भारत सरकार अधिनियम 1858, यूनाइटेड किंगडम की संसद द्वारा पारित किया गया एक अधिनियम था। यूनाइटेड किंगडम के तत्कालीन प्रधान मंत्री लॉर्ड पामस्टर्न ने भारत की मौजूदा व्यवस्था में गंभीर दोषों का हवाला देते हुए, ईस्ट इंडिया कंपनी से भारतीय उपनिवेश का नियंत्रण ब्रितानी राजशाही को हस्तांतरण के लिए एक विधेयक पेश किया। हालांकि, इस बिल के पारित होने से पहले, पामर्स्टन को एक अन्य मुद्दे पर इस्तीफा देने के लिए मजबूर होना पड़ा था। बाद में डर्बी के 14वें अर्ल (जो बाद में भारत के पहले राज्य सचिव बन गये) एडवर्ड स्मिथ स्टैनले ने एक और विधेयक पेश किया, जिसे मूल रूप से "एन एक्ट फॉर द बेटर गवर्नमेंट ऑफ़ इंडिया" के रूप में शीर्षक दिया गया था और इसे 2 अगस्त 1858 को पारित किया गया था। इस अधिनियम के द्वारा भारत को सीधे ब्रितानी राजशाही के नाम पर शासित किया जाना था।[कृपया उद्धरण जोड़ें] Show 1857 के भारतीय विद्रोह के बाद ब्रिटिश सरकार को इस अधिनियम पारित करने के लिए मजबूर होना पड़ा था।अंग्रेजी शासक ने भारत के सैनिकों को चर्बी लगे हुए कारतूस इंतेमाल करके के लिए दिए परिणाम स्वरूप वहा भारतीय सेनाओं ने ईस्ट इंडियन कंपनी के खिलाफ नारेबाजी लगाई भारत शासन अधिनियम,1958 में ही मुगल शासन को लिखित रूप से समाप्त कर दिया गया। प्रावधान[संपादित करें]
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सन्दर्भ[संपादित करें]बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]
भारत के संवैधानिक इतिहास में भारत सरकार अधिनियम 1858 (Government of India act 1858 in Hindi) एक विशेष महत्व रखता है। इस अधिनियम ने भारत के संवैधानिक इतिहास में एक नए अध्याय की शुरुआत की। इसने भारत के शासन को ईस्ट इंडिया कंपनी के हाथों से छीन कर ब्रिटिश क्राउन कोहस्तांतरित कर दिया। ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री लॉर्ड पामर्स्टन (Lord Palmerston)ने 12 फरवरी, 1858 कोभारतमेंद्वैधशासन/दोहरे शासनकीकमियोंकोदूरकरनेके लिएएकविधेयकब्रिटिशसंसदमें प्रस्तुतकिया। किन्तु इसी दौरान पामर्स्टन को त्यागपत्र देना पड़ा। इसके बाद लॉर्ड डरबी (Lord Derby) ब्रिटेन के प्रधानमन्त्री बने। लॉर्ड डरबी (Lord Derby) के काल में प्रस्तुत विधेयक 2 अगस्त, 1858 ई० को ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया के हस्ताक्षर के बाद पारित हो गया। जिसे भारत शासन अधिनियम, 1858 के नाम से जाना गया। भारत शासन अधिनियम 1858 (Government of India act 1858) के प्रमुख प्रावधान : 1. इस अधिनियम के द्वारा भारत का शासन ईस्ट इंडिया कम्पनी के हाथों से ले कर ब्रिटिश ताज को हस्तांतरितकर दिया गया। 2. एक नए पद भारत-सचिव (Secretary of state for India) का सृजन किया गया। निदेशक मंडल/डायरेक्टरों की सभा (Court of Directors) और नियंत्रक मंडल (Board of Control) को समाप्त कर दिया गया तथा निदेशक मंडल और नियंत्रक मंडल के सभी अधिकार भारत-सचिव (Secretary of state for India) को प्रदान कर दिए गए। भारत-सचिव को ब्रिटिश संसद और ब्रिटिश मंत्रिमंडल का सदस्य होना अनिवार्य था। 3. भारत-सचिव की सहायता के लिए 15 सदस्यों की एक सभा की स्थापना की गयी, जिसको भारत-परिषद् (India Council) कहा गया। भारत-परिषद् के कुल 15 सदस्यों में से 8 सदस्यों की नियुक्ति का अधिकार ब्रिटिश ताज को तथा शेष बचे 7 सदस्यों की नियुक्ति अधिकार कम्पनी के डायरेक्टरों (Directors of Company) को दिया गया। यह जरुरी था की 15 सदस्यों में से कम से काम 9 सदस्य न्यूनतम 10 वर्ष तक भारत में कार्य कर चुके हो तथा नियुक्ति के समय उन्हें भारत छोड़े हुए 10 वर्ष से अधिक समय न हुआ हो। भारत-सचिव और भारत-परिषद् (India Council) के शासन को सम्मिलित रूप से गृह सरकार (Home Government) का नाम दिया गया। 4.भारत-सचिव और भारत-परिषद् (India Council) के सदस्यों के वेतन और अन्य खर्चे भारतीय राजस्व से दिए जाने का प्रावधान किया गया। 5. भारत-परिषद् का अध्यक्ष भारत-सचिव को बनाया गया। भारत-परिषद के निर्णय बहुत से लिए जाते थे। भारत-सचिव को सामान्य मत देने का अधिकार था। समान मत होने की दशा में भारत-सचिव को एक अतिरिक्त मत (निर्णायक मत) देने का भी अधिकार था। 6. भारत-सचिव अर्थव्यवस्था और अखिल भारतीय सेवाओं के विषय में भारत-परिषद् की सलाह मानने के लिए बाध्य था। अन्य सभी विषयों पर भारत-सचिव भारत-परिषद् की राय को अस्वीकार कर सकता था। भारत-सचिव को अपने कार्यो की वार्षिक रिपोर्ट ब्रिटिश संसद को प्रस्तुत करना अनिवार्य था। 7. भारत के गवर्नर जनरल का पदनाम बदल दिया गया और उसे भारत का वायसराय कहा जाने लगा। भारत में गवर्नर-जनरल (वायसराय) ब्रिटिश सम्राट के प्रतिनिधि के रूप में कार्य करने लगा। वायसराय भारत सचिव की आज्ञा के अनुसार कार्य करने के लिए बाध्य था। भारत के वायसराय की नियुक्ति ब्रिटेन की महारानी द्वारा की जाती थी। अध्यादेश जारी करने का अधिकार वायसराय को दिया गया। • भारत के प्रथम वाइसराय लॉर्ड कैनिंग (Lord Canning) थे। 8. भारतीय प्रशासन के अन्तर्गत पदों पर नियुक्तियाँ करने का अधिकार ब्रिटिश सम्राट् ने भारत-सचिव सहित भारत-परिषद् तथा भारत में स्थित उच्च पदाधिकारियों के बीच विभाजित कर दिया। 9. भारत के गवर्नर जनरल की परिषद के विधिक सदस्य तथा अधिवक्ता जनरल (Advocate General) की नियुक्ति का अधिकार ब्रिटेन के सम्राट को दिया गया। 10. भारत के राज्य सचिव को परिषद के परामर्श के बिना भारत में गुप्त प्रेषण भेजने का अधिकार था। 11. मुग़ल शासक का पद समाप्त कर दिया गया।
भारत सरकार अधिनियम 1818 क्या है?भारत सरकार अधिनियम 1858, यूनाइटेड किंगडम की संसद द्वारा पारित किया गया एक अधिनियम था। यूनाइटेड किंगडम के तत्कालीन प्रधान मंत्री लॉर्ड पामस्टर्न ने भारत की मौजूदा व्यवस्था में गंभीर दोषों का हवाला देते हुए, ईस्ट इंडिया कंपनी से भारतीय उपनिवेश का नियंत्रण ब्रितानी राजशाही को हस्तांतरण के लिए एक विधेयक पेश किया।
भारत सरकार अधिनियम 1935 क्या है in Hindi?ब्रिटिश सरकार का उद्देश्य
अधिनियम के तहत: संघीय विधानमंडल के ऊपरी सदन, राज्य परिषद, 260 सदस्यों को मिलाकर होगा (156 (60%) ब्रिटिश भारत और 104 (40%) रियासतों के शासकों द्वारा मनोनीत से निर्वाचित) और, निचले सदन, संघीय विधानसभा, 375 सदस्यों को मिलाकर होगा (250 (67%) ब्रिटिश भारतीय प्रांतों की विधानसभाओं से चुने गए;.
18 सो 58 में क्या हुआ था?सन् 1857 में हुए विद्रोह के बाद 18 जनवरी 1858 को यहां भी सैनिक विद्रोह हुआ था। हनुमान सिंह ने अपने दो गोलंदाजों की सहायता से अंग्रेजी अफसर मेजर सिडवेल की घर घुसकर हत्या कर दी थी। इस दौरान कई सिपाही इस विद्रोह में शामिल हुए।
भारत सरकार अधिनियम 1935 का क्या महत्व है?1935 के भारत शासन अधिनियम में प्रांतों में द्वैध शासन को समाप्त कर वहां स्वशासन (autonomy) की स्थापना की गई थी। प्रांतों के सभी विभागों पर मंत्रियों का नियंत्रण स्थापित कर दिया गया था। मंत्री विधानसभा के बहुमत प्राप्त दल के सदस्य होते थे और वे उसके प्रति संयुक्त रूप से उत्तरदायी थे।
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