ओ.पी.जोशी, जयश्री सिक्का
पुर्तगाल, स्पेन, पश्चिमी फ्रांस के कुछ हिस्सों, इटली व उततरी अफ्रीका में यह पेड़ खूब पाया जाता है। कॉर्क के पेड़ रेतीली ज़मीन पर आसानी से पनपते हैं। इन पेड़ों की शाखाओं को ज़मीन में लगाकर नए पेड़ उगाए जा सकते हैं। सूखी गर्मी, आद्र्रतायुक्त ठंड और समुद्र तट तीनों ही तरह का मौसम चाहिए इसको पनपने के लिए।
20 वर्ष की उम्र के आसपास पेड़ से पहली बार छाल यानी कॉर्क छीला जाता है। इसके बाद आमतौर पर हर नौ-दस साल में एक बार कॉर्क छीला जाता है। पूरी उम्र के लिहाज़ से करीब 150 साल तक कॉर्क, पेड़ से छीला जा सकता है।
इस पेड़ के तने में ऐसे ऊतक होते हैं, जिनसे लगातार नई कोशिकाएं पूरी सतह पर समान रूप से बनती हैं। कॉर्क तो पेड़ की छाल है, और छाल का काम हे मौसम से तने को बचाना। तो होता यह है कि कॉर्क छीलकर निकालने के बाद भीतर बन रही नई कोशिकाएं इस खाली जगह का स्थान ले लेती हैं और धीरे-धीरे मोटी चमड़े-सी सतह फिर बन जाती है। इस तरह हमें कॉर्क लगातार मिलता रहता है।
कॉर्क की खासियत उसकी हवा से भरी कोशिकाएं हैं। कॉर्क में 35 प्रतिशत वसा होती है और इसलिए इसमें से पानी या अन्य कोई तरल आरपार नहीं जा सकता। हर कोशिका अत्यंत लचीली होती है। ऐसी कोशिकाओं की परत सूखी व गर्म हवा से पेड़ का अच्छा बचाव करती है।
कॉर्क की छाल निकालकर फिर इसे खरीदने वालों के निरीक्षण के लिए रखा जाता है। यहां से आधे बेलन की शक्ल जैसे टुकड़ों में कॉर्क की परतों को कारखानों में ले जाया जाता है। जहां इन्हें लगभग एक घन्टे तक उबाला जाता है या भाप में रखा जाता है। इससे कॉर्क फूल जाता है और इसमें उपस्थित खनिज और अम्ल वगैरह निकल जाते हैं। और फिर सतह के खुरदुरेपन को हाथ से घिसकर निकाल दिया जाता है। ठंडा होकर या मुलायम और लचीला हो जाता है।
कॉर्क की गुणवत्ता आमतौर पर इस बात से निर्धारित होती है कि उसमें उपस्थित छिद्र कितने हैं। कार्क का इस्तेमाल करते समय यह ध्यान रखते हैं कि उपयोग के लिए आकार काटते समय, उसे छिद्रों की लम्बवत दिशा में काटा जाता है। बोतलों के डॉट हमेशा लम्बी ओर से यानी सिर पर से काटे जाते हैं।
आमतौर पर बोतल में कार्क की डॉट फंस जाने पर सबने गरम पानी या ठंडा पानी डालने जैसी जुगत भिड़ाने की कोशिश ज़रूर की होगी, लेकिन कॉर्क के हल्केपन के राज़ के बारे में शायद ही सोचा होगा। कॉर्क के हल्के होने का प्रमुख कारण कॉर्क की हवा से भरी कोशिकाएं हैं। कॉर्क की हवा से भरी इन कोशिकाओं की दीवारें बहुत पतली होती हैं और इसी कारण कॉर्क बहुत ही हल्के पदार्थों में से एक है, पानी के 1/5 वें भाग के बराबर। कॉर्क एक अच्छा कुचालक भी है, उष्मा और बिजली दोनों आसानी से इसके आरपार नहीं जा सकते।
कॉर्क की बहुत-सी विशेषताओं - लचीलापन, कुचालकता, बहुत कम घनत्व आदि के कारण दुनिया के इसके लिए बहुत से उपयोग ढूंढ लिए हैं।
हालांकि कॉर्क का सबसे जाना पहचाना उपयोग बोतल की डॉट है लेकिन कई अन्य काम के लिए भी इसका इस्तेमाल होता है। हवा से भरे खूब सारे छिद्रों के कारण यह आवाज़ का बेहद उम्दा कुचालक है और ध्वनि को बहुत बढ़िया तरीके से सोखता है, उसे गूंजने नहीं देता। इसलिए सिनेमाघरों और नाट्यगृहों में भी इसका इस्तेमाल किया जाता है।
कॉर्क से बोर्ड भी बनाए जाते हैं। इसके लिए कॉर्क का चूरा करके उसे ऊंचे ताप पर दबाया जाता है या फिर उसमें चिपकाने वाला पदार्थ डाल देते हैं और फर्शों व दीवारों की टाईलों, लिनोलियम, बर्फ जमने वाली जगहों आदि में इसका उपयोग करते हैं। साथ ही गर्म होने वाले या भाप बनाने वाले कुछ बर्तनों और यंत्रों में भी इसे गास्केट के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं।
कॉर्क के कुछ अन्य उपयोग भी हैं जैसे - आणविक पनडुब्बियों के एयरकंडिशनर, सक्रिय रेडियों आइसोटोप्स को संग्रहित करने आदि में। कॉर्क के आवरण में रखे आइसोटोप्स 10 मीटर ऊंचाई से गिरने पर या 800 अंश सेल्सियस तापमान होने पर भी बाहर नहीं जा सकते। रॉकेट व सेटेलाइट में भी कॉर्क का उपयोग लगातार बढ़ रहा है।
अब आप सोचिए आपने और कहां-कहां कॉर्क का उपयोग होता देखा है?
ओ.पी. जोशी और जयश्री सिक्का गुजराती कॉलेज इंदौर में वनस्पति विज्ञान पढ़ाते हैं।
चित्रांकन: लक्ष्मी मूर्ति, उदयपुर