बाल श्रम की प्रमुख समस्या क्या है? - baal shram kee pramukh samasya kya hai?

अतिथि (Guest): भारती अली (सह-संस्थापक और सह-निदेशक HAQ), राकेश सेंगर (निदेशक, कैलाश सत्यार्थी चाइल्ड फाउंडेशन)

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चर्चा में क्यों?

बाल श्रम एक वैश्विक चुनौती है। बाल श्रम को लेकर अलग - अलग देशों ने कई क़दम उठाए हैं। बाल श्रम से निपटने के लिए हर साल 12 जून को “विश्व बाल श्रम निषेध दिवस” (World Day Against Child Labour) मनाया जाता है। इस बार के “विश्व बाल श्रम निषेध दिवस” का विषय – “Children shouldn’t work in fields, but on dreams” है।

विश्व बाल श्रम निषेध दिवस

विश्व बाल श्रम निषेध दिवस की शुरुआत साल 2002 में ‘इंटरनेशनल लेबर आर्गेनाईजेशन’ द्वारा की गई थी। इस दिवस को मनाने का मक़सद बच्चों के अधिकारों की सुरक्षा की ज़रूरत को उजागर करना और बाल श्रम व अलग - अलग रूपों में बच्चों के मौलिक अधिकारों के उल्लंघनों को ख़त्म करना है।

हर साल 12 जून को मनाए जाने वाले विश्व बाल श्रम निषेध दिवस के मौके पर संयुक्त राष्ट्र एक विषय तय करता है। इस मौके पर अलग - अलग राष्ट्रों के प्रतिनिधि, अधिकारी और बाल मज़दूरी पर लग़ाम लगाने वाले कई अंतराष्ट्रीय संगठन हिस्सा लेते हैं, जहां दुनिया भर में मौजूद बाल मज़दूरी की समस्या पर चर्चा होती है।

इंटरनेशनल लेबर आर्गेनाईजेशन ILO क्या है?

इंटरनेशनल लेबर आर्गेनाईजेशन की स्थापना 1919 में हुई है। ये संयुक्त राष्ट्र की एक एजेंसी के रूप में काम करती है। इसका मुख्यालय जेनेवा में है। इसका मक़सद विश्व में श्रम मानकों को स्थापित करना और श्रमिकों की अवस्था और आवास में सुधार करना है।

United Nations Convention on the Rights of the Child

बाल अधिकारों पर “संयुक्त राष्ट्र समझौता”(UNCRC) 1989 में बना एक क़ानूनी रूप से बाध्यकारी अंतर्राष्ट्रीय समझौता है। इस समझौते में जाति, धर्म को दरकिनार करते हुए हर बच्चे के नागरिक, राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों की स्थापना की गई है। इस समझौते पर कुल 194 देशों ने हस्ताक्षर किए हैं। समझौते के मुताबिक़ (UNCRC) पर दस्तख़त करने वाले सभी देशों का ये कर्तव्य है कि वे बच्चों को निःशुल्क और ज़रूरी प्राथमिक शिक्षा प्रदान करे।

बाल श्रम क्या है?

भारतीय संविधान के मुताबिक़ किसी उद्योग, कल - कारखाने या किसी कंपनी में मानसिक या शारीरिक श्रम करने वाले 5 - 14 वर्ष उम्र के बच्चों को बाल श्रमिक कहा जाता है।

संयुक्त राष्ट्र संघ के मुताबिक़ - 18 वर्ष से कम उम्र के श्रम करने वाले लोग बाल श्रमिक हैं।

अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के मुताबिक़ - बाल श्रम की उम्र 15 साल तय की गई है।

अमेरिका में - 12 साल या उससे कम उम्र के लोगों को बाल श्रमिक माना जाता है।

बाल श्रम की प्रमुख समस्या क्या है? - baal shram kee pramukh samasya kya hai?

किन - किन रूपों में होता है बाल श्रम ?

बाल मज़दूर - वे बच्चे जो कारखानों, कार्यशालाओं, प्रतिष्ठानों, खानों और घरेलू श्रम जैसे सेवा क्षेत्र में मज़दूरी या बिना मज़दूरी में काम कर रहे हैं।

गली - मोहल्ले के बच्चे - कूड़ा बीनने वाले, अखबार और फेरी लगाने वाले और भीख मांगने वाले

बंधुआ बच्चे - वे बच्चे जिन्हें या तो उनके माता-पिता ने पैसों की ख़ातिर गिरवी रखा है या जो कर्ज़ को चुकाने के चलने मज़बूरन काम कर रहे हैं

वर्किंग चिल्ड्रन - वे बच्चे जो कृषि में और घर-गृहस्थी के काम में पारिवारिक श्रम का हिस्सा हैं

यौन शोषण के लिए इस्तेमाल किए गए बच्चे - हजारों बालिक बच्चे और नाबालिक लड़कियां यौन शोषण की जद में हैं

घरेलू गतिविधियों में लगे बच्चे - घरेलू सहायता के रूप में काम। इसमें लड़कियों का शोषण सबसे ज़्यादा है - बच्चे छोटे भाई-बहनों की देखभाल, खाना पकाने, साफ-सफाई और ऐसी अन्य घरेलू गतिविधियों में लगे हुए हैं

बाल श्रम से सम्बंधित कुछ आंकड़े

  • संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के मुताबिक़ दुनिया में कुल -152 मिलियन बच्चे बाल मज़दूरी करते हैं।
  • अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन ILO मुताबिक़ - दुनिया भर में बाल श्रम में शामिल 152 मिलियन बच्चों में से 73 मिलियन बच्चे खतरनाक काम करते हैं।
  • इन ख़तरनाक कामों में मैनुअल सफाई, निर्माण, कृषि, खदानों, कारखानों और फेरी वाला व घरेलू सहायक जैसे काम शामिल है।
  • बीते कुल सालों में ख़तरनाक कामों में शुमार 5 से 11 वर्ष की उम्र के बच्चों की संख्या बढ़कर 19 मिलियन हो गई है।
  • 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में क़रीब 43 लाख से अधिक बच्चे बाल मज़दूरी करते हुए पाए गए।
  • UNISEF के अनुसार दुनिया भर के कुल बाल मज़दूरों में 12 प्रतिशत की हिस्सेदारी अकेले भारत की है।
  • ग़ैरसरकारी आंकड़ों के मुताबिक़ भारत में - क़रीब - 5 करोड़ बाल मज़दूर हैं।

बाल श्रम के कारण

  • बढ़ती जनसँख्या
  • ग़रीबी
  • खाद्य असुरक्षा
  • अशिक्षा
  • बेरोज़गारी
  • अनाथ
  • मौजूदा क़ानूनों का लागू न होना
  • सस्ता श्रम

बाल श्रम से उत्पन्न समस्या

बाल श्रम एक सामाजिक, आर्थिक और राष्ट्रीय समस्या है। इसके चलते -

  • बच्चे शिक्षा से दूर हो जाते हैं
  • स्वास्थ्य पर बुरा असर
  • बच्चों से दुर्व्यवहार
  • विस्थापन और असुरक्षित प्रवासन
  • यौन शोषण के लिए ग़ैर क़ानूनी ख़रीद - फ़रोख़्त (चाइल्ड पोर्नग्राफी)
  • भिक्षावृत्ति,
  • मानवअंगों का कारोबार
  • बाल अपराध
  • खेल कूद और मनोरंजन जैसे ज़रूरी गतिविधियां प्रभावित

इन सब के चलते बच्चों का शरीरिक और मानसिक विकास प्रभावित होता है जोकि बच्चों के व्यक्तित्व के विकास में मुश्किलें खड़ी करता है।

बाल श्रम के लिए संवैधानिक प्रावधान

  • संविधान ने बाल मज़दूरी पर लगाम लगाने के लिए कई क़ानून बनाए हैं।
  • अनुच्छेद 15 (3) - बच्चों के लिए अलग से क़ानून बनाने का अधिकार देता है
  • अनुच्छेद 21 - (6 -14) वर्ष के बच्चों को निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार
  • अनुच्छेद 23 - बच्चों की ख़रीद और बिक्री पर रोक लगाता है
  • अनुच्छेद 24 - 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को ख़तरनाक कामों में प्रतिबन्ध
  • अनुच्छेद 39 - नीति निर्देशक सिद्धांत के अंतर्गत आने वाला ये अनुच्छेद में बच्चों के स्वास्थ्य और उनके शारीरिक विकास के लिए ज़रूरी सुविधाएं उपलब्ध कराने का आदेश देता है।
  • अनुछेद 45 - नीति निर्देशक सिद्धांत के अंतर्गत आने वाला इस अनुच्छेद में भी 6 वर्ष से कम उम्र के बच्चों की देखभाल और शिक्षा की ज़िम्मेदारी राज्यों की है।
  • अनुच्छेद 51 A - माता पिता पर बच्चों की शिक्षा के लिए अवसर प्रदान करने का एक मौलिक कर्तव्य निर्धारित करता है

बाल अधिकारों को सुरक्षित रखने के लिए क़ानून

  • कारखाना अधिनियम 1948 - 14 साल तक की आयु वाले बच्चों को कारखाने में काम करने से रोकता है।
  • खदान अधिनियम 1952 - 18 साल से कम आयु वाले बच्चों को खदानों में काम करने पर प्रतिबन्ध लगाता है
  • अनैतिक तस्करी (बचाव) अधिनियम 1956
  • बाल श्रम अधिनियम 1986 - 14 साल से कम उम्र के बच्चों को जीवन जोखिम में डालने व्यवसायों में काम करने पर रोक लगाता है।
  • राष्ट्रीय बाल श्रम नीति 1987
  • किशोर न्याय देखभाल और संरक्षण अधिनियम 2000 - बच्चों के रोज़गार को दंडनीय
  • बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006
  • राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग 2007 - बाल अधिकारों के उल्लंघन के जुड़े मसले को सुलझाने का काम
  • निःशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009
  • लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम 2012
  • किशोर न्याय (बालकों की देखरेख और संरक्षण) अधिनियम 2015

बाल श्रम को रोकने के लिए सरकारी योजनाएं

  • बाल फिल्म सोसायटी 1955

एकीकृत बाल संरक्षण योजना (ICPS) 2009 -10

ICPS के तहत अलग - अलग बाल संरक्षण कार्यक्रम शुरू किए गए हैं। इनमें -

  1. बाल न्याय के लिए कार्यक्रम
  2. फुटपाथ पर रहने वाले बच्चों के लिए एकीकृत कार्यक्रम
  3. एक ही जगह विस्तृत नियमों और नए कार्यक्रमों सहित देश के भीतर बच्चों को गोद देने को बढ़ावा देने के लिए गृहों (शिशु गृह) को सहायता देने की योजना
  • राष्ट्रीय बाल भवन राष्ट्रीय
  • खाद्य सुरक्षा अधिनियम 2013

बाल श्रम (निषेध एवं विनियमन) संशोधन विधेयक 2016

ज़रूरत के हिसाब से 1986 के बाल मज़दूरी क़ानून में संशोधन किया गया है। बाल श्रम संशोधन बिल 2012 में राज्य सभा में पेश किया जिसे साल 2016 में लोकसभा और राज्यसभा दोनों सदनों से पारित कर दिया गया। ये संशोधन बच्चों को कुछ विशेष प्रकार के व्यवसायों में काम पर करने पर रोक लगाता है और दूसरे व्यवसायों में बच्चों के काम करने की स्थिति को नियमित करता है। बाल श्रम क़ानून 2016 में ये छूट दी गई है कि 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चे पारिवारिक व्यवसाय में काम कर सकते हैं। इसके अलावा बिल में "किशोर" शब्द के ज़रिए 14 से 18 वर्ष की आयु के बच्चों को भी परिभाषित किया गया। जहां पहले बाल श्रम अधिनियम 1986 में 83 क्षेत्रों को खतरनाक घोषित किया गया था तो संशोधन के बाद अब केवल तीन क्षेत्रों को ही ख़तरनाक बताया गया जहां किशोर बच्चे काम नहीं कर सकते। बिल में दिए गए ख़तरनाक कामों में खनन, ज्वलनशील पदार्थ और खतरनाक प्रक्रियाओं में किशोरों को काम पर रखने पर रोक है।

बाल श्रम संशोधन अधिनियम, 2017

बाल श्रम क़ानून 2016 के आते ही इसकी आलोचना की गई। आलोचना की वजहों में - ख़तरनाक व्यवसायों की संख्या को 83 से घटाकर तीन कर दिया जाना और बच्चों को पारिवारिक उद्यमों में काम करने इजाज़त देने जैसे फैसले शामिल थे। इसके बाद इस क़ानून में कुछ ज़रूरी बदलाव किए गए। बदलावों के मुताबिक़ –

  • इसके बाद इस क़ानून में कुछ ज़रूरी बदलाव किए गए। बदलावों के मुताबिक़ बच्चे अब स्कूल के बाद केवल तीन घंटे ही पारिवारिक उद्यमों में मदद कर सकेंगे।
  • बच्चे शाम 7 और सुबह 8 बजे के बीच पारिवारिक उद्यमों में मदद नहीं कर सकेंगे।
  • बच्चे या किशोरों को एक कलाकार के रूप में एक दिन में केवल 5 घंटे और बिना आराम के 3 घंटे तक काम करने की इजाज़त दी गई है।
  • किसी भी ऑडियो-विज़ुअल मीडिया निर्माता या किसी वाणिज्यिक व्यवसाय जिसमें बच्चे या किशोरों की भागीदारी हो, ऐसा करने के लिए हर 6 महीने में ज़िला मजिस्ट्रेट से मंज़ूरी लेनी होगी।
  • किसी भी बच्चे या किशोर को बिना उसकी इच्छा और सहमति के किसी भी ऑडियो विजुअल और स्पोर्ट्स जैसी गतिविधियों में भाग लेने के लिये नहीं कहा जाएगा।

राष्ट्रीय बाल श्रम परियोजना NCLP

बाल मज़दूरी से आज़ाद कराए गए बच्चों के पुनर्वास के लिए सरकार ने राष्ट्रीय बाल श्रम परियोजना लागू की थी। इस परियोजना का मक़सद बाल मज़दूरी से आज़ाद कराए गए बच्चों का विशेष स्कूलों में दाख़िला कराया जाता है। जहां उन्हें औपचारिक शिक्षा प्रणाली में डालने से पहले शिक्षा, व्यवसायिक प्रशिक्षण, पौष्टिक आहार और स्वास्थ्य जैसे महत्वपूर्ण सुविधाएँ प्रदान की जाती हैं।

बाल श्रम के लिए काम कर रहे कुछ गैर सरकारी संगठन भारत में कुछ गैर सरकारी संगठन भी बाल मज़दूरी को रोकने के लिए काम कर रहे हैं।

बाल श्रमिक की मुख्य समस्याएँ क्या हैं?

बाल श्रमिकों की समस्याएँ वे बुरी तरह अपंग हो जाते हैं, वे अच्छे रोजगार प्राप्त करने से वंचित रह जाते हैं, वे अधिक वेतन तथा अधिक दक्षता प्राप्त नहीं कर पाते और इस प्रकार सामाजिक प्रगति की किसी भी आशा का गला घोंट दिया जाता है। 'बच्चे काम के मोर्चे पर' शीर्षक के अंतर्गत आई.

बाल समस्याएं क्या है?

बालश्रम की समस्या का मूल कारण गरीबी एवं जनसंख्या वृद्धि होती है च इस दृष्टि से भारत इन दोनों समस्याओं से ग्रसित है । सभी बच्चों को अपने परिवार के सद का पेट भरने हेतु कमरतोड़ मेहनत वाले कार्यो मे झोंक दिया जाता है, जबकि उनका को शरीर और कच्ची उम्र उन कार्यो के अनुकूल नहीं होती ।

बाल श्रम का मूल कारण क्या है?

बाल मजदूरी का सबसे बड़ा कारण बच्चों का अनाथ होना है, माता-पिता के अभाव में बच्चे के पास गुजारा करने के लिए मजदूरी ही एकमात्र सहारा होती है। इसके अलावा माता-पिता का शिक्षित न होना उनके बीच असंतोष एवं लालच होना भी बाल मजदूरी का कारण है।

बाल श्रम क्या है और यह देश के लिए हानिकारक क्यों है?

भारत में बाल श्रम की स्थिति बाल श्रम से तात्पर्य बच्चों को किसी भी ऐसे कार्य में लगाना है जो उन्हें उनके बचपन से वंचित करता है। नियमित स्कूल जाने की उनकी क्षमता में हस्तक्षेप करता है, और यह मानसिक, शारीरिक, सामाजिक या नैतिक रूप से खतरनाक और हानिकारक है