वर्ष 1965 में केंद्र सरकार ने जनजातियों की पहचान के लिए लोकर समिति का गठन किया। लोकर समिति की सिफारिश पर 1967 में उत्तराखंड की 5 जनजातियों थारू, जौनसारी, भोटिया, बोक्सा, और राजी को एसटी (ST) का दर्जा मिला । राज्य की मात्र 2 जनजातियों को आदिम जनजाति का दर्जा प्राप्त है । सर्वप्रथम राज्य की राजी जनजाति को आदिम जनजाति का दर्जा मिला। बोक्सा जनजाति को 1981 में आदिम जनजाति का दर्जा प्राप्त हुआ था । राज्य में सर्वाधिक आबादी थारू जनजाति तथा सबसे कम आबादी राज्यों की रहती है। 2011 की जनगणना के अनुसार राज्य की कुल एसटी आबादी 2,91,903 है। जुलाई 2001 से राज्य सेवाओं में अनुसूचित जन जातियों को 4% आरक्षण प्राप्त है। Show
उत्तराखंड की जनजातियों से संबंधित प्रश्नविशेष सूचना :- लेख में दिए गए अधिकांश प्रश्न समूह-ग की पुरानी परीक्षाओं में पूछे गए हैं। और कुछ प्रश्न वर्तमान परीक्षाओं को देखते हुए उत्तराखंड की जनजातियों से संबंधित 25+ प्रश्न तैयार किए गए हैं। जो आगामी परीक्षाओं के लिए महत्वपूर्ण साबित होंगे। बता दें की उत्तराखंड के 40 प्रश्नों में से 2 प्रश्न उत्तराखंड की जनजातियों से पूछे जाते हैं। अतः लेख को ध्यानपूर्वक पढ़े। (1) राज्य में सबसे कम अनुसूचित जनजातियों की आबादी किस जनपद में रहती है ? (a) उधम सिंह नगर (b) चमोली (c) उत्तरकाशी (d) रुद्रप्रयाग व्याख्या :- राज्य में सबसे कम अनुसूचित जनजातियों की आबादी रुद्रप्रयाग में रहती है। इसके बाद क्रमशः टिहरी व चमोली जिले में रहती है। जबकि सर्वाधिक अनुसूचित जनजातियों की आबादी उधम सिंह नगर में रहती है। Answer - (d) (2) थारू लोग अपने आप को वंशज मानते हैं- (2021) (a) खस बंद (b) पंवार वंश (c) महाराणा प्रताप (d) पांडवों को व्याख्या :- थारू लोग अपने आपको महाराणा प्रताप का वंशज मानते हैं। इतिहासकारों के अनुसार थारू किरात वंशी है जिनका कद छोटा, नाक चपटी और आंखें छोटी होती हैं। Answer - (c) (3) निम्न में से बदला-विवाह प्रथा का संबंध किस जनजाति से है? (a) थारू जनजाति (b) बुक्सा जनजाति (c) भोटिया जनजाति (d) इनमें से कोई नहीं व्याख्या :- थारू जनजाति में पहले बदला विवाह प्रथा का प्रचलन था । बदला-विवाह के तहत बहनों के आदान-प्रदान प्रथा का प्रचलन था। Answer - (a) (4) राज्य में सर्वाधिक आबादी किस जनजाति की है ? (a) भोटिया जनजाति (b) राजी जनजाति (c) थारू जनजाति (d) जौनसारी जनजाति व्याख्या :- राज्य में सर्वाधिक आबादी थारू जनजाति की है जबकि सबसे कम आबादी राजी जनजाति की है। जुलाई 2001 में राज्य सेवाओं में अनुसूचित जनजातियों को 4% आरक्षण दिया गया है। Answer - (c) (5) उत्तराखंड की भोटिया जनजाति किस मानव प्रजाति से संबंधित है? (a) नीग्रोटो (b) मंगोलॉयड (c) काकेशाँयड (d) प्रोटोआस्टेलाँयड व्याख्या :- उत्तराखंड की भोटिया जनजाति का 'मंगोलॉयड' मानव प्रजाति से संबंध है । भोटिया उत्तराखंड की एक प्रमुख प्रजाति है जो यथावर (खानाबदोश) जीवन व्यतीत करती है। ग्रीष्म ऋतु में भोटिया उत्तराखंड के बुग्याल में निवास करने चली जाती है। जबकि शीत ऋतु में यह मैदानों की ओर प्रवास करती है। Answer - (b) (6) भारत सरकार ने भोटिया जनजाति को अनुसूचित जनजाति एस.टी. (ST) में अधिसूचित किस वर्ष किया ? (a) वर्ष 1967 (b) मार्च 1966 (c) वर्ष 1965 (d) वर्ष 1968 व्याख्या :- सरकार द्वारा भोटिया जनजाति को वर्ष 1967 में अनुसूचित जनजाति के रूप में अधिसूचित किया गया था। भोटिया उत्तराखंड की हिमालय की घाटियों में निवास करने वाली प्रमुख यथावर जनजाति है। भूटिया जनजाति को ही 'बुग्याल' कहा जाता है। वर्ष 1967 में भूटिया के साथ उत्तराखंड की जौनसारी, बुक्सा, थारू तथा राजी जनजातियों को भी अनुसूचित जनजाति (ST)के रूप में अधिसूचित किया गया है। Answer - (a) (7) 'कंडाली या किर्जी' नामक उत्सव भोटिया जनजाति द्वारा मनाया जाता है ? (a) प्रत्येक वर्ष (b) तीनों वर्षों में एक बार (c) 6 वर्षों में एक बार (d) 12 वर्षों में एक बार व्याख्या :- उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में चौदास घाटी में प्रत्येक 12 वर्ष में एक बार 'कंडाली या किर्जी' नामक उत्सव मनाया जाता है । यह त्यौहार अगस्त-सितंबर माह में भोटिया जनजाति द्वारा बनाया जाने वाला प्रमुख उत्सव है । यह त्यौहार 1 सप्ताह तक चलता है । इस दिन प्रत्येक परिवार प्रातः काल उठकर सर्वप्रथम "जौ और फाफर" के आटे से निर्मित 'ढूँगो देवता' की पूजा अर्चना अपने घर के आंगन में करता है। व्यक्तिगत पूजन के पश्चात सामूहिक भोजन होता है। इसके पश्चात सभी ग्रामीण एकत्रित होकर देवस्थान की ओर प्रस्थान करते हैं। महिलाएं पारंपरिक वेशभूषा पहनकर व हाथ में दराती लेकर कण्डाली कि पौधों को नष्ट करने के पश्चात युवा और पौढ महिलाओं द्वारा "कंण्डाली नृत्य' किया जाता है। Answer - (d) (8) निम्नलिखित में से कौन सी जनजाति लकड़ी की "शिल्पकला" के लिए जानी जाती है ? (a) थारू जनजाति (b) भोटिया जनजाति (c) राजी जनजाति (d) जौनसारी जनजाति व्याख्या :- लकड़ी की शिल्पकला के लिए 'राजी जनजाति' लोकप्रिय मानी जाती है। यह जनजाति मूल रूप से उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में निवास करती है। इसके अतिरिक्त यह चंपावत एवं नैनीताल जिले में निवास करती है। राजी जनजाति को 'बरनौत' या 'जंगल का राजा' भी कहा जाता है। इस जनजाति के लोगों का कद छोटा तथा मुख्याकृति चपटी होती है। इस जनजाति की भाषा में तिब्बती एवं संस्कृत शब्दों का प्रयोग होता है किंतु यह लोग मुख्यतः "मुण्डा" बोलते हैं। राजी जनजाति के प्रमुख त्यौहार गौरा, अट्टा्ली व मकर सक्रांति है। यह लोग विशेष अवसरों पर गोला बनाकर नृत्य करते हैं जिसे "माड़िया नृत्य" कहते हैं। राज्य में सबसे कम जनसंख्या राजी जनजाति की है। Answer - (c) (9) झुमड़ा हैं ? (2018) (a) युवा ग्रह (b) सामाजिक प्रथा (c) थारूओ का नृत्य गीत (d) आभूषण व्याख्या :- 'झुमड़ा' थारू जनजाति का प्रसिद्ध नृत्यगीत है। यह नृत्य, विवाह, त्योहार तथा जन्म के अवसर पर विशेष रूप से किया जाता है। झुमड़ा नृत्य में स्त्री तथा पुरुष दोनों हिस्सा लेते हैं। इसके अतिरिक्त 'लहचारी नृत्य' भी थारू जनजाति का लोकप्रिय नृत्य है। Answer - (c) (10) 'ज्वाड प्रथा' संबंधित है- (2019) (a) कृषि से (b) स्त्री धन से (c) पशुधन से (d) शिक्षा धन से व्याख्या :- ज्वाड उत्तराखंड की एक प्रथा है जो कि स्त्री धन से संबंधित है। समाज में शादी के अवसर पर वधू पक्ष को दी जाने वाली धन संपत्ति को स्त्री धन माना गया है। Answer - (b) (11) 'ऋतु प्रवास' निम्न में से किस जनजाति द्वारा किया जाता है ? (a) नागा (b) थारू (c) गद्दी (d) बुक्सा व्याख्या :- ऋतु प्रवास 'गद्दी' या 'गड़रिया' जनजाति द्वारा किया जाता है । यह जनजाति भारत की प्राचीन जनजातियों में से एक है तथा उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर, लद्दाख व पाकिस्तान आदि में निवास करती है। इस जनजाति की आजीविका का प्रमुख साधन पशुपालन है। साथ ही यह उनसे बने शॉल , कंबल, जैकेट, टोपी आदि बेचकर भी अपनी जीविका चलाते हैं। 'गद्दी जनजाति' के लोग गर्मियों में अपने पशुधन के साथ ऊचें स्थानों पर निवास करते हैं तथा सर्दियों में निचले स्थानों पर रहते हैं। इन जनजातियों के लोगों का मुख्य भोजन दूध एवं दूध से बने भोज्य पदार्थ होते हैं। इस समाज के लोगों में बाल विवाह व बहुपत्नी विवाह परंपरा प्रचलित है। Answer - (c) (12) निम्न में से कौन बुक्सा जनजाति का त्यौहार है ? (2017) (a) होंगण (b) डैल्या (c) गोटरे (d) ये सभी व्याख्या - बुक्सा जनजाति के निजी त्यौहारों में होंगण, डैल्या, गोटरे, चैती, नौबी तथा मौरे आदि शामिल है। उत्तराखंड के तराई भाबर क्षेत्र में बुक्सा जनजाति का संकेंद्रण है । नैनीताल व उधमसिंह नगर जिलों के बुक्सा बहुल क्षेत्र को "बुक्साड़" कहा जाता है। यह स्वयं को पंवार राजपूत मानते हैं। हालांकि इतिहासकारों में मतैक्य नहीं है। सामान्यतः यह पांच गोत्रों/ उपजातियों में विभाजित है। गोत्र समाज की व्यवहार की मूलक इकाई है। जिसमें आपस में विवाह नहीं होता है। हिंदू धर्म को मानने वाली बुक्सा जनजाति के आर्थिक जीवन का मुख्य आधार कृषि, पशुपालन एवं दस्तकारी है। Answer - (d) (13) भोटिया जनजाति के लोकगीत हैं ?(2018) (a) तुवेरा (b) बाज्यू (c) तिमली (d) ये सभी व्याख्या :- भोटिया उत्तराखंड का प्रमुख जनजाति समूह है जो कि कुमाऊं और गढ़वाल मंडलों में मुख्य रूप से निवास करते हैं । राज्य में भोटिया जनजाति समूह तिब्बती बर्मन समूह की भाषाएं बोलते हैं। अधिकांश भोटिया तिब्बती, बोन और हिंदू धर्म का संयोजन करते हैं। वे हिंदू देवी देवताओं की पूजा करते हैं। तुवेरा, बाज्यू, तिमली भोटिया जनजातियों के मुख्य लोकगीत है। जो विभिन्न उत्सवों में गाए जाते हैं । Answer - (d) (14) नुग्टंग देवी की पूजा की जाती है? (2017) (a) रंग समुदाय (b) थारू समुदाय (c) बुक्सा समुदाय (d) वन रावत समुदाय व्याख्या :- नुग्टंग देवी की पूजा "रंग समुदाय" में प्रचलित है। राज्य के रंग जनजातीय समूह विशेष रूप से पिथौरागढ़ जिले में निवास करते हैं। रंग समुदाय मूल रूप से नेपाल के निवासी हैं। जो प्रवास के दौरान नेपाल से लगे पिथौरागढ़ जिले में प्रवेश कर गए। रंग समुदाय "नुग्टंग देवी" की पूजा हर्ष उल्लास से करते हैं। Answer - (a) (15) उत्तराखंड में 'अट्टा-बट्टा' क्या था? (2018) (a) सामाजिक विश्वास (b) विवाह व्यवस्था (c) संस्कार (d) धार्मिक उत्सव व्याख्या :- उत्तराखंड में "अट्टा-बट्टा" एक प्राचीनकालीन विवाह प्रथा है। यह प्रथा उत्तराखंड की गद्दी जनजाति में पाई जाती है। अट्टा-बट्टा एक जटिल संबंध है। इस संस्कृति में दो परिवारों के बीच विवाह संबंध स्थापित होता है। Answer - (b) (16) थारू जनजाति की महिलाओं को तलाक देने के अधिकार को............... कहा जाता है? (a) चाला (b) बात कट्टी (c) उरारी (d) खाबर व्याख्या :-
Answer - (c) (17) निम्न में से कौन-सी जनजाति पितृसत्तात्मक नहीं है? (a) केवल थारू जनजाति (b) केवल जौनसारी जनजाति (c) केवल बुक्सा जनजाति (d) a और b दोनों Answer - (a) (18) हारुल, मंगल केदारछाया व विरासू किस जनजाति का प्रमुख लोकगीत है ? (a) थारू जनजाति (b) भोटिया जनजाति (c) जौनसारी जनजाति (d) बुक्सा जनजाति व्याख्या :- हारुल, मंगल केदारछाया व विरासू जौनसार जनजाति के प्रमुख लोकगीत है। इसके अलावा हारुल, जौनसारी जनजाति का लोकप्रिय नृत्य है। हारूल नृत्य में रमतुल्ला वाधयंत्र का प्रयोग होता है। Answer - (c) (19) निम्नलिखित में से भोटिया जनजाति में विवाह के लिए किस प्रकार की प्रथा पाई जाती है? (a) तीन टिकड़ी प्रथा (b) दामोल विवाह प्रथा (c) वधू मूल्य प्रथा (d) बदला विवाह प्रथा व्याख्या :- भोटिया जनजाति में "दामोल विवाह प्रथा" पाई जाती है। वधू-मूल्य प्रथा का प्रचलन राजी जनजाति में होता है। तीन टिकड़ी प्रथा व बदला विवाह प्रथा थारू जनजाति में पाई जाती है। Answer - (b) (20) निम्नलिखित में से कौन सी जनजाति दीपावली को "शोक पर्व" के रूप में मनाते थे? (a) जौनसारी जनजाति (b) भोटिया जनजाति (c) राजी जनजाति (d) थारू जनजाति व्याख्या :- थारू जनजाति के लोग दीपावली को शोक पर्व के रूप में मनाते थे जबकि थारू जनजाति के लोगों का त्योहार बजहर (चराई) है जो वैशाख के महीने में मनाते हैं। Answer - (d) (21) निम्न में शौका किस जनजाति की एक उप-जनजाति है ? (a) जौनसारी जनजाति (b) राजी जनजाति (c) बुक्सा जनजाति (d) भोटिया जनजाति व्याख्या :- शोका जनजाति भोटिया जनजाति की एक उपजाति है । इसके अलावा जोहारी, चौंदासी, दरमियां भी भोटिया जनजाति की उपजाति हैं । अधिकांश भोटिया जनजाति पिथौरागढ़ जनपद में निवास करती है। भोटिया जनजाति के लोग पिथौरागढ़, चमोली और उत्तरकाशी जिलों के 291 गांव में लगभग 10 जनजातियां निवास करती हैं। Answer - (d) (22) जाड़ भोटिया जनजाति मुख्यत: किस जनपद में निवास करती है? (a) चमोली (b) पिथौरागढ़ (c) उत्तरकाशी (d) अल्मोड़ा व्याख्या :- जाड़ भोटिया जनजाति की एक उप-जनजाति है। जाड़ भोटिया जनजाति मुख्यत: उत्तरकाशी जनपद में निवास करती है। जाड़ अपने आप को राजा जनक का वंशज मानते हैं। जाट लोग बौद्ध धर्म के अनुयाई हैं। जाडों की आम बोलचाल की भाषा 'रोम्बा' है जो तिब्बती भाषा में मिलती जुलती है। Answer - (c) (23) बिस्सू मेला कहां लगता है ? (a) नानकमत्ता (उधम सिंह नगर) (b) काशीपुर (उधम सिंह नगर) (c) जौनसार (देहरादून) (d) लोहाघाट (चंपावत) व्याख्या :- बिस्सू मेला जौनसार क्षेत्र (देहरादून) का सबसे बड़ा मेला है जो वैशाखी के बाद 4 दिन तक चलता है । जौनसार क्षेत्र में दो तरह का मौण मेला भी लगता है।
जौनसार के अलावा बिस्सू मेला प्रतिवर्ष उत्तरकाशी के भुटाणु, टिकोची, किलोली, मैंजणी, आदि गांव में सामूहिक रूप से लगता है। विषुवत सक्रांति के दिन लगने के कारण इस मेले को बिस्सू मेला भी कहा जाता है । यह मेला धनुष-बाणों रोमांचकारी युद्ध के लिए प्रसिद्ध है। बिस्सू मेले के अवसर में 'ठुलो-ठुस्को' (कुश्ती) का आयोजन किया जाता है। Answer - (c) (24) "महासू देवता" किस जनजाति के मुख्य देवता हैं ? (a) जौनसारी जनजाति (b) थारू जनजाति (c) भोटिया जनजाति (d) गाजी जनजाति व्याख्या :- 5 जनजातियों के प्रमुख देवता/इष्ट देवता इस प्रकार हैं -
Answer - (a) (25) "वारदा नाटी" का संबंध है ? (a) थारू जनजाति (b) बुक्सा जनजाति (c) a और b दोनों (d) जौनसारी जनजाति
व्याख्या - "वारदा नाटी" जौनसारी लोगों प्रमुख नृत्य हैं। इसके अतिरिक्त अंडे-काडे डांस, पौण नृत्य, झेला नृत्य, जंगबाजी और मरोज नृत्य आदि प्रमुख उत्सवों पर करते हैं। Answer - (d) (26) वर्ष 1965 में केंद्र सरकार ने जनजातियों की पहचान के लिए किस समिति का गठन किया? (a) कोल्टा जांच समिति (b) लोकर समिति (c) पर्वतीय विकास जन समिति (d) रमाशंकर कौशिक समिति Answer - (b) (27) लोकर समिति की सिफारिश पर किस वर्ष उत्तराखंड की 5 जातियों को एसटी का दर्जा मिला ? (a) 1965 (b) 1967 (c) 1968 (d) 1985 Answer - (b) Related post :-उत्तराखंड प्रश्नोत्तरी -13 (पिथौरागढ़) उत्तराखंड प्रश्नोत्तरी -12 (चमोली) उत्तराखंड प्रश्नोत्तरी - 11 (पौड़ी गढ़वाल) उत्तराखंड प्रश्नोत्तरी - 10 (ऊधम सिंह नगर) शेयर करें लेबलHistoryLabels: History शेयर करें कत्यूरी राजवंश : उत्तराखंड का इतिहास (भाग -1)लेखक: Sunil फ़रवरी 10, 2021 कत्यूरी राजवंश का इतिहास भाग -1 अमोघभूति कुणिद वंश का सबसे शक्तिशाली शासक था। कुणिद वंश उत्तराखंड में लगभग तीसरी- चौथी शताब्दी की पहली राजनीतिक शक्ति थी । जबकि कत्यूर राजवंश उत्तराखंड में शासन करने वाला पहला ऐतिहासिक शक्तिशाली राजवंश था। इसे कार्तिकेयपुर वंश के नाम से भी जाना जाता है। 'कत्यूरी' शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग एटकिंसन ने किया था। कत्यूरी राजवंश के संस्थापक बसंत देव थे । जिन्हें बासुदेव के नाम से भी जाना जाता है। जिसकी राजधानी जोशीमठ (चमोली) में थी। पांडुकेश्वर ताम्रलेख में पाए गए कत्यूरी राजा ललितशूर के अनुसार कत्यूरी शासकों की प्राचीनतम राजधानी जोशीमठ (चमोली) में थी । बाद में नरसिंह देव ने जोशीमठ से बैजनाथ (बागेश्वर ) में राजधानी स्थानांतरित कर दी । जहां से कत्यूरी राजवंश को विशिष्ट पहचान मिली । कत्यूरी राजवंश का उदय कुणिंदों के पतन के पश्चात देवभूमि उत्तराखंड की भूमि पर कुछ नए राजवंशों का उदय हुआ। जैसे गोविषाण, कालसी लाखामंडल आदि जबकि कुछ स्थानों पर कुणिंद भी शासन करते रहे। कुणिंदो के बाद शक, कुषाण और यौधेय वंश के शासकों ने कुछ क्षेत्रों पर शासन व्यवस्था स्थ शेयर करें 11 टिप्पणियांRead more » उत्तराखंड में भूमि बंदोबस्त का इतिहासलेखक: Sunil अगस्त 14, 2021 भूमि बंदोबस्त व्यवस्था उत्तराखंड का इतिहास भूमि बंदोबस्त आवश्यकता क्यों ? जब देश में उद्योगों का विकास नहीं हुआ था तो समस्त अर्थव्यवस्था कृषि पर निर्भर थी। उस समय राजा को सर्वाधिक कर की प्राप्ति कृषि से होती थी। अतः भू राजस्व आय प्राप्त करने के लिए भूमि बंदोबस्त व्यवस्था लागू की जाती थी । दरअसल जब भी कोई राजवंश का अंत होता है तब एक नया राजवंश नयी बंदोबस्ती लाता है। हालांकि ब्रिटिश शासन से पहले सभी शासकों ने मनुस्मृति में उल्लेखित भूमि बंदोबस्त व्यवस्था का प्रयोग किया था । ब्रिटिश काल के प्रारंभिक समय में पहला भूमि बंदोबस्त 1815 में लाया गया। तब से लेकर अब तक कुल 12 भूमि बंदोबस्त उत्तराखंड में हो चुके हैं। हालांकि गोरखाओ द्वारा सन 1812 में भी भूमि बंदोबस्त का कार्य किया गया था। लेकिन गोरखाओं द्वारा लागू बन्दोबस्त को अंग्रेजों ने स्वीकार नहीं किया। जहां पूरे भारत में स्थायी बंदोबस्त, रैयतवाड़ी बंदोबस्त और महालवाड़ी बंदोबस्त व्यवस्था लागू थी। वही ब्रिटिश अधिकारियों ने कुमाऊं के भू-राजनैतिक महत्व को देखते हुए उसे एक गैर विनियमित क्षेत्र के रूप में प्रशासित किया। इसलिए कुमाऊं क शेयर करें 3 टिप्पणियांRead more » चंद राजवंश : उत्तराखंड का इतिहासलेखक: Sunil फ़रवरी 14, 2021 चंद राजवंश का इतिहास पृष्ठभूमि उत्तराखंड में कुणिंद और परमार वंश के बाद सबसे लंबे समय तक शासन करने वाला राजवंश है। चंद वंश की स्थापना सोमचंद ने 1025 ईसवी के आसपास की थी। वैसे तो तिथियां अभी तक विवादित हैं। लेकिन कत्यूरी वंश के समय आदि गुरु शंकराचार्य का उत्तराखंड में आगमन हुआ और उसके बाद कन्नौज में महमूद गजनवी के आक्रमण से ज्ञात होता है कि तो लगभग 1025 ईसवी में सोमचंद ने चंपावत में चंद वंश की स्थापना की है। विभिन्न इतिहासकारों ने विभिन्न मत दिए हैं। सवाल यह है कि किसे सच माना जाए ? उत्तराखंड के इतिहास में अजय रावत जी के द्वारा उत्तराखंड की सभी पुस्तकों का विश्लेषण किया गया है। उनके द्वारा दिए गए निष्कर्ष के आधार पर यह कहा जा सकता है । उपयुक्त दिए गए सभी नोट्स प्रतियोगी परीक्षाओं की दृष्टि से सर्वोत्तम उचित है। चंद राजवंश का इतिहास चंद्रवंशी सोमचंद ने उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में लगभग 900 वर्षों तक शासन किया है । जिसमें 60 से अधिक राजाओं का वर्णन है । अब यदि आप सभी राजाओं का अध्ययन करते हैं तो मुमकिन नहीं है कि सभी को याद कर सकें । और अधिकांश राजा ऐसे हैं । जिनका केवल नाम पता है । उनक शेयर करें 1 टिप्पणीRead more » कुणिंद वंश का इतिहास (1500 ईसा पूर्व - 300 ईसवी)लेखक: Sunil मार्च 07, 2021 कुणिंद वंश का इतिहास History of Kunid dynasty (1500 ईसा पूर्व - 300 ईसवी) उत्तराखंड का इतिहास उत्तराखंड मूलतः एक घने जंगल और ऊंची ऊंची चोटी वाले पहाड़ों का क्षेत्र था। इसका अधिकांश भाग बिहड़, विरान, जंगलों से भरा हुआ था। इसीलिए यहां किसी स्थाई राज्य के स्थापित होने की स्पष्ट जानकारी नहीं मिलती है। थोड़े बहुत सिक्कों, अभिलेखों व साहित्यक स्रोत के आधार पर इसके प्राचीन इतिहास के सूत्रों को जोड़ा गया है । अर्थात कुणिंद वंश के इतिहास में क्रमबद्धता का अभाव है। सूत्रों के मुताबिक कुणिंद राजवंश उत्तराखंड में शासन करने वाला प्रथम प्राचीन राजवंश है । जिसका प्रारंभिक समय ॠग्वैदिक काल से माना जाता है। रामायण के किस्किंधा कांड में कुणिंदों की जानकारी मिलती है और विष्णु पुराण में कुणिंद को कुणिंद पल्यकस्य कहा गया है। कुणिंद राजवंश के साक्ष्य के रूप में अभी तक 5 अभिलेख प्राप्त हुए हैं। जिसमें से एक मथुरा और 4 भरहूत से प्राप्त हुए हैं। वर्तमान समय में मथुरा उत्तर प्रदेश में स्थित है। जबकि भरहूत मध्यप्रदेश में है। कुणिंद वंश का उल्लेख महाभारत के सभा पर्व, आरण्यक पर्व एवं भीष्म पर् शेयर करें 5 टिप्पणियांRead more » परमार वंश - उत्तराखंड का इतिहास (भाग -1)लेखक: Sunil मार्च 13, 2021 उत्तराखंड का इतिहास History of Uttarakhand भाग -1 परमार वंश का इतिहास उत्तराखंड में सर्वाधिक विवादित और मतभेद पूर्ण रहा है। जो परमार वंश के इतिहास को कठिन बनाता है परंतु विभिन्न इतिहासकारों की पुस्तकों का गहन विश्लेषण करके तथा पुस्तक उत्तराखंड का राजनैतिक इतिहास (अजय रावत) को मुख्य आधार मानकर परमार वंश के संपूर्ण नोट्स प्रस्तुत लेख में तैयार किए गए हैं। उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल में 688 ईसवी से 1947 ईसवी तक शासकों ने शासन किया है (बैकेट के अनुसार)। गढ़वाल में परमार वंश का शासन सबसे अधिक रहा। जिसमें लगभग 12 शासकों का अध्ययन विस्तारपूर्वक दो भागों में विभाजित करके करेंगे और अंत में लेख से संबंधित प्रश्नों का भी अध्ययन करेंगे। परमार वंश (गढ़वाल मंडल) (भाग -1) छठी सदी में हर्षवर्धन की मृत्यु के पश्चात संपूर्ण उत्तर भारत में भारी उथल-पुथल हुई । देश में कहीं भी कोई बड़ी महाशक्ति नहीं बची थी । जो सभी प्रांतों पर नियंत्रण स्थापित कर सके। बड़े-बड़े जनपदों के साथ छोटे-छोटे प्रांत भी स्वतंत्रता की घोषणा करने लगे। कन्नौज से सुदूर उत्तर में स्थित उत्तराखंड की पहाड़ियों में भी कुछ ऐसा ही हुआ। उत् लेपचा और भूटिया क्या है?भूटिया मुख्यत: ऊंचे पहाड़ों के पशुपालक होते हैं, जबकि लेपचा सामान्यत: दूरस्थ घाटियों में रहते हैं। जहां इन दोनों समूह में कुछ अंतर्विवाह हुए हैं वहीं वे अलग रहने और अपनी भाषाएं बोलने का प्रयास करते हैं, जो तिब्बत भाषा की बोलियां हैं।
उत्तराखंड की सबसे प्राचीन जनजाति कौन सी है?सर्वप्रथम राज्य की राजी जनजाति को आदिम जनजाति का दर्जा मिला। बोक्सा जनजाति को 1981 में आदिम जनजाति का दर्जा प्राप्त हुआ था । राज्य में सर्वाधिक आबादी थारू जनजाति तथा सबसे कम आबादी राज्यों की रहती है। 2011 की जनगणना के अनुसार राज्य की कुल एसटी आबादी 2,91,903 है।
सिक्किम में कौन सी जनजाति निवास करती है?Detailed Solution. भूटिया जनजाति तिब्बती मूल की हैं, जो 16वीं शताब्दी के आसपास सिक्किम में चली गईं। भूटिया जनजाति, सिक्किम लेप्चा, भूटिया, नेपाली, अंग्रेजी और हिंदी बोलते हैं।
भोटिया भाषा से क्या अभिप्राय है?भोटिया शब्द की उत्पत्ति भोट शब्द से हुई है ,इसका अर्थ तिब्बत से लगाया जाता है और इसी भोट शब्द ने भोटिया शब्द को जन्म दिया , ये समाज पितृ सत्तात्मक समाज है। इनके परिवार व समाज में पिता या परिवार का बुर्जुग व्यक्ति ही संरक्षक माना जाता है।
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