Haryana State Board HBSE 7th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 15 नीलकंठ Textbook Exercise Questions and Answers. निबंध से नीलकंठ पाठ के प्रश्न उत्तर
HBSE 7th Class प्रश्न 1. नीलकंठ पाठ के शब्दार्थ HBSE 7th Class प्रश्न 2. नीलकंठ पाठ के प्रश्न उत्तर Class 7 HBSE प्रश्न 3. नीलकंठ Class 7 HBSE प्रश्न 4. पाठ 15 नीलकंठ के प्रश्न उत्तर HBSE 7th Class प्रश्न 5. नीलकंठ Class 7 Summary HBSE प्रश्न 6. गोदोहनम् पाठ के प्रश्न उत्तर HBSE 7th Class प्रश्न 7.
निबंध से आगे 1. यह पाठ एक ‘रेखाचित्र’ है। रेखाचित्र की क्या-क्या विशेषताएँ होती हैं? जानकारी प्राप्त कीजिए और
लेखिका के लिखे किसी अन्य रेखाचित्र को पढ़िए। 2. वर्षा ऋतु में जब आकाश में बादल घिर आते हैं तब मोर पंख फैलाकर धीरे-धीरे मचलने लगता है-यह मोहक दृश्य देखने का प्रयास कीजिए। 3. पुस्तकालय से ऐसी कहानियों, कविताओं या गीतों को खोजकर पढ़िए जो वर्षा ऋतु और मोर के
नाचने से संबंधित हों। ‘वर्षा ऋतु’ से संबंधित कविता HBSE 7th Class Hindi नीलकंठ Important Questions and Answersअति लघुत्तरात्मक प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. लघुत्तरात्मक प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. खुला रहने पर चित्रा (बिल्ली) इन नवागंतुकों का पता लगा सकती थी और तब उसके शोध का क्या परिणाम होता, यह अनुमान करना कठिन नहीं है। वैसे वह चूहों पर भी आक्रमण नहीं करती परंतु यहाँ तो दो सर्वथा अपरिचित पक्षियों की अनाधिकार चेष्टा का प्रश्न था। उसके लिए दरवाजा बंद रहे और ये दोनों (उसकी दृष्टि में) ऐरे-गैरे लेखिका की मेज को अपना सिंहासन बना लें, यह स्थिति चित्रा जैसी अभिमानी माजोरी ‘बिल्ली’ के लिए असा ही कही जाएगी। प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. उसकी पूंछ लंबी हुई और उसके पंखों पर चंद्रिकाओं के इंद्रधनुषी रंग चमक हो उठे। रंग-रहित पैरों को गर्वीली गति ने उसे एक नई गरिमा से रंजित कर दिया। उसका गरदन ऊँची कर देखना, विशेष भंगिमा के साथ उसे नीची कर दाना चुगना, पानी पीना, टेढ़ी कर शब्द सुनना आदि क्रियाओं में जो सुकुमारता और सौंदर्य था, उसका अनुभव देखकर ही किया जा सकता है। गति का चित्र नहीं आंका जा सकता। मोरनी का विकास मोर के समान चमत्कारिक तो नहीं हुआ, परंतु अपनी लंबी धूप छाँही गरदन, हवा में चंचल कलगी, पंखों की श्याम-श्वेत पत्रलेखा, मंथर गति आदि से वह भी मोर की उपयुक्त सहचारिणी होने का प्रमाण देने लगी। प्रश्न 8. वह चीख भी नहीं सकता था। नीलकंठ ने उसका धीमा स्वर सुन लिया और उसने नीचे उतरकर सांप को फन के पास पंजों से दबाया और चोंच मार-मार कर उसे अधमरा कर दिया। पकड़ ढीली पड़ते ही खरगोश उसके मुंह से निकल आया। मोर रात भर उसे अपने पंखों के नीचे रखकर गरमी देता रहा। प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. प्रश्न 13. प्रश्न 14. प्रश्न 15. नीलकंठ गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या 1. बड़े मियाँ …………………… लग रहे थे। अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न: बहुविकल्पी प्रश्न सही उत्तर चुनकर लिखिए 1. यह पाठ किस शैली में रचा गया है? 2. इस पाठ को किसने लिखा है? 3. बड़े मियाँ के भाषण की तुलना किससे की गई है? 2. वे दोनों ………………… होने लगे। अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न: बहुविकल्पी प्रश्न सही उत्तर चुनकर लिखिए 1. यह गद्यांश किस पाठ से लिया गया है? 2. ‘आविर्भाव’ शब्द का क्या अर्थ है? 3. लेखिका की टोकरी किस काम आती थी? 3. दोनों नवागुंतकों ………………………… आ गया। अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न: बहुविकल्पी प्रश्न सही उत्तर चुनकर लिखिए 1. ‘नवागंतुक’
का सही संधि-विच्छेद है 2. ‘गुटरगूं-गुटरगूं’ कौन करने लगे? 4. मुझे स्वयं …………….. देने दौड़ा। अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न: बहुविकल्पी प्रश्न सही उत्तर चुनकर लिखिए 1. नीलकंठ ने स्वयं को क्या नियुक्त कर लिया था? 2. नीलकंठ अपने पक्षियों की सेना को कहाँ ले जाता था? 3. ‘चंचु-प्रहार’ कैसा शब्द है? 5. मोर के …………… हो उठे। अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न: बहुविकल्पी प्रश्न सही उत्तर चुनकर लिखिए 1. ‘ग्रीवा’ शब्द कैसा है? 2. ‘इंद्रधनुषी रंग’-रेखांकित शब्द क्या है? 3. ‘आलेखन’ शब्द कैसे बना है? 6. मयूर कलाप्रिय …………………… जाता था। अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न: बहुविकल्पी प्रश्न सही उत्तर चुनकर लिखिए 1. कलप्रिय और वीर किसे कहा गया है? 2. ‘मयूर’ शब्द कैसा है? 3. ‘अलक्ष्य’ में ‘अ’ क्या है? 7. नालकठ आर ……………………… होता जाता। अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न: बहुविकल्पी प्रश्न सही उत्तर चुनकर लिखिए 1. कौन सा शब्द ‘हवा’ का पर्यायवाची नहीं है 2. “नृत्य” शब्द कैसा है? 3. वर्षा किसकी प्रिय ऋतु थी? नीलकंठ Summary in Hindiनीलकंठ पाठ का सार इस रेखाचित्र में महादेवी वर्मा ने अपने पालतू मोर ‘नीलकंठ’ के मीठे-कड़वे अनुभवों का लेखा-जोखा प्रस्तुत किया है। इस – पाठ के माध्यम से लेखिका के जीव-जंतुओं के प्रति अथाह प्रेम और सहानुभूति का परिचय मिलता है। नीलकंठ सहित उसके सभी साथियों के रूप, स्वभाव, व्यवहार और चेष्टाओं का लेखिका ने जितनी गहनता और सूक्ष्मता से निरीक्षण तथा वर्णन किया है, उससे यह रेखाचित्र अत्यंत जीवंत बन गया है। यह पाठ रेखाचित्र-शैली में रचा गया है। एक दिन लेखिका महादेवी वर्मा अपने अतिथि को स्टेशन पहुँचाकर लौट रही थी कि वह बड़े मियाँ चिड़ियावाले की दुकान पर जा पहुँची। महादेवी को देखते ही वह बोला सलाम गुरु जी! पिछली बार आने पर आपने मोर के बच्चों के लिए पूछा था। शंकरगढ़ से एक चिड़ीमार दो मोर के बच्चे पकड़ लाया है, एक मोर है, एक मोरनी। आप पाल लें। मोर के पंजों से दवा बनती है, सो ऐसे ही लोग खरीदने आए थे। आखिर मेरे सीने में भी तो इंसान का दिल है। मारने के लिए ऐसी मासूम चिड़ियों को कैसे दूं। टालने के लिए मैंने कह दिया- “गुरुजी ने मँगवाए हैं। वैसे, यह कमबख्त रोजगार ही खराब है। बस, पकड़ो-पकड़ो, मारो-मारो।” लेखिका बड़े मियाँ के भाषण के दौरान मोर के बच्चों का निरीक्षण भी करती रही। उसने तीस चिड़ीमार के नाम के तथा पाँच बड़े मियाँ के ईमान के अर्थात् 35 रुपये देकर वे दोनों पक्षी शावक खरीद लिए। घर पर सब उन पक्षियों को तीतर बताने लगे और कहने लगे कि तुम ठग गई हो। लेखिका ने अपने पढ़ने-लिखने के कमरे में उनका पिंजड़ा रखकर उसका दरवाजा खोला, फिर दो कटोरों में सत्तू की छोटी-छोटी गोलियाँ और पानी रखा। वे दोनों चूहेदानी जैसे पिंजड़े से निकलकर कमरे में मानो खो गए, कभी मेज के नीचे घुस गए तो कभी अलमारी के पीछे। अंत में इस लुका-छिपी से थककर उन्होंने मेरे रद्दी कागजों की टोकरी को अपने नए बसेरे का गौरव प्रदान किया। दो-चार दिन वे इसी प्रकार दिन में इधर-उधर गुप्तवास करते और रात में रद्दी की टोकरी में प्रकट होते रहे। लेखिका ने उन्हें अन्य जीव-जंतुओं से बचाने के लिए पिंजरे में बंद रखना ही ठीक समझा। लक्का कबूतर, खरगोश, तोते सभी उसके इर्द-गिर्द जमा होने लगे। धीरे-धीरे मोर के दोनों बच्चे बढ़ने लगे। मोर की कलगी सघन, ऊँची और नुकीली हो गई। चोंच पैनी हो गई। उनके रूप-आकार में निरंतर परिवर्तन होते चले गए। मोरनी का विकास उतना चमत्कारी नहीं था पर वह मोर की सहचरिणी होने का सबूत देने लगी थी। नीली गरदन होने के कारण मोर का नाम नीलकंठ रखा गया। मोरनी का नाम राधा रखा गया। नीलकंठ स्वयं जीव-जंतुओं का सेनापति और संरक्षक बन बैठा। वह सबका ख्याल रखता तथा दोषी को चोंच मारकर दडित करता था। खरगोश के छोटे बच्चों को वह चोंच से कान पकड़कर उठा लेता था। वह जीव-जंतुओं से प्रेम भी बहुत करता था। एक बार एक साँप जाली के भीतर पहुँच गया। एक शिशु खरगोश साँप की पकड़ में आ गया। नीलकंठ ने खरगोश के मंद स्वर को सुना। वह एक झपट्टे में नीचे आ गया। उसने साँप को फन के पास पंजों से दवाया और फिर चोंच से इतने प्रहार किए कि वह अधमरा हो गया। पकड़ ढीली पड़ते ही खरगोश का बच्चा मुंह से निकल आया और रात भर उसे अपने पंखों से गरमी देता रहा। मोर कलाप्रिय वीर पक्षी है। वह हिंसक नहीं है। वह नीलकंठ लय-ताल के साथ नाचता था। राधा भी नाचती थी, पर नीलकंठ के समान नहीं। लेखिका को नीलकंठ का नृत्य बहुत अच्छा लगता था। नीलकंठ यह बात जान गया था। अतः अब वह नित्य नृत्य दिखाने लगा। लेखिका के साथ देशी-विदेशी भी होते थे। कुछ विदेशी महिलाओं ने उसे परफैक्ट जेंटिलमैन की उपाधि दे डाली। वह लेखिका की हथेली से बड़ी कोमलता के साथ चने उठाकर खाता था। वसंत में वह जालीघर में रहना पसंद नहीं करता था। नीलकंठ और राधा की सबसे प्रिय ऋतु वर्षा ही थी। मेघ गर्जना के साथ उनका नृत्य प्रारंभ होता और वर्षा की रिमझिम के साथ नृत्य का वेग भी बढ़ता जाता। इस सुखद आनंद का अंत करुण कथा में हआ। एक दिन लेखिका बड़े मियाँ से एक घायल मोरनी सात रुपए देकर ले आई। मरहम-पट्टी से वह एक महीने में अच्छी हो गईं। पर वह डगमगाती चलती थी। अत: उसका नाम रखा गया कब्जा। वह कुब्जा नीलकंठ और राधा को एक साथ नहीं देख पाती थी। वह नीलकंठ के साथ रहना चाहती थी, जबकि नीलकंठ उससे दूर भागता था। कुब्जा ने राधा के दो अंडों को चोंच मार-मारकर गिरा दिया और राधा को धकेल दिया। नीलकठ उदास रहने लगा। वह छिपकर रहने लगा। तीन-चार मास के उपरांत एक दिन लेखिका ने देखा कि वह मरा पड़ा है। वह क्यों मरा, पता नहीं चला। लेखिका उसे अपने शॉल में लपेटकर संगम तक ले गई और गंगा की धारा में प्रवाहित कर आई। नीलकंठ के न रहने पर राधा भी निश्चेष्ट-सी बैठी रहती। कुब्जा उसे दूवती रहती. एक दिन कजली के दाँत उसकी गरदन पर लग गए। उसका जीवन न बचाया जा सका। राधा प्रतीक्षा में ही दुकेली है। वर्षा ऋतु में वह अपने नीलकंठ को बुलाती है। नीलकंठ शब्दार्थ अनुसरण = पीछे-पीछे चलना (to follow), संकीर्ण = सँकरा, छोटा (narrow), आविर्भूत = प्रकट (to come out), नवागंतुक = नया-नया आया हुआ, नया अतिथि (new guest), मार्जारी = मादा बिल्ली (female car), इल्ली = तितली के बच्चों को अंडे से निकलने के बाद का रूप (a form of butterfly). बंकिम = टेढ़ा (not stright), इंद्रनील = नीलकांत-नीलम (a precious diamond), द्युति – चमक (shining), दीप्त होना = चमकना (lo glitter), चंचु प्रहार = चोंच द्वारा आक्रमण (attack by beak), आर्तक्रंदन = दर्द-भरी आवाज में रोना (cry), अधर = बीच में (in between), कर्णवेध = कान छेदना (a hole in ear), निश्चेष्ट = बिना प्रयास के (without effort), कार्तिकेय = कृत्तिका नक्षत्र में उत्पन्न शिव के पुत्र, देवताओं के सेनापति (son of shiva), मंजरियाँ = नई कोंपलें, बौर (new buds), मंद्र = गंभीर, धीमा (slow), क्रूर कर्म = कठोर कार्य (hard work), स्तबक = गुलदस्ता, पुष्पगुच्छ (bunch of flowers), कुब्जा = कुब्बड़ वाली, कंस की एक दासी, जो कुबड़ी थी, श्रीकृष्ण ने उसका कुब्बड़ ठीक किया (name of lady), दुकेली = जो अकेली न हो (not lonely), पक्षी-शावक = पक्षी के बच्चे (children of birds), बारहा = बार-बार (again & again), छंद रहता-सा = गति में लय का होना (other), सुरम्य = मनोहर (beautiful), मूंजी = कंजूस (miser), केका = मोर की बोली (voice of peacock) महादेवी जी ने मोर और मोरनी के क्या नाम रखे और क्यों?(ख) महादेवी जी ने मोर और मोरनी के क्या नाम रखे और क्यों ? उत्तर : नीलाभ ग्रीवा के कारण मोर का नाम रखा गया नीलकंठ और उसकी छाया के समान रहने के कारण मोरनी का नामकरण हुआ राधा।
महादेवी जी ने मोर का नाम नीलकंठ क्यों रखा था?उत्तर: महादेवी ने मोर और मोरनी का नाम रखा नीलकंठ और राधा। मोर का गर्दन नीले रंग का था जिसके कारण महादेवी ने उसे नीलकंठ का नाम दिया।
महादेवी वर्मा ने मोरनी का नाम क्या रखा था?एक दिन महादेवी वर्मा “नखासकोने” से निकली तो बड़े मियाँ ने उन्हें एक मोरनी के बारे में बताया जिसका पाँव घायल था। लेखिका उसे सात रूपये में खरीदकर अपने घर ले आयीं और उसकी देख-भाल की। वह कुछ ही दिनों में स्वस्थ हो गयी। उसका नाम कुब्जा रखा गया।
मोरनी का नाम राधा क्यों रखा गया A नीले रंग के होने के कारण B मोर की छाया के समान रहने के कारण c यह दोनों?मोर की गर्दन नीली होने के कारण उसका नामकरण नीलकंठ हुआ । मोरनी का सदैव नीलकंठ की छाया की तरह उसके साथ रहने के कारण उसका नाम राधा पड़ा।
|