लोगों ने पेड़ों को क्यों काटा होगा? - logon ne pedon ko kyon kaata hoga?

पेड़ों से केवल लाभ ही होता है जो वातावरण में फैली दूषित वायु को शुद्ध करता है। पेड़ों की अंधाधुंध कटाई होने से बारिश का अभाव बना हुआ है।

यह बातें अमलाहा टोल के पास भीलखेड़ी जोड़ पर जन अभियान परिषद के अध्यक्ष प्रदीप पांडे ने पौधरोपण करते हुए कहीं। उन्होंने कहा कि वृक्ष अपनी जड़ों में मिट्टी को बांधकर रखता है। जिससे मृदा अपरदन नहीं होता है। पेड़ अपने आसपास के वातावरण दूषित वायु की स्वच्छता के साथ-साथ भूमि को भी ठंडा रखता है। वर्तमान में सबसे बड़ी मुसीबत ग्लोबल वार्मिंग की समस्या से कम से कम थोड़ी ही सही पर राहत जरूर दिलाएगा। पौधरोपण यदि एक क्रम में किया जाए तो सुंदरता की झलक प्रदर्शित होती है। एक ओर वायु को स्वच्छ बनाता है तो दूसरी ओर इन वृक्षों को देवताओं का निवास बताया गया है। जिन्हें भारतीय संस्कृति में बड़ा महत्व है। इस अवसर पर नगर परिषद कोठरी अध्यक्ष रूपेश पटेल ने कहा कि ऐसे पौधे लगाए जाएं जो हमारे वातावरण को स्वच्छ बनाए रखने के साथ साथ ही हमारे सेहत को बुरे प्रभावों धूल, गंदगी, प्रदूषण से बचाए। इसके लिए सबसे पहले इंसान को पौधरोपण के फायदों के बारे में जागरूक करना अति आवश्यक है। पौधरोपण कार्यक्रम में भीलखेड़ी सरपंच कैलाश पटेल भी उपस्थित थे।

इस पोस्ट के साथ जो आप लोग एक चित्र देख रहे हैं उसे मैंने परसों किसी नदी के किनारे भ्रमण करते हुए क्लिक किया था ।एक सज्जन जो चिलचिलाती  धूप से बचने के लिए पेड़ की छांव में सोया हुआ है निश्चित रूप से  उस पेड़ के नीचे शीतल छांव में जहां पवित्र वायु वह रही होगी वहां वह सुकून से सो रहा होगा। इस आनंद को वह बखूबी महसूस कर सकता है जैसे कई दिन के भूखे को भोजन मिल जाए उसकी फिर खुशी का ठिकाना नहीं होता वैसे ही उस इंसान को उस वक्त आनंद मिल रहा होगा। मैं भी इस पोस्ट को लिखने के समय एक नीम के पेड़ के नीचे कुर्सी लगाकर बैठा हुआ हूं और अचानक मेरे दिमाग में यह विचार आया कि चलो एक सटीक आलेख लिखते हैं।

              जब कोई भी इंसान वनस्पतियों को ,पेड़ों को या प्राकृतिक संसाधनों को अपने व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए या विकास के नाम पर नुकसान पहुंचाता है तो मुझे अत्यधिक तकलीफ होती है ।मैं पिछले कुछ महीनों से पहाड़ों में घूम रहा हूं कई जगह मुझे जाना हुआ ।बहुत ही मुझे दुख होता है जब देखता हूं कि बड़े-बड़े पेड़ काटकर के हर रोज गिराए जा रहे हैं और रोज ट्रकों में भरकर उन पेड़ों को सप्लाई किया जा रहा है ।वृक्ष काट कर के उस जगह बड़ी बड़ी बिल्डिंग बनाई जा रही हैं और हर जगह जमीन खरीद करके मुझ पर छोटी सी दीवार नुमा निशान बना दी गई है ताकि वहां अब कोई वृक्ष ना लगा सके और वह उसकी निजी जमीन बन सके। मनुष्य अपने व्यक्तिगत स्वार्थ में इतना अंधा हो चुका है विकास की झूठी दौड़ में इस तरह पागल हो चुका है कि कदाचित उसे इस बात का ध्यान नहीं रहता कि हमारी जो प्रकृति के विरुद्ध क्रियाकलाप है वह हमें कितना नुकसान पहुंचा रही है। मैं 10 अप्रैल को हिमालय के  ऊपरी चोटी जो हमारे बद्रीनाथ के पास है वहां तक गया और सच कहूं तो मुझे इतनी बर्फ नहीं दिखाई दी जितनी पहले दिखती थी। इसका एकमात्र कारण यही है कि ग्लोबल वार्मिंग की समस्या बढ़ गई है। हर दिन ओजोन परत में छेद बढ़ता जा रहा है और सूर्य की अल्ट्रावायलेट किरण धरती पर आ रही है ।ग्लोबल वार्मग बढ़ने से धरती पर खतरा बढ़ रहा है । हरिद्वार का गैंदी खाता जो यूपी और हरिद्वार के बीच का बॉर्डर है  वहां हमने अपनी आंखों से देखा कि हजारों हेक्टेयर जमीन जहां आज से मात्र 7 साल पहले जंगल से भरे हुए थे उन जंगलों का सफाया कर के उस पर पूरी की पूरी मुस्लिम आबादी बस गई ।अब कोई यह ना कहे कि तुम कुछ गलत लिख रहे हो। मैं वही लिखता हूं जो अपनी आंखों से देखी भी घटना होती है हर रोज मै देख रहा था दर्जनों ट्रक आते और उस पर वृक्षों को काटकर के लाद दिया जाता और वह जमीन उनकी हो जाती। अब उस पर वह घर बना रहे हैं , अपने खेत बना रहे हैं और जंगल का सफाया हो रहा है। पुलिस वाले भी थोड़े से रिश्वत लेकर के उन्हें मनमानी हरकत करने के लिए छोड़ देते हैं ।मुझे बहुत पीड़ा होती है मेरे खुद के एक अंकल हैं ,उन्हें मैं समझा समझा कर थक गया कि पेड़ मत काटो लेकिन उन्होंने पेड़ काटने कोअपना सबसे बड़ा धंधा बना लिया और आज वह करोड़पति बन गया। मैंने उन्हें कितना ही प्रकृति के बारे में क्योटो प्रोटोकॉल के बारे में मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के बारे में पर्यावरण संरक्षण के बारे में समझाने की कोशिश की यहां तक कि धर्म के मार्ग से भी समझाने की कोशिश की पर उनके ऊपर जरा भी असर नहीं हुआ क्योंकि उन्हें पैसा चाहिए होता है ।और पैसे के लिए इंसान इतना गिर जाता है कि वह प्रकृति के साथ खिलवाड़ करने से नहीं झुकता है ।काश कोई समझाए इस तरह के लोगों को वृक्षों की कटाई करके तुम  सैकड़ों तरह की प्राकृतिक आपदाओं को निमंत्रण देते हो और इसका परिणाम सिर्फ तुम्हें ही नहीं पूरे पृथ्वी को भुगतना पड़ता है ।हमने देखा है ऋषिकेश के सामने सैकड़ों एकड़ जमीन  जो पहाड़ पर हैं वो यूं ही नहीं बन गए वहां के जंगलों में आग लगाकर के उन जंगलों का सफाया किया गया। क्या इसी को विकास कहते हैं प्रकृति का विनाश करके और प्राकृतिक आपदाओं को निमंत्रण करके आप किस मुंह से खुद को विकसित कह सकते हैं। अगर यह विकास है तो फिर जितनी भी प्राकृतिक आपदाएं आती हैं जितनी बीमारियां आती है उसे भी झेलने के लिए हमें तैयार रहना चाहिए ।आप जान लो कि गोमुख हर साल अपनी जगह से 2 मीटर पीछे खिसकते जा रहा है। अब यह तो मैंने छोटी मोटी अनुभव की बात बता दी आपको। ऐसा पूरे देश में और लगभग पूरे विश्व में हो रहा है। बड़ी मात्रा में पशुपालन किया जाता है पर क्यों किया जाता है ताकि उन पशुओं को आपके मांस के लिए तैयार किया जा सके। उन पशुओं को कत्लखाने ले जाने के लिए पाला  जाता है और उसे पालने में कितने जंगलों का सफाया किया जाता है  और परिणाम क्या होता है जंगल की कटाई और उन जानवरों की बेरहमी से हत्या ।क्योंकि मनुष्य को तो स्वाद चाहिए ना ।मैं जानता हूं कि मेरी यह पोस्ट  बहुत लोगों को बुरा लगेगा क्योंकि जीभ का स्वाद अगर मांस से पूरा होता है तो वह व्यक्ति कभी मेरे इस पोस्ट को पसंद नहीं करेगा। पर मेरी भी एक आदत है जो खड़ा सत्य होता है वही बोलता हूं।

           काश भगवान इस मनुष्य को इतनी अकल तो दे ताकि वृक्षों की कटाई करना या प्रकृति के साथ खिलवाड़ करना बंद करें। अन्यथा प्रकृति जब अपना तांडव दिखाती है तो कोई भी वैज्ञानिक उपकरण उसे उस दुष्परिणाम से बचा नहीं सकता क्योंकि मनुष्य की क्षमता सीमित है और प्रकृति असीमित क्षमता वाली है। हमने अपनी आंखों से देखा है हमारे रहने वाली जगह के आगे बादल फटने वाला था और कुछ दूरी पर बादल फट गया था फिर आगे का क्या कोहराम मचता है वही समझते हैं जिनके ऊपर यह घटना  होती हैं। कुल मिलाकर मेरा यही कहना है कि हम भले ही खूब विकास कर ले तरक्की कर ले लेकिन प्रकृति का सीना छलनी कर के विकास करना यह हमारे और हमारे आने वाली पीढ़ियों के लिए बिल्कुल भी सही नहीं रहेगा।

            हमारे भारतीय सनातन पद्धति में हवन करने की प्रक्रिया का ऋषि यों ने उल्लेख किया है ।अगर गाय के घी से हवन की जाती है तो वातावरण शुद्ध परिष्कृत और सकारात्मक ऊर्जा से भर जाता है। अगर आप गाय के घी से हवन करते हैं तो बहुत अधिक मात्रा में ऑक्सीजन तैयार होता है इसके अलावा अन्य कोई माध्यम नहीं है जो ऑक्सीजन को तैयार कर सके सिवाए पेड़ पौधे केphotosynthesis के।निश्चित रूप से वह ऋषि बहुत बड़े वैज्ञानिक थे जिन्होंने हवन की पद्धति दुनिया को दी थी ।आप हवन करें या ना करें अलग बात है पर विकास के नाम पर पेड़ को ना काटे और कोशिश करें कि हमारे जान पहचान में भी कोई इस तरह का प्रकृति विरुद्ध आचरण ना करें ।आज तो यही कहना था। बाकी खुश रहे प्रसन्न रहें और कोविड  से बहुत ज्यादा डरे नहीं ।आंवला ,अश्वगंधा का सेवन करते रहें इससे आपकी इम्यून सिस्टम के साथ ही पूरी की पूरी शारीरिक प्रक्रिया तंदुरुस्त हो जाएगी और अन्य भी कई बीमारियों से आप बचे रहोगे ।मन में डर का समावेश बिल्कुल ना होने दें क्योंकि हमारे अवचेतन मन में जो विचार आते हैं उसका प्रैक्टिकल लाइफ में भी असर पड़ता है ।डरना बिल्कुल नहीं है मस्त रहना है कोवि ड  हमारा कुछ विशेष नहीं बिगाड़ पाएगा अगर हम सकारात्मक बने रहे तो ।इतना ही जय श्री राधे

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Rishikesh, India


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पेड़ों को काटने का क्या कारण है?

वनोन्मूलन का अर्थ है वनों के क्षेत्रों में बोहोत से पेड़ों को जलाना या काटा जाता है ऐसा करने के लिए कई कारण हैं; पेडों और उनसे व्युत्पन्न चारकोल को एक वस्तु के रूप में बेचा जा सकता है और मनुष्य के द्वारा उपयोग में लिया जा सकता है जबकि साफ़ की गयी भूमि को चरागाह (pasture) या मानव आवास के रूप में काम में लिया जा सकता है।

पेड़ के कटने से हमें पीड़ा क्यों होनी चाहिए?

जब हमारा कोई आत्मीय छोड़कर चला जाता है तो बेहद पीड़ा होती है वैसी ही पीड़ा किसी पेड़ के कटने पर भी होनी चाहिए, क्योंकि उनपर हमारा जीवन निर्भर है, वे हमारी जीवनी शक्ति हैं। उनमें भी जीवन होता है । अतएव किसी पेड़ के कटकर धरती पर गिरने पर उसकी आवाज़ उसी तरह ठेस पहुँचाएगी, मानो हमारा ही कोई हिस्सा कटकर गिर गया हो ।

पेड़ों को काटने से क्या होता है?

वनों की कटाई की वजह से भूमि का क्षरण होता है क्योंकि वृक्ष पहाड़ियों की सतह को बनाए रखने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं तथा तेजी से बढ़ती बारिश के पानी में प्राकृतिक बाधाएं पैदा करते हैं। नतीजतन नदियों का जल स्तर अचानक बढ़ जाता है जिससे बाढ़ आती है।

अगर पेड़ों को काट दिया जाए तो क्या होगा?

बिना पेड़ों के, पुराने जंगली इलाक़े सूख जाएंगे, वहां भयंकर सूखा पड़ने लगेगा. अगर बारिश हुई भी तो बाढ़ से भारी तबाही होगी. मिट्टी का क्षरण होगा. जिसका सीधा असर समुद्रों पर पड़ेगा.