प्रश्न 2: “पानी परात को हाथ छुयो नहिं, नैनन के जल सों पग धोंए।“ पंक्ति में वर्णित भाव का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर: इस पंक्ति में श्रीकृष्ण और सुदामा के मिलन के समय कृष्ण की भावुकता का वर्णन किया गया है। एक लंबे अरसे के बाद कृष्ण और सुदामा एक दूसरे से मिल रहे थे। कृष्ण को अपने मित्र से मिलने की खुशी थी तो साथ में अपने मित्र की दुर्दशा देखकर रोना भी आ रहा था। कृष्ण की आँखों से खुशी के आँसू और दुख के आँसू दोनों ही बह रहे थे। कवि ने यहाँ पर अतिशयोक्ति का प्रयोग भी किया है। कवि का कहना है कि कृष्ण की आँखों से इतने आँसू निकले कि सुदामा के पाँव पखारने के लिए परात में रखे पानी को छूना भी नहीं पड़ा।
प्रश्न 3: “चोरी की बान में हौ जू प्रवीने।“
(a) उपर्युक्त पंक्ति कौन, किससे कह रहा है?
उत्तर: कृष्ण सुदामा को संबोधित कर रहे हैं।
(b) इस कथन की पृष्ठभूमि स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: सुदामा अपने साथ भेंट के रूप में कृष्ण के लिए चिवड़ा लेकर आये हैं। लेकिन अपनी गरीबी के बोझ तले शर्माकर सुदामा चिवड़े की पोटली को अपनी बगल में छुपाने की कोशिश कर रहे हैं। इसी बात पर कृष्ण अपनी प्रतिक्रिया दे रहे हैं।
(c) इस उपालंभ (शिकायत) के पीछे कौन-सी पौराणिक कथा है?
उत्तर: बचपन में जब कृष्ण और सुदामा की गुरुमाता उन्हें खाने के लिए चने दिया करती थीं तो सुदामा छुपाकर सारे के सारे चने चट कर जाते थे। इसलिए कृष्ण उनसे कहते हैं कि वे चोरी की कला में तो बचपन से माहिर हैं।
प्रश्न 4: द्वारका से खाली हाथ लौटते समय सुदामा मार्ग में क्या-क्या सोचते जा रहे थे? वह कृष्ण के व्यवहार से क्यों खीझ रहे थे? सुदामा के मन की दुविधा को अपने शब्दों में प्रकट कीजिए।
उत्तर: सुदामा बड़ी उम्मीद से कृष्ण से मिलने गये थे लेकिन कृष्ण ने उन्हें खाली हाथ ही लौटा दिया। सुदामा की समझ में नहीं आ रहा था कि कृष्ण ने उनका स्वागत तो बड़े प्यार से किया था फिर खाली हाथ क्यों लौटा दिया। कृष्ण की लीला सामान्य मनुष्य की समझ से परे है। सुदामा अपने हिसाब से तर्क निकालने की कोशिश करते हैं। उन्हें लगता है कि जो व्यक्ति बचपन में थोड़े से मक्खन के लिए घर घर भटक सकता है उससे कुछ उम्मीद करना ही बेकार है।
प्रश्न 5: अपने गाँव लौटकर जब सुदामा अपनी झोंपड़ी नहीं खोज पाए तब उनके मन में क्या-क्या विचार आये? कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: जब सुदामा अपने गाँव पहुँचे तो वहाँ का दृश्य पूरी तरह से बदल चुका था। अपने सामने आलीशान महल, हाथी घोड़े, बाजे गाजे, आदि देखकर सुदामा को लगा कि वे रास्ता भूलकर फिर से द्वारका पहुँच गये हैं। थोड़ा ध्यान से देखने पर सुदामा को समझ में आया कि वे अपने गाँव में ही हैं। वे लोगों से पूछ रहे थे लेकिन अपनी झोपड़ी को खोज नहीं पा रहे थे
प्रश्न 6: निर्धनता के बाद मिलनेवाली संपन्नता का चित्रण कविता की अंतिम पंक्तियों में वर्णित है। उसे अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर: सुदामा सोचने लगे कि कमाल हो गया। जहाँ सर के ऊपर छत नहीं थी वहाँ अब सोने का महल शोभा दे रहा है। जिसके पैरों में जूते नहीं हुआ करते थे उसके आगे हाथी लिये हुए महावत खड़ा है। जिसे कठोर जमीन पर सोना पड़ता था उसके लिए फूलों से कोमल सेज सजा है। प्रभु की लीला अपरंपार है।
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NCERT Solutions for Class 8 Hindi Vasant Chapter 12 सुदामा चरित are part of NCERT Solutions for Class 8 Hindi. Here we have given NCERT Solutions for Class 8 Hindi Vasant Chapter 12 सुदामा चरित. प्रश्न-अभ्यास कविता से प्रश्न 1. सुदामा की दीनदेशा देखकर श्रीकृष्ण की क्या मनोदशा हुई? अपने शब्दों में लिखिए प्रश्न 2. “पानी परात को हाथ छयो नहिं, नैनन के जल सों पग धोए।” पंक्ति में वर्णित भाव का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए प्रश्न 3. चोरी की बान में हो जु प्रवीने।”Board
CBSE
Textbook
NCERT
Class
Class 8
Subject
Hindi Vasant
Chapter
Chapter 12
Chapter Name
सुदामा चरित
Number of Questions Solved
14
Category
NCERT Solutions
(पाठ्यपुस्तक से)
उत्तर :
सुदामा श्रीकृष्ण के गुरुभाई (सहपाठी) तथा बचपन के घनिष्ठ मित्र थेकालांतर में कृष्ण द्वारका के राजा बन गएअपने बचपन के मित्र को ऐसी दयनीय दशा में देखकर उनका मन करुणा से भर गया सुदामा के काँटों तथा बिवाइयाँ
युक्त पैर देखकर कृष्ण बहुत दुखी हुए तथा वे रो पड़े
उत्तर :
इस पंक्ति में निहित भाव यह है कि कृष्ण अपने बचपन के मित्र की ऐसी दीन-हीन दशा देखकर बहुत दुखी हुएवे स्वयं राजा थे और उनका मित्र घोर गरीबी में जीवन जी रहा था कृष्ण एक सच्चे मित्र की तरह बहुत दुखी हुए और रो पड़ेउन्होंने उनके पैर धोने के लिए परात में पानी को छुआ तक नहीं और आँसुओं
से ही पैर धो दिए
(क) उपर्युक्त पंक्ति कौन, किससे कह रहा है?
(ख) इस कथन की पृष्ठभूमि स्पष्ट कीजिए
(ग) इस उपालंभ (उलाहना) के पीछे कौन-सी पौराणिक कथा है?
उत्तर :
(क) ‘चोरी की बान में हौ जू प्रवीने’-यह श्रीकृष्ण अपने मित्र सुदामा से कह रहे हैं
(ख) पत्नी के बार-बार बलपूर्वक कहने के बाद सुदामा अपने मित्र के पास कुछ मदद पाने की आशा से गएजाते समय उनकी पत्नी ने थोड़े
से चावल कृष्ण को देने के लिए दिएश्रीकृष्ण का राजसी ठाट-बाट देखकर सुदामा वह चावल देने की हिम्मत नहीं कर पा रहे थेवे उस चावल की पोटली को छिपाने का प्रयास कर रहे थे, तब कृष्ण ने उनसे कहा कि चोरी की आदत में आप बहुत चतुर हो
(ग) बचपन में श्रीकृष्ण और सुदामा ऋषि संदीपनि के आश्रम में शिक्षा प्राप्त किया करते थेउस समय गुरुकुल में शिक्षा ग्रहण करने के साथ विद्यार्थियों को ही सारे काम अपने हाथों से करने पड़ते थेजैसे-गायों का देखभाल करना, भिक्षाटन करना, आश्रम की सफाई, लकड़ियाँ लाना,
गुरु की सेवा आदिएक दिन जब आश्रम में खाना बनाने की लकड़ियाँ खत्म हो गईं तो गुरुमातु ने श्रीकृष्ण और सुदामा को लकड़ियाँ लाने जंगल में भेज दिया और रास्ते में खाने के लिए कुछ चने भी दे दिएसंयोग की बात जब कृष्ण पेड़ पर लकड़ियाँ तोड़ रहे थे और सुदामा उन्हें नीचे इकट्ठी कर रहे थे तभी जोरदार वर्षा शुरू हो गईहवा चलने लगीकृष्ण पेड़ की डाल पर ऊपर ही बैठ गएऐसे में सुदामा गुरुमातु द्वारा दिए गए चने निकालकर चबाने लगेचने की आवाज सुनकर कृष्ण ने उनसे पूछा, “सुदामा क्या खा रहे हो”? सुदामा ने उत्तर दिया ‘‘कुछ भी
नहीं खा रहा हूँसर्दी के कारण मेरे दाँत किटकिटा रहे हैं।” इस तरह सुदामा से चोरी करके श्रीकृष्ण ने चने खाए थेउसी घटना को याद करके श्रीकृष्ण ने उक्त पंक्ति कही थी
प्रश्न 4. द्वारका से खाली हाथ लौटते समय सुदामा मार्ग में क्या-क्या सोचते जा रहे थे? वह कृष्ण के व्यवहार से क्यों खीझ रहे थे? सुदामा के मन की दुविधा को अपने शब्दों में प्रकट कीजिए
उत्तर :
द्वारका से लौटते समय सुदामा को श्रीकृष्ण ने प्रत्यक्ष रूप में कुछ नहीं दियावहाँ से लौटते समय सुदामा सोच
रहे थे कि कृष्ण ने उनके पहुँचने पर खूब आदर-सत्कार कियाखूब प्रसन्नता प्रकट की पर आते समय उनकी जाति का भी ख्याल न कियावे सोच रहे थे कि यह है तो वही कृष्ण जो घर-घर दही की चोरी किया करता थायह किसी को क्या देगाघर चलकर अपनी पत्नी से कहेंगे कि कृष्ण ने जो इतना सारा धन दिया है, उसे सँभालकर रख लेउसी ने उन्हें उसके पास (द्वारका) बलपूर्वक भेजा थासुदामा कृष्ण की महिमा से अनजान थे, इसलिए कृष्ण के व्यवहार से खीझ रहे थे
सुदामा के मन की दुविधा यह थी कि खूब मान-सम्मान तथा आदर-सत्कार करने वाले श्रीकृष्ण ने उन्हें कुछ दिया क्यों नहींइसके अलावा द्वारका आकर अपने चावल खोकर भी न कुछ पाने की दुविधा सता रही थी
प्रश्न 5. अपने गाँव लौटकर जब सुदामा अपनी झोंपड़ी नहीं खोज पाए तब उनके मन में क्या-क्या विचार आए? कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए
उत्तर :
अपने गाँव लौटकर जब सुदामा अपनी झोंपड़ी को न खोज पाए तो तब उनके मन में विचार आया कि कहीं वे अपना रास्ता भूलकर द्वारका वापस तो नहीं आ गए हैं या उनके मन-मस्तिष्क पर द्वारका के राजभवनों का भ्रम तो नहीं छा गया है जो टने का
नाम नहीं ले रहा है
प्रश्न 6. निर्धनता के बाद मिलनेवाली संपन्नता का चित्रण कविता की अंतिम पंक्तियों में वर्णित हैउसे अपने शब्दों में लिखिए
उत्तर :
प्रभु की कृपा से सुदामा की विपन्नता, इस तरह संपन्नता में बदली कि स्वयं
सुदामा भी इससे चकित रह गएजिस जगह पर उनकी झोंपड़ी थी, वहाँ तथा आस-पास द्वारका के समान राजमहल नजर आ रहे थेजिस सुदामा के पैर में कभी जूते नहीं होते थे, उनके आने-जाने के लिए महावत, गजराज (उत्तम कोटि का हाथी) लिए खड़ा था घोर गरीबी में
सुदामा को कठोर जमीन पर रात बितानी पड़ती थी पर अब कोमल और मखमली बिस्तरों पर भी नींद नहीं आती थीगरीबी के दिनों में सुदामा को कोदो-सवाँ जैसे घटिया अनाज भी नहीं मिल पाता था, उन्हीं सुदामा को प्रभु की कृपा से अत्यंत स्वादिष्ट व्यंजन तथा अंगूर (सूखे मेवे) भी अच्छे नहीं लगते थेइस तरह उनकी जिंदगी में
विपन्नता के लिए कोई स्थान न बचा था
कविता से आगे
प्रश्न 1. द्रुपद और द्रोणाचार्य भी सहपाठी थे, इनकी मित्रता और शत्रुता की कथा महाभारत से खोजकर सुदामा के
कथानक से तुलना कीजिए
उत्तर :
श्री कृष्ण और सुदामा बचपन में ऋषि संदीपनि के गुरुकुल में साथ-साथ शिक्षा ग्रहण करते थेये दोनों ही घनिष्ठ मित्र थेइसी तरह द्रुपद और द्रोण भी महर्षि भारद्वाज के आश्रम में साथ-साथ शिक्षा करते थेद्रुपद राजा के पुत्र थे तो द्रोण महर्षि भारद्वाज केये दोनों भी घनिष्ठ मित्र थेद्रुपद द्रोण से अकसर कहा करते थे कि जब मैं राजा बन जाऊँगा तो तुम्हें अपना आधा राज्य दे दूंगा और हम दोनों ही सुखी रहेंगेसमय बीतने के साथ द्रुपद राजा बने और द्रोण अत्यधिक गरीब हो
गएवे द्रुपद के पास कुछ सहायता पाने के उद्देश्य से गएद्रुपद ने द्रोण को अपनी मित्रता के लायक भी न समझा और उन्हें अपमानित कर भगा दियाद्रोण ने पांडवों तथा कौरवों को धनुर्विद्या सिखानी शुरू कीउन्होंने अर्जुन से गुरु-दक्षिणा में द्रुपद को बंदी बनाकर लाने को कहाअर्जुन ने ऐसा ही कियाद्रोण ने उनके द्वारा किए गए अपमान की याद दिलाते हुए द्रुपद को मुक्त तो कर दिया पर अपमानित द्रुपद द्रोण की जान के प्यासे बन गएद्रुपद स्वयं यह काम नहीं कर सकते थेउन्होंने तपस्या करके एक वीर पुत्र तथा एक पुत्री की कामना
कीद्रुपद की इसी पुत्री द्रौपदी का विवाह अर्जुन के साथ हुआ जिन्होंने महाभारत के युद्ध में द्रोण का वध किया।
सुदामा कथानक से तुलना-कृष्ण और सुदामा की मित्रता सच्चे अर्थों में आदर्श थीवहीं द्रोण तथा द्रुपद की मित्रता एकदम ही इसके विपरीत थीकृष्ण ने सुदामा की परोक्ष मदद करके अपने जैसा ही बना दिया, वहीं द्रुपद और द्रोण ने मित्रता को कलंकित किया तथा एक-दूसरे की जान के प्यासे बन
गएवे एक-दूसरे को अपमानित करते रहे और जान लेकर ही शांति पा सके
प्रश्न 2. उच्च पद पर पहुँचकर या
अधिक समृद्ध होकर व्यक्ति अपने निर्धन माता पिता-भाई-बंधुओं से नजर फेरने लग जाता है, ऐसे लोगों के लिए सुदामा चरित कैसी चुनौती खड़ी करता है? लिखिए?
उत्तर :
इसमें कोई संदेह नहीं कि समाज में लोगों की मानसिकता में काफी बदलाव आया हैआजकल उच्च पद पर पहुँचकर या समृद्ध होकर व्यक्ति अपने निर्धन माता-पिता, भाई-बंधुओं से नजर फेर लेता हैऐसे लोगों के लिए ‘सुदामा चरित’ बहुत बड़ी चुनौती खड़ा करता हैकिसी व्यक्ति को धनदौलत, पद-प्रतिष्ठा आदि के मद में अपने निर्धन माता-पिता को नहीं भूलना
चाहिए, क्योंकि उन्होंने ही हमें जन्म दिया हैअनेक दुख-सुख सहकर हमारा पालन-पोषण किया हैउन्होंने हमारी शिक्षा-दीक्षा का प्रबंध कर उच्च पद पर पहुँचने लायक बनाया हैवे समय-समय पर मदद एवं अच्छी राय देकर हमारी सहायता करते हैंयदि उच्च पद पर पहुँचकर हम उन्हें भूलने जैसी कोई बात करते हैं तो यह व्यक्ति की कृतघ्नता कही जाएगीहमें तो ऐसे में (उच्च पद प्राप्त करके) निर्धन माता-पिता तथा अपने बंधुओं की मदद उसी प्रकार करनी चाहिए जैसे कृष्ण ने सुदामा की थीउनकी मदद कर हमें अपनी पारिवारिक तथा सामाजिक जिम्मेदारियों का
पूर्ण रूप से निर्वहन करना चाहिए।
अनुमान और कल्पना
प्रश्न 1. अनुमान कीजिए यदि आपका कोई अभिन्न मित्र आपसे बहुत वर्षों बाद मिलने आए तो आप को कैसा अनुभव होगा?
उत्तर :
यदि मेरा कोई मित्र बहुत दिनों बाद मुझसे मिलने आए तो मैं आत्मीयतापूर्वक
उससे मिलूंगामुझे उससे मिलकर बड़ी खुशी होगीवह जब तक मेरे पास रहेगा, मैं उसका खूब आदर-सत्कार करूंगायदि उसे मेरी मदद की जरूरत है तो मैं उसे पूरा करने का हर संभव प्रयास करूंगा तथा उसे प्रेमपूर्वक
विदा कर भविष्य में आते रहने के लिए कहूँगा
प्रश्न 2. केहि रहीम संपति सगे, बनत बहुत बहु रीति
विपति कसौटी जे कसे तेई साँचे मीत।
इस दोहे में रहीम ने सच्चे मित्र की पहचान बताई हैइस दोहे से सुदामा चरित की समानता किस प्रकार दिखती है? लिखिए
उत्तर :
इस दोहे के माध्यम से कवि रहीम कहते हैं कि जब तक किसी भी व्यक्ति के पास संपत्ति होती है, धन-दौलते रहती है, तब तक अनेक लोग अनेक तरीके से उसके अपने बन जाते हैं; जैसे-मैं तुम्हारे उन दूर के रिश्तेदार का
रिश्तेदार हूँ यो तुम्हारे परिवार से मेरा संबंध तो बहुत पुराना है आदि-आदिऐसे लोग सच्चे मित्र नहीं होते हैंविपत्ति अर्थात धन न रहने पर जो व्यक्ति मेरा साथ देता है वही मेरा सच्चा मित्र होता है
इस दोहे की तुलना यदि हम ‘सुदामा चरित’ से करते हैं तो इन दोनों में काफी समानता मिलती है‘सुदामा चरित’ के अनुसार द्वारकाधीश कृष्ण अपने विपन्न मित्र को देखकर हर्षित हो जाते हैंवे उनका खूब आदर-सत्कार करते हैं तथा बिदाई के समय प्रत्यक्ष रूप में कुछ नहीं देते है किंतु परोक्ष में इतना दे देते हैं कि उन्हें भी अपने समान बना देते हैंइस प्रकार सुदामा चरित’ में भी विपत्ति के समय मित्र की सहायता करने का संदेश दिया गया हैइसमें भी निहित मूलभाव भी उक्त दोहे जैसा ही है कि मुसीबत के समय जो सच्ची भावना से सहायता करे वही हमारा सच्चा मित्र हैश्रीकृष्ण ने सुदामा की अप्रत्यक्ष सहायता कर सुदामा में हीनता की भावना या छोटे होने का भाव पैदा होने ही नहीं दिया।
भाषा की बात
प्रश्न 1. “पानी परात को हाथ छुयो नहिं, नैनन के जल सो पग धोए”
ऊपर लिखी गई पंक्ति को ध्यान से
पढ़िएइसमें बात को बहुत अधिक बढ़ाचढ़ाकर चित्रित किया गया हैजब किसी बात को इतना बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत किया जाता है तो वहाँ पर अतिशयोक्ति अलंकार होता हैआप भी कविता में से एक अतिशयोक्ति अलंकार का उदाहरण छाँटिए
उत्तर :
अतिशयोक्ति अलंकार के उदाहरण (कविता में से)।
(क) ऐसे बेहाल बिवाइन सों, पग कंटक जाल लगे पुनि जोए
(ख) वैसोई राज–समाज बने, गज बाजि घने मन संभ्रम छायो।
(ग) कै वह टूटी-सी छानी हती, कहँ कंचन के अब धाम
सुहावत
कुछ करने को
प्रश्न 1. इस कविता को एकांकी में बदलिए और उसका अभिनय कीजिए
उत्तर :
‘सुदामा चरित’ नामक कविता का एकांकी में रूपांतरण
[द्वारकापुरी, धन-धान्य, वैभव, समृधि एवं खुशहाली से भरी नगरी, वहाँ बने आलीशान एवं भव्य राजप्रासाद चारों ओर प्रसन्नता एवं शांतिमय वातावरण इन्हीं प्रासादों के बीच स्थित द्वारिकाधीश श्रीकृष्ण का भवन भवन के बाहर खड़े पहरेदार और द्वारपालऐसे में दीन-हीन सुदामा श्रीकृष्ण के भवन के सामने पहुँचते
हैंउनके सिर पर न पगड़ी है और न शरीर पर कुर्ताधोती जगह-जगह से फटी तथा धूल-धूसरित पैर लिए वे द्वारपाल के पास जाते हैं।]
सुदामा – (द्वारपाल से पूछते हुए) अरे भाई द्वारपाल, क्या तुम बता सकते हो कि दुद्वारका के राजा श्रीकृष्ण का राजभवन यहाँ कौन-सा है?
द्वारपाल – क्या नाम है तुम्हारा? कहाँ से आए हो?
सुदामा – सुदामा बहुत दूर गाँव से आया हूँ, पर तुमने उनका भवन तो बताया नहीं
द्वारपाल – द्वारकाधीश प्रभु श्रीकृष्ण का भवन
तो यही है
सुदामा – अपने प्रभु श्रीकृष्ण से कह दो कि उनसे मिलने सुदामा आया है।
द्वारपाल – तुम यहीं ठहरो। मैं अंदर जाकर सूचना देता हूँ। और हाँ, अंदर मत आना, मेरे आने तक। [द्वारपाल कृष्ण के पास चला जाता है।]
द्वारपाल – महाराज की जय हो। प्रभु आपसे मिलने कोई आया है।
श्रीकृष्ण – कहाँ है वह व्यक्ति? कैसा है तथा क्या नाम है उसका?
द्वारपाल – प्रभु वह दरवाजे के बाहर खड़ा है। उसके सिर पर न पगड़ी है और न
शरीर पर कुर्ता। पैरों में जूते नहीं हैं? वह दुर्बल ब्राह्मण अपना नाम सुदामा बता रहा है। [सुदामा नाम सुनते ही कृष्ण राज सिंहासन छोड़कर आते हैं। और सुदामा को महल के अंदर ले जाते हैं। उन्हें सिंहासन पर बिठाकर उनके पैर धोने के लिए पानी मँगवाते हैं और सुदामा के पैर धोना चाहते हैं।]
श्रीकृष्ण – मित्र सुदामा तुम इतनी गरीबी सहकर कष्ट भोगते रहे पर तुम पहले ही यहाँ क्यों नहीं आ गए? [सुदामा संकोच वश कोई जवाब नहीं देते हैं। वे अपनी पत्नी द्वारा भेजे गए चावलों की पोटली को काँख के
नीचे छिपाने का प्रयास करते हैं, जिसे कृष्ण देख लेते हैं।]
श्रीकृष्ण – मित्र तुम मुझसे कुछ छिपाने की कोशिश कर रहे हो। [कृष्ण वह पोटली छीन लेते हैं।] अरे! तुम भाभी के भेजे चावल मुझसे छिपा रहे थे। मित्र चोरी की आदत में तो तुम पहले से ही बड़े कुशल हो। [ऐसा कहकर श्रीकृष्ण उसमें से कुछ चावल खा लेते हैं। सुदामा उनके यहाँ कुछ दिन बिताकर अपने गाँव वापस विदा होते हैं। श्रीकृष्ण उन्हें प्रत्यक्ष में कुछ नहीं देते हैं जिससे सुदामा श्रीकृष्ण पर खीझते हुए वापस आते हैं।]
सुदामा – [अपने-आप से] कृष्ण तो दिखावे के लिए कितना आदर
सत्कार करता रहा पर आते समय कुछ भी नहीं दिया। यह भी नहीं सोचा कि ब्राह्मण को खाली हाथ विदा नहीं करते हैं। अरे, यह वही कृष्ण है जो जरा-सी दही के लिए हाथ फैलाए फिरता था। यह मुझे क्या देगा। अब अपनी पत्नी से चलकर कहूँगा कि खूब सारा धन सँभालकर रख लो। मैं तो इसीलिएआना ही नहीं चाहता था। [यही सोचते सुदामा अपने गाँव पहुँच जाते हैं।]
सुदामा – अरे यहाँ तो सारे भवन तथा सब कुछ द्वारका जैसा ही है। कहीं मैं रास्ता
भूलकर वापस पुन: द्वारका तो नहीं आ गया। मैं तौ भ्रमित हो गया हूँ।
सुदामा – [गाँव के एक व्यक्ति से] क्या तुम बता सकते हो कि यहीं सुदामा नामक गरीब ब्राह्मण की झोंपड़ी हुआ करती थी, वह कहाँ है?
कोई व्यक्ति – अरे तुम सुदामा के राजमहल के सामने ही तो खड़े हो। उनकी झोंपड़ी की जगह यह राजमहल बन गया है। (इशारा करते हुए) वह देखो अंदर। उनकी पत्नी रानियों के परिधान में खड़ी हैं।
सुदामा – [अपनी-पत्नी को पहचानते हैं और अंदर जाते हैं।] अपने मित्र की
महिमा से मैं कितना अंजान था। अब सब समझ गया।
छात्र एकांकी का अभिनय स्वयं करें।
प्रश्न 2. कविता के उचित सस्वर वाचन का अभ्यास कीजिए।
उत्तर :
छात्र कविता का सस्वर वाचन स्वयं करें।
प्रश्न 3. ‘मित्रता संबंधी दोहों का संकलन कीजिए।
उत्तर :
मित्रता संबंधी दोहे
(क)
आपतिकाल परखिए चारी। धीरज धरम मित्र अरु नारी ॥
जे न मित्र दुख होइ दुखारी। तिनहि बिलोकत पातक भारी॥
[तुलसीदास]
(ख)
कह रहीम संपत्ति सगे, बनत बहुत बहु रीत।
विपत्ति कसौटी जे कसे, तेई साँचे मीत। [रहीम]
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