भारतीय संगीत की क्या विशेषता है? - bhaarateey sangeet kee kya visheshata hai?

संगीत मूलतः संस्कृत भाषा का शब्द है। जिसकी व्युत्पत्ति गै शब्द के पूर्व ‘सम’ उपसर्ग लगाकर हुयी है। संगीत शब्द में सम् उपसर्ग का तात्पर्य वादन और नर्तन से है। अर्थात् गायन के साथ वादन और नर्तन का भी प्रयोग होता है तभी संगीत की विद्या पूर्ण होती है।’’

भारतीय संगीत के प्रकार

भारतीय संगीत के कितने प्रकार हैं, संगीत के विभिन्न रूप इस प्रकार हैं -

  1. लोक संगीत
  2. शास्त्रीय संगीत
  3. उपशास्त्रीय संगीत
  4. सुगम संगीत
  5. फिल्मी संगीत

शास्त्रीय संगीत

संगीत का नाम लेते ही शास्त्रीय संगीत ही सर्वप्रथम ध्यान में आता है। शास्त्रीय संगीत का भाव है ‘शास्त्रकारिता संगीत’। शास्त्रीय संगीत को समझने के लिए शास्त्र को समझना अनिवार्य है। शास्त्रीय संगीत वह संगीत है जो शास्त्रों और नियमों के अनुसार है अर्थात् नियमों में बंधा हुआ है जो संगीत स्वर, लय, ताल आदि नियमों में बाँधकर आकर्षक रीति से गाया बजाया जाता है।

शास्त्रीय संगीत में स्वर समृद्ध है, इसमें इतना भण्डार है इतनी निधि है कि वह सागर के समान अथाह है। शास्त्रीय संगीत जिसे की भारतीय संगीत भी कहा जाता है। यह भारतीयता का प्रतीक है इसकी अभिव्यक्ति भारतीय संस्कृति के अनुसार होती है। इसके आकर्षण में गंभीरता, आध्यामिकता और आन्तरिकता होती है। शास्त्रीय संगीत की प्रशंसा वहीं कर सकता है। जिसे संगीत के शास्त्रीय पक्ष का थोड़ा बहुत ज्ञान हो।

शास्त्रीय संगीत में स्वर लय व तालबद्ध का होना, राग के अनुकूल स्वरों का लगना, गाने बजाने में क्रम होना, आलाप, तान, बोल तान, सरगम आदि की तैयारी और सफाई के साथ उच्चारण करना आदि नियमों का पालन करना अनिवार्य होता है।

लोक संगीत

लोक संगीत एक व्यापक परिवार है जिसकी अनन्त शाखाएँ संपूर्ण संसार के विभिन्न देशों की ग्रामीण जातियों की वाणी में व्याप्त है। शास्त्रीय संगीत और कलात्मक सौन्दर्य से अपरिचित होने पर भी ग्रामवासियों के सुख-दु:ख संयोग-वियोग, पीड़ा और उल्लास के स्वर संगीत की विभिन्न धुनो में मुखरित हो उठते हैं। इसीलिए संपूर्ण संसार के लोकगीतों की आत्मा में साम्य है। मूल तत्वों में साम्य होने के कारण ही विभिन्न देशों के लोकगीत सहज में ही हृदय को छू लेते हैं शब्दों और भाषा के अपरिचित होने पर भी संगीत के माध्यम से वे मूल अर्थ और भाव को व्यक्त करते हैं।

लोक संगीत का अर्थ जन साधारण विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में प्रचलित संगीत से है। इस संगीत के नियम अखिल व सर्वमान्य है। लोक संगीत में सदियों से चले आ रहे रीति-रिवाजों की झाँकी मिलती है, इसके अन्तर्गत शादी के गीत, वर्षा के गीत, विरह के गीत, लोरी, माहिया-भटियाली, मांझी आदि लोकगीत आते हैं। इनका स्वरूप सरल व कुछ स्वरों के अन्दर सीमित होता है इसलिए लोकगीतों के साथ ढ़ोलक या कोई भी सरल ताल वाद्य ही बजाया जाता है।

इस संगीत में परम्परागत स्थानीय भाषा एवं सामाजिक भावनाओं से सम्बन्ध होता है। इसलिए स्थानीय बोलचाल, रहन-सहन का प्रभाव पड़ता है। लोकसंगीत लोक संस्कृति का प्रतीक होता है।

उपशास्त्रीय संगीत

उपशास्त्रीय संगीत को अर्धशास्त्रीय संगीत भी कहा जाता है। इस संगीत के अन्तर्गत की गई रचनाओं में संगीत के शास्त्रीय पक्ष का पालन नहीं किया जाता। उपशास्त्रीय संगीत के अन्तर्गत ठुमरी, दादरा, चैती, कजरी आदि रचनाएँ आती है। 

सुगम संगीत

आधुनिक काल में सुगम संगीत का बहुत प्रचार है। गज़ल, गीत, कव्वाली, युगल गीत, सामूहिक गीत (वृन्दगान) भक्ति संगीत आदि की रचनाओं को सुगम संगीत के अनुसार गाया जाता है।

फिल्मी संगीत

फिल्मों में प्रयुक्त गाने और बजाने वाले संगीत को फिल्मी या चित्र पर संगीत कहा जाता है। फिल्मी धुन मधुर, आकर्षक और सरल होती है। जिसका आनन्द संगीत का ज्ञान रखने वाला व्यक्ति भी ले सकता है।

प्रश्न: भारतीय शास्त्रीय संगीत का इतिहास एवं उसकी विशेषताओं का वर्णन कीजिए।

उत्तरः भारतीय शास्त्रीय संगीत या मार्ग, भारतीय संगीत का अभिन्न अंग है। शास्त्रीय संगीत को ही ‘क्लासिकल म्यजिक भी कहते हैं। शास्त्रीय गायन सुर-प्रधान होता है, शब्द-प्रधान नहीं। इसमें महत्त्व सुर का होता है (उसक चढ़ाव-उतार का, शब्द और अर्थ का नहीं)। इसकों जहाँ शास्त्रीय संगीत-ध्वनि विषयक साधनों के अभ्यस्त कान ही समझ सकते हैं, अनभ्यस्त कान भी शब्दों का अर्थ जानने मात्र से देशी गानों या लोकगीत का सुख ले सकते हैं। इससे अनेक लोग स्वाभाविक ही ऊब भी जाते हैं पर इसके ऊबने का कारण उस संगीतज्ञ की कमजोरी नहीं, लोगों में जानकारी की कमी है।

भारतीय शास्त्रीय संगीत  का इतिहास

भारतीय शास्त्रीय संगीत की परम्परा भरत मुनि के नाट्यशास्त्र और उससे पहले सामदेव के गायन तक जाती है। भरत मुनि द्वारा रचित भरत नाट्य शास्त्र, भारतीय संगीत के इतिहास का प्रथम लिखित प्रमाण माना जाता है। इसकी रचना के समय के बारे में कई मतभेद हैं। आज के भारतीय शास्त्रीय संगीत के कई पहलुओं का उल्लेख इस प्राचीन ग्रंथ में मिलता है। भरत मुनि के नाट्यशास्त्र के बाद मतंग मुनि की बृहद्देशी और शारंगदेव रचित संगीत रत्नाकर, ऐतिहासिक दृष्टि से सबसे महत्त्वपूर्ण ग्रंथ माना जाता है। बारहवीं सदी के पूर्वार्द्ध में लिखे सात अध्यायों वाले इस ग्रंथ में संगीत व नृत्य का विस्तार का वर्णन है।

संगीत रत्नाकार में कई तालों का उल्लेख है व इस ग्रंथ से पता चलता है कि प्राचीन भारतीय पारंपारिक संगीत में बदलाव आने शुरू हो चुके थे व संगीत पहले से उदार होने लगा था मगर मूल तत्व एक ही रहे। 11वीं और 12वीं शताब्दी में मुस्लिम सभ्यता के प्रसार ने उत्तर भारतीय संगीत

की दिशा को नया आयाम दिया। राजदरबार संगीत के प्रमुख संरक्षक बने और जहां अनेक शासकों ने प्राचीन भारतीय संगीत की समृद्ध परंपरा को प्रोत्साहन दिया वहीं अपनी आवश्यकता और रूचि के अनुसार उन्होंने इसमें अनेक परिवर्तन भी किए। इसी समय कुछ नई शैलियाँ भी प्रचलन में आई जैसे ख्याल, गजल आदि और भारतीय संगीत का कई नये वाद्यों से परिचय हुआ जैसे सरोद, सितार इत्यादि।

भारतीय संगीत के आधुनिक मनीषी स्थापित कर चुके हैं कि वैदिक काल से आरम्भ हुई भारतीय वाद्यों की यात्रा क्रमशः एक के बाद दूसरी विशेषता से इन यंत्रों को सँवारती गयी। एक-तंत्री वीणा ही त्रितंत्री बनी और सारिका युक्त होकर मध्य-काल के पूर्व किन्नरी वीणा के नाम से प्रसिद्ध हुई। मध्यकाल में यह यंत्र जंत्र कहलाने लगा  जो बंगाल के कारोगारों द्वारा सहतार या सितार कहने लगे। इसी प्रकार सप्त तंत्री अथवा चित्रा-वीणा, सरोद कहलाने लगी | उतर भारत में मुगल राज्य ज्यादा फैला हुआ था जिस कारण उत्तर भारतीय संगीत पर मुस्लिम संस्कृति व इस्लाम  का प्रभाव को ज्यादा महसूस किया गया। जबकि दक्षिण भारत में प्रचलित संगीत किसी प्रकार के मुस्लिम प्रभाव से अपना से अचुता रहा |

बाद में सूफी आन्दोलन ने भी भारतीय संगीत पर अपना प्रभाव जमाया। आगे चलकर देश के विभिन्न हिस्सों में कई नई पद्धतियों व घरानों का जन्म हुआ। ब्रिटिश शासनकाल के दौरान कई नये वाद्य प्रचलन में आए पाश्चात्य संगी। से भी भारतीय संगीत का परिचय हुआ। आम जनता में लोकप्रिय आज का वाद्य हारमोनियम, उसी समय प्रचलन आया। इस तरह भारतीय संगीत के उत्थान व उसमें परिवर्तन लाने में हर युग का अपना महत्त्वपूर्ण योगदान रहा।

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भारतीय वाद्य यंत्र

आमतौर पर हिन्दुस्तानी संगीत में इस्तेमाल किए गए उपकरणों में सितार, सिरोद, सुरबहार, ईसराज, वीणा, तनपुरा, बन्सुरी, शहनाई, सारंगी, वायलिन, संतूर, पखवज और तबला शामिल हैं। आमतौर पर कर्नाटिक संगीत में इस्तेमाल किए जाने वाले उपकरणों में वीना, वीनू, गोत्वादम, हार्मोनियम, मदमंग, कजिर, घमत, नादाश्वर और वायलिन शामिल है।

भारतीय शास्त्रीय संगीत की विशेषताएँ

भारत में शास्त्रीय संगीत, संगीत का एक रूप या अंग है। शास्त्रीय संगीत की विशेषता यह है कि यह ध्वनि प्रधान होता है, शब्द प्रधान नहीं। इसमें ध्वनि या संगीत को शब्द या गीत के भावार्थ कि अपेक्षा अधिक महत्त्व दिया जाता है। भारत में शास्त्रीय संगीत का इतिहास वैदिक काल से शुरू होता है। सामवेद संगीत पर आधारित दुनिया की पहली पुस्तक है। इसके बाद भरतमुनि के नाट्यशास्त्र में भी शास्त्रीय संगीत का वर्णन है। नाट्यशास्त्र के बाद शारंगदेव के संगीत रत्नाकार में भी शास्त्रीय संगीत का वर्णन है। इसके अलावा दत्तीयम और बृहददेसी में भी भारतीय शास्त्रीय संगीत के बारें में वर्णन किया गया है।

भारत में शास्त्रीय संगीत की आज दो पद्धतियाँ हैं।

  1. हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत
  2. कर्नाटक संगीत
  3. हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत – हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत उत्तर भारत में प्रचलित हुआ। यह संगीत हिन्दू और मुस्लिम दोनों धर्मों में प्रचलित हुआ। इसमें हिन्दू संगीतकारों को पंडित जबकि मुस्लिम संगीतकारों को उस्ताद कहा जाता है। यह मंदिरों और राजाओं के दरबारों में काफी प्रचलित हुआ। भक्ति आंदोलन और सूफी आंदोलन के समय काफी प्रसिद्ध हुआ।

इसमें 7 स्वर होते हैं

  1. सा (षडज)
  2. रे (ऋषभ)
  3. गा (गांधार)
  4. मा (माध्यम)
  5. पा (पंचम)
  6. धा (धेवत)
  7. नी (निषाद)

हिन्दुस्तान शास्त्रीय संगीत के प्रमुख रूप हैं                        

1. ध्रुपद यह हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत का एक प्रचीन रूप है। यह एक ब्रजभाषा प्रधान संगीत है।

2. खयाल यह हिन्दुस्तानी संगीत का रूप है। इसमें राजस्तुति, नायिका वर्णन और श्रृंगार रस होते हैं।

3. धमार यह भगवान कृष्ण से सम्बन्धित है। इसका गायन मुख्य रूप से होली पर होता है।

4. उमरी – यह भावप्रधान और स्वतंत्र संगीत है। गजल-यह उर्दू भाषा का एक संगीत है।

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भारतीय संगीत की क्या विशेषताएं हैं?

भारतीय संगीत के प्रकार हिन्दुस्तानी संगीत मुगल बादशाहों की छत्रछाया में विकसित हुआ और कर्नाटक संगीत दक्षिण के मन्दिरों में। इसी कारण दक्षिण भारतीय कृतियों में भक्ति रस अधिक मिलता है और हिन्दुस्तानी संगीत में श्रृंगार रस। उपशास्त्रीय संगीत में ठुमरी, टप्पा, होरी,दादरा, कजरी, चैती आदि आते हैं

भारतीय संगीत का अर्थ क्या है?

हिन्दुस्तानी संगीत सभा का दुर्लभ चित्र संगीत का रसास्वादन करती हुए एक स्त्री (पंजाब १७५०) भारतीय संगीत प्राचीन काल से भारत मे सुना और विकसित होता संगीत है। इस संगीत का प्रारंभ वैदिक काल से भी पूर्व का है। इस संगीत का मूल स्रोत वेदों को माना जाता है।

भारतीय संगीत का जनक कौन है?

नटराज, भगवान शिव का ही रूप है, जब शिव तांडव करते हैं तो उनका यह रूप नटराज कहलता है। संगीत प्रकृति के हर कण में मौजूद है। भगवान शिव को 'संगीत का जनक' माना जाता है।

भारतीय संगीत का मूल स्रोत क्या है?

हजारों साल पहले रचे गए वेदों को संगीत का मूल स्त्रोत माना गया है। भारतीय शास्त्रीय संगीत की दो शैलियां हैं। इसमें से पहला है उत्तर भारतीय जिसे हिंदुस्तानी संगीत कहा जाता है जबकि दूसरा है दक्षिण भारतीय संगीत जिसे कर्नाटक संगीत के नाम से जाना जाता है।