कैप्टन कौन था वह मूर्ति के चश्मे को बार-बार क्यों बदल देता था - kaiptan kaun tha vah moorti ke chashme ko baar-baar kyon badal deta tha

कैप्टन चश्मे वाला सिर पर क्या पहनता था?

इसे सुनेंरोकेंसिर पर गांधी टोपी थी। उसने आँखों पर काला चश्मा लगा रखा था।

हालदार साहब के मन में कौतुक और प्रफुल्लता के भाव क्यों उठते थे?

इसे सुनेंरोकेंAnswer: हालदार साहब के लिए ये कौतुहल दुर्दमनीय हो उठा :- हालदार साहब जब भी नेताजी की मूर्ती को देखते उस पर अलग चश्मा लगा होता। एक बार हालदार साहब ने पानवाले से पूछ लिया, की नेताजी का चश्मा हर बार बदल कैसे जाता है। उम्मीद ह इससे आपको सहायता मिलेगी।

पहली बार कस्बे से गुजरने पर हवलदार मूर्ति पर क्या देखकर चौके?

इसे सुनेंरोकेंपहली बार कस्बे से गुजरते समय हालदार ने ऐसा क्या देखा कि उनके चेहरे पर कौतुक भरी मुस्कान फैल गई? क)मूर्ती पर चश्मा नहीं था ख)पानवाले की तोंद देख कर ग)मूर्ती पर असली चश्मा लगा था

कैप्टन चश्मा वाला कौन था?

इसे सुनेंरोकेंAnswer. ✒ कैप्टन देशभक्त तथा शहीदों के प्रति आदरभाव रखने वाला व्यक्ति था। वह नेताजी की चश्माविहीन मूर्ति देखकर दुखी होता था। वह मूर्ति पर चश्मा लगा देता था पर किसी ग्राहक द्वारा वैसा ही चश्मा माँगे जाने पर उतारकर उसे दे देता था और मूर्ति पर दूसरा चश्मा लगा दिया करता था।

कैप्टन चश्मेवाला कौन सी टोपी पहनता था?

इसे सुनेंरोकेंपानवाला काला, मोटा और खुशकमज़ाज़ था, उसकी तोंद कथरकती थी, पान खाने से उसके दााँत लाल- काले हो गए थे। वह कैप्टन की हाँसी उड़ाता था तो उसकी मृत्यु पर दुखी भी हुआ। कैप्टन चश्मेवाला बूढा-मररर्ल सा लाँगड़ा आदमी था। कसर पर गांिी टोपी लगाता था और चश्मा पहनता था।

मूर्ति को देखकर हालदार साहब के मन में कैसे भाव उठते थे?

इसे सुनेंरोकेंAnswer. हालदार साहब के मन में अवश्य ही देशभक्तों के प्रति सम्मान की भावना थी जो सुभाष की मूर्ति को देखकर प्रबल हो उठती थी। देश के लिए सुभाष के किए कार्यों को यादकर उनके प्रति श्रद्धा उमड़ पड़ती थी। इस कारण हालदार साहब चौराहे पर रुककर नेताजी की मूर्ति को निहारते रहते थे।

हालदार साहब का कौतुक कब और बढ़ा?

इसे सुनेंरोकेंहालदार साहब जब पहली बार इस कस्बे से गुजरे और चैराहे पर पान खाने रुके तभी उन्होंने इसे लक्षित किया और उनके चेहरे पर एक कौतुकभरी मुसकान फैल गई। वाह भई! यह आइडिया भी ठीक है।

हालदार साहब को किसका मजाक उड़ाना अच्छा नहीं लगा?

इसे सुनेंरोकेंAnswer: नेताजी का चश्मा पाठ में हालदार साहब को कैप्टन चश्मे वाले का मजाक उड़ाना अच्छा नहीं लगा।

नेताजी का चश्मा हर बार कैसे बदल जाता था?


हालदार साहब जब भी कस्बे में से गुजरते थे तो वे चौराहे पर रुक कर नेता जी की मूर्ति को देखते रहते थे। उन्हें हर बार नेता जी का चश्मा अलग दिखता था। पूछने पर पान वाले ने हालदार साहब को बताया कि मूर्ति का चश्मा कैप्टन बदलता है। कैप्टन को बिना चश्मे वाली नेताजी की मूर्ति आहत करती थी इसलिए उसने उस मूर्ति पर चश्मा लगा दिया। अब यदि कोई ग्राहक उससे नेता जी की मूर्ति पर लगे चश्मे जैसा चश्मा मांगता तो वह मूर्ति पर से चश्मा उतार कर ग्राहक को दे देता था। उसके बदले में मूर्ति पर नया चश्मा लगा देता था। इस प्रकार नेता जी का चश्मा हालदार साहब को हर बार बदला हुआ मिलता था।

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सीमा पर तैनात फ़ौजी ही देश-प्रेम का परिचय नहीं देते। हम सभी अपने दैनिक कार्यों में किसी न किसी रूप में देश प्रेम प्रकट करते हैं; जैसे-सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान न पहुँचाना, पर्यावरण संरक्षण आदि। अपने जीवन-जगत से जुड़े ऐसे कार्यों का उल्लेख करें और उन पर अमल भी कीजिये।


हम अपने जीवन-जगत से जुड़े ऐसे कई कार्यों को उचित ढंग से कर सकते हैं जिससे देश प्रेम का परिचय मिलता है। पानी हमारे प्राणी जीवन के लिए अनमोल धैरोहर है। पानी का उचित प्रयोग करना चाहिए। बिना मतलब के पानी का प्रयोग नहीं करना चाहिए। पानी की टंकी को खुला न छोड़े। पानी के प्रयोग के बाद तुरंत पानी की टंकी बंद कर देनी चाहिए।
बिजली का उचित प्रयोग करना चाहिए। फालतू बिजली का प्रयोग हमारे जीवन को अंधकारमय बना सकता है। इसलिए बिजली का जितना प्रयोग संभव हो उतना ही प्रयोग करना चाहिए। घरों में बिजली के पंखें, ट्‌यूबें खुली नहीं छोड़नी चाहिए। जब इनकी जरूरत न हो तो बंद कर देनी चाहिए।
पेट्रोल का उचित प्रयोग करने के लिए जहां तक संभव हो निजी यातायात के साधनों का प्रयोग कम करना चाहिए। सार्वजनिक यातायात के साधनों का उचित प्रयोग करना चाहिए। इससे मनुष्य के धन की भी बचत होती है तथा पर्यावरण प्रदूषित कम होता है।
ऐसे हमारे जीवन-जगत से जुड़े कई कार्य हैं जिनको अमल में लाकर हम अपने देश प्रेम का परिचय दे सकते हैं।

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नेताजी सुभाषचंद्र बोस के व्यक्तित्व और कृतित्व पर एक प्रोजेक्ट बनाइए।


विद्यार्थीयो अपने अध्यापका अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

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आपके विद्यालय में शारीरिक रूप में चुनौतीपूर्ण विद्यार्थी है उनके लिए विद्यालय परिसर और कक्षा-कक्ष में किस तरह के प्रावधान किए जाएँ प्रशासन को इस संदर्भ में पत्र द्वारा सुझाव दीजिये 


सेवा में
प्रधानाचार्य,
केंद्रीय विद्यालय,
दिल्ली कैंट।
मान्यवर महोदय,

आपको विदित ही है कि हमारे विद्यालय में अनेक ऐसे विद्यार्थी  हैं जो किसी न किसी रूप से शारीरिक विकलांगता से युक्त हैं। उन्हें विद्यालय में प्रथम अथवा  द्वितीय तल पर स्थित कक्षाओं में जाने तथा प्रसाधन कक्षों का प्रयोग करने में बहुत कठिनाई होती है। आप से प्रार्थना है कि शारीरिक रूप से असमर्थ विद्‌यार्थियों की कक्षाएं निचले तल पर लगाई जाएं तथा सीढ़ियों के साथ-साथ रैंप भी बनाए जाएं जिससे उन्हें आने-जाने में तकलीफ न हो। उनके लिए पुस्तकालय, प्रसाधन कक्षों में भी समुचित व्यवस्था की जाए।

आशा है आप हमारी प्रार्थना को स्वीकार कर समुचित प्रबंध कराएंगे।

धन्यवाद,
भवदीप
राघव मेनन
मुख्य विद्‌यार्थी कक्षा दसवीं
दिनांक 15 मार्च, 20..

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कैप्टन फेरी लगाता था।
फेरी बाले हमारे दिन-प्रतिदिन की बहुत-सी जरूरतों को आसान बना देते हैं। फेरीवालों के योगदान व समस्याओं पर एक संपादकीय लेख तैयार कीजिए 


फेरी वाले हमारी जिंदगी का एक अभिन्न अंग हैं। यह हमारी दौड़ती-भागती जिंदगी को आराम देते हैं। फेरी वाले घर पर ही हमारी आवश्यकताओं को पूरा कर देते हैं। गली में कई फेरी वाले आते हैं जैसे सब्जी वाले, फल वाले, रोजाना काम में आने वाली वस्तुएँ आदि। फेरी वालों ने हमारे जीवन को सुगम बना दिया है। हमें छोटी से छोटी चीज घर बैठे मिल जाती है इससे हमारे समय की बचत होती है। हम अपना बचा हुआ समय किसी उपयोगी कार्य में लगा सकते हैं। कुछ फेरी वाले जहाँ हमारे जीवन के लिए उपयोगी हैं वहीं कुछ फेरी वाले समस्या भी उत्पन्न कर देते हैं। कई कॉलोनियाँ शहर से दूर होती हैं इसलिए वहाँ के लोगों को अपनी छोटी-छोटी जरूरतों के लिए इन फेरी वालों पर निर्भर रहना पड़ता है। ये फेरी वाले उन लोगों की जरूरतों का फायदा उठाते हुए मनमाने मूल्यों पर वस्तु बेचते हैं। कई बार तो दुगने पैसों पर गंदा और घटिया माल बेच देते हैं। कई फेरी वाले अपराधिक तत्वों से मिलकर उन्हें ऐसे घरों की जानकारी देते हैं जहाँ दिन में केवल बच्चे और बूढ़े होते हैं। फेरी वालों की मनमानी रोकने के लिए उनको नगरपालिका से जारी मूल्य-सूची दी जानी चाहिए। फेरी वालों के पास पहचान-पत्र और लाइसेंस होना चाहिए।

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“वो लँगड़ा क्या जाएगा फ़ौज में। पागल है पागल!”
कैप्टन के प्रति पानवाले की इस टिप्पणी पर आपकी क्या प्रतिक्रिया लिखिए


हालदार साहब के मन में नेता जी की मूर्ति पर चश्मा लगाने वाले के प्रति आदर था। जब उन्हें पता चला कि चश्मा लगाने वाला कोई कैप्टन था तो उन्हें लगा कि वह नेता जी का कोई साथी होगा। परंतु पानवाला उसका मजाक उड़ाते हुए बोला कि वह एक लँगड़ा व्यक्ति है इसलिए वह फौज में कैसे जा सकता है।
पानवाले का कैप्टन की हँसी उड़ाना अच्छा नहीं लगता है एक वही है जिसने नेता जी की मूर्ति के अधूरे व्यक्तित्व को पूरा किया था। उसके नेता जी के प्रति आदर भाव ने ही पूरे कस्बे की इज्जत बचा रखी थी। पानवाले के मन में देश और देश के नेताओं के प्रति आदर सम्मान नहीं था। उसे तो अपना पान बेचने के लिए कोई न कोई मसाला चाहिए था। यदि ऐसे लोग देश के लिए कुछ कर नहीं सकते तो उन्हें किसी की हँसी उड़ाने का भी अधिकार नहीं हे। कैप्टन जैसे भी व्यक्तित्व का स्वामी था उससे उसकी देश के प्रति कर्त्तव्य भावना कम नहीं होती थी। पानवाले को कैप्टन की हँसी नहीं उड़ानी चाहिए थी।

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नेताजी की मूर्ति पर लगा चश्मा बार बार क्यों बदल जाता था?

उत्तर- कैप्टन का नेताजी की मूर्ति पर बार-बार चश्मा लगाना , उसके दिल में नेताजी व अन्य स्वतंत्रता सेनानियों के प्रति सम्मान की भावना को प्रकट करता है। और उसका अपने देश के प्रति प्रेम को भी दर्शाता हैं।

चश्मे वाले को कैप्टन क्यों कहते हैं?

वह सुभाषचंद्र का सम्मान करता था। वह सुभाष की बिना चश्मे वाली मूर्ति को देखकर आहत था। इसलिए अपनी ओर से एक चश्मा नेताजी की मूर्ति पर अवश्य लगाता था। उसकी इसी भावना को देखकर ही लोगों ने उसे सुभाषचंद्र बोस का साथी या सेना का कैप्टन कहकर सम्मान दिया ।

नेताजी का चश्मा पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए कि कैप्टन बार बार मूर्ति पर चश्मा क्यों लगा देता था?

'नेताजी का चश्मा' पाठ के आधार पर उत्तर दीजिए। उत्तरः कैप्टन का नेताजी के प्रति श्रद्धा प्रकट करने के लिए अपने गिने-चुने चश्मों में से एक फ्रेम नेताजी की मूर्ति पर लगा देता था और ग्राहक द्वारा वैसा ही चश्मा माँगने पर वह मूर्ति का चश्मा उतारकर उसे दे देता था और मूर्ति पर दूसरा चश्मा लगा देता था

कैप्टन कौन था Class 10?

Answer: चश्मेवाला एक देशभक्त नागरिक था। उसके हृदय में देश के वीर जवानों के प्रति सम्मान था। इसलिए लोग उसे कैप्टन कहते थे।