हिन्दी पद्य-साहित्य का प्रथम काल वीरगाथा काल कहलाता है। इसे चारणकाल, अपभ्रंशकाल, सन्धिकाल, आविर्भावकाल आदि नामों से भी सम्बोधित किया जाता है। इस युग में देश छोटे-छोटे राज्यों में बँटा हुआ था। राजा आपस में लड़ते थे। मुसलमानों का आक्रमण भी प्रारम्भ हो गया था। इस युग में वीरों और योद्धाओं में वीर रस का संचार करना ही काव्य का मुख्य उद्देश्य रह गया था । अतः वीर रस से पूर्ण गाथाओं का वर्णन किया जाता था इसीलिए इस काल को वीरगाथा काल कहा जाता है। यह सर्वथा उपयुक्त नाम है। Show प्रश्न 1. हिन्दी साहित्य का इतिहास लगभग 1000 वर्ष पहले से प्रारम्भ होता है। कालविभाजन की दृष्टि से हिन्दी साहित्य के इतिहास को चार भागों में विभाजित किया गया है। यह विभाजन उस काल की समय सीमा में मिलने वाले साहित्य की विशेषताओं पर आधारित है। काल-विभाजन के नामकरण का मुख्य आधार उस काल की प्रवृत्तियों, परिस्थितियों और उस काल की विशेषताओं को बनाया गया है। इस आधार पर हिन्दी साहित्य के इतिहास का काल-विभाजन इस प्रकार है :
प्रश्न 2. आदिकाल की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं
प्रमुख कवि – रचनाएं
प्रश्न 3. प्रश्न 4. (क) ज्ञानाश्रयी शाखा : इस शाखा के सभी कवि सन्त साधु कहलाए। उन सभी ने ज्ञान की चर्चा की। सन्तों ने
जाति-पाँति को तिलांजलि देकर सबके लिए भक्ति का मार्ग खोल दिया।
प्रमुख कवि : शाखा के प्रमुख कवि कबीर, रैदास, धर्मदास, गुरुनानक, दादूदयाल, सुन्दरदास और मलूकदास आदि हैं। (ख) प्रेमाश्रयी शाखा-‘सूफी’ शब्द की उत्पत्ति ‘सोफिया’ अथवा ‘सफा’ शब्द से मानी जाती है जिसका अर्थ है क्रमशः ज्ञान अथवा शुद्ध एवं पवित्र । एक अन्य मत के अनुसार सूफी शब्द का सम्बन्ध ‘सूफ’ से है जिसका अर्थ सूफी लोग सफेद ऊन से बने हुए चोंगे पहनते थे। उनका आचरण शुद्ध होता था। प्रेमाश्रयी शाखा के कवि.सूफी संन्त थे। इन कवियों ने मुक्ति प्रेम को महत्व दिया है। उन्होंने बतलाया कि प्रेम की साधना के लिए गुरु का सहयोग अनिवार्य है। विशेषताएँ : प्रेमाश्रयी शाखा की निम्नलिखित विशेषताएं हैं.
प्रमुख कवि : कुतुबन, मंझन, जायसी, उसमान, कासिम, नूर-मोहम्मद और फाजिल शाह आदि। हिन्दी साहित्य का इतिहास सगुण भक्ति काव्य-धारा प्रश्न 5. विशेषताएं-
प्रमुख कवि : तुलसीदास, नाभादास, प्राणचन्द चौहान, हृदयराम, अग्रदास और बाल आली आदि। (ख) कृष्ण भक्ति शाखा : कृष्ण भक्ति शाखा के प्रवर्तक महाप्रभु वल्लभाचार्य थे। आचार्य वल्लभ ने कृष्ण को ही परब्रह्म पुरुषोत्तम कहा है। कृष्ण भक्त कवियों ने भगवान के लीलामय मधुर रूप का वर्णन किया है। विशेषताएँ-
प्रमुख कविः सुरदास, कुंभनदास, परमानन्ददास, कृष्णदास, गोविन्दस्वामी, छीतस्वामी, चतुर्भुजदास, नन्ददास, मीरा, रसखान आदि।। हिन्दी साहित्य का इतिहास उत्तर मध्यकाल (रीतिकाल) प्रश्न 6. रीतिकाल में तीन धाराएँ प्रवाहित हुई है। जिन कवियों ने काव्य-रीतियों का पालन करते हुए अनेकानेक ग्रन्थों की रचना की उनकी इस धारा को रीतिबद्ध काव्य धारा कहा गया। इस प्रकार धारा के कवियों में केशव, सेनापति, देव, भूषण, पद्माकर मतिराम आदि हैं। इस रीतिबद्ध काव्य धारा के समानान्तर इसमें प्रेम और सौन्दर्य वर्णन की एक ऐसी धारा भी प्रवाहित हुई। उसने रीति के पालन की प्रायः उपेक्षा की। इस धारा के कवियों में घनानन्द, बोधा, ठाकुर, और आलम आदि का नाम उल्लेखनीय है। यह धारा रीति मुक्त
काव्य धारा के नाम से जानी गई। काल में एक तीसरी धारा भी प्रवाहित हुई। उसे रीति सिद्ध काव्य धारा नाम दिया गया। बिहारी इस रीति सिद्ध धारा के कवि कहे गए हैं। इस प्रकार रीतिकालीन काव्य की तीन धाराएं हैं : विशेषताएँ-
प्रमुख कवि : केशव दास, चिन्तामणि, मतिराम, देव, रसलीन, प्रताप सिंह, पद्माकर, जसवन्त सिंह, श्रीपति, भिखारीदास, रसिक गोविन्द, बिहारी और बोधा आदि। हिन्दी साहित्य का इतिहास आधुनिक काल प्रश्न 7.
1. भारतेन्दु युग: 2. द्विवेदी युग : 3. छायावाद और छायावादोत्तर युग : प्रगतिवाद, छायावाद की प्रतिक्रियास्वरूप हिन्दी प्रगतिवाद का उदय हुआ। राष्ट्रीयता, मानवीय संवेदना, समाज सुधार, समाजवादी व्यवस्था आदि क्रांतिवादी काव्यधारा की प्रमुख प्रवृत्तियाँ हैं। किसान और मजदूरों की समस्याओं के समाधान में कविगण रूसी-साहित्य से भी प्रभावित हैं। राजनीति का साम्यवाद ही साहित्य में प्रगतिवाद बन गया है। प्रमुख रूप से प्रगतिवादी कवियों में डॉ. रामविलास शर्मा, सुमित्रानन्दन पंत, निराला, नागार्जुन, रामेश्वर शुक्ल ‘अंचल’, शिव मंगल सिंह ‘सुमन’, नरेन्द्र शर्मा, केदारनाथ अग्रवाल आदि हैं। प्रयोगवाद: प्रश्न 8. गद्य साहित्य का विकास वैसे तो हिन्दी साहित्य के उदय के साथ ही माना जा सकता है। जो प्रामाणिक नहीं है। इसलिए लिखित गद्य साहित्य का प्रादुर्भाव 1850 के बाद स्वीकार किया जाता है। 1850 के पूर्व पद्य साहित्य ही लिखा जाता था। गद्य साहित्य ने केवल एक शताब्दी में ही विकास के अनेक कीर्तिमान स्थापित किए हैं और यही कारण है कि आज गद्य साहित्य की अनेक विधाओं से हम परिचित हैं। गद्य का अर्थ है बोलना, बताना या कहना। अतएव दैनिक जीवन में गद्य का ही प्रयोग होता है। गद्य की प्रमुख विधाएँ निम्नलिखित हैं :
1. निबन्ध निबन्धकार को किसी भी बात को स्वतन्त्रतापूर्वक प्रस्तुत करने की स्वतन्त्रता रहती है। इसमें निबन्धकार का व्यक्तित्व ही उसका प्रमुख तत्त्व होता है। निबन्ध सामान्यतः चार प्रकार के होते हैं
हिन्दी में निबन्ध का विकास, आधुनिक काल में ही हुआ है। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल, महावीर प्रसाद द्विवेदी, बाबू गुलाबराय, सरदार पूर्ण सिंह, बाबू श्याम सुन्दर दास, हजारी प्रसाद द्विवेदी, नन्द दुलारे वाजपेयी, विद्यानिवास मिश्र, कुबेरनाथ राय की गणना हिन्दी के श्रेष्ठ निबन्धकारों में की जाती है। 2. नाटक :
हिन्दी के प्रमुख नाटककारों में भारतेन्दु, हरिश्चन्द्र, लाला श्रीनिवासदास, राधाकृष्णदास, किशोरीलाल गोस्वामी बालकृष्णभट्ट प्रतापनारायण मिश्र, जयशंकर प्रसाद, हरिकृष्ण प्रेमी, गोविन्द वल्लभ पन्त, जी.पी श्रीवास्तव, लक्ष्मी नारायण मिश्र, वृन्दावनलाल वर्मा, सेठ गोविन्ददास, उदयशंकर भट्ट, धर्मवीर भारती, उपेन्द्रनाथ अश्क, मोहन राकेश आदि के नाम विशेष उल्लेखनीय हैं। 3. एकांकी:
हिन्दी के प्रमुख एकांकीकारों में भारतेन्दु हरिचन्द्र, प्रताप नारायण मिश्र, जयशंकर प्रसाद, भुवनेश्वर, सेठ गोविन्ददास, रामनरेश त्रिपाठी, पांडेय बेचन शर्मा उग्र, डॉ. रामकुमार वर्मा, उदयशंकर भट्ट, लक्ष्मीनारायण मिश्र, उपेन्द्र नाथ अश्क जगदीश चन्द्र माथुर भगवतीचरण वर्मा, वृन्दावन लाल वर्मा, भारत भूषण अग्रवाल, नरेश मेहता, चिरंजीत, मोहन राकेश, विष्णु ‘प्रभाकर’, प्रभाकर माचवे आदि का नाम प्रमुखता के साथ लिया जा सकता है। 4. कहानी :
कहानी में एक ही प्रमुख पात्र के इर्द-गिर्द सारी घटना घूमती रहती है। इसका आकार संक्षिप्त होता है। लघुता और तीव्रता कहानी कला की
मुख्य विशेषता है।
हिन्दी कहानीकारों में भारतेन्दु, मुंशी प्रेमचन्द, जयशंकर प्रसाद, चन्द्रधर शर्मा गुलेरी, विश्वम्भरनाथ शर्मा कौशिक, फणीश्वर नाथ रेणु, सुदर्शन, जैनेन्द्र, अज्ञेय, कमेलश्वर, राजेन्द्र यादव, मोहन राकेश, शैलेश मटियानी, जैनेन्द्र कुमार, इलाचन्द्र जोशी, अज्ञेय, भगवती चरण वर्मा, यशपाल, शिव प्रसाद सिंह, भीष्म साहनी, धर्मवीर भारती, अमरकान्त, मालती जोशी, निर्मल वर्मा, ज्ञानरंजन, महेश कटारे, उदय प्रकाश आदि का योगदान प्रशंसनीय रहा है। 5. उपन्यास :
हिन्दी में उपन्यास लेखन तो भारतेन्दु युग से ही प्रारम्भ हो गया था, लेकिन प्रेमचन्द्र (1880-1936 ई.) के उपन्यासों में इस विधा ने अभूतपूर्व व्यापकता और गम्भीरता प्राप्त की। प्रेमचन्द की संवेदना अत्यन्त व्यापक थी। उपन्यास विधा के चरम उत्कर्ष के लिए जिस सहज भाषा-शैली की आवश्यकता होती है वह भी प्रेमचन्द के पास थी। मुंशी प्रेमचन्द को तो उपन्यास सम्राट की संज्ञा दी गई है। हजारी प्रसाद द्विवेदी के अनुसार-अगर आप उत्तर भारत की समस्त जनता के आचार-विचार, भाषा-भाव, रहन-सहन, आशा, आकांक्षा, दुःख-सुख और सूझ-बूझ जानना चाहते हैं तो प्रेमचन्द से उत्तम परिचायक आपको नहीं मिल सकता। हिन्दी के उपन्यासकारों में श्रीनिवास दास, राधाकृष्णदास, देवकीनंदन खत्री, गोपाल राय गहपरी, किशोरी लाल गोस्वामी मुंशी प्रेमचन्द, जयशंकर प्रसाद, आचार्य चतुरसेन शास्त्री, वृन्दावनलाल वर्मा, अमृतलाल नागर, जैनेन्द्र, इलाचन्द्र जोशी, नागार्जुन, भगवती चरण वर्मा, भगवती प्रसाद वाजपेयी, फणीश्वरनाथ रेणु, शैलेश मटियानी, शिव प्रसाद सिंह, अज्ञेय, यशपाल, राहुल सांकृत्यायन, चतुरसेन शास्त्री, भीष्म साहनी, कृष्णा सोवती, राही मासूम रजा, मनोहर श्याम जोशी, यशपाल, श्रीलाल शुक्ल, राजेन्द्र यादव, कमलेश्वर आदि के नाम महत्त्वपूर्ण है। 6. जीवनी हिन्दी के प्रमुख जीवनी लेखक प्रताप नारायण मिश्र, राधाचरण गोस्वामी, पण्डित बनारसीदास, सत्यदेव विद्यालंकार, सेठ गोविन्द दास, बाबू श्यामसुन्दर दास, हरिभाऊ उपाध्याय, काका कालेलकर, जैनेन्द कुमार, राहुल सांस्कृत्यायन, अज्ञेय, भदन्त आनन्द कौसल्यायन, रामवृक्ष बेनीपुर, महादेवी वर्मा, अमृतराय, डॉ. रामविलास शर्मा, विष्णु प्रभाकर, विष्णु चन्द्र वर्मा, शान्ति जोशी आदि। 7. आत्म कथा :
8. संस्मरण : हिन्दी में संस्मरण लेखन का प्रथम श्रेय श्री पद्म सिंह शर्मा को है। राहुर सांस्कृत्यायन, बनारसीदास चतुर्वेदी, अज्ञेय, देवेन्द्र सत्यार्थी, डॉ. नगेन्द्र, यशपाल, श्र रामकृष्णदास तथा रामवृक्ष बेनीपुरी ने अनेक संस्मरण लिखे हैं। हिन्दी के कुछ उल्लेखनीय संस्मरण निम्नलिखित हैं
इनके अतिरिक्त संस्मरण साहित्य का बहुत बड़ा भाग अभिनन्दन ग्रन्थों में संकलित हैं। MP Board Class 9th Hindi Solutionsआदिकाल को वीरगाथा काल क्यों कहा गया जाता है?आदिकाल को वीरगाथा काल क्यों कहा जाता है? हिंद की भाषाओं के प्रारंभिक काल को चारण काल सर्वप्रथम अंग्रेज भाषा विज्ञानी सर जॉर्ज ग्रियर्सन ने कहा। उन्होंने ही भारत की सम्पूर्ण भाषाओं का वैज्ञानिक अध्ययन और सर्वेक्षण किया था। चूंकि चारण जाति के योद्धा वीर रस के कवि भी थे, इसे वीरगाथा काल भी कहा गया।
आदिकाल को वीरगाथा काल किसने कहा और क्यों?हिन्दी साहित्य के इतिहास में लगभग 8वीं शताब्दी से लेकर 14वीं शताब्दी के मध्य तक के काल को आदिकाल कहा जाता है। इस युग को यह नाम डॉ॰ हजारी प्रसाद द्विवेदी से मिला है। आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने 'वीरगाथा काल' तथा विश्वनाथ प्रसाद मिश्र ने इसे 'वीरकाल' नाम दिया है।
हिंदी साहित्य के प्रथम युग का नाम वीरगाथा काल क्यों पड़ा?हिन्दी साहित्य के प्रथम युग का नाम वीरगाथा काल क्यों पड़ा? इस काल के राज्याश्रित चारण कवियों ने वीर रस के फुटकर दोहे लिखे हैं। श्रृंगार के साथ वीर रस प्रधान है। वीर रस की प्रधानता के कारण कतिपय विद्वान इसे वीरगाथा काल कहते हैं।
आदिकाल को वीरगाथा काल कहना कहाँ तक उचित है?आदिकाल का समय 675 से 1375 ई. तक का माना जाता है। आचायय रामचंद्र शुक्ल ने इसे वीरगाथा काल कहा।
|