ऊँचे घोर मंदर के अंदर रहनवारी,
ऊँचे घोर मंदर के अंदर रहाती हैं।
कंद मूल भोग करैं, कंद मूल भोग करैं,
तीन बेर खातीं, ते वै तीनबेर खाती हैं॥
भूषन सिथिल अंग, भूषन सिथिल अंग,
बिजन डुलातीं ते वै बिजन डुलाती हैं।
'भूषन भनत सिवराज बीर तेरे त्रास,
नगन जड़ातीं ते वै नगन जड़ाती हैं।।
कविवर भूषण कहते हैं कि शिवाजी के भय से ऊँचे और विशाल महलों में रहने वाली शत्रुओं की स्त्रियाँ अब भयंकर पर्वतों की गुफाओं में रहती हैं। भाव यह है कि शिवाजी के डर से शत्रु-पक्ष की नारियों ने अपने ऊँचे-ऊँचे भवन छोड़ दिए और जान बचाने के लिए अब वे पर्वतों की गुफाओं में छिपती-फिरती हैं। जो मधुर पदार्थों से बने हुए स्वादिष्ट भोजन किया करती थीं वे ही अब वनों में भटकती हुई कंद-मूल-फल खाकर ही अपने जीवन का निर्वाह करती हैं। जिनके शरीरांग आभूषणों के भार से शिथिल हो जाते थे वही अब भूख के मारे शिथिल अंग वाली होकर भटकती फिर रही हैं। महलों में जिन पर व्यजन अर्थात् पँखे डुलाए जाते थे, वही अब निर्जन वनों में अकेली घूमती फिरती हैं। भूषण कवि कहते हैं कि हे शिवाजी, आपके डर से शत्रु की स्त्रियों की यहाँ तक दुर्दशा हो गई है कि जो पहले आभूषणों मे रत्न जड़वाया करती थीं, वही अब वस्त्र न मिलने के कारण नंगी जाड़े में ठिठुरती रहती हैं।
स्रोत :
- पुस्तक : भूषण ग्रंथावली (पृष्ठ 211)
- संपादक : आचार्य विश्वानाथ प्रकाशन मिश्र
- रचनाकार : भूषण
- प्रकाशन : वाणी प्रकाशन
- संस्करण : 2017
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' ऊंचे घोर मंदर के अंदर रहनवारी। ऊंचे घोर मंदर के अंदर रहती है।' पंक्तियों में यमक अलंकार है। यहां मन्दर शब्द के अलग-अलग अर्थ है। एक मन्दर का अर्थ ऊंचे किला रूपी महल में रहने वाली और दूसरे मन्दर का अर्थ ऊंची-ऊंची पहाड़ी गुफाओं में रहती है।
प्रस्तुत पंक्तियों में यमक अलंकार है। प्रस्तुत पंक्ति यमक अलंकार है। जब काव्य में एक ही शब्द दो बार आए और दोनों ही बार उसके अलग अलग अर्थ हों तो वहाँ यमक अलंकार होता है.।इसमें घोर मंदर का प्रयोग दो बार हुआ है जिसमे एक का अर्थ महल से है तो दूसरे का अर्थ पर्वत से है।
प्रस्तुत पंक्ति में यमक अलंकार का भेद:
चूंकि इसमें शब्दों को ज्यों का त्यों प्रयोग किया गया है इसलिए अभंग पद अलंकार है।( घोर मंदर – ऊंचे महल और ऊंचे पर्वत )
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यमक अलंकार का अन्य उदाहरण:
आप यमक अलंकार को अच्छी तरह से समझ सकें इसलिए यमक अलंकार के कुछ अन्य उदाहरण निम्नलिखित हैं:
“ विजन डुलातीं तें वें विजन डुलातीं है।“ यहाँ विजन के दो अर्थ है – पंखे झुलाती और निर्जन जंगल
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मालाफेरत जग मुआ मिटा न मन का फेर। कर का मनका छोड़ के मन का मनका फेर.। इस पंक्ति में मनका शब्द की आवृति हुई है और दोनों बार अलग अलग अर्थमें प्रयुक्त हुआ है। अतः; यह यमक अलंकार का उदाहरण है।