चने का कुल कौन सा है? - chane ka kul kaun sa hai?

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Rajasthan Police Constable Official Paper (Held On: 6 Nov 2020 Shift 1)

150 Questions 75 Marks 120 Mins

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Last updated on Sep 15, 2022

Rajasthan Police Constable Admit Card released. This is for the PET/PST stage. Candidates who have qualified the written exam are eligible to appear for this stage of the selection process. Earlier, the Result & Final answer key for written exam were released on 24th August 2022. The Rajasthan Police had announced 4438 vacancies for the said post. The candidates have to undergo Written Test, PET, PST, and Medical Examination as part of the selection process. The candidates finally appointed as Rajasthan Police Constable will be entitled to a Grade Pay of INR 2000.

चने का कुल कौन सा है? - chane ka kul kaun sa hai?
Chane Ke Kheti

चना भारत की सबसे महत्वपूर्ण दलहनी फसल है. चने को दालों का राजा भी कहा जाता है. पोषक मान की दृष्टि से चने के 100 ग्राम दाने में औसतन 11 ग्राम पानी, 21.1 ग्राम प्रोटीन, 4.5 ग्रा. वसा, 61.5 ग्रा. कार्बोहाइड्रेट, 149 मिग्रा. कैल्सियम, 7.2 मिग्रा. लोहा, 0.14 मिग्रा. राइबोफ्लेविन तथा 2.3 मिग्रा. नियासिन पाया जाता है. चने का प्रयोग दाल एवं रोटी के लिए किया जाता है.

चने को पीसकर बेसन तैयार किया जाता है ,जिससे विविध व्यंजन बनाये जाते हैं. चने की हरी पत्तियाँ साग बनाने, हरा तथा सूखा दाना सब्जी व दाल बनाने के लिए इस्तेमाल होता है. दाल से अलग किया हुआ छिलका और भूसा भी पशु चाव से खाते है. दलहनी फसल होने के कारण यह जड़ों में वायुमण्डलीय नत्रजन स्थिर करती है, जिससे खेत की उर्वरा शक्ति बढ़ती है.

भारत में चने की खेती मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान तथा बिहार में की जाती है. देश के कुल चना क्षेत्रफल का लगभग 90 प्रतिशत भाग तथा कुल उत्पादन का लगभग 92 प्रतिशत इन्हीं प्रदेशों से प्राप्त होता है. भारत में चने की खेती 7.54 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र में की जाती है, जिससे 7.62 क्विं./हे. के औसत मान से 5.75 मिलियन टन उपज प्राप्त होती है. भारत में सबसे अधिक चने का क्षेत्रफल एवं उत्पादन वाला राज्य मध्यप्रदेश है तथा छत्तीसगढ़ प्रांत के मैदानी जिलो में चने की खेती असिंचित अवस्था में की जाती है.

जलवायु (Climate)

चना एक शुष्क एवं ठण्डे जलवायु की फसल है जिसे रबी मौसम में उगाया जाता हैं. चने की खेती के लिए मध्यम वर्षा (60-90 से.मी. वार्षिक वर्षा) और सर्दी वाले क्षेत्र सर्वाधिक उपयुक्त होता है.

फसल में फूल आने के बाद वर्षा होना हानिकारक होता है, क्योंकि वर्षा के कारण फूल परागकण एक दूसरे से चिपक जाते जिससे बीज नही बनते है। इसकी खेती के लिए 24-300सेल्सियस तापमान उपयुक्त माना जाता है. फसल के दाना बनते समय 30 सेल्सियस से कम या 300 सेल्सियस से अधिक तापक्रम हानिकारक रहता है.

भूमि का चुनाव (Selection of land)

सामान्य तौर पर चने की खेती हल्की से भारी भूमियों में की जाती है, किंतु अधिक जल धारण क्षमता एवं उचित जल निकास वाली भूमियाँ सर्वोत्तम रहती है. छत्तीसगढ़ की डोरसा, कन्हार भूमि इसकी खेती हेतु उपयुक्त है. मृदा का पी-एच मान 6-7.5 उपयुक्त रहता है. चने की खेती के लिए अधिक उपजाऊ भूमियाँ उपयुक्त नहीं होती, क्योंकि उनमें फसल की बढ़वार अधिक हो जाती है जिससे फूल एवं फलियाँ कम बनती हैं.

भूमि की तैयारी (Land preparation)

अंसिचित अवस्था में मानसून शुरू होने से पूर्व गहरी जुताई करने से रबी के लिए भी नमी संरक्षण होता है. एक जुताई मिट्टी पलटने वाले हल तथा 2 जुताई देशी हल से की जाती है. फिर पाटा चलाकर खेत को समतल कर लिया जाता है. दीमक प्रभावित खेतों में क्लोरपायरीफास मिलाना चाहिए इससे कटुआ कीट पर भी नियंत्रण होता है. चना की खेती के लिए मिट्टी का बारीक होना आवश्यक नहीं है, बल्कि ढेलेदार खेत ही चने की उत्तम फसल के लिए अच्छा समझा जाता है.

खरीफ फसल कटने के बाद नमी की पर्याप्त मात्रा होने पर एक जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से तथा दो जुताइयाँ देशी हल या ट्रैक्टर से की जाती है और फिर पाटा चलाकर खेत समतल कर लिया जाता है. दीमक प्रभावित खेतों में क्लोरपायरीफास 1.5 प्रतिशत चूर्ण 20 किलो प्रति हेक्टर के हिसाब से जुताई के दौरान मिट्टी में मिलना चाहिए. इससे कटुआ कीट पर भी नियंत्रण होता है.

उन्नत किस्म (Advanced variety)

देशी चने का रंग पीले से गहरा कत्थई या काले तथा दाने का आकार छोटा होता है. काबुली चने का रंग प्रायः सफेद होता है. इसका पौधा देशी चने से लम्बा होता है. दाना बड़ा तथा उपज देशी चने की अपेक्षा कम होती है. छत्तीसगढ़ के लिए अनुशंसित चने की प्रमुख किस्मों की विशेषताएँ यहां प्रस्तुत है:- 

वैभव: इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित यह किस्म सम्पूर्ण छत्तीसगढ़ के लिए उपयुक्त है. यह किस्म 110 - 115 दिन में पकती है. दाना बड़ा, झुर्रीदार तथा कत्थई रंग का होता है. उतेरा के लिए भी यह उपयुक्त है. अधिक तापमान, सूखा और उठका निरोधक किस्म है,जो सामान्यतौर पर 15 क्विंटल तथा देर से बोने पर 13 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज देती है.

जेजी-74:  यह किस्म 110-115 दिन में तैयार हो जाती है. इसकी पैदावार लगभग 15 से 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है.

उज्जैन 21:  इसका बीज खुरदरा होता है. यह जल्दी पकने वाली जाति है जो 115 दिन में तैयार हो जाती है. उपज 8 से 10 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है. दाने में 18 प्रतिशत प्रोटीन होती है.

राधे: यह किस्म 120 - 125 दिन में पककर तैयार होती है. यह 13 से 17 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज होती है.

जे. जी. 315:  यह किस्म 125 दिन में पककर तैयार हो जाती है. इसकी औसतन उपज 12 से 15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है. इसके बीज का रंग बादामी होती है, यह  देर से बोनी हेतु उपयुक्त है.

जे. जी. 11:  यह 100 - 110 दिन में पक कर तैयार होने वाली नवीन किस्म है. कोणीय आकार का बड़ा बीज होता है. औसत उपज 15 से 18 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है. रोग रोधी किस्म है जो सिंचित व असिंचित क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है.

जे. जी. 130:  यह 110 दिन में पककर तैयार होने वाली नवीन किस्म है. पौधा हल्के फैलाव वाला, अधिक शाखाएँ, गहरे गुलाबी फूल, हल्का बादामी चिकना है. औसत उपज 18 से 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है.

बीजी-391:  यह चने की देशी बोल्ड दाने वाली किस्म है जो 110-115 दिन में तैयार होती है तथा प्रति हेक्टेयर 14-15 क्विंटल उपज देती है. यह उकठा निरोधक किस्म है|

जेएकेआई-9218:  यह भी देशी चने की बोल्ड दाने की किस्म है. यह 110-115 दिन में तैयार होकर 19-20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज देती है . उकठा रोग प्रतिरोधक किस्म है .

विशाल: चने की यह सर्वगुण सम्पन्न किस्म है जो कि 110 - 115 दिन में तैयार हो जाती है. इसका दाना पीला, बड़ा एवं उच्च गुणवत्ता वाला होता है. दानों से सर्वाधिक (80%) दाल प्राप्त होती है. अतः इसका बाजार में भाव अधिक मिलता है. इसकी उपज क्षमता 35 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है.

काबुली चना

काक-2: यह 120-125 दिनों में पकने वाली किस्म है. इसकी औसत उपज 15 से 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है. यह भी उकठा निरोधक किस्म है.

श्वेता (आई.सी.सी.व्ही.- 2):  काबुली चने की इस किस्म का दाना आकर्षक मध्यम आकार का होता है. इसकी फसल 85 दिन में तैयार होकर औसतन 13 - 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज देती है. सूखा और सिंचित क्षेत्रों के लिए उत्तम किस्म है. इसका छोला अत्यंत स्वादिष्ट तथा फसल शीघ्र तैयार होने के कारण बाजार में इसका भाव अच्छा प्राप्त होता है.

जेजीके-2:  यह काबुली चने की 95-110 दिन में तैयार होने वाली उकठा निरोधक किस्म है जो कि 18-19 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज देती है.

मेक्सीकन बोल्ड: यह सबसे बोल्ड सफेद, चमकदार और आकर्षक चना है. यह 90 - 95 दिन में पककर तैयार हो जाती है. बड़ा और स्वादिष्ट दाना होने के कारण बाजार भाव सार्वाधिक मिलता है. औसतन 25 - 50 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज प्राप्त होती है. यह कीट, रोग व सूखा सहनशील किस्म है.

हरा चना

जे.जी.जी.1:  यह किस्म 120 - 125 दिन में पककर तैयार होने वाली हरे चने की किस्म है. इसकी औसतन उपज 13 से 15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है.

हिमा: यह किस्म 135 - 140 दिन में पककर तैयार हो जाती है तथा यह औसतन 13 से 17 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज देती है. इस किस्म का बीज छोटा होता है 100 दानों का वजन 15 ग्राम है.

बीज की मात्रा (Seed quantity)

चने की समय पर बुवाई करने के लिए देशी चना (छोटा दाना) 75 - 80 कि.ग्रा/हे. तथा देशी चना (मोटा दाना) 80 - 10 कि.ग्रा./हे., काबुली चना (मोटा दाना) - 100 से 120 कि.ग्रा./हे. की दर से बीज का प्रयोग करना चाहिए। पछेती बुवाई हेतु देशी चना (छोटा दाना) - 80 - 90 किग्रा./हे. तथा देशी चना (मोटा दाना) -100 से 110 कि.ग्र./हे. तथा उतेरा पद्धति से बोने के लिए 100 से 120 किग्रा./हे. बीज पर्याप्त रहता है। सामान्य तौर बेहतर उपज के लिए प्रति हेक्टेयर लगभग 3.5 से 4 लाख की पौध सख्या अनुकूल मानी जाती है।

बुवाई का समय व विधि (Sowing time and method)

चने की बुआई समय पर करने से फसल की वृद्धि अच्छी होती है साथ ही कीट एवं बीमारियों से फसल की रक्षा होती है, फलस्वरूप उपज अच्छी मिलती है। अनुसंधानो से ज्ञात होता है कि 20 से 30 अक्टूबर तक चने की बुवाई करने से सर्वाधित उपज प्राप्त होती है। असिंचित क्षेत्रों में अगेती बुआई सितम्बर के अन्तिम सप्ताह से अक्टूबर के तृतीय सप्ताह तक करनी चाहिए। सामान्यतौर पर अक्टूबर अंत से नवम्बर का पहला पखवाड़ा बोआई के लिए सर्वोत्तम रहता है। सिंचित क्षेत्रों में पछेती बोआई दिसम्बर के तीसरे सप्ताह तक संपन्न कर लेनी चाहिए। उतेरा पद्धति से बोने हेतु अक्टूबर का दूसरा पखवाड़ा उपयुक्त पाया गया है।

छत्तीसगढ़ में धान कटाई के बाद दिसम्बर के प्रथम सप्ताह तक चने की बोआई की जा सकती है, जिसके लिए जे. जी. 75,  जे. जी. 315,  भारती, विजय और अन्नागिरी आदि उपयुक्त किस्में है। बूट हेतु चने की बोआई सितम्बर माह के अंतिम सप्ताह से अक्टूबर माह के प्रथम सप्ताह तक की जाती है। बूट हेतु चने की बड़े दाने वाली किस्में जैसे वैभव, पूसा 256, पूसा 391, विश्वास, विशाल, जे.जी. 11 आदि लगाना चाहिए।

सिंचाई (Irrigation)

आमतौर पर चने की खेती असिंचित अवस्था में की जाती है। चने की फसल के लिए कम जल की आवश्यकता होती है। चने में जल उपलब्धता के आधार पहली सिंचाई फूल आने के पूर्व अर्थात बोने के 45 दिन बाद एवं दूसरी सिंचाई दाना भरने की अवस्था पर अर्थात बोने के 75 दिन बाद करना चाहिए।

खाद एवं उर्वरक (Manures and Fertilizers)

चने की फसल से अच्छी उपज लेने के लिए 20 किलों नत्रजन, 40 किलो स्फुर, 20 किलो पोटाष व 20 किलो सल्फर प्रति हेक्टेयर का उपयोग करना चाहिए। उर्वरक की पूरी मात्रा बुवाई के समय कूंड में बीज के नीचे 5-7 से.मी. की गहराई पर देना लाभप्रद रहता है। मिश्रित फसल के साथ चने की फसल को अलग से खाद देने की आवश्यकता नहीं रहती है।

कीट नियंत्रण (Pest control)

कटुआ : चने की फसल को कटुआ अत्यधिक नुकसान पहुँचाता है। इसकी रोकथाम के लिए 20 कि.ग्रा./हे. की दर से क्लोरापायरीफॉस भूमि में मिलाना चाहिए।

फली छेदक : इसका प्रकोप फली में दाना बनते समय अधिक होता हैं, नियंत्रण नही करने पर उपज में 75 प्रतिशत कमी आ जाती है। इसकी रोकथाम के लिए मोनाक्रोटोफॉस 40 ई.सी 1 लीटर दर से 600-800 ली. पानी में घोलकर फली आते समय फसल पर छिड़काव करना चाहिए।

चने के उकठा रोग नियंत्रण

उकठा रोग निरोधक किस्मों का प्रयोग करना चाहिए। प्रभावित क्षेत्रो में फल चक्र अपनाना लाभकर होता है प्रभावित पौधा को उखाडकर नष्ट करना अथवा गढ्ढे में दबा देना चाहिए। बीज को कार्बेन्डाजिम 2.5 ग्राम या ट्राइकोडर्मा विरडी 4 ग्राम/किलो बीज की दर से उपचारित कर बोना चाहिए।

उत्पादन एवं भण्डारण (Production and storage)

चने की शुध्द फसल में प्रति हेक्टेयर लगभग 20-25 क्विं. दाना एवं इतना ही भूसा प्राप्त होता है। काबूली चने की पैदावार देशी चने से तुलना में थोडा सा कम देती है। इसके भण्डारण के समय 10-12 प्रतिशत नमी रहना चाहिए।

लेखक- इन्द्रपाल सिंह पैकरा,  झालेश कुमार एवं राजेंद्र लाकपाले
(इंदिरा गाँधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर 492012 (छत्तीसगढ़)

English Summary: Advanced varieties of gram and farming Published on: 24 December 2018, 05:16 IST

चना का कुल नाम क्या है?

चना का कुल नाम Fabaceae है

चना में कौन सी जड़ पाई जाती है?

बुआई में अधिक विलम्ब करने पर पैदावार कम हो जाती है। तथा फसल में चना फली भेदक का प्रकोप भी अधिक होने की सम्भावना बनी रहती है

सबसे अच्छा चना कौन सा है?

पूसा चिकपी 10216 सूखे क्षेत्रों में भी अच्छी उपज दे सकती है। इसकी औसत पैदावार 1,447 किलो प्रति हेक्टेयर है। देश के मध्य के इलाकों नमी की कम उपलब्धता की स्थिति में यह पूसा 372 से करीब 11.9 फीसदी अधिक पैदावार देती है। यह किस्म 110 दिन में तैयार हो जाती है और इसके 100 बीजों का वजन लगभग 22.2 ग्राम होता है।

चना का क्या नाम है?

चना चना एक प्रमुख दलहनी फसल है। ... चना.