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ऐसा माना जाता है कि पितृ अपने परिवार की रक्षा कवच की तरह होते हैं। वह हमेशा अपने परिवार, अपने पीढ़ियों के बारे में ही सोचते हैं। उनकी समय-समय पर सहायता करते हैं। एक अवधारणा यह भी है कि...
Praveenज्योतिषाचार्य पं.शिवकुमार शर्मा,मेरठ Sat, 18 Sep 2021 10:08 PM
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ऐसा माना जाता है कि पितृ अपने परिवार की रक्षा कवच की तरह होते हैं। वह हमेशा अपने परिवार, अपने पीढ़ियों के बारे में ही सोचते हैं। उनकी समय-समय पर सहायता करते हैं। एक अवधारणा यह भी है कि ईश्वर पूरे सृष्टि के संचालक होते हैं और सभी को देखते हैं किन्तु पितृ केवल अपने परिवार को ही देखते हैं। जिस घर में पितरों की पूजा होती है अर्थात अपने मृतक पूर्वजों का स्मरण किया जाता है, उनके निमित्त भोजन वस्त्र आदि का दान करते हैं उस घर में पितरों की कृपा बनी रहती है। ऐसा मानते हैं कि पितृपक्ष में भी देवताओं पर पुष्प अर्पित करने से पहले पितरों को श्रद्धा पुष्प चढ़ाने चाहिए। किसी योग्य विद्वान ब्राह्मणों को भोजन पर आमंत्रित करें और अपने पितरों की रुचि का भोजन बना कर उन्हें श्रद्धा से खिलाएं। इसके साथ-साथ अपने पितरों के नाम से उनकी मृत्यु तिथि या श्राद्ध के दिन अपनी इच्छा एवं सामर्थ्य के अनुसार अभावग्रस्त गरीब, श्रमिक को भोजन कराएं।
ब्राह्मण को भोजन कराने से पहले पंचबलि निकालने का भी विधान है। पंचबलि का अर्थ है पांच प्रकार के प्राणियों के लिए भोजन निकालना। सबसे पहले गौ बलि अर्थात गाय के निमित्त भोजन निकालें। दूसरा श्वान बलि अर्थात कुत्ते के लिए भोजन निकालें। तीसरा काक बलि अर्थात कौवें के लिए भोजन निकालें। चौथा विश्वदेव बलि अर्थात देवता आदि के लिए भोजन निकालें। पांचवा पिप्पलिका बलि अर्थात चीटियों के लिए भोजन निकालने के पश्चात ब्राह्मण भोजन कराएं। ब्राह्मण को भोजन कराते समय पत्तल का प्रयोग अथवा तांबे, पीतल, कांसे, चांदी आदि के बर्तन में भोजन कराना चाहिए क्योंकि पितरों को लोहे के अर्थात स्टील के बर्तनों में खाना खिलाना शुभ नहीं माना गया है।
पितरों के निमित्त ब्राह्मण भोजन में रखे सावधानियां: पितरों के लिए बनाए गए भोजन में उड़द, मसूर, अरहर, चना, लौकी बैंगन, हींग,प्याज, लहसुन,काला नमक, अलसी का तेल, पीली सरसों का तेल, मांसाहारी भोजन का प्रयोग वर्जित माना गया है।
10 सितंबर से पितृपक्ष का आरंभ हो गया है। पूर्णिमा और प्रतिपदा से शुरू हुए श्राद्ध कर्म के दिन पितरों को याद करने के लिए ही होते हैं। इन दिनों पितरों को भोजन खिलाया जाता है। इसके लिए एक ब्रह्माण को बिठ
Anuradha Pandeyलाइव हिन्दुस्तान टीम,नई दिल्लीMon, 12 Sep 2022 12:14 PM
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10 सितंबर से पितृपक्ष का आरंभ हो गया है। 25 सितंबर 2022 को पितृ पक्ष का समापन हो जाएगा। पूर्णिमा और प्रतिपदा से शुरू हुए श्राद्ध कर्म के दिन पितरों को याद करने के लिए ही होते हैं। इन दिनों ब्राह्मण भोजन कराया जाता है। भोजन उस तिथि को कराया जाता है, जिस तिथि पर पितरों की तिथि होती है। अगर किसी मृत व्यक्ति की तिथि ज्ञात न हो तो ऐसी स्थिति में अमावस्या तिथि पर श्राद्ध किया जाता है। इस दिन सर्वपितृ श्राद्ध योग माना जाता है।श्राद्ध के दौरान भोजन में प्याज व लहसुन पूर्णतः का इस्तेमाल बिल्कुल नहीं करना चाहिए।
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भोजन में सबसे महत्वपूर्ण चीज खीर होती है। कहा जाता है कि श्राद्ध में पूरी और खीर पितरों के लिए खासतौर पर बनाई जाती है। इसके अलावा पितरों के लिए उनकी पसंद का भोजन और एक चीज उड़द की दाल की बनाई जाती है।
उड़द की दाल के बड़े, चावल ,दूध, घी से बने पकवान व मौसम की सब्जियां व मौसम में जो सब्जी बेल पर लगती है जैसे झींगा, लौकी, कद्दू, कुम्हडा, भिंडी कच्चे केले यह सभी चीजें बनानी चाहिए। श्राद्ध के दौरान बना हुआ भोजन पांच जगह निकाला जाता है। सबसे पहले कौवे, गाय व कुत्ते को खिलाएं। इसके बाद पितरों का तर्पण करें। तर्पण काले तिल और जल से करते हैंl जिन पूर्वजों की तिथि हो उनका नाम लेकर 3-3 अंजलि जल से तर्पण किया जाता है।
इस आलेख में दी गई जानकारियों पर हम यह दावा नहीं करते कि ये पूर्णतया सत्य एवं सटीक हैं। इन्हें अपनाने से पहले संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें।
पितृपक्ष में पितरों का आशीर्वाद पाना चाहते हैं तो आपको श्राद्ध के दौरान करवाए जाने वाले ब्राह्मण भोज से जुड़ी ये महत्वपूर्ण बातें जरूर पता होनी चाहिए.
सनातन परंपरा में पितृपक्ष को बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण माना गया है. भाद्रपद पूर्णिमा से लेकर आश्विन मास की अमावस्या के दौरान इस पितृपक्ष में पितरों की आत्मा की तृप्ति के लिए श्राद्ध, तर्पण आदि का विधान है. मान्यता है कि पितृपक्ष में श्रद्धा के अनुसार श्राद्ध करके हम पितरों के कर्ज को चुकाने का प्रयास करते हैं. मान्यता यह भी है कि श्राद्ध के दौरान किसी ब्राह्मण को कराया गया भोजन सीधे पितरों तक पहुंचता है, लेकिन क्या आपको पता है कि श्राद्ध के दौरान किसी ब्राह्मण को अपने घर में आमंत्रित करने से लेकर भोजन कराकर विदा करने को लेकर भी कुछ नियम बने हुए हैं, यदि नहीं तो आइए इसे विस्तार से जानते हैं.
श्राद्ध में ब्राह्मण भोजन कराने के नियम
- पितृपक्ष में यदि आप किसी ब्राह्मण को भोजन कराने जा रहे हैं तो आपको हमेशा धर्म-कर्म का पालन करने वाले योग्य ब्राह्मण को ही भोजन पर आमंत्रण करना चाहिए.
- किसी भी ब्राह्मण को भोजन के लिए आदर के साथ आमंत्रित करें और उसे इस बात को स्पष्ट कर दें कि आप उसे श्राद्ध के लिए भोज में आमंत्रित कर रहे हैं. साथ ही यह भी स्पष्ट कर लें कि वह आपके अलावा किसी और के यहां तो श्राद्ध का भोजन करने के लिए नहीं जा रहे हैं.
- श्राद्ध में ब्राह्मण को खिलाने के लिए वही चीजें खाने में बनाएं जो आपके पितरों या फिर आपके घर से जुड़े दिवंगत व्यक्ति को पसंद हुआ करती थी. मान्यता है कि जब आप अपने पितरों की रुचि के अनुसार भोजन बनाकर ब्राह्मण को खिलाते हैं तो उनकी आत्मा तृप्त होती है.
- पितृपक्ष में पितरों के लिए निमित्त के लिए श्राद्ध हमेशा दोपहर के समय किया जाता है, इसलिए ब्राह्मण को भोजन के लिए दोपहर के लिए ही आमंत्रित करें.
- ब्राह्मण के लिए भोजन को पवित्रता और शुद्धता से बनाना चाहिए और उसमें भूलकर भी लहसुन, प्याज ाादिका प्रयोग नहीं करना चाहिए.
- धार्मिक मान्यता के अनुसार दक्षिण को पितरों की दिशा माना गया है. मान्यता है कि पितृपक्ष में पितर इसी दिशा से पृथ्वी पर आते है, ऐसे में ब्राह्मण को भोजन हमेशा दक्षिण दिशा की ओर मुख करके कराना चाहिए.
- पितृपक्ष के दौरान जब अपने पितरों के निमित्त किसी ब्राह्मण को बुलाकार भोजन कराते हैं तो हमेशा इस बात का ख्याल रखें कि उन्हें भोजन कांसे, पीतल, चांदी या फिर पत्तल में परोसें. पितृपक्ष में ब्राह्मण को भूलकर भी लोहे यानि स्टील की थाली में भोजन कराने की भूल न करें.
- श्राद्ध के लिए ब्राह्मण को भोजन कराते समय भूलकर भी उसे करवाए जाने वाले भोजन या फिर उन्हें दिए जाने वाले दान का अभिमान न करें. जब ब्राह्मण भोजन कर रहे हों तो उस दौरान बातचीत भी न करें ताकि वे आराम से भोजन कर सकें.
- पितृपक्ष में ब्राह्मण को आदर के साथ भोजन करवाने के बाद उसे जाते समय अपने सामर्थ्य के अनुसार कुछ न कुछ दक्षिणा देकर आशीर्वाद जरूर लें और किसी भी प्रकार की जाने-अनजाने की गई भूल या फिर कमी के लिए माफी मांग लें.
- पितृपक्ष में ब्राह्मण को भोजन कराने के बाद ही घर के सदस्यों को प्रसाद स्वरूप भोजन ग्रहण करना चाहिए.
(यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं, इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)