कबीर दास की निंदा करने से क्यों मना करता है? - kabeer daas kee ninda karane se kyon mana karata hai?

कबीर घास की निंदा करने से क्यों मना करते हैं। पढ़े हुए दोहे के आधार पर स्पष्ट कीजिए।

कबीर दास जी ने अहंकार वश किसी भी वस्तु को हीन समझने का विरोध किया है। क्योंकि एक छोटी से छोटी वस्तु भी हमें नुकसान पहुँचा सकती है। घास के माध्यम से कबीर दास जी ने इसे स्पष्ट किया है। यदि घास का एक तिनका भी उड़कर हमारी आँखों में पड़ जाए तो हमें पीड़ा होती है। इसलिए हमें इस घमंड में नहीं रहना चाहिए कि कोई हमसे छोटा या हीन है। हर एक में कुछ न कुछ अच्छाई होती है। अत: किसी की भी निंदा नहीं करना चाहिए।

Concept: गद्य (Prose) (Class 8)

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Solution : कबीर ने दोहे में पैरों के नीचे रौंदी जाने वाली घास के बारे में बताया है कि हमें कभी भी उस रौंदी जाने वाली घास को कमजोर नहीं समझना चाहिए, क्योंकि यदि उस घास का छोटा-सा तिनका भी उड़कर आँख में पड़ जाए तो। वह आँख में किरकिरी कर देता है और बेचैनी ला देता है। इसके माध्यम से उन्होंने बताया है कि समाज में रहने वाले छोटे-से-छोटे अर्थात् कमजोर व्यक्ति को भी हमें निर्बल मानकर सताना या दबाना नहीं चाहिए, क्योंकि समय आने पर वह भी शक्ति प्राप्त कर हम पर आघात कर सकता है।

पाठ की तीसरी साखी-जिसकी एक पंक्ति है ‘मनुवाँ तो दहुँ दिसि फिर, यह तो सुमिरन नाहिं’ के द्वारा कबीर क्या कहना चाहते हैं?


‘मनुवाँ तो दहूँ दिसि फिरै, यह तौ सुमिरन नाहिं’ इस पंक्ति के माध्यम से कबीर ने कहना चाहा है कि हमारा मन भक्ति के समय यदि दसों दिशाओं की ओर घूमता रहता हैं, ईश्वर के स्मरण मैं एकाग्रचित्त नहीं होता तो ऐसी भक्ति व्यर्थ है।

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“ या आपा को डारि दे, दया करै सब कोय।”
“ऐसी बानी बोलिए मन का आपा खोय।”
इन दोनों पक्तियों में ‘आपा’ को छोड़ देने या खो देने की बात की गई है। ‘आपा’ किस अर्थ में प्रयुक्त हुआ है? क्या ‘आपा’ स्वार्थ के निकट का अर्थ देता है या घमंड का?


“या आपा को डारि दे, दया करै सब कोय।”
“ऐसी बानी बोलिए मन का आपा खोय।”
इन दोनों पंक्तियों में ‘आपा’ शब्द का प्रयोग घमंड अर्थात् अंहकार के लिए प्रयुक्त हुआ है।
पहली पंक्ति में कबीर का कहना है कि मनुष्य को अपने स्वभाव से अहंकार को त्याग देना चाहिए ताकि सभी उस पर कृपाभाव रखें।
दूसरी पंक्ति में कबीर का कहना है कि अपने मन के अहंकार को त्याग कर हम ऐसी मीठी वाणी बोलनी चाहिए कि सभी हमारी ओर आकर्षित हो जाएं।

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कबीर घास की निंदा करने से क्यों मना करते हैं। पढ़े हुए दोहे के आधार पर स्पष्ट कीजिए।


कबीर के दोहे में घास का विशेष अर्थ है क्योंकि इसमें उन्होंने पैरों के नीचे रौंदी जाने वाली घास के बारे में कहा है कि हमें कभी उसे निर्बल या कमजोर नहीं समझना चाहिए क्योंकि उसका छोटा-सा तिनका भी यदि आँख में पड जाए तो कष्टकर होता है। इस घास का वास्तविक संदेश यह है कि हमें समाज में रहने वाले छोटे से छोटे व्यक्ति काे भी कभी कमजोर नहीं समझना चाहिए, क्योंकि यदि वह शक्ति प्राप्त कर ले तो हमें गहरा आघात पहुंचा सकता है।

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तलवार का महत्त्व होता है म्यान का नहीं’-उक्त उदाहरण से कबीर क्या कहना चाहते हैं? स्पष्ट कीजिए।


‘तलवार का महत्त्व होता है म्यान का नहीं’ इस उदाहरण से कबीर कहना चाहते हैं कि महत्त्व सदा मुख्य वस्तु का होता है जैसे हम तलवार लेना चाहें तो उसकी धार देखकर उसका मोल भाव करेंगे उसका म्यान कितना भी सुंदर क्यों न हो उसकी ओर हम ध्यान नहीं देते। ठीक वैस ही जैसे साधु-संतों के ज्ञान की महत्ता होती है उनकी जाति से किसी को कोई सरोकार नहीं होता।

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मनुष्य के व्यवहार में ही दूसरों को विरोधी बना लेनेवाले दोष होते हैं। यह भावार्थ किस दोहे से व्यक्त होता है?


जग में बैरी कोइ नहीं, जो मन सीतल होय। 
या आपा को डारि दे, दया करै सब कोय।।

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          • 1. ‘तलवार का महत्त्व होता है, म्यान का नहीं’ – उक्त उदाहरण से कबीर क्या कहना चाहता है? स्पष्ट कीजिए।
          • 2. पाठ की तीसरी साखी-जिसकी एक पंक्ति हैं ‘मनुवाँ तो दहुँ दिसि फिरै, यह तो सुमिरन नाहिं’ के द्वारा कबीर क्या कहना चाहते हैं?
          • 3. कबीर घास की निंदा करने से क्यों मना करते हैं। पढ़े हुए दोहे के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
          • 4. मनुष्य के व्यवहार में ही दूसरों को विरोधी बना लेनेवाले दोष होते हैं। यह भावार्थ किस दोहे से व्यक्त होता है?
          • 5. “या आपा को डारि दे, दया करै सब कोय।” “ऐसी बानी बोलिए मन का आपा खोय।” इन दोनों पंक्तियों में ‘आपा’ को छोड़ देने या खो देने की बात की गई है। ‘आपा’ किस अर्थ में प्रयुक्त हुआ है? क्या ‘आपा’ स्वार्थ के निकट का अर्थ देता है या घमंड का?
          • 6. आपके विचार में आपा और आत्मविश्वास में तथा आपा और उत्साह में क्या कोई अंतर हो सकता है? स्पष्ट करें।
          • 7. सभी मनुष्य एक ही प्रकार से देखते-सुनते हैं पर एकसमान विचार नहीं रखते। सभी अपनी-अपनी मनोवृत्तियों के अनुसार कार्य करते हैं। पाठ में आई कबीर की किस साखी से उपर्युक्त पंक्तियों के भाव मिलते हैं, एकसमान होने के लिए आवश्यक क्या है? लिखिए।
          • 8. कबीर के दोहों को साखी क्यों कहा जाता है?
          • • भाषा की बात
          • 9. बोलचाल की क्षेत्रीय विशेषताओं के कारण शब्दों के उच्चारण में परिवर्तन होता है जैसे वाणी शब्द बानी बन जाता है। मन से मनवा, मनुवा आदि हो जाता है। उच्चारण के परिवर्तन से वर्तनी भी बदल जाती है। नीचे कुछ शब्द दिए जा रहे हैं उनका वह रूप लिखिए जिससे आपका परिचय हो। ग्यान, जीभि, पाऊँ, तलि, आंखि, बरी।
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कबीर दास की निंदा करने से क्यों मना करता है? - kabeer daas kee ninda karane se kyon mana karata hai?

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कबीर दास की निंदा करने से क्यों मना करता है? - kabeer daas kee ninda karane se kyon mana karata hai?

NCERT Class 8 Hindi Chapter wise Solutions

  • पाठ-01 ध्वनि
  • पाठ-02 लाख की चूड़ियाँ
  • पाठ-03 बस की यात्रा
  • पाठ-04 दीवानों की हस्ती
  • पाठ-05 चिट्ठियों की अनूठी दुनिया
  • पाठ-06 भगवान के डाकिए
  • पाठ-07 क्या निराश हुआ जाए
  • पाठ-08 यह सब से कठिन समय नहीं
  • पाठ-09 कबीर की साखियाँ
  • पाठ-10 कामचोर
  • पाठ-11 जब सिनेमा ने बोलना सिखा
  • पाठ-12 सुदामा चरित
  • पाठ-13 जहाँ पहिया है
  • पाठ-14 अकबरी लोटा
  • पाठ-15 सूरदास के पद
  • पाठ-16 पानी की कहानी
  • पाठ-17 बाज और साँप
  • पाठ-18 टोपी

NCERT solutions for Class 8 Hindi Kabir Ki Sakhiya

1. ‘तलवार का महत्त्व होता है, म्यान का नहीं’ – उक्त उदाहरण से कबीर क्या कहना चाहता है? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर:- ‘तलवार का महत्व होता है, म्यान का नहीं’ से कबीर यह कहना चाहता है कि असली चीज़ की कद्र की जानी चाहिए। दिखावटी वस्तु का कोई महत्त्व नहीं होता। इसी प्रकार किसी व्यक्ति की पहचान अथवा उसका मोल उसकी काबलियत के अनुसार तय होता है न कि कुल, जाति, धर्म आदि से। उसी प्रकार ईश्वर का भी वास्तविक ज्ञान जरुरी है। ढोंग-आडंबर तो म्यान के समान निरर्थक है। असली बह्रम को पहचानो और उसी को स्वीकारो।


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2. पाठ की तीसरी साखी-जिसकी एक पंक्ति हैं ‘मनुवाँ तो दहुँ दिसि फिरै, यह तो सुमिरन नाहिं’ के द्वारा कबीर क्या कहना चाहते हैं?

उत्तर:- कबीरदास जी इस पंक्ति के द्वारा यह कहना चाहते हैं कि भगवान का स्मरण एकाग्रचित होकर करना चाहिए। इस साखी के द्वारा कबीर केवल माला फेरकर ईश्वर की उपासना करने को ढोंग बताते हैं।


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3. कबीर घास की निंदा करने से क्यों मना करते हैं। पढ़े हुए दोहे के आधार पर स्पष्ट कीजिए।

उत्तर:- घास का अर्थ है पैरों में रहने वाली तुच्छ वस्तु। कबीर अपने दोहे में उस घास तक की निंदा करने से मना करते हैं जो हमारे पैरों के तले होती है। कबीर के दोहे में ‘घास’ का विशेष अर्थ है। यहाँ घास दबे-कुचले व्यक्तियों की प्रतीक है। कबीर के दोहे का संदेश यही है कि व्यक्ति या प्राणी चाहे वह जितना भी छोटा हो उसे तुच्छ समझकर उसकी निंदा नहीं करनी चाहिए। हमें सबका सम्मान करना चाहिए।


4. मनुष्य के व्यवहार में ही दूसरों को विरोधी बना लेनेवाले दोष होते हैं। यह भावार्थ किस दोहे से व्यक्त होता है?

उत्तर:- ”जग में बैरी कोइ नहीं, जो मन सीतल होय।
या आपा को डारि दे, दया करै सब कोय।।


5. “या आपा को डारि दे, दया करै सब कोय।”
“ऐसी बानी बोलिए मन का आपा खोय।”
इन दोनों पंक्तियों में ‘आपा’ को छोड़ देने या खो देने की बात की गई है। ‘आपा’ किस अर्थ में प्रयुक्त हुआ है? क्या ‘आपा’ स्वार्थ के निकट का अर्थ देता है या घमंड का?

उत्तर:- “या आपा को . . . . . . . . . आपा खोय।” इन दो पंक्तियों में ‘आपा’ को छोड़ देने की बात की गई है। यहाँ ‘आपा’ अंहकार के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। ‘आपा’ घमंड का अर्थ देता है।


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6. आपके विचार में आपा और आत्मविश्वास में तथा आपा और उत्साह में क्या कोई अंतर हो सकता है? स्पष्ट करें।

उत्तर:- आपा और आत्मविश्वास में तथा आपा और उत्साह में अंतर हो सकता है –
1. आपा और आत्मविश्वास – आपा का अर्थ है अहंकार जबकि आत्मविश्वास का अर्थ है अपने ऊपर विश्वास।
2. आपा और उत्साह – आपा का अर्थ है अहंकार जबकि उत्साह का अर्थ है किसी काम को करने का जोश।


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7. सभी मनुष्य एक ही प्रकार से देखते-सुनते हैं पर एकसमान विचार नहीं रखते। सभी अपनी-अपनी मनोवृत्तियों के अनुसार कार्य करते हैं। पाठ में आई कबीर की किस साखी से उपर्युक्त पंक्तियों के भाव मिलते हैं, एकसमान होने के लिए आवश्यक क्या है? लिखिए।

उत्तर:- ”आवत गारी एक है, उलटत होइ अनेक।
कह कबीर नहिं उलटिए, वही एक की एक।।”
मनुष्य के एक समान होने के लिए सबकी सोच का एक समान होना आवश्यक है।


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8. कबीर के दोहों को साखी क्यों कहा जाता है?

उत्तर:- कबीर के दोहों को साखी इसलिए कहा जाता है क्योंकि इनमें श्रोता को गवाह बनाकर साक्षात् ज्ञान दिया गया है। कबीर समाज में फैली कुरीतियों, जातीय भावनाओं, और बाह्य आडंबरों को इस ज्ञान द्वारा समाप्त करना चाहते थे।


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भाषा की बात9. बोलचाल की क्षेत्रीय विशेषताओं के कारण शब्दों के उच्चारण में परिवर्तन होता है जैसे वाणी शब्द बानी बन जाता है। मन से मनवा, मनुवा आदि हो जाता है। उच्चारण के परिवर्तन से वर्तनी भी बदल जाती है। नीचे कुछ शब्द दिए जा रहे हैं उनका वह रूप लिखिए जिससे आपका परिचय हो।
ग्यान, जीभि, पाऊँ, तलि, आंखि, बरी।

उत्तर:- ग्यान – ज्ञान
जीभि – जीभ
पाऊँ – पाँव
तलि – तले
आँखि – आँख
बरी – बड़ी

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कबीर दास की निंदा करने से मना क्यों करते हैं?

कबीर अपने दोहे में उस घास तक की निंदा करने से मना करते हैं जो हमारे पैरों के तले होती है। कबीर के दोहे में 'घास' का विशेष अर्थ है। यहाँ घास दबे-कुचले व्यक्तियों की प्रतीक है। कबीर के दोहे का संदेश यही है कि व्यक्ति या प्राणी चाहे वह जितना भी छोटा हो उसे तुच्छ समझकर उसकी निंदा नहीं करनी चाहिए।

कबीर दास जी के अनुसार हमें किस की निंदा नहीं करनी चाहिए?

कबीर घास की निंदा करने से क्यों मना करते हैं। पढ़े हुए दोहे के आधार पर स्पष्ट कीजिए। कबीर के दोहे में घास का विशेष अर्थ है क्योंकि इसमें उन्होंने पैरों के नीचे रौंदी जाने वाली घास के बारे में कहा है कि हमें कभी उसे निर्बल या कमजोर नहीं समझना चाहिए क्योंकि उसका छोटा-सा तिनका भी यदि आँख में पड जाए तो कष्टकर होता है।

कबीर घास न निंदिये जो पाँव तले होय?

कबीर घास न नींदिए, जो पाऊँ तलि होइ। उड़ि पड़ै जब आँखि मैं, खरी दुहेली होइ। भावार्थ- इसमें कबीरदास जी कहते हैं कि हमें कभी घास को छोटा समझकर उसे दबाना नहीं चाहिए क्योंकि जब घास का एक छोटा सा तिनका भी आँख में गिर जाता है तो वह बहुत दुख देता है अर्थात हमें छोटा समझकर किसी पर अत्याचार नहीं करना चाहिए।