आंखें मानव शरीर का बेहद अहम हिस्सा है, क्योंकि इन्हीं के जरिए हम इस खूबसूरत दुनिया को देख पाते हैं। इसलिए आंखों का ख्याल रखना और भी जरूरी हो जाता है। जानिए आंखों की इन 5 समस्याओं का रामबाण उपचार -
1. नींद पूरी न होने, आंखों में अवांछित कणों के जाने या फिर अधिक थकान होने पर आंखों में लालिमा आ जाती है। इसके लिए आंवले के पानी से आंखें धोने से या गुलाबजल डालने से लाभ होता है।2. आंखों पर चोट लगने, जलने, मिर्च मसाला या कीट के आंख में जाने पर आंख लाल हो, तो दूध गर्म करके उसमें रूई का फुआ डालकर ठंडा करके आंखों पर रखने से लाभ होता है।
आंखें लाल होना एक बहुत ही आम समस्या है, अधिकतर लोगों को जीवन में कभी न कभी इस समस्या का सामना करना पड़ता है। इसके कईं कारण हैं, जो मामूली से लेकर गंभीर हो सकते हैं।
अधिकतर मामलों में साफ-सफाई और स्वस्थ्य जीवनशैली अपनाकर इस समस्या से बचा जा सकता है।
लेकिन अगर यह समस्या कईं दिनों तक बनी रहे तो उपचार कराना जरूरी हो जाता है, नहीं तो आंखों को स्थायी रूप से नुकसान पहुंच सकता है।
आंखों का लाल होना
आंखों के लाल होने की समस्या को रेड आई या ब्लड शॉट्स आईस भी कहते हैं, इसमें आंख का सफेद भाग लाल हो जाता है। यह तब होता है जब आंख के सफेद भाग की महीन रक्त नलिकाएं फैल जाती हैं और उनमें सूजन आ जाती है।
आंखों में किसी बाहरी पदार्थ के चले जाने या कोई संक्रमण होने से आंखें लाल हो जाती हैं, यह समस्या एक या दोनों आंखों में हो सकती है। इसमें आंखें लाल होने के अलावा जलन, चुभन, खुजली चलना, ड्रायनेस, दर्द होना, आंखों से पानी आना, प्रकाश के प्रति संवेदनशीलता और नज़रे धुंधली होना जैसे लक्षण भी दिखाई दे सकते हैं।
कुछ मामलों में केवल आंखें लाल हो जाती हैं और कोई दूसरे लक्षण नहीं दिखाई देते हैं।
क्या हैं कारण?
यह आंखों के सफेद भाग की महीन रक्त वाहिकाओं के फैलने के कारण हो सकता है। ये महीन रक्त नलिकाएं, जिसमें से अधिकतर दिखाई नहीं देती हैं, सूज जाती हैं। इसके निम्न कारण हो सकते हैं;
- एलर्जी।
- आंखों की थकान।
- वायु प्रदूषण।
- धूल-मिट्टी।
- रसायनों का अत्यधिक एक्सपोज़र।
- सूरज के प्रकाश का अत्यधिक एक्सपोज़र
- लंबे समय तक कांटेक्ट लेंस लगाए रखना।
- आंखों का संक्रमण जैसे कंजक्टिवाइटिस।
- आंखों की गंभीर समस्याएं जैसे ग्लुकोमा।
- आंखों में चोट लग जाना।
- कार्नियल अल्सर।
- हाल में हुई आंखों की सर्जरी जैसे लेसिक, कॉस्मेटिक सर्जरी आदि।
अस्वस्थ्य जीवनशैली के कारण भी यह समस्या हो सकती है जैसे अत्यधिक धुम्रपान या शराब का सेवन, गैजेट्स का अधिक इस्तेमाल और नींद की कमी।
तो डॉक्टर से संपर्क करें
अधिकतर मामलों में डॉक्टर को दिखाने की जरूरत नहीं पड़ती है, लेकिन अगर निम्न लक्षण दिखाई दें तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें;
- लालपन की समस्या एक सप्ताह से अधिक समय तक रहे।
- प्रकाश के प्रति अति-संवेदनशीलता विकसित हो जाए।
- एक या दोनों आंखों से डिस्चार्ज निकलने लगे।
- धुंधला दिखाई दे।
- आंखों में तेज दर्द होना।
उपचार
डायग्नोसिस के बाद ही पता चलेगा कि आंखों के लाल होने के कारण क्या है। इसके आधार पर ही उपचार के विकल्प चुनें जाते हैं। डॉक्टर के पास जाने से पहले आप कुछ घरेलु उपाय भी कर सकते हैं:
वार्म कम्प्रेस
एक टॉवेल को कुनकुने पानी में भिगोएं और उसे निचोड़ लें। आंखे काफी संवेदनशील होती हैं, इसलिए तापमान सामान्य रखें। 10-15 मिनिट के लिए टॉवेल को अपनी आंखों पर रखें। गर्मी से रक्त का संचार चालू हो जाएगा। इससे सूजन और खुजली से आपको आराम मिलेगा।
कूल कम्प्रेस
अगर वार्म कम्प्रेस से समस्या दूर नहीं हो रही तो आप कूल कम्प्रेस को आजमा सकते हैं। ठंडे पानी में टॉवेल को डुबोएं और निचोड़ लें। ध्यान रखें, पानी अधिक ठंडा न हो, नहीं तो समस्या कम होने की बजाय बढ़ जाएगी। इससे थोड़े समय के लिए लक्षणों में आराम मिल जाएगा।
आर्टिफिशियल टियर्स
ये आंखों को ल्युब्रिकेट करते हैं और इन्हें साफ रखने में सहायता करते हैं। लेकिन इनका इस्तेमाल डॉक्टर से पूछकर ही करें। अगर इसे ठंडे रूप में इस्तेमाल करने के लिए कहा जाए तो इसे फ्रिज में रखकर इस्तेमाल करें।
कांटेक्ट लेंसों के इस्तेमाल से बचें
अगर आप लंबे समय से आंखे लाल होने की समस्या से जूझ रहे हैं और कांटेक्ट लेंस लगाते हैं तो इनके इस्तेमाल करना बंद कर दें। किसी अच्छे नेत्र रोग विशेषज्ञ को दिखाने के बाद ही इनका इस्तेमाल दोबारा शुरू करें।
दवाईयां
अगर एलर्जी के कारण यह समस्या हो रही है तो एंटीहिस्टामिन या कार्टिसोन आई ड्रॉप्स और आई जेल दिया जाएगा। बैक्टीरिया का संक्रमण (कंजक्टिवाइटिस) होने पर एंटीबायोटिक्स दिए जाएंगे। सूजन को कम करने के लिए डॉक्टर स्टेरॉइड प्रिस्कराइब कर सकता है।
आंखें, हमारे शरीर के महत्वपूर्ण अंगों में से एक हैं। ये बहुत नाजुक होती हैं, इसलिए उनकी पूरी देखभाल करें, थोड़ी सी भी परेशानी हो तो उसे नज़रअंदाज़ न करें। अगर आंखों से संबंधित समस्याओं को आप लंबे समय तक नज़रअंदाज़ करेंगे तो दृष्टि प्रभावित हो सकती है या हमेशा के लिए आंखों की रोशनी छिन सकती है।
गैजेट्स के बढ़ते चलन ने आंखों के स्वास्थ को लेकर खतरा बढ़ा दिया है, ऐसे में डिजिटल आई स्ट्रेन आंखों की एक बड़ी समस्या बनकर उभर रहा है।
तो जानिए कि आंखों से संबंधित सामान्य समस्याएं कौन-कौनसी हैं, इन्हें स्वस्थ रखने के लिए कौन-कौनसे जरूरी उपाय किए जाएं और गैजेट्स का इस्तेमाल करते समय कौन-कौनसी सावधानियां रखना जरूरी हैं।
आंखों से संबंधित सामान्य समस्याएं
आंखों से संबंधित कईं समस्याएं होती हैं, जिनमें से कुछ बहुत मामूली होती हैं तो कुछ बहुत गंभीर। लेकिन आंखें बहुत संवेदनशील होती हैं, इसलिए समस्या मामूली भी हो तो खुद से आंखों का इलाज न करें, डॉक्टर से संपर्क करें।
ड्राय आई सिंड्रोम
गैजेट्स के बढ़ते प्रचलन से ड्राई आई सिंड्रोम की समस्याएं बढ़ती ही जा रही है। इसमें या तो आंखों में आंसू कम बनने लगते हैं या उनकी गुणवत्ता अच्छी नहीं रहती। आंसू, आंखों के कार्निया एंव कन्जंक्टाइवा को नम एंव गीला रख उसे सूखने से बचाते हैं।
आंखों में जलन, चुभन महसूस होना, सूखा लगना, खुजली होना, भारीपन, आंख की कन्जक्टाइवा का सूखना, आंखों में लाली तथा उन्हें कुछ देर खुली रखने में दिक्कत महसूस होना इस सिंड्रोम के मुख्य लक्षण हैं।
मोतियाबिंद
हमारी आंखों के लेंस लाइट या इमेज को रेटिना पर फोकस करने में सहायता करते हैं। जब लेंस क्लाउडी हो जाता है तो लाइट लेंसों से स्पष्ट रूप से गुजर नहीं पाती जिससे जो इमेज आप देखते हैं वो धुंधली हो जाती है, इस कारण दृष्टि के बाधित होने को मोतियाबिंद या सफेद मोतिया कहते हैं।
नजर धुंधली होने के कारण मोतियाबिंद से पीड़ित लोगों को पढ़ने, नजर का काम करने, कार चलाने (विशेषकर रात के समय) में समस्या आती है।
अधिकतर मोतियाबिंद धीरे-धीरे विकसित होते हैं और शुरूआत में दृष्टि प्रभावित नहीं होती है, लेकिन समय के साथ यह आपकी देखने की क्षमता को प्रभावित करता है। इसके कारण व्यक्ति को अपनी प्रतिदिन की सामान्य गतिविधियों को करना भी मुश्किल हो जाता है।
एज़ रिलेटेड मैक्युलर डिजनरेशन (एएमडी)
विश्वभर में पचास वर्ष से अधिक उम्र के लोगों में एज-रिलेटेड मैक्युलर डिजनरेशन (एएमडी) दृष्टिहीनता का सबसे प्रमुख कारण है। बढ़ती उम्र इसका सबसे बड़ा रिस्क फैक्टर माना जाता है, इसके अलावा अनुवांशिक और पर्यावर्णीय कारक तथा धुम्रपान इसका खतरा बढ़ा देते हैं।
एएमडी सीधे मैक्युला को प्रभावित करता है, मैक्युला, रेटिना में एक छोटा सा क्षेत्र होता है, जो मानव नेत्र के सेंट्रल विज़न (केंद्रीय दृष्टि) के लिए जिम्मेदार होता है। इसके कारण आंखों का पैनापन और केंद्रीय दृष्टि प्रभावित होती है जो चीजों को स्पष्ट रूप से देखने के लिए जरूरी होती है।
कंप्यूटर विज़न सिंड्रोम
कंप्यूटर और लैपटॉप के बढ़ते इस्तेमाल के कारण ड्राय आईस ही नहीं कंप्यूटर विज़न सिंड्रोम के मामले भी लगातार बढ़ रहे हैं।
एक तो कंप्यूटर से हमारी आंखों की दूरी कम रहती है, दूसरा इस दौरान हमारी आंखों की मूवमेंट कम होती है।
आंखों और सिर में भारीपन, धुंधला दिखना, जलन होना, पानी आना, खुजली होना, आंख का सूखा रहना (ड्राई आई), पास की चीजें देखनें में दिक्कत होना, एक वस्तु का दो दिखाई देना, अत्यधिक थकान होना, गर्दन, कंधों एंव कमर में दर्द होना कम्प्यूटर विजन सिंड्रोम के कुछ सामान्य लक्षण हैं।
काला मोतिया
काला मोतिया, ऑप्टिक नर्व को नुकसान पहुंचने से होता है। जब आंखों से तरल पदार्थ निकलने की प्रक्रिया में रूकावट आती है तो आंखों में दबाव (इंट्रा ऑक्युलर प्रेशर) बढ़ता है। अगर ऑप्टिक नर्व पर लगातार दबाव बढ़ता रहेगा तो वो नष्ट भी हो सकती हैं।
हमारी आंखों की ऑप्टिक नर्व ही सूचनाएं और किसी चीज का चित्र मस्तिष्क तक पहुंचाती हैं। यदि ऑप्टिक नर्व और आंखों के अन्य भागों पर पड़ने वाले दबाव को कम न किया जाए तो आंखों की रोशनी पूरी तरह जा सकती है।
पूरे विश्व में काला मोतिया, दृष्टिहीनता का दूसरा सबसे प्रमुख कारण है। अगर काला मोतिया की पहचान प्रारंभिक चरणों में ही हो जाए तो दृष्टि को कमजोर पड़ने से रोका जा सकता है।
काला मोतिया को ग्लुकोमा या काला मोतियाबिंद भी कहते हैं। यह किसी को किसी भी उम्र में हो सकता है, लेकिन उम्रदराज लोगों में इसके मामले अधिक देखे जाते हैं।
डायबिटिक रेटिनोपैथी और डायबिटिक मैक्युलर इडेमा
जिन लोगों को डायबिटीज़ है, उन सबको डायबिटिक रेटिनोपैथी और डायबिटिक मैक्युलर इडेमा (डीएमई) का खतरा होता है। ये विश्वभर में दृष्टि प्रभावित होना और दृष्टिहीनता का सबसे प्रमुख कारण है। डीआर और डीएमई अपने पनपने का कोई संकेत नहीं देते हैं, जब तक कि पीड़ित की नज़र धुंधली नहीं हो जाती है।
इनसे बचने के लिए बहुत जरूरी है कि डायबिटीज़ के रोगी अपनी आंखों का विशेष ध्यान रखें और नियमित अंतराल पर अपनी आंखों की जांच कराते रहें, ताकि दृष्टि संबंधी कोई जटिलता होने पर उसे नियंत्रित करने के लिए सभी जरूरी उपाय किए जा सकें।
नज़रअंदाज़ न करें इन लक्षणों को
- आंखों या सिर में भारीपन और धुंधला दिखाई देना।
- आंखें लाल होना और उनसे पानी आना।
- आंखों में खुजली होना
- रंगों का साफ दिखाई न देना।
- लगातार सिरदर्द की शिकायत रहना और आंखों में थकावट होना।
आई टेस्ट और विज़न स्क्रीनिंग
आपको आंखों से संबंधित कोई समस्या हो या न हो, आपको अपनी आंखों की नियमित रूप से जांच कराना चाहिए।
विज़न स्क्रीनिंग टेस्ट में दृष्टि की जांच की जाती है कि आपकी पास की या दूर की नज़र कमजोर तो नहीं हो गई।
आंखों की जांच में आप्टिक नर्व, मोतियाबिंद, कालामोतिया आदि आंखों से संबंधित बीमारियों की जांच की जाती है।
कब शुरू करें : 18 सल की उम्र से
कितने अंतराल के बाद: साल में एक बार;जिन्हें डायबिटीज़ हो उन्हें आंखों से संबंधित समस्याएं ज्यादा होती हैं, इसलिए ऐसे लोगों को हर छह महीने में आंखों की जांच कराना चाहिए, स्थिति अधिक गंभीर होने पर यह जांच हर तीन महीने में कराई जानी चाहिए।
जिन्हें चश्मा लगता है उन्हें भी नियमित तौर आंखों की जांच अवश्य करवाना चाहिए। इसमें आई डाईलेशन टेस्ट भी शामिल है यह रेटिना के स्वास्थ्य को बताता है।