Homeछत्तीसगढ़ सामान्य अध्ययनछत्तीसगढ़ में सीमेंट उद्योग | Cement Factory in Chhattisgarh | CG GK in Hindi January 27, 2022 Show • छत्तीसगढ़ में अनेक सीमेंट कारखाने स्थापित हैं। • सीमेंट के लिए आवश्यक कच्चा माल यहां बहुतायत मात्रा में उपलब्ध है। • छत्तीसगढ़ में सीमेंट उद्योग (Cement Industry in CG) निजी क्षेत्र में हैं। • वर्तमान में छत्तीसगढ़ में 7 वृहद एवं अनेक छोटे सीमेंट संयंत्र स्थापित हैं। • छत्तीसगढ़ में सीमेंट का सर्वाधिक कारखाना बलौदा बाजार में स्थापित। इस कारण बलौदाबाजार जिले को "सीमेंट का हब" कहा जाता है। • छत्तीसगढ़ के मध्य भाग में चूना पत्थर की प्रचुरता है इसलिए इन क्षेत्रों में अधिक सीमेंट उद्योग स्थापित है। • छत्तीसगढ़ के वृहद सीमेंट संयंत्र -
• छत्तीसगढ़ के अन्य सीमेंट संयंत्र -
रेडमड जो कि एक खतरनाक ठोस अपशिष्ट है, उसे संयंत्र से 5.6 किमी दूर विशेष प्रकार के पॉलीथीन एवं कंक्रीट की परत से बने लीक प्रूफ विशाल पोखरों में एकत्रित किया जाता है। रेडमड पर भवन निर्माण सामग्री, फेराइट सीमेंट, टाइल्स इत्यादि बनाने के अनुसन्धान किये जा रहे हैं। रेडमड भण्डारण के लिये नई तकनीक की खोज की जा रही है जिससे पुराने भरे पोखरों के ऊपर ही सूखी रेडमड का भण्डारण किया जा सके।एल्युमिना संयंत्र में एल्युमिना चूर्ण के कण व गैस उत्सर्जन को नियंत्रित करने हेतु इलेक्ट्रोस्टेटिक प्रेसीपिटेटर्स लगाए गए हैं ताकि उत्सर्जन निर्धारित मानकों के अनुरूप रहे। औद्योगिक संरचना - वृहद, मध्यम और लघु उद्योग सामाजिक एवं आर्थिक विकास के साथ ही औद्योगिक विकास भी जुड़ा हुआ है। औद्योगीकरण आर्थिक विकास का एक प्रमुख सोपान है। पिछड़ी एवं विकासशील अर्थव्यवस्था वाले क्षेत्रों के लिये औद्योगीकरण के माध्यम से उद्योगों के विकास के साथ ही साथ कृषि उत्पादन, रोजगार तथा राष्ट्रीय आय में वृद्धि को भी प्रोत्साहन मिलता है। ब्राइस के अनुसार औद्योगिक विकास की महत्ता को इन शब्दों में व्यक्त किया गया है, “विकास के किसी भी सुदृढ़ कार्यक्रम में औद्योगिक विकास हमारे युग का एक महान युग धर्म बन चुका है। यह एक ऐसा अभियान है, जिसमें विकसित राष्ट्र गैर औद्योगिक देशों के औद्योगिक विकास की बढ़ती माँगों की पूर्ति की दिशा में परस्पर प्रतिस्पर्धा करते हैं। यह एक प्रयास है, जिसकी ओर सभी अल्प विकसित राष्ट्र अपनी निर्धनता, असुरक्षा एवं जनसंख्या वृद्धि की समस्याओं के निराकरण हेतु आशापूर्ण दृष्टि से देखते हैं। वस्तुतः अब औद्योगीकरण सम्पूर्ण विश्व में वर्तमान सदी का एक अभियान बन चुका है।” (Brice, 1965, 3-5) औद्योगीकरण की प्रक्रिया द्वारा क्षेत्र विशेष की अवरुद्ध अर्थव्यवस्था में विकास की ऐसी परम्परा विकसित होती है, जिससे आर्थिक स्तर में वृद्धि होती है। “Industrialisation is an economic process by which structural transformation of an subsistence economy is achieved” [Heggade, 1993, 17] “प्राकृतिक संसाधनों के विभिन्न प्रयोग तथा समुचित दोहन औद्योगीकरण द्वारा ही सम्भव है।” (अग्रवाल, 1994, 97) इस प्रकार औद्योगीकरण का प्रमुख उद्देश्य खनिज एवं कृषि जन्य पदार्थों के सन्तुलित उपयोग एवं ऊर्जा के साधनों के विकास के माध्यम से विस्तृत पूँजी निवेश द्वारा वृहद स्तर पर वस्तुओं का उत्पादन सम्भव बनाना है। औद्योगीकरण की प्रक्रिया के अन्तर्गत उद्योगों की स्थापना के साथ-साथ उद्योग में संरचनात्मक परिवर्तन तथा तकनीकी सुधार एवं आर्थिक विकास के संगठन को भी सम्मिलित किया जाता है। उद्योगों में उत्पादकता अधिक होती है तथा ये कम उत्पादकता वाले कृषि क्षेत्र से श्रम को आकर्षित करते हैं। यूजीन स्टेले के अनुसार “उच्च उत्पादकता औद्योगीकरण की प्रक्रिया का एक अभिन्न अंग है तथा ये दोनों एक दूसरे से परस्पर सम्बन्ध एवं प्रभावित होते हैं।” (Staley, Ed. R.S. Kulshresth, 1999, 7) क्षेत्र विशेष की उन्नति में उद्योगों का विशेष महत्व है। उद्योगों के अन्तर्गत ऐसी समस्त प्रक्रियाएँ सम्मिलित की जाती हैं, जिनके द्वारा समाज की आर्थिक आवश्यकताओं को पूर्ण करने हेतु प्राकृतिक संसाधनों से उपयोगिता का सृजन किया जाता है। पी.एस. फ्लोरेन्स के अनुसार “सामान्य अर्थों में, उद्योगों से आशय निर्माण क्षेत्र से है तथा कृषि, खनिज एवं अधिकांश सेवाएँ इसके अन्तर्गत आती हैं। इस प्रकार उद्योग एक आर्थिक क्रिया है जिसमें मुख्यतया स्वरूप या उपयोगिता प्रदान की जाती है। इसमें कच्चे पदार्थों से उपभोग्य तथा पूँजीगत वस्तुओं का निर्माण किया जाता है।” (उपाध्याय, 1995, 20) उत्पादन के आधार पर उद्योगों को निम्नांकित वर्गों में वर्गीकृत किया जाता है (1) वृहद उद्योग, (2) मध्यम उद्योग (3) लघु उद्योग तथा (4) अति लघु उद्योग। 01. वृहद उद्योग :- वह प्रतिष्ठान, जिसमें संरचना एवं मशीनरी में विनियोजन 05 करोड़ रुपए से अधिक हो, वृहद उद्योग की श्रेणी में आता है। 02. मध्यम उद्योग :- वह प्रतिष्ठान, जिसमें संरचना एवं मशीनरी में विनियोजन 01 करोड़ रुपए से 05 करोड़ रुपए तक हो, मध्यम उद्योग की श्रेणी में आता है। 03. लघु उद्योग :- वह प्रतिष्ठान, जिसमें स्थित परिसम्पत्तियों अर्थात संरचना एवं मशीनरी में विनियोजन 01 करोड़ रुपयों से अधिक न हो, लघु उद्योग की श्रेणी में आता है। 04. अति लघु उद्योग वे उद्योग हैं, जिनमें संयंत्र व मशीनरी में विनियोजन 25 लाख रुपए से अधिक न हो। लघु उद्योग एक व्यापक क्षेत्र है, जिसमें लघु, अति लघु तथा कुटीर उद्योग के क्षेत्र उद्योग शामिल हैं और इस क्षेत्र का भारतीय अर्थव्यवस्था के नियोजित विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान है। (लघु उद्योग क्षेत्र, लघु कृषि एवं ग्रामीण उद्योग मंत्रालय, 1999)। ऐसे उद्योग जो मुख्यतः परिवार के सदस्यों की सहायता से पूर्ण कालिक अथवा अंशकालिक रोजगार की तरह संचालित किये जाते हैं, कुटीर उद्योग कहलाते हैं। 1. वृहद उद्योग :- देश की अर्थव्यवस्था को आत्मनिर्भर एवं स्वावलम्बी बनाने हेतु व्यापक औद्योगिक विकास, विशेषतः आधारभूत तथा पूँजीगत उद्योगों का विकास परमावश्यक है। प्रचुर खनिज एवं वन सम्पदा से युक्त छत्तीसगढ़ उन कतिपय राज्यों में से एक है, जहाँ औद्योगिक क्षेत्र में पर्याप्त विकास की सम्भावनाएँ है। औद्योगिक विकास के मूलभूत उद्योग जैसे लोहा तथा इस्पात एवं रासायनिक उद्योगों का कच्चा माल खनिज पदार्थ ही है। छत्तीसगढ़ का औद्योगिक स्वरूप कृषि पर आधारित उद्योगों से उच्च स्तरीय वैज्ञानिक प्रक्रिया पर आधारित ऐसे उद्योगों की ओर परिवर्तित हो रहा है, जिसमें धातु व खनिज का उपयोग अधिक हो रहा है। वृहद एवं मध्यम स्तरीय उद्योगों के अन्तर्गत वर्तमान में प्रदेश में 165 औद्योगिक इकाइयाँ स्थापित हुई हैं, जिन्हें निम्नांकित श्रेणियों में विभक्त किया जा सकता है :- क. लौह इस्पात उद्योग औद्योगिक संरचना के दृष्टिकोण से प्रदेश में कार्यरत इंजीनियरिंग तथा फैरोएलाय उद्योग की संख्या 44 है, जिनमें से रायपुर में 26, दुर्ग में 20, राजनांदगांव में 1, बिलासपुर में 1 तथा रायगढ़ में 1 इकाई कार्यरत है। खाद्य आधारित उद्योग की संख्या 28 है, जिनमें से रायपुर में 11, राजनांदगांव में 6, महासमुन्द में 4, भिलाई में 3, धमतरी में 2, रायगढ़ में 1 तथा बिलासपुर में 1 इकाई कार्यरत है। रासायनिक उद्योग के अन्तर्गत प्रदेश में 18 इकाइयाँ कार्यरत हैं, जिनमें से दुर्ग में 6, रायपुर में 7, बिलासपुर में 2 तथा राजनांदगांव में 3 इकाइयाँ स्थापित हैं। सीमेंट उद्योग के अन्तर्गत 13 इकाइयाँ कार्यरत हैं, जिनमें से रायपुर में 5, दुर्ग में 2, जांजगीर चांपा में 2, बस्तर में 2 तथा रायगढ़ में 2 इकाई स्थापित है। वनोपज आधारित उद्योगों के अन्तर्गत 11 इकाइयाँ कार्यरत है, जिनमें से रायगढ़ में 4, बस्तर में 2, रायपुर में 3, बिलासपुर तथा जांजगीर चांपा में 1-1 इकाई स्थापित है। लौह इस्पात उद्योग की संख्या 9 है, जिनमें से रायपुर में 3, दुर्ग में 2, रायगढ़ में 2, बिलासपुर में 1 तथा जांजगीर-चांपा में 1 इकाई स्थापित है। विस्फोटक पदार्थ उत्पादक इकाइयाँ मुख्यतः कोरबा में स्थित हैं, इन इकाइयों की संख्या 3 है। वस्त्र उद्योग मुख्यतः रायपुर में स्थापित है इन इकाइयों की संख्या 3 है। एल्युमिनियम उद्योग एकमात्र कोरबा जिले में स्थापित है। क. लौह इस्पात उद्योग :- “Iron and steel being one of the important ingredients of the industrial agricultural and infrastructural sectors of an economically, its production plays a vital role in the economic development of a country” (Saxena and Rath, 1991, 3) “किसी देश की लौह इस्पात की उत्पादन क्षमता उस देश की आर्थिक समुन्नति एवं सैनिक शक्ति का मापदण्ड है, क्योंकि न केवल शान्ति काल में आर्थिक विकास के लिये ही यह मौलिक तत्व है प्रत्युत युद्ध काल में देश रक्षा के लिये भी युद्ध सामग्री बनाने हेतु उत्तम तथा विविध प्रकार के इस्पात आवश्यक है।” (सिंह एवं सिंह, 2001, 338) छत्तीसगढ़ प्रदेश में लौह इस्पात उद्योगों की स्थापना में खनिज संसाधनों की सम्पन्नता सहायक सिद्ध हुई है। प्रदेश में लौह अयस्क के 21032.6 लाख टन के संचित भण्डार पाए गए हैं, जो इस क्षेत्र में स्थापित लौह इस्पात तथा स्पंज आयरन उद्योग की स्थापना के आधारभूत तत्व हैं। वर्तमान में प्रदेश में इस्पात एवं स्पंज आयरन की 9 वृहद मध्यम इकाइयाँ कार्यरत है, जिनमें रायपुर में 3, दुर्ग में 2, रायगढ़ में 2, बिलासपुर 1 तथा चांपा में 1 लौह इस्पात एवं स्पंज आयरन इकाई स्थापित है। जिनका विवरण निम्नांकित है -
प्रदेश में स्थापित इस्पात उद्योगों में स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया, भिलाई इस्पात संयंत्र का स्थान सर्व प्रमुख है। वर्ष 1959 में स्थापित इस संयंत्र में वर्तमान पूँजी निवेश 60857.47 लाख रुपए तथा रोजगार प्राप्त व्यक्तियों की संख्या 63291 है। लौह इस्पात उद्योग के अतिरिक्त प्रदेश में स्पंज आयरन उद्योगों की शृंखला विकसित हुई है। प्रायः भारी उद्योगों के स्थापित होने के दो कारण, प्रथम कच्चा माल, द्वितीय परिवहन के साधन मुख्य होते हैं। इसी आधार पर प्रदेश में स्पंज आयरन उद्योग स्थापित हुए हैं। 23 मार्च, 1991 को रायगढ़ के पतरापाली नामक स्थान पर जिन्दल स्ट्रीप्स लिमिटेड की स्थापना 47802.26 लाख रुपयों के पूँजी निवेश के साथ हुई। संयंत्र का प्रमुख उत्पाद पिग आयरन (5 लाख मीट्रिक टन वार्षिक) तथा स्पंज आयरन (16 लाख मीट्रिक टन वार्षिक) है। मार्च 1992 में दुर्ग जिले के औद्योगिक क्षेत्र बोरई में एच.ई.जी. लिमिटेड की स्थापना हुई। संयंत्र का प्रमुख उत्पाद स्पंज आयरन (4,50,000 मीट्रिक टन वार्षिक) है। संयंत्र में पूँजी निवेश तथा रोजगार की मात्रा क्रमशः 10,600.00 लाख रुपए तथा 805 है। 01 अक्टूबर 1993 को चांपा जिले में 21,800.00 लाख रुपयों के पूँजी निवेश के साथ मुम्बई हावड़ा मुख्य रेलमार्ग के समीप प्रकाश इंडस्ट्रीज लिमिटेड की स्थापना हुई संयंत्र का प्रमुख उत्पाद स्पंज आयरन (1.5 लाख टन वार्षिक), रोल्ड प्रोडक्ट्स (1.36 लाख टन वार्षिक) तथा लिक्विड स्टील (2.50 लाख टन वार्षिक) है। संयंत्र में कार्यरत व्यक्तियों की संख्या 950 है। 20 जनवरी, 1993 को रायपुर जिले के औद्योगिक क्षेत्र में सिलतरा में रायपुर एलॉय एण्ड लिमिटेड की स्थापना 5006.00 लाख रुपयों के विनियोजन के साथ हुई। संयंत्र का प्रमुख उत्पाद स्पंज आयरन (60,000 मीट्रिक टन वार्षिक) है। रोजगार की मात्रा 400 है। 7 फरवरी, 1994 को रायपुर जिले में राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 6 पर स्थित मन्दिर हसौद नामक स्थान पर मोनेट इस्पात संयंत्र की स्थापना 1594.20 लाख रुपयों के पूँजी निवेश के साथ हुई। संयंत्र का प्रमुख उत्पाद स्पंज आयरन (1,00,000 मीट्रिक टन वार्षिक) है। रोजगार प्राप्त व्यक्तियों की संख्या 159 है। 01 अक्टूबर, 1994 को बिलासपुर जिले के अन्तर्गत दगोरी में नोवा आयरन एण्ड स्टील लिमिटेड की स्थापना 18300.00 लाख रुपयों के पूँजी निवेश के साथ हुई। संयंत्र का प्रमुख उत्पाद स्पंज आयरन (1.5 लाख टन वार्षिक) है। कार्यरत श्रमिकों की संख्या 11 है। 22 सितम्बर, 1996 को रायपुर जिले के औद्योगिक क्षेत्र सिलतरा में जायसवाल निको लिमिटेड की स्थापना 39,900 लाख रुपयों के पूँजी निवेश के साथ हुई। संयंत्र के प्रमुख उत्पाद पिग आयरन (5 लाख टन वार्षिक), ग्रेन्युलेटेड स्लैग (2.75 लाख टन वार्षिक) है। रोजगार प्राप्त व्यक्तियों की संख्या 690 है। 30 अप्रैल, 1995 को रायगढ़ जिले के अन्तर्गत खैरपुर नामक स्थान पर रायगढ़ इलेक्ट्रोड प्रा. लि. की स्थापना हुई। जिसमें पूँजी निवेश की मात्रा 96.29 लाख रुपए है। संयंत्र का प्रमुख उत्पाद स्पंज आयरन (15000 मीट्रिक टन) है। रोजगार की मात्रा 50 है। उपर्युक्त सभी संयंत्र मुख्यतः रेल एवं सड़क मार्गों के निकट स्थापित हुए हैं। इस प्रकार प्रदेश में स्थापित 9 लौह अयस्क एवं स्पंज आयरन उद्योगों में कुल पूँजी निवेश की मात्रा 205956.22 लाख रुपए तथा रोजगार की मात्रा 68094 है। उपर्युक्त लौह इस्पात इकाइयों में सर्वेक्षित इस्पात एवं स्पंज आयरन संयंत्रों का विवरण निम्नानुसार है :- भिलाई इस्पात संयंत्र “Iron and steel industry is a key industry of national important, the development of various industrial activities in the country is linked with its development” (Chaudhury, 1964, 4) द्वितीय पंचवर्षीय योजना के अन्तर्गत 2 फरवरी, 1955 को भारत तथा सोवियत संघ समझौते के तहत तकनीकी आर्थिक सहयोग से इस संयंत्र की आधारशिला रखी गई। संयंत्र की वर्तमान उत्पादन क्षमता 40 लाख टन इस्पात उत्पादन की है। यह संयंत्र प्रदेश के दुर्ग जिले में मुम्बई हावड़ा मुख्य रेलमार्ग पर भिलाई नामक स्थान पर स्थापित है। संयंत्र स्थल हेतु भिलाई का चयन 14 मार्च, 1955 को इस दृष्टिकोण से किया गया कि प्रथम, यहाँ इस्पात संयंत्र हेतु आवश्यक संसाधन जैसे लौह खनिज, चूना पत्थर, कोयला, मैग्नीज समीपवर्ती क्षेत्रों में उपलब्ध हैं, द्वितीय शिवनाथ तथा खारुन नदी इस क्षेत्र में प्रवाहित होती है। संयंत्र स्थापना के समय यह क्षेत्र पूर्णतः पिछड़ा हुआ था। अतः संयंत्र के लिये स्थान तथा श्रमिकों की कोई समस्या नहीं थी। परिवहन की दृष्टि से मुम्बई हावड़ा रेलमार्ग तथा राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 6 इस क्षेत्र से होकर गुजरते हैं। उपरोक्त सभी कारणों के परिणामस्वरूप, भिलाई, जो इस्पात संयंत्र की स्थापना से पूर्व पन्द्रह अज्ञात गाँवों का समूह मात्र था, वर्तमान में देश का प्रमुख औद्योगिक तीर्थ है। संयंत्र में जनवरी 1959 में पहली कोक ओवन बैटरी प्रारम्भ की गई तथा 4 जनवरी, 1959 को ब्लास्ट फर्नेस क्रमांक-1 प्रारम्भ हुआ। 22 फरवरी, 1961 को निर्माण का प्रथम चरण पूरा किया गया इसके साथ ही भिलाई इस्पात संयंत्र सार्वजनिक क्षेत्र में निर्मित तथा निर्धारित क्षमता को प्राप्त करने वाला प्रथम इस्पात संयंत्र बन गया। प्रथम चरण के निर्माण में 201 करोड़ रुपए की लागत आई। प्रथम चरण का कार्य पूर्ण होने के पूर्व ही भारत तथा सोवियत सरकार के मध्य 25 लाख टन इनगाट इस्पात वार्षिक उत्पादन क्षमता तक विस्तार हेतु 12 सितम्बर, 1959 को सहमति हुई। इस चरण में वायर रॉड मिल का निर्माण, ओपन हर्थ भट्टियों की क्षमता में वृद्धि व ब्लास्ट फर्नेस का आकार बढ़ाया गया। प्रथम चरण की सभी ओपन हर्थ भट्टियाँ 250 टन क्षमता की थीं। इनमें से एक को 500 टन क्षमता का किया गया तथा 500 टन क्षमता की चार भट्टियाँ और बनाई गई। भारत और सोवियत सरकार के बीच सितम्बर 1959 की सहमति के आधार पर 16 अगस्त, 1960 को हिन्दुस्तान स्टील लिमिटेड और त्याज प्रोमेक्सपोर्त के मध्य भिलाई इस्पात संयंत्र के विस्तार हेतु अनुबन्ध हुआ। विस्तार कार्य का प्रारम्भ अगस्त 1962 में किया गया तथा 150 करोड़ रुपयों की लागत से 01 सितम्बर, 1967 तक पूरा कर लिया गया। 1962 में भारत-चीन युद्ध के पश्चात 32 लाख टन इन गाट इस्पात वार्षिक उत्पादन क्षमता हेतु द्वितीय विस्तार की योजना पर विचार किया गया। इस सम्बन्ध में भारत और पूर्व सोवियत संघ के मध्य 10 दिसम्बर, 1966 को अनुबन्ध किया गया। इसके तहत संयंत्र की क्षमता 32 लाख टन वार्षिक के स्थान पर 40 लाख टन इनगाट इस्पात वार्षिक करने का निर्णय लिया गया जिसे 27 अक्टूबर, 1988 को पूर्ण कर देश का वृहद इस्पात संयंत्र राष्ट्र को समर्पित किया गया। इसके साथ ही भिलाई इस्पात संयंत्र की कुल लागत 2300 करोड़ रुपए हो गई। उद्योग का स्थानीयकरण :- लौह इस्पात उद्योग के स्थानीयकरण के तीन प्रमुख कारक कच्चा माल, शक्ति के साधन तथा बाजार महत्त्वपूर्ण हैं, जिनके पारस्परिक खिंचाव के सन्तुलन बिन्दु पर इस उद्योग का स्थानीयकरण होता है। जिस स्थान पर इन कारकों का संगम समान बिन्दु पर होता है, वह स्थान इस उद्योग के स्थानीयकरण हेतु सर्वोत्तम केन्द्र माना जाता है। इस दृष्टि से भिलाई इस्पात संयंत्र की स्थिति उपयुक्त है। यह संयंत्र कच्चे माल के क्षेत्र तथा परिवहन मार्गों के मध्य स्थित है। प्रमुख कच्चे माल तथा आपूर्ति के स्रोत :- लौह इस्पात उद्योग हेतु प्रयुक्त कच्चा माल वजन में भारी होता है। प्रति टन इस्पात के निर्माण में 1.75 टन खनिज लौह, 1.75 टन कोयला, 1.5 टन चूना पत्थर तथा अन्य खनिज पदार्थों की आवश्यकता होती है। इस प्रकार 4.5 टन भार के कच्चे माल से निर्मित इस्पात का वजन केवल 1 टन होता है। स्पष्ट है कि यह सभी पदार्थ सकल कच्चे पदार्थों की श्रेणी में आते हैं जो अत्यधिक भार खोने वाले पदार्थ हैं। वेबर की शब्दावली अनुसार इस उद्योग का पदार्थ निर्देशांक बहुत अधिक है। संयंत्र हेतु आवश्यक प्रमुख कच्चे माल लौह अयस्क, चूना पत्थर, डोलोमाइट, मैग्नीज एवं बाक्साइट तथा कोयला है। लौह अयस्क की आपूर्ति संयंत्र से 90 किमी दक्षिण-पश्चिम दिशा में स्थित राजहरा खदान से रेल तथा सड़क मार्ग द्वारा की जाती है। संयंत्र की ये निजी खदानें 10929.80 एकड़ क्षेत्र में फैली हुई है। चूना पत्थर 20 किमी उत्तर दिशा में स्थित नन्दिनी तथा 286 किमी दूर कटनी से, डोलोमाइट 135 किमी दूर बिलासपुर जिले में स्थित हिर्री खदान से, मैग्नीज 200 किमी दूर बालाघाट एवं नागपुर से, बाक्साइट 486 किमी दूर टिकरिया से तथा कोयले की आपूर्ति बिहार तथा पश्चिम बंगाल से की जाती है। लौह उद्योग के स्थानीयकरण में जल की सुलभता एक महत्त्वपूर्ण कारक है। संयंत्र को जल की आपूर्ति तांदुला नहर तथा मरौदा टैंक से की जाती है। उत्पादन क्षमता तथा उत्पादन प्रतिरूप :- संयंत्र की विभिन्न इकाइयों का वर्गीकरण, उत्पादन क्षमता निम्नांकित है :-
विभिन्न वर्षों में संयंत्र द्वारा उत्पादित वस्तुवार उत्पादन तालिका 5.3 में दृष्टव्य है। क्षमता के उपयोग दृष्टिकोण से भिलाई इस्पात संयंत्र का भारतीय इस्पात प्राधिकरण के संयंत्रों में महत्त्वपूर्ण स्थान है। संयंत्र द्वारा उत्पादित उत्पादों का विभिन्न देशों ब्रिटेन, अमरीका, जापान, इटली, मिस्र, श्रीलंका, दुबई, ताइवान, ईरान, तुर्की, सूडान, घाना, दक्षिण कोरिया, मलेशिया तथा न्यजीलैण्ड को निर्यात किया जाता है। भिलाई इस्पात संयंत्र भारतीय रेलवे, नौसेना तथा तेल निगम की आवश्यकतानुसार विशेष इस्पात का निर्माण भी करता है। कर्मचारियों को प्रदत्त सुविधाएँ : इस्पात नगरी भिलाई 13391.88 एकड़ क्षेत्र में फैली हुई है, जहाँ 63291 कर्मचारी कार्यरत है। यहाँ 16 सेक्टरों में 36,111 आवास गृह बनाए गए हैं साथ ही कुल 60 शालाएँ भी संयंत्र के माध्यम से संचालित की जा रही है। यहाँ 11 स्वास्थ्य केन्द्र तथा 5 चिकित्सालय है। 900 बिस्तरों वाला जवाहर लाल नेहरू चिकित्सालय तथा अनुसन्धान केन्द्र भिलाई का मुख्य चिकित्सालय है। कर्मचारियों के मनोरंजन हेतु संयंत्र द्वारा विभिन्न मनोरंजन केन्द्र, क्लब एव पार्क की व्यवस्था की गई है। संयंत्र द्वारा भिलाई से 16 किमी की परिधि में आने वाले गाँवों के विकास हेतु हैंडपम्पों की स्थापना, कुओं का निर्माण, शाला तथा सांस्कृतिक भवनों के निर्माण के साथ ही गाँवों के लिये पहुँच मार्ग भी बनवाए जा चुके हैं साथ ही इस परिधि में आने वाले गाँवों में निर्धारित अवधि में स्वास्थ्य शिविर भी लगाए जाते हैं। औद्योगीकरण के विस्तार को बढ़ावा देते हुए संयंत्र ने आस-पास के लघु सहायक उद्योग को बढ़ावा दिया तथा उनके निर्माण में भी सहयोग कर सन्तुलित प्रयास किया है। प्रचुर संख्या में फैले इन उद्योगों की धुरी भिलाई इस्पात संयंत्र है।
उपलब्धियाँ : वर्ष 1992-93 से 1995-96 तक सर्वश्रेष्ठ एकीकृत इस्पात संयंत्र के रूप में प्रधानमंत्री ट्रॉफी जीतने का गौरव संयंत्र को प्राप्त है। संयंत्र को प्राप्त अन्य पुरस्कारों में राष्ट्रीय ऊर्जा संरक्षण पुरस्कार, आई.आई.एम. राष्ट्रीय गुणवत्ता पुरस्कार तथा कर्मचारी सुझाव के लिये इंसान पुरस्कार सम्मिलित है। वर्ष 1992 में स्वच्छ एवं हरित अभियान के लिये प्रथम ‘सेल पर्यावरण पुरस्कार’ प्राप्त हुआ। देश में पहली बार भिलाई इस्पात संयंत्र के चार कर्मिकों का चयन देश के सर्वोच्च श्रम पुरस्कार प्रधानमंत्री के श्रमरत्न पुरस्कार के लिये किया गया है। इसके अतिरिक्त संयंत्र के अनेक कर्मिकों ने प्रधानमंत्री का ‘श्रम श्री’ तथा ‘श्रम वीर’ पुरस्कार, ‘एन.आर.डी.सी.’ पुरस्कार तथा ‘विश्वकर्मा’ पुरस्कार जीतने का गौरव प्राप्त किया है। संयंत्र की दल्ली, झरनदल्ली तथा नन्दिनी खदानों ने राष्ट्रीय स्तर पर सुरक्षा पुरस्कार अर्जित किये हैं। कम से कम ऊर्जा का उपयोग कर राष्ट्रीय गुणवत्ता पुरस्कार तथा ऊर्जा पुरस्कार संयंत्र को प्राप्त हुए हैं। भिलाई इस्पात संयंत्र के सहायक उद्योगों का विकास :- छत्तीसगढ़ प्रदेश में उद्योगों की स्थापना के लिये कच्चे माल तथा आधारभूत संसाधन प्रचुर मात्रा में विद्यमान हैं। उपरोक्त तत्व जितनी ज्यादा मात्रा में उपलब्ध होते हैं, उस क्षेत्र का विकास भी उतनी ही तीव्रता से होता है, जिसके फलस्वरूप क्षेत्र विशेष में औद्योगिक पुंज का निर्माण होने लगता है। प्रदेश में भिलाई इस्पात संयंत्र की स्थापना के साथ ही औद्योगिक पुंज का निर्माण प्रारम्भ हुआ। इस इस्पात संयंत्र का विकासकारी प्रभाव छत्तीसगढ़ प्रदेश में विशेष रूप से रायपुर, दुर्ग तथा राजनांदगांव जिले पर पड़ा है। अतः भिलाई, दुर्ग, रायपुर एक औद्योगिक पुंज के रूप में उभर कर सामने आए है। जहाँ मुख्यतः इस्पात संयंत्र के सहायक उद्योगों की स्थापना हुई है। इन उद्योगों का विकास मुख्यतः राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 6 तथा भिलाई नन्दिनी मार्ग पर हुआ है। प्रदेश में प्रमुख इस्पात नगर भिलाई दक्षिण - पूर्व रेल मार्ग पर स्थित एक महत्त्वपूर्ण औद्योगिक केन्द्र है। किसी क्षेत्र में इस्पात संयंत्र की स्थापना उस क्षेत्र की नगरीयकरण एवं आर्थिक परिवर्तन की प्रक्रिया में एक युगान्तकारी विषय हो सकती है। संयंत्र की स्थापना के फलस्वरूप नगर का तेजी से विकास हुआ। जनसंख्या में वृद्धि के फलस्वरूप नगरीकरण व्यापक रूप में हुआ है। इस्पात संयंत्र की स्थापना तथा विस्तार के आर्यकाल में औद्योगिक गतिविधियों में वृद्धि हुई। अधिकांश इकाइयाँ सहायक इकाइयाँ होकर अपने उत्पाद की खपत के लिये भिलाई इस्पात संस्थान पर निर्भर हैं। सहायक उद्योगों की संख्या एवं विकास :- भिलाई इस्पात संयंत्र के सहायक उद्योगों की कुल संख्या 166 है, जिनमें से भिलाई में 106, रायपुर में 29, दुर्ग में 23 तथा राजनांदगांव में 8 सहायक उद्योग स्थापित है। वर्षवार स्थापित इन सहायक उद्योगों की संख्या निम्नांकित है :-
स्पष्ट है कि वर्ष 1980 तक भिलाई इस्पात संयंत्र के सहायक उद्योगों की संख्या 26 थी वर्ष 1990 में 65 नई इकाइयों की स्थापना के साथ ही इनकी संख्या बढ़कर 91 तथा वर्ष 2000 में 75 इकाइयों की स्थापना से बढ़कर 166 हो गई। सहायक उद्योगों की स्थापना की दृष्टि से भिलाई में स्थापित सहायक उद्योगों की संख्या 106 है। वर्ष 1980 में भिलाई में इन उद्योगों की संख्या 22 थी जो वर्ष 1990 में बढ़कर 67 हो गई। वर्ष 2000 में 39 नई इकाइयों की स्थापना के साथ ही इन सहायक उद्योगों की संख्या बढ़कर 106 हो गई। रायपुर में इस्पात संयंत्र के सहायक उद्योगों की संख्या 29 है। वर्ष 1980 में रायपुर में सहायक उद्योग स्थापित नहीं हुए थे। वर्ष 1990 में सहायक उद्योगों की संख्या 9 थी, वर्ष 2000 में 20 नई इकाइयों की स्थापना के साथ ही इनकी संख्या बढ़कर 29 हो गई। दुर्ग में वर्ष 1980 में मात्र 4 सहायक उद्योग स्थापित थे, वर्ष 1990 में 8 नई इकाइयों की स्थापना के साथ ही इनकी संख्या 12 हो गई तथा वर्ष 2000 में 11 नई इकाइयों की स्थापना के फलस्वरूप सहायक उद्योगों की संख्या 23 हो गई। राजनांदगांव में वर्ष 1980 तक सहायक उद्योगों की स्थापना नहीं हुई थी। वर्ष 1990 में मात्र 3 इकाइयाँ स्थापित हुईं। वर्ष 2000 में 5 नई इकाइयों की स्थापना के साथ ही राजनांदगांव में सहायक उद्योगों की संख्या 8 हो गई। संरचना की दृष्टि से सहायक उद्योगों में इंजीनियरिंग तथा फैब्रिकेशन उद्योगों की प्रधानता है इन उद्योगों की कुल संख्या 95 है, जिनमें से भिलाई में 67, दुर्ग में 14, रायपुर में 12 तथा राजनांदगांव में 2 इकाइयाँ स्थापित हैं। खनिज आधारित सहायक उद्योगों की संख्या 33 है जिनमें से भिलाई में 22 रायपुर में 5, दुर्ग में 3 तथा राजनांदगांव में 3 इकाइयाँ स्थापित हैं। रासायनिक उद्योगों की संख्या 20 है, जिनमें से भिलाई में 11, रायपुर में 8 तथा दुर्ग में 1 इकाई स्थापित है। कृषि पर आधारित सहायक उद्योगों की संख्या 3 है इनमें दुर्ग, रायपुर तथा राजनांदगांव में 1-1 इकाई स्थापित है। वनोपज पर आधारित उद्योगों की संख्या 5 है जिनमें से भिलाई, रायपुर तथा राजनांदगांव में 1 एवं दुर्ग में 2 इकाइयाँ स्थापित हैं। अन्य उद्योगों की संख्या 10 है जिनमें से भिलाई में 5, दुर्ग तथा रायपुर में 2 तथा राजनांदगांव में 1 इकाई स्थापित है। भिलाई इस्पात संयंत्र की स्थापना के फलस्वरूप सहायक उद्योगों की स्थापना के साथ-ही-साथ इस क्षेत्र में खनन कार्यों का विकास भी हुआ है। दुर्ग जिले के दक्षिण में भिलाई से लगभग 85 किमी की दूरी पर दल्ली राजहरा की लौह अयस्क खदानें स्थित हैं, जहाँ हेमेटाइट अयस्क प्राप्त है। ये खदानें खुली खदानें है। ये खदानें दो भागों में विभक्त हैं। पूर्व दिशा में स्थित पहाड़ को राजहरा तथा पश्चिम में फैले पहाड़ को दल्ली के नाम से जाना जाता है। राजहरा खदान से संयंत्र के प्रारम्भकाल से अब तक लौह अयस्क की आपूर्ति की जा रही है तथा इस खदान की उत्पादन क्षमता 3.7 मिलियन टन है। दल्ली खदान 245 हेक्टेयर क्षेत्र में फैली हुई एक वृहद खदान है जिसकी वर्तमान उत्पादन क्षमता 4.5 मिलियन टन से अधिक है। राजहरा खदान से कम उत्पादन की स्थिति को ध्यान में रखते हुए यहाँ उत्पादन क्षमता बढ़ाने की सम्भावना है। मोनेट इस्पात लिमिटेड मोनेट इस्पात लिमिटेड एक स्पंज आयरन उद्योग है। स्पंज आयरन उद्योग की महत्त्वपूर्ण विशेषता इसका शत-प्रतिशत स्वदेशी तकनीक पर आधारित होना है। भारत में पहला स्पंज आयरन कारखाना आन्ध्र प्रदेश के भद्राचलम जिले में पालबांचा नामक स्थान पर वर्ष 1981 में स्थापित किया गया जिसकी उत्पादन क्षमता 100 टन प्रतिदिन थी। इस संयंत्र के सफलतापूर्ण संचालन के साथ ही भारत में स्वदेशी स्पंज आयरन निर्माण की तकनीक तथा प्रक्रिया पूर्णतया स्थापित हो गई। वर्ष 1994 में 1594.20 लाख रुपयों की लागत से स्थापित मोनेट इस्पात लिमिटेड, मोनेट उद्योग समूह द्वारा स्थापित एक प्रमुख इकाई है जो रायपुर से 17 किमी दक्षिण में राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 6 चंदखुरी मार्ग पर ग्राम कुरुद, मन्दिर हसौद में स्थित है। इस क्षेत्र में इस उद्योग की स्थापना का प्रमुख कारण उद्योग हेतु इस क्षेत्र की उपयुक्त स्थिति होना है। प्रमुख कच्चे मालों की प्राप्ति के साथ ही यह क्षेत्र राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित है तथा दक्षिण-पूर्व रेल मार्ग से सम्बद्ध है। समीपस्थ रेलवे स्टेशन मंदिर हसौद है जो ब्राडगेज लाइन द्वारा दक्षिण-पूर्व रेलमार्ग से जुड़ा है। जल की सुलभता भी इस उद्योग हेतु लाभप्रद है। कुरूद से 17 किमी की दूरी पर महानदी प्रवाहित होती है। प्रमुख कच्चे माल एवं आपूर्ति के स्रोत :- स्पंज आयरन के निर्माण में प्रयुक्त होने वाले प्रमुख कच्चे पदार्थ लौह अयस्क, कोयला तथा डोलोमाइट है। संयंत्र हेतु आवश्यक लौह अयस्क की आपूर्ति उड़ीसा से (15000 टन प्रतिवर्ष), कोयला कोरबा तथा विश्रामपुर (12900 टन) से तथा डोलोमाइट की आपूर्ति मंडला (300 टन) से की जाती है। उपरोक्त कच्चे मालों का प्रमुख परिवहन साधन ट्रकें हैं। उत्पादन क्षमता एवं उत्पादन प्रतिरूप :- संयंत्र की उत्पादन क्षमता 1 लाख टन इस्पात पिंड प्रतिवर्ष है। विभिन्न वर्षों में संयंत्र द्वारा उत्पादित इस्पात पिंडों की उत्पादन मात्रा निम्नांकित है -
तालिका द्वारा संयंत्र के उत्पादन में उत्तरोत्तर वृद्धि स्पष्ट है। स्थापना वर्ष 1994 में जहाँ इस्पात पिंडों का उत्पादन 5,000 टन प्रतिवर्ष रहा वहीं 1999 में यह बढ़कर 92,400 टन प्रतिवर्ष हो गया है। निरन्तर उत्पादन की प्रक्रिया को बनाए रखने हेतु संयंत्र के विकास की दिशा में प्रबन्धन की निम्न योजनाएँ हैं - 1. स्वयं की लौह अयस्क तथा कोयला खानों का विकास, संयंत्र द्वारा उत्पादित उत्पाद मुख्यतः दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, पंजाब आदि राज्यों को भेजा जाता है। जिन्दल स्ट्रीप्स लिमिटेड जिन्दल स्ट्रीप्स लिमिटेड, विश्व का वृहद कोयले पर आधारित स्पंज आयरन निर्मित करने वाला संयंत्र है। यह संयंत्र रायगढ़ से 8 किमी की दूरी पर पतरापाली नामक स्थान पर 100 एकड़ के क्षेत्र में स्थापित किया गया है। मुख्यतः कच्चे पदार्थों की सुलभता के आधार पर 31 मार्च 1991 को 450 करोड़ रुपयों के पूँजी निवेश वाले इस संयंत्र की स्थापना की गई। मुम्बई हावड़ा मुख्य रेलमार्ग के निकट स्थापित इस संयंत्र द्वारा विद्युत आपूर्ति हेतु 94.7 मेगावाट क्षमता का ताप विद्युत संयंत्र स्थापित किया गया है। प्रमुख कच्चे माल तथा आपूर्ति के स्रोत :- संयंत्र हेतु आवश्यक प्रमुख कच्चे माल कोयला, लौह अयस्क तथा डोलोमाइट है। कोयले की आपूर्ति संयंत्र से 50 किमी दूर स्थित निजी खदान तमनार, रायगढ़ से की जाती है। संयंत्र में कोयले की खपत प्रतिदिन 1.4 टन की है। लौह अयस्क की आपूर्ति 300 किमी दूर स्थित निजी खदान टेनसा, उड़ीसा से की जाती है। संयंत्र में लौह अयस्क की खपत प्रतिदिन 0.5 टन की है। डोलोमाइट की आपूर्ति मध्य प्रदेश से की जाती है। इन सभी कच्चे मालों का परिवहन डम्पर तथा रेलवे वैगन के माध्यम से किया जाता है। उत्पादन क्षमता एवं उत्पादन प्रतिरूप :- संयंत्र के प्रमुख उत्पाद स्पंज आयरन, फैरो एलाय तथा स्टील स्ट्रक्चर हैं, जिनकी उत्पादन क्षमता क्रमशः 6 लाख मीट्रिक टन, 30 हजार मीट्रिक टन तथा 5 लाख मीट्रिक टन प्रतिवर्ष है। संयंत्र द्वारा उत्पादित स्पंज आयरन की वर्षानुसार उत्पादन मात्रा तालिका 5.6 में प्रदर्शित की गई है। वर्ष 1991-92 में उत्पादन जहाँ 11,006 मीट्रिक टन रहा, वहीं 1995-96 में 30,380 मीट्रिक टन से बढ़कर 1999-2000 में 4,17,749 मीट्रिक टन प्रतिवर्ष हो गया। इस प्रकार उत्पादन में निरन्तर वृद्धि परिलक्षित हो रही है। वर्तमान में संयंत्र में कार्यरत श्रमिकों को आवास तथा शिक्षा सुविधाएँ उपलब्ध कराई गई हैं। इसके अतिरिक्त 25 गाँवों में विकास कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं।
ख. सीमेंट उद्योग औद्योगिक रूप से विकासोन्मुख छत्तीसगढ़ क्षेत्र सीमेंट उत्पादन की दृष्टि से एक विशिष्ट स्थान रखता है। सीमेंट उत्पादन में छत्तीसगढ़ का योगदान विशेष उल्लेखनीय है। जिसका प्रमुख कारण सीमेंट उद्योग के लिये आवश्यक चूना पत्थर के विशाल भण्डारों का इस क्षेत्र में होना है। छत्तीसगढ़ में चूना पत्थर के 36015.6 लाख टन के संचित भण्डार हैं, जो प्रदेश के बिलासपुर, दुर्ग, रायपुर, रायगढ़ तथा राजनांदगांव एवं बस्तर जिले के विभिन्न क्षेत्रों में फैले हुए हैं। यही कारण है कि प्रदेश में सीमेंट उद्योग की एक शृंखला विकसित हुई है। वर्तमान में प्रदेश में सीमेंट उद्योग की 13 इकाइयाँ स्थापित हैं, जिनमें रायपुर में 5, दुर्ग में 2, जांजगीर चांपा में 2, बस्तर में 2 तथा रायगढ़ में 2 इकाई स्थापित है, जिसका विवरण निम्नांकित है - मुख्यतः कच्चे पदार्थों की सुलभता के आधार पर छत्तीसगढ़ में वर्ष 1964 में प्रथम सीमेंट संयंत्र एसोसिएट सीमेंट कम्पनी लिमिटेड (ए.सी.सी.) की स्थापना दुर्ग नगर से 17 किमी पूर्व में स्थित जामुल नामक स्थान पर की गई जिसमें वर्तमान पूँजी निवेश की मात्रा 112 करोड़ रुपए है। संयंत्र का प्रमुख उत्पाद पोर्टलैण्ड सीमेंट (15,80,004 मीट्रिक टन वार्षिक) है। संयंत्र हेतु आवश्यक चूना पत्थर की आपूर्ति जामुल खुर्द, धौर खदान से होती है। जिप्सम जयपुर से, स्लैग भिलाई इस्पात संयंत्र से तथा कोयले की आपूर्ति एस.ई.सी.एल. बिलासपुर से की जाती है। संयंत्र में रोजगार प्राप्त व्यक्तियों की संख्या 2000 है। प्रदेश में सार्वजनिक उपक्रम के अन्तर्गत प्रथम सीमेंट संयंत्र की स्थापना वर्ष 1970 में 1063.46 लाख रुपयों के पूँजी निवेश के साथ रायपुर जिले के मांढर नामक स्थान पर की गई थी। वर्तमान में यह इकाई तकनीकी आर्थिक कारणों के फलस्वरूप बन्द हो चुकी है।
30 जनवरी, 1975 को रायपुर जिले में सेंचुरी सीमेंट संयंत्र की स्थापना की गई, जिसमें वर्तमान पूँजी निवेश की मात्रा 22126.26 लाख रुपए है। संयंत्र का प्रमुख उत्पाद पोर्टलैण्ड सीमेंट (12,00,000 मीट्रिक टन वार्षिक) है तथा रोजगार प्राप्त व्यक्तियों की संख्या 894 है। वर्ष 1979 में जांजगीर चांपा जिले के अकलतरा में सीमेंट कॉर्पोरेशन ऑफ इण्डिया की स्थापना हुई। संयंत्र की वर्तमान पूँजी निवेश की मात्रा 3420 लाख रुपए है। संयंत्र का प्रमुख उत्पाद पोर्टलैण्ड सीमेंट है। रोजगार प्राप्त व्यक्तियों की संख्या 509 है। 16 अगस्त, 1982 को अकलतरा में ही गोपालनगर नामक स्थान पर रेमण्ड सीमेंट वर्क्स की स्थापना 26639.37 लाख रुपयों की पूँजी निवेश के साथ हुई। संयंत्र का प्रमुख उत्पाद पोर्टलैण्ड (22.40 लाख टन वार्षिक) है। रोजगार प्राप्त व्यक्तियों की संख्या 1519 है। 18 अक्टूबर, 1986 को खनिज संसाधनों की सुलभ प्राप्ति के आधार पर बस्तर जिले में प्रथम सीमेंट, हीरा सीमेंट लिमिटेड की स्थापना जगदलपुर के पंडरीपानी ग्राम में की गई। संयंत्र में वर्तमान पूँजी निवेश की मात्रा 470.77 लाख रुपए है। संयंत्र का प्रमुख उत्पाद पोर्टलैण्ड सीमेंट (49500 मीट्रिक टन वार्षिक) तथा क्लिंकर (16500 मीट्रिक टन वार्षिक) है। संयंत्र को चूना पत्थर की आपूर्ति तोकापाल जगदलपुर से, कोकडस्ट भिलाई तथा राउरकेला विशाखापट्टनम इस्पात संयंत्र से, ब्लूडस्ट एन.एम.डी.सी. बचेली से, लेटेराइट तथा क्ले जगदलपुर से, बाक्साइट केशकाल से तथा जिप्सम की आपूर्ति कोरामण्डल फर्टिलाइजर विशाखापट्टनम से की जाती है। 20 अक्टूबर, 1986 को रायगढ़ जिले में प्रथम सीमेंट संयंत्र केलकर प्रोडक्ट्स की स्थापना की गई। जिसमें वर्तमान पूँजी निवेश की मात्रा 275 लाख रुपए है। संयंत्र का प्रमुख उत्पाद पोर्टलैण्ड सीमेंट (33000 मीट्रिक टन वार्षिक) है। 29 मार्च, 1987 को बस्तर जिले के अन्तर्गत जगदलपुर के ग्राम पंडरीपानी में रूद्र सीमेंट लिमिटेड की स्थापना हुई, जिसमें वर्तमान पूँजी निवेश की मात्रा 205 लाख रुपए है। संयंत्र का प्रमुख उत्पाद पोर्टलैण्ड सीमेंट (33000 मीट्रिक टन वार्षिक) है। संयंत्र को चूना पत्थर की आपूर्ति देवरापाल से, क्ले नारायणपुर से, कोक ब्रीज भिलाई, रायपुर तथा विशाखापट्नम से, लौह अयस्क एन.एम.डी.सी. बचेली से तथा जिप्सम की आपूर्ति कोरामण्डल फर्टिलाइजर विशाखापट्नम से की जाती है। 01 जनवरी, 1987 को रायपुर जिले के अन्तर्गत बलौदाबाजार के ग्राम रवान में अम्बुजा सीमेंट की स्थापना हुई। संयंत्र में वर्तमान पूँजी निवेश की मात्रा 25,300 लाख रुपए है। संयंत्र का प्रमुख उत्पाद पोर्टलैण्ड (12,00,000 मीट्रिक टन वार्षिक) है। रोजगार प्राप्त व्यक्तियों की संख्या 600 है। 01 जनवरी, 1993 को रायपुर जिले के ही सोनाडीह ग्राम में लाफार्ज इण्डिया लिमिटेड की स्थापना हुई। संयंत्र में वर्तमान पूँजी निवेश की मात्रा 3,00,000 रुपए है। संयंत्र का प्रमुख उत्पाद पोर्टलैण्ड सीमेंट (10,00,000 टन वार्षिक) है। रोजगार प्राप्त व्यक्तियों की संख्या 499 है। वर्ष 1993 में दुर्ग जिले के अन्तर्गत भिलाई में भिलाई सीमेंट कम्पनी प्रा.लि. की स्थापना हुई। जिसमें वर्तमान पूँजी निवेश की मात्रा 102.10 लाख रुपए तथा रोजगार की मात्रा 56 है। 31 मार्च, 1994 में रायपुर जिले के हिरमी ग्राम में लार्सन एण्ड टुब्रो लिमिटेड (हिरमी सीमेंट संयंत्र) की स्थापना हुई। संयंत्र में वर्तमान पूँजी निवेश की मात्रा 57,000 लाख रुपए है। संयंत्र का प्रमुख उत्पाद पोर्टलैण्ड सीमेंट (17,50,000 मीट्रिक टन वार्षिक) है। रोजगार प्राप्त व्यक्तियों की संख्या 200 है। 29 मार्च, 1995 में रायपुर जिले के अन्तर्गत बलौदाबाजार के ग्राम रवान में ग्रासिम सीमेंट संयंत्र की स्थापना हुई। संयंत्र का प्रमुख उत्पाद पोर्टलैण्ड सीमेंट (1.7 मीट्रिक टन वार्षिक) है। रोजगार प्राप्त व्यक्तियों की संख्या 552 है। 17 अगस्त, 1996 में रायगढ़ जिले के दर्रामुड़ा नामक स्थान पर वैष्णौं सीमेंट कम्पनी की स्थापना हुई। संयंत्र में वर्तमान पूँजी निवेश की मात्रा 576.33 लाख रुपए है। संयंत्र का प्रमुख उत्पाद पोर्टलैण्ड सीमेंट (450 मीट्रिक टन प्रतिदिन) है। रोजगार प्राप्त व्यक्तियों की संख्या 44 है। इस प्रकार प्रदेश में कुल 13 वृहद एवं मध्यम सीमेंट उत्पादक इकाइयाँ स्थापित हुई। जिनमें कुल पूँजी निवेश की मात्रा 228846.85 लाख रुपए तथा रोजगार की मात्रा 7203 है। कच्चे पदार्थों की सुलभता के साथ ही इन उद्योगों की स्थापना में परिवहन साधनों मुख्यतः रेलमार्गों की उपलब्धता एक मुख्य कारक रही है। अधिकांश सीमेंट संयंत्र रेलमार्गों के निकट स्थापित हुए हैं। पर्यावरणीय दृष्टिकोण से सीमेंट संयंत्रों का एक महत्त्वपूर्ण पक्ष यह है कि अनेक उद्योगों के गौण उत्पादों (By Product) का उपयोग सीमेंट उत्पादन में किया जा सकता है। इस्पात संयंत्र का गौण उत्पाद ग्रेनुलेटेड स्लैग, विद्युत संयंत्रों की फ्लाई एश, एल्युमिनियम संयंत्र से निकलने वाली रेडमड इत्यादि अपशिष्टों का प्रयोग सीमेंट उत्पादन में किया जा सकता है। सर्वेक्षित सीमेंट संयंत्रों का विवरण निम्नानुसार है - ग्रासिम सीमेंट संयंत्र ग्रासिम सीमेंट संयंत्र की स्थापना वर्ष 1995 में रायपुर जिले की सिमगा तहसील के ग्राम रवान में की गई जो रायपुर से 45 किमी उत्तर पूर्व दिशा में स्थित है। इस संयंत्र में पूँजी निवेश की मात्रा 550 करोड़ रुपए है। सीमेंट उद्योग का स्थानीयकरण :- छत्तीसगढ़ प्रदेश में सीमेंट उद्योग की स्थापना के 2 प्रमुख कारक माने जा सकते हैं :- प्रथम चूना पत्थर तथा कोयले की समुचित मात्रा में उपलब्धता तथा द्वितीय रेलमार्गों की समीपता। सीमेंट उद्योग के स्थानीयकरण में कच्चे पदार्थों की प्राप्ति का प्रभाव अधिक पड़ता है। सीमेंट उत्पादन की प्रक्रिया में भारी तथा अधिक आयतन वाले कच्चे पदार्थों तथा अधिक मात्रा में ईंधन की आवश्यकता होती है। आर्थिक दृष्टिकोण से वृहद पैमाने पर इसका उत्पादन लाभप्रद होता है। वेबर के न्यूनतम लागत सिद्धान्त के अनुसार किसी संयंत्र में 1 टन माल उत्पादित करने हेतु 2 टन कच्ची सामग्री प्रयुक्त होती है तो संयंत्र की स्थापना कच्चे मालों की आपूर्ति स्रोतों के निकट वांछनीय होगी। इसके साथ ही परिवहन मार्गों की सुविधा भी उपलब्ध हो तो वह संयंत्र न्यूनतम परिवहन लागत की उत्तम स्थिति को प्राप्त करेगा। छत्तीसगढ़ प्रदेश के सीमेंट कारखाने मुख्यतः रेल तथा सड़क मार्गों एवं कच्चे मालों की आपूर्ति स्रोतों के समीप स्थापित हुए हैं। इस प्रकार वेबर का सिद्धान्त प्रदेश में सीमेंट संयंत्रों की उत्तम भौगोलिक स्थिति को प्रमाणित करता है। प्रमुख कच्चे माल तथा आपूर्ति के स्रोत :- ग्रासिम सीमेंट संयंत्र हेतु आवश्यक प्रमुख कच्चे माल चूना पत्थर, ग्रैनुलेटेड स्लैग, फ्लाई एश तथा जिप्सम है, जिनकी आपूर्ति क्रमशः रवान स्थित निजी खदान, भिलाई इस्पात संयंत्र, ताप विद्युत संयंत्र कोरबा तथा विशाखापट्टनम से की जाती है। उपर्युक्त सभी कच्चे मालों का परिवहन ट्रकों द्वारा किया जाता है। उत्पादन क्षमता एवं उत्पादन प्रतिरूप :- देश में सीमेंट की बढ़ती माँग एवं विदेशों में भारी खपत को देखते हुए तथा क्षेत्र के प्रचुर कच्चे माल के दोहन एवं उच्चतर गुणवत्ता वाले सीमेंट उत्पादन के उद्देश्य से इस संयंत्र की स्थापना की गई। संयंत्र की उत्पादन क्षमता 1.7 मिलियन टन पोर्टलैण्ड सीमेंट प्रतिवर्ष है। वर्षानुसार सीमेंट उत्पादन की मात्रा इस प्रकार है :
संयंत्र द्वारा उत्पादित सीमेंट का विक्रय, बांग्लादेश, नेपाल, श्रीलंका, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, आन्ध्र प्रदेश, उड़ीसा, बिहार, बंगाल तथा आसाम में किया जाता है। संयंत्र में कार्यरत श्रमिकों की संख्या 887 है जिनमें कुशल श्रमिक 176, अकुशल श्रमिक 24 तथा ठेके पर आधारित श्रमिकों की संख्या 687 है। इसके अतिरिक्त कार्यालयीन कर्मचारियों की संख्या 188 है। कर्मचारियों को प्रदत्त सुविधाएँ :- संयंत्र प्रबन्धन द्वारा कार्यरत श्रमिकों एवं कर्मचारियों हेतु आवास, शिक्षा, चिकित्सा, विश्राम तथा जलपान गृह तथा परिवहन सुविधाएँ कराई गई हैं। इसके अतिरिक्त प्रबन्धन द्वारा कार्यरत श्रमिकों के लिये सुरक्षा सुविधाएँ उपलब्ध कराई गई हैं। संयंत्र के पास स्वयं का अग्निशमन वाहन तथा प्रशिक्षित कर्मचारी हैं। श्रमिकों को सुरक्षा प्रदान करने वाले उपकरण उपलब्ध कराए गए हैं। साथ ही श्रमिकों हेतु निम्नांकित सुविधाएँ उपलब्ध हैं :- 01. एम्बुलेंस तथा प्राथमिक उपचार सुविधा उपलब्ध है। प्रबन्धन द्वारा किये गए सामाजिक कार्य :- संयंत्र प्रबन्धन द्वारा पिछले कुछ वर्षों से ग्रामीण विकास एवं सामाजिक कार्य की गतिविधियाँ चलाई जा रही हैं, जो धीरे-धीरे विकसित और वृहद होती चली जा रही है। इन गतिविधियों के अन्तर्गत गाँवों के निम्न स्तर के लोगों के लिये सुविधाएँ उपलब्ध कराई जा रही हैं जिनका संक्षिप्त विवरण निम्नांकित है :- प्रबन्धन द्वारा आस-पास के गाँवों में स्वास्थ्य सुविधाएँ कराई गई हैं, जिसके अन्तर्गत प्रति सप्ताह कम्पनी के डॉक्टर अपनी सेवाएँ प्रदान करते हैं। शिक्षा के क्षेत्र में जागरुकता लाने के उद्देश्य से छात्रवृत्ति योजना लागू की गई है। साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों की शालाओं में शिक्षकों की नियुक्ति प्रबन्धन द्वारा की गई है। इसके अतिरिक्त आस-पास के ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल व्यवस्था हेतु तालाबों का गहरीकरण, ट्यूबवेल खुदवाना, पाइपलाइन द्वारा पेयजल की व्यवस्था करवाना तथा आवश्यकता पड़ने पर टैंकरों द्वारा पेयजल की व्यवस्था की जाती है। आवागमन हेतु सड़कों का निर्माण किया गया है। जिससे क्षेत्र का सम्बन्ध मुख्य मार्गों से हो गया है। पर्यावरण दुष्प्रभाव पर नियंत्रण हेतु किये गए उपाय :- वायु प्रदूषण नियंत्रण हेतु ई.एस.पी. उपकरण लगाये गए हैं तथा वृहद क्षेत्र में वृक्षारोपण किया गया है। लार्सन एण्ड टुब्रो लिमिटेड (हिरमी सीमेंट संयंत्र) लार्सन एण्ड टुब्रो लिमिटेड (एल. एण्ड टी.) समूह द्वारा हिरमी सीमेंट संयंत्र की स्थापना वर्ष 1994 में रायपुर जिले के हिरमी ग्राम की सिमगा तहसील में की गई। स्थापना का प्रमुख कारण कच्चे पदार्थों की उपलब्धता रही है। संयंत्र में पूँजी निवेश की मात्रा 500 करोड़ रुपए है। प्रमुख कच्चे माल तथा आपूर्ति के स्रोत :- संयंत्र हेतु आवश्यक चूना पत्थर हिरमी से (25,00,000 टन प्रतिवर्ष), जिप्सम हल्दिया, कोलकाता से (60,000 टन प्रतिवर्ष), कोयला कोरबा से (2,50,000 टन प्रतिवर्ष) ईंधन तेल (Heavy fuel oil) हिन्दुस्तान पेट्रोलियम विशाखापट्नम से (200 कि. ली.) तथा स्लैग भिलाई इस्पात संयंत्र से (1,50,000 टन प्रतिवर्ष) प्राप्त होता है। उपरोक्त कच्चे मालों का परिवहन ट्रकों द्वारा किया जाता है। उत्पादन क्षमता एवं उत्पादन प्रतिरूप :-/b> संयंत्र की उत्पादन क्षमता 17,50,000 टन प्रतिवर्ष पोर्टलैण्ड सीमेंट की है। वर्षानुसार उत्पादित सीमेंट की मात्रा निम्नांकित है :
संयंत्र द्वारा उत्पादित सीमेंट का विक्रय भारत के अधिकांश क्षेत्रों में किया जा रहा है। कर्मचारियों को प्रदत्त सुविधाएँ :- प्रबन्धन द्वारा कार्यरत कर्मचारियों हेतु आवास, शिक्षा तथा स्वास्थ्य की निःशुल्क सुविधा के साथ ही क्लब, खेलकूद की सुविधा, कोऑपरेटिव सोसायटी, कैंटीन इत्यादि की सुविधा उपलब्ध कराई गई है। प्रबन्धन द्वारा किये गए सामाजिक कार्य :- संयंत्र प्रबन्धन द्वारा निकटवर्ती ग्रामों में ग्रामीण स्वास्थ्य सेवा, शैक्षणिक विकास कार्यक्रम, कृषि विकास कार्यक्रम तथा आधारभूत सुविधाएँ उपलब्ध कराने के उद्देश्य से अनेक कार्य किये जा रहे हैं। ग्रामीण स्वास्थ्य विकास कार्यक्रम के अन्तर्गत प्रमुख है :- 1. संयंत्र के निकटवर्ती गाँवों कुथरौद, परसवानी, हिरमी एवं सकलोर गाँवों में निःशुल्क चिकित्सा केन्द्र की स्थापना, 2. मोबाइल मेडिकल वैन द्वारा निकटवर्ती गाँवों में दैनिक चिकित्सकीय सेवा 3. प्रतिमाह नेत्र विशेषज्ञ द्वारा नेत्र का इलाज तथा निःशुल्क चश्मा वितरण। शैक्षणिक विकास कार्यक्रम के अन्तर्गत हिरमी, कुथरौद, सकलोर तथा परसवानी में बालवाड़ी की स्थापना की गई है। प्राथमिक एवं पूर्व माध्यमिक शाला में स्कूल सामग्री प्रदान की गई है। जर्जर एवं असुरक्षित स्थिति में विद्यमान शाला भवनों का नवीनीकरण करवाया गया है। विद्यालयों में पेयजल की व्यवस्था हेतु हैंडपम्पों का निर्माण किया गया है। प्रतिभावान छात्र-छात्राओं हेतु छात्रवृत्ति योजना लागू की गई है। सामुदायिक आधारभूत सुविधाओं के अन्तर्गत कुथरौद, परसवानी में तालाबों का गहरीकरण, हिरमी तथा कुथरौद में सड़कों का निर्माण, जर्जर कुओं का नवीनीकरण, नये खेल मैदान का निर्माण, हिरमी में 10,000 लीटर क्षमता वाली पानी टंकी का निर्माण किया गया है तथा ग्रामीणों की सुविधा हेतु बैंक एवं डाकघर की स्थापना की गई है। कृषि विकास कार्यक्रम के अन्तर्गत कृषि से सम्बन्धित समस्त पक्षों की सम्पूर्ण जानकारी प्रदान करने हेतु कृषि सूचना कक्ष की स्थापना की गई है। सब्जी एवं फल संरक्षण पर प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन, कृषकों को उन्नत कृषि यन्त्रों का वितरण, बायोगैस संयंत्र का निर्माण किया गया है। पर्यावरणीय दुष्प्रभाव पर निययंत्रण हेतु किये गए उपाय :- संयंत्र द्वारा वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने हेतु ई.एस.पी. लगाए गए हैं जिनका विवरण इस प्रकार है :
उपर्युक्त प्रदूषण निवारण यन्त्रों के अतिरिक्त वृहद मात्रा में वृक्षारोपण किया गया है। अब तक प्रबन्धन द्वारा 3.5 लाख वृक्ष लगाए जा चुके हैं। कारखानों के भीतरी मार्गों पर धूल-कणों के दमन हेतु जल का छिड़काव किया जाता है। सेंचुरी सीमेंट संयंत्र बिरला ग्रुप की अग्रणी कम्पनी सेंचुरी टेक्सटाइल एण्ड इण्डस्ट्रीज लिमिटेड द्वारा सेंचुरी सीमेंट संयंत्र की स्थापना वर्ष 1975 में की गई। यह संयंत्र तिल्दा से 8 किमी दक्षिण-पश्चिम में बैकुण्ठ नामक स्थान पर 30 करोड़ रुपयों की लागत से स्थापित किया गया। रायपुर शहर से 31 किमी की दूरी पर मुम्बई हावड़ा मुख्य रेल मार्ग पर स्थित बैकुण्ठ चारों ओर से बहेसर, कुंदरू तथा टंडवा ग्रामों से घिरा हुआ है, जिनके प्रथमाक्षरों से ही इस क्षेत्र का नाम बैकुण्ठ रखा गया है। सेंचुरी सीमेंट संयंत्र प्रदेश की प्रथम सीमेंट उत्पादक इकाई है, जिसके पास स्वयं का ताप विद्युत गृह है। प्रबन्धन द्वारा 15 मेगावाट का ताप विद्युत गृह स्थापित किया गया है। 60 करोड़ रुपयों की लागत से स्थापित यह विद्युत गृह विद्युत आपूर्ति की दृष्टि से पूर्ण आत्मनिर्भरता प्रदान करने में समर्थ है। प्रमुख कच्चे माल तथा आपूर्ति के स्रोत :- संयंत्र हेतु आवश्यक चूना पत्थर बहेसर तथा टंडवा स्थित खदानों से (2,00,000 टन प्रतिवर्ष) कोयला कोरबा से (60,000 टन प्रतिवर्ष), जिप्सम विशाखापट्टनम से (70,000 टन प्रतिवर्ष) स्लैग सिलतरा स्थित निको इस्पात संयंत्र से (2,00,000 टन प्रतिवर्ष) फ्लाई ऐश स्वयं के ताप विद्युत संयंत्र द्वारा (2,00,000 टन प्रतिवर्ष) प्राप्त होता है। उत्पादन क्षमता एवं उत्पादन प्रतिरूप :- वर्ष 1975 में यह संयंत्र 6 लाख टन वार्षिक उत्पादन क्षमता के साथ प्रारम्भ किया गया था। वर्तमान में इसकी उत्पादन क्षमता 15 लाख टन प्रतिवर्ष पोर्टलैण्ड सीमेंट की है। संयंत्र का प्रमुख उत्पादन पी.पी.सी. (Portland Pozzolana Cement) है। वर्षानुसार सीमेंट उत्पादन की मात्रा निम्नांकित है :-
स्पष्ट है कि वर्ष 1975-76 में उत्पादन जहाँ 2.75 लाख टन रहा वहीं 1983-84 में बढ़ कर 8.06 लाख टन हो गया। वर्ष 1998-99 में सीमेंट उत्पादन की मात्रा बढ़कर 11.80 लाख टन हो गई। इस प्रकार वर्ष 1975-76 से 1998-99 के मध्य संयंत्र द्वारा 182.71 लाख टन सीमेंट का उत्पादन किया जा चुका है। उत्पादन का विक्रय भारत के प्रायः सभी क्षेत्रों में किया जाता है। संयंत्र में कार्यरत श्रमिकों की संख्या 1450 तथा कार्यालयीन कर्मचारियों की संख्या 250 है। कर्मचारियों को प्रदत्त सुविधाएँ :- प्रबन्धन द्वारा कार्यरत कर्मचारियों हेतु सुविधा सम्पन्न आवास, निःशुल्क शिक्षा तथा चिकित्सा सुविधाएँ उपलब्ध कराई गई हैं। मनोरंजन तथा भ्रमण हेतु विविध सुरम्य स्थल विकसित किये गए हैं। खेलकूद हेतु पर्याप्त सुविधाएँ उपलब्ध कराई गई है। पर्यावरणीय दुष्प्रभाव पर नियंत्रण हेतु किये गए उपाय :- (1) वायु प्रदूषण नियंत्रण हेतु :- अ. क्रशर, रॉ मिल, सीमेंट मिल, कोल मिल, पैकिंग प्लांट में उच्च क्षमता के 22 जेट बैग डस्ट कलेक्टर्स लगाए गए हैं। ब. दो भट्टियों (Kilns) हेतु 3 विपरीत Airbag House तथा ई.एस.पी. यंत्र धुएँ के उत्सर्जन को नियंत्रित करने हेतु लगाए गए हैं। स. कच्चे पदार्थों के परिवहन द्वारा उत्पन्न धूल उत्सर्जन को रोकने हेतु चूना पत्थर के खदान क्षेत्रों में डस्ट कलेक्टर लगाए गए हैं। (2) जल प्रदूषण नियंत्रण हेतु :- अ. घरेलू बहिर्स्राव को विभिन्न सेप्टिक टैंकों में एकत्र किया जाता है, जिससे ठोस पदार्थ नीचे बैठ जाते हैं तथा ऊपरी सतह के जल का उपयोग बागवानी में किया जाता है। अतिरिक्त निष्कासित जल को मुख्य जल-स्रोतों के साथ मिलने नहीं दिया जाता है। इन उपायों के अतिरिक्त अन्य प्रयास इस प्रकार हैं - 1. संयंत्र के विभिन्न स्थानों जैसे क्रशर, चूना पत्थर के क्षेत्र, क्लिंकर बेल्ट के समीप धूलकणों के दमन हेतु जल छिड़काव की व्यवस्था की गई है। 2. दो वैक्यूम क्लीनर की स्थापना सीमेंट पैकिंग क्षेत्र तथा चिमनियों के आस-पास की गई है जिससे सीमेंट में बिखराव कम हो। 3. वायु के उचित आवागमन हेतु क्रशर, रॉ मिल, सीमेंट मिल तथा पैकिंग प्लांट में उच्च क्षमता के एग्जास्ट (exhaust) पंखों की व्यवस्था की गई है। 4. परिवहन साधनों द्वारा होने वाले वायु-प्रदूषण को नियंत्रित करने हेतु खदान के भीतरी मार्गों एवं संयंत्र परिसर में जल छिड़काव की व्यवस्था की गई है। 5. संयंत्र एवं आवासीय स्थलों के समीप वृहद मात्रा में वृक्षारोपण किया गया है। 6. वर्ष 1974 से पूर्व परित्यक्त खदान को तालाब का स्वरूप प्रदान कर चारों ओर वृहद मात्रा में वृक्षारोपण किया गया है। ग. रासायनिक उद्योग :- प्रदेश में 18 वृहद एवं मध्यम रासायनिक इकाइयाँ कार्यरत हैं, जिनमें रसायन, उर्वरक एवं कृषि रसायन उद्योग प्रमुख हैं। कृषि प्रधान क्षेत्र होने के फलस्वरूप प्रदेश में उर्वरक एवं कृषि रसायन उद्योगों के विकास की प्रबल सम्भावनाएँ विद्यमान हैं। छत्तीसगढ़ में सर्वप्रथम रसायन उद्योग की आधारशिला 30 अक्टूबर, 1961 को धरम सी मोरारजी केमिकल कम्पनी द्वारा रखी गई। यह संयंत्र दुर्ग जिले में कुम्हारी नामक स्थान पर राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक-6 पर स्थापित है। 01 अप्रैल, 1963 को कुम्हारी में ही 240 लाख रुपयों की लागत से एसियाटिक ऑक्सीजन एण्ड एसिटिलीन कम्पनी लिमिटेड की स्थापना हुई। संयंत्र में वर्तमान पूँजी निवेश की मात्रा 240 लाख रुपए है। संयंत्र का प्रमुख उत्पाद ऑक्सीजन गैस (1.00 मीट्रिक घन मीटर वार्षिक) तथा डिजॉल्वड एसिटिलीन गैस (0.36 मीट्रिक घन मीटर वार्षिक) है। संयंत्र में रोजगार प्राप्त व्यक्तियों की संख्या 172 है। वर्ष 1964 में हिन्दुस्तान केमिकल वर्क्स की स्थापना दुर्ग जिले के भिलाई में की गई। जिसमें वर्तमान पूँजी निवेश की मात्रा 44 लाख रुपए है। संयंत्र का प्रमुख उत्पाद बाईक्रोमेट ऑफ सोडा तथा क्रोमिक एसिड है। संयंत्र में रोजगार प्राप्त व्यक्तियों की संख्या 95 है। वर्ष 1970 में रेजीनेट केमिकल की स्थापना भिलाई में हुई, जिसमें वर्तमान पूँजी निवेश की मात्रा 50 लाख रुपए है। संयंत्र का प्रमुख उत्पाद सिन्थेटिक रेसीन है। रोजगार प्राप्त व्यक्तियों की संख्या 230 है। 19 फरवरी, 1977 को बिलासपुर जिले के औद्योगिक क्षेत्र तिफरा में ऋषि गैसेज प्रा. लि. की स्थापना हुई, जिसमें वर्तमान पूँजी निवेश की मात्रा 721.95 लाख रुपए है। संयंत्र का प्रमुख उत्पाद ऑक्सीजन गैस (10 लाख घन मीटर वार्षिक), डिजॉल्वड एसिटिलीन गैस (2 लाख घन मीटर वार्षिक) तथा नाइट्रोजन गैस (5 लाख घन मीटर वार्षिक) है। संयंत्र में रोजगार प्राप्त व्यक्तियों की संख्या 96 है। 02 मई, 1985 को बिलासपुर में सिरगिट्टी नामक स्थान पर बी.ई.सी. फर्टिलाइजर की स्थापना हुई। भिलाई इंजीनियरिंग कॉर्पोरेशन लिमिटेड द्वारा स्थापित एवं संचालित इस संयंत्र में वर्तमान पूँजी निवेश की मात्रा 1881.73 लाख रुपए है। संयंत्र का प्रमुख उत्पाद सिंगल सुपर फास्फेट (1,10,000 मीट्रिक टन वार्षिक) तथा सल्फ्यूरिक एसिड (45000 मीट्रिक टन वार्षिक) है। संयंत्र में रोजगार प्राप्त व्यक्तियों की संख्या 367 है। 01 जनवरी, 1986 को रायपुर जिले के औद्योगिक क्षेत्र उरला में पंकज ऑक्सीजन लिमिटेड की स्थापना हुई, जिसमें वर्तमान पूँजी निवेश की मात्रा 856.13 लाख रुपए है। संयंत्र के प्रमुख उत्पाद ऑक्सीजन गैस (1 मीट्रिक घन मीटर वार्षिक) तथा एसिटिलीन (0.90 मीट्रिक घन मीटर वार्षिक) है। संयंत्र में रोजगार प्राप्त व्यक्तियों की संख्या 53 है।
01 मई, 1988 को उरला में ही साकेत इंड. गैसेस लिमिटेड की स्थापना 602.31 लाख रुपयों के पूँजी निवेश के साथ हुई। संयंत्र के प्रमुख उत्पाद ऑक्सीजन (3 मीट्रिक घन मीटर वार्षिक), नाइट्रोजन गैस (1 मीट्रिक घन मीटर) तथा कार्बन डाइऑक्साइड (2 मीट्रिक घन मीटर वार्षिक) है। संयंत्र में रोजगार प्राप्त व्यक्तियों की संख्या 53 है। 21 जनवरी, 1991 को राजनांदगांव जिले के रीवा गहन नामक स्थान पर मीनवुल रॉक फाइबर लिमिटेड की स्थापना हुई, जिसमें वर्तमान पूँजी निवेश की मात्रा 550 लाख रुपए है। संयंत्र के प्रमुख उत्पाद रेग्जिन बांडेड एवं रॉक वुल उत्पाद (5524 टन वार्षिक) है। संयंत्र में रोजगार प्राप्त व्यक्तियों की संख्या 165 है। 15 फरवरी, 1992 को दुर्ग जिले के औद्योगिक क्षेत्र बोरई में शिवनाथ आर्गेनिक प्राइवेट लिमिटेड की स्थापना हुई, जिसमें वर्तमान पूँजी निवेश की मात्रा 231 लाख रुपए है। संयंत्र के प्रमुख उत्पाद मोनोक्लोरो बेन्जीन (2400 मीट्रिक टन वार्षिक) है। संयंत्र में रोजगार प्राप्त व्यक्तियों की संख्या 28 है। 31 मार्च, 1995 को भिलाई में 250 लाख रुपयों की पूँजी निवेश के साथ कीस्टोन इंड. औद्योगिक संस्थान की स्थापना हुई। संयंत्र के प्रमुख उत्पाद सोडियम निसरमेंट, कोरोमिक एसिड तथा सोडियम सल्फेट है। संयंत्र में रोजगार प्राप्त व्यक्तियों की संख्या 95 है। 31 मार्च, 1995 को ही राजनांदगांव जिले के देवादा नामक स्थान पर 620 लाख रुपयों की पूँजी निवेश के साथ विश्व विशाल इंजीनियरिंग की स्थापना हुई। संयंत्र के प्रमुख उत्पाद ऑक्सीजन तथा नाइट्रोजन गैस (13,44,868 घनमीटर वार्षिक) है। संयंत्र में रोजगार प्राप्त व्यक्तियों की संख्या 20 है। 05 अप्रैल, 1997 को राजनांदगांव के ही सोमनी नामक स्थान पर रूक्मणी मेटल एण्ड गैसेस प्रा.लि. की स्थापना 90.84 लाख रुपयों की लागत से हुई। संयंत्र का प्रमुख उत्पाद ऑक्सीजन गैस (6 लाख घनमीटर) है। संयंत्र में रोजगार प्राप्त करने वाले व्यक्तियों की संख्या 12 है। 14 नवम्बर, 1994 को रायपुर के औद्योगिक क्षेत्र उरला में वन्दना इण्डस्ट्रीज लिमिटेड में उत्पादन प्रारम्भ हुआ। संयंत्र का प्रमुख उत्पाद एचडीपीई तथा पीपीबैग है। संयंत्र में पूँजी निवेश की कुल मात्रा 321.14 लाख रुपए तथा रोजगार प्राप्त व्यक्तियों की संख्या 165 है। संयंत्र की उत्पादन क्षमता 1800 मीट्रिक टन है। उरला में ही 23 जून, 1995 को रायपुर रोटोकास्ट सिन्थेटिक डिवीजन में उत्पाद प्रारम्भ हुआ। इस संयंत्र की कुल लागत 578.60 लाख रुपए तथा रोजगार प्राप्त व्यक्तियों की संख्या 250 है। संयंत्र का मुख्य उत्पाद एचडीपीई तथा पी.पी. बैग है। संयंत्र की उत्पादन क्षमता 600 मीट्रिक टन वार्षिक है। 12 दिसम्बर, 1996 को रोटोकास्ट इक्विपमेन्ट एण्ड एसेसरीज में उत्पादन प्रारम्भ हुआ जिसकी कुल पूँजी निवेश की मात्रा 175.78 लाख रुपए तथा रोजगार प्राप्त व्यक्तियों की संख्या 69 है। संयंत्र का मुख्य उत्पाद पॉलीथीन शीट है। जिसकी उत्पादन क्षमता 25,000 मीट्रिक टन वार्षिक है। 27 फरवरी, 1996 को सुनील पॉली बैग में 414.12 लाख रुपयों की लागत से उत्पादन प्रारम्भ हुआ। संयंत्र का मुख्य उत्पाद पीवीएचडीपीबैग है जिसकी उत्पादन क्षमता 1940 मीट्रिक टन वार्षिक है। रोजगार प्राप्त व्यक्तियों की संख्या 80 है। जयश्री पॉलीटेक्स प्रा. लि. में 03 जून, 1997 को 129.79 लाख रुपए के पूँजी निवेश के साथ उत्पादन प्रारम्भ हुआ। संयंत्र का मुख्य उत्पाद पीनीसीओवन सेक्स है जिसकी उत्पादन क्षमता 894 मीट्रिक टन है। रोजगार प्राप्त व्यक्तियों की संख्या 102 है। इस प्रकार प्रदेश में 18 रासायनिक उद्योग कार्यरत हैं, जो मुख्यतः दुर्ग, राजनांदगांव, बिलासपुर तथा रायपुर जिले में स्थापित हैं जिनमें दुर्ग में 6, रायपुर में 7, बिलासपुर में 2 तथा राजनांदगांव में 3 इकाइयाँ कार्यरत हैं। उपर्युक्त सभी इकाइयों में कुल पूँजी निवेश की मात्रा 950.77 लाख रुपए तथा रोजगार की मात्रा 2350 है। सर्वेक्षित रासायनिक उद्योग का विवरण निम्नानुसार है - धरम सी मोरार जी केमिकल कम्पनी लिमिटेड धरम सी मोरार जी केमिकल कम्पनी लिमिटेड की स्थापना स्वर्गीय श्री रतन सी धरम सी मोरारजी द्वारा सन 1919 में अम्बरनाथ (महाराष्ट्र) में की गई थी। भारत में धरम सी मोरार जी सबसे अधिक सिंगल सुपर फास्फेट बनाने वाली कम्पनी है, साथ ही भारी रसायनों के निर्माण में एक वृहद कम्पनी है। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात शासन द्वारा कृषि उन्नति पर अधिक ध्यान दिया गया। चूँकि छत्तीसगढ़ मुख्यतः कृषि प्रधान क्षेत्र है, अतः कृषि उत्पादन में वृद्धि हेतु इस क्षेत्र में धरम सी मोरारजी कम्पनी लिमिटेड की स्थापना प्रमुख कारण थी। 30 अक्टूबर, 1968 को यह इकाई दुर्ग जिले के कुम्हारी नामक स्थान पर स्थापित हुई। जिसमें पूँजी निवेश की मात्रा 1745.22 लाख रुपए है। प्रमुख कच्चे माल तथा आपूर्ति के स्रोत :- संयंत्र हेतु आवश्यक कच्चे पदार्थ सल्फर (3100 मीट्रिक टन प्रतिमाह) अमरीका, सउदी अरब से, रॉक फास्फेट (10,000 टन प्रतिमाह) सीरिया तथा जोर्डन से प्राप्त होता है। उत्पादन क्षमता एवं उत्पादन प्रतिरूप :- संयंत्र के प्रमुख उत्पाद सल्फ्यूरिक एसिड, सिंगल सुपर फास्फेट, सिलिको फ्लोराइड, क्लोरो सल्फ्यूरिक एसिड तथा क्लोराइड है जिनकी उत्पादन क्षमता क्रमशः सल्फ्यूरिक एसिड 1,01,900 मीट्रिक टन वार्षिक, सिंगल सुपर फास्फेट 2,13,770 मीट्रिक टन वार्षिक सिलिको फ्लोराइड 852 मीट्रिक टन वार्षिक, क्लोरोसल्फ्यूरिक एसिड 16500 मीट्रिक टन वार्षिक तथा क्लोराइड 3000 मीट्रिक टन वार्षिक है। सल्फ्यूरिक एसिड, सिंगल सुपर फास्फेट तथा क्लोराइड का वर्षवार उत्पादन तालिका 5.12 में प्रदर्शित किया गया है। वर्तमान में संयंत्र में कार्यरत कर्मचारियों की संख्या 304 है, जिन्हें आवास, स्वास्थ्य तथा परिवहन सुविधाएँ प्रदान की गई हैं। 01. वायु प्रदूषण नियंत्रण प्रणाली :- A. सल्फ्यूरिक एसिड संयंत्र :- 1. SO2 के उत्सर्जन पर नियंत्रण हेतु स्क्रबर का उपयोग किया गया है। B. सिंगल सुपर फास्फेट संयंत्र :- 1. फ्लोराइड उत्सर्जन के नियंत्रण हेतु उच्च क्षमता के स्क्रबर लगाए गए हैं।
2. धुएँ के निक्षेप को नियंत्रित करने हेतु विशेष प्लास्टिक स्क्रबर लगाये गए हैं। 02. जल प्रदूषण नियंत्रण प्रणाली :- 1. औद्योगिक बहिर्स्राव को पूर्णरूप से संशोधित कर पुनः उपयोग में लाया जाता है। इसके अतिरिक्त संयंत्र के आस-पास 1000 वृक्ष लगाए जा चुके हैं। (घ) एल्युमिनियम उद्योग :- खनिज के रूप में एल्युमिनियम भूपर्पटी का एक महत्त्वपूर्ण अवयव है तथा धातु के रूप में इसका उपयोग मानवीय संस्कृति का एक नवीन चरण है। एल्युमिनियम का वृहद पैमाने पर उपयोग वर्तमान शताब्दी की देन है। भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में एल्युमिनियम का महत्त्वपूर्ण स्थान है। छत्तीसगढ़ प्रदेश का एकमात्र एल्युमिनियम उद्योग भारत एल्युमिनियम कम्पनी लिमिटेड (बाल्को) की स्थापना 857.03 करोड़ रुपयों की लागत से 27 नवम्बर 1965 को कोरबा नामक स्थान पर की गई। यह संयंत्र कम्पनी एक्ट के तहत भारत सरकार के खान मंत्रालय के अन्तर्गत स्थापित किया गया। प्रदेश के कोरबा जिले में फुटका पहाड़ की शृंखलाओं के समीप हसदेव तथा महानदी के संगम स्थल से 80 किमी दक्षिण में बाल्को संयंत्र स्थापित है। संयंत्र का अक्षांशीय तथा देशांशीय विस्तार क्रमशः 220 42’ 30” उत्तरी अक्षांश तथा 820 43’ 30” से 820 44’ 30” पूर्वी देशान्तर के मध्य है। समुद्र सतह से इसकी ऊँचाई 291 मीटर है। उद्योग का स्थानीयकरण :- एल्युमिनियम उद्योग मुख्यतः धातु एवं खनन उद्योग है। बाक्साइट से एल्युमिना तथा एल्युमिना से शुद्ध एल्युमिनियम बनाने के कारखाने प्रायः खानों तथा ऊर्जा स्रोतों के समीप स्थानीयकृत होते हैं। पर्याप्त विद्युत आपूर्ति की दशा में इन कारखानों को बाजार केन्द्रों के निकट भी स्थापित करना लाभप्रद होता है। उपर्युक्त तीनों सुविधाएँ एक ही स्थान पर उपलब्ध हों, तो ऐसा स्थान स्थानीयकरण का अनुकूलतम बिन्दु होगा। कोरबा में इस उद्योग की स्थापना का प्रमुख कारण फुटका पहाड़ से बाक्साइट की प्राप्ति तथा इस क्षेत्र में स्थापित ताप विद्युत संयंत्र है। अतः वर्ष 1962 में चीन आक्रमण के पश्चात देश की रक्षा सम्बन्धी आवश्यकताओं के लिये एल्युमिनियम की पूर्ति, संयंत्र स्थापना का प्रमुख कारण थी। प्रमुख कच्चे माल तथा आपूर्ति के स्रोत :- एल्युमिनियम उत्पादन हेतु प्रमुख कच्चा माल बाक्साइट तथा कोयला है। एक टन एल्युमिना चूर्ण के निर्माण की प्रक्रिया में मुख्यतः 2.6 टन बाक्साइट अयस्क, 90 से 100 किग्रा कास्टिक सोडा, 150 से 200 किग्रा चूना, 95 से 105 लीटर ईंधन तेल, 3.2 टन से 3.5 टन वाष्प तथा 400 से 450 किलोवाट विद्युत ऊर्जा की खपत होती है। इसी प्रकार एक टन गर्म एल्युमिनियम धातु बनाने के लिये 1932 से 1950 किग्रा केल्साइट एल्युमिना, 550 से 570 किग्रा एनोड पेस्ट, 20 से 40 किग्रा क्रायोलाइट, 30 से 50 किग्रा एल्युमिनियम फ्लोराइड की आवश्यकता होती है। संयंत्र हेतु आवश्यक कच्चे पदार्थ तथा उनकी प्राप्ति के स्रोत एवं मात्रा निम्नांकित है :-
उपर्युक्त कच्चे पदार्थों का परिवहन रेल एवं सड़क मार्ग द्वारा किया जाता है। जिस पर 150 करोड़ रुपए प्रतिवर्ष व्यय किये जाते हैं। संयंत्र हेतु बाक्साइट आपूर्ति के प्रमुख स्रोत अमरकंटक तथा फुटका पहाड़ थे। वर्तमान में वहाँ संयंत्र द्वारा उत्पादन बन्द होने से संयंत्र को बाक्साइट की आपूर्ति मैनपाट खदान सरगुजा तथा लोहारदगा बिहार से की जा रही है। साथ ही बाक्साइट आपूर्ति के उद्देश्य से संयंत्र द्वारा नई खदान कवर्धा जिले के बोदई दलदली क्षेत्र में प्रारम्भ की गई है। इस बाक्साइट परियोजना का शिलान्यास 24 जनवरी 1999 को किया गया। वर्ष 2000 में इस खदान से बाक्साइट उत्खनन का कार्य प्रारम्भ किया गया है तथा 2005 तक दो लाख टन बाक्साइट का वार्षिक उत्खनन किया जाएगा। एल्युमिनियम उद्योग हेतु विद्युत की बड़ी मात्रा में आवश्यकता होती है (16000 से 18000 किलोवाट)। संयंत्र को विद्युत आपूर्ति म.प्र.वि.मं. द्वारा की जाती है। अधिक मात्रा में विद्युत प्राप्ति हेतु संयंत्र द्वारा एक ताप विद्युत संयंत्र बाल्को केप्टिव पावर प्लांट की स्थापना की गई है, जिसकी उत्पादन क्षमता 270 मेगावाट (4 X 67.5) है। आवश्यकता पड़ने पर एन.टी.पी.सी. द्वारा भी विद्युत आपूर्ति की जाती है। कार्यप्रणाली के आधार पर एल्युमिनियम संयंत्र को मुख्यतः तीन भागों में बाँटा जा सकता है :- 01. एल्युमिना संयंत्र यह संयंत्र 1973 में हंगरी के सहयोग से स्थापित किया गया जहाँ बाक्साइट अयस्क से एल्युमिना चूर्ण तैयार किया जाता है। यह संयंत्र एल्युमिना निर्माण की परम्परागत वायर तकनीक पर आधारित है। 02. प्रदावक संयंत्र यह संयंत्र 1975 में रूस के तकनीकी सहयोग से स्थापित किया गया। इस संयंत्र में एल्युमिना चूर्ण से गर्म एल्युमिनियम प्राप्त करने की विधि विकसित की थी। इस तकनीक में विशेष कार्बन के इलेक्ट्रोड के बीच एल्युमिना चूर्ण को क्रायोलाइट में मिलाकर विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है जिससे एल्युमिना अपने मूल तत्वों में विघटित हो जाता है तथा 99.5 प्रतिशत शुद्ध एल्युमिनियम धातु प्राप्त होती है। इस प्रक्रिया में निस्ताप (केल्साइट) पेट्रोलियम कोक का उपयोग किया जाता है। बाल्को के प्रदावक संयंत्र में वर्टिकल सोडारबर्ग प्रणाली उपयोग की जाती है। इस संयंत्र में 408 विद्युत विश्लेषक सेल तथा 8 सेलघर है। प्रत्येक सेलघर में 51 विद्युत विश्लेषक सेल लगे हैं। एक सेल घर की लम्बाई 624.3 मीटर है। 03. संरचना संयंत्र संरचना संयंत्र में एल्युमिनियम उत्पादित धातु को विभिन्न रूपों में रूपान्तरित किया जाता है। उत्पादन क्षमता एवं उत्पादन प्रतिरूप : विभिन्न संयंत्रों की उत्पादन क्षमता एवं प्रचालन तिथियाँ निम्नांकित हैं :-
उत्पादन प्रतिरूप :- बाल्को संयंत्र की उत्पादन क्षमता दो लाख टन एल्युमिना तथा एक लाख टन एल्युमिनियम धातु तथा संरक्षित उत्पादन बनाने की है। संयंत्र द्वारा एल्युमिनियम धातु से प्रापर्जी रॉड, एक्स्ट्रन्स, रोल्ड प्रोडक्ट्स, इनगॉट्स, बिलेट्स तथा स्लैब का उत्पादन किया जाता है। संयंत्र द्वारा उत्पादित एल्युमिनियम का उपयोग मुख्यतः देश की रक्षा सम्बन्धी आवश्यकताओं के लिये किया जाता है। देश के प्रक्षेपास्त्र - अग्नि, नाग व मिलन में बाल्को द्वारा उत्पादित एल्युमिनियम का उपयोग किया जाता है।
तालिका 5.15 द्वारा वस्तुवार वास्तविक उत्पादन प्रदर्शित किया गया है। स्थापना वर्ष 1975-76 में एल्युमिना हाइड्रेट का उत्पादन जहाँ 76200 टन रहा, वहीं 1979-80 में पाँच वर्षों के दौरान उत्पादन बढ़कर 1,17,330 टन हो गया। वर्ष 82-83 में उत्पादन में कमी आई वहीं 1990-91 में उत्पादन 1,84,700 टन रहा तथा 1990-91 में उत्पादन 1,85,330 टन रहा। एल्युमिना का उत्पादन जहाँ वर्ष 1975-76 में 69,700 टन रहा वहीं 1981-82 में बढ़कर 1,08,850 टन तथा 1994-95 में पुनः घटकर 1,65,215 टन हो गया, जो 1999-2000 में बढ़कर पुनः 1,83,400 टन हो गया। गर्म धातु का उत्पादन स्थापना वर्ष 1975-76 में 17207 टन रहा जो वर्ष 1984-85 में बढ़कर 87000 टन हो गया तथा 1988-89 में उत्पादन 94207 टन रहा, वर्ष 1997-98 में उत्पादन में पुनः कमी आई (89037 टन) तथा 1999-2000 में उत्पादन 95071 टन रहा। संयंत्र द्वारा उत्पादित एल्युमिनियम पावर ट्रांसमिशन आटोमोबाइल इण्डस्ट्री, पैकेजिंग, बिल्डिंग एवं निर्माण, सड़क एवं रेल परिवहन तथा घरेलू उपकरण बनाने वाले उद्योग के साथ ही रक्षा सम्बन्धी उत्पादन में किया जा रहा है। यहाँ उत्पादित एल्युमिनियम का विक्रय दिल्ली, महाराष्ट्र, गुजरात, आन्ध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल, राजस्थान, मध्य प्रदेश, उड़ीसा, हरियाणा, कर्नाटक, बिहार, दमन, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, पुदुच्चेरी, पंजाब, असम, केरल, त्रिपुरा, गोवा तथा चंडीगढ़ आदि राज्यों तथा श्रीलंका में किया जाता है। कर्मचारियों की संख्या एवं प्रदत्त सुविधाएँ :- वर्तमान में बाल्को संयंत्र में कर्मचारियों की संख्या 6442 है। कार्यरत कर्मचारियों को आवासीय सुविधा प्रदान की गई है तथा एक सुनियोजित टाउनशिप की स्थापना की गई है जिसके अन्तर्गत 4299 आवासीय भवन हैं। स्वास्थ्य सुविधा के अन्तर्गत 79 शैय्या वाला अस्पताल है। शैक्षणिक सुविधा के अन्तर्गत यहाँ कुल 15 स्कूल हैं जिनमें एक केन्द्रीय विद्यालय सहित पूर्व माध्यमिक एवं उच्चतर माध्यमिक विद्यालय है। उपरोक्त सुविधाओं के अतिरिक्त यहाँ क्लब, स्टेडियम, उद्यान तथा सुविकसित बाजार की सुविधा है। पर्यावरणीय दुष्प्रभाव पर नियंत्रण हेतु किये गए उपाय :- औद्योगिक विकास एवं पर्यावरण प्रदूषण एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। अतः औद्योगिक विकास को गति प्रदान करने के साथ ही पर्यावरण संरक्षण की आवश्यकता भी उतनी ही महत्त्वपूर्ण है। बाल्को संयंत्र द्वारा प्रदूषण नियंत्रण हेतु निम्नांकित कार्य किये गए हैं : एल्युमिना संयंत्र से कास्टिक सोडा के रिसाव से होने वाले जल प्रदूषण को नियंत्रित करने हेतु इस रिसाव को संयंत्र के विभिन्न क्षेत्रों से भूमिगत तथा खुली नालियों के द्वारा एक वेस्ट डिस्पोजल पिट में संग्रहित कर उसे उपचारित कर पुनरुपयोग किया जाता है। रेडमड जो कि एक खतरनाक ठोस अपशिष्ट है, उसे संयंत्र से 5.6 किमी दूर विशेष प्रकार के पॉलीथीन एवं कंक्रीट की परत से बने लीक प्रूफ विशाल पोखरों में एकत्रित किया जाता है। रेडमड पर भवन निर्माण सामग्री, फेराइट सीमेंट, टाइल्स इत्यादि बनाने के अनुसन्धान किये जा रहे हैं। रेडमड भण्डारण के लिये नई तकनीक की खोज की जा रही है जिससे पुराने भरे पोखरों के ऊपर ही सूखी रेडमड का भण्डारण किया जा सके। एल्युमिना संयंत्र में एल्युमिना चूर्ण के कण व गैस उत्सर्जन को नियंत्रित करने हेतु इलेक्ट्रोस्टेटिक प्रेसीपिटेटर्स लगाए गए हैं ताकि उत्सर्जन निर्धारित मानकों के अनुरूप रहे। उच्च दाब एवं निम्न दाब वाष्प संयंत्रों के बॉयलरों से उत्सर्जित होने वाले धूल-कण एवं धुएँ के नियंत्रण के लिये 5 ई.एस.पी. लगाए गए हैं, जिनसे एकत्रित राख का उपयोग भूमि के समतलीकरण हेतु किया जाता है। उड़नशील धूल-कण बाक्साइट क्रशर, कोयला एवं बाक्साइट भण्डारण क्षेत्रों में भी उत्सर्जित होते हैं। अतः इन क्षेत्रों में समय-समय पर जल की फुहारों से धूल-कणों को उड़नशील होने से रोका जाता है। पर्यावरण संरक्षण की दिशा में वृक्षों की भूमिका महत्त्वपूर्ण है साथ ही पारिस्थितिकी सन्तुलन हेतु वृक्षारोपण अति आवश्यक है। संयंत्र में वृक्षारोपण तथा हरित पट्टिका का विकास किया गया है। संयंत्र की स्थापना से लेकर अब तक 8 लाख से अधिक वृक्ष लगाए जा चुके हैं। (ङ) विस्फोटक पदार्थ उद्योग :- प्रदेश में विस्फोटक पदार्थ उद्योग मुख्यतः कोरबा में स्थापित हैं। कोरबा में इस उद्योग के स्थानीयकरण के प्रमुख कारणों में कोरबा में कोयला खनन क्षेत्रों में विस्फोटक पदार्थों की भारी माँग तथा क्षेत्र में सुलभ विद्युत आपूर्ति है। कोरबा जिले में स्थापित प्रमुख विस्फोटक पदार्थ उद्योग निम्नांकित है :-
प्रदेश में सर्वप्रथम स्थापित विस्फोट संयंत्र इंडो बर्मा पेट्रोकेमिकल्स (आई.बी.पी.) कम्पनी लिमिटेड की स्थापना 1977 में हुई। यह संयंत्र कोरबा कटघोरा मार्ग पर 16 किमी पूर्व में गोपालपुर नामक स्थान पर स्थित है। संयंत्र की उत्पादन क्षमता 28585 मीट्रिक टन वार्षिक विस्फोटक पदार्थ उत्पादन है। संयंत्र में प्रयुक्त प्रमुख कच्चे पदार्थ अमोनियम नाइट्रेट बिलासपुर से, सोडियम नाइट्रेट बड़ौदा से प्राप्त होता है। इस क्षेत्र में संयंत्र स्थापना का प्रमुख कारण खदान क्षेत्रों की विस्फोटक पदार्थों की आवश्यकता पूर्ति करना है। संयंत्र में रोजगार प्राप्त व्यक्तियों की संख्या 419 है। गोवरा घोरा, कटघोरा में इंडोगल्फ एक्सप्लोसिव की स्थापना हुई। इस संयंत्र में कुल पूँजी निवेश की मात्रा 149.64 लाख रुपए तथा रोजगार प्राप्त व्यक्तियों की संख्या 21 है। 24 मई, 1994 को कुसमुंडा में आई.बी.पी. कम्पनी लिमिटेड की स्थापना 423.64 लाख रुपयों के पूँजी निवेश के साथ हुई। इस संयंत्र की उत्पादन क्षमता 2500 मीट्रिक टन वार्षिक विस्फोटक पदार्थ उत्पादन की है। संयंत्र में रोजगार प्राप्त व्यक्तियों की संख्या 55 है। इस प्रकार प्रदेश में प्रमुख 3 विस्फोटक पदार्थ निर्माण इकाइयाँ है। जिनमें कुल पूँजी निवेश की मात्रा 2138.35 लाख रुपए तथा रोजगार की मात्रा 495 है। (च) खाद्य उद्योग :- छत्तीसगढ़ प्रदेश में वर्तमान में 28 खाद्य पदार्थ उत्पादक इकाइयाँ कार्यरत हैं जिनका विवरण निम्नांकित है :-
प्रदेश में खाद्य उद्योगों के अन्तर्गत मुख्यतः तेल मिल, साल्वेंट एक्सट्रे्क्शन प्लान्ट तथा खाद्य प्रसंस्करण उद्योग कार्यरत है। प्रदेश में खाद्य उद्योग के अन्तर्गत प्रथम तेल मिल महासमुन्द में के.एल. ऑयल इण्डस्ट्रीज 10 अप्रैल, 1968 को 34 लाख रुपयों की लागत से प्रारम्भ हुई। संयंत्र का प्रमुख उत्पाद राइसब्रान तेल है तथा रोजगार की मात्रा 151 है। 20 नवम्बर, 1968 में रायपुर फ्लोर मिल प्रा. लि. में उत्पादन प्रारम्भ हुआ। संयंत्र में पूँजी निवेश की मात्रा 57.30 लाख रुपए है। प्रमुख उत्पाद मैदा, सूजी, आटा, बेसन (24000 मीट्रिक टन वार्षिक) है। संयंत्र में रोजगार प्राप्त व्यक्तियों की संख्या 50 है। वर्ष 1969 में भिलाई में राइसब्रान ऑयल मिल प्रारम्भ हुई जिसमें वर्तमान पूँजी निवेश की मात्रा 143.34 लाख रुपए है। संयंत्र का प्रमुख उत्पाद राइस ब्रान तेल है। रोजगार प्राप्त व्यक्तियों की संख्या 50 है। 28 अक्टूबर, 1971 को नवगठित महासमुन्द जिले में श्री श्रीमाल एक्सट्रेक्शन प्रा. लि. में उत्पादन प्रारम्भ हुआ। संयंत्र में कुल पूँजी निवेश की मात्रा 29 लाख रुपए है। संयंत्र का प्रमुख उत्पाद राइस ब्रान तेल है। रोजगार प्राप्त व्यक्तियों की संख्या 38 है। 20 नवम्बर, 1974 को रायपुर जिले के औद्योगिक क्षेत्र भनपुरी में एम.पी. ऑयल एक्सट्रेक्शन प्रा. लि. की स्थापना 172 लाख रुपयों की लागत से हुई। संयंत्र का प्रमुख उत्पाद वनस्पति तेल (15000 मीट्रिक टन वार्षिक) है। रोजगार प्राप्त व्यक्तियों की संख्या 150 है। जनवरी 1979 में भनपुरी में ही 96.72 लाख रुपयों के पूँजी निवेश के साथ एम. पी. ऑयल एण्ड फैट्स प्रा. लि. प्रारम्भ हुआ। संयंत्र का प्रमुख उत्पाद वनस्पति तेल (90 मीट्रिक टन वार्षिक) है। रोजगार प्राप्त व्यक्तियों की संख्या 120 है। 19 जनवरी, 1983 को दुर्ग जिले में रायपुर दुग्ध महासंघ की स्थापना 327.80 लाख रुपयों के पूँजी निवेश के साथ हुई, जहाँ प्रतिदिन 1 लाख लीटर दूध का उत्पादन होता है। संयंत्र में रोजगार प्राप्त व्यक्तियों की संख्या 206 है। राजनांदगांव जिले के अन्तर्गत सर्वप्रथम खाद्य उद्योग राजाराम मेज प्रोडक्ट्स वर्ष 1983 में ग्राम मोहड़ा में स्थापित हुआ जिसमें पूँजी निवेश की मात्रा 43.59 लाख रुपए है। संयंत्र के प्रमुख उत्पाद स्टार्च (5233.65 टन वार्षिक), डेक्सट्रोज (1335.40 टन वार्षिक) तथा ग्लूकोज (1856.10 टन वार्षिक) है। संयंत्र में रोजगार प्राप्त व्यक्तियों की संख्या 411 है। वर्ष 1988 में राजाराम मेज प्रोडक्ट्स की ही अन्य इकाई मोहड़ में 37.25 लाख रुपयों की लागत से प्रारम्भ हुई। इस इकाई का प्रमुख उत्पाद डेक्ट्रोज तथा मोनोहाइड्रोज (1494.80 टन वार्षिक) है। इकाई में कार्यरत व्यक्तियों की संख्या 26 है। वर्ष 1985 में राजाराम एण्ड ब्रदर्स की स्थापना राजनांदगांव जिले के ग्राम मोहड़ में 19.29 लाख रुपयों के पूँजी निवेश के साथ हुई। संयंत्र का प्रमुख उत्पाद राइस ब्रान तेल एवं केक है। संयंत्र में कार्यरत व्यक्तियों की संख्या 161 है। 13 जून, 1987 को ग्राम देवादा (राजनांदगांव) में आर.जी. फ्लोर मिल की स्थापना हुई जिसमें वर्तमान पूँजी निवेश की मात्रा 208 लाख रुपए हैं। संयंत्र के प्रमुख उत्पाद आटा, मैदा, सूजी तथा चोकर (151105 किग्रा वार्षिक) है। इस संयंत्र में रोजगार प्राप्त व्यक्तियों की संख्या 47 है। 16 जनवरी, 1986 को रायपुर के औद्योगिक क्षेत्र उरला में पारस ऑयल एक्स्ट्रेक्शन प्रा. लि. की स्थापना हुई, जिसमें पूँजी निवेश की मात्रा 405 लाख रुपए है। संयंत्र के प्रमुख उत्पाद सोयाबीन तथा डीआइल्ड केक (27000 मीट्रिक टन वार्षिक) है। इस संयंत्र में कार्यरत व्यक्तियों की संख्या 80 है। नवगठित जिला धमतरी में 13 मार्च, 1989 को आर.एल. ऑयल एक्स्ट्रेक्शन लिमिटेड से उत्पादन प्रारम्भ हुआ, जिसमें वर्तमान पूँजी निवेश की मात्रा 100 लाख रुपए है। संयंत्र का प्रमुख उत्पाद रिफाइन्ड तेल है तथा रोजगार प्राप्त व्यक्तियों की संख्या 45 है। 10 मार्च, 1989 को धमतरी में ही पी.बी.एस. ऑयल एण्ड प्रा. लि. प्रारम्भ हुआ जिसमें कुल पूँजी निवेश की मात्रा 80 लाख रुपए है। संयंत्र का प्रमुख उत्पाद राइस ब्रान तेल है। संयंत्र द्वारा रोजगार प्राप्त व्यक्तियों की संख्या 48 है। 12 दिसम्बर, 1989 को रायपुर जिले के उरला औद्योगिक क्षेत्र में जगदम्बा रोलर फ्लोर मिल प्रा. लि. की स्थापना हुई जिसमें वर्तमान पूँजी निवेश की मात्रा 125 लाख रुपए है। संयंत्र का प्रमुख उत्पाद मैदा, सूजी, आटा (45000 मीट्रिक टन वार्षिक) है। संयंत्र द्वारा रोजगार प्राप्त व्यक्तियों की संख्या 34 है। 14 दिसम्बर, 1989 को उरला में ही 104.14 लाख रुपए की लागत से वेल्गो कमर्शियल इंटरप्राइजेज की स्थापना हुई जिसकी उत्पादन क्षमता 30000 मीट्रिक टन वार्षिक मैदा, सूजी तथा आटा उत्पादन की है। संयंत्र द्वारा रोजगार प्राप्त व्यक्तियों की संख्या 20 है। वर्ष 1990 में उरला में पारस फैट्स लिमिटेड की स्थापना हुई, जिसमें पूँजी निवेश की वर्तमान मात्रा 37.34 लाख रुपए है। संयंत्र के प्रमुख उत्पाद आर.बी. रिफाइन तेल तथा सोया रिफाइन तेल (15000 मीट्रिक टन वार्षिक) है। संयंत्र में रोजगार प्राप्त व्यक्तियों की संख्या 75 है। राजनांदगांव जिले के ग्राम खुटेरी में 15 फरवरी, 1990 में कमल साल्वेंट एक्सट्रेक्शन की स्थापना 950.31 लाख रुपयों की लागत से हुई। संयंत्र के प्रमुख उत्पाद रिफाइन्ड ब्रान तेल (7500 मीट्रिक टन वार्षिक) है। रोजगार प्राप्त व्यक्तियों की संख्या 297 है। रायपुर जिले के नेवरा ग्राम में 20 नवम्बर 1991 को 127.04 लाख रुपयों की लागत से चैतन्य साल्वेंट प्रा. लि. की स्थापना हुई, जिसका प्रमुख उत्पाद वनस्पति तेल (5400 मीट्रिक टन वार्षिक) है। 23 मार्च, 1992 को रायपुर जिले में छापरिया ऑयल एण्ड फैरेस प्रा. लि. की स्थापना हुई इस संयंत्र में पूँजी निवेश की मात्रा 86.79 लाख रुपए है तथा प्रमुख उत्पाद साल्वेंट एक्स्ट्रेक्शन (2000 मीट्रिक टन वार्षिक) है। औद्योगिक क्षेत्र उरला में 5 जून 1992 को हनुमान माइनर ऑयल लिमिटेड की स्थापना 130.85 लाख रुपयों की लागत से हुई। इस संयंत्र का प्रमुख उत्पाद साल्वेंट क्रिस्टल ऑयल (30000 मीट्रिक टन वार्षिक) है। रोजगार प्राप्त व्यक्तियों की संख्या 120 है। रायगढ़ जिले में एकमात्र खाद्य उद्योग रायगढ़ साल्वेंट एक्स्ट्रेक्शन प्लांट 4 मार्च, 1993 को 176.50 लाख रुपयों के पूँजी निवेश के साथ प्रारम्भ हुआ। संयंत्र का प्रमुख उत्पाद राइस ब्रान तेल (18000 मीट्रिक टन वार्षिक) तथा डी. ऑयल केक (24000 मीट्रिक टन वार्षिक) है। संयंत्र में कार्यरत व्यक्तियों की संख्या 50 है। खाद्य उद्योगों की उन्नति की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम भिलाई इंजीनियरिंग कार्पोरेशन द्वारा स्थापित बी.ई.सी. फूड डिवीजन की स्थापना है। इस खाद्य प्रसंस्करण उद्योग की स्थापना 17 मार्च, 1993 को दुर्ग जिले में हुई, जिसमें कुल पूँजी निवेश की मात्रा 1063.47 लाख रुपए है। संयंत्र का प्रमुख उत्पाद टोमेटो पेस्ट, जैम, मुरब्बा कॉन्सट्रैंट (6000 मीट्रिक टन वार्षिक) है। संयंत्र में रोजगार प्राप्त व्यक्तियों की संख्या 77 है। 24 फरवरी, 1993 को उरला औद्योगिक क्षेत्र में राजीव लोचन एक्स्ट्रेक्शन प्रा. लि. की स्थापना 109.27 लाख रुपयों के पूँजी निवेश के साथ हुई। संयंत्र का प्रमुख उत्पाद साल्वेंट एक्सट्रेक्शन (30000 मीट्रिक टन वार्षिक) है, जिसमें रोजगार प्राप्त व्यक्तियों की संख्या 28 है। 30 नवम्बर, 1993 को नवगठित जिला महासमुन्द में 116.39 लाख रुपयों के पूँजी निवेश के साथ सरायपाली ऑयल एक्स्ट्रेक्शन लिमिटेड की स्थापना हुई। संयंत्र का प्रमुख उत्पाद राइस ब्रान तेल (1740 मीट्रिक टन वार्षिक) है। संयंत्र में रोजगार प्राप्त व्यक्तियों की संख्या 66 है। राजनांदगांव जिले के देवादा ग्राम में 25 नवम्बर, 1993 को 368.32 लाख रुपयों की लागत से विद्यासागर साल्वेंट एक्स्ट्रेक्शन की स्थापना हुई। संयंत्र के प्रमुख उत्पाद साल्वेंट एक्स्ट्रेक्टेड तेल (10,800 मीट्रिक टन वार्षिक) तथा डी आइल्ड केक (48000 टन वार्षिक) है। संयंत्र में रोजगार प्राप्त व्यक्तियों की संख्या 51 है। 27 अक्टूबर, 1999 को महासमुंद जिले में के.एन. प्रोडक्ट्स की स्थापना 1.13 लाख रुपयों के पूँजी निवेश के साथ हुई। संयंत्र का प्रमुख उत्पाद डिफेक्टेड सोया फ्लोर है जिसमें रोजगार प्राप्त व्यक्तियों की संख्या 18 है। इस प्रकार प्रदेश में कुल 28 खाद्य उद्योग कार्यरत हैं जिसमें से रायपुर में 12, राजनांदगांव में 6, महासमुन्द में 4, दुर्ग में 2, धमतरी में 2 तथा भिलाई में 1 एवं रायगढ़ में 1 खाद्य उद्योग स्थापित है। इसमें कुल पूँजी निवेश की मात्रा 5229.84 लाख रुपए तथा रोजगार की संख्या 2514 है। (छ) वनोपज पर आधारित उद्योग :- वनोपज पर आधारित उद्योग के अन्तर्गत प्रदेश में मुख्यतः कागज उद्योग, जूट उद्योग तथा तेल मिल स्थापित है। जिनका विवरण निम्नांकित है :-
प्रदेश में सर्वप्रथम जूट मिल मोहन जूट मिल सन 1935 में रायगढ़ में स्थापित हुई, जिसमें वर्तमान पूँजी निवेश की मात्रा 280 लाख रुपए है। संयंत्र के प्रमुख उत्पाद गनीबैग (15300 मीट्रिक टन वार्षिक उत्पादन क्षमता) है। इस संयंत्र में रोजगार प्राप्त व्यक्तियों की संख्या 2000 है। रायपुर जिले के औद्योगिक क्षेत्र भनपुरी में 02 जनवरी, 1975 को गणेश जूटेक्स मिल में उत्पादन प्रारम्भ हुआ, जिसमें वर्तमान पूँजी निवेश की मात्रा 473.50 लाख रुपए है। संयंत्र का प्रमुख उत्पाद जूट यार्न (5197 मीट्रिक टन वार्षिक उत्पादन क्षमता) तथा क्लॉथ (1875000 मीटर) है। रोजगार प्राप्त व्यक्तियों की संख्या 488 है। वर्ष 1980 में बस्तर जिले के ग्राम कुरून्दी में 76 लाख रुपयों की लागत से बस्तर वुड प्रोडक्ट्स प्रारम्भ हुआ जिसके प्रमुख उत्पाद डेकोरेटिव वीनर्स तथा प्लाईवुड है। इस संयंत्र में रोजगार प्राप्त व्यक्तियों की संख्या 70 है। 31 मार्च 1982 को ग्राम कुरूंदी में ही 130 लाख रुपयों की पूँजी निवेश के साथ बस्तर ऑयल मिल्स एण्ड इण्डस्ट्रीज में उत्पादन प्रारम्भ हुआ। इस संयंत्र का प्रमुख उत्पाद साल बीज एक्सट्रेक्शन है, जिसकी उत्पादन क्षमता 30000 मीट्रिक टन वार्षिक है। इस संयंत्र में कार्यरत व्यक्तियों की संख्या 140 है। बिलासपुर जिले के अन्तर्गत ग्राम ढेका में 23 नवम्बर सन 1983 को कनोई पेपर मिल प्रारम्भ हुई, जिसमें वर्तमान पूँजी निवेश की मात्रा 1600 लाख रुपए है। संयंत्र का प्रमुख उत्पाद पेपर है जिसकी उत्पादन क्षमता 15500 टन वार्षिक पेपर उत्पादन की है। नवगठित जिला जांजगीर चांपा में मध्य भारत पेपर मिल की स्थापना 10 जनवरी, 1984 में हुई जिसमें वर्तमान पूँजी निवेश की मात्रा 6103 रुपए है। यह संयंत्र ग्राम बिरगहनी में स्थापित है जो चांपा नगर से 4 किमी पश्चिम दिशा में स्थित है। संयंत्र का प्रमुख कच्चा माल चावल का छिलका है। संयंत्र की उत्पादन क्षमता डुप्लिकेटिंग पेपर 10000 टन वार्षिक तथा क्राफ्ट पेपर 16500 टन वार्षिक उत्पादन की है। रोजगार प्राप्त व्यक्तियों की संख्या 667 है। रायपुर जिले के औद्योगिक क्षेत्र भनपुरी में 02 नवम्बर, 1987 को साल उद्योग 82.36 लाख रुपयों के पूँजी निवेश के साथ प्रारम्भ हुआ, जिसके प्रमुख उत्पाद ऑयल केक तथा ऑयल स्वीट्स (60 मीट्रिक टन वार्षिक) है। संयंत्र में कार्यरत व्यक्तियों की संख्या 13 है। 14 अप्रैल, 1988 को रायपुर जिले के ग्राम राजिम के समीप पारागांव में 292.98 रुपयों के पूँजी निवेश के साथ हनुमान एग्रो इण्डस्ट्रीज लिमिटेड प्रारम्भ हुआ जिसका प्रमुख उत्पाद पेपर बोर्ड (660 मीट्रिक टन वार्षिक) है। इस संयंत्र में कार्यरत व्यक्तियों की संख्या 72 है। रायगढ़ जिले के दर्रामुड़ा नामक स्थान पर प्रीकेम रेजिग्स की स्थापना 20 दिसम्बर, 1993 को हुई जिसमें वर्तमान पूँजी निवेश की मात्रा 301.21 लाख रुपए है। संयंत्र का प्रमुख उत्पाद प्लाई रेजिग्स है जिसकी उत्पादन क्षमता 4500 मीट्रिक टन वार्षिक है। संयंत्र में कार्यरत व्यक्तियों की संख्या 54 है। रायगढ़ जिले के ग्राम चपले में रायगढ़ पेपर एंड बोर्ड मिल की स्थापना 21 सितम्बर, 1994 को हुई जिसमें वर्तमान पूँजी निवेश की मात्रा 179.95 लाख रुपए है। संयंत्र का प्रमुख उत्पाद स्ट्राबोर्ड तथा मिल बोर्ड है। जिसकी उत्पादन क्षमता 25 मीट्रिक टन प्रतिदिन स्ट्रा तथा मिल बोर्ड उत्पादन की है। इस संयंत्र में रोजगार प्राप्त व्यक्तियों की संख्या 30 है। इस प्रकार प्रदेश में वनोपज पर आधारित कुल 10 इकाइयों में पूँजी निवेश की मात्रा 10128.02 लाख रुपए तथा रोजगार प्राप्त व्यक्तियों की संख्या 4429 है। (ज) वस्त्र उद्योग :- छत्तीसगढ़ प्रदेश में स्थापित वस्त्र उद्योग में एक प्रमुख नाम रायपुर जिले के औद्योगिक क्षेत्र उरला में स्थापित यूनिवर्थ इंडिया लिमिटेड का है। 01 नवम्बर, 1990 को उरला औद्योगिक क्षेत्र में यूनिवर्थ इंडिया लिमिटेड की स्थापना हुई, जिसमें वर्तमान पूँजी निवेश की मात्रा 1427.10 लाख रुपए है। संयंत्र में प्रयुक्त कच्चे माल मुख्यतः विदेशों से आयात किये जाते हैं तथा उत्पादन भी विदेशों को ही निर्यात किया जाता है। इस संयंत्र का प्रमुख उत्पाद वेस्टर्न वूलन यार्न है जिसकी उत्पादन क्षमता 5600 स्पिंडल्स वार्षिक उत्पादन की है। इस इकाई में कार्यरत व्यक्तियों की संख्या 507 है। 23 मई, 1993 को इस संयंत्र की अन्य इकाई यूनिवर्थ इंडिया लिमिटेड (फेब डिवीजन) प्रारम्भ हुई जिसमें वर्तमान पूँजी निवेश की मात्रा 3474 लाख रुपए है। संयंत्र का प्रमुख उत्पाद वेस्टर्न फैब्रिक्स है जिसकी उत्पादन क्षमता 54 लूम वार्षिक है। इस इकाई में रोजगार प्राप्त व्यक्तियों की संख्या 107 है। 01 नवम्बर, 1992 को यूनिवर्थ लिमिटेड (सिल्क डिवीजन) प्रारम्भ हुआ जिसमें वर्तमान पूँजी निवेश की मात्रा 4171.21 लाख रुपए है। इस इकाई के प्रमुख उत्पाद सिल्क यार्न (8320 स्पिंडल्स वार्षिक उत्पादन क्षमता) ओ.ई.एस. यार्न (320 स्पिंडल्स), सिल्क नॉइल यार्न (920 स्पिंडल्स) है। इस इकाई में कार्यरत व्यक्तियों की संख्या 258 है। इस प्रकार उपर्युक्त इकाइयों में कुल पूँजी निवेश की मात्रा 9072.37 लाख रुपए तथा रोजगार प्राप्त व्यक्तियों की संख्या 4239 है। (झ) अन्य उद्योग :- प्रदेश में स्थापित इंजीनियरिंग, फैरोएलाय, फैरो स्क्रेप तथा स्टील कास्टिक उद्योग है, जिनका विवरण निम्नांकित है :
तालिका द्वारा स्पष्ट है कि प्रदेश में स्थापित कुल 44 इंजीनियरिंग, फैरोएलाय एवं स्टील कास्टिंग उद्योगों में पूँजी निवेश की मात्रा 28812.44 लाख रुपए है तथा रोजगार की संख्या 12436 है। उपर्युक्त 44 उद्योगों में से 26 उद्योग रायपुर जिले के औद्योगिक क्षेत्र मुख्यतः उरला तथा भनपुरी में स्थापित हुए हैं। दुर्ग जिले में 15 उद्योग मुख्यतः भिलाई में स्थापित हुए हैं तथा इनकी स्थापना का एक प्रमुख कारण भिलाई इस्पात संयंत्र का इस क्षेत्र में स्थापित होना है। बिलासपुर जिले में एक इंजीनियरिंग उद्योग भारत अर्थ मूवर्स लिमिटेड स्थापित है जो केन्द्र सरकार का सार्वजनिक उपक्रम है। इसके अतिरिक्त राजनांदगांव तथा रायगढ़ जिले में एक-एक इंजीनियरिंग एवं फैरो एलॉय उद्योग स्थापित है। 02. लघु उद्योग :- लघु उद्योग एक व्यापक क्षेत्र है, जिसमें लघु, अतिलघु तथा कुटीर उद्योग क्षेत्र के उद्योग सम्मिलित हैं। इस क्षेत्र का भारतीय अर्थव्यवस्था के नियोजित विकास में एक महत्त्वपूर्ण योगदान है तथा यह हमारे राष्ट्र के एक अत्यन्त जीवन्त क्षेत्र के रूप में उभरा है। वृहद उद्योगों के समानान्तर लघु उद्योगों का अर्थव्यवस्था के सन्तुलित एवं तीव्र विकास में एक महत्त्वपूर्ण स्थान है। वृहद उद्योगों में जहाँ बड़े पैमाने पर कच्चा माल, तकनीकी कुशलता प्रशिक्षण एवं पूँजी की आवश्यकता होती है, वहीं लघु उद्योगों में सीमित लागत, सामान्य प्रशिक्षण के द्वारा अधिकाधिक रोजगार तथा संतोषप्रद उत्पादन उपलब्ध कराया जा सकता है। विभिन्न वर्षों में स्थापित लघु उद्योगों की संख्या, पूँजी निवेश तथा रोजगार की मात्रा तालिका 5.20 में प्रदर्शित की गई है। वर्ष 1990-91 में प्रदेश में पंजीकृत लघु इकाइयों की संख्या 7756 थी, जो वर्ष 1994-95 में घटकर 5,245 तथा वर्ष 1998-99 में पुनः बढ़कर 5504 हो गई। 1990-91 से 1998-99 के दौरान लघु इकाइयों में पूँजी निवेश की सर्वाधिक मात्रा (3353.94 लाख रुपए) वर्ष 1993-94 के मध्य रही। इस वर्ष प्रदेश में स्थापित लघु इकाइयों की संख्या 5340 थी, जबकि वर्ष 1992-93 में स्थापित इकाइयों की संख्या (8297) अन्य वर्षों की तुलना में अधिक थी। इसी वर्ष (1992-93) रोजगार की मात्रा (19395) भी अन्य वर्षों की तुलना में अधिक रही। जिलेवार लघु इकाइयों के विकास के अन्तर्गत दुर्ग जिले में वर्ष 1990-91 में पंजीकृत लघु इकाइयों की संख्या 1264 थी, वर्ष 1993-94 में घटकर 786 तथा 97-98 में पुनः बढ़कर 1024 तथा 1998-99 में 1001 हो गई। पूँजी निवेश की सर्वाधिक मात्रा (436.75 लाख रुपए) वर्ष 1993-94 में रही जबकि इस वर्ष पंजीकृत लघु इकाइयों की संख्या (786) अन्य वर्षों की तुलना में कम थी। रोजगार की मात्रा वर्ष 1991-92 में सबसे अधिक 2947 तथा वर्ष 1995-96 में सबसे कम 1909 रही। रायपुर जिले में वर्ष 1990-91 में पंजीकृत लघु इकाइयों की संख्या 1597 थी जो वर्ष 1992-93 में बढ़कर 1619 तथा 1998-99 में घटकर 740 रह गई। पूँजी निवेश की सर्वाधिक मात्रा (1507.31 लाख रुपए) वर्ष 1993-94 में रही, इस वर्ष जिले में पंजीकृत इकाइयों की संख्या 978 थी। अन्य वर्षों की तुलना में वर्ष 1997-98 में पूँजी निवेश की मात्रा (414.00 लाख रुपए) कम रही। रोजगार की मात्रा वर्ष 1992-93 में सर्वाधिक (3793) तथा 1998-99 में सबसे कम (1600) रही। राजनांदगांव जिले में वर्ष 1990-91 में 750 पंजीकृत लघु इकाइयाँ थीं जो वर्ष 1992-93 में बढ़कर 730 तथा 1997-98 में घटकर 531 हो गई जो वर्ष 1998-99 में 590 हो गई। पूँजी निवेश की सर्वाधिक मात्रा (372.53 लाख रुपए) वर्ष 1993-94 के मध्य रही। इस वर्ष जिले में स्थापित लघु इकाइयों की संख्या 524 थी। पूँजी निवेश की सबसे कम मात्रा वर्ष 1995-96 में (64.04 लाख रुपए) रही। रोजगार के दृष्टिकोण से सबसे अधिक मात्रा (2167) वर्ष 1992-93 में तथा सबसे कम (967) वर्ष 1994-95 के मध्य रही।
बस्तर जिले के अन्तर्गत वर्ष 1990-91 में मात्र 577 लघु इकाइयाँ पंजीकृत थीं, जो वर्ष 1992-93 में बढ़कर 1274 तथा 1997-98 में घटकर 978 हो गई तथा 1998-99 में इनकी संख्या 887 रह गई। जिले में पूँजी निवेश की सर्वाधिक मात्रा (241.48 लाख रुपए) वर्ष 1997-98 में तथा सबसे कम (21.85 लाख रुपए) वर्ष 1990-91 में रही रोजगार की मात्रा सबसे अधिक (2372) वर्ष 1991-92 में रही इस वर्ष स्थापित इकाइयों की संख्या 1265 थी तथा सबसे कम रोजगार (832) की मात्रा वर्ष 1990-91 में रही। बिलासपुर जिले में वर्ष 1990-91 में पंजीकृत लघु इकाइयों की संख्या 1358 थी, जो वर्ष 1992-93 में बढ़कर 1538 तथा 1996-97 में घटकर 965 तथा 1997-98 में पुनः बढ़कर 1058 तथा 1998-99 में घटकर 824 हो गई। जिले में पूँजी निवेश की सर्वाधिक मात्रा (662.93 लाख रुपए) वर्ष 1998-99 में रही तथा सबसे कम (162.52 लाख रुपए) वर्ष 1990-91 में रही। इसके विपरीत रोजगार की मात्रा वर्ष 1990-91 में (2518), वर्ष 1998-99 (1894) की तुलना में अधिक रही। वर्ष 1992-93 में रोजगार की संख्या (3252) अन्य वर्षों की तुलना में अधिक रही। रायगढ़ जिले में वर्ष 1990-91 में 1129 पंजीकृत लघु इकाइयाँ स्थापित थीं जो 1994-95 में घटकर मात्र 591 रह गई तथा 1998-99 तक इनकी संख्या 700 हो गई। पूँजी निवेश के दृष्टिकोण से वर्ष 1993-94 में पूँजी निवेश की मात्रा (270.00 लाख रुपए) अन्य वर्षों की तुलना में अधिक थी। सबसे कम पूँजी निवेश (40.55 लाख रुपए) वर्ष 1994-95 के मध्य रहा। पूँजी निवेश की मात्रा कम होने के विपरीत इस वर्ष रोजगार की मात्रा (1918) अन्य वर्षों की तुलना में अधिक रही। रोजगार की मात्रा सबसे अधिक (3122) वर्ष 1990-91 में तथा सबसे कम वर्ष 1995-96 में (1105) रही। सरगुजा जिले में वर्ष 1990-91 में पंजीकृत लघु इकाइयाँ 1081 थीं जो 1994-95 में घटकर मात्रा 606 रह गई तथा वर्ष 1998-99 में इनकी संख्या बढ़कर 758 हो गई। सरगुजा जिले में अन्य जिलों की तुलना में पूँजी निवेश की मात्रा अत्यन्त कम रही। वर्ष 1990-91 में यह मात्रा 37.11 लाख रुपए थी जो वर्ष 1993-94 में बढ़कर 112 लाख तथा 1998-99 में घटकर 91.95 लाख रुपए हो गई। जिले में वर्षवार रोजगार की मात्रा में भी कमी दृष्टिगोचर होती है। वर्ष 1990-91 में रोजगार की मात्रा जहाँ 2952 थी वहीं 1995-96 में यह मात्रा घटकर 1492 तथा 1998-99 में 1182 रह गई। इस प्रकार स्पष्ट है कि प्रदेश में स्थापित लघु इकाइयों (57175) में से सबसे अधिक (10,686) इकाइयाँ रायपुर जिले में स्थापित हुई हैं। सबसे कम इकाइयाँ (5224) राजनांदगांव में स्थापित हैं। सबसे अधिक पूंजी निवेश की मात्रा (5507.89 लाख रुपए) रायपुर जिले में तथा सबसे कम (650.65 लाख रुपए) सरगुजा जिले में रही जबकि सरगुजा जिले में राजनांदगांव जिले की तुलना में लघु इकाइयों की संख्या अधिक है (7110)। इसी प्रकार रोजगार की मात्रा सबसे अधिक रायपुर जिले में (25317) तथा सबसे कम राजनांदगांव जिले में (12992) रही। बस्तर जिले में इकाइयों की संख्या अधिक (8347) होते हुए भी रोजगार की मात्रा सरगुजा जिले में अधिक (18239) रही जबकि बस्तर में रोजगार की मात्रा 16508 रही। औद्योगिक विकास के स्तर :- औद्योगिक विकास के दृष्टिकोण से प्रदेश में 165 वृहद एवं मध्यम इकाइयाँ तथा 57175 लघु इकाइयाँ कार्यरत हैं। स्वतन्त्रता पूर्व प्रदेश में जहाँ सूती वस्त्र, कोसा, जूट एवं बीड़ी उद्योगों की प्रधानता थी, वहीं स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात खनिज आधारित उद्योग मुख्यतः लोहा इस्पात, एल्युमिनियम तथा सीमेंट उद्योगों की प्रदेश के औद्योगिक विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका रही। इनमें ताप विद्युत संयंत्रों की स्थापना का विशेष महत्त्व है। वर्ष 1954 में कोरबा में ताप विद्युत संयंत्र, 1973 में भारत एल्युमिनियम कम्पनी लिमिटेड की स्थापना से प्रदेश में औद्योगिक विकास से सम्बन्धित गतिविधियों को बल मिला। इन संयंत्रों की स्थापना के फलस्वरूप प्रदेश में लघु इस्पात संयंत्र, स्पंज आयरन तथा फेरोएलॉय, रोलिंग मिल की स्थापना के साथ ही साथ रासायनिक उद्योग, विस्फोटक पदार्थ उद्योग, प्लास्टिक तथा प्लाइवुड एवं कृषि पर आधारित उद्योग स्थापित हुए हैं। प्रदेश में जिलेवार स्थापित वृहद एवं मध्यम इकाइयों की संख्या, पूँजी निवेश तथा रोजगार की मात्रा निम्नांकित है :
तालिका द्वारा स्पष्ट है कि प्रदेश में स्थापित 165 वृहद एवं मध्यम औद्योगिक इकाइयों में पूँजी निवेश की मात्रा 9,97,251.17 लाख रुपए तथा रोजगार प्राप्त व्यक्तियों की संख्या 2,44,288 है। उद्योगों की स्थापना की दृष्टि से रायपुर जिले में सबसे अधिक 84 उद्योग तथा धमतरी जिले में मात्र 2 वृहद एवं मध्यम उद्योग स्थापित है। पूँजी निवेश के अन्तर्गत सबसे अधिक पूँजी निवेश रायपुर जिले में (4,16,232.09 लाख रुपए) तथा सबसे कम महासमुन्द जिले में (63 लाख रुपए) है। रोजगार की संख्या की दृष्टि से सबसे अधिक रोजगार की मात्रा बिलासपुर जिले में (1,20,678 व्यक्ति) तथा सबसे कम धमतरी जिले में (93 व्यक्ति) रही। रायपुर जिले में उद्योगों की संख्या अधिक होते हुए भी रोजगार की मात्रा जहाँ 7.9 प्रतिशत रही वहीं दुर्ग जिले में यह प्रतिशत 30.76 तथा बिलासपुर में 56.42 प्रतिशत रहा, जिसका प्रमुख कारण इन जिलों में भिलाई इस्पात संयंत्र तथा भारत एल्युमिनियम कम्पनी लिमिटेड का स्थापित होना है। औद्योगिक सूचकांक :- वृहद उद्योगों की संख्या, पूँजी निवेश तथा रोजगार की संख्या के आधार पर औद्योगिक सूचकांक ज्ञात कर प्रदेश के विभिन्न जिलों में औद्योगिक विकास का स्तर ज्ञात किया गया है। औद्योगिक सूचकांक ज्ञात करने हेतु प्रदेश में स्थापित इकाइयों की संख्या, पूँजी निवेश तथा रोजगार की मात्रा को प्रमुख आधार माना गया है। औद्योगिक सूचकांक की गणना हेतु प्रत्येक जिले की उपर्युक्त श्रेणियों में मध्यिका की गणना कर तथा मध्यिका को 100 मानकर प्राप्त अंकों का (तीनों श्रेणियों में) योग कर औद्योगिक सूचकांक ज्ञात किया गया है। प्रदेश का औद्योगिक सूचकांक निम्नांकित है :
उपर्युक्त औद्योगिक सूचकांक के आधार पर प्रदेश को 4 औद्योगिक विकास स्तरों में विभाजित किया गया है जो निम्नांकित है :- 01. उच्च औद्योगिक विकास क्षेत्र :- उच्च औद्योगिक विकास क्षेत्र के अन्तर्गत प्रदेश के दुर्ग एवं बिलासपुर जिलों को सम्मिलित किया गया है। इन क्षेत्रों में मुख्यतः भिलाई इस्पात संयंत्र तथा एस.ई.सी.एल. की स्थापना से यहाँ पूँजी निवेश तथा रोजगार की मात्रा अन्य जिलों की अपेक्षा अधिक रही। 02. मध्यम औद्योगिक विकास क्षेत्र :- प्रदेश के रायपुर, कोरबा तथा जांजगीर चांपा जिले मध्यम औद्योगिक विकास क्षेत्र के अन्तर्गत सम्मिलित हैं। 03. निम्न औद्योगिक विकास क्षेत्र :- निम्न औद्योगिक विकास क्षेत्र के अन्तर्गत बस्तर, रायगढ़ तथा राजनांदगांव जिले सम्मिलित हैं। उद्योगों की संख्या, पूँजी निवेश तथा रोजगार के दृष्टिकोण से भी ये क्षेत्र पिछड़े रहे। 04. अति निम्न औद्योगिक विकास क्षेत्र :- अति निम्न औद्योगिक विकास क्षेत्र के अन्तर्गत धमतरी तथा महासमुन्द जिले सम्मिलित हैं, जहाँ मुख्यतः कृषि प्रधान औद्योगिक इकाइयाँ स्थापित हैं। उद्योग विहीन क्षेत्र :- वृहद एवं मध्यम उद्योगों की स्थापना की दृष्टि से ऐसे क्षेत्र जहाँ वृहद एवं मध्यम स्तरीय औद्योगिक इकाइयाँ स्थापित नहीं हैं, उन्हें उद्योग विहीन क्षेत्र के अन्तर्गत सम्मिलित किया गया है। इस क्षेत्र के अन्तर्गत प्रदेश के कांकेर, दन्तेवाड़ा, कोरिया, सरगुजा, जशपुर तथा कवर्धा जिले समावेशित है। राज्य शासन (म.प्र.) द्वारा जिलों को औद्योगिक विकास की दृष्टि से विकसित एवं पिछड़े जिलों में विभाजित किया गया है, जो निम्नांकित हैं -
Central and State Government Incentives for Industrial Development, PHD Chamber of Commerce And Industry, May 1986, P.217. उपर्युक्त पिछड़े जिलों के सन्दर्भ में औद्योगिक विकास की समस्या संसाधन के अभाव अथवा प्रौद्योगिक कुप्रबन्ध से सम्बन्धित ना होकर मानव संसाधनों को उचित प्रशिक्षण तथा उपयोग से ज्यादा सम्बन्धित है। औद्योगिक विकास की दृष्टि से रायगढ़, ब श्रेणी का पिछड़ा हुआ जिला है, इस जिले में औद्योगिक इकाइयों की संख्या कम होने का प्रमुख कारण अविकसित मूलभूत अधोसंरचना है। बस्तर जिला औद्योगिक विकास की दृष्टि से स श्रेणी में आता है। जिले में जहाँ एक ओर कुशल श्रम शक्ति का अभाव है वहीं परम्परागत कौशल तथा हस्तशिल्प के उचित दिशा निर्देश की आवश्यकता है। साथ ही परिवहन साधनों का उचित विकास अति आवश्यक है। इसके साथ ही औद्योगिक अधोसंरचना का अभाव, अविकसित बाजार तथा औद्योगिक पूँजी निवेश के प्रति सामान्य उदासीनता भी औद्योगिक पिछड़ेपन के प्रमुख कारण हैं। प्रदेश में स्थापित सार्वजनिक उपक्रम :- निजी क्षेत्र के उपक्रमों के अतिरिक्त प्रदेश में केन्द्र सरकार के सार्वजनिक उपक्रमों की संख्या, पूँजी निवेश तथा रोजगार निम्नांकित हैं :
स्पष्ट है कि प्रदेश में केन्द्र सरकार के सार्वजनिक उपक्रमों की संख्या 17 है, जिनमें दुर्ग जिले के प्रमुख सार्वजनिक उपक्रम स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया, भिलाई रिफैक्ट्रीज संयंत्र, स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड, प्लेट मिल, माइक्रोवेव, टावर, फैरोस्क्रेप निगम तथा हिन्दुस्तान स्टील वर्क्स कन्सट्रक्शन लिमिटेड, रायपुर जिले में वैगन रिपेयर वर्कशॉप, सीमेंट कारपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड, कोरबा में भारत एल्युमिनियम कम्पनी लिमिटेड आई.बी.पी. कम्पनी गोपालपुर, नेशनल थर्मल पावर कारपोरेशन, आई.बी.पी. कम्पनी कुसमुन्डा, बिलासपुर में भारत अर्थमूवर्स, एस.ई.सी.एल. तथा राजनांदगांव जिले में बंगाल नागपुर कपास मिल जो कि प्रदेश का प्रथम सार्वजनिक उपक्रम है। जांजगीर चांपा में सीमेंट कारपोरेशन ऑफ इंडिया तथा बस्तर में नेशनल मिनरल्स डेवलपमेंट कारपोरेशन लिमिटेड प्रमुख सार्वजनिक उपक्रम है। छत्तीसगढ़ राज्य गठन के पश्चात केन्द्र सरकार के सार्वजनिक उपक्रम भारत एल्युमिनियम कम्पनी लिमिटेड का निजी क्षेत्र की कम्पनी स्टरलाइट द्वारा अधिग्रहण किया जा चुका है।
छत्तीसगढ़ में सीमेंट उद्योग कहाँ है?सीमेंट उद्योग के अन्तर्गत 13 इकाइयाँ कार्यरत हैं, जिनमें से रायपुर में 5, दुर्ग में 2, जांजगीर चांपा में 2, बस्तर में 2 तथा रायगढ़ में 2 इकाई स्थापित है। वनोपज आधारित उद्योगों के अन्तर्गत 11 इकाइयाँ कार्यरत है, जिनमें से रायगढ़ में 4, बस्तर में 2, रायपुर में 3, बिलासपुर तथा जांजगीर चांपा में 1-1 इकाई स्थापित है।
छत्तीसगढ़ के प्रमुख उद्योग कौन कौन से हैं?खनिज आधारित उद्योग: खनिज आधारित उद्योगों में लौह-इस्पात, सीमेंट, एल्युमिनियम आदि प्रमुख प्रमुख है।. लौह-इस्पात, छत्तीसगढ़ का एक प्रमुख उद्योग है। ... . सीमेंट उद्योग, आधारभूत उद्योगों में लौह-इस्पात के पश्चात राज्य में सीमेंट उद्योग का स्थान है। ... . एल्युमिनियम उद्योग, ... . वन आधारित उद्योग:. कागज उद्योग, ... . बीड़ी-सिगरेट उद्योग, ... . कत्था,. छत्तीसगढ़ राज्य के प्रथम उद्योग का क्या नाम है?प्रश्न क्रमांक 78 में पूछा गया कि राज्य के प्रथम उद्योग का क्या नाम है! इस सवाल के जवाब को लेकर कई प्रतिभागी असमंजस में थे। आयोग ने चार विकल्प भी दिया था। जिनमें पहला मोहन जूट मिल दूसरा भिलाई इस्पात संयत्र तीसरा मोनेट इस्पात संयंत्र और चौथा बंगाल-नागपुर काटल मिल शामिल था।
छत्तीसगढ़ में प्रथम सीमेंट कारखाने की स्थापना कब हुई?1965 में छत्तीसगढ़ का पहला सीमेंट कारखाना जामुल में स्थापित किया गया है, जामुल राज्य के किस जिले में है ?
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