झांसी की रानी पाठ के रचयिता कौन है? - jhaansee kee raanee paath ke rachayita kaun hai?

झाँसी की रानी (Jhaansee Kee Raanee) के लेखक/उपन्यासकार/रचयिता (Lekhak/Upanyaskar/Rachayitha) "वृदावनलाल वर्मा" (Vrdaavanalaal Verma) हैं।

Jhaansee Kee Raanee (Lekhak/Upanyaskar/Rachayitha)

नीचे दी गई तालिका में झाँसी की रानी के लेखक/उपन्यासकार/रचयिता को लेखक/उपन्यासकार तथा उपन्यास के रूप में अलग-अलग लिखा गया है। झाँसी की रानी के लेखक/उपन्यासकार/रचयिता की सूची निम्न है:-

रचना/उपन्यासलेखक/उपन्यासकार/रचयिताझाँसी की रानीवृदावनलाल वर्माJhaansee Kee RaaneeVrdaavanalaal Verma

झाँसी की रानी किस विधा की रचना है?

झाँसी की रानी (Jhaansee Kee Raanee) की विधा का प्रकार "उपन्यास" (Upanyas) है।

आशा है कि आप "झाँसी की रानी नामक उपन्यास के लेखक/उपन्यासकार/रचयिता कौन?" के उत्तर से संतुष्ट हैं। यदि आपको झाँसी की रानी के लेखक/उपन्यासकार/रचयिता के बारे में में कोई गलती मिली हो त उसे कमेन्ट के माध्यम से हमें अवगत अवश्य कराएं।

इसे सुनेंरोकेंसिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी, बूढ़े भारत में आई फिर से नयी जवानी थी की रचयिता सुभद्रा कुमारी चौहान की जयंती पर उनकी सर्वकालिक महानतम कविता ‘झांसी की रानी’ और आखिरी कविता ‘प्रभु तुम मेरे मन की जानो’

झांसी की रानी कविता की मूल संवेदना क्या है?

इसे सुनेंरोकेंकविता तत्कालीन बुंदेली लोकगीत को आधार बना कर लिखी गयी थी और इसे भारतीय राष्ट्रवाद की हिंदी साहित्य में सबल अभिव्यक्ति के रूप में देखा जाता है। इसे कवयित्री द्वारा झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई के प्रति एक श्रद्धांजलि के रूप में भी देखा जाता है।

क्या खूब लड़ी मर्दानी?

इसे सुनेंरोकेंखूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसीवाली रानी थी।। लक्ष्मी थी या दुर्गा थी वह स्वयं वीरता की अवतार, देख मराठे पुलकित होते उसकी तलवारों के वार, नकली युद्ध, व्यूह की रचना और खेलना खूब शिकार, सैन्य घेरना, दुर्ग तोड़ना, ये थे उसके प्रिय खिलवार, महाराष्ट्र-कुल-देवी उसकी भी आराध्य भवानी थी।

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सुभद्रा के अमर कविता कौन सी है?

इसे सुनेंरोकेंउत्तर-4. सुभद्रा की अमर कविता “खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी” है ।

झांसी की रानी कविता से क्या संदेश दिया गया है?

इसे सुनेंरोकेंझांसी की रानी कविता से ये संदेश दिया गया है कि अंग्रेजों की गुलामी से देश को आजादी दिलाने में अनेक देशभक्त वीर एवं वीरांगनाएं शहीद हुई॥ आजादी के प्रथम युद्ध में रानी लक्ष्मीबाई ने देशवासियों में तयाग बलिदान की जो भावना जगाई हमें उसका सम्मान करना चाहिए और देश की स्वतंत्रता की खातिर बड़ा से बड़ा त्याग करना चाहिए।

बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी इन पंक्तियों में कौन सा रस है?

इसे सुनेंरोकें”बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी, खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी ” प्रस्तुत पंक्तियों में कौन सा रस है? वीर रस की कविता है, इसी कविता ने सुभद्रा कुमारी चौहान को अमर कर दिया।

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बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी में कौन सा रस निहित है 😕

इसे सुनेंरोकेंअतः सही विकल्प 2 ‘वीर रस’ है। इन पंक्तियों में वीर रस है, कवियत्री सुभद्रा कुमारी चौहान ने झाँसी की रानी द्वारा स्वतंत्रता संग्राम के युद्ध का वर्णन किया है।

हिंदी की यशस्वी, राष्ट्रीय भावनाओं से ओतप्रोत कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान का जन्म 16 अगस्त, 1904 को प्रयाग में ठाकुर रामनाथ सिंह के घर हुआ. शुरुआती पढ़ाई-लिखाई भी प्रयाग में ही हुई. सुभद्रा कुमारी बाल्यावस्था से ही देश-भक्ति की भावना से प्रभावित थीं. उन्होंने असहयोग आंदोलन में भाग लिया था और एक से बढ़कर एक राष्ट्रवादी कविताएं लिखीं.

सुभद्रा कुमारी चौहान विवाह के पश्चात सक्रिय राजनीति में भाग लेने लगीं. दुर्भाग्यवश मात्र 43 वर्ष की अवस्था में एक हादसे में इनकी मृत्यु हो गई. उनकी प्रमुख रचनाओं में कविता-संग्रह 'मुकुल', कहानी संग्रह 'बिखरे मोती', 'सीधे-सादे चित्र और 'चित्रारा शामिल है. 'झाँसी की रानी' उनकी इतनी बहुचर्चित रचना रही कि उसने समय और देश की सीमाओं को लांघ दिया.

साहित्य आजतक पर आज उनकी जयंती पर पढ़िए झाँसी की रानी लक्ष्मी बाई के साहस और शौर्य पर लिखी कविता 'झांसी की रानी' और उनकी लिखी आखिरी कविता 'प्रभु तुम मेरे मन की जानो'. एक में साहस का ओज है, तो दूसरे में ईश्वर के दरबार में छुआछूत खत्म होने के लिए पवित्र कामना.

झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई हिंदी लेखक वृंदावनलाल वर्मा द्वारा लिखित एक ऐतिहासिक उपन्यास है। इसका प्रथम प्रकाशन सन् 1946 में हुआ। 1946 से 1948 के बीच लेखक ने इसी शीर्षक से एक नाटक भी लिखा जिसे 1955 में मंचित किया गया हालाँकि, उपन्यास अधिक प्रसिद्ध हुआ और इसे हिंदी भाषा में ऐतिहासिक उपन्यासों की श्रेणी में एक मील का पत्थर माना जाता है। 1951 में इस उपन्यास का पुनर्प्रकाशन हुआ।

उपन्यास का कथानक भारत में ब्रिटिश राज के काल में मराठा शासित झाँसी राज्य की रानी लक्ष्मीबाई के चरित्र पर आधारित है। साथ ही यह 1857 के विद्रोह की आधुनिक व्याख्या भी प्रस्तुत करता है।

उपन्यास के लेखक वृन्दावनलाल वर्मा उपन्यास की भूमिका में विस्तार से लिखते हैं कि उपन्यास की रचना दरअसल इस खोज से भी सम्बंधित थी कि रानी वास्तव में स्वराज के लिए लड़ीं अथवा केवल आपने शासन को बचाने के लिए, और लेखक का कथन है कि उन्हें जो भी लिखित दस्तावेज प्राप्त हो पाए वे काफ़ी अपर्याप्त थे, हालाँकि, कई लोगों से मिलकर साक्षात्कार द्वारा और उन्हें जो कहानियाँ सुनने को मिलीं उनसे लेखक को प्रगाढ़ विश्वास हो जाता है कि रानी ने अंग्रेजों से स्वराज के लिए युद्ध किया था। इस प्रकार उपन्यास पर इतिहास के व्यक्तिगत अनुस्मरण होने का आरोप भी लगता है।

उपन्यास का प्रकाशन 1949 में और पुनर्प्रकाशन 1951 में हुआ। इससे पहले वर्मा ने कई कहानियाँ और कुछ उपन्यास प्रकाशित कराये थे लेकिन इस उपन्यास ने उन्हें हिन्दी साहित्य के अग्रगण्य रचनाकारों के रूप में स्थापित कर दिया और उन्हें ख़ास तौर से इस उपन्यास के लिए 1954 में भारत सरकार द्वारा पुरस्कृत किया गया।

उपन्यास की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसकी रचना वर्मा ने उस काल में की जब हिंदी में ऐतिहासिक उपन्यासों की भारी कमी थी। ऐसे में उनके इस तरह के उपन्यासों की रचना से न केवल हिंदी साहित्य इस विधा में भी समृद्ध हुआ बल्कि परवर्ती अंग्रेज विद्वानों ने भी इन रचनाओं को मील का पत्थर घोषित किया।

गणेश शंकर विद्यार्थी ने वृंदावनलाल वर्मा के उपन्यास गढ़ कुंडार को अंग्रेजी लेखक वाल्टर स्काट के टक्कर का बताया था और आगे चलकर झाँसी की रानी और मृगनयनी जैसे उपन्यासों की रचना करने वाले वर्मा अपने इन्ही ऐतिहासिक उपन्यासों के बदौलत "हिंदी के वाल्टर स्काट" कहलाये। झाँसी की रानी को हिंदी का सबसे प्रसिद्ध ऐतिहासिक उपन्यास भी माना जाता है।

झांसी की रानी नामक पाठ के रचयिता का क्या नाम है?

झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई हिंदी लेखक वृंदावनलाल वर्मा द्वारा लिखित एक ऐतिहासिक उपन्यास है। इसका प्रथम प्रकाशन सन् 1946 में हुआ।

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी कविता किसकी है?

कविता रचकर अमर हुईं सुभद्रा कुमारी चौहान हममें शायद ही कोई ऐसा हो, जो इन पंक्तियों के जादू से वाकिफ ना हो. जी हां, यह पंक्तियां हैं मशहूर कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान की.

झांसी की रानी कविता का मूल संदेश क्या है?

Solution : झांसी की रानी कविता से ये संदेश दिया गया है कि अंग्रेजों की गुलामी से देश को आजादी दिलाने में अनेक देशभक्त वीर एवं वीरांगनाएं शहीद हुई॥

झाँसी की रानी कविता में सुभद्रा कुमारी चौहान ने लक्ष्मीबाई को मर्दानी क्यों कहा है?

सुभद्रा कुमारी चौहान, लक्ष्मीबाई को 'मर्दानी' क्यों कहती हैं? वीरता, साहस, हिम्मत, ताकत, युद्ध कौशल, घुड़सवारी तलवारबाज़ी-ये सभी मर्दो वाले गुण उनमें विद्यमान थे। रानी लक्ष्मीबाई ने वीर सेनापतियों की तरह अंग्रेजों से युद्ध किया और झाँसी की रक्षा करती रही। इसलिए कवयित्री ने उन्हें 'मर्दानी' कहा है।