जेल में कवि का वजन कितना हो गया? - jel mein kavi ka vajan kitana ho gaya?

प्रसंग- प्रस्तुत काव्याशं भवानीप्रसाद मिश्र द्वारा रचित कविता ‘घर की याद, से अवतरित है। कवि सावन के माध्यम से अपने घर संदेश भिजवाता है।

व्याख्या-कवि सावन से कहता है कि तुम मेरे घर जाकर यह कहना कि तुम्हरा बेटा भवानी जेल में मजे में है। वहाँ उसे कोई कष्ट नहीं है। वह वहाँ सूत कातने में व्यस्त रहता है। इस समय उसका वजन बढ्कर 70 सेर (लगभग 63 किलो) हो गया है। वह वहाँ ढेर सारा भोजन करता है अर्थात् तुम्हारा बेटा वहाँ मजे में है, उसे कोई कष्ट नहीं है। (इससे उन्हें तसल्ली हो जाएगी।)

कवि सावन से घर जाकर यह भी कहने को कहता है कि वहाँ जाकर बताना कि तुम्हारा बेटा जेल में भी खूब खेलता -कूदता है और दुखों को आगे ठेलकर भगा देता है। वह वहाँ पूरी तरह मस्ती से रह रहा है। उसे वहाँ कोई दुख नहीं है। (यह सब कहलवाकर कवि अपने परिवारजनों को दुखी होने से बचाना चाहता है।)

कवि सावन को सावधान करते हुए कहता है कि तुम मेरे घर जाकर कुछ ऐसा- वैसा मत कह देना। उन्हें यह मत बता देना कि मैं रात भर जागता रहता हूँ और आदमियों से दूर भागता रहता हूँ अर्थात् वहाँ मेरी वास्तविक स्थिति का बखान मत कर देना।

भवानी प्रसाद मिश्र हिन्दी के बहुत ही प्रसिद्ध कवियों में से एक थे। वो दूसरे तार– सप्तक के एक प्रमुख कवि हैं। उनका जन्म 29 मार्च 1913 ई को होशंगाबाद, मध्य प्रदेश के टिगरिया गाँव में हुआ था।

उनकी प्रारम्भिक शिक्षा सोहागपुर, होशंगाबाद, नरसिंहपुर एवं जबलपुर में हुई। आगे की पढ़ाई के लिए उन्होंने हिन्दी, अँग्रेजी एवं संस्कृत चुना और बी.ए. की पढ़ाई पूरी की। बाद में उन्होंने एक स्कूल खोल लिया।

वो एक गांधीवादी विचारक थे इसलिए उनके संस्कार, विचार, कार्य सब गांधीवादी थे। उनके गांधीवाद की झलक उनकी कविताओं में स्वच्छंदता और नैतिकता के रूप में देखी जा सकती है।

जेल में कवि का वजन कितना हो गया? - jel mein kavi ka vajan kitana ho gaya?
जेल में कवि का वजन कितना हो गया? - jel mein kavi ka vajan kitana ho gaya?
Bhavani Prasad Mishr

1942 में उनको गिरफ्तार कर लिया गया उन्होंने सात वर्ष जेल में बिताए और 1949 में जेल से बाहर आए। उसके बाद चार-पाँच साल उन्होंने महिलाश्रम वर्धा में शिक्षक के तौर पर बिताए।

नियमित रूप से उन्होंने कविताएं लिखना लगभग 1930 ई से प्रारम्भ किया। ‘कर्मवीर’ , ‘हंस’, ‘दूसरा सप्तक ‘में उनकी कवितायें प्रकाशित होने लगीं। उनका प्रथम संग्रह था ‘गीत फ़रोश ‘जो कि अत्यन्त लोकप्रिय रहा और उस लोकप्रियता का कारण रहा उसकी नयी शैली और नया पाठ-प्रवाह।

‘चकित है दुःख’ ‘गांधी पंचशती’ ‘बुनी हुई रस्सी’ ‘तुम आते हो’ ‘त्रिकाल संध्या’ आदि उनकी प्रमुख रचनाएँ थीं। 1972 में उन्हें ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’ दिया गया। 1981 में उन्हें उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान का ‘साहित्यकार सम्मान’ दिया गया।

1983 में उन्हें ‘शिखर सम्मान’ दिया गया। उन्होंने चित्रपट के लिए संवाद लेखन एवं संवाद निर्देशन का काम भी किया। वे आकाशवाणी के प्रोड्यूसर भी हुए। बाद में वे दिल्ली भी गए और उन्होंने आकाशवाणी में काम किया। 1985 ई में परिवारजनों के बीच मध्य प्रदेश में उनकी मृत्यु हो गयी।

कविता का सार

“घर की याद” कविता के कवि भवानी प्रसाद मिश्र जी हैं। कवि ने सन 1942 के “भारत छोड़ो आंदोलन” में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। जिस कारण उन्हें तीन वर्ष के लिए जेल की यातना झेलनी पड़ी। कवि ने यह कविता अपनी उसी जेल यात्रा के दौरान लिखी।अपने जेल प्रवास के दौरान सावन के महीने में एक रात रिमझिम बारिश को देखकर कवि को अपने घर, अपने माता-पिता व अपने परिजनों की बहुत याद आती है। जिससे कवि का मन दुखी हो जाता हैं।

लेकिन वो सावन को अपना संदेशवाहक बनाकर अपने माता पिता को अपनी सकुशल व मस्त होने का झूठा संदेश भेजने की कोशिश करते हैं ताकि उनके माता-पिता अपने प्रिय बेटे को याद कर दुखी ना हो। वो नहीं चाहते हैं कि उनके माता-पिता उनके अकेलेपन व उनके मन की पीड़ा के बारे में जानें। 

कविता का भावार्थ

काव्यांश 1.

आज पानी गिर रहा है,

बहुत पानी गिर रहा है,

रात भर गिरता रहा है,

प्राण मन घिरता रहा है,

बहुत पानी गिर रहा है,

घर नज़र में तिर रहा है,

घर कि मुझसे दूर है जो,

घर खुशी का पूर है जो,

भावार्थ – उपरोक्त पंक्तियों में कवि अपने घर से दूर जेल की एक कालकोठरी में बंद है। सावन के महीने में खूब बारिश हो रही है जिसे देखकर कवि को अपने घर, परिजनों व उनके साथ बिताए सुखद क्षणों की याद आ रही है।

कवि कहते हैं कि आज बरसात हो रही है। और बहुत पानी गिर रहा हैं अर्थात बहुत बारिश हो रही हैं और यह बारिश रात से हो रही हैं। और ऐसे मौसम में मेरे मन व प्राण, दोनों ही अपने घर की यादों से घिर गये हैं।

बारिश के इस पानी को देखकर कवि को अपने परिजनों की याद हो आती है। और वो कहते हैं कि मुझे अपनी आंखों के सामने अपना वह घर दिखाई दे रहा हैं जो खुशियों का भंडार था। जहाँ सभी लोग प्रेमपूर्वक रहते थे लेकिन आज मैं अपने उसी घर से दूर हूँ।

अर्थात कवि के घर में खुशियों भरा माहौल था जहाँ सभी लोग मिलजुल कर हंसी – खुशी रहते थे। कैद में होने के कारण कवि इस समय अपने घर से दूर हैं। मगर घर की सुखद स्मृतियां कवि को बेचैन कर रही हैं।

काव्य सौंदर्य –

  1. भाषा सीधी व सरल है।
  2. “घर नज़र में तिर है” में अनुप्रास अलंकार है।
  3. “पानी गिर रहा है” में यमक अलंकार है।

काव्यांश 2.

घर कि घर में चार भाई,

मायके में बहिन आई,

बहिन आई बाप के घर,

हाय रे परिताप के घर!

घर कि घर में सब जुड़े है,

सब कि इतने कब जुड़े हैं,

चार भाई चार बहिनें,

भुजा भाई प्यार बहिनें,

भावार्थ –  उपरोक्त पंक्तियों में कवि अपने भाई-बहनों व उनके आपसी संबंधों के बारे में वर्णन कर रहे हैं। कवि कहते हैं कि उनके घर में चार भाई व चार बहनें हैं और सभी भाई-बहनें के बीच अथाह प्रेम है। बहिनें शादीशुदा हैं। और आज वो अपने पिता के घर अर्थात अपने मायके आयी होंगी।

(यहाँ पर कवि अंदाजा लगा रहे हैं कि उनकी बहन मायके आयी होगी। इसका कारण यह हो सकता है कि सावन के महीने में रक्षाबंधन का त्यौहार आता है और इस दिन विवाहित बहनें अपने भाई को राखी बांधने अपने मायके आती हैं।)

जेल में कवि का वजन कितना हो गया? - jel mein kavi ka vajan kitana ho gaya?
जेल में कवि का वजन कितना हो गया? - jel mein kavi ka vajan kitana ho gaya?

लेकिन मायके आकर जब उन्हें मेरे बारे में पता चला होगा तो उन्हें अत्यधिक दुःख पहुंचा होगा। मेरे जेल में होने की वजह से घर के सभी लोग दुखी होंगे और मेरा खुशियों से भरा वह घर अब “परिताप का घर (कष्टों का घर)” बन गया होगा।

कवि आगे कहते हैं कि संकट की इस घड़ी में सब एक दूसरे का सहारा बने हुए होंगे। ऐसा प्रेम व भाईचारा बहुत कम ही देखने को मिलता हैं। मेरे चार भाई व चार बहनें हैं और सभी में आपस में बहुत गहरा प्रेम संबंध हैं। मेरे चारों भाई भुजाओं के समान एक दूसरे को सहयोग करने वाले अत्यंत बलिष्ठ व कर्मशील हैं जबकि मेरी बहनें प्रेम का प्रतीक हैं। यानि वो हम पर अपना अथाह स्नेह व ममता लुटाती रहती हैं। 

अर्थात जिस प्रकार इंसान की भुजाएं उसे हर काम करने में सहयोग करती हैं ठीक उसी प्रकार उनके भाई भी उनके सुख दुःख में उनको सहयोग करते हैं।

काव्य सौंदर्य –

  1. कविता की भाषा सरल व सहज है।
  2. “भुजा भाई” में अनुप्रास अलंकार है।
  3. “भुजा भाई प्यार बहिन” में उपमा अलंकार है।

काव्यांश 3.

और माँ‍ बिन – पढ़ी मेरी,

दुःख में वह गढ़ी मेरी,

माँ कि जिसकी गोद में सिर,

रख लिया तो दुख नहीं फिर,

माँ कि जिसकी स्नेह – धारा,

का यहाँ तक भी पसारा,

उसे लिखना नहीं आता,

जो कि उसका पत्र पाता।

भावार्थ – उपरोक्त पंक्तियों में कवि अपनी माँ के बारे में बात करते हुए कहते हैं कि मेरी मां अनपढ़ हैं और मेरे जेल में होने की वजह से वह इस वक्त बहुत दुखी होगी। फिर कवि को अपनी मां की ममता भी याद आने लगती है।

वो कहते हैं कि अगर मैं अपनी माँ की गोद में सिर भी रख लूँ, तो भी मेरी सारी परेशानियों स्वत: ही समाप्त हो जाती हैं। और मेरी मां की स्नेह की धारा अर्थात उनकी ममता व प्रेम मुझे इस जेल की कालकोठरी में भी महसूस हो रही हैं। कवि कहते हैं कि मेरी मां को लिखना नहीं आता। इसीलिए उन्होंने मुझे कोई पत्र नहीं भेजा।

काव्य सौंदर्य –

  1. “स्नेह–धारा” में रूपक अलंकार है।

काव्यांश 4.

पिताजी जिनको बुढ़ापा,

एक क्षण भी नहीं व्यापा,

जो अभी भी दौड़ जाएँ,

जो अभी भी खिलखिलाएँ,

मौत के आगे न हिचकें,

शेर के आगे न बिचकें,

बोल में बादल गरजता,

काम में झंझा लरजता,

भावार्थ – उपरोक्त पंक्तियों में कवि अपने पिता की शाररिक विशेषताओं के बारे में बात करते हुए कहते हैं कि भले ही उनके पिता की उम्र हो गई हो मगर अभी भी उनके पिता पर बुढ़ापे का कोई असर नहीं दिखाई देता है। अभी भी वो किसी नौजवान की तरह दौड़ सकते हैं, खिलखिला कर हंस सकते हैं।

उन्हें मौत से भय नहीं लगता है और अगर उनके सामने शेर भी आ जाय तो वो उसके सामने बिना डरे खड़े रह सकते है। यानि वो बहुत ही निर्भीक व साहसी व्यक्ति हैं। उनकी वाणी में बादलों की सी गर्जना है और वो इस उम्र में भी इतनी तेजी से काम करते हैं कि आंधी तूफान भी उनको देख शरमा जाय। यानी वो बहुत फुर्तीले (तेजी) हैं।

कवि के पिता बहुत ही कर्मठ व ऊर्जावान व्यक्ति हैं जिनमें आज भी नवयुवकों के जैसा जोश व उत्साह भरा है।

काव्य सौंदर्य –

  1. कविता में वीर रस का अच्छा प्रयोग हुआ है।
  2. “अभी भी” में अनुप्रास अलंकार है।
  3. “बादल गरजता” में उपमा अलंकार है।
  4. “झंझा लरजता” में उपमा अलंकार है।

काव्यांश 5.

आज गीता पाठ करके,

दंड दो सौ साठ करके,

खूब मुगदर हिला लेकर,

मूठ उनकी मिला लेकर,

जब कि नीचे आए होंगे,

नैन जल से छाए होंगे,

हाय, पानी गिर रहा है,

घर नज़र में तिर रहा है,

भावार्थ – उपरोक्त पंक्तियों में कवि अपने पिता की दिनचर्या के बारे में बात करते हुए कहते हैं कि हर रोज की तरह आज भी उन्होंने गीता पाठ किया होगा और दो सौ साठ दंड किये होंगे। और फिर मुद्गर को पकड़कर खूब हिला- हिलाकर व्यायाम किया होगा।

और अंत में मुद्गरों की मूठों (हत्थों) को मिलकर एक जगह रखकर, जब वो घर के ऊपरी हिस्से से नीचे आए होंगे तो, घर में अपने लाडले पुत्र को ना पाकर दुख से उनकी आंखों में आंसू भर आये होंगे।

यानि उनके पिता ने अपनी रोज की दिनचर्या, व्यायाम व पूजापाठ आदि निपटाने के बाद जब घर में अन्य बच्चों के साथ कवि को नहीं देखा होगा तो वो भाव विभोर होकर रोने लगे होंगे। कवि आगे कहते हैं कि अभी भी वर्षा हो रही हैं और बरसते हुए पानी को देखकर मुझे घर की याद आ रही है।

काव्यांश 6.

चार भाई चार बहिनें,

भुजा भाई प्यार बहिनें,

खेलते या खड़े होंगे,

नज़र उनकी पड़े होंगे।

पिताजी जिनको बुढ़ापा,

एक क्षण भी नहीं व्यापा,

रो पड़े होंगे बराबर,

पाँचवे का नाम लेकर,

भावार्थ – उपरोक्त पंक्तियों में कवि अपने पिता के बारे में बात करते हुए कहते हैं कि उनके चारों भाई और चारों बहनों, जो अभी घर पर होंगे और शायद इस वक्त वो या तो खेल रहे होंगे या यूं ही खड़े होंगे।

कवि आगे कहते हैं कि हालाँकि मेरे पिताजी अभी भी पूर्ण रूप से स्वस्थ हैं। बुढ़ापे का उन पर अभी कोई असर दिखाई नहीं देता हैं। मगर जब खेलते हुए मेरे भाई– बहिनों पर उनकी नजर पड़ी होगी। तो वो अपने पाँचवें बेटे यानी कवि को उनके बीच न पाकर दुखी हुए होंगे और उनका नाम लेकर रो पड़े होंगे।

काव्य सौंदर्य –

  1. भाषा सहज व सरल हैं।
  2. “भुजा भाई” में अनुप्रास अलंकार है।
  3. “भुजा भाई” में उपमा अलंकार है।
  4. काव्य में वात्सल्य रस देखने को मिलता हैं।

काव्यांश 7.

पाँचवाँ हूँ मैं अभागा,

जिसे सोने पर सुहागा,

पिता जी कहते रहे है,

प्यार में बहते रहे हैं,

आज उनके स्वर्ण बेटे,

लगे होंगे उन्हें हेटे,

क्योंकि मैं उन पर सुहागा,

बँधा बैठा हूँ अभागा,

भावार्थ – उपरोक्त पंक्तियों में कवि कहते हैं कि मैं अपने माता पिता के पांचवा पुत्र हूँ । वैसे तो मेरे पिताजी अपने सभी बेटों को प्रेम करते थे पर मुझे अपने अन्य बेटों की तुलना में श्रेष्ठ मानते थे। इसीलिए वो मुझे बहुत अधिक प्रेम करते थे। अर्थात अगर वो अपने चारों बेटों को सोने के समान मानते थे तो मुझे सुहागा (यानि उन सब में भी सबसे बेहतर) के समान मानते थे।

कवि कहते हैं कि मैं आज उनसे दूर इस जेल में कैद हूँ। इसीलिए आज उनके पिता को अपने स्वर्ण बेटे यानी अन्य चारों बेटे भी अच्छे नहीं लग रहे होंगे। क्योंकि उनका सबसे प्यारा बेटा यानि कवि आज उनकी आँखों के सामने नही है।

कवि यहाँ पर अपने आप को भाग्यहीन बता रहे हैं क्योंकि वो जेल में हैं। जिस कारण उनके माता पिता को कष्ट पहुंच रहा है।

काव्य सौंदर्य –

  1. “स्वर्ण बेटे” में रूपक अलंकार है।
  2. “बँधा बैठा” में अनुप्रास अलंकार है।
  3. “सोने पर सुहागा यानि किसी व्यक्ति या वस्तु का बहुत अच्छा होना” लोकोक्ति का प्रयोग किया गया है।

काव्यांश 8.

और माँ ने कहा होगा,

दुःख कितना बहा होगा,

आँख में किस लिए पानी,

वहाँ अच्छा है भवानी,

वह तुम्हारा मन समझकर,

और अपनापन समझकर,

गया है सो ठीक ही है,

यह तुम्हारी लीक ही है,

जेल में कवि का वजन कितना हो गया? - jel mein kavi ka vajan kitana ho gaya?
जेल में कवि का वजन कितना हो गया? - jel mein kavi ka vajan kitana ho gaya?

भावार्थ – उपरोक्त पंक्तियों में कवि कहते हैं कि मां अपने मन के दुःख को छिपा कर पिताजी को समझाते हुए कह रही होंगी कि क्यों दुखी हो रहे हो, क्यों आंसू बहा रहे हो। हमारा बेटा भवानी वहां अच्छे से होगा यानि सकुशल होगा।

माँ पिताजी को समझाते हुए आगे कहती होंगी कि वह आपके मन की बात को समझकर और आपके बताये मार्ग पर ही तो चल रहा हैं। वह देशसेवा करते हुए ही तो जेल गया हैं। यह तुम्हारी ही परंपरा हैं जिसका उसने पालन किया है। इसीलिए उसने जो किया वो ठीक हैं।

यानि देशभक्ति को रास्ता पिता ने अपने पुत्र को दिखाया। और बेटा आज उसी राह पर चल पड़ा हैं। आज देश हित ही उसके लिए सर्वोपरि है। माता को अपने पुत्र की देशभक्ति पर नाज है।

काव्य सौंदर्य –

  1. कविता में वात्सल्य रस की प्रधानता है।
  2. संवाद शैली का शानदार प्रयोग हुआ है।
  3. “लीक पर चलना” मुहावरे का प्रयोग है।

काव्यांश 9.

पाँव जो पीछे हटाता,

कोख को मेरी लजाता,

इस तरह होओ न कच्चे,

रो पड़ेंगे और बच्चे,

पिताजी ने कहा होगा,

हाय, कितना सहा होगा,

कहाँ, मैं रोता कहाँ हूँ,

धीर मैं खोता, कहाँ हूँ,

भावार्थ – उपरोक्त पंक्तियों में कवि कहते हैं कि मां पिताजी को समझाते हुए कह रही होंगी कि उनके बेटा ने देश हित को सर्वोपरि मानकर अपने कर्तव्य का पालन किया हैं। अगर वह ऐसा नही करता और देश सेवा से पीछे हट जाता तो आज मेरी कोख लज्जित होती। मुझे शर्मिंदगी का सामना करना पड़ता। लेकिन वह अपने देश की आजादी के खातिर जेल गया जिस पर मुझे गर्व है।

कवि आगे कहते हैं कि माँ पिताजी को समझाते हुए कह रही होंगी कि आप अपने मन को इतना कच्चा मत करो। अपने मन व भावनाओं पर काबू रखो। अपने आपको मजबूत करो नहीं तो घर के अन्य बच्चे भी आपको रोता देख रो पड़ेंगे।

और फिर पिताजी ने अपने आप को संभालते हुए कहा होगा कि अरे नही , मैं कहां रोता हूं और कहाँ मैं अपना धैर्य धीरज खोता हूं। यानि ना तो मैं रो रहा हूँ और ना ही परेशान हूँ। 

काव्य सौंदर्य –

  1. भाषा सहज व सरल हैं।
  2. “पाँव पीछे हटाना”, “कोख लजाना”, “कच्चा होना” आदि मुहावरों का प्रयोग किया है।

काव्यांश 10.

हे सजीले हरे सावन,

हे कि मेरे पुण्य पावन,

तुम बरस लो वे न बरसें,

पाँचवे को वे न तरसें,

मैं मज़े में हूँ सही है,

घर नहीं हूँ बस यही है,

किन्तु यह बस बड़ा बस है,

इसी बस से सब विरस है,

भावार्थ – उपरोक्त पंक्तियों में कवि सावन को संबोधित करते हुए कहा है कि हे!! सुंदर, आकर्षक व सबको खुशियां प्रदान करने वाले सावन, तुम्हें जितना बरसना हैं तुम बरस लो लेकिन मेरे पिताजी की आंखों को मत बरसने देना। और इस बात का भी ध्यान रखना कि वो अपने पाँचवे पुत्र को याद कर दुखी न हों।

कवि सावन से कहते हैं कि तुम जाकर मेरा यह संदेश मेरे पिता को देना कि मैं यहां पर बहुत मजे में हूँ और बहुत खुश भी हूं। बस इतना ही है कि मैं घर पर नहीं हूं। यानि मुझे यहां पर किसी प्रकार का कोई कष्ट नही है।  

लेकिन इसके बाद कवि स्वयं से कहते हैं कि मैंने उन्हें कह तो दिया कि मैं घर पर नहीं हूं। बस यही एक दुख है परंतु अपने माता–पिता व घर से दूर होकर जीना कितना कठिन है। यह केवल मैं ही जानता हूँ। अपनों से दूर होने के दुख ने मेरे जीवन के सारे सुखों को छीन कर उसे नीरस बना दिया है।

काव्य सौंदर्य –

  1. भाषा सहज, सरल है। कविता तुकांत है।
  2. कविता में संबोधन शैली का प्रयोग हुआ है।
  3. “पुण्य पावन”, “बस बड़ा बस” में अनुप्रास अलंकार है।
  4. सावन का मानवीकरण किया है|
  5. “बस बड़ा बस” में यमक अलंकार है। “बस” शब्द दो अलग अलग अर्थों में प्रयोग हुआ है।
  6. घर नहीं हूँ बस यही है ” में “बस” शब्द का अर्थ हैं  “केवल “। केवल मैं आपके साथ घर पर नहीं हूँ।

काव्यांश 11.

किन्तु उनसे यह न कहना,

उन्हें देते धीर रहना,

उन्हें कहना लिख रहा हूँ,

उन्हें कहना पढ़ रहा हूँ,

काम करता हूँ कि कहना,

नाम करता हूँ कि कहना,

चाहते है लोग कहना,

मत करो कुछ शोक कहना,

भावार्थ – उपरोक्त पंक्तियों में कवि अपनी भावनाओं पर संयम रखते हुए कहते हैं कि हे!! सावन तुम उनसे यह सब मत कहना कि मैं दुखी हूं, अकेला हूँ। तुम उन्हें धैर्य बंधाते रहना और कहना कि मैं यहां लिखता हूं, पढ़ता हूं, खूब काम करता हूं और देश सेवा करके अपना नाम रोशन कर रहा हूं।

कवि आगे वह कहते कि मेरे माता पिता से कहना कि जेल के सभी लोग मुझे चाहते हैं। और मुझे यहां कोई कष्ट भी नही है। इसीलिए वो दुखी ना हो।

काव्य सौंदर्य –

  1. “काम करता”, “कि कहना” में अनुप्रास अलंकार है।

काव्यांश 12.

और कहना मस्त हूँ मैं,

कातने में व्यस्‍त हूँ मैं,

वज़न सत्तर सेर मेरा,

और भोजन ढेर मेरा,

कूदता हूँ, खेलता हूँ,

दुख डट कर ठेलता हूँ,

और कहना मस्त हूँ मैं,

यों न कहना अस्त हूँ मैं,

भावार्थ – उपरोक्त पंक्तियों में कवि कहते हैं कि सावन तुम मेरे माता पिता से जाकर कहना कि मैं यहाँ पर मस्त हूं और सूत कातने में व्यस्त हूं। मैं यहां खूब खाता-पीता हूं। इसीलिए मेरा मेरा वजन 70 सेर (63 किलो) हो गया है।

कवि कहते हैं कि मैं यहां पर खूब खेलता–कूदता हूँ। हर विपरीत परिस्थति का सामना आराम से करता हूं और मस्त रहता हूं। यानि मैं पूर्ण रूप से स्वस्थ हूँ।

कवि सावन से कहते हैं कि उनको यह बिलकुल भी नही बताना कि मैं यहां पर दुखी हूँ, निराश हूं, उदास हूँ नही तो वो दुखी हो जायेंगे।

काव्य सौंदर्य –

“डटकर ठेलना”, “अस्त होना” मुहावरों का प्रयोग किया गया है।

काव्यांश 13.

हाय रे, ऐसा न कहना,

है कि जो वैसा न कहना,

कह न देना जागता हूँ,

आदमी से भागता हूँ,

कह न देना मौन हूँ मैं,

ख़ुद न समझूँ कौन हूँ मैं,

देखना कुछ बक न देना,

उन्हें कोई शक न देना,

भावार्थ –  उपरोक्त पंक्तियों में कवि सावन से कहते हैं कि मेरी मन स्थिति व मेरे दुखों के बारे में तुम मेरे माता–पिता को गलती से भी मत बताना।

तुम उनको यह मत बताना कि मैं रात भर जागता हूँ यानि मैं रात को सो नहीं पाता। आदमियों को देखकर घबरा जाता हूं। मैं मौन रहने लगा हूँ यानि अब मुझे किसी से बात करना अच्छा नहीं लगता है। और मुझे खुद नहीं पता कि मैं कौन हूं। हे!! मेरे सजीले सावन, तुम मेरे पिताजी के आगे कुछ भी ऐसा उल्टा–सीधा मत बोल देना जिससे उनको शक हो जाय कि कही उनका बेटा किसी दुख या तकलीफ में तो नही हैं।

काव्यांश 14.

हे सजीले हरे सावन,

हे कि मेरे पुण्य पावन,

तुम बरस लो वे न बरसे,

पाँचवें को वे न तरसें।

भावार्थ – और अंत में कवि सावन को संबोधित करते हुए कहा है कि हे !! सुंदर , आकर्षक व खुशियां प्रदान करने वाले सावन तुम्हें जितना बरसना हैं , तुम बरसो लेकिन अपने पाँचवे पुत्र को याद कर मेरे माता – पिता की आंखों को मत बरसने देना।

IMPORTANT QUESTION ANSWERS

Ghar Ki Yaad Chapter 5 Hindi Core Aroh Part-1

महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. पानी के रात भर गिरने और प्राण-मन के घिरने में परस्पर क्या संबंध है?

उत्तर: कवि अपने घर से बहुत दूर जेल में कैद है। उसे घर से दूर रहने की पीड़ा है। आकाश में बादल घिरकर बारिश करने लगते हैं। ऐसे में कवि के मन को स्मृतियाँ घेर रही हैं। जैसे-जैसे पानी गिर रहा है, वैसे-वैसे कवि के हृदय में प्रियजनों की स्मृतियाँ चलचित्र की तरह उभरती जा रही हैं। पानी के बरसने के कारण ही उसके प्राण व मन घर की याद में व्याकुल हो जाते हैं।

प्रश्न. 2. मायके आई बहन के लिए कवि ने घर को परिताप का घर क्यों कहा है?

उत्तर:  सावन का महीना उत्तर भारत में बहन-बेटियों के मायके आने का महीना है। आज पानी गिरने से कवि को बहनों के आने पर हँसी-खुशी से भर जानेवाले घर की याद आती है और वह जानता है कि इस वर्ष बहनों को केवल चार भाई मिलेंगे और पाँचवें (कवि स्वयं) का अभाव घरभर को दुख से भर देगा। भाई जेल में यातना झेल रहा है, वह उन सबसे दूर है। इसलिए भुजाओं के समान सहयोग देनेवाले चारों भाई और प्यार का प्रतीक बहनें और माता-पिता सभी दुखी हैं। यह बात दूर जेल में बैठा कवि जानता है। इसीलिए वह घर को परिताप (दुख) का घर कह रहा है।

प्रश्न. 3. पिता के व्यक्तित्व की किन विशेषताओं को उकेरा गया है?

उत्तर: कविता में पिता के व्यक्तित्व की निम्नलिखित विशेषताओं को उकेरा गया है-

(क) पिता जी पूर्णत: स्वस्थ हैं। बुढ़ापे ने उन्हें छुआ तक नहीं।

(ख) वे खिलखिलाकर हँसते हैं।

(ग) वे दौड़ लगाते हैं तथा दंड पेलते हैं।

(घ) वे मौत के सामने आने पर भी नहीं डरते।

(ड) वे तूफ़ान की रफ़्तार से काम करने की क्षमता रखते हैं।

(च) वे गीता का पाठ करते हैं।

(छ) वे भावुक प्रवृत्ति के हैं। अपने पाँचवें बेटे को याद करके उनकी आँखें भर आती हैं।

(ज) वे देश-प्रेमी हैं। उनकी प्रेरणा पर ही कवि ने स्वाधीनता आंदोलन में भाग लिया।

प्रश्न 4. निम्नलिखित पंक्तियों में बस शब्द के प्रयोग की विशेषता बताइए–

मैं मजे में हूँ सही है,

घर नहीं हूँ बस यही है,

किंतु यह बस बड़ा बस है,

इसी बस से सब विरस है।

उत्तर: एक ही शब्द बस’ का अनेक बार प्रयोग और अलग-अलग अर्थ में प्रयोग कर कवि ने यमक अलंकार से भी अनोखा उदाहरण प्रस्तुत किया है। सबसे पहले कवि कहता है कि मैं बिलकुल ठीक हूँ, बस अर्थात् केवल यह बात है कि घर पर आपके साथ नहीं हूँ। कवि आगे कहता है कि यह बस अर्थात् केवल अपने-आप में बड़ी बात है। वह कहना चाहता है कि घर से दूर रहना मामूली बात नहीं। पर इस बस पर वश नहीं है, यह विवशता है। इस विवशता ने सब कुछ विरस अर्थात् रसहीन कर दिया है अर्थात् मात्र घर से दूर रहना जीवन के सभी रसों को सोख रहा है। इन पंक्तियों में बस मात्र केवल, बस वश, नियंत्रण, समापन के अर्थ में प्रयुक्त किया गया है जो एक चमत्कारपूर्ण प्रयोग है। सहज शब्दों में ऐसे प्रयोग भवानी प्रसाद मिश्र ही कर सकते हैं।

प्रश्न. 5. कविता की अंतिम 12 पंक्तियों को पढ़कर कल्पना कीजिए कि कवि अपनी किस स्थिति व मन: स्थिति को अपने परिजनों से छिपाना चाहता है?

उत्तर: कवि जेल में है। वह सावन को कहता है कि वह उसके परिवार वालों को उसकी निराशा के बारे में न बताए। यहाँ का दुखदायी माहौल, कवि का मौन रहना, आम आदमी से दूर भागना, रातभर जागते रहना, तनाव व निराशा के कारण स्वयं तक को न पहचानना आदि स्थितियाँ नहीं बताने का आग्रह करता है। वह उसे चेतावनी भी देता है कि वह कहीं सब कुछ सही न बक दे। उसके बताने के तरीके से भी परिवार वालों को संदेह नहीं होना चाहिए। कवि अपने माता-पिता को कोई पीड़ा नहीं देना चाहता। वह उन्हें खुश देखना चाहता है।

कविता के आस-पास

प्रश्न. 1. ऐसी पाँच रचनाओं का संकलन कीजिए जिसमें प्रकृति के उपादानों की कल्पना संदेशवाहक के रूप में की गई है।

उत्तर: पुस्तकालय में जाकर ‘मेघदूत’, ‘भगवान के डाकिए’ जैसी पाँच रचनाएँ संकलित कीजिए।

प्रश्न. 2. घर से अलग होकर आप घर को किस तरह से याद करते हैं? लिखें।

उत्तर: घर हमारे लिए स्वर्ग-सा सुखकर और सबसे आत्मीय स्थान होता है। घर से दूर रहकर भी हमारा मन पल-पल घर के विषय में ही कल्पनाएँ करता रहता है। हर परिस्थिति में हम सोचते रहते हैं कि इस समय मेरे घर में क्या हो रहा होगा, मेरी माँ क्या कर रही होंगी? मेरे पिता जी क्या कर रहे होंगे ? मेरे भाई-बहन मुझे याद कर रहे होंगे। कोई त्योहार हो या मौसम बदले, सरदी-गरमी-वर्षा हर परिवर्तन हमने अपने घर में देखा है तो घर से दूर होने पर हम हर स्थिति में यही सोचते हैं कि यहाँ तो ऐसा है, पर मेरे घर में वही हो रहा होगा जो मेरे सामने होता था। घर का सुख, घर के भोजन का स्वाद तक हमें याद रहता है। संसार के किसी भी कोने में हम नए-नए पकवानों की तुलना भी अपने घर के खाने से करते। रहते हैं। विदेश जाकर अपने त्योहार, संस्कार-पूजा के तरीके, घर की धूप-छाँव, पेड़-पौधे, पशु-पक्षी सब कुछ को याद करते हैं। उसे जीवन का सहारा, शरण-स्थली मानते हैं।

अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

प्रश्न. 1. पानी गिरने का क्या अर्थ है? इसका परिणाम लिखिए।

उत्तर: पानी गिरने के दो अर्थ हैं-एक तो सावन की झड़ी लगी है और लगातार वर्षा हो रही है दूसरा, यह कि कवि के नेत्रों से अश्रुधारा बह रही है। इसका परिणाम यह हुआ कि कवि के प्राण और मन घर की याद में घिर गए हैं। उसकी सजल आँखों में उसका घर तैरने लगा है।

प्रश्न. 2. ‘घर की याद’ के साथ-साथ कवि को और कौन याद आ रहा है?

उत्तर: घर के साथ-साथ कवि को अपने चार भाई जो उसकी भुजा के समान हैं, याद आ रहे हैं। उसे अपनी चार प्यारी बहनें याद आ रही हैं जो सावन में मायके आई होंगी। उसे अपनी माँ और पिता जी की भी याद आ रही है जिनका स्नेह यहाँ तक अर्थात् कवि तक फैला हुआ है।

प्रश्न. 3. कवि का भरा-पूरा घर आज ‘परिताप का घर’ क्यों है?

उत्तर: कवि के घर में सुख और स्नेह के सब साधन हैं। चार मज़बूत भुजाओं जैसे भाई, सदा प्यार करनेवाली बहनें, ममत्व बिखेरती माँ और प्रोत्साहन देनेवाले पिता जी से घर भरा हुआ है। आज जब कवि जेल में है तो उसके अभाव ने घर के प्रत्येक सदस्य को दुखी कर दिया है, जिससे कवि का घर अपने-आप में परिताप का घर बन गया है।

प्रश्न. 4. ‘केवल स्त्रियों को ही घर का मोह नहीं सताता’–कविता के आधार पर सिद्ध कीजिए।

उत्तर – ‘घर की याद’ कविता पुरुषों की भावुकता का परिचय देती है। कवि घर के एक-एक सदस्य के साथ स्नेह और प्रेम के बंधन में बँधा है। उसकी स्मृतियाँ इतनी भाव भरी हैं कि स्त्रियों के मन से कहीं ज्यादा ही हैं, कम नहीं। कवि के मोह की विशालता का ही परिचायक है उसका देश-प्रेम, जिसके चलते वह अपना घर-द्वार स्नेह संसार छोड़कर जेल तक पहुँच गया है। जेल में कवि घर को जैसे याद कर रहा है, उससे स्वतः सिद्ध हो रहा है कि उसके मन में कितना मोह है।

प्रश्न. 5. ‘घर की याद’ कविता का प्रतिपाद्य स्पष्ट करें।

उत्तर: घर की याद’ कविता की रचना जेल में की गई है। इसमें सावन की बरसात में कवि को अपने घर की याद आती है। वह पिता जी को सिर्फ अपनी सुखात्मक अनुभूतियाँ कराना चाहता है। इसके लिए वह सावन को सब कुछ बताकर भी उसे सिर्फ अच्छी बातें बताने के लिए कहता है। यदि पिता को जेल के कष्ट व कवि की मानसिक दशा का पता चलेगा तो वे बहुत दुखी होंगे। कवि पिता की तुलना बरगद के वृक्ष से करते हैं। वे बुढ़ापे में शारीरिक कार्य करते हैं, व्यायाम करते हैं, हँसमुख हैं, परंतु दिल बेहद संवेदनशील व कोमल है।

प्रश्न. 6. ‘देखना सबक न देना’ के स्थान पर देखना कुछ कह न देना’ के प्रयोग से काव्य सौंदर्य में क्या अंतर आ जाता?

उत्तर: कवि यदि ‘बक’ के स्थान पर ‘कह’ शब्द रख देता तो कथन का विशिष्ट अर्थ समाप्त हो जाता। ‘बकना’ शब्द खीझ को व्यक्त करता है, जबकि ‘कहना’ सामान्य शब्द है। अतः ‘बक’ शब्द विशिष्ट अर्थ को दर्शाता है।

प्रश्न. 7. कवि के साहसी पिता आज कच्चे क्यों हो गए हैं।

उत्तर: कवि के पिता जो साहस की जीती-जागती मिसाल हैं आज अपने प्रिय पुत्र को याद करते हुए कच्चे हो गए हैं। वे सोच रहे हैं कि उनका बेटा जेल में कितनी यातनाएँ सह रहा है, उनका दुखी हृदय इस बोझ को नहीं सँभाल पाता और उनकी आँखों से आँसू बहने लगते हैं।

प्रश्न:- 8. कवि बादलों से कौन-सा संदेश छिपाने को कह रहा है?

उत्तर:- कवि यह नहीं चाहता कि जेल के कष्टों के विषय में उसके परिजनों को पता लगे। अतः वह बादलों से कहता है कि घर से दूर रहकर वह बड़ी दुखी है, यह बात घर तक मत पहुँचाना। उन्हें मत बताना कि मैं अस्त हूँ और स्वयं नहीं जानता कि मैं कौन हूँ। हे सावन! मेरे परिजनों के समक्ष मेरा कोई दुख मत बताना।

प्रश्न. 9. ‘तुम बरस लो वे न बरसे’–किसने, किससे और क्यों कहा है?

उत्तर:– कवि ने सावन से कहा है कि तुम बरस लो लेकिन मेरे माता-पिता की आँखों से आँसू न गिरें। सावन से यह आग्रह करते हुए कवि के मन में यह भाव है कि उसके माता-पिता दुखी न हों; खुश रहें।

प्रश्न. 10. कवि अपने परिजनों को खुश करने के लिए क्या संदेश भेजना चाहता है?

उत्तर:–  कवि कहता है-मैं व्यस्त हूँ, मस्त हूँ। ढेर सारा भोजन खाता हूँ, मेरा वजन सत्तर सेर है। यहाँ खूब कूद-फाँद करता हूँ। दुखों को दूर धकेल देता हूँ। मैं मजे में हूँ, आप लोग मेरे लिए शोक मत कीजिए।

प्रश्न. 11. माँ, पिता जी को क्या कहकर शांत करती है?

उत्तर:– माँ कहती है कि आपका भवानी वहाँ ठीक है, आपकी परंपरा को निभाने और आपका नाम रोशन करने ही तो वह जेल गया है। यदि आप रोएँगे तो सभी बच्चे भी रोने लगेंगे। अतः आप शांत हो जाइए।

प्रश्न. 12. कवि ने अपनी माँ के विषय में क्या बताया है?

उत्तर:- कवि की माँ अनपढ़ है। पुत्र-प्रेम तथा सरल मातृत्व स्वाभाविक गुण पाठशाला में नहीं पढ़ाए जाते। यह समझाने के लिए। कवि अपनी माँ का परिचय दे रहा है। उसकी माँ सीधी-सादी और आडंबरों से दूर है।

कारागृह में कवि का वजन कितना ओर कैसे हुआ है?

पाँचवें को वे न तरसें । कविता के साथ 1. पानी के रात भर गिरने और प्राण-मन के घिरने में परस्पर क्या संबंध है ?

जेल में कवि का वजन कितने किलोग्राम हो गया था?

जब उन्हें सज़ा सुनाई गई थी तो उनका वजन 104 किलो था जबकि आज यह 84 किलो हो गया है.

कवि जेल में क्या करने में व्यस्त था *?

बैलों की जगह कोल्हू में उसे जुतकर काम करना पड़ा।