भारत के प्रमुख खनिज उत्पादक राज्य 2019 – Major Mineral Producing States in India GK के सवाल अक्सर प्रतियोगी परीक्षाओं में पूछे जाते है। चूंकि भारत में खनिज सम्पदा का विशाल भंडार है और यहाँ लगभग सभी प्रकार के खनिज मिलते हैं। भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (Geological Survey of India) के अनुसार भारत में खनिज सम्पदा वाले 50 क्षेत्र हैं और उन क्षेत्रों में लगभग 400 स्थलों पर खनिज मिलते हैं। जिसमें भारत में लौह-अयस्क का बहुत विशाल भंडार है। इसके अलावा मैंगनीज, क्रोमाईट, टाइटेनियम, मैग्नासाईट, केनाईट, सिलिमनाईट, परमाणु-खजिनों अभ्रक और बाक्साइट के भी पर्याप्त भंडार है जिसके कारण भारत इनका बड़ी मात्रा में निर्यात भी करता है। इसलिए हमने यहां भारत के प्रमुख खनिज उत्पादक राज्य की पूरी सूची दी है। जिसका प्रयोग विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में अध्ययन सामग्री के रूप में किया जा सकता है। यह सभी प्रतियोगी परीक्षा के दृष्टी से बहुत ही helpful होगी आप इसे शेयर भी कर सकते है। Show
Table of Contents
राजस्थान (पाली, भीलवाड़ा क्रोमाइटझारखंड एवं ओडिशाटंगस्टनराजस्थान, तमिलनाडु, कर्नाटकसीसाझारखंड, राजस्थान।लिग्नाइटतमिलनाडु, राजस्थान टिनछत्तीसगढ भारत में खनिजों के सर्वेक्षण, पूवेक्षण एवं अन्वेषण के कार्य जिओलॉजिकल सर्वे आॅफ इंडिया (मुख्यालय कोलकाता), भारतीय खान ब्यूरो (मुख्यालय नागपुर) तेल एवं प्राकृतिक गैस आयोग (मुख्यालय-देहरादून), खनिज अन्वेषण निगम लि. (मुख्यालय-नागपुर), राष्ट्रीय खनिज विकास निगम (मुख्यालय हैदराबाद), राष्ट्रीय एल्युमिनियम कंपनी लिमिटेड और विभिन्न राज्यों के खदान एवं भूविज्ञान विभाग करते हैं। भारत के शीर्ष पाँच खनिज उत्पादक राज्य क्रमश: ओडिशा, राजस्थान, आन्ध्रप्रदेश, छत्तीसगढ़ एवं झारखंड हैं। विश्व के बहुत से देशों में खनिज सम्पदा राष्ट्रीय आय के प्रमुख स्रोत बने हुए हैं। किसी भी देश की आर्थिक, सामाजिक उन्नति उसके अपने प्राकृतिक संसाधनों के युक्ति संगत उपयोग करने की क्षमता पर निर्भर करता है। खनिजों की सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि एक बार उपयोग में आने के पश्चात ये लगभग समाप्त हो जाते हैं। इसका सम्बन्ध हमारे वर्तमान एवं भविष्य के कल्याण से है। चूँकि खनिज ऐसे क्षयशील संसाधन हैं जिन्हें दोबारा नवीनीकृत नहीं किया जा सकता अतः इनके संरक्षण की आवश्यकता बहुत ज्यादा है। रोमन साम्राज्य के पतन के अनेकों कारणों में से एक कारण वहाँ के खनिज-निक्षेप का क्षीण होना तथा मृदा अपरदन था। विकसित देशों में विगत कुछ वर्षों पूर्व जो खदानों वाले शहर या कस्बे थे वे आज वीरान, उजाड़ तथा सभ्यता से परित्यक्त इसलिये हो गए हैं क्योंकि खदानों से खनिजों का सम्पूर्ण दोहन हो चुका है तथा आकर्षण समाप्त हो चुका है। कनाडा के इलियट झील के आस-पास के नगर ''आणविक-युग के प्रथम वीरान, उजाड़, परित्यक्त नगरों'' में बदल गए। इसका कारण इन नगरों से यूरेनियम खनिज जिसकी खुदाई एवं संग्रहण करने के लिये 25,000 आबादी वाली मानव-बस्ती बसाई गई थी (1950-58), जैसे ही अमेरिका को वैकल्पिक आण्विक खनिज (यूरेनियम) के भण्डार मिले, बस्ती की जनसंख्या 5000 हो गई। इस प्रकार की मानवीय क्रियाकलापों से एक आर्थिक-सामाजिक सलाह मिलती है कि खनिज एवं ऊर्जा पर आधारित चमक-दमक की सम्पन्नता एवं सभ्यता को स्थाई नहीं मानना चाहिये। इस पाठ के अध्ययन से हम पृथ्वी पर पाए जाने वाले विशिष्ट खनिज पदार्थ, खनिज-तेल एवं ऊर्जा के अन्य संसाधनों के भौगोलिक वितरण, इन संसाधनों के साथ संयुक्त समस्याएँ एवं इनके संरक्षण की आवश्यकताओं से अवगत होंगे। उद्देश्य - देश के खनिज संसाधनों की स्थिति बता सकेंगे; 23.1 भारत के खनिज संसाधन जैसा कि आपने इतिहास में पढ़ा होगा कि अंग्रेजों की हुकूमत के दौरान भारत के अधिकांश खनिज निर्यात कर दिये जाते थे। किन्तु स्वतंत्रता के बाद भी भारत से खनिज पदार्थों का निर्यात हो रहा है, परन्तु खनिजों का दोहन देश की औद्योगिक इकाइयों द्वारा खपत की माँग के अनुरूप भी बढ़ा है। परिणामस्वरूप भारत में खनिजों के कुल दोहन का मूल्य 2004-2005 में लगभग 744 अरब रुपयों तक पहुँच गया जो वर्ष 1950-51 में मात्र 89.20 करोड़ रुपये ही था। इसका अर्थ यह हुआ कि पिछले 50 वर्षों में 834 गुना वृद्धि हुई। खनिज पदार्थों को अलग-अलग करके देखें कि उपरोक्त मूल्यों में किसका कितना योगदान है तो स्पष्ट हो जाता है कि ईंधन के रूप में प्रयुक्त खनिज (जैसे कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस और लिग्नाइट) का योगदान 77% था, धात्विक खनिजों का 10% तथा अधात्विक खनिजों का योगदान 8% था। धात्विक खनिज के अयस्क लौह अयस्क, क्रोमाइट, मैगनीज, जिंक, बॉक्साइट, ताम्र-अयस्क, स्वर्ण अयस्क हैं जबकि अधात्विक अयस्कों में चूना-पत्थर, फास्फोराइट, डोलोमाइट, केवोलीन मिट्टी, मेग्नेसाइट, बेराइट और जिप्सम इत्यादि हैं। यदि खनिजों के सकल मूल्य में इनका अलग-अलग योगदान देखें तो कोयला (36.65%), पेट्रोलियम (25.48%), प्राकृतिक गैस (12.02%), लौह अयस्क (7.2%), लिग्नाइट (2.15%), चूनापत्थर (2.15%) तथा क्रोमाइट (1.1%) आदि कुछ ऐसे खनिज हैं, जिनका अंश 1 प्रतिशत से अधिक है। अभी तक की गई विस्तृत चर्चा के अन्तर्गत खनिज पदार्थों की स्थानिक उपलब्धता उनके आर्थिक महत्त्व के बारे में बहुत से जरूरी तथ्यों का खुलासा किया गया था। अगले अनुच्छेद में इन खनिजों के भौगोलिक वितरण सम्बन्धी जानकारी प्राप्त करेंगे। 23.2 खनिज पदार्थों एवं ऊर्जा संसाधनों का स्थानिक वितरण यदि हम इन खनिज पदार्थों के देश के विभिन्न भागों में वितरण को ध्यान से देखें तो स्पष्ट हो जाएगा कि भारतीय प्रायद्वीप के उस भाग में जो कि मंगलोर से कानपुर को जोड़ने वाली रेखा के पश्चिम में है बहुत ही कम मात्रा में खनिज पाए जाते हैं। इस रेखा के पूर्वी भागों के अन्तर्गत कर्नाटक, आन्ध्रप्रदेश, उड़ीसा, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखण्ड, बिहार एवं पश्चिम बंगाल के क्षेत्र आते हैं। इन राज्यों में धात्विक खनिज अयस्क जैसे लोहा, बॉक्साइट, मैगनीज इत्यादि के प्रचुर भण्डार हैं। अधात्विक खनिज जैसे कोयला, चूने के पत्थर, डोलोमाइट, जिप्सम इत्यादि के भी बहुत विशाल भण्डार हैं। इनमें से अधिकांश क्षेत्र जो खनिज सम्पदा से सम्पन्न हैं, वे प्रायद्वीपीय पठारी क्षेत्रों में संकेन्द्रित हैं। इस पठारी भाग में खनिज सम्पदा की तीन प्रमुख पट्टियाँ स्पष्ट रूप से चिन्हित की जा सकती हैं। (क) उत्तर-पूर्वी पठार - इनके अन्तर्गत छोटानागपुर के पठार, उड़ीसा के पठार और आन्ध्रप्रदेश के पठारी भाग आते हैं। इस पट्टी के अन्तर्गत खनिज-सम्पदा विशेषकर धातु कर्म उद्योगों में उपयोग आने वाले खनिजों के विशाल भण्डार हैं। इनमें से प्रमुख खनिज जिनके बड़े एवं विपुल भण्डार पाए जाते हैं, वे हैं-लौह अयस्क, मैगनीज, अभ्रक, बॉक्साइट, चूनापत्थर, डोलोमाइट इत्यादि। इस क्षेत्र में कोयले के विशाल भण्डार दामोदर नदी, महानदी, सोन नदी की घाटियों में उपलब्ध हैं। इस क्षेत्र में पर्याप्त मात्रा में तांबा, यूरेनियम, थोरियम, फास्फेट जैसे खनिजों के भण्डार भी मिलते हैं। (ख) दक्षिण पश्चिम पठार - इस क्षेत्र का विस्तार कर्नाटक पठार तथा समीपस्थ तमिलनाडु के पठारी क्षेत्र तक है। यहाँ धात्विक खनिजों में लौह अयस्क, मैगनीज, बॉक्साइट के प्रचुर भण्डार के अलावा कुछ अधात्विक खनिजों के भण्डार भी हैं। इस क्षेत्र में कोयला नहीं मिलता। भारत के तीनों प्रमुख सोने की खदानें इसी क्षेत्र में स्थित हैं। (ग) उत्तर-पश्चिम पठार - इस क्षेत्र का विस्तार गुजरात के खम्बात की खाड़ी से आरंभ होकर राजस्थान के अरावली पर्वत श्रेणियों तक है। पेट्रोलियम तथा प्राकृतिक गैस के मुख्य भण्डार इस क्षेत्र में हैं। अन्य खनिजों के भण्डार थोड़े एवं बिखरे हुए हैं। फिर भी तांबा, चाँदी, सीसा एवं जस्ता के भण्डार तथा उनके खनन के लिये इस क्षेत्र को पूरे देशभर में जाना जाता है। इन खनिज पट्टियों के अलावा ब्रह्मपुत्र नदी घाटी क्षेत्र प्रमुख पेट्रोलियम उत्पादक क्षेत्र हैं, जबकि केरल के तटवर्ती क्षेत्र भारी खनिजयुक्त (रेडियोर्धिमता वाले) रेतों के लिये देश में प्रसिद्ध हैं। इन उपर्युक्त र्विणत क्षेत्रों के अलावा देश के अन्य भूभागों में खनिज काफी कम मात्रा में व प्रकीर्ण रूप में मिलते हैं। अगले अनुच्छेद में हम खनिज तेल एवं खनिजों के प्रकारों, जैसे कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस, रेडियोधर्मी विशेषकर यूरेनियम एवं थोरियम की एक-एक करके विस्तृत चर्चा करेंगे। 23.3 खनिज ईंधन (क) कोयला जनवरी 2005 में किए गए एक आकलन के अनुसार देश में कोयले के कुल भण्डार लगभग 2,47,847 मिलियन टन है। परन्तु खेद इस बात का है कि सकल भण्डार में कम गुणवत्ता वाले कोयले की मात्रा अधिक है। कोकिंग कोयले की आवश्यकता की आपूर्ति आयात द्वारा की जाती है। भारत में ऐसे प्रयासों को अधिक महत्त्वपूर्ण माना जाता है जिसके अन्तर्गत विद्युत-ताप गृहों की उन्हीं स्थानों पर स्थापना होती है जो या तो कोयला-उत्पादक क्षेत्र में हों या उसके समीपस्थ स्थान में आते हों। इन ताप गृहों में उत्पादित विद्युत ऊर्जा को सम्प्रेषण द्वारा दूर-दराज के क्षेत्रों तक पहुँचाया जाता है। कभी कोयले की खपत का सबसे बड़ा उपभोक्ता भारतीय रेल हुआ करता था, परन्तु डीजल एवं विद्युत के प्रयोग से भारतीय रेल अब कोयले का सीधा एवं प्रत्यक्ष खपत करने वाला ग्राहक नहीं रहा। सारिणी 23.1 भारत में कोयले का उत्पादन (लिग्नाइट सहित) वर्ष उत्पादन (मिलियन टनों में) 1950-51 32.8 1960-61 55.7 1970-71 76.3 1980-81 118.8 1990-91 225.7 2004-05 376.63 स्रोत - भारत 2006, संदर्भ वार्षिकी (पृष्ठ 276) वितरणः भारत में कोयला दो प्रमुख क्षेत्रों में उपलब्ध है। पहला क्षेत्र-गोन्डवाना कोयला क्षेत्र कहलाता है तथा दूसरा टरशियरी कोयला क्षेत्र कहलाता है। भारत के कुल कोयला भण्डार एवं उसके उत्पादनों का 98% गोन्डवाना कोयला क्षेत्रों से प्राप्त होता है तथा शेष 2% टरशियरी कोयला क्षेत्रों से मिलता है। गोन्डवाना कोयला क्षेत्र गोन्डवाना काल में बनी परतदार शैल समूहों के अन्तर्गत अवस्थित हैं। इनका भौगोलिक वितरण भी भू-वैज्ञानिकी कारकों से नियंत्रित है। यह मुख्य रूप से दामोदर (झारखण्ड़- प. बंगाल), सोन (मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़), महानदी (उड़ीसा), गोदावरी (आंध्र प्रदेश) तथा वर्धा (महाराष्ट्र) नदी घाटियों में वितरित हैं। टरशियरी कोयला क्षेत्र भारतीय प्रायद्वीप के उत्तरी बाह्य क्षेत्रों में, जिसके अन्तर्गत असम, मेघालय, नागालैंड, अरुणाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर तथा सिक्किम आते हैं, में पाये जाते हैं। इसके अतिरिक्त भूरा-कोयला (लिग्नाइट) तमिलनाडु के तटवर्ती क्षेत्र, गुजरात एवं राजस्थान में मिलता है। झारखण्ड कोयला भण्डार एवं उत्पादन की दृष्टि से पूरे देश में सर्वप्रथम है। कोयला झारखंड के धनबाद, हजारीबाग एवं पालामऊ जिलों में मिलता है। झरिया एवं चन्द्रपुरा के महत्त्वपूर्ण कोयला क्षेत्र धनबाद जिला में आते हैं। सबसे पुराना कोयला क्षेत्र रानीगंज, पश्चिम बंगाल में है, जो कि भारत का दूसरा सबसे बड़ा कोयला क्षेत्र है। इसका विस्तार बर्दवान और पुरुलिया जिलों में फैला है। छत्तीसगढ़ में कोयला के निक्षेप बिलासपुर तथा सरगुजा जिलों में मिलते हैं। मध्य प्रदेश में कोयले के निक्षेप सीधी, शहडोल एवं छिंदवाड़ा जिलों में मिलते हैं। आंध्रप्रदेश में कोयले के निक्षेप आदिलाबाद, करीमनगर, वारंगल, खम्मम तथा पश्चिम गोदावरी जिलों में मिलते हैं। उड़ीसा राज्य में तालचेर कोयला क्षेत्र के अलावा सम्बलपुर और सुन्दरगढ़ जिलों में भी कोयला के निक्षेप प्राप्त होते हैं। महाराष्ट्र में कोयला निक्षेप चन्द्रपुर, यवतमाल तथा नागपुर जिलों में मिलते हैं। भारत के कोयले के भण्डार क्षमता की तुलना में उसके लिग्नाइट (भूरा कोयला) के भण्डार साधारण हैं। सबसे अधिक लिग्नाइट के भण्डार नेव्हेली (तमिलनाडु) में मिलते हैं। इसके अलावा लिग्नाइट के महत्त्वपूर्ण निक्षेप राजस्थान, पुदुच्चेरी, जम्मू-कश्मीर राज्यों में भी मिलते हैं। - इसका प्रयोग कच्चे माल के रूप में रसायन एवं उर्वरक कारखानों तथा दैनिक जीवन में उपयोग की जाने वाली हजारों वस्तुओं में होता है। इसे प्रायः तरल सोना भी कहा जाता है। इसके पीछे पेट्रोलियम की बहुमुखी उपयोगिताएँ हैं। हमारी कृषि, उद्योग तथा परिवहन तंत्र कई रूपों में इस पर निर्भर है। कच्चा पेट्रोलियम दहनशील हाइड्रोकार्बन का सम्मिश्रण है जोकि गैस, तरल या गैसीय रूपों में होता है। उद्योगों में पेट्रोलियम उत्पादों का कृत्रिम पदार्थों व आवश्यक रसायनों के निर्माण के लिये तेल व चिकनाई के युक्त पदार्थों के रूप में उपयोग किया जाता है। पेट्रोलियम के महत्त्वपूर्ण उत्पादों में पेट्रोल, मिट्टी का तेल, डीजल हैं। साबुन, कृत्रिम रेशा, प्लास्टिक एवं अन्यान्य प्रसाधन उत्पाद हैं। वितरणः पेट्रोलियम भ्रंशों और अपनतियों में पाया जाता है। भारत में यह अवसादी शैल संरचना में पाया जाता है। इस प्रकार के अधिकांश क्षेत्र असम, गुजरात तथा पश्चिमी तट के अपतटीय क्षेत्रों में पाए गए हैं। अब तक भारत में पेट्रोलियम का उत्पादन असम पट्टी, गुजरात-खम्बात की पट्टी तथा बॉम्बे-हाई में हो रहा है। असम की पट्टी का विस्तार सुदूर उत्तर-पूर्वी छोर पर अवस्थित देहांग-बेसिन से लेकर पहाड़ियों के बाहरी छोर के साथ-साथ सूरमा-घाटी की पूर्वी सीमा तक विस्तृत है। गुजरात-खम्बात पट्टी गुजरात के उत्तर में मेहसाना से लेकर दक्षिण में रत्नागिरि (महाराष्ट्र) के महाद्वीपीय निमग्न तट तक फैली है। इसी के अन्तर्गत बॉम्बे हाई भी आता है जो भारत का सबसे बड़ा पेट्रोलियम उत्पादक क्षेत्र है। असम में उत्पादक क्षेत्र लखीमपुर तथा शिवसागर जिलों में स्थित हैं। पेट्रोलियम के उत्पादन के लिये खननकूप डिग्बोई, नहरकटिया, शिवसागर एवं रुद्र सागर के आस-पास स्थित हैं। इसी प्रकार गुजरात राज्य में तेल उत्पादक स्थान बड़ोदरा, भरोच, खेड़ा, मेहसाना एवं सूरत जिलों में स्थित हैं। हाल ही में पेट्रोलियम के भण्डार की खोज राजस्थान के बीकानेर जिलान्तर्गत बहुत बड़े क्षेत्र में तथा बाड़मेर एवं जैसलमेर क्षेत्रों में की गई है। इसी प्रकार आन्ध्र प्रदेश के पूर्वी तटवर्ती गोदावरी डेल्टा तथा कृष्णा डेल्टा में अन्वेषण के दौरान प्राकृतिक गैस मिली है। पेट्रोलियम भण्डार के संभावित क्षेत्र बंगाल की खाड़ी, जिसका विस्तार पश्चिम बंगाल की तटवर्ती रेखा के साथ-साथ उड़ीसा, आन्ध्र प्रदेश, तमिलनाडु तथा अन्डमान व निकोबार द्वीप समूह तक फैला है। - पेट्रोलियम अपनतियों और भ्रंशों में पाया जाता है। भारत में यह अवसादी शैल संरचना में पाया जाता है। ऐसे अधिकांश क्षेत्र असम, गुजरात तथा पश्चिमी तटवर्ती क्षेत्र के सहारे समुद्र के महाद्वीपीय निमग्न तट पर मिलते हैं। - पेट्रोलियम के महत्त्वपूर्ण उत्पादों में पेट्रोल, डीजल, मिट्टी का तेल, साबुन, कृत्रिम रेशे, प्लास्टिक, विविध सौन्दर्य-प्रसाधन वस्तुएँ आदि हैं। - उद्योगों में पेट्रोलियम उत्पादों का कृत्रिम पदार्थों व आवश्यक रसायनों के निर्माण के लिये तेल व चिकनाई युक्त पदार्थों के रूप में उपयोग किया जाता है। भारत में कौन कौन से खनिज कहां कहां पाए जाते हैं?चांदी- राजस्थान (जवार खान), कर्नाटक (चित्रदुर्ग, बेलारी), आंध्र प्रदेश (कुडप्पा गुटूर), झारखंड (संथाल परगना, सिंहभूम)। पेट्रोलियम- असम (डिग्बोई, सूरमा घाटी), गुजरात (खंभात, अंकलेश्वर) महाराष्ट्र (मुंबई)। मैग्नेजाइट- उत्तराखंड, राजस्थान, तमिलनाडु, आन्ध्र प्रदेश। हीरा- मध्य प्रदेश (मझगावां खान, पन्ना जिला)।
खनिज उत्पादन में भारत का प्रथम राज्य कौन सा है?भारत के शीर्ष पाँच खनिज उत्पादक राज्य क्रमश: ओडिशा, राजस्थान, आन्ध्रप्रदेश, छत्तीसगढ़ एवं झारखंड हैं।
भारत में कुल कितने खनिज पाए जाते हैं?हमारे देश में 100 से अधिक खनिजों के प्रकार मिलते हैं। इनमें से 30 खनिज पदार्थ ऐसे हैं जिनका आर्थिक महत्त्व बहुत अधिक है। उदाहरणस्वरूप कोयला, लोहा, मैगनीज़, बॉक्साइट, अभ्रक इत्यादि। दूसरे खनिज जैसे फेल्सपार, क्लोराइड, चूनापत्थर, डोलोमाइट, जिप्सम इत्यादि के मामले में भारत में इनकी स्थिति संतोषप्रद है।
भारत में खनन नगर कौन कौन से हैं?Explanation: पूर्वी भारत में दो महत्वपूर्ण कोयला खनन क्षेत्र हैं: रानीगंज और झरिया।
भारत का खनिज भंडार कौन सा है?सही उत्तर छोटा नागपुर पठार है।
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