25 मार्च, 1953 को, भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री, जवाहरलाल नेहरू ने भारत के पहले भाषायी राज्य - आंध्र प्रदेश के निर्माण की घोषणा की। तीन साल बाद संसद ने संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम, 1956 पारित किया। इस संशोधन का मुख्य उद्देश्य भाषा के आधार पर भारतीय राज्यों के पुनर्गठन को संवैधानिक रूप से सांकेतिक शब्दों में बदलना था। संशोधन ने विभिन्न राज्यों की नई सीमाओं को निर्धारित करने के लिए पहली अनुसूची सहित संविधान के विभिन्न अनुच्छेदों को संशोधित किया। भारतीय राज्यों को भाषाई आधार पर संगठित करने का विचार नया नहीं था। 1920 में, अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्यों ने अपने नागपुर सत्र में इस तरह की व्यवस्था की मांग करते हुए एक प्रस्ताव पारित किया। जल्द ही, यह एक लोकप्रिय मांग बन गई और कांग्रेस के भीतर इसे काफी जगह प्राप्त हुई। Show लगभग एक दशक बाद, संविधान सभा की मसौदा समिति ने भाषाई राज्यों के विचार को देखने के लिए डार आयोग की नियुक्ति की। आयोग ने अपनी रिपोर्ट में सुझाव दिया कि प्रांतों को संगठित करने के लिए भाषा को मुख्य आधार नहीं होना चाहिए: इसके बजाय प्रशासनिक सुविधा, इतिहास, भूगोल और अर्थव्यवस्था को प्रधानता दी जानी चाहिए। इन सिफारिशों के विरोध ने कांग्रेस को 1948 के जयपुर अधिवेशन में जेवीपी समिति का गठन करने के लिए प्रेरित किया। नेहरू, सरदार वल्लभ भाई पटेल और बी पट्टाभि सीतारमैया की समिति ने कहा कि भाषाई राज्य रखने की पुरानी कांग्रेस नीति व्यावहारिक नहीं थी। समिति ने डार आयोग की सिफारिशों को प्रतिध्वनित किया: प्राथमिक विचार भारत की सुरक्षा, एकता और आर्थिक समृद्धि होना चाहिए, भाषा नहीं। मोटे तौर पर संविधान सभा में भी अधिकांश सदस्यों की यही स्थिति थी। रेणुका रे जैसे सदस्यों का मानना था कि भाषा के आधार पर प्रांतों का पुनर्गठन अतार्किक था और इससे कटुता और कलह पैदा होगी। फिर 1953 में, तेलुगू भाषी भारतीयों के लिए आंध्र प्रदेश बनाने के लिए केंद्र सरकार को राजी करने के उद्देश्य से भूख हड़ताल के कारण पोट्टी श्रीरामुलु की मृत्यु के साथ सब कुछ बदल गया। केंद्र सरकार पर भारी राजनीतिक दबाव डाला गया, और इसे 1953 में आंध्र प्रदेश राज्य बनाने के लिए मजबूर किया गया - स्वतंत्र भारत में पहला भाषाई राज्य। जल्द ही, अन्य भाषाई राज्यों की मांग करने वाले आंदोलन उभरे। केंद्र सरकार ने इन मांगों पर गौर करने के लिए एक आयोग का गठन किया। आयोग ने 1955 में भाषा के आधार पर 16 राज्यों और 3 केंद्र प्रशासित क्षेत्रों के गठन की सिफारिश करते हुए अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। भारत सरकार ने इस सिफारिश से थोड़ा हटकर राज्य पुनर्गठन अधिनियम 1956 के तहत 14 राज्यों और 6 केंद्र शासित प्रदेशों का गठन किया।इस योजना को प्रभावी करते हुए, 7 वें संशोधन ने संविधान में निम्नलिखित परिवर्तन किए। 1950 के मूल संविधान के तहत, पहली अनुसूची में चार प्रकार के राज्य और क्षेत्र शामिल थे - भाग ए: पूर्व ब्रिटिश प्रांत, भाग बी: पूर्व रियासतें, भाग सी: मुख्य आयुक्त प्रांत और भाग डी: अंडमान एवं निकोबार। संशोधन ने इसे केवल दो श्रेणियों में विभाजित किया - भाग ए: राज्य और भाग बी: केंद्र शासित प्रदेश। इसने भाषाई आधार पर भाग ए में सभी क्षेत्रों की सीमाओं को फिर से बनाया। संशोधन ने अनुच्छेद 239 और 240 को भी प्रतिस्थापित किया, जिसमें केंद्र शासित प्रदेशों के प्रशासन को संबोधित किया गया था ताकि राष्ट्रपति को प्रत्येक केंद्र शासित प्रदेश में अपनी ओर से कार्य करने के लिए एक प्रशासक नियुक्त करने की अनुमति मिल सके। राष्ट्रपति को विशिष्ट केंद्र शासित प्रदेशों के लिए नियम बनाने का भी अधिकार था। भाषाई अल्पसंख्यकों के लिए सुरक्षा उपायों को भी संविधान में शामिल किया गया था - अनुच्छेद 350 ए और 350 बी को राज्यों को भाषाई अल्पसंख्यकों की मातृभाषा में शिक्षा के माध्यम के रूप में प्राथमिक शिक्षा प्रदान करने के लिए अनिवार्य करने के लिए डाला गया था। संशोधन ने उच्च न्यायालयों से संबंधित अनुच्छेदों और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों और राज्यपालों की नियुक्ति में भी मामूली बदलाव किए। This piece is translated by Kundan Kumar Chaudhary & Rajesh Ranjan from Constitution Connect . देश का जो नक्शा आज आप देख रहे हैं भारत का यह मौजूदा स्वरूप संविधान के 7वें संशोधन की देन है। यह संशोधन 1956 में किया गया। फैजल अली के नेतृत्व वाले राज्य री-आर्गेनाइजेशन कमीशन ने भाषा के आधार पर प्रदेशों के गठन का रास्ता साफ किया। नेशनल डेस्क: देश का जो नक्शा आज आप देख रहे हैं भारत का यह मौजूदा स्वरूप संविधान के 7वें संशोधन की देन है। यह संशोधन 1956 में किया गया। फैजल अली के नेतृत्व वाले राज्य री-आर्गेनाइजेशन कमीशन ने भाषा के आधार पर प्रदेशों के गठन का रास्ता साफ किया। इस कमीशन की सिफारिश से पहले ही भाषा के आधार पर पहला राज्य आंध्र प्रदेश अस्तित्व में आ गया था, हालांकि इससे पहले धार कमीशन व जे.वी.पी. कमेटी भाषा के आधार पर राज्यों का बंटवारा किए जाने के पक्ष में नहीं थी परंतु आंध्र प्रदेश के माडल को देखते हुए फैजल अली कमीशन ने भाषा के आधार पर प्रदेशों के गठन की सिफारिश की तथा इस सिफारिश के आधार पर संविधान में संशोधन किया गया तथा अनुच्छेद 1, 3, 80, 81, 82, 131, 153, 158, 168, 170, 171, 216, 217, 220, 222, 224, 230, 231 व 232 संशोधित किए गए ताकि राज्यों के गठन में इन अनुच्छेदों के तहत आने वाली रुकावटों को दूर किया जा सके। इससे पहले 4 हिस्सों में बंटा था शासन इनमें हैदराबाद, जम्मू-कश्मीर, मध्य भारत, मैसूर, पटियाला व ईस्ट पंजाब (पैप्सू), राजस्थान, सौराष्ट्र, त्रावणकोर-कोच्चि व विंध्य प्रदेश शामिल थे। तीसरे भाग में वे प्रदेश आते थे जो चीफ कमिश्नर के अधीन थे जैसे अजमेर, भोपाल, बिलासपुर, कूच-विहार, कुर्ग, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, कच्छ, मणिपुर व त्रिपुरा जबकि चौथे हिस्से में अंडेमान व निकोबार को रखा गया था जिसको सीधे तौर पर अंग्रेजों द्वारा केंद्र से संचालित किया जाता था। क्या आया बदलाव? राजीव गांधी के प्रधानमंत्री रहते देश के लोकतंत्र में वोट डालने पर आपके आज के अधिकार का दायरा 1988 में लाए गए 61वें संशोधन में बढ़ाया गया है। इससे पहले देश में वोट डालने का अधिकार हासिल करने की उम्र 21 साल थी। संविधान के अनुच्छेद 326 में संशोधन करके 18 साल से ऊपर के हर नागरिक को वोट के अधिकार द्वारा राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया से जोड़ा गया।
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South AfricaMatch will be start at 30 Oct,2022 06:00 PM Most Read Stories7वा संविधान संशोधन कब हुआ?भारत का संविधान (सातवाँ संशोधन) अधिनियम, 1956
भारत के संविधान में एक और संशोधन किया गया। राज्य पुनर्गठन आयोग की सिफारिशों को लागू करने और पारिणामिक परिवर्तनों को शामिल करने के उद्देश्य से यह संशोधन किया गया। मोटे तौर पर तत्कालीन राज्यों और राज्य क्षेत्रों का राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के रूप में वर्गीकरण किया गया।
संविधान से भाग 7 क्यों हटाया गया?सही उत्तर भाग 7 है। संविधान के भाग VII को 7वें संशोधन अधिनियम द्वारा निरस्त किया गया था। इसमें प्रथम अनुसूची के भाग B में राज्यों का समावेश था।
73 वां संशोधन कब हुआ था?संविधान (73वां संशोधन) अधिनियम 1992 में पारित किया गया था और यह 24 अप्रैल 1993 को लागू हुआ था।
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