ग्रामसभा अपने गांव में स्थानीय शासन कैसे चलाती है? - graamasabha apane gaanv mein sthaaneey shaasan kaise chalaatee hai?

अध्याय 8. स्थानीय शासन: 

स्थानीय शासन: देश के ग्रामीण पंचायत तथा प्रखंड स्तर पर कार्य करने वाली शासन प्रणाली को स्थानीय शासन कहते हैं | 

दुसरे शब्दों "गाँव और जिला स्तर के शासन को स्थानीय शासन कहते हैं।"

उदाहरण: ग्राम सभा, ग्राम पंचायत और जिला परिषद् आदि |

स्थानीय शासन को संवैधानिक दर्जा : स्थानीय शासन की संस्थाओं को सन् 1993 में संवैधनिक दर्जा प्रदान किया गया।

स्थानीय शासन निकायों का महत्त्व: 

(i) स्थानीय शासन यदि मजबूत होता है  तो यह लोकतंत्र की मजबूती होती है | 

(ii) स्थानीय शासन आम आदमी के सबसे नजदीक का शासन होता है | 

(iii) कारगर और जान-हितकारी प्रशासन के लिए स्थानीय शासन महत्वपूर्ण है | 

(iv) स्थानीय शासन स्थानीय लोगों के द्वारा चलाया जाता है इसलिए उन्हें अपने समस्याओं के बारे में पता होता है | 

(v) स्थानीय शासन में होने वाले कार्य का सरोकार वहाँ की जनता के रोजमर्रा की जिंदगी से जुडा होता है | 

स्थानीय शासन की आवश्यकता : 

हमें स्थानीय शासन की आवश्यकता है क्योंकि : 

(i) लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए हमें स्थानीय शासन की आवश्यकता होती है | 

(ii) लोकतंत्र में अधिक से अधिक भागीदारी के लिए स्थानीय शासन चाहिए | 

(iii) लोगों की सबसे अधिक समस्या स्थानीय स्तर के होते हैं जिसे स्थानीय स्तर पर ही अच्छे ढंग से सुलझाया जा सकता है | 

(iv) अच्छे लोकतंत्र में शक्तियों का बंटवारा जरुरी है | 

स्थानीय शासन का लाभ: 

(i) सरकार का कार्यभार कम होता है उनके समय व शक्ति की बचत होती है।
(ii) स्थानीय शासन मे लोगो को स्वयं अपने कार्यो के प्रबध्ंन का अवसर मिलता है और उनमे जिम्मेदारी की भावना आती है।

(iii) स्थानीय स्तर पर आपसी संबंधों में सुधार आता है |
(iv) स्थानीय निकायो द्वारा नवीन योजनाओ की अच्छी जानकारी प्राप्त होती है |
(v) स्थानीय समस्याओ का समाधन कम खर्च व कम समय मे कर पाते हैं | 

(vi) स्थानीय शासन का अर्थ है स्थानीय लोगों द्वारा स्वयं अपना शासन चलाना।
(vii) स्थानीय शासन के निर्वाचित निकाय सन् 1882 के बाद अस्तित्व मे आए।
(viii) महात्मा गाँधी ने सत्ता के विकेंद्रीकरण के लिए ग्राम पंचायतो को मजबूत और स्वालम्बी बनानें पर जोर दिया था।
(ix) स्थानीय विकास में जनता की भागीदारी के लिए सन् 1952 में सामुदायिक विकास कार्यक्रम की शुरूआत की गई

भारत में ग्राम पंचायत की शुरुआत : 

गवर्नमेंट ऑफ़ इंडिया एक्ट-1919 के बनने पर भारत के अनेक प्रांतों में ग्राम पंचायत बने। सन् 1935 के गवर्नमेंट ऑफ़ इंडिया एक्ट के बाद भी यह प्रवृत्ति जारी रही। परन्तु आजादी के बाद 1993 में इसे संवैधानिक दर्जा दिया गया | 

पंचायती राज/स्थानीय शासन के बारे में गाँधी जी का विचार : 

भारतीय स्वतंत्रता-संग्राम के दिनों में महात्मा गाँधी ने जोर देकर कहा था कि आर्थिक और राजनीतिक सत्ता का विकेंद्रीकरण होना चाहिए। उनका मानना था कि ग्राम पंचायतों को मजबूत बनाना सत्ता के विकेंद्रीकरण का कारगर साधन है। विकास की हर पहलकदमी में स्थानीय लोगों की भागीदारी होनी चाहिए | 

स्थानीय शासन को लेकर संविधान निर्माताओं का दृष्टिकोण : 

डॉ0 भीम राव अम्बेडकर :

उनका कहना था -"ग्रामीण भारत में जाति-पांति और आपसी फूट का बोलबाला है। स्थानीय शासन का उद्देश्य तो बड़ा अच्छा है लेकिन ग्रामीण भारत के ऐसे माहौल में यह उद्देश्य ही मटियामेट हो जाएगा।"

नेहरू जी अति-स्थानीयता को राष्ट्र की एकता और अखंडता के लिए खतरा मानते थे।

स्वतंत्र भारत में स्थानीय शासन : 

  • संविधान के 73वें और 74वें संशोधन के बाद स्थानीय-शासन को मजबूत आधार मिला।

सामुदायिक विकास कार्यक्रम (Community Development Programme): 1952 में स्थानीय विकास की विभिन्न गतिविधियों में जनता की भागीदारी बढ़ाने के लिए एक कार्यक्रम चलाया गया जिसे सामुदायिक विकास कार्यक्रम का नाम दिया गया | 

सामुदायिक विकास कार्यक्रम का उदेश्य: 

(i) स्थानीय विकास की विभिन्न गतिविधियों में जनता की भागीदारी हो। 

(ii) इसी पृष्ठभूमि में ग्रामीण इलाकों के लिए एक त्रि-स्तरीय पंचायती राज व्यवस्था की सिफारिश की गई। 

(iii) राज्यों से स्थानीय निकायों को अधिक से अधिक शक्तियों का वितरण |

(iv) स्थानीय निकाय स्थानीय विकास की देखभाल कर सके |

1989 में पी के थुंगन समिति की सिफारिश : 

(i) स्थानीय शासन के निकायों को संवैधानिक दर्जा प्रदान करना | 

(ii) स्थानीय शासन की संस्थाओं का समयसमय पर चुनाव कराने की सिफारिश की | 

(iii) उनकी समुचित कार्यों की सूची तय करने तथा ऐसी संस्थाओं को धन प्रदान करने के लिए संविधान में संसोधन किया जाय | 

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ग्राम सभा अपने गांव में स्थानीय शासन कैसे चलती है?

स्थानीय स्तर पर शासन में लोगों की भागदारी सुनिश्चित करना। ग्रामीण की सहभागिता से ग्राम विकास के क्रियान्वयन में गाँव के लोगों को जिम्मेदारी का आभास कराना। ग्राम विकास योजनाओं, कार्यक्रमों, नियोजन आदि से गाँव वालों का लाभान्वित कराना। शक्तियों का विकेंद्रीकरण “केंद्र से स्थानीय स्तर तक” कराना।

ग्रामीण स्थानीय शासन से आप क्या समझते हैं?

ग्रामीण क्षेत्रों के मामलों की देखभाल के लिए भारत में तीन प्रकार के ग्रामीण स्थानीय स्वशासी संस्थान बनाए गए हैं। ये संस्थाएं हैं ग्राम पंचायत, पंचायत समिति और जिला परिषद। ग्राम पंचायत गांवों और छोटे शहरों के स्तर पर एक स्थानीय सरकार है। ग्राम पंचायत भारत में पंचायती व्यवस्था की नींव है।

गांव में स्थानीय स्वशासन क्यों महत्वपूर्ण है?

स्थानीय स्वशासन की सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता यह होती है कि यह देश के आम नागरिकों के सबसे करीब होती है और इसलिये यह लोकतंत्र में सबकी भागीदारी सुनिश्चित करने में सक्षम होती है। स्थानीय सरकार का क्षेत्राधिकार एक विशेष क्षेत्र तक सीमित होता है और यह उन्हीं लोगों के लिये कार्य करती है जो उस क्षेत्र विशेष के निवासी हैं।

स्थानीय शासन का अर्थ क्या है?

स्थानीय लोगों द्वारा मिल-जुल कर अपनी समस्याओं के निदान एवं विकास हेतु बनाई गई ऐसी व्यवस्था जो संविधान और राज्य सरकारों द्वारा बनाए गये नियमों एवं कानूनों के अनुरूप हो। स्थानीय शासन से हमारा अभिप्राय यह है कि स्थानीय क्षेत्रों का प्रशासन वहाँ के निर्वाचित प्रतिनिधियों द्वारा चलाया जाए।

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