कर्क लग्न में केतु का फल - kark lagn mein ketu ka phal

आकाश में 90 डिग्री से 120 डिग्री तक के भाग को कर्क राशि (Kark lagna) के नाम से जाना जाता है. जातक का जन्म यदि आकाश के इस समय के अनुसार होता है तो उसकी राशि कर्क होती है और वह कर्क लग्न में पैदा होता है. कर्क राशि (Kark rashi) जल तत्व वाली राशि है तथा इसका स्वामी चंद्र है. इस राशि के लोग कल्पनाशील, वफादार तथा भावनात्मक होते हैं.

कर्क लग्न में चंद्र (Kark lagnaq me chandra)

कर्क लग्न में चंद्र प्रथम भाव का अधिपति होता है. प्रथम भाव का स्वामी होने की वजह से ये जातक के रूप, चिन्ह, जाति, शरीर, आयु, सुख-दुख, विवेक, मस्तिष्क, व्यक्ति के स्वभाव, उसके शारीरिक आकार आदि का प्रतिनिधित्व करता है. कर्क लग्न के जातक को यदि इन चीजों में समस्या है तो उसे कुंडली में चंद्रमा की स्थिति का अध्ययन करना चाहिए.

कर्क लग्न में सूर्य (Kark lagna me surya)

कर्क लग्न में सूर्य दूसरे स्थान का अधिपति होता है. ये जातक के आंख, नाक, कान, गला, आभूषण, सौन्दर्य, गायन, संभाषण, कुटुंब का प्रतिनिधित्व करता है. अपने जीवन में यश पाने के लिए आपकी राशि में सूर्य बलशाली स्थान पर होना जरूरी है. अगर ये कमजोर हुआ तो आपको अशुभ फल देगा.

कर्क लग्न में मंगल (Kark lagna me mangal)

कर्क लग्न में मंगल पांचवे और दसवे स्थान का अधिपति होता है. पांचवे स्थान पर होने के कारण यह बुद्धि, आत्मा, स्मरण शक्ति, विद्या ग्रहण करने की शक्ति, नीति, आत्मविश्वास, प्रबंध व्यवस्था, देव भक्ति, देश भक्ति, धन मिलने के उपाय, अचानक धन मिलने की संभावना, स्वाभिमान तथा अंहकार का प्रतिनिधित्व करता है. तथा दसवे भाग का स्वामी होने के कारण यह राज्य, मान, प्रतिष्ठा, कर्म, पिता, प्रभुता, व्यापार, ऐश्वर्य भोग, कीर्तिलाभ, विदेश यात्रा तथा पैतृक संपत्ति का फल देने का जिम्मेदार होता है.

कर्क लग्न में शुक्र (Kark lagna me shukra)

कर्क लग्न में शुक्र चौथे तथा ग्यारहवे भाव का अधिपति होता है. चैथे भाव का अधिपति होने के कारण यह माता, भूमि, भवन, वाहन, मित्र, साझेदार, शांति, जल, जनता, स्थायी, संपत्ति, दया, परोपकार, छल, कपट, अंतकरण की स्थिति जलीय पदार्थों का सेवन, संचित धन, झूठा आरोप, अफवाह, प्रेम विवाह, प्रेम संबंध जैसे विषयों का प्रतिनिधित्व करता है. वहीं ग्यारहवे स्थान का अधिपति होने के कारण यह लोभ, लाभ, रिश्वतखोरी, गुलामी, संतान हीनता, कन्या संतति, रिश्तेदार, बेईमानी जैसी चीजों के लिए जिम्मेदार होता है.

कर्क लग्न में बुध (Kark lagna me budh)

कर्क लग्न में बुध बारहवे भाव का स्वामी होता है. बारहवे स्थान का अधिपति होने के कारण यह निद्रा, यात्रा, हानि, दान, व्यय, दंड, मूर्छा, मोक्ष, विदेश यात्रा, भोग ऐश्वर्य, लंपटगिरी, परस्त्री गमन, व्यर्थ भ्रमण का प्रतिनिधित्व करती है. जन्म कुंडली में इसके बलशाली स्थान पर होने से आपको इन सभी में शुभ फल मिलते हैं.

कर्क लग्न में गुरू (Kark lagna me guru)

कर्क लग्न में गुरू यानि बृहस्पति छठे भाव का स्वामी होता है. छठे स्थान का अधिपति होने के कारण बृहस्पति बीमारी, कर्ज, अपमान, शत्रु, चिंता, शंका, पीड़ा, ननिहाल, असत्य भाषण, योगाभ्यास, जमींदारी, साहूकारी का प्रतिनिधित्व करता है. आपके जीवन मंे इन सभी से बचने के लिए आपकी कुंडली में गुरू के बलशाली स्थान पर होना जरूरी है. अन्यथा ये आपको बहुत बुरे परिणाम देगा.

कर्क लग्न में शनि (Kark lagna me shani)

कर्क लग्न में शनि सप्तम और अष्टम भाव का अधिपति होता है. ये लक्ष्मी, स्त्री, कामवासना, चोरी, झगड़ा, अशांति, उपद्रव, अग्निकांड जैसे विषयों के लिए जिम्मेदार होता है. इसके आठवे स्थान के अधिपति होने के कारण ये व्याधि, जीवन, आयु, मृत्यु का कारण, मानसिक चिंता, समुद्र यात्रा, नास्तिक विचारधारा, ससुराल, दुर्भाग्य, दरिद्रता, आलस्य, जेल यात्रा, अस्पताल तथा आॅपरेशन, भूत, प्रेत, जादू आदि के लिए जिम्मेदार होता है.

कर्क लग्न में राहु (Kark lagna me raahu)

कर्क लग्न में राहु तीसरे स्थान का अधिपति होता है. तीसरे स्थान का अधिपति होने के कारण ये नौकर-चाकर, सहोदर, अभक्ष्य पदार्थों का सेवन, क्रोध, भ्रम लेखन, कंप्यूटर, अकाउंट्स, मोबाइल, पुरूषार्थ, साहस, शौर्य, खांसी, योगाभ्यास, दासता, आदि विषयों का प्रतिनिधित्व करता है. जन्म कुंडली में राहु के बलवान होने से ही आपको इन सभी चीजों में अच्छे फल देखने को मिलेंगे.

कर्क लग्न में केतु (Kark lagna me ketu)

कर्क लग्न में केतु नवे स्थान का अधिपति होता है. नौवे स्थान का अधिपति होने के कारण यह धर्म, पुण्य, भाग्य, गुरू, ब्राह्मण, देवता, तीर्थ यात्रा, भक्ति, भाग्योदय, प्रवास, पिता का सुख, दान आदि विषयों के लिए जिम्मेदार होता है. जन्मकुंडली में केतु के अलवान होने से उपरोक्त विषय में उसे अच्छे फल मिलते हैं.

आज मैं आपको विस्तार पूर्वक बताऊंगा कर्क लग्न में केतु का फलादेश। कर्क राशी है जल तत्व और केतु है छाया ग्रह इन दोनों का योग का प्रभाव कैसा रहेगा आज हम सभी यह जानने का प्रयास करेंगे। यदि आप अपनी जन्म कुंडली का स्वयं अवलोकन करना चाहते हैं या ज्योतिषी बन कर धन अर्जन करना चाहते हैं तो यह जानकारी आपके लिये अत्यंत लाभकारी है अतः इस पेज को पूरा पढ़ें और अपने मित्रों को शेयर भी करें।

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प्रथम भाव :

जातक- प्रसिद्धि के लिए बुद्धि-बल का प्रयोग, गुप्त युक्तियों का आश्रय, शरीर पर चोट का निशान

स्वास्थ्य- मानसिक शक्ति दुर्बल, शारीरिक सौन्दर्य एवं स्वास्थ्य में कमी, चेचक-रोग की संभावना, मृत्यु तुल्य कष्ट

द्वितीय भाव:

जातक- धन कोष में हानि के कारण मुसीबतों का सामना।

परिवार – दुख और क्लेश

व्यवसाय- अत्याधिक परिश्रम द्वारा, कर्जा लेने पर ही अल्प मात्र सफलता और लाभ।

तृतीय भाव: 

जातक – शालीनता की कमी, उद्दण्ड प्रकृति एवं उग्र स्वभाव

परिवार- कुछ कठिनाइयो के बाद भाई बहिन का सुख प्राप्त।

व्यवसाय – विवेक परिश्रम के द्वारा सफलता।

चतुर्थ भाव :

जातक- जन्म स्थान का वियोग, बार-बार स्थान परिवर्तन करना ।

परिवार- घरेलू-सुखों की प्राप्ति के लिए विशेष परिश्रम, माता के सुख में कमी तथा पेरशानी।

व्यवसाय –  संकटों का सामना, अन्त में सामान्य सफलता एवं सुख की प्राप्ति।

पंचम भाव :

जातक- चतुर, चालाक, बातूनी, गुप्त युक्तियों वाला, अपनी अयोग्यता को छिपाकर दूसरों पर प्रभाव डालने में सफल, शीलवान् तथा संतोषी ।

सन्तान- कष्ट प्राप्त, विद्या बुद्धि में कठिनाईया।

पष्ठ भाव :

जातक- कठिन से कठिन समय में भी धैर्य एवं साहस का परिचय, शत्रु-पक्ष पर सफलता एवं विजय

व्यवसाय – गुप्त युक्तियों एवं कठोर परिश्रम के बल पर उन्नति के लिए प्रयत्न शीत।

स्वास्थ्य – स्वस्थ शरीर निरोग।

सप्तम भाव :

जातक- स्वभाव से जिद्दी, हठी, योगी, कठिन परिश्रमी, धैर्य से काम लेकर कठिनाईयों पर विजय

स्त्री- हानि, कष्ट का सामना ।

व्यवसाय – कठिनाईयों का सामना।

स्वास्थ्य – मूत्रेन्द्रिय में विकार।

अष्टम भाव :

जातक- पुरातत्त्व का हानि, आयु के पक्ष में अनेक बार मृत्यु तुल्य कष्टों का सामना, धन-संकट व्याप्त।

व्यवसाय- गुप्त रूप से प्रयत्न करने पर सफलता।

स्वास्थ्य- पेट विकार का रोगी, पेरशानियों से ग्रस्त ।

नवम भाव :

जातक – ईश्वर शक्ति में अल्प विश्वास, मन्द भाग्य, पेरशानियों से उलझे चिन्ता ग्रस्त |

व्यवसाय- उन्नति के लिए कठिन परिश्रम, सकटो एवं असफलताओं का शिकार, संघर्षो का मुकाबला करते हुए उन्नति ।

दशम भाव : 

जातक-राज्य के क्षेत्र में बनाई गुप्त की प्राप्ति।

परिवार – पिता के क्षेत्र में काम एवं हानि।

व्यवसाय – एवं उन्नति के लिए घोर परिश्रम

एकादश भाव:

जातक – परिश्रमी तथा पुरुषार्थ स्वार्थी हिम्मती

व्यवसाय– लाभ-प्राप्ति के लिए कठोर परिश्रम, अनुराई एवं परिश्रम के द्वारा आप में वृद्धि, आमदनी के क्षेत्र में परेशानियों व संकटों का सामना।

कर्क लग्न का भाग्योदय कब होता है?

कर्क लग्न का भाग्योदय कब होता है? भाग्योदय 16 वर्ष की आयु, 22 वर्ष की आयु, 28 वर्ष की आयु, 32 वर्ष की आयु, और 36 वर्ष की आयु में कर्क राशि के भाग्योदय होता है।

कर्क लग्न में जन्मे लोग कैसे होते हैं?

अतः कर्क लग्न के जातक अत्यधिक भावुक परन्तु न्यायप्रिय होते हैं. इस लग्न में जन्मे व्यक्ति गौर वर्ण तथा कोमल शारीरिक गठन के होते हैं. दूसरों के प्रति दया व प्रेम की भावना तथा जीवन में निरंतर आगे बढ़ने की तीव्र लालसा इनकी निजी विशेषता है. कर्क लग्न में जन्मे जातकों की मानसिक शक्ति गजब की होती है.

लग्न में केतु हो तो क्या फल देता है?

प्रथम भाव में अर्थात लग्न में केतु हो तो जातक चंचल, भीरू, दुराचारी होता है। इसके साथ ही यदि वृश्चिक राशि में हो तो सुखकारक, धनी एवं परिश्रमी होता है। द्वितीय भाव में हो तो जातक राजभीरू एवं विरोधी होता है। तृतीय भाव में केतु हो तो जातक चंचल, वात रोगी, व्यर्थवादी होता है।

कर्क लग्न का स्वामी कौन है?

कर्क लग्न का स्वामी चंद्रमा है, चंद्रमा के पास केवल एक ही राशि कर्क का अधिपत्य प्राप्त होता है. इसलिए इस लग्न वालों का लग्नेश चंद्रमा है. गुरू कर्क लग्न में उच्च के माने गए हैं. और यहीं पर मंगल के साथ नीच के हो जाते हैं.