रामधारी सिंह 'दिनकर' की कविताएँ बचपन से मन को उद्वेलित करती रही हैं। पर स्कूल की पुस्तकों में उनके लिखे महाकाव्य कुरुक्षेत्र व रश्मिरथी के कुछ बेहद लोकप्रिय अंश ही रहा करते थे । स्कूल के दिनों में उनकी दो लोकप्रिय कविताएँ शक्ति और क्षमा व हिमालय हमने नवीं और दसवीं में पढ़ी थीं जो कुरुक्षेत्र का ही हिस्सा थीं। कुरुक्षेत्र तो महाभारत के शांति पर्व पर आधारित थी वहीं रश्मिरथी दानवीर कर्ण पर ! रश्मिरथी का शाब्दिक अर्थ वैसे व्यक्ति से है जिसका जीवन रथ किरणों का बना हो। किरणें तो ख़ुद ही सुनहरी व उज्ज्वल होती हैं। कर्ण के लिए ऐसे उपाधि का चयन दिनकर ने संभवतः उनके सूर्यपुत्र और पुण्यात्मा होने की वज़ह से किया हो। Show रश्मिरथी के अंशों को मैंने शुरुआत में टुकड़ों में पढ़ा इस बात से अनजान कि ये पुस्तक बचपन से ही घर में मौज़ूद रही। रश्मिरथी यूँ तो 1952 में प्रकाशित हुई पर 1980 में जब करीब सवा सौ पन्नों की ये पुस्तक मेरे घर आई तो जानते हैं इसका मूल्य कितना था? मात्र ढाई रुपये! जब किताब हाथ में आई तो समझ आया कि ये काव्य तो एक ऐसी रोचक कथा की तरह चलता है जिसे एक बार पढ़ना शुरु किया तो फिर बीच में इसे छोड़ना संभव नहीं। दिनकर, महाभारत के पात्र कर्ण की ये गाथा सात सर्गों यानि खंडों में कहते हैं। दिनकर की भाषा इतनी ओजमयी है कि शायद ही कोई उनके इस काव्य को बिना बोले हुए पढ़ सके। आज जन्माष्टमी के अवसर पर मैं आपको इस महाकाव्य के तीसरे सर्ग का वो हिस्सा सुनाने जा रहा हूँ जिसमें बारह वर्ष के वनवास और एक साल के अज्ञातवास को काटने के बाद पांडवों ने कौरवों से सुलह के लिए भगवान कृष्ण को हस्तिनापुर भेजा जो कौरवों की राजधानी हुआ करती थी। इस अंश को कई जगह कृष्ण की चेतावनी के रूप में किताबों में प्रस्तुत किया गया। वर्षों तक वन में घूम-घूम, बाधा-विघ्नों को चूम-चूम, हरि ने भीषण हुंकार किया, अपना स्वरूप-विस्तार किया, यह देख, गगन मुझमें लय
है, यह देख, पवन मुझमें लय है, भूलोक अटल पाताल देख, गत और अनागत काल देख टकरायेंगे नक्षत्र-निकर, बरसेगी भू पर वह्नि
प्रखर, थी सभा सन्न, सब लोग डरे, चुप थे या थे बेहोश पड़े। विदुर तो पहले से ही कृष्ण भक्त थे इसलिए उन्हें प्रभु के विकराल रूप के दर्शन हुए। पर ऐसी कथा है कि विदुर ने जब धृतराष्ट्र से कहा कि आश्चर्य है कि भगवान अपने विराट रूप में विराज रहे हैं। इसपर धृतराष्ट्र ने अपने अंधे होने का पश्चाताप किया। पश्चाताप करते ही भगवन के इस विराट रूप देखने तक के लिए उनको दृष्टि मिल गयी। मुझे तो इस कविता को पढ़ना और अपनी आवाज़ में रिकॉर्ड करना आनंदित कर गया। रश्मिरथी का ये अंश और पूरी किताब आपको कैसी लगती है ये जरूर बताएँ। तीसरे सर्ग के इस अंश का कुछ हिस्सा अनुराग कश्यप ने अपनी फिल्म गुलाल में भी इस्तेमाल किया था। उन अंशों को अपनी आवाज़ से सँवारा था पीयूष मिश्रा ने। यहाँ कृष्ण को असाध्य क्यों कहा गया है?रक्खो अपनी धरती तमाम। परिजन पर असि न उठायेंगे! जो था असाध्य, साधने चला। पहले विवेक मर जाता है।
कृष्ण की चेतावनी पाठ में ऐसा क्यों कहा गया है कि वायस और श्रगाल सुख लूटेंगे?वायस-श्रृगाल सुख लूटेंगे, सौभाग्य मनुज के फूटेंगे। हिंसा का पर, दायी होगा। थी सभा सन्न, सब लोग डरे, चुप थे या थे बेहोश पड़े। केवल दो नर न अघाते थे, धृतराष्ट्र-विदुर सुख पाते थे।
कृष्ण की चेतावनी कविता के कवि कौन हैं?यह प्रसंग राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर के काव्य-संग्रह 'कृष्ण की चेतावनी' से लिया गया है।
कृष्ण कहाँ और किसे चेतावनी दे रहे हैं?पांडव का संदेशा लाये। तो दे दो केवल पाँच ग्राम, रक्खो अपनी धरती तमाम। परिजन पर असि न उठायेंगे!
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