि निहारी। बोले बचन मनुज अनुसारी॥ कठिन-शब्दार्थ :
प्रसंग - प्रस्तुत काव्यांश भक्त कवि तुलसीदास द्वारा रचित 'रामचरितमानस' के 'लंका-कांड' के 'लक्ष्मण-मूर्छा और राम का विलाप' प्रसंग से उद्धृत है। इस प्रसंग में लक्ष्मण के मूर्छित अवस्था पर राम का करुण विलाप है। व्याख्या - उधर लंका में राम ने मूर्च्छित.लक्ष्मण को देखा। तब वे व्याकुल व दु:खी होकर मनुष्यों के समान शोक-भरे वचन कहने लगे कि आधी रात बीत चुकी है, परन्तु अभी तक हनुमान नहीं आये। उस समय राम ने अधीरता से अपने लघुभ्राता लक्ष्मण को उठाकर अपने हृदय से लगा लिया। . राम बोले कि हे भाई ! तुम अपने रहते मुझे कभी दुःखी नहीं देख सकते थे। तुम्हारा स्वभाव सदा से कोमल था। मेरा साथ देने के लिए तुमने माता-पिता तक को त्याग दिया था और वन में हमारे साथ सर्दी (जाड़ा), धूप (गरमी) तथा हवा (आँधी-तूफान) सब कष्ट सहन करते रहे। हे भाई ! तुम्हारा वह प्रेम अब कहाँ है? मेरे व्याकुलतापूर्ण वचन सुनकर तुम उठते क्यों नहीं? यदि मैं जानता कि मुझे वन में जाने पर भाई (लक्ष्मण) का बिछोह सहना पड़ेगा, तो मैं पिता के उस वन में जाने वाले वचन को मानने से इनकार कर देता, अर्थात् वन में नहीं आता। तुलसीदास बताते हैं कि राम लक्ष्मण पर आई इस विपदा का कारण स्वयं को मानते हैं। विशेष : 1. तुलसीदास ने प्रभु राम का मानवीय रूप तथा उनके विलाप का मार्मिक वर्णन किया है। 3. सुत बित नारि भवन
परिवारा। होहिं जाहिं जग बारहिं बारा॥ कठिन-शब्दार्थ :
प्रसंग - प्रस्तुत काव्यांश भक्त कवि तुलसीदास द्वारा रचित 'रामचरितमानस' के 'लंका-कांड' भाग से 'लक्ष्मण मूर्छा और राम का विलाप' प्रसंग से लिया गया है। लक्ष्मण के मूर्च्छित होने पर राम का विलाप एवं उनका दुःख प्रकट किया गया है। व्याख्या - श्रीराम विलाप करते हुए बोले-हे भाई लक्ष्मण ! संसार में पुत्र, धन, पत्नी, मकान और परिवार बार बार मिल सकते हैं और नष्ट भी हो जाते हैं, ये जीवन में दोबारा से प्राप्त हो सकते हैं। परन्तु संसार में सगा भाई बार-बार नहीं मिलता है। इसलिए हृदय में ऐसा विचार करके तुम जल्दी जाग जाओ। . हे लक्ष्मण ! जिस प्रकार पंखों के बिना पक्षी दीन-हीन हो जाता है, उड़ नहीं पाता है मणि के बिना साँप और सैंड के बिना हाथी अत्यन्त दीन एवं व्यथित हो जाते हैं, उसी प्रकार भाग्य मुझे अगर जीवित रखेगा तो मेरा जीवन तुम्हारे बिना व्यर्थ और सारहीन है। हे प्रिय लक्ष्मण ! अपनी पत्नी की खातिर प्यारे भाई को गँवाकर मैं कौन-सा मुँह लेकर अयोध्या जाऊँगा? मैं जगत् में यह बदनामी भले ही सह लूँगा कि राम ने स्त्री को खो देने पर कोई वीरता नहीं दिखाई, परन्तु पत्नी की हानि उतनी बड़ी बात नहीं है, जितनी कि प्रिय भाई को खोने की हानि है। विशेष : 1. तुलसीदास ने राम का भात के प्रति प्रेम प्रदर्शित किया है। 4. अब अपलोकु सोकु सुत तोरा। सहिहि निठुर कठोर उर मोरा। कठिन-शब्दार्थ :
प्रसंग - प्रस्तत काव्यांश भक्त कवि तलसीदास द्वारा रचित 'रामचरितमानस' के लंका-कांड' के भाग 'लक्ष्मण मूर्छा और राम का विलाप' से लिया गया है। लक्ष्मण के मूर्च्छित होने पर राम का करुण विलाप दिखाया गया है। व्याख्या - मूच्छित लक्ष्मण को लक्ष्यकर श्रीराम बोले कि हे प्रिंय लक्ष्मण ! मेरा निष्ठुर और कठोर हृदय अपयश और तुम्हारा शोक दोनों को ही सहन करेगा। तुम अपनी माता के एक ही पुत्र हो और तुम ही उस माँ के प्राणों के आधार हो। अर्थात् तुम्हारे बिना तुम्हारी माँ जीवित नहीं रह सकेगी। तुम्हारी माता ने सब प्रकार से सुख देने वाला और परम हितकारी जानकर ही तुम्हें मुझे सौंपा था। अब जाकर मैं उन्हें क्या उत्तर दूंगा? हे भाई ! तुम उठकर मुझे यह बात सिखाते (समझाते) क्यों नहीं? संसार के लोगों को सोच-चिन्ता से मुक्त करने वाले श्रीराम शोकावेग के कारण अनेक चिन्ताओं में डूब गये। उनके कमल की पंखुड़ी के समान नेत्रों से निरन्तर जल (विषाद के अश्रुकण) बहने लगे। तब शिवजी ने पार्वती से कहा हे उमा ! श्रीराम एक (अद्वितीय) और अखण्ड (वियोगरहित) हैं, अर्थात् स्वयं सम्पूर्ण एवं शोकमुक्त ईश्वर हैं, परन्तु इस अवसर पर कृपालु प्रभु लीला करके सामान्य मनुष्यों जैसा आचरण कर रहे हैं। प्रभु श्रीराम के विलाप को सुनकर वानरों का समूह दुःख से व्याकुल हो उठा। उसी समय हनुमान आ गये, वे इस प्रकार आये, जैसे करुण रस में अचानक वीर रस का प्रसंग आ गया हो, अर्थात् हनुमान के आने से शोक का वातावरण वीरता में बदल गया। . विशेष : 1. तुलसीदास ने राम की व्याकुलता का सजीव चित्रण किया है। प्रभु राम ने सामान्य मनुष्य की लीला की है। 5. हरषि राम भेटेउ हनुमाना। अति कृतग्य प्रभु परम सुजाना॥ कठिन-शब्दार्थ :
प्रसंग - प्रस्तुत काव्यांश भक्त कवि तुलसीदास द्वारा रचित 'रामचरितमानस' के 'लंका-कांड' के भाग 'लक्ष्मण मर्छा और राम का विलाप' से लिया गया है। इसमें हनुमान द्वारा लाई गई संजीवनी बूटी से लक्ष्मण के ठीक होने का प्रसंग है। व्याख्या - श्रीराम ने प्रसन्न होकर हनुमान को भेंटा, अर्थात् गले लगा लिया। परम ज्ञानी (प्रभु) होकर भी वे हनुमान के प्रति अत्यन्त कृतज्ञ हुए। तब वैद्य सुषेण ने तुरन्त लक्ष्मण का उपचार किया। परिणामस्वरूप लक्ष्मण हर्षित होकर उठ बैठे, अर्थात् होश में आ गये। प्रभु श्रीराम ने भाई लक्ष्मण को हृदय से लगा लिया। इस मिलन को देखकर सभी भालू, वानर आदि हर्षित हो गए। फिर हनुमान ने सुषेण वैद्य को तुरन्त उसी प्रकार वहाँ पहुँचा दिया, जहाँ से वे पहले उन्हें लाये थे। लक्ष्मण की मूर्छा टूटने का समाचार जब रावण ने सुना, तब उसने अत्यन्त विषाद में आकर निराशापूर्ण ग्लानि से बार-बार अपना सिर पीटा। तब व्याकुल होकर वह कुम्भकर्ण के पास आया और विविध प्रकार के प्रयत्न करके उसने उसे गहरी नींद से जगाया। विशेष : 1. कवि ने राम द्वारा हनुमान के प्रति कृतज्ञता व्यक्त की है तथा लक्ष्मण के होश में आने पर रावण का दु:खी होना व्यक्त हुआ है। 6. जागा निसिचर देखिअ कैसा। मानहुँ कालु देह धरि बैसा॥ कठिन-शब्दार्थ :
प्रसंग - प्रस्तुत काव्यांश भक्त कवि तुलसीदास द्वारा रचित 'रामचरितमानस' के 'लंका-कांड' के भाग 'लक्ष्मण मूर्छा और राम का विलाप' से लिया गया है। रावण का भाई कुम्भकर्ण सीता का हरण करने पर उसे धिक्कार रहा है। व्याख्या - तब कुम्भकर्ण जाग गया अर्थात् उठ बैठा। उस समय वह ऐसा दिखाई दे रहा था मानो साक्षात् काल अर्थात् मृत्यु शरीर धारण करके बैठी हो। कुम्भकर्ण ने रावण से पूछा-कहो भाई, क्या बात है? तुम्हारे मुख (दस मुँह) क्यों सूख रहे हैं? कुम्भकर्ण का प्रश्न सुनकर रावण ने अभिमान के साथ वह सारी कथा कह सुनाई कि वह किस प्रकार सीता का हरण कर लाया था। रावण ने फिर कहा कि हे भाई ! श्रीराम के वानरों ने बहुत से राक्षस मार डाले हैं। उन्होंने बड़े-बड़े योद्धाओं का भी संहार कर डाला है। दुर्मुख, देवशत्रु (देवान्तक), मनुष्यभक्षक (नरान्तक), महायोद्धा अतिकाय, भारी-भरकम अकम्पन तथा सहोदर आदि दूसरे सभी प्रमुख रणधीर वीर राक्षस युद्धभूमि में मर चुके हैं। रावण के ये वचन सुनकर कुम्भकर्ण दुःखी होकर कहने लगा - अरे दुष्ट ! जगत्-जननी सीता का अपहरण करके भी अब तू अपना कल्याण चाहता है? अर्थात् अब तेरा कल्याण असम्भव है। विशेष : 1. कवि ने राक्षस कुम्भकर्ण द्वारा प्रभु श्रीराम की महिमा बताई है जो छः महिने सोने के बाद भी ये जानता है कि प्रभु श्रीराम का अमंगल करने वालों का भला नहीं हो सकता है। |