‘मृगतृष्णा’ किसे कहते हैं, कविता में इसका प्रयोग किस अर्थ में हुआ है?
‘मृगतृष्णा’ का शाब्दिक अर्थ है- धोखा। जो न होकर भी होने का प्रकट करता है वही मृगतृष्णा है। कवि ने कविता में सुख संपदाओं की प्राप्ति से मानसिक सुख की प्राप्ति के लिए ‘मृगतृष्णा’ शब्द का प्रयोग किया है। किसी व्यक्ति के पास चाहे अपार भौतिक सुख हो पर उन सब से मानसिक सुख और शांति की प्राप्ति हो जाना संभव नहीं होता चाहे उसकी संपन्नता को देखकर लोग उसे सुखी मानते रहें।
3041 Views
आप गर्मी की चिलचिलाती धूप में कभी सफ़र करें तो दूर सड़क पर आपको पानी जैसा दिखाई देगा पर पास पहुँचने पर वहाँ कुछ नहीं होता। अपने जीवन में भी कभी-कभी हम सोचते कुछ हैं, दिखता कुछ है लेकिन वास्तविकता कुछ और होती है। आपके जीवन में घटे ऐसे किसी अनुभव को अपने प्रिय मित्र को पत्र लिखकर अभिव्यक्त कीजिए।
48 -दुग्गल कॉलोनी,
कानपुर।
15 सितंबर, 20.........
प्रिय अंकुश,
मुझे तुम्हारा पत्र प्राप्त हो गया था पर मैं समय पर उसका उत्तर नहीं दे पाया। इस बात का खेद है। वास्तव में पिछले दिनों मेरे साथ कुछ ऐसा घटित हो गया था जिसकी मुझे अभी उम्मीद नहीं थी।
तुम्हें याद होगा कि मैंने तुम्हारा अपने एक मित्र से परिचय कराया था, जब तुम पिछली छुट्टियों में घर आए थे। उसका नाम कपिल था। वह मेरी ही कक्षा में पढ़ता था और मेरे साथ प्राय: मेरे घर आया करता था। वह होस्टल में रहता था। उसके माता-पिता किसी दूर के गांव में रहते हैं। मेरे मम्मी-पापा तो उसे अपने बेटे के समान ही प्यार करते थे। यदि मेरे लिए वे बाजार से कुछ लाते थे तो उसके लिए भी वही लाना नहीं भूलते थे। कहते थे कि कितना होनहार बच्चा है। होशियार है, मीठा बोलता है, भोला-भाला है। पिछले सप्ताह उसने ही अपने गांव के कुछ लोगों के साथ मिलकर हमारे घर में चोरी करवा दी। हमारा लगभग पांच लाख रुपये का हो गया है। उसे तो हमारे घर की एक-एक चीज पता थी। लगभग हर रोज ही तो हमारे घर आता था। अगले महीने रीमा दीदी की शादी थी इसलिए घर में बहुत-सा उसके दहेज का नया सामान था, नकदी थी सब चोरी चला गया। हमें तो विश्वास ही नहीं हुआ जब उसे उसके गाँव से पकड़ कर हमारे सामने खड़ा कर दिया। उसने अपना अपराध कबूल कर लिया पर न तो उसके साथी पुलिस की पकड़ में आए हैं और न ही हमारा सामान बरामद हुआ है। देखो क्या होता है। शायद हमारा सामान हमें वापिस मिल जाए। उसकी शक्ल तो कितनी भोली थी और मन का कितना काला निकला। सच है की कई हमें कई लोगों के बारे मे सोचते कुछ हैं, वे निकलते कुछ हैं।
ठीक है। अंकल-आंटी को मेरी ओर से नमस्ते कहना।
तुम्हारा मित्र,
अनुज
311 Views
‘जीवन में है सुरंग सुधियाँ सुहावनी’ से कवि का अभिप्राय जीवन की मधुर स्मृतियों से है। आपने अपने जीवन की कौन-कौन सी स्मृतियां संजो रखी हैं?
प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में अनेक मधुर स्मृतियां सदा ही मन में छिपी रहती हैं जो समय-समय पर प्रकट होती रहती हैं। जब वे याद आती हैं तब अनायास ही होंठों पर मुस्कान बिखर जाती है। जब मैं छोटा था तब मेरी बुआ जी मेरे लिए मेरे जन्म दिन पर एक साथ दस उपहार लेकर आई थीं। मैंने हैरान होकर उनसे पूछा था कि एक साथ इतने उपहार वे क्यों ले आई थीं। उन्होंने
मुस्कराकर कहा था कि वे पिछले दस वर्ष से विदेश में थी और मेरे जन्म दिन पर वे मुझे उपहार नहीं दे पाई थीं। इसलिए पिछले दस वर्षो के दस उपहार मुझे एक साथ दे रहीं थी। उपहार भी एक से बढ़कर एक सुंदर। मैं खुशी से झूम उठा था और आज भी मुझे वह घटना ऐसी लगती है जैसे उसे घटित हुए कुछ ही देर हुई हो। मैं इस घटना को कभी नहीं भूल सकता।
एक बार मैं पैदल ही स्कूल जा रहा था। एक नन्हा-सा पिल्ला मेरे पीछे-पीछे चलने लगा। मुझे उसका अपने पीछे आना अच्छा लगा। जब मैं स्कूल पहुँच गया तो स्कूल के चौकीदार ने उसे भगा
दिया। छुट्टी के बाद जैसे ही मैं बाहर निकला वैसे ही न जाने कहाँ से वह भागता हुआ आया और फिर मेरे पीछे-पीछे मेरे घर तक आया। यह क्रम अगले दिन भी ऐसे चला और इसके बाद महीना भर मेरा और उसका स्कूल जाना-आना एक साथ हुआ। इसके बाद मुझे नहीं पता कि अचानक वह पिल्ला कहां चला गया। मैंने उसे ढूंढने की कोशिश की पर फिर वह मुझे कहीं नहीं दिखाई नहीं दिया। इस घटना को अनेक वर्ष बीत चुके हैं पर मुझे उसकी मधुर स्मृति कभी नहीं भूलती।
428 Views
‘क्या हुआ जो खिला फूल रस बसंत जाने पर?’ कवि का मानना है कि समय बीत जाने पर भी उपलब्धि मनुष्य को आनंद देती है। क्या आप ऐसा मानते हैं? तर्क सहित लिखिए।
समय का विशेष महत्व है। बीत जाने पर हमें प्राय: दुःख ही उठाना पड़ता है। समय कभी किसी की प्रतीक्षा नहीं करता। यह तो लगातार आगे भागता ही जाता है। यदि हम इसके एक-एक क्षण को व्यर्थ गंवा देते हैं तो हमारा कल्याण संभव नहीं हो सकता। कहा भी तो जाता है-
‘अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत’
प्राय: माना जाता है कि धन सबसे कीमती वस्तु है पर यदि ध्यान से सोचा जाए तो समय धन से भी अधिक उपयोगी और मूल्यवान है। धन से हर वस्तु खरीदी जा सकती है पर समय नहीं खरीदा जा सकता। यह तो घड़ी की टिक-टिक के साथ भागता भी जाता है। यदि किसी बीमार व्यक्ति को समय पर उपचार न मिले तो उसका जीवन नहीं बचाया जा सकता। यदि समय पर विद्यार्थी पढ़ाई न करें तो वे परीक्षा में पास नहीं हो सकते। यदि किसान समय पर अपने खेत की सिंचाई न करे तो उसे उपज प्राप्त नहीं हो सकती। रेलगाड़ी, बस, वायुयान आदि किसी के लिए प्रतीक्षा नहीं करते। समय चूक जाने पर वे तो अपने गंतव्य की ओर जाते हैं।
यदि किसी उपलब्धि की हमें समय के बाद प्राप्ति हो भी जाती है तो उसका कोई उपयोग नहीं रहता। फसल के सूख जाने के बाद वर्षा हो भी जाए तो उसका क्या लाभ? हमें चाहिए कि हम हर कार्य उचित समय पर ही करें ताकि इससे समय की उपलब्धि की उपादेयता बनी रहे।
593 Views
कविता में व्यक्त दु:ख के कारणों को स्पष्ट कीजिए।
हर व्यक्ति का जीवन सुख और दुःखों के मेल से बना है। सुख के बाद दुःख आते हैं तो दुःखों के बाद सुख। हमें सुख आनंद का अहसास कराते हैं तो दु:ख पीड़ा देते हैं। हम पीड़ा से मुक्ति पाने की चेष्टा करते हैं और सुख की घड़ियों को बार-बार याद करने लगते हैं जिससे पीड़ा कम होने की अपेक्षा बढ़ जाती है; वह दोगुनी हो जाती है। हम धन-दौलत प्राप्त कर अपना जीवन सुखमय बनाने की कोशिश करते हैं पर धन की प्राप्ति से सभी सुख प्राप्त नहीं होते। सुख का आधार तो मन की शांति है। हमें मन की शांति के लिए प्रयत्नशील हो जाना चाहिए। जो बातें बीत चुकी हों उन्हें भुला देना चाहिए और सुखद भविष्य के लिए प्रयासरत हो जाना चाहिए। दुःख के कारण पुरानी सुखद बातों को मन ही मन दोहराते नहीं रहना चाहिए।
266 Views
कवि ने कठिन यथार्थ के पूजन की बात क्यों कही है?
मनुष्य का जीवन कल्पनाओं के आधार पर नहीं टिकता। वह जीवन के कठोर धरातल पर स्थित होकर ही आगे गीत करता है। पुरानी सुख भरी यादों से वर्तमान दुःखी हो जाता है। मन में पलायनवाद के भाव उत्पन्न हो जाते हैं। उसे कठिन यथार्थ से आमना-सामना कर के ही आगे बढ़ने की चेष्टा करनी चाहिए। कवि ने जीवन की कठिन-कठोर वास्तविकता को स्वीकार करने की बात इसीलिए कही है।
1263 Views