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Show Notify us by email if we have published any copyrighted material or incorrect informations. कवि ने प्रातःकालीन आसमान की तुलना किससे की है? कवि ने प्रात:कालीन आसमान की तुलना नीले शंख से की है। वह शंख के समान पवित्र और उज्ज्वल है। 1049 Views सूर्योदय का वर्णन लगभग सभी बड़े कवियों ने किया है। प्रसाद की कविता ‘बीती विभावरी जाग री’ और अज्ञेय की ‘बावरा अहेरी’ की पंक्तियाँ आगे बॉक्स में दी जा रही हैं। ‘उषा’ कविता के समानांतर इन कविताओं को पढ़ते हुए नीचे दिए गए बिंदुओं पर तीनों कविताओं का विश्लेषण कीजिए और यह भी बताइए कि कौन-सी कविता आपको ज्यादा अच्छी लगी और क्यों? ● उपमान ● शब्दचयन ● परिवेश बीती विभावरी जाग री! अंबर पनघट में डुबो रही- तारा-घट ऊषा नागरी। खग-कुल कुल-कुल-सा बोल रहा, किसलय का अंचल डोल रहा, लो यह लतिका भी भर लाई- मधु मुकुल नवल रस गागरी। अधरों में राग अमंद पिए, अलकों में मलयज बंद किए- तू अब तक सोई है आली अस्त्रों में भरे विहाग री। - जयशंकर प्रसाद भोर का बावरा अहेरी पहले बिछाता है आलोक की लाल-लाल कनियाँ पर जब खींचता है जाल को बाँध लेता है सभी को साथ: छोटी-छोटी चिड़ियाँ, मँझोले परेवे, बड़े-बड़े पंखी डैनों वाले डील वाले डौल के बेडौल उड़ने जहाज, कलस-तिसूल वाले मंदिर-शिखर से ले तारघर की कटी मोटी चिपटी गोल धुस्सों वाली उपयोग-सुंदरी बेपनाह काया को: गोधूली की धूल को, मोटरों के धुएँ को भी पार्क के किनारे पुष्पिताग्र कर्णिकार की आलोक-खची तन्वि रेखा को और दूर कचरा जलाने वाली कल की उद्दंड चिमनियों को जो धुआँ यों उगलती हैं मानो उसी मात्र से अहेरी को हरा देंगी। -सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ उत्तर: इन तीनों कविताओं में हमें जयशंकर प्रसाद की कविता ‘बीती विभावरी जाग री’ सबसे ज्यादा अच्छी लगी। इसके कारण ये हैं- मानवीकरण ‘उषा’ कविता में भी है और ‘बीती विभावरी’ में भी है। यह ‘बावरा अहेरी’ में भी है। पर ‘बीती विभावरी’ कविता में प्रकृति का मानवीकरण अधिक प्रभावी बन पड़ा है। इस पूरी कविता में मानवीकरण है। शब्द-चयन की दृष्टि से भी ‘बीती विभावरी’ कविता श्रेष्ठ है। इस कविता के शब्द बोलते जान पड़ते हैं- खग-कुल कुल-कुल-सा बोल रहा अधरों में राग अमंद पिए। आँखों में भरे विहाग री। इस कविता में तत्सम शब्दावली का प्रयोग देखते ही बलता है। 1845 Views अपने परिवेश के उपमानों का प्रयोग करते हुए सूर्योदय और सूर्यास्त का शब्दचित्र खींचिए। सूर्योदय लो पूर्व दिशा में उग आया सूरज लाल-लाल गोले के समान चारों ओर लालिमा फैलती चली गई और सभी प्राणी जड़ से चेतन बन गए। सूर्यास्त सूरज हुक्के की चिलम जैसा लगता है, इसे किसान खींच रहा है पशुओं के झुंड चले आ रहे हैं और पक्षियों की वापिसी की उड़ान तेज हो चली है धीरे-धीरे सब कुछ अदृश्य हो चला है और सूरज पहाड़ की ओट दुबक गया। 314 Views भोर का नभ राख से लीपा हुआ चौका (अभी गीला पड़ा है) नई कविता में कोष्ठक, विराम-चिन्हऔर पंक्तियों के बीच का स्थान भी कविता को अर्थ देता है। उपर्युक्त पंक्तियों में कोष्ठक से कविता में क्या विशेष अर्थ पैदा हुआ है? समझाइए। कोष्ठक में दिया गया है-’अभी गीला पड़ा है’ कवि भोर के नभ में राख से लीपे हुए चौके की संभावना व्यक्त करता है। आसमान राख के रंग जैसा है। यह चौका प्रात:कालीन ओस के कारण गीला पड़ा हुआ है। अभी वातावरण में नमी बनी हुई है। इसमें पवित्रता की झलक प्रतीत होती है। कोष्ठक में लिखने से चौका का स्पष्टीकरण हुआ है। 651 Views शमशेर बहादुर सिंह के जीवन एवं साहित्य का परिचय देते हुए उनकी रचनाओं के नाम लिखिए। शमशेर बहादुर सिंह का जन्म 1911 ई. में देहरादून (अब उत्तरांचल) में हुआ। उनकी प्रारंभिक शिक्षा देहरादून मे ही हुई। उन्होंने सन् 1933 में बी. ए. और सन् 1938 में एम. ए. इलाहाबाद विश्वविद्यालय से किया। सन् 1935-36 में उन्होंने प्रसिद्ध चित्रकार उकील बंधुओं से चित्रकला का प्रशिक्षण लिया। सन् 1939 में ‘रूपाभ’ पत्रिका में सहायक के रूप में काम किया। फिर कहानी, नया साहित्य, कम्यून, माया, नया पथ, मनोहर कलियाँ आदि कई पत्रिकाओं में संपादन-सहयोग दिया। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की महत्वपूर्ण योजना के अंतर्गत उन्होंने सन् 1965-77 में ‘उर्दू-हिंदी कोश’ का संपादन किया। सन् 1981-1985 तक विक्रम विश्वविद्यालय (मध्य प्रदेश) के प्रेमचंद सृजनपीठ के अध्यक्ष रहे। सन् 1978 में उन्होंने सोवियत संघ की यात्रा की। 1993 ई. में आपका स्वर्गवास हो गया। साहित्यिक विशेषताएँ: शमशेर बहादुर सिंह प्रेम और सौंदर्य के कवि हैं। उनकी कविताओं में जीवन के राग-विराग के साथ--साथ समकालीन सामाजिक-राजनीतिक समस्याओं का कलात्मक चित्रण हुआ है। भाषा-प्रयोग में चमत्कार उत्पन्न करने वाले वे अत्यंत सजग कवि हैं। काव्य-वस्तु के चयन और शिल्प-गठन में उनकी सूझ-बूझ और कौशल का उत्कर्ष दिखता है। शमशेर की कविताओं के शब्द रंग भी हैं और रेखाएँ भी। उनके स्वर में दर्द है, ताकत है, प्रेम की पीड़ा है, जीवन की विडंबना है और जगत की विषमता भी है-ये सारी स्थितियाँ पाठकों को नई दिशा में सोचने के लिए प्रेरित करती हैं। उनकी कविताओं का विभिन्न भाषाओं में अनुवाद हुआ है। उन्हें साहित्य अकादमी सम्मान, कबीर सम्मान, मैथिलीशरण गुप्त सम्मान सहित अनेक साहित्यिक सम्मानों से विभूषित किया गया। खुद को उर्दू और हिंदी का दोआब मानने वाले शमशेर की कविता एक संधिस्थल पर खड़ी है। यह संधि एक ओर साहित्य चित्रकला और संगीत की है तो दूसरी ओर मूर्तता और अमूर्तता की तथा ऐंद्रिय और ऐंद्रियेतर की है। कथा और शिल्प दोनों ही स्तरों पर उनकी कविता का मिजाज अलग है। उर्दू शायरी के प्रभाव से उन्होंने संज्ञा और विशेषण से अधिक बल सर्वनामों, क्रियाओं, अव्ययों और मुहावरों को दिया है। उन्होंने खुद भी कुछ अच्छे शेर कहे हैं। सचेत इंद्रियों का यह कवि जब प्रेम पीड़ा, संघर्ष और सृजन को गूँथकर कविता का महल बनाता है तो वह ठोस तो होता ही है अनुगूँजों से भी भरा होता है। वह पाठक को न केवल पड़े जाने के लिए आमंत्रित करती है, बल्कि सुनने और देखने को भी। रचनाएँ: शमशेर की काव्य कृतियों में प्रमुख हैं-कुछ कविताएँ, कुछ और कविताएँ, चुका भी हूँ नहीं मैं, इतने पास अपने, उदिता, बात बोलेगी, काल तुझसे होड़ है मेरी। 3360 Views कविता के किन उपमानों को देखकर यह कहा जा सकता है कि उषा, कविता गाँव की सुबह का गतिशील शब्दचित्र है? कविता के निम्नलिखित उपमानों को देखकर यह कहा जा सकता है कि ‘उषा’ कविता गाँव की सुबह का गतिशील शब्द-चित्र है- राख से लीपा हुआ चौका। बहुत काली सिल। स्लेट पर या लाल खड़िया चाक मलना। किसी की गौर झिलमिल देह का हिलना। 628 Views कवि ने प्रात कालीन वातावरण की समानता नीले शंख से क्यों की है?(क) प्रात:कालीन आकाश की तुलना नीले शंख से की गई है, क्योंकि वह शंख के समान पवित्र माना गया है। (ख) कवि ने भोर के नभ को राख से लीपा हुआ चौका इसलिए कहा है, क्योंकि भोर का नभ सफेद व नीले रंग से मिश्रित दिखाई देता है। (ग) इसका अर्थ यह है कि प्रात:काल में ओस की नमी होती है।
प्रातःकालीन नम के लिए कवि ने कितने उपमानों का प्रयोग किया है?होकर कैसा लगता है ।
कवि ने प्रात काल को नया क्यों कहा है?कवि ने प्रात:काल में पक्षियों के चहकने (UPBoardSolutions.com) और शीतल वायु के चलने और नवजीवन के प्रभात का वर्णन किया है।
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