विषयसूची बात को कील की तरह ठोकना क्या है ऐसा क्यों किया जाता है?इसे सुनेंरोकेंउत्तर: ‘बात को कील की तरह ठोंकना’ से कवि का अभिप्राय अपनी बात को अनुपयुक्त भाषा में बलपूर्वक व्यक्त करने से है। पेंच को लकड़ी में हथौड़े से कील की तरह ठोंकने से उसकी पकड़ में कसावट नहीं आती। कवि ने भावों को अनुपयुक्त क्लिष्ट भाषा में प्रकट करने की जोर-जबरदस्ती की तो कविता का मर्म ही नष्ट हो गया। बिन मुरझाए क्या महकती है 1 Point?इसे सुनेंरोकेंकविता के संदर्भ में ‘बिना मुरझाए महकने के माने’ क्या होते हैं? फूल तो खिलकर मुरझा जाते हैं और उनकी महक समाप्त हो जाती है। इसके विपरीत कविता भी मुरझाती नहीं। वह सदा ताजा बनी रहती है और उसकी महक बरकरार रहती है। कविता का खिलना भला क्या जाने? इसे सुनेंरोकेंExplanation: व्याख्या – कवि कहते हैं कि कविता कवि की कल्पना की उड़ान की तरह है ,जिस तरह चिड़िया की उड़ान है ,लेकिन की उड़ान भी एक सीमा है ,लेकिन कवि की कल्पना की उड़ान की कोई सीमा नहीं है . व्याख्या – कवि की कल्पना ,फूलों की तरह खिलती है ,लेकिन फूलों के खिलने की एक सीमा तो है ही . अतः फूल क्या जाने . बच्चा कौन सा बहाना जानता है?इसे सुनेंरोकें(घ) बच्चा कौन-सा बहाना जानता है? (क) कविता को खेल की संज्ञा दी गई है। जिस प्रकार खेल का उद्देश्य मनोरंजन व आत्मसंतुष्टि होता है, उसी प्रकार कविता भी शब्दों के माध्यम से मनोरंजन करती है तथा रचनाकार को संतुष्टि प्रदान करती है। (ख) बच्चे कहीं भी, कभी भी खेल खेलने लगते हैं। कविता और बच्चों को समानांतर रखने के क्या कारण है?इसे सुनेंरोकेंकविता और बच्चे को समानांतर रखने के क्या कारण हो सकते हैं? – बच्चे के सपने असीम होते हैं और कवि की कल्पना भी असीम होती है। – बच्चों के खेल में किसी प्रकार की सीमा का स्थान नहीं होता। कविता भी शब्दों का खेल है और इसमें कोई बधन नहीं होता। बात की चूड़ी मर जाना मुहावरे का क्या अर्थ है? इसे सुनेंरोकेंस्पष्ट होना (ii) प्रभावहीन होना (iii) प्रभावपूर्ण होना (iv) तर्कपूर्ण होना भला फू ल क्या जाने में कौन अलंकार ै 6?इसे सुनेंरोकेंक्या जाने’ में व्यतिरेक अलंकार है। कववता का खखलना फूल क्यों नहीं िान सकता है?इसे सुनेंरोकेंकविता एक बार खिल जाती है, अर्थात सृजित हो जाती है, तो वह अपने भावों की सुगंध असीमित काल तक बिखेरती रहती है, वह कभी नष्ट नहीं होती, वह क्षणभंगुर नहीं है। इसलिये फूल कविता के खिलने के रहस्य को नहीं समझ पाते क्योंकि वह सीमा के बंधन में बंधे हैं जबकि कविता असीम है। कविता को बच्चों के समान क्यों कहा गया है? इसे सुनेंरोकेंबच्चों के खेल में किसी प्रकार की सीमा का कोई स्थान नहीं होता। कविता भी शब्दों का खेल है और शब्दों के इस खेल में जड़, चेतन, अतीत, वर्तमान और भविष्य सभी उपकरण मात्र हैं। इसीलिए जहाँ कहीं रचनात्मक ऊर्जा होगी वहाँ सीमाओं के बंधन खुद-ब-खुद टूट जाते हैं। वे चाहे घर की सीमा हो, भाषा की सीमा हो या फिर समय की ही क्यों न हो। RBSE Solutions for Class 12 Hindi सृजन Chapter 8 कुँवर नारायण is part of RBSE Solutions for Class 12 Hindi. Here we have given Rajasthan Board RBSE Class 12 Hindi सृजन Chapter 8 कुँवर नारायण. Rajasthan Board RBSE Class 12 Hindi सृजन Chapter 8 कुँवर नारायणRBSE Class 12 Hindi सृजन Chapter 8 कुँवर नारायण पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तरRBSE Class 12 Hindi सृजन Chapter 8 कुँवर नारायण वस्तुनिष्ठ प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. RBSE Class 12 Hindi सृजन Chapter 8 कुँवर नारायण अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. RBSE Class 12 Hindi सृजन Chapter 8 कुँवर नारायण लघूत्तरात्मक प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. RBSE Class 12 Hindi सृजन Chapter 8 कुँवर नारायण निबंधात्मक प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. इसी प्रकार, कवि कविता के माध्यम से अपनी भावनाओं और कल्पनाओं से खेला करता है। उसकी कविता भी घर-घर में पहुँचती है और लोगों को आनंदित करती है। कविता का प्रभाव देश और काल की सीमाओं से परे होता है। कविता एक देश से दूसरे देश को जोड़ती है। कविता इस विश्वव्यापी प्रभाव की आनंद वे ही उठा पाते हैं, जो बच्चों के समान पक्षपातरहित और सरल हृदय हुआ करते हैं। RBSE Class 12 Hindi सृजन Chapter 8 कुँवर नारायण व्याख्यात्मक प्रश्न प्रश्न 1. RBSE Class 12 Hindi सृजन Chapter 8 कुँवर नारायण अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तरRBSE Class 12 Hindi सृजन Chapter 8 कुँवर नारायण वस्तुनिष्ठ प्रश्न 1. ‘कविता के बहाने’ कविता में व्यक्त की गई है – (क) चिड़िया की उड़ान 2. कविता के बिना मुरझाए महकने का अर्थ है – (क) कभी पुराना न
होना 3. ‘बात जो एक शरारती बच्चे की तरह मुझसे खेल रही थी’-में अलंकार है – (क) उपमा 4. ‘पेंच’ प्रतीक है – (क) कवि का 5. “सहूलियत से बरतना” का अर्थ है – (क) बहुत सावधानी से प्रयोग करना उत्तर:
RBSE Class 12 Hindi सृजन Chapter 8 कुँवर नारायण अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न
3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. प्रश्न 13. प्रश्न 14. प्रश्न 15. प्रश्न 16. प्रश्न 17. प्रश्न
18. प्रश्न 19. प्रश्न 20. प्रश्न 21. प्रश्न 22. प्रश्न 23. प्रश्न 24. प्रश्न 25. प्रश्न 26. RBSE Class 12 Hindi सृजन Chapter 8 कुँवर नारायण लघूत्तरात्मक प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न
2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. प्रश्न 13. प्रश्न 14. प्रश्न 15. प्रश्न 16. प्रश्न 17. प्रश्न 18. प्रश्न 19. प्रश्न 20. प्रश्न 21. प्रश्न 22. प्रश्न 23. प्रश्न 24. प्रश्न 25. प्रश्न 26. RBSE Class 12 Hindi सृजन Chapter 8 कुँवर नारायण निबंधात्मक प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. कुँवर नारायण कवि-परिचय कवि कुँवर नारायण का जन्म सन् 1927 ई. में हुआ। हिन्दी में नई कविता’ का दौर चल रहा था। कुँवर नारायण ने अपनी रचनाओं ने तीसरे तारसप्तक’ नामक नई कविता के कवियों के काव्य संग्रह में प्रमुख स्थान प्राप्त किया। कुंवर नारायण केवल कवि ही नहीं हैं। उन्होंने कहानियाँ, लेख तथा फिल्मों पर समीक्षाएँ भी लिखी हैं। कविता के प्रति कुँवर नारायण का दृष्टिकोण यथार्थवादी है। वे भावुकता से बचकर काव्य-रचना करते रहे। रचनाएँ-कुँवर नारायण के प्रमुख कविता-संग्रह हैं-चक्रव्यूह, अपने सामने, इन दिनों, परिवेश हम तुम, कोई दूसरा नहीं। उन्होंने ‘वाजश्रवा ये बहाने’ तथा ‘आत्मजयी’ नामक दो खण्ड काव्य भी लिखे हैं। ‘आकारों के आस-पास’ इनका कहानी संग्रह है। ‘आज और आज से पहले’ आपका समालोचना संग्रह है। कुँवर नारायण पाठ-परिचय कुँवर नारायण की दो कविताएँ
पाठ्य-पुस्तक में संकलित हैं। प्रथम कविता कविता के बहाने’ में कवि आज के भौतिकवादी और यंत्र-प्रधान युग में कविता के भविष्य के प्रति आशंकित लगता है। इसी कारण, कवि ने कविता के महत्व को दर्शाया है। कविता के सृजन के लिए असीम क्षेत्र विद्यमान है। चिड़िया, फूल तथा बच्चों जैसे प्रतीकों द्वारा कवि ने कविता की उड़ान, उसकी सुगंध और सीमाओं के पार उसकी पहुँच को रेखांकित किया है। कविता को कोई खतरा नहीं है, क्योंकि काव्य-रचना के कोई भी ‘बहाना’ चुना जा सकता है। काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्याएँ कविता के बहाने। (1) कविता एक उड़ान है चिड़िया के बहाने कठिन-शब्दार्थ-उड़ान = उड़ना, कल्पना। बहाने = प्रतीक बनाकर। कविता की उड़ान = कविता की असीम पहुँच या प्रभाव। क्या जाने = क्या समझ सकती है। बाहर-भीतर = थोड़ी दूर तक। इस घर उस घर = एक घर से दूसरे घर तक। कविता के पंख = कवि की कल्पनाएँ। माने = अर्थ।। संदर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित कवि कुँवर नारायण की कविता ‘कविता के बहाने’ से लिया गया है। इस अंश में चिड़िया के बहाने से कविता की असीम संभावनाओं पर प्रकाश डाला गया है। व्याख्या-कवि कहता है कि कविता कवि के विचारों तथा भावनाओं की कल्पना के पंखों की सहायता से भरी गई उड़ान है। जिस प्रकार चिड़िया पंखों के सहारे उड़ती है, उसी प्रकार कवि भी कल्पना के सहारे कविता में अपने मनोभावों को प्रकट करता है। कवि की कल्पना असीम और अनन्त होती है। उस पर देश और काल का कोई बन्धन नहीं होता। वह अपनी कल्पना के सहारे सम्पूर्ण धरती पर ही नहीं, असीम आकाश में भी उड़ता है। चिड़िया अपने पंखों से उड़ती तो है परन्तु उसकी उड़ान की एक सीमा है। वह एक घर से दूसरे घर के बाहर और भीतर तक ही उड़ती है। कविता जब कल्पना के पंखों से उड़ती है उसमें बाहर-भीतर की कोई सीमा नहीं होती। कविता की इस असीमित विस्तार वाली उड़ान की तुलना चिड़िया की उड़ान से नहीं की जा सकती। विशेष- 2. कविता एक खिलना है फूलों के बहाने कठिन-शब्दार्थ-खिलना = फूल का खिलना, कविता का आनंदमय प्रभाव। बाहर, भीतर = सीमित स्थान में, (कविता के पक्ष में), सर्वत्र। इस घर, उस घर = अपने देश में और विदेशों में। बिना मुरझाए = सदा एक जैसा आनंद देते हुए। महकना = (फूल के पक्ष में) सुगंध बिखेरना (कविता के पक्ष में) आनंदित करना, प्रभावित करना। संदर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत.काव्याशं हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित कवि कुँवर नारायण की कविता ‘कविता के बहाने से लिया गया है। कवि कविता की तुलना फूल और उसकी सुगंधि से कर रहा है– व्याख्या-कविता और फूल दोनों ही खिलते हैं, आनंददायक प्रभाव व्यक्त करते हैं, किन्तु कविता के खिलने की तुलना फूल के खिलने से नहीं की जा सकती। फूल जब खिलता है तो उसकी सुगन्ध उसके निकटवर्ती स्थान तक ही फैलती है। कविता के सरस प्रभाव की कोई सीमा नहीं है। कविता का रसात्मक आनन्द समस्त विश्व को सुख देता है। कुछ दिनों के बाद फूल मुरझा जाता है और उसकी सुगन्ध भी नष्ट हो जाती है, किन्तु कविता की सरसता अनन्त काल तक सम्पूर्ण संसार को आनन्द का अनुभव कराती रहती है। विशेष- 3. कविता एक खेल है बच्चों के बहाने कठिन-शब्दार्थ-एक कर देना = भेद-भाव मिटा देना। संदर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित कवि कुँवर नारायण की कविता ‘कविता के बहाने’ से लिया गया है। कवि कविता की तुलना बच्चों के खेल से कर रही है। व्याख्या-कवि कहता है कि कविता बच्चों के खेल के समान है। बच्चे घर के बाहर तथा अन्दर एक घर से दूसरे घर तक बेरोक-टोक खेलते हैं। वे अपने खेल द्वारा सभी घरों को एक-दूसरे से जोड़ते हैं। खेल द्वारा सभी भेदभावों को मिटाकर सच्ची एकता पैदा करने की क्षमता बच्चों में ही होती है। कविता भी बच्चों के खेल की तरह ही है। कवि अनेक भावों और विचारों की कल्पना करके उनके साथ खेलता है। उसकी कविता का प्रभाव सभी श्रोताओं तथा पाठकों पर होता है। कविता का आनन्द देश-काल की सीमाओं में नहीं बँधता। सच्ची कविता सभी कालों में तथा सभी देशों में लोगों को प्रभावित करती है। दूरियाँ मिटाकर संसार में वास्तविक एकता कविता ही ला सकती है। विशेष- → बात सीधी थी पर 1. बात सीधी थी पर एक बार कठिन-शब्दार्थ-बात = कथ्य, संदेश। सीधी = सरल। चक्कर = उलझन, इच्छा। टेढ़ी फंस गई = उलझ गई, अस्पष्ट होती गई। . उसे पाने = बात को स्पष्ट करने। उलट-पलटी = बदला। तोड़ा-मरोड़ा = नए-नए ढंग से कहना चाहा। घुमाया-फिराया = बदल-बदल कर देखा। बने = स्पष्ट हो जाय। बाहर आए = भाषा की क्लिष्टता से मुक्त हो जाए। पेचीदा = पेंच के समान घुमावदार, अस्पष्ट। संदर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित कवि कुंवर नारायण की कविता ‘बात सीधी थी पर’ से लिया गया है। कवि इस अंश में उन रचनाकारों पर मधुर व्यंग्य कर रहा है, जो अपनी कविता को प्रभावशाली बनाने के लिए क्लिष्ट भाषा का प्रयोग किया करते हैं। व्याख्या-कवि कहता है कि वह जो बात पाठकों तक पहुँचाना चाहता था वह बिल्कुल सीधी और सरल थी परन्तु वह उसे प्रभावपूर्ण भाषा में व्यक्त करना चाहता था। भाषा को आकर्षक बनाने पर अधिक ध्यान देने के कारण कथ्य की सरलता ही नष्ट हो गई। वह अस्पष्ट होती चली गई। कवि ने बात की सरलता को नष्ट होने से बचाने के लिए भाषा में संशोधन किया, शब्दों को बदला और वाक्य रचना में फेर-बदल किया। उसने प्रयास किया कि बात की सरलता बनी रहे तथा भाषा की क्लिष्टता और दिखावटी स्वरूप से छुटकारा मिले परन्तु इससे बात व भाषा और अधिक उलझती चली गई। विशेष- 2. सारी मुश्किल को धैर्य से समझे बिना। कठिन-शब्दार्थ-मुश्किल = कठिनाई, मूल समस्या। खोलने के बजाय = स्पष्ट बनाने के बजाय। बेतरह = बिना सोचे-समझे, गलत ढंग से। कसता = और अस्पष्ट बनाता। करतब = दिखावट, तमाशा। तमाशबीन = तमाशा देखने वाले लोग। शाबासी = प्रोत्साहन। वाह-वाह = प्रशंसा। आखिरकार = अंत में। जोर-जबरदस्ती से = भाषा की अनावश्यक सजावट, क्लिष्टता। चूड़ी = पेंच के चक्कर, बात का मूल प्रभाव। मर गई = बेकार हो गई, बात प्रभावहीन हो गई। बेकार घूमने लगी = भाषा से पीछे रह गई, बेअसर हो गई। संदर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित कवि कुंवर नारायण की कविता ‘बात सीधी थी पर’ से लिया गया है। इस अंश में कवि क्लिस्ट शब्दों की कविता में अनुपयोगिता बता रहा है- व्याख्या-कवि कहता है कि उसने सीधी-सादी बात को व्यक्त करने के लिए आकर्षक और कठिन भाषा का प्रयोग करने की भूल की। इससे कविता में निहित भाव अस्पष्ट हो गया। कवि ने इस कठिन समस्या पर धैर्यपूर्वक सोच-विचार नहीं किया। बजाय इसके कि वह’बात’ पर भाषा के कसाब को ढीला करता, उसे सरल बनाता; वह उसे और अधिक कसता जा रहा था। कवि के इस प्रयास पर तमाशा देखने वाले लोग उसकी प्रशंसा और वाह-वाही कर रहे थे। इस शाबाशी से भ्रमित होकर कवि भाषा के पेंच को और कसता जा रहा था। परिणाम यह हुआ कि कथन उसी प्रकार निष्प्रभावी हो गया जिस प्रकार पेंच को जबरदस्ती कसने पर उसकी चूड़ी मर जाती है और वह कसने के स्थान पर बेकार ही घूमने लगता है।। विशेष- 3. हार कर मैंने उसे कील की तरह कठिन-शब्दार्थ-हार कर = कोई अन्य उपाय न होने पर। कील की तरह = बेढंगे रूप में, बलपूर्वक। ठोंक दिया = क्लिष्ट भाषा में ही प्रकाशित कर दिया। ऊपर से = देखने-सुनने में, बाहरी रूप में। ठीक-ठाक = सही लगना। कसाब = मजबूत पकड़। ताकत = प्रभावशीलता। शरारती = चंचल, तंग करने वाला। खेलना = मजाक बनाना, हँसी उड़ाना। पसीना पोंछना = घबराना, निराश हो जाना। सहूलियत से = सुविधापूर्वक, सरल भाव से। बरतना = काम में लेना। संदर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित कवि कुँवर नारायण की कविता ‘बात सीधी थी पर’ से लिया गया है। इस अंश में कवि कहना चाहता है कि भाव को जोर-जबरदस्ती से कठिन भाषा में ठोंक देने से वह प्रभावहीन हो जाता है। सरल भाषा में भी मार्मिक भाव प्रकाशित किए जा सकते हैं। व्याख्या-कवि कहता है कि जब वह चमत्कारपूर्ण भाषा का प्रयोग करके भी अपने सरल मनोभावों को व्यक्त नहीं कर पाया तो निराश होकर उसने भावों को उसी क्लिष्ट भाषा में बलपूर्वक भर दिया। उसका यह कार्य ऐसा ही था जैसे कि कोई पेंच की चूड़ी मर जाने पर उसे कील की तरह हथौड़े से ठोंक दे। इससे वह पेंच ऊपर से तो ठीक लगता है परन्तु अन्दर से उसकी पकड़ में मजबूती तथा कसाव नहीं होता। ठीक इसी प्रकार क्लिष्ट भावहीन भाषा में व्यक्त मनोभावों में सौन्दर्य, आकर्षण तथा पाठक को प्रभावित करने की शक्ति नहीं होती। अपनी असफलता पर कवि निराश था और बेचैन होकर बार-बार पसीना पोंछ रहा था। यह देखकर उसके मन के भाव किसी शरारती बच्चे की तरह उसे छेड़ने लगे। उन्होंने कवि से पूछा कि क्या वह अभी तक सरल भावों की व्यंजना के लिए सरल, सुबोध भाषा का प्रयोग नहीं सीख पाया है? सरल भाषा अभी तक के प्रयोग से भी श्रेष्ठतम भाव व्यक्त किए जा सकते हैं।। विशेष- We hope the RBSE Solutions for Class 12 Hindi सृजन Chapter 8 कुँवर नारायण will help you. If you have any query regarding Rajasthan Board RBSE Class 12 Hindi सृजन Chapter 8 कुँवर नारायण, drop a comment below and we will get back to you at the earliest. बातों को कील की तरह ठोकना क्या है ऐसा क्यों किया जाता है?उत्तर: 'बात को कील की तरह ठोंकना' से कवि का अभिप्राय अपनी बात को अनुपयुक्त भाषा में बलपूर्वक व्यक्त करने से है। पेंच को लकड़ी में हथौड़े से कील की तरह ठोंकने से उसकी पकड़ में कसावट नहीं आती। कवि ने भावों को अनुपयुक्त क्लिष्ट भाषा में प्रकट करने की जोर-जबरदस्ती की तो कविता का मर्म ही नष्ट हो गया।
3 तमाशबीनों से कवि का क्या तात्पर्य है?साफ सुनाई दे रही थी तमाशबीनों की शाबाशी और वाह वाह । आखिरकार वही हुआ जिसका मुझे डर था जोर जबरदस्ती से बात की चूड़ी मर गई और वह भाषा में बेकार घूमने लगी ! प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक 'आरोह भाग-2' में शामिल कुँवर नारायण द्वारा रचित कविता 'बात सीधी थी पर' से ली गई हैं।
बात की चूड़ी मर गई से क्या तात्पर्य है?जोर जबरदस्ती से बात की चूड़ी मर गई, कविता के संदर्भ में भाव इस प्रकार है... जोर-जबरदस्ती से बात की चूड़ी मर गई। कवि ने कविता में इसको मुहावरे के रूप में प्रयुक्त किया है। कवि के कहने का भाव यह है कि अपनी बात कहने के लिए अपनी अभिव्यक्ति को प्रदर्शित करने के लिए सरल एवं सहज भाषा का चुनाव करना चाहिए।
|