कवि ने वस्त्र और आभूषण को स्त्री जीवन के बंधन क्यों माना है? - kavi ne vastr aur aabhooshan ko stree jeevan ke bandhan kyon maana hai?

प्रश्न 1,'बेटी, अभी सयानी नहीं थी'- में माँ की चिंता क्या है? 'कन्यादान' कविता के आधार पर लिखिए।        2016

उत्तर:

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ऋतुराज जी द्वारा रचित कविता 'कन्यादान' में माँ को यह लगता है कि बेटी अभी सयानी नहीं है अर्थात अभी उसे दुनियादारी की समझ नहीं है। वह अभी तक अपनी मधुर कल्पनाओं में खोई हुई है। वह दुख के बारे में अधिक नहीं जानती है। माँ को अपनी पुत्री शारीरिक व मानसिक रूप से अभी छोटी व भोली-भाली लगती है। माँ को लगता है कि बेटी अभी आने वाली सभी ज़िम्मेदारियों को संभालने की दृष्टि से सयानी नहीं है।

प्रश्न 2.‘कन्यादान' कविता में बेटी को ‘अंतिम पूँजी' क्यों कहा गया है?

उत्तर:

कविता 'कन्यादान' में बेटी को ‘अंतिम पूँजी' इसलिए कहा है क्योंकि माँ उसको ससुराल भेजने के बाद अकेली हो जाएगी। बेटी ही अब तक उसके सुख-दुख की साथी थी, उसके जीवन भर की कमाई थी। उसे उसने बड़े नाज़ों से पाल-पोस कर सभी सुख-दुख सहकर बड़ा किया था और अब अपनी जीवन भर की पूंजी वह दूसरों को सौंपने जा रही थी। उसे विदा करने के बाद वह मानसिक रूप से अकेली होने जा रही थी।

प्रश्न 3.‘कन्यादान' कविता में वस्त्र और आभूषणों को शाब्दिक-भ्रम क्यों कहा गया है?

उत्तर:

कवि ऋतुराज द्वारा रचित 'कन्यादान' कविता की इस पक्ति में माँ अपनी पुत्री का 'कन्यादान करते समय उसे सीख देती हुई कहती है कि वस्त्र और आभूषणों के शाब्दिक भ्रम में मत फँसना। शाब्दिक भ्रम शब्दों का ऐसा जाल होता है, जहाँ अर्थ उलझ कर रह जाता है। ऐसे ही स्त्री वस्त्र-आभूषण पहनकर लोभ में आ जाती है। वास्तव में, ये वस्त्र-आभूषण उसके लिए बंधन हैं। इन्हीं के माया-जाल में फँसकर वह अपना अस्तित्व तक भुला बैठती है और अपने लक्ष्य से भटक जाती है।

प्रश्न 4,‘कन्यादान' कविता में माँ ने बेटी को ऐसा क्यों कहा कि लड़की होना पर लड़की जैसी दिखाई मत देना।

उत्तर: 

ऋतुराज जी की कविता 'कन्यादान' में माँ बेटी को यह सीख देती है कि लड़की होना पर लड़की जैसी दिखाई न देना अर्थात वह अपनी बेटी को अबला या कमज़ोर न बनने की सीख दे रही है। यह समाज लड़की को दुर्बल मानकर उसका शोषण करने लगता है। उसे सजावट की वस्तु समझ लिया जाता है। अनेक पारिवारिक व सामाजिक रिश्तों की चक्की में कन्या का जीवन पिस कर रह जाता है। अतः मां उसे सशक्त व मज़बूत बनाना चाहती है। वह चाहती है कि उसकी कन्या अपने अधिकारों के प्रति सचेत रहकर हर ज़िम्मेदारी का सामना करने के लिए सबल बने।

प्रश्न 5.‘कन्यादान' कविता में माँ ने बेटी को किस प्रकार सावधान किया? अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर:

'कन्यादान' कविता में माँ ने बेटी को अनेक सीख देकर सावधान किया है। माँ ने उसे यह समझाया है कि वह कभी अपनी सुंदरता और उसकी प्रशंसा पर न रीझे क्योंकि यही मुग्धता उसके बंधन का कारण बन जाएगी और अपनी सरलता और भोलेपन को इस प्रकार प्रकट न करे कि लोग उसका ग़लत फ़ायदा उठा लें तथा वह घरेलू कार्य तो करे, किंतु किसी के अत्याचारों को सहन न करे। माँ उसे यह कहकर भी सावधान करती है कि नारी की सुंदरता, उसकी प्रशंसा, सुंदर वस्त्र एवं गहने आदि सब नारी को परतंत्र रखने के ढंग हैं, एक नारी को केवल इन्हीं में खोकर अपना व्यक्तित्व नहीं खो देना चाहिए।

प्रश्न 6.‘उसे सुख का आभास तो होता था लेकिन दुख बाँचना नहीं आता था’, ‘कन्यादान' कविता के आधार पर भावार्थ स्पष्ट कीजिए।

उत्तर:

उसे सुख का आभास तो होता था लेकिन दुख बाँचना नहीं आता था।' इस पंक्ति में बताया गया है कि विवाह के समय बेटी को घर-गृहस्थी के सुखमय पक्ष का आभास तो था, किंतु उसके कठोर पक्ष का ज्ञान नहीं था। वह विवाह के सुखमय जीवन की सुखद कल्पना तो कर सकती थी, किंतु वहां पर मिलने वाली कठोर सच्चाइयों, ससुराल में मिलने वाली ज़िम्मेदारियों एवं चुनौतियों से अनभिज्ञ थी।

प्रश्न 7.‘कन्यादान' कविता में किसके दुख की बात की गई है और क्यों ?

उत्तर:

कवि ऋतुराज जी द्वारा रचित कविता 'कन्यादान' में उस माँ के दुख की बात की गई है, जो अपने प्राणों से प्रिय पुत्री का 'कन्यादान' अर्थात विवाह करने जा रही है, अपने से दूर करने जा रही है। बेटी माँ की पूँजी होती है, उसकी सुख-दुख की साथी होती है। उसके चले जाने के बाद माँ एकदम अकेली हो जाती है। इस प्रकार कन्यादान कविता के माध्यम से कवि ने एक दुखी माँ की सीख और उसके दुख को व्यक्त किया है।

प्रश्न 8.‘कन्यादान' कविता में माँ ने बेटी को क्या-क्या सीखें दीं?

उत्तर:

कवि ऋतुराज जी की कविता 'कन्यादान' में माँ ने अपनी बेटी को अनेक सीखें प्रदान की है। वह अपनी पुत्री को सशक्त और नए परिवेश की ज़िम्मेदारियों का सामना करने के अनुकूल बनाना चाहती है-

(i) वह अपनी बेटी को परंपरागत सीख से हटकर जीवन के वास्तविक संघर्ष से परिचित कराती है।

(ii) वह उसे अपने सौंदर्य पर गर्व करने से मना करती है। अपने रूप पर उत्साहित होकर कमज़ोर पड़ने से मना करती है।

(iii) वह उसे आग का उचित प्रयोग करने की सलाह देती हुई कहती है कि आग सिर्फ खाना पकाने के लिए है, संघर्ष से निराश होकर आत्महत्या करने के लिए नहीं।

(iv) वह उसे वस्त्र और आभूषणों के मोह-जाल से बचने की सीख देती है।

(v) सबसे महत्वपूर्ण सीख देते हुए वह कहती है कि लड़की होने पर भी लड़की जैसी कमज़ोर मत बनना। ये सीख देकर वह उसे जीवन में आने वाले संघर्षों का सामना करने योग्य बनाना चाहती है।

प्रश्न 9.‘कन्या' के साथ 'दान' के औचित्य पर अपने विचार लिखिए।

उत्तर:

'कन्या के साथ 'दान' शब्द लगाना मेरी दृष्टि से उचित नहीं है। दान तो वस्तुओं या श्रम का दिया जाता है। कन्या तो एक जीती-जागती घर की महत्त्वपूर्ण सदस्या होती है। उसका पृथक व स्वतंत्र व्यक्तित्व होता है। उसके जीवन का दान देना उचित नहीं है। वह स्वयं ही अपने जीवन की कर्ता-धर्ता होनी चाहिए। आज के जीवन में वह स्वयं में समर्थ है। अतः उसके जीवन के फैसले उसी पर निर्भर होने चाहिए।

प्रश्न 10,'कन्यादान' कविता में किसे दुख बाँचना नहीं आता था और क्यों ?

उत्तर:

'कन्यादान' कविता में दुल्हन के रूप में मायके से ससुराल के लिए विदा हो रही बेटी को दुख बाँचना नहीं आता था क्योंकि जीवन का उसे इतना अनुभव नहीं था। उसने विवाह को लेकर सुखद कल्पनाएँ तो कर ली थी, किंतु वह उन कठिन परिस्थितियों से अनभिज्ञ थी, जो उसे ससुराल में मिल सकती थीं। इस प्रकार विवाह के सुखमय जीवन की सुखद कल्पना से अभिभूत विदा होती वह बेटी ससुराल में मिलने वाली कठोर सच्चाइयों, अनेक ज़िम्मेदारियों एवं चुनौतियों से बिल्कुल अनजान थी।

प्रश्न 11,‘कन्यादान' कविता की माँ परंपरागत माँ से कैसे भिन्न है?

उत्तर:

'कन्यादान' कविता की माँ परंपरागत माँ से पूरी तरह भिन्न दिखाई देती है। परंपरागत माँ के हृदय में भी अपनी लाड़ली बेटी के लिए ममता समाहित थी, किंतु उस समय के परिवेश के अनुसार माँ बेटी को जीवन से समझौता करते हुए स्वयं को ससुराल के अनुसार ढाल लेने की सीख देती थी और त्याग का जो पाठ पढ़ाती थी, उसमें शोषण के विरुद्ध आवाज़ न उठाकर सहनशील बने रहने की नसीहत तथा कठोर सच्चाइयों व चुनौतियों के आगे समर्पण कर देने का संदेश निहित होता था, किंतु अब परिवेश बदल गया है और युग की मांग के अनुसार कविता की माँ बेटी को ससुराल में अपने व्यक्तित्व को न खोने से बचाने की सीख देती है और साथ ही उसे शोषण को न सहने, लुभावने शब्दों से सचेत रहने, पोशाकों-आभूषणों में ही मुग्ध न रहने तथा कभी जीवन से निराश न होने का संदेश भी देती है।

प्रश्न 12.माँ की सीख में समाज की कौन-सी कुरीतियों की ओर संकेत किया गया है?

उत्तर:

माँ की सीख में समाज की अनेक कुरीतियों की ओर संकेत किया गया है-

(१) समाज में बेटी को माँ द्वारा समझाया जाना कि 'आग रोटियाँ सेंकने के लिए है, जलने के लिए नहीं' सिद्ध करता है कि ससुराल की प्रताड़ना से त्रस्त होकर युवतियों को आत्महत्या करने के लिए विवश होना पड़ता है।

(ii) विवाह के उपरांत ससुराल पक्ष के लोग सरलता व विनम्रता को दुल्हन की कमज़ोरी मानते हुए उसका गलत फायदा उठाते हैं।

प्रश्न 13.‘कन्यादान' कविता में माँ ने लड़की को अपने चेहरे पर रीझने और वस्त्र तथा आभूषणों के प्रति लगाव को मना क्यों किया है?

उत्तर:

ऋतुराज जी द्वारा रचित कविता 'कन्यादान' में माँ अपनी पुत्री को अपने चेहरे पर रीझने व वस्त्र तथा आभूषणों के प्रति लगाव रखने से मना करती है क्योंकि वस्त्र व आभूषण स्त्री के लिए माया व मोह के बंधन है, जिनके लोभ में आकर वह अपना अस्तित्व भूल जाती है। अपने सौंदर्य पर रीझने को भी माँ मना करती है। लड़की यह भ्रम पाल लेती है कि उसका रूप व सौंदर्य सभी को अपने वश में कर सकता है, जबकि वास्तविकता इसके विपरीत भी हो सकती है। जीवन सौंदर्य व वस्त्र-आभूषणों से न चलकर समझदारी, विवेक, कर्म और दुनियादारी से चलता है।

प्रश्न 14.‘कन्यादान' कविता में लड़की की जो छवि प्रस्तुत की गई है। उसे अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर:

ऋतुराज जी द्वारा रचित कविता 'कन्यादान' में लड़की एक सरल हृदया व भोली-भाली है। उसे जिंदगी के यथार्थ का आभास नहीं है। वह अभी अनुभवहीन है। उसने अभी जिंदगी में केवल सुख-ही-सुख भोगे। हैं। दुखों से उसका सामना नहीं हुआ है। वह आने वाले सुखों की कल्पना में खोए रहती है। वह सोचती है कि उसे विवाहोपरांत पति का प्यार, वस्त्र, आभूषण और सभी सुखों की प्राप्ति होगी।

प्रश्न 15.लड़की के विदाई के क्षण माँ के लिए ही विशेषतः अधिक दुखद क्यों होते हैं? ‘कन्यादान' कविता के आलोक में उत्तर दीजिए।

उत्तर:

लड़की के विदाई के क्षण माँ के लिए ही विशेषतः अधिक दुखद होते हैं क्योंकि माँ एक नारी होने के नाते अपनी बेटी को ज्यादा अच्छी तरह समझती है। वह भी एक दिन विदा होकर आई थी। वह जानती है कि लड़की को पराए घर जाकर किस प्रकार अपनी इच्छाओं का त्याग करते हुए जीवन में कष्टों का सामना करना होता है। उसने अपनी बेटी को कोमलता और लाड़-प्यार से पाला होता है। विवाह के बाद उसे सबका ध्यान रखते हुए गृहस्थी की चक्की में पिसना होता है। अतः माँ अपने जीवन की सबसे बड़ी पूँजी को विदा करते समय अत्यंत दुखी होती है। बेटी ही उसके सुख-दुख का सहारा व सखी समान होती है। उसे दूसरे को सौंपते समय वह अपने को असहाय महसूस करती है।

प्रश्न 16.वस्त्र और आभूषण स्त्री-जीवन के बन्धन क्यों कहे गए हैं?

उत्तर:

‘कन्यादान' कविता में वस्त्र और आभूषणों को स्त्री के लिए बंधन इसलिए कहा है क्योंकि इनके मोह में बँधकर स्त्री अपने अस्तित्व को भूल जाती है। इनकी चमक-दमक को पाने के लिए अपने शोषण की भी सह लेती हैं। ये आभूषण बेड़ियाँ बनकर उसे परिवार के दायित्वों में कैद कर लेते हैं। अपने मोह-पाश में जकड़कर उसकी स्वतंत्रता उससे छीन लेते हैं। ये वस्त्र-आभूषणों के बंधन नारी को उसके परिवार और जिम्मेदारियों में इस कदर बाँध लेते हैं कि वह स्वयं के सुख त्यागकर अपने को स्वाहा कर देती है।

प्रश्न 17.‘कन्यादान' कविता में कवि ने लड़की के भोलेपन और सीधेपन को किन बातों के आधार पर प्रतिपादित किया।

उत्तर:

कविता 'कन्यादान' में कवि ऋतुराज ने लड़की के भोलेपन और सीधेपन को निम्नलिखित तथ्यों के आधार पर प्रतिपादित किया है-

(i) जब माँ अपनी पुत्री से कहती है कि अपने चेहरे पर मत रीझना अर्थात पुत्री अभी छोटी, नासमझ और सीधी है, उसके लिए विवाह का अर्थ सजने-धजने से है।

(ii) माँ का दुख है कि लड़की अभी सयानी नहीं हुई, अतः वह उसे सीख देते हुए यह भी कहती है कि वस्त्र और आभूषणों से भ्रमित मत होना।

(iii) कविता में उसका सीधापन इन पंक्तियों से भी स्पष्ट होता है कि वह अभी धुंघले प्रकाश की पाठिका थी। उसे अभी दुख बाँचना नहीं आता था।

प्रश्न 18.‘कन्यादान' कविता में माँ के दुख को कवि ने प्रामाणिक क्यों कहा है?

उत्तर:

कविता 'कन्यादान' में कवि ने माँ के दुख को प्रामाणिक इसलिए कहा है क्योंकि अभी उसकी बेटी बहुत समझदार और ज़िम्मेदारियाँ सँभालने के काबिल भी नहीं हुई है और उसे उसका कन्यादान करना पड़ रहा है। माँ का दुख स्वाभाविक है क्योंकि उसकी बेटी को पराए घर जाकर जीवन के यथार्थ का सामना करना पड़ेगा इसलिए वह उसे अनेक प्रकार की सीख देती है, ताकि वह जीवन में आने वाली परिस्थितियों का डटकर सामना कर सके। अपनी पुत्री को अपने से दूर करना, जिसे लाड़-प्यार से पाला गया हो उसे जीवन की कड़वी सच्चाइयों का सामना करने के लिए विदा करना माँ का प्रामाणिक दुख है।

प्रश्न 19.‘कन्यादान' कविता के आधार पर कन्या की कोई दो विशेषताएँ बताइए।

उत्तर:

'कन्यादान' कविता के आधार पर कन्या की दो विशेषताएँ इस प्रकार हैं-

(i) वह अत्यंत सरल एवं भोली थी। वह अभी इतनी परिपक्व नहीं हुई थी कि दूसरों के मनोभावों को समझ सके।

(ii) वह बाह्य जीवन से अनभिज्ञ थी। बाहरी जीवन के छल-प्रपंचो को पहचानना उसे नहीं आता और न ही उसे दुनियादारी का ज्ञान था। 

वस्त्र और आभूषणों को स्त्री जीवन के लिए बंधन क्यों बताया है?

Solution : कन्यादान कविता में वस्त्र और आभूषणों को स्त्री जीवन के बंधन इसलिए कहा गया है क्योंकि स्त्रियाँ सुंदर वस्त्र व सुंदर आभूषणों के चमक व लालच में भ्रमित होकर आसानी से अपनी आजादी खो देती हैं और मानसिक रूप से हर बंधन स्वीकारते हुए जुल्मों का शिकार होती हैं।

कवि ने वस्त्र और आभूषणों को शाब्दिक भ्रम क्यों कहा है?

ससुराल में अच्छे वस्त्राभूषणों के मोह में स्त्री प्राय: दासतामय बन्धन में पड़ जाती है। इसलिए वस्त्राभूषणों को शाब्दिक भ्रम कहा गया है।

कवि का स्त्री जीवन के बंधन से क्या अभिप्राय है?

कवि के अनुसार पुरूष लोग स्त्रियों को कीमती वस्त्र और मूल्यवान आभूषण देकर भ्रमित कर देते हैं और उन्हें अपने बंधन में बांध लेते हैं। इस तरह वस्त्र-आभूषणों के मोह में पड़कर स्त्रियां अनेक तरह के बंधनों को स्वीकार कर लेती हैं। इससे उनका स्वयं का स्वतंत्र व्यक्तित्व और आत्मविश्वास संकट में पड़ जाता है।

माँ ने वस्त्रों और आभूषणों के बारे में क्या और क्यों कहा?

Explanation: माँ कहती है कि वस्त्र-आभूषण के मोह में कभी ना पड़ना, यह केवल एक बंधन है, जिसमें कभी भी नहीं बंधना चाहिए। इसके चक्कर में बसा-बसाया संसार भी उजड़ सकता है।