भगवान कृष्ण ने स्नान करती गोपियों के वस्त्र क्यों चुराए थे : जैसा कि हम सब जानते हैं कि भगवान विष्णु ने कृष्ण अवतार में सबसे ज्यादा लीलाये की। तभी हम सभी भगवान कृष्ण को लीलाधर के नाम से जानते हैं । दोस्तों हम सब जानते हैं कि
भगवान कृष्ण बहुत ही ज्यादा नटखट थे और बचपन में गोपियों के घरों से माखन तक चुरा कर खा लिया कर ते थे । विषयसूची
भगवान कृष्ण ने स्नान करती गोपियों के वस्त्र क्यों चुराए थे?
एक दिन नदी में नहाती गोपियों की वस्त्र चुरा लिए थे । दोस्तों लेकिन वस्त्र चुराना श्री कृष्ण की एक ऐसी लीला है, जिसको लेकर आज तक कई सवाल खड़े करते हैं । श्रीकृष्ण को कटघरे में खड़ा करने की कोशिश करते हैं । उनकी लीला को गलत और अनुचित बताने का हमेशा से प्रयास किया जाता है ।
भगवान कृष्ण ने स्नान करती गोपियों के कपड़े क्यों चुराये थे? क्या है ये लीला और क्या है इस लीला की पीछे का असली रहस्य, आज हम इस लेख के माधयम से वताने वाले है।
कारण १
नदी में नहाती हुई गोपियों के वस्त्र चुरा लेना यह बालकृष्ण की एक नटखट का नहीं बल्कि उनकी एक लीला थी । जिसके माध्यम से उन्होंने बालपन में गोपियों को एक अच्छी सीख सिखाने चाहा। ना सब उपयोग को बल्कि आज के समाज की स्त्रियों को भी इसका वर्णन हमें शास्त्रों में मिल जाता है ।
दोस्तों पद्म पुराण में वर्णित कथा के अनुसार १ दिन की बात है, जब गोपिया जल में स्नान करने के लिए तलाब में उतरती है । भगवान कृष्ण पेड़ पर बैठकर यह दृश्य आराम से देख रहे होते है। जब गोपिया नहाने के लिए व्यस्त हो जाती है, तो श्री कृष्ण ने गोपियों के वस्त्र चुराकर छुपा दिए ।
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जब गोपिया नहाकर तालाब से निकलने वाली थी, तो उन्होंने देखा कि उनके वहां नहीं थे और वह सब चिंतित होने लगी । उसी समय गोपियों के नजर छुपकर पेड़ पर बैठे श्री कृष्ण पर परी । गोपियों ने कहा की : गोपियों को नहाते हुए देखने में जरा भी लज्जा नहीं आती तुम्हें ।
गोपियां कृष्ण से जब यह बात कहती है तो प्रश्न भी पलट कर कहते है : कि मुझे लज्जा क्यों आएगी । लज्जा तो तुम्हें आनी चाहिए, जो निर्बस्त्र होकर नाहा रही हो।
गोपियां श्री कृष्ण से कहने लगी हमसे गलती हो गई है । अब यह बताओ तुमने हम सबके बस्त्र कहां रखे हैं । पहले तो कृष्ण गोपियों को मना कर देते हैं । किंतु उनके बार-बार अनुरोध करने पर, हाथ जोड़ने पर कृष्ण बता देते कि उनके बस्त्र इसी वृक्ष पर है । पानी से निकल कर आओ और इन्हें ले जाओ ।
तब गोपियां जल से बाहर नहीं आती और कृष्ण से कहती है की: हम जल से बाहर नहीं आ सकती, हम निर्वस्त्र हैं । हम सभी तो बिना कपड़ों के जल से बाहर क्या जल से ऊपर भी नहीं कर सकती ।
तब श्रीकृष्ण कहते हैं कि जब तुम नदी में स्नान करने गई तभी निर्वस्त्र थी, अभी बाहर आने में शर्म क्यों आ रही है । तब गोपियां कहने लगी जब नदी में स्नान करने आए तब उस समय कोई नहीं था ।
ये सुनकर कृष्ण कहते हैं कि तुमने यह कैसे सोच लिया कि यहां पर कोई नहीं था, क्योंकि मैं तो हर पल हर जगह मौजूद होता हूं और हां उस समय मेरे अलावा आसमान में उड़ते पक्षियों और अन्य पशु ने भी तुम्हें निर्वस्त्र देखा है ।
जल के प्राणियों ने भी तुम सब को निर्बस्त्र देखा और जल के अधिष्ठाता देव स्वयं वरुण देव है जो एक पुरुष है, उन्होंने भी तुम सब को निर्बस्त्र देखा। साथ ही तुम्हारे पूर्वजों ने भी तुम्हें इस अवस्था में देखा है ।
क्योंकि पुराणों के अनुसार नहाते समय हम सभी के पूर्वज हमारे आसपास होते हैं और बस्त्र से गिरने वाले जल को ग्रहण करते हैं । जिनसे उनको तृप्ति मिलती है। निर्बस्त्र स्नान करने से पूर्वज नाराज हो जाते हैं और व्यक्ति को सुख प्राप्त नहीं हो पाता । उसके सुख नष्ट हो जाते हैं । इसलिए कभी भी निर्वस्त्र स्नान नहीं करना चाहिए ।
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कृष्ण गोपियों को यह अद्भुत सीख देने के बाद उनके बस्त्र लौटा देते हैं और कहते हैं, कि जब तक मनुष्य शरीर स्वरूप इस माया के बंधन में बना हुआ रहता है । तब तक वह मोक्ष को प्राप्त नहीं हो सकता । माया बंद रहने से मनुष्य को वैकुंठ में प्रवेश करना भी असंभव हो जाता है । यही समझाने के लिए मैंने तुम्हारे वस्त्र चुराए थे ।
फिर कृष्ण आगे बताते हैं : गोपियों इस बात में कोई शक नहीं कि तुम संपूर्ण रूप से मुझे समर्पित हो । फिर भी तुम्हारी वस्त्र माया का प्रतीक है, जो तुम्हारे और परमात्मा के बीच में ऐसी बाधा पैदा कर रही है, के तुम सभी यह जानते हुए भी कि ईश्वर के आगे सब निर्वस्त्र है । फिर भी जल से बाहर नहीं आ पा रही हो । जबकि ईश्वर के करीब जाने के लिए माया तो क्या, श्री पुरुष होने के बंधनों से मुक्त होना पड़ता है ।
कारण २
दोस्तों एक और कारण है, जिसके कारण श्री कृष्ण वस्त्र हरण लीला की थी । पर यह इतना रहस्य है कि इसे केवल वही समझ सकते हैं, जिनके दिल में माया नहीं है । सिर्फ श्री कृष्ण के लिए प्रेम रहता है ।
दोस्तों गोपियां कृष्ण को पति रूप में पाने के लिए बचपन से कात्यायनी व्रत करती थी । जिससे कात्यायनी माता प्रसन्न होकर उन्हें वरदान देती हैं, कि श्रीकृष्ण उनके पति होंगे । हमें जानते हैं कि निर्वस्त्र केवल अपने पति के सामने जा सकती है ।
यानी श्री कृष्ण लीला गोपियों को यह संदेश दे दिया कि, वही उनके पति है और गोपियों के कात्यायनी व्रत का फल उन्हें मिल चुका है । उनका व्रत सफल रहा अब गोपियों की आत्मा पर केवल और केवल कृष्ण का अधिकार है ।
अंत में
पाठकों अब तो आप समझ ही गए होंगे कि श्री कृष्ण का यह हास परिहास गोपियों के प्रति उनके अगाध प्रेम भाव को प्रकट करता है । तो दर्शकों उम्मीद करता हूं कि आपको हमारी यह जानकारी पसंद आई होगी अगर पसंद आई हो तो ज्यादा से ज्यादा शेयर करें साथ ही अगर आप हमारे वेबसाइट पर नए हैं तो वेबसाइट को बुकमार्क कर ले ताकि अधिक से अधिक आध्यात्मिक और पौराणिक कथाओं के बारे में जान सकें ।
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