ख मानव नेत्र क्या है इसकी क्रियाविधि को लिखिए 2 2 4 अथवा? - kh maanav netr kya hai isakee kriyaavidhi ko likhie 2 2 4 athava?

पोस्ट में शामिल विषयों की सूची

  • नेत्र का कार्य
  • मानव नेत्र की संरचना
  • मानव नेत्र का दृष्टि विस्तार ( Range of Vision of Human Eye )
  • दृष्टि दोष तथा उनका निवारण ( Defects of Vision and their Remedy )
  • (1) निकट दृष्टि दोष अथवा मायोपिया (Short Sightedness or Myopia)
  • निकट दृष्टिदोष का कारण
  • निकट दृष्टि दोष का निवारण (Defects of Myopia Remedy)
  • (2) दूर दृष्टि दोष अथवा हाइपरमेट्रोपिया (Long Sightedness or Hypernmetropia)
  • दूर दृष्टि दोष के कारण
  • दूर दृष्टि दोष का निवारण (Remedy of Hypermetropia)
  • (3) जरा दृष्टि दोष (Old Sight or Presbyopea)
  • जरा दृष्टि दोष का निवारण
  • नेत्र से संबंधित FaQ

नेत्र का कार्य

नेत्रों की पलकें , फोटोग्राफिक कैमरे के शटर की भाँति कार्य करती हैं । पलकें खुलने पर वस्तु से आने वाला प्रकाश कॉर्निया पर पड़ता है तथा नेत्र तारा ( Pupil ) से होकर लेन्स पर आपतित होता है ।

इस क्रिया में आइरिस झिल्ली नेत्र तारा के व्यास को इस प्रकार समंजित करती है कि तेज प्रकाश की वस्तु से सीमित मात्रा में तथा कम प्रकाशवान वस्तु से पर्याप्त मात्रा में प्रकाश नेत्र में प्रवेश करे ।

इसके साथ ही सिलियरी – पेशियाँ लेन्स के पृष्ठों की वक्रता त्रिज्याओं को घटा – बढ़ा कर लेन्स की फोकस दूरी को ऐसा समंजित करती हैं कि वस्तु दूर हो या निकट , उसका स्पष्ट प्रतिबिम्ब रेटिना पर बने ।यह प्रतिबिम्ब वास्तविक , उल्टा तथा छोटा होता है ।

रेटिना की तंत्रिकाओं के सिरे इस प्रतिबिम्ब के प्रकाश से प्रभावित होकर मस्तिष्क को संदेश भेजते हैं , जिससे हम वस्तु को देखते हैं ।

स्वस्थ नेत्र की न्यूनतम दूरी: 20 सेमी से 25
मनुष्य के आँख में प्रयुक्त लेंस: उत्तल लेंस
आंख कितने मेगापिक्सल होता है: लगभग 576 मेगापिक्सल
आँख का वजन: 0.25 ounce यानी 7.5 grams
  • इसे भी पढ़े :– मानव हृदय की संरचना (Human Heart Structure) व कार्य विधि
  • रक्त के कार्य (Rakt Ke Karya) | Functions of blood

मानव नेत्र की संरचना

मानव नेत्र द्वारा वस्तुओं से आने वाले प्रकाश के नेत्र में स्थित लेंस द्वारा अपवर्तन के कारण , नेत्र के पिछले भाग में स्थित रेटिना ( संवेदनशील पर्दा ) पर वास्तविक , उल्टे तथा छोटे प्रतिबिम्ब बनते हैं । नेत्र , मनुष्य को प्रकृति की सबसे बहुमूल्य देन है । इनके द्वारा फोटो कैमरे की भाँति वस्तुओं के वास्तविक प्रतिविम्ब रेटिना पर बनते हैं । नेत्र के विभिन्न भाग निम्नवत् हैं:–

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Manav Netra

( 1 ) दृढ़ पटल ( Sclerotic ) मनुष्य का नेत्र लगभग एक खोखले गोले के समान होता है । इसकी सबसे बाहरी पर्त , अपारदर्शी , श्वेत तथा दृढ़ ( hard ) होती है । इसे दृढ़ पटल ( sclerotic ) कहते हैं । इसके द्वारा नेत्र के भीतरी भागों की सुरक्षा होती हैं ।

( 2 ) कॉर्निया ( Cornea ) दृढ़ पटल के सामने का भाग कुछ उभरा हुआ और पारदर्शी होता है । इसे कॉर्निया कहते हैं । नेत्र में प्रकाश इसी भाग से होकर प्रवेश करता है । यह नेत्र का लगभग 1/6 भाग होता है ।

( 3 ) आइरिस ( Iris ) कॉर्निया के ठीक पीछे एक रंगीन ( काली , भूरी अथवा नीली ) अपारदर्शी झिल्ली का पर्दा होता है । जिसे आइरिस कहते हैं । आइरिस का कार्य नेत्र में जाने वाले प्रकाश की मात्रा को नियन्त्रित करना है ।

( 4 ) पुतली अथवा नेत्र तारा ( Pupil ) आइरिस के बीच में एक छोटा छिद्र होता है जिसको पुतली ( Pupil ) कहते हैं । यह गोल तथा काली दिखाई देती है ।कॉर्निया से आया प्रकाश पुतली से होकर ही लेन्स पर पड़ता है ।

पुतली की यह विशेषता होती है कि अन्धकार में यह अपने आप बड़ी व अधिक प्रकाश में अपने आप छोटी हो जाती है ।

इस प्रकार नेत्र में उचित मात्रा में ही प्रकाश पहुँच पाता है । जब प्रकाश की मात्रा कम होती है तो आइरिस की माँस पेशियाँ किनारों की ओर सिकुड़ कर पुतली को बड़ा कर देती

हैं जिससे लेन्स पर पड़ने वाले प्रकाश की मात्रा बढ़ जाती है और जब प्रकाश की मात्रा अधिक होती है तो पुतली की माँस पेशियाँ ढीली हो जाती हैं

जिससे पुनली छोटी हो जाती है और लेन्स पर प्रकाश आपतित होता है ।इस क्रिया को पुतली समायोजन कहते हैं । नेत्र में यह क्रिया स्वतः होती रहती है ।

( 5 ) नेत्र लेन्स ( Eye Lens ) पुतली के ठीक पीछे पारदर्शी ऊतकों ( tissues ) का बना द्वि – उत्तल लेन्स होता है जिसे नेत्र लेन्स कहते हैं ।नेत्र लेन्स के पिछले भाग की वक्रता-त्रिज्या छोटी तथा अगले भाग की वक्रता त्रिज्या – बड़ी होती है ।

यह ऊतकों की कई पर्तो से मिलकर बना होता है जिनके अपवर्तनांक अन्दर की ओर बढ़ते जाते हैं( माध्य n=1.44 ) । लेन्स के चारों ओर स्थित सिलियरी ( ciliary ) माँस पेशियों

द्वारा लेंस पर अधिक अथवा कम दबाव डालकर लेन्स की बक्रता त्रिज्याओं को बदला जा सकता है जिससे लेन्स की फोकस दूरी बदल जाती है

और लेन्स द्वारा दूर एवं पास वाली वस्तुओं का प्रतिबिम्ब रेटिना पर बन सकता है । इस प्रकार हम दूर एवं पास वाली वस्तुओं को आसानी से देख सकते हैं ।

( 6 ) जलीय द्रव तथा काचाभ द्रव ( Aqueous Humor and Vitreous Humor ) – कॉर्निया एवं नेत्र लेन्स के बीच के स्थान में जल के समान पारदर्शी द्रव भरा रहता है जिसका अपवर्तनांक 1.336 होता है ।

इसे जलीय द्रव कहते हैं । इसी प्रकार लेन्स के पीछे दृश्य – पटल तक का स्थान एक गाढ़े , पारदर्शी एवं उच्च अपवर्तनांक के द्रव से भरा होता है । इसे काचाभ द्रव कहते हैं ।

( 7 ) रक्तक पटल ( Choroid ) दृढ़ पटल के भीतरी पृष्ठ से लगी एक पर्त या झिल्ली होती है जो काले रंग की होती है । इसे रक्तक पटल ( choroid ) कहते हैं ।

काले रंग के कारण यह प्रकाश को अवशोषित करती है तथा नेत्र के भीतर परावर्तन को रोकती है । इससे यह सुनिश्चित होता है कि केवल बाहर से आने वाली प्रकाश किरणें ही रेटिना पर पड़ें ।

( 8 ) दृष्टिपटल ( रेटिना ) ( Retina ) कोरॉइड झिल्ली के ठीक नीचे तथा नेत्र के सबसे अन्दर की ओर एक पारदर्शी झिल्ली होती है ।जिसे रेटिना कहते हैं । वस्तु का प्रतिबिम्ब रेटिना पर बनता है ।

रेटिना बहुत सारी प्रकाश तंत्रिकाओं ( optic nerves ) की एक फिल्म होती है । रेटिना पर बने प्रतिबिम्ब का( वस्तु के रूप ) , रंग एवं आकार आदि का मस्तिष्क को ज्ञान इन

तंत्रिकाओं द्वारा ही होता है । रेटिना के विभिन्न भाग प्रकाश के लिए समान रूप से सुग्राही नहीं होते ।

( 9 ) पीत बिन्दु ( Yellow Spot ) लेन्स की मुख्य – अक्ष , रेटिना को जिस बिन्दु पर काटती है , उसे पीत बिन्दु कहते हैं । रेटिना के इस भाग की सुग्राहिता सबसे अधिक होती है । अतः इस बिन्दु पर प्रतिबिम्ब सबसे स्पष्ट दिखाई देता है ।

( 10 ) अन्ध बिन्दु ( Blind Spot ) – जिस स्थान से प्रकाश तंत्रिकाएँ , रेटिना को छेदकर मस्तिष्क को जाती हैं , उस स्थान की प्रकाश के लिए सुग्राहिता शून्य होती है । इसलिए इस बिन्दु पर प्रतिबिम्ब नहीं बनता है । इसे अन्ध बिन्दु कहते हैं ।

मानव नेत्र का दृष्टि विस्तार ( Range of Vision of Human Eye )

नेत्र से अधिकतम जिस दूरी पर रखी वस्तु को हम स्पष्ट देख सकते हैं उसे नेत्र का दूर – बिन्दु ( far – point ) कहते है। सामान्य दोष रहित नेत्र के लिए यह बिन्दु अनन्त ( infinity ) पर होता है ।

नेत्र के निकट जिस न्यूनतम दूरी पर स्थित वस्तु को हम स्पष्ट देख पाते हैं , उसे नेत्र का निकट – विन्दु ( near – point ) कहते हैं ।

नेत्र के निकट एक दूरी ऐसी होती है , जिस पर स्थित वस्तु का प्रतिबिंब रेटिना पर सर्वाधिक स्पष्ट बनता है । इसे नेत्र की स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी ( Distance of distinct vision ) कहते हैं ।

सामान्य नेत्र के लिए यह दूरी 20 सेमी से 25 सेमी के लगभग होती है ।निकट बिन्दु से दूर बिन्दु की दूरी को नेश का दृष्टि विस्तार ( range of Vision ) कहते हैं । सामान्य नेत्र के लिए यह लगभग 20 सेमी से अनन्त तक होती है ।

दृष्टि दोष तथा उनका निवारण ( Defects of Vision and their Remedy )

सामान्य स्वस्थ नेत्र में उसके दृष्टि विस्तार में स्थित सभी वस्तुओं का लेंस द्वारा रेटिना पर स्पष्ट प्रतिबिम्ब बनता है। यदि यह प्रतिबिम्ब स्पष्ट न बने तो नेत्र में दृष्टि दोष होता है ।नेत्र के प्रमुख दृष्टि दोष निम्न होते हैं: –

  • ( 1 ) निकट दृष्टि दोष अथवा मायोपिया ( Short sightedness or Myopia )
  • 2 ) दूर दृष्टि दोष अथवा हाइपरमेट्रोपिया ( Long sightedness or Hypermetropia )
  • ( 3 ) जरा दृष्टि दोष ( Old sight or Preshyopea )इन दोषों का निवारण उपयुक्त लेन्सों के उपयोग से किया जाता है ।

(1) निकट दृष्टि दोष अथवा मायोपिया (Short Sightedness or Myopia)

निकट दृष्टि दोष नेत्र का वह दृष्टि दोष है जिसके कारण मनुष्य को निकट की वस्तुएँ तो स्पष्ट रूप से दिखाई देती है , परन्तु एक सीमित दूरी के आगे की वस्तुएँ स्पष्ट नहीं दिखाई देती इस दोष को चिकित्सा विज्ञान की भाषा में मायोपिया ( Myopia ) कहते हैं ।

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निकट दृष्टिदोष का कारण

इस दोष का सामान्य कारण , नेत्र गोलक का कुछ लम्बा हो जाना है । इससे लेन्स तथा रेटिना के बीच की दूरी कुछ अधिक हो जाती है तथा असमंजित दशा में , अनन्त पर स्थित वस्तुओं से आने वाली समान्तर किरणें रेटिना पर केन्द्रित न होकर उसके पहले ही प्रतिबिम्ब ( I ) बनाती हैं । अतः रेटिना ( R ) पर प्रतिनिधि स्पष्ट नहीं बनता ।

निकट दृष्टि दोष का निवारण (Defects of Myopia Remedy)

चूँकि निकट दृष्टि दोष में अनन्त स्थित वस्तुओं का प्रतिबिम्ब रेटिना के पहले ही बन जाता है , यदि आपतित समान्तर किरणों को नेत्र लेन्स पर पड़ने के पहले कुछ अपसरित ( diverge ) कर दिया जाय तो वे लेन्स से कुछ दूर हट कररेटिना पर प्रतिबिम्ब बना सकती हैं ।

अतः निकट दृष्टि दोष के निवारण के लिए नेत्र के सामने ( चश्मे में ) एक अवतल ( अपसारी ) लेन्स का प्रयोग किया जाता है यह अवतल लेंस,अनन्त पर स्थित वस्तु से आने वाली समान्तर किरणों को अपसरित कर देता है , जिससे वस्तु का एक आभासी प्रतिबिम्ब O, लेंस के फोकस (F) पर बना है।

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चित्र न. 3

यह प्रतिबिम्ब नेत्र लेंस के लिए वस्तु का कार्य करता है तथा इसका प्रतिबिम्ब (I) रेटिना पर स्पष्ट बनता है ।चश्मे में प्रयुक्त अवतल लेन्स की उपयुक्त फोकस दूरी ज्ञात करने के लिए पहले यह ज्ञात किया जाता है कि मनुष्य बिना चश्मे के

अधिक से अधिक कितनी दूरी तक की वस्तु को स्पष्ट देख सकता है ।इस दूरी को नेत्र का दूर – बिन्दु ( Far – point ) कहते हैं ।

चूंकि सामान्य नेत्र के लिए दूर – बिन्दु अनन्त पर होता है , यह आवश्यक है कि दोष – युक्त नेत्र के लिए अनन्त पर स्थित वस्तु का प्रतिबिम्ब ( अवतल लेंस द्वारा ) नेत्र के दूर – बिन्दु पर बने ( चित्र 3 ) से स्पष्ट है कि O ही दोषयुक्त नेत्र का दूर – बिन्दु है तथा अवतल से लेन्स से इसकी दूरी लेन्स की फोकस दूरी को व्यक्त करती है ।

अतः निकट दृष्टि दोष निवारण हेतु प्रयुक्त अवतल लेन्स की फोकस दूरी , दोष – युक्त नेत्र के दूर – बिन्दु की दूरी के बराबर होनी चाहिए ।

उदाहरणत : यदि कोई मनुष्य अधिक – से – अधिक 50 सेमी दूर स्थित वस्तु को ही स्पष्ट देख सकता है तो उसके चश्मे में 50 सेमी फोकस दूरी का अवतल लेन्स लगाना होगा जिसकी–

छमता= 1/0.50 मीटर= –2D होगी।

(2) दूर दृष्टि दोष अथवा हाइपरमेट्रोपिया (Long Sightedness or Hypernmetropia)

मनुष्य सामान्य नेत्र द्वारा निकट स्थित वस्तुओं को नेत्र लेन्स के समंजन के द्वारा स्पष्ट देख पाता है । यह समंजन सामान्य नेत्र में कम से कम 25 सेमी दूरी तक के लिए हो पाता है ।

इससे कम दूरी की वस्तुओं को समंजन द्वारा भी स्पष्ट देखना सम्भव नहीं हो पाता । इस दूरी ( लगभग 25 सेमी ) को नेत्र की निकट विन्दु ( near point ) अथवा स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी ( Distance of distinct vision ) कहते हैं तथा प्रतीक D से व्यक्त करते हैं ।

दूर दृष्टि दोष नेत्र का वह दोष है जिसके कारण मनुष्य को दूर की वस्तुएँ स्पष्ट रूप से दिखाई देती है परन्तु निकट की वस्तुएँ स्पष्ट रूप से नहीं दिखाई देती दृष्टि में इस प्रकार के दोष को दूर दृष्टि दोष या हाइपरमेट्रोपिया (Hypermetropia ) कहते हैं ।

इस दोष में , सामान्य निकट विन्दु पर रखी वस्तु का प्रतिविम्ब रेटिना के पीछे बनता है — अतः स्पष्ट नहीं दिखाई देता ( चित्र 4 ( क ) तथा ( ख ) ।

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( चित्र न. 4 )

जिस मनुष्य की दृष्टि में यह दोष होता है उसे पुस्तक पढ़ने अथवा अन्य निकटस्थ वस्तुओं को स्पष्ट देखने के लिए 25 सेमी से अधिक दूरी पर रखना पड़ता है ।

दूर दृष्टि दोष के कारण

दूर दृष्टि दोष दो कारणों से उत्पन्न हो सकता है—( 1 ) नेत्र गोलक का कुछ चपटा हो जाना अर्थात् नेत्र में लेन्स तथा रेटिना के बीच की दूरी सामान्य से कम हो जाती है , अथवा( 2 ) नेत्र की समंजन – क्षमता का कम हो जाना या पूर्णतः नष्ट हो जाना ।

दूर दृष्टि दोष का निवारण (Remedy of Hypermetropia)

इस दोष का निवारण करने के लिए चश्में में उपयुक्त फोकस दूरी के उत्तल लेन्स का प्रयोग किया जाता है । यह लेन्स , सामान्य निकट – बिन्दु पर स्थित वस्तु से आने वाली किरणों को कुछ अभिसरित ( Converge ) कर देता है , जिससे नेत्र लेन्स द्वारा बना अन्तिम प्रतिबिम्ब लेन्स की ओर आकर रेटिना पर बनने लगता है ।

ख मानव नेत्र क्या है इसकी क्रियाविधि को लिखिए 2 2 4 अथवा? - kh maanav netr kya hai isakee kriyaavidhi ko likhie 2 2 4 athava?
( चित्र न. 5 )

(3) जरा दृष्टि दोष (Old Sight or Presbyopea)

चूँकि सामान्य नेत्र , समंजन द्वारा ही निकट की वस्तु को स्पष्ट देखते हैं , इस क्षमता के कम हो जाने से निकट की वस्तु स्पष्ट नहीं दिखाई देती ।

समंजन क्षमता का यह दोष सामान्यतः वृद्ध व्यक्तियों में , सिलियरी पेशियों के शिथिल हो जाने या लेन्स के कठोर हो जाने से उत्पन्न होता है ।

इस दोष के कारण उत्पन्न दूर दृष्टि को जरादृष्टि ( Old sightedness ) अथवा प्रेसबायोपिया ( Presbyopia ) कहते हैं ।

जरा दृष्टि दोष का निवारण

जरा दृष्टि दोष का निवारण भी , दूर दृष्टि दोष के समान , उत्तल लेन्स के उपयोग से किया जाता है ।

नेत्र से संबंधित FaQ

नेत्र का कार्य क्या है?

नेत्र मनुष्य की वह हीरे के समान अंग है, जिसके बिना मनुष्य का जीवन अंधकार भरा हो जाता है, हमारे नेत्र का कार्य वस्तुओ को देखना होता है। और देखकर हमारे मस्तिष्क तक भेजना होता है।

मनुष्य की आंखों में कौन सा लेंस होता है?

मनुष्य की आंखों में एक प्राकृतिक उत्तल लेंस होता है।

मानव नेत्र कितने मेगापिक्सल का होता है?

मनुष्य का नेत्र 576 मेगापिक्सल के बराबर होता है।

नेत्र के दो मुख्य दोष कौन कौन है?

नेत्र के दो मुख्य दोष, निकट–दृष्टी दोष और दूर–दृष्टी दोष है।

ख मानव नेत्र क्या है इसकी क्रियाविधि को लिखिए 2?

वस्तु से निकलने वाली प्रकाश किरणें जब नेत्र में प्रवेश करती है तो तेजो जल प्रकाश किरणों को अपवर्तित कर देता है , आइरिस से गुजरती हुई ये किरणें लेंस में से होकर गुजरती है तो लेन्स इन्हें अपनी ओर फोकस दुरी के अनुसार झुका देता है और अब ये किरणें दृष्टिपटल पर पड़कर वस्तु का उल्टा व वास्तविक प्रतिबिम्ब बनाती है।

`( ख मानव नेत्र क्या है इसकी क्रियाविधि को लिखिए 12 2 4?

मानव आंख का कार्य: आंख जलीय के माध्यम से ऑक्सीजन प्राप्त करती है। इसका कार्य पोषक तत्वों को ले कर कॉर्निया, आइरिस और लेंस को पोषण देना है, यह लेंस से उत्सर्जित अपशिष्ट उत्पादों को हटाता है, और अंतःस्रावी दबाव को बनाए रखता है और इस प्रकार आंख के आकार को बनाए रखता है।

मानव नेत्र क्या है इसकी?

मानव नेत्र शरीर का वह अंग है जो विभिन्न उद्देश्यों से प्रकाश के प्रति क्रिया करता है। आँख वह इंद्रिय है जिसकी सहायता से देखते हैं। मानव नेत्र लगभग १ करोड़ रंगों में अन्तर कर सकता है। नेत्र शरीर की प्रमुख ज्ञानेंद्रिय हैं जिससे रूप-रंग का दर्शन होता है।

नेत्र के कार्य क्या है?

मानव नेत्र के कार्य आँसू आँखों को चिकना एवं नम रखते हैं, जिससे पलकों की गति सहजतापूर्वक हो सके। आँसू बाह्य वस्तुओं, धूलकणों आदि को धोकर साफ कर देते हैं। आँसूओं में विद्यमान जीवाणुनाशक एन्जाइम, लाइसोजाइम से जीवाणु नष्ट हो जाते हैं। आँसू कॉर्निया एवं लेन्स को जल एवं पोषण की आपूर्ति करते हैं।