आरंभिक मानव द्वारा खेती की शुरूआत क्यों व किस प्रकार की होगी? - aarambhik maanav dvaara khetee kee shurooaat kyon va kis prakaar kee hogee?

कृषि का विकास कम से कम 7000-13000 ईशा वर्ष पूर्व हो चुका था। तब से अब तक बहुत से महत्वपूर्ण परिवर्तन हो चुके हैं।

कृषि भूमि को खोदकर अथवा जोतकर और बीज बोकर व्यवस्थित रूप से अनाज उत्पन्न करने की प्रक्रिया को कृषि अथवा खेती कहते हैं। मनुष्य ने पहले-पहल कब, कहाँ और कैसे खेती करना आरंभ किया, देशों के इतिहास में खेती के विषय में कुछ न कुछ कहा गया है। कुछ भूमि अब भी ऐसी है जहाँ पर खेती नहीं होती। यथा - अफ्रीका और अरब के रेगिस्तान, तिब्बत एवं मंगोलिया के ऊँचे पठार तथा मध्य आस्ट्रेलिया। कांगो के बौने और अंदमान के बनवासी खेती नहीं करते।

परिचय[संपादित करें]

आदिम अवस्था में मनुष्य जंगली जानवरों का शिकार कर अपनी उदरपूर्ति करता था। पश्चात्‌ उसने कंद-मूल, फल और स्वत: उगे अन्न का प्रयोग आरंभ किया; और इसी अवस्था में किसी समय खेती द्वारा अन्न उत्पादन करने का आविष्कार उन्होंने किया होगा। फ्रांस में जो आदिमकालिक गुफाएँ प्रकाश में आई है उनके उत्खनन और अध्ययन से ज्ञात होता है कि पूर्वपाषाण युग मे ही मनुष्य खेती से परिचित हो गया था। बैलों को हल में लगाकर जोतने का प्रमाण मिश्र की पुरातन सभ्यता से मिलता है। अमरीका मे केवल खुरपी और मिट्टी खोदनेवाली लकड़ी का पता चलता है।

भारत में पाषाण युग में कृषि का विकास कितना और किस प्रकार हुआ था इसकी संप्रति कोई जानकारी नहीं है। किंतु सिंधुनदी के काँठे के पुरावशेषों के उत्खनन के इस बात के प्रचुर प्रमाण मिले है कि आज से पाँच हजार वर्ष पूर्व कृषि अत्युन्नत अवस्था में थी और लोग राजस्व अनाज के रूप में चुकाते थे, ऐसा अनुमान पुरातत्वविद् मोहनजोदड़ो में मिले बडे बडे कोठरों के आधार पर करते हैं। वहाँ से उत्खनन में मिले गेहूँ और जौ के नमूनों से उस प्रदेश में उन दिनों इनके बोए जाने का प्रमाण मिलता है। वहाँ से मिले गेहूँ के दाने ट्रिटिकम कंपैक्टम (Triticum Compactum) अथवा ट्रिटिकम स्फीरौकोकम (Triticum sphaerococcum) जाति के हैं। इन दोनो ही जाति के गेहूँ की खेती आज भी पंजाब में होती है। यहाँ से मिला जौ हाडियम बलगेयर (Hordeum Vulgare) जाति का है। उसी जाति के जौ मिश्र के पिरामिडो में भी मिलते है। कपास जिसके लिए सिंध की आज भी ख्याति है उन दिनों भी प्रचुर मात्रा में पैदा होता था।

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

  • भारतीय कृषि का इतिहास
  • पराशर मुनि - जो 'कृषिसंग्रह', 'कृषि पराशर' एवं 'पराशर तंत्र' आदि ग्रंथों के रचयिता थे।

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

  • भारत में कृषि विज्ञान की उज्जवल परम्परा (भारत गौरव)
  • एशियन कृषि-इतिहास फाउण्डेशन
  • Early Agricultural Remnants and Technical Heritage is a multidisciplinary project investigating the development of non-industrial agricultural techniques, with a focus on Europe.
  • Tracing the Evolution of Organic/Sustainable Agriculture A Selected and Annotated Bibliography. Alternative Farming Systems Information Center, National Agricultural Library.

अतिरिक्त - प्रश्नोत्तर:


प्रश्न: इन वाक्यों को पूरा करो|

(क) शिकारी - खाघ संग्राहक गुफाओं में इसलिए रहते थे क्योंकि ___________| 

(ख) घास वाले मैदानों का विकास __________ साल पहले हुआ|

(ग) आरंभिक लोगों ने गुफाओं की ___________ पर चित्र बनाए|

(घ) हुँस्गी में ____________ से औजार बनाए जाते हैं|

उत्तर:

(क) उन्हें बारिश, धुप और हवाओं से रहत मिलाती थी|

(ख) 12,000|

(ग) भीतरी दीवारों|

(घ) चूने के पत्थरों|

प्रश्न: उपमहाद्वीप के आधुनिक राजनीतिक मानचित्र को पृष्ठ 136 पर देखों| उन राज्यों को ढूँढों जहाँ भीमबेटका, हुँगी और कुरनूल स्थित हैं| क्या तुषार की तेल इन जगहों के पास से होकर गई होगी|

उत्तर: हाँ, तुषार की रेल इन जगहों के पास से होकर गुजारी होगी| 

प्रश्न: शिकारी - खाघ संग्राहक एक स्थान से दूसरे स्थान पर क्यों घूमते रहते थे? उनकी यात्रा और आज की हमारी यात्रा के कारणों में क्या समानताएँ या क्या भिन्नताएँ हैं|

उत्तर: 

(क) शिकारी खाघ - संग्राहक के एक - दूसरे स्थान पर घूमने के निम्नलिखित कारण थे -

1. एक जगह लगातार रूकने से भोजन की समास्या उत्पन्न हो जाती होगी, इसलिए भोजन की तलाश में इन्हें एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाना पड़ता था|

2. जानवरों का शिकार करने के लिए पीछे - पीछे जाया करते होगें|

3. पेड़ों और पौधों में फूल - फूल अलग - अलग मौसम में आते हैं, अतं: ॠतु परिवर्तन के अनुसार| स्थान परिवर्तन करते होगे|

4. पानी की तलाश में इधर - उधर जाना पड़ता होगा|

(ख) आज हम यात्राएँ अलग (भिन्न) कारणों से करते हैं जैसे :

1. रोजगार की तलाश में|

2. व्यापार करने के लिए|

3. नाते - रिश्तेदारों से मिलाने के लिए|

4. स्कूलों व दफ्तरों में जाने के लिए|

5. संस्कृति का प्रचार प्रसार व भ्रमण के लिए |

प्रश्न: आज तुम फल काटते के लिए कौन - से औजार चुनोगे| वह औज़ार किस चीज़ से बना होगा|

उत्तर: आज फल काटने के लिए चाकू का प्रयोग करेंगे| चाकू स्टील या लोहे का बना होता हैं, जिसको पकड़ने के लिए लकड़ी या प्लास्टिक का हैंडल होता हैं|

प्रश्न: शिकारी - खाघ संग्राहक आग का उपयोग किन - किन चीज़ों के लिए करते थे? क्या तुम आज आग का उपयोग इनमें से किसी चीज़ के लिए करोगे|

उत्तर: शिकारी - खाघ संग्राहक के एक स्थान स दूसरे स्थान पर घूमनें के निम्नलिखित कारण थे -

1. एक जगह लगातार रूकने से भोजन की समस्या उत्पन्न हो जाती होगी, इसलिए भोजन की तलाश में इन्हें एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाना पड़ता था|

2. जानवरों का शिकार करने के लिए पीछे - पीछे जाया करते होगें|

3. पेड़ों और पौधों में फल - फूल अलग - अलग मौसम में आते हैं, अंत: ॠतु परिवर्तन के अनुसार| स्थान परिवर्तन करते होगें|

4. पानी की तलाश में इधर - उधर जाना पड़ता होगा|

(ख) आज हम यात्राएं अलग (भिन्न) कारणों से करते हैं जैसे:

1. रोजगार की तलाश में|

2. व्यापार करने के लिए|

3. नाते - रिश्तेदारों से मिलाने के लिए|

4. स्कूलों व दफ्तरों में जाने के लिए|

5. संस्कृति का प्रचार - प्रसार व भ्रमण के लिए|

प्रश्न: आज तुम फल काटने के लिए कौन - से औज़ार चुनोगे? वह औज़ार किस चीज़ से बना होगा|

उत्तर: आज फल काटने के लिए चाक़ू का प्रयोग करेंगे| चाको स्टील या लोहे का बना होता हैं, जिसको पकड़ने के लिए लकड़ी या प्लास्टिक का हैंडल होता हैं|

प्रश्न: शिकारी - खाघ संग्राहक आग का उपयोग किन - किन चीजों के लिए करते थे? क्या तुम आज आग का उपयोग इनमें से किसी चीज़ के लिए करोगें|

उत्तर: शिकारी - खाघ संग्राहक द्वारा आग का प्रयोग -

1. मांस भूनने के लिए|

2. प्रकाश के लिए|

3. खतरनाक जानवरों को दूर भागने के लिए|

आज आग का प्रयोग -

1. मांस भूनने के लिए|

प्रश्न: अपनी पुस्तिका के पन्ने पर एक लाइन खींचकर इसके दो खाने बनाओं| बाएँ खाने, उन खाघ पदार्थां की सूची बनाओं, जिन्हें शिकारी - खाघ संग्राहक खाते थे और दाएँ खाने में तुम जो चीजें खाते हो उनमें से कुछ किए नाम लिखों| क्या तुम्हें इन दोनों में कोई समानता या भेद दिखाई देता हैं?

उत्तर: शिकारी - खाघ संग्राहक के खाघ पदार्थ जंगली जानवरों का कच्चा अथवा भूना मांस, मछलियाँ, चिड़ियाँ, फल - मूल, पौधे, पत्तियाँ तथा अंडे|

आज के खाघ पदार्थ - 

चावल, रोटी, सब्जियाँ, फल, दूध, पका हुआ मांस आदि|

प्रश्न: यदि तुम्हारे पास कोई गुटिका (प्रकृतिक पत्थर का टुकड़ा, जैसे कि पृष्ठ 13 पर दिखाया गया हैं) हो तो उसे किस काम के लिए इसतेमाल करोगे?

उत्तर: खेल खेलने, बादाम व अखरोट के छिलके छीलने आदि के काम आ सकती हैं|

प्रश्न: ऐसे दो काम लिखों जिन्हें आज महिलाएँ और पुरूष दोनों करते हैं| दो ऐसे काम बताओं जिन्हें सिर्फ महिलाएँ ही कराती हैं और दो वे सिर्फ पुरूष ही करते हैं| अपनी सूची की अपनी दो साथियों| की सूचियों से तुलना करों| क्या तुम्हें इनमें कोई समानता या भेद दिखाई दे रहा हैं?

उत्तर: पुरूष और महिला दोनों द्वारा किए जाने वाले कार्य -

1. कार, साइकिल, स्कूटर व मोटरसाइकिल चलाना|

2. दफ्तरों में काम करना|

केवल महिलाओं द्वारा किए जाने वाले कार्य -

1. छीटे बच्चों की देखाभाक करना|

2. बच्चों को जन्म देना|

केवल पुरूषों द्वारा किए जाने वाले कार्य -

1. फायर ब्रिगेड

2. फ़ौज में  

प्रारंभिक मानव के औजार कैसे होते थे?

पत्थरों के अलावा, औजार बनाने के लिए हड्डियों और लकड़ी का इस्तेमाल भी होता था।.
मांस और हड्डियाँ काटने के लिए.
पेड़ की खाल और जानवर की चमड़ी उतारने के लिए.
फल और जड़ काटने के लिए.
कुछ औजारों को हड्डी या लकड़ी से बने हैंडल से जोड़कर कुल्हाड़ी या हथौड़ी बनाई जाती थी।.

आरंभिक मानव के बारे में जानकारी कैसे मिलती है?

आरंभिक मानव के बारे में जानकारी कैसे मिलती है? पुरातत्त्वविदों को कुछ ऐसी वस्तुएँ मिली हैं जिनका निर्माण और उपयोग आखेटक-खाद्य संग्राहक किया करते थे। यह संभव है कि लोगों ने अपने काम के लिए पत्थरों, लकड़ियों और हड्डियों के औज़ार बनाए हों। इनमें से पत्थरों के औज़ार आज भी बचे हैं।

आरंभिक मानव के मुख्य भोजन क्या है?

Solution : आरंभिक मानव आमतौर पर खाने के लिए जंगली जानवरों का शिकार करते थे। वे मछलियाँ और चिड़ियाँ पकड़ते थे तथा फल-मूल, दाने, पौधे-पत्तियाँ, अंडे इकट्ठे किया करते थे

मानव के आरंभिक काल को पाषाण युग क्यों कहा जाता है?

प्रागैतिहासिक काल जिसके दौरान पत्थर का उपयोग, मनुष्यों ने उपकरण और हथियार बनाने के लिए किया। पाषाण युग इतिहास का वह काल है जब मानव का जीवन पत्थरों (संस्कृत - पाषाणः) पर अत्यधिक आश्रित था। उदाहरणार्थ पत्थरों से शिकार करना, पत्थरों की गुफाओं में शरण लेना, पत्थरों से आग पैदा करना इत्यादि।